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भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में मुस्लमानों की भूमिका: अनदेखा सच |
Role of Muslims in Indian Freedom Struggle: The Unseen Truth |
Paper Id :
17706 Submission Date :
2023-06-09 Acceptance Date :
2023-06-21 Publication Date :
2023-06-25
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रजनी तसीवाल
आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय महाविद्यालय
टोंक,राजस्थान, भारत
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सारांश
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भारत में तैनात एक अंग्रेज अधिकारी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ’’द इंडियन मुसलमैन्स’’ में 1871 में प्रकाशित किया था। (01) भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि विदेशी औपनिवेशिक शासन का पहला लोकप्रिय राष्ट्रीय प्रतिरोध बंगाल में हुआ था। हिंदू सन्यासियों और मुस्लिम फकीरों का एक संयुक्त मोर्चा अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था। इस लड़ाई का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति थे, कानपुर (उत्तरप्रदेश) के एक मुस्लिम सूफी मजनू शाह मदार, कानपुर का मस्त था और उसने एक अन्य सूफी संत हमीदुद्दीन की सलाह पर गरीब किसानों का मुद्धा उठाया था। ऐसा माना जाता है कि लगभग 2000 फकीर और सन्यासी उनके आदेश के तहत, गरीब शोषित जनता के बीच धन और भोजन वितरित करने के लिये ब्रिटिश और ब्रिटिश समर्पित जमींदारों के खजाने को लूट लोग, ऐसा तय किया।
1763 से 1786 में अपनी मृत्यु तक मजनू भारत में ब्रिटिश, साम्राज्य के लिये सबसे खतरनाक खतरा था। फकीर और सन्यासी सेना ने छापामार युद्धों में अंग्रेजों के कई अधिकारियों और सैनिकों को मार डाला था। उनकी मृत्यु के बाद, मूसा शाह ने आंदोलन का नेतृत्व संभाला था। ऐसा माना जाता है कि भवानी पाठक जैसे हिन्दू संन्यासी नेता भी थे और साथ-साथ लड़े थे।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद |
A British officer posted in India published in his famous book "The Indian Musalmans" in 1871. (01) Indian history is witness to the fact that the first popular national resistance to foreign colonial rule took place in Bengal. A united front of Hindu ascetics and Muslim mystics stood up against the British. The person leading this fight was Majnu Shah Madar, a Muslim Sufi from Kanpur (Uttar Pradesh), who was a saint of Kanpur and took up the cause of poor farmers on the advice of another Sufi saint Hameeduddin. It is believed that around 2000 fakirs and sanyasis under his command, decided to loot the treasury of British and British devoted landlords to distribute money and food among the poor oppressed masses.
From 1763 until his death in 1786, Majnu was the most dangerous threat to the British Empire in India. Fakir and Sanyasi army had killed many British officers and soldiers in guerilla wars. After his death, Musa Shah took over the leadership of the movement. It is believed that Hindu ascetic leaders like Bhavani Pathak were also leaders and fought together. |
मुख्य शब्द
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औपनिवेशिक, फकीर, राष्ट्रीय सरकार, लेटर मूवमेंट, अल-हिलाल, मदरसा, फिरंगी महल। |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद |
Colonial, Fakir, National Government, Letter Movement, Al-Hilal, Madrasa, Firangi Mahal. |
प्रस्तावना
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भारत को अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त करवाने और भारत के निर्माण में हिंदुओं के साथ मुसलमान समुदाय का भी महान योगदान रहा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि मुगलों के भारत आगमन के बाद भारतीय राष्ट्र के प्राचीन स्वरूप में परिवर्तन आया। संस्कृति और सभ्यता के स्वरूप में परिवर्तन आया। आजादी की लड़ाई में हिंदू भाइयो के साथ मुसलिम समुदाय ने अपनी जान निछावर कर दी थी। लेकिन आजादी के इतिहास का अधूरा अध्ययन और इतिहासकारों की कमी के कारण मुसलमानों का योगदान इतिहास के पन्नो में दर्ज ही नहीं हुआ। सैयद शाहनवाज अहमद कादरी और कृष्ण कल्किने ’’लहू बोलता है’’ नाम से लिखी जिसमे मुस्लिमों की शौर्य गाथा लिखी है। 1857 की लड़ाई भी हिंदुओं और मुसलमान भाइयों ने साथ मिलकर लड़ी थी। उस जंग में कई लाखो मुस्लिम मारे गये थे। कानपुर से फरुखाबाद के बीच सड़क किनारे पेड़ों पर मौलानाओं को फांसी दी गयी। दिल्ली के चांदनी चौक से लेकर खैलर तक उलेनाओंको फांसी पर चढ़ाया गया। लगभग 14 हजार उलेमाओं को सजा-ए-मौत दी गयी थी। जामा मस्जिद से लाल किले के बीच मैदान में कई उलेमाओं को निर्वस्त्र जिंदा जला दिया गया था। ऐसा वर्णित है कि फांसी पर चढ़ने वाले और काला पानी की सजा पाने वाले क्रांतिकारियों में 15% (प्रतिशत) मुसलमान थे। किन्तु फिर भी कुछ लोग मुसलमानों के बलिदान को नहीं मानते है। इसलिये यह शोध पत्र एक छोटी सी कोशिश है यह जानने की कि मुसलमानों का भी एक इतिहास है। जो उनके बलिदान को बताता है।
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अध्ययन का उद्देश्य
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प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में मुस्लमानों द्वारा किये गए महत्त्वपूर्ण योगदान का अध्ययन करना है । |
साहित्यावलोकन
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मुस्लिम समुदाय भारत में ब्रिटिश सत्ता के लिये खतरा था। बदरुद्दीन तैयवजी, डॉ मुख्तार अहमद अंसारी,
मौलान आजाद, सैफुद्दीन किचलेव, मगरूर अहमद,
एजाजी हकीम अजमल खान, अब्बास तैयलबी, रफी अहमद, किदवई कई ऐसे नाम है जिन्होंने
अंग्रजों की जड़ो को कमजोर कर दिया था।
लेखक मोहम्मद एजाज खाँ की संरचना ’’तारीख-ए-टोंक’’ में रियासत टोंक के संस्थापक नवाब मोहम्मद अमीर खॉ के संघर्ष
के बारे में लिखा है कि किस प्रकार नवाब मोहम्मद अमीर खॉ ने अंग्रेजी शासन के
विरूद्ध संघर्ष किया था।
लेखक साहिबज़ादा मुहम्मद अब्दुल मोईद खॉन ने रियासत टोंक के हुक्मराने जीशान
भाग द्वितीय में परगना सिंरोजू रियासत टोंक का इतिहास बतलाया है। रियासतों का
एकीकरण व टोंक में अंग्रेजों की स्थिति का उल्लेख किया है। लेखक साहिबजादा मुहम्मद
अब्दुल मोईद खान ने रियासत टोंक के हुक्मराने जीशान भाग एक में बजीरूद्दौला अमीरुल
मुल्क नवाब मुहम्मद वजीर खां बहादुर नुसरत जंग (1834 ई. 1864 ई.) यमीनुद्दौला
वजीरूल मुल्क नवाब मुहम्मद अली खां साहब बहादुर सौलत जंग (1864 ई. से 1867 ई.), अमीनद्दौला वजीरुल मुल्क नवाव सर मुहम्मद इब्राहीम अली खां
साहब बहादुर सोलत जंग (1867 ई0 से 1930 ई.),
सईदुद्दौला वजीरूल मुल्क नवाब सर मुहम्मद सआदत अली खां साहब बहादुर सौलत जंग (1930
ई. से 1947 ई.) मुमताजुद्दौला वजीरूल मुल्क नवाब फारूक अली खां साहब बहादुर सौलत
जंग (1947 ई. से 1948 ई.), अजीजद्दौला वजीरुल मुल्क
नवाब मुहम्मद इस्माईल अली खां साहब बहादुर सौलत जंग (शासनकाल 14 फरवरी से 1 मई
1948) तक की तस्वीरों को साझा किया है।
लेखक रतनलाल बंसल ने अपनी किताब ’’मुस्लिम देश भक्त’’ में आजादी के समय के उन सभी मुस्लिम देश भक्तों का उल्लेख
किया है, जिनके बिना आजादी मिलना
संभव नहीं था।
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मुख्य पाठ
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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:- (तथ्यात्मक) विदेशी शासन
के खिलाफ भारत के संघर्ष में मुस्लिम क्रान्तिकारियों कवियों और लेखक समाज का
योगदान प्रलेखित है। तीतू मीर (टीटू मीर) ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया
था। मौलाना अबुल कलाम आजाद, हकीम अजमल खान और रफी अहमद
किदवई ऐसे मुस्लिम है जो इस उद्देश्य में शामिल थे।
शाहजहाँपुर उत्तरप्रदेश के अशफाक उल्ला खाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक
प्रमुख क्रांतिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
विदेशी शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को फैजाबाद जेल में
फाँसी पर लटका दिया था।
राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफाक उल्ला खाँ भी उर्दू भाषा के शायर थे। उनका
उर्दू "तखल्लुस" जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं "हसरत" था। राम प्रसाद बिस्मिल व "अशफाक" की भूमिका निर्विवाद रूप से
हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम उदाहरण है।(01)
शाहजहाँपुर उत्तरप्रदेश के अशफाक उल्ला खाँ के समान ही खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत
गांधी के रूप में प्रसिद्ध) एक महान राष्ट्रवादी व्यक्तित्व रहे है। इस महान नायक
ने अपने जीवन के कुल 95 वर्षों में से 45 वर्ष केवल जेल में बिताये थे। भोपाल के
बरकतुल्लाह गदर पार्टी के संस्थापक में से एक थे। जिसने ब्रिटिश विरोधी संगठनों
से नेटवर्क बनाया था। गदर पार्टी के सैयद शाह रहमत ने फ्रांस में एक भूमिगत
क्रांतिकारी के रूप में काम किया था। 1915 मे एक असफल विद्रोह में उनकी भूमिका के
लिये उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी थी।
फैजाबाद (उत्तरप्रदेश) के अली अहमद सिद्दीकी ने जौनपुर के सैयद मुजतबा हुसैन
के साथ मलाया और बर्मा में भारतीय विद्रोह की योजना बनाई थी। 1917 में उन्हें भी
फांसी की सजा दी गई थी। केरल के अब्दुल वक्कोम खदिर ने 1942 के "भारत छोड़ो" आंदोलन में भाग लिया था।
1942 में उन्हें फाँसी की सजा दी गई थी। आजादी से पूर्व के अर्थशास्त्र का इतिहास
यह बताता है कि उमर सुमानी बंबई के एक उद्योगपति और करोडपति व्यक्ति थे।
उन्होंने गाँधी और कांग्रेस को व्यय प्रदान किया था और अंततः स्वतंत्रता
आंदोलन में खुद को कुर्बान कर दिया था। मुसलमान महिलाओं में हजरत महल, अस्धरी बेगम,
बाई अम्मा ने ब्रिटिश के खिलाफ स्वंतत्रता के संघर्ष में योगदान दिया।
1498 की शुरुआत से यूरोपीय देशों की नौसेना का उदय और व्यापार शक्ति को देखा
गया क्योंकि वे भारतीय उपमहाद्वीप पर तेजी से नौ सेना शक्ति में वृद्धि और विस्तार
करने में रूचि ले रहे थे।
ब्रिटेन और यूरोप में औद्योगिक क्रांति के आगमन के बाद यूरोपीय शक्तियों ने
मुगल साम्राज्य का पतन करने के लिये एक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकीय और वाणिज्यिक लाभ
प्राप्त किया था। हैदर अली और बाद में उनके बेटे टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश ईस्ट
इण्डिया कंपनी के प्रारम्भिक खतरे को समझा और उसका विरोध किया। 1799 में टीपू
सुल्तान श्रीरंगापटनम में पराजित हुये। बंगाल में नवाब सिराजुद्दौला ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तारवादी उद्देश्य का सामना किया और ब्रिटिशों से युद्ध
किया। यद्यपि 1757 में वे प्लासी की लड़ाई हार गये थे।
ब्रिटीश के खिलाफ पहले भारतीय विद्रोही को 10 जुलाई 1806 के वेल्लोर गदर में
देखा गया था जिसमे लगभग 200 ब्रिटिश अधिकारी और सैनिकों को मृत या घायल के रूप में पाया गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा इसका बदला लिया गया। सभी विद्रोहियों और टीपू
सुल्तान के परिवार वालों को वेल्लोर किले में बंदी बनाया गया। उस समय इसके लिये
भारी कीमत चुकानी पड़ी यह स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध था। जिसे ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने 1857 का सिपाही विद्रोह कहा। सिपाही विद्रोह के परिणामस्वरूप
अंग्रेजो द्वारा ज्यादातर ऊपरी वर्ग के मुस्लिम लक्ष्य बनाये गये थे क्योंकि वहाँ
और दिल्ली में इन्हीं के नेतृत्व में युद्ध किया गया था। हजारों की संख्या में मित्रों
और सगे संबंधियों को दिल्ली के लाल किले पर गोली मार दी गयी थी। कई लोगों को
फांसी पर लटका दिया गया था जिसे वर्तमान में खूनी दरवाजा कहा जाता है।
मुगल साम्राज्य जैसे-जैसे समाप्ति की ओर जाने लगा वैसे-वैसे मुसलमानों की
दुनिया में एक नयी चुनौती आ गयी थी। विदेशी शासक व उसकी प्रजा तकनीकी रूप से
शक्तिशाली थे। उन तकनीकी पारगं त लोगों के साथ संपर्क बनाते हुये अपनी संस्कृति की
रक्षा और उसके प्रति रुचि जगाना था। इसी अवधि में फिरंगी महल के उलामा ने मुसलमानों
को शिक्षित और निर्देशित किया था।
फिरंगी महल ने भारत के मुसलमानों का नेतृत्व किया था। दारुल उलूम देवबंद (उत्तरप्रदेश)
के मौलाना और मौलवी (धार्मिक शिक्षक) ने भारत की स्वतत्रंता के संघर्ष में
महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। साथ ही एक घोषणा की थी कि एक अन्यायपूर्ण शासन की
अधीनता करना इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है।
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निष्कर्ष
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मौलाना अबुल कलाम आजाद, दारूल उलूम देवबंद जाकिर के मौलाना महमूद हसन जिन्हें एक सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से अग्रेजो की पराजय के लिये प्रसिद्ध सिल्क लेटर षड़यंत्र में दोषी ठहराया गया था। हुसैन अहमद मदनी, दारुल उलूम देवबंद, पूर्व शेफहुल हदिथ, मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी, हकीम अजमल खान, हसरत मोहनी, डा. सैयद महमूद, प्रोफेसर मौलवी बरकतुल्लाह, डॉ. जाकिर हुसैन, सैफुद्दीन, किचलु, वक्कोम अब्दुल खदिर, डॉ. मंजूर अब्दुल बहाव, बहादुर शाह जफर, हकीम नुसरत हुसैन, खान अब्दुल गफ्फार, अब्दुल समद खान, अचकजई, शाहनवाज कर्नल, डॉ. एम. ए. अन्सारी, रफी अहमद किदवई, फखरुद्दीन अली अहमद, अंसार हर्बानी, तक शेखानी, नवाब विकरूल मुल्क, नवाब मोहसिनुल मुल्क, मुस्तफा हुसैन, बीएम उबैदुल्लाह एसआर रहीम, बदरूद्दीन तैयबजी और अब्दुल हमीद। ये सभी वे महान मुसलिम व्यक्तित्व है, जिन्होंने आजादी के युद्ध में भाग लिया था। इतिहास इस बात का साक्षी है कि 1930 के दशक तक मुहम्मद अली जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे। वे स्वतंत्रता संग्राम के हिस्सा थे। डॉ. सर अल्लामा मुहम्मद इंकबाल हिंदू - मुस्लिम एकता और 1920 के दशक के अविभाजित भारत के एक मजबूत प्रस्तावक थे। प्रारम्भिक राजनीतिक भविष्य के दौरान हुसैन शहीद सुहरावर्दी भी बंगाल में राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय थे। |
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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1. ’’द इंडियन मुसलमैन्स’’ लेखक डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर
2. AINA ZTHE VOICE www.awazthevoice-in-translate.google
3. विजन मुस्लिम टुडे (50 मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी, जिनके साथ इतिहास ने धोखा किया)
4. आजादी के 75 साल: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम महिलायें India Khaas
Khabar
5. The Cognate ‘Remembering Muslim Heroes of Indian
National Army.
6. The Munsif Daily :-
Posted Munsif Web Desk
7. मदनलाल वर्मा ’’क्रान्त’’ सरफरोशी की तमन्ना 1997 प्रवीन प्रकाशन दिल्ली के भाग एक, (पृष्ठ-70 से 73 से)
8. "Why India's
Muslims are So Maleate" Economist 7 Sep. 2014
9. शर्मा ऊषा, Cultural and Religious
Heritage of India : Islam Mittal Publication, 2004
10. Make India Observer in
forum of Islamic Nations Bangladesh
11. भारत के मुसलमान
12. "Enumerating
Pakistan" |