ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- III April  - 2023
Innovation The Research Concept
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गाँधीवादी विचारों की प्रासंगिकता
Relevance of Gandhian Thoughts in The Present Context
Paper Id :  17531   Submission Date :  2023-04-13   Acceptance Date :  2023-04-21   Publication Date :  2023-04-25
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विकास कुमार
शोध-छात्र
राजनीति विज्ञान विभाग
स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर,
(वी0बी0एस0), पूर्वांचल विश्वविद्यालय ,जौनपुर, उ0प्र0, भारत
सारांश
महात्मा गाँधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया है बल्कि करूणा, सहिष्णुता एवं शान्ति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गाँधी ने अपने जीवनकाल में सिद्धान्तों और प्रथाओं को विकसित करने पर जोर दिया और दुनिया भर में अन्तिम पायदान पर स्थित समूहों और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज उठाने में भी अतुलनीय योगदान दिया। न्यू इंडिया के निर्माण में महात्मा गाँधी की भूमिका और उनका प्रभाव निर्विवाद है। वर्तमान 21वीं सदी में भी एक व्यक्ति और एक दार्शनिक के रूप में गाँधी जी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि वह पहले थे। गाँधी जी द्वारा स्वीकृत ‘सर्वधर्म समभाव’ अर्थात सभी धर्म समान है तथा ‘सर्वधर्म सद्भाव’ अर्थात सभी धर्मो के प्रति सद्भावना, इस वैश्विक एवं तकनीकी युग में सद्भाव और करूणा का वातावरण बनाए रखने और ‘वसुधैव’ कुटुम्बकम’ के विचार को साकार करने के लिए आवश्यक है। महात्मा गांधी ने विश्व के बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं जैसे- मर्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाईलामा आदि को प्रेरित किया तथा लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्यपूर्व तथा यूरोप में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों को भी प्रभावित किया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Mahatma Gandhi's thoughts have not only inspired people all over the world but also played an important role in changing India and the world from the point of view of compassion, tolerance and peace. Gandhi insisted on developing principles and practices during his lifetime and also made an incomparable contribution in raising the voice of the marginalized groups and oppressed communities across the world. The role and influence of Mahatma Gandhi in building New India is undeniable. In the current 21st century, Gandhiji as a person and a philosopher is as relevant as he was earlier. Accepted by Gandhiji 'Sarvadharma Samabhava' means all religions are equal and 'Sarvadharma Sadbhava' means goodwill towards all religions, to maintain an atmosphere of harmony and compassion in this global and technological age and to realize the idea of 'Vasudhaiva Kutumbakam' is necessary for Mahatma Gandhi inspired great moral and political leaders of the world such as Martin Luther, King Jr., Nelson Mandela and Dalai Lama etc. and also influenced social and political movements in Latin America, Asia, Middle East and Europe.
मुख्य शब्द महात्मा गाँधी, करूणा, सहिष्णुता एवं शान्ति।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Mahatma Gandhi, Compassion, Tolerance and Peace.
प्रस्तावना
महात्मा गांधी का जीवन-दर्शन इचछाओं की उच्छृंखलता के विरूद्ध उन पर नियंत्रण तथा भौतिकता की पूजा करने के विरूद्ध आध्यात्मिक साधना है। सत्य और अहिंसा इसके सक्षम औजार है। जो अपने ऊपर विजय प्राप्त कर लेता है, वही दुनिया पर विजय प्राप्त कर सकता है। गांधी जी 30-40 वर्षों तक भारत के स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व करते हुए भी सक्रिय राजनीतिक जीवन बिताते हुए भी मूलतः एक नैतिक शिक्षक का कार्य करते रहे। सत्य और अहिंसा उनको इतना प्रिय था कि उनकी कीमत पर उन्हें स्वाधीनता भी नहीं चाहिए थी। हजारों लोगों ने गांधी जी की इस सीख में अपना विश्वास प्रकट किया और करोड़ों लोग गांधी जी के भक्त एवं प्रशंसक भी बने। भारतीय इतिहास में तीन-चार दशकों की इस अवधि को ‘गांधी युग’ के नाम से जाना जाता है। गांधी जी विश्व पटल पर एक महामानव (Superman) के रूप में उभरे और उन्होंने स्वातंत्रो-मुखी जनसंघो को व्यापक रूप से प्रभावित किया। मार्टिन लूथर किंग से लेकर नेल्सन मंडेला और आंग-सान-सू तक अपनी-अपनी तरफ से मुक्ति संघर्ष चलाने वाले राजनेताओं की कई पीढ़ियां उनसे प्रभावित हुई सफल भी हुई। यू0एस0ए0 के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने प्रेरणा स्रोत के रूप में मार्टिन लूथर किंग के साथ-साथ गांधी जी की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता के प्रश्न पर विचार करने से पहले गांधी जी के विचारों एवं उनके आदर्शों को समझना जरूरी है।
अध्ययन का उद्देश्य
1. 21वीं सदी में गांधीवादी दर्शन की प्रासंगिकता का विश्लेषण करना। 2. भारत में गांधी जी विचारों की वर्तमान राजनीति में उपयोगिता का तुलनात्मक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन करना। 3. वैश्विक मंच पर गाँधी जी के बढ़ते प्रभाव को इंगित करना। 4. विश्व स्तर पर गाँधी जी के आदर्शों के द्वारा नया ज्ञान प्राप्त करना।
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध-पत्र में उपलब्ध साहित्य का अवलोकन एवं समीक्षा भी की गई है। इसमें विशेष रूप से करण सिंह की पुस्तक द एसेंस आफ गाँधीयन फिलासफीज्ञान बुक प्रा0लि0, नई दिल्ली 2014, से गाँधी जी के आदर्शों एवं मूल्यों का विश्लेषण किया गया है। पट्टभिसीतारमैया की पुस्तकभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहासएस0चन्द्र एण्ड कम्पनी, नई दिल्ली 1969 से गांधी जी के भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के समय दिये गये विचारों का अध्ययन सम्मिलित किया गया है। ओ0पी0 गाबा की पुस्तक भारतीय राजनीति विचारकमयूर पेपरबैक्स इन्दिरापुरम् 2016 से गांधी जी के सत्याग्रह, सत्य और अहिंसा आदि पर विचार-विमर्श प्रस्तुत किया गया है। उपर्युक्त सर्वेक्षण एवं साहित्य के अध्ययन की निरन्तरता की दिशा में प्रस्तुत शोध-पत्र एक गम्भीर एवं सारगर्भित प्रयास है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध पत्र में ऐतिहासिक विवरणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। यह अध्ययन मूल रूप से द्वितीयक स्रोतो से संकलित सामग्री पर आधारित है। जिसमें समाचार पत्रों एवं पाक्षिक, मासिक, अर्द्धवार्षिक शोध पत्रिकाओं, जनरल्स आदि में उपलब्ध सूचनाओं एवं समीक्षाओं को संकलित किया गया है।
विश्लेषण

महात्मा गांधी ने न केवल राजनीतिक क्षेत्र में विलक्षण कार्य किया अपितु विश्व के राजनीतिक चिंतन में बड़ी क्रांतिकारी मौलिक देन थी। प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान वैज्ञानिक युग एवं शक्ति की राजनीति मेे सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह का प्रयोग संभव है? गांधी जी के प्रत्येक विचारों का मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है। गांधी जी ने राजनीति का आध्यात्मीकरण किया है। मध्ययुग में तथाकथित धर्म ने राजनीति पर नियंत्रण कर समाज का बहुत अहित किया था। अतः धर्म निरपेक्ष राजनीति समर्थन मिला, किन्तु धर्म निरपेक्ष होकर राजनीति पूर्णतः स्वछन्द और कुपथगामिनी हो गई, धूर्तता का पर्याय बन गई, मानवता के विनाश का एक कारण बन गई। किंतु गांधी जी का विश्वास था कि यदि राजनीति को मानव समाज के लिए वरदान होता है तो ऐसे उच्चतम नैतिक और आध्यात्मिक सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिए। उन्हीं के शब्दों में जो यह नही जानता कि धर्म का क्या अर्थ है। धर्म से पृथक राजनीति कूड़े के समान है। उन्होंने राजनीति में नैतिक मूल्यों को महत्व दिया। राजनीतिक विसंगतियों से परित्राण पाना चाहती है तो उसे राजनीति में मूल्यों को स्वीकार करना ही पडे़गा।
महात्मा गांधी ने अपनी सम्पूर्ण अहिंसक कार्य पद्धति को सत्याग्रहका नाम दिया। उनके लिए सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गाँधी जी का मानना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था जिसकी असंख्य शाखाएँ होती है। चम्पारण और बारदोली सत्याग्रह गाँधी जी द्वारा केवल लोगों के लिए भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु नहीं किये गये थे, बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करने हेतु किये गये थे। सविनय अवज्ञा आन्दोलन, दाण्डी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिनमें गांधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।

विदित है कि गांधी जी का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था और चूँकि पिता राजकोट के दीवान थे, इसलिए उन्हे अन्य धर्मों के लोगों से मिलने का भी काफी अवसर मिला, उनके कई इसाई और मुस्लिम दोस्त थे। साथ ही गांधी जी अपनी युवा अवस्था में जैन धर्म से भी काफी प्रभावित थे। कई विश्लेषकों का मानना है कि गांधी जी ने सत्याग्रहकी अवधारणा हेतु जैन धर्म के प्रचलित सिद्धांत अहिंसासे प्रेरणा ली थी। गांधी जी ने भगवानको सत्यके रूप में उल्लेखित किया था। उनका मानना था कि ‘‘मैं लकीर का फकीर नहीं हूँ।’’ वे संसार के सभी धर्मों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर कसकर देखते थे, जो भी उसमें खरा नहीं उतरता वे उसे अस्वीकार कर देते और जो उसमें खरा उतरता वे उसे स्वीकार कर लेते थे।

राजनीति के समान ही अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में गांधी जी का विचार था कि सच्चा अर्थशास्त्र नैतिकता के महान् नियमों के प्रतिकूल हो ही नहीं सकता है। सच्चा अर्थशास्त्र सामाजिक न्याय चाहता है, वह प्रत्येक व्यक्ति का उत्थान चाहता है। गांधी जी औद्योगीकरण का विरोध करते हैं। औद्योगीकरण से समाज में घृणा, विद्वेष और स्वार्थपरता उत्पन्न होती है। पर्यावरण प्रदूषण इसका सबसे प्रमुख कारण है। औद्योगीकरण से शोषण को प्रोत्साहन मिलता है। औद्योगीकरण का एक दोष यह भी है कि केन्द्रीकृत उत्पादन के परिणामस्वरूप राजनीतिक शक्ति का भी केन्द्रीकरण हो जाता है जो लोकतन्त्र और मानवीय स्वतंत्रता दोनों का ही शत्रु है। गाँधी जी कुटीर उद्योगों का समर्थन करते है। आलोचक गाँधीजी के इस विचार को बैलगाड़ी वाले युग में ढ़केलने वाला कहते हैं। अपरिग्रह का सिद्धान्त, वर्ग सहयोग की धारणा तथा संरक्षकता का सिद्धान्त बड़ा ही व्यावहारिक जान पड़ता है। किन्तु संरक्षकता का सिद्धान्त जन सामान्य के आर्थिक हितों की रक्षा का साधन बनने की बजाय पूंजीपतियों का रक्षाकवच बनकर ही रह जाता है। समाजवाद आधुनिक युग फैशन है और प्रायः गांधीवाद का मूल्यांकन समाजवाद के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। गांधीवाद उच्च कोटि का समाजवाद है क्योंकि इसमें समाजवाद के समस्त गुणों और लक्ष्यों को अपना लिया गया है और दुर्गुणों से छुटकारा पा लिया गया है। श्री बिनोबा भावे ने मार्क्सवाद और गांधीवाद की तुलना करते हुए लिखा- ‘‘एक बार इस तरह की चर्चा हो ही रही थी गांधीवाद और मार्क्सवाद में केवल अहिंसा का ही अन्तर है। मैनें कहा दो व्यक्ति नाक, कान और आँख की दृष्टि से बिल्कुल एक से थें इतने मिलते-जुलते थे कि राजनीतिक छल के लिए एक ही जगह दूसरे को बिठाया जा सकता था। फर्क इतना ही था कि एक की नाक से सांस चल रही थी और दूसरे की सांस बन्द हो गई थी। परिणाम यह हुआ कि एक के लिए भोजन की तैयारी हो रही थी ओर दूसरे के लिए शवयात्रा की।’’ गांधी के आर्थिक-सामाजिक दर्शन में विकेन्द्रीकरण उत्पादन प्रणाली, उत्पादन के साधनों का विकेन्द्रित होना और पूंजी विकेन्द्रित होने की बात कही गई है ताकि समाज जीवन के लिए आवश्यक पदार्थों की उपलब्धि में स्वावलम्बी हो और उसे किसी का मुखापेक्षी न बनना पड़े।

गांधी जी स्वच्छता को स्वतन्त्रता से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। भारत में स्वच्छता एक बड़ा मुद्दा है जिसे केवल एक रेलयात्रा के दौरान स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। देश में कई लोगों के लिए स्वच्छता एक दिवास्वप्न है और इनकी स्वच्छता में उनकी सहायता करने के लिए सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में 11 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया है ओर 2 अक्टूबर 2019 को ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है। हालांकि उनमें से कई शौचालय कार्यरत अवस्था में नहीं है या उनमें जल की सुविधा नहीं है, किन्तु यहाँ इस बात पर विशेष बल दिया जाना चाहिए कि इस प्रयास ने अभूतपूर्व जन जागरूकता का सृजन किया है।

गाँधी जी ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा था, जहाँ पूर्ण सुशासन और पारदर्शिता हो। 2 अगस्त 1934 को अमृत बाजार पत्रिकामें उन्होंने कहा, ‘‘मेरे सपनों की रामायण राजा और निर्धन दोनों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करती है। फिर 2 जनवरी 1937 को हरिजनमें उन्होंने लिखा, ‘‘मैनें रामराज्य का वर्णन किया है जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की सप्रभुता है।’’ सुशासन की दिशा में सभी मंत्रालयों द्वारा सभी नियमित जानकारी और डेटा का सक्रिय प्रकाशन ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक कार्यपालिका की भूमिका और उत्तरदायित्व बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किये गये है। सरकार ने देश में आकांक्षीपूर्ण जिलों की पहचान की है और नीति आयोग 39 संकेतकों पर इनकी निगरानी करता है। इस पहल का उद्देश्य है कि इन जिलों के बराबर या बेहतर स्थिति में लाया जाए। यह पहल गांधी जी की समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों के उत्थान के प्रयासों के अनुरूप है।

पंचायतीराज और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर गांधी जी के विचार बहुत स्पष्ट थे। उनका कहना था कि यदि हिन्दुस्तान के प्रत्येक गाँव में कभी पंचायतीराज कायम हुआ, तो मैं अपनी इस तस्वीर की सच्चाई साबित कर सकूंगा।

निष्कर्ष
महात्मा गांधी बीसवीं शताब्दी की दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक और आध्यात्मिक नेताओं में से एक माने जाते है। वे पूरी दुनिया में शांति, प्रेम, सत्य और अहिंसा, ईमानदारी, नैतिक शुद्धता और करूणा तथा इन साधनों के सफल प्रयोगकर्ता के रूप में याद किये जाते हैं, जिसके बल पर उन्होंने उपनिवेशवादी सरकार के खिलाफ पूरे देश को एकजुट कर आजादी की अलख जगाई। आज दुनिया के किसी भी देश में जब कोई शांति मार्च निकलता है या अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाता है या हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जाना हो तो ऐसे सभी अवसरों पर दुनिया को गांधी याद आते है। अतः यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं है कि गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धान्त कल भी प्रासंगिक थे, आज भी है तथा आने वाले समय में भी रहेगें।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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