ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- III June  - 2023
Anthology The Research
भारत में सूक्ष्म वित्तः एक मूल्यांकन
Microfinance in India: An Appraisal
Paper Id :  17720   Submission Date :  2023-06-14   Acceptance Date :  2023-06-19   Publication Date :  2023-06-22
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नीरजा पाराशर
असिस्टेंट प्रोफेसर
अर्थशास्त्र विभाग
जे0एस0 विश्वविद्यालय
शिकोहाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश
वर्ष 2022 तक किसान की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा संभावना युक्त ऋण योजना (पी0एल0पी0) में आंकलन किए गए है। पूर्व के वर्षों में यह देखा गया है कि ऋण के बढ़ते प्रवाह के बावजूद कृषक की आय में समरूपता से वृद्धि नहीं हुई, जिसका मुख्य कारण कृषि में लागत मूल्य में लगातार हो रही बढ़त है जबकि लागत मूल्य में बढ़त के अनुपात में कृषक को उसके उत्पादों का बिक्री मूल्य नहीं मिल पा रहा है। इसके लिये आवश्यक है कि कृषक ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कम से कम लागत मूल्य पर कर सके। कृषि क्षेत्र में कृषि ऋण के सापेक्ष सावधि ऋण के घटते प्रतिशत को भी गंभीरता से लिया गया है तथा कृषि ऋण कृषि सम्बन्धी सावधि ऋण को 70:30 के स्तर पर रखा गया है। जिससे की कृषि क्षेत्र में “Asset formation”हो सके। कृषि ऋण आंकलन में निम्न गतिविधियों को शामिल किया गया है जैसे-फसल उत्पाद, रख-रखाव एवं विपणन, पशु पालन, यंत्रीकरण, बागवानी, वानिकी, मत्स्य पालन इत्यादि। प्रस्तुत शोध पत्र में सूक्ष्म वित्त, सूक्ष्म वित्त संस्थायें, सूक्ष्म वित्त मॉडल का विकास, प्रमुख व्यवसाय मॉडल का अध्ययन किया गया है। सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के लाभ, सूक्ष्म वित्त संस्थाओं की चुनौतियाँ का व्यवहारिक अध्ययन व विश्लेषण किया गया है। सूक्ष्म वित्त ऋणों का मूल्य निर्धारण, संयुक्त देयता समूह (जे0एल0जी0) के माध्यम से वित्तपोषण, सूक्ष्म वित्त के उपायों का बड़े पैमाने पर विस्तार करने सम्बन्धी विषय पर अध्ययन किया गया है। इसके उपरान्त सूक्ष्म वित्त के मूल्यांकन का निष्कर्ष निकाला गया है तथा सूक्ष्म वित्त की आगे की राह की भी चर्चा की गई है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Keeping in view the target of doubling the income of the farmer by the year 2022, the National Bank for Agriculture and Rural Development (NABARD) has done the assessment in the Potential Loan Scheme (PLP). In the past years, it has been observed that despite the increasing flow of credit, the income of the farmer did not increase uniformly, mainly due to the continuous increase in the input price in agriculture, while in proportion to the increase in the input price, the farmer has to sell his products & cannot find sale price. For this, it is necessary that the farmer can produce maximum production at minimum cost.
The decreasing percentage of term loan in relation to agriculture loan in agriculture sector has also been taken seriously and agriculture loan to agriculture term loan has been kept at the level of 70:30. So that "Asset formation" can happen in the agriculture sector. The following activities have been included in agricultural credit assessment such as crop production, maintenance and marketing, animal husbandry, mechanization, horticulture, forestry, fisheries etc.
Microfinance, microfinance institutions, development of microfinance model, major business models have been studied in the presented research paper. Practical study and analysis of benefits of micro finance institutions, challenges of micro finance institutions has been done. The pricing of micro finance loans, financing through Joint Liability Group (JLG), expansion of micro finance measures on a large scale has been studied. After this, the evaluation of micro finance has been concluded and the way forward for micro finance has also been discussed.
मुख्य शब्द सूक्ष्म वित्त, कृषि साख, सूक्ष्म वित्त संस्था (एमएफआई), संस्थागत वित्त, ऋण वितरण प्रणाली।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Micro Finance, Agricultural Credit, Micro Finance Institutions (MFIs), Institutional Finance, Credit Delivery System.
प्रस्तावना

प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था में मनुस्मृति में ऋण देने की प्रथा जीवित थी कर्ज लेने की प्रथा उतनी पुरानी है जितनी भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था। जिस तरह बड़े-बड़े उद्योग के लिए धन की आवश्यकता होती है उसी तरह कृषि को चलाने के लिये भी धन की आवश्यकता होती है। अखिल भारतीय ग्रामीण साख पर्यवेक्षण समिति ने ग्रामीण साख/वित्त का कई प्रकार से वर्गीकरण किया है

1. ऋण लेने की आवश्यकतानुसार

2.सुरक्षा के आधार पर

3. ऋण दाता के अनुसार

4. ऋण के आधार पर

5.परिस्थितियों के आधार पर।

हमारे देश में विशाल और बढ़ती श्रमजीवी आबादी के साथ एक बड़ा जन सांख्यिकीय परिवर्तन हो रहा है। संस्थागत ऋण समर्थन से मध्यम वर्ग विकसित होने की बड़ी सम्भावना है इसलिए सूक्ष्म वित्त उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने और उनके लक्ष्यों को पूरा करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। कम आय समूहों को आपातकालीन ऋण, उपभोग ऋण, व्यवसाय ऋण, कार्यशील पूंजी ऋण, आवास आदि ऋण की जरूरत होती है जो इसमें शामिल है इस ऋण के अलावा गरीब परिवारों को वित्तीय सेवाओं के संयोजन से लाभ होगा, जिसमें बचत प्रेषण, ऋण, सूक्ष्म बीमा, माइक्रो-पेंशन और इसी तरह के लाभ शामिल है।

अध्ययन का उद्देश्य

1. सूक्ष्म वित्त एवं सूक्ष्म वित्त संस्थाओं का अध्ययन करना।
2. सूक्ष्म वित्त मॉडल का विकास तथा सूक्ष्म वित्त के प्रमुख व्यवसाय मॉडलों का अध्ययन करना।
3. सूक्ष्म वित्त के उपायों का बड़े पैमाने पर विस्तार, सूक्ष्म वित्त कार्यक्रमों की प्रगति एवं सूक्ष्म वित्त ऋणों का मूल्य निर्धारण का अध्ययन करना।
4. बैंक लिंकेज कार्यक्रम गरीब वर्ग, मुख्यतः महिलाओं, छोटे/सीमान्त किसानों के आर्थिक विकास के आधार पर सूक्ष्म वित्त का मूल्यांकन करना।

साहित्यावलोकन

भारत में सूक्ष्म वित्त के सम्बन्ध में निम्न साहित्य का अवलोकन किया गया तथा समीक्षा निम्न प्रकार है।

Chawla (2013) reviews Indian MPIs literature to see the impact of regulations on MFls in India. This study is done past the Andhra crisis where many farmers in the state of Andhra Pradesh hadcommitted suicide due to inability to pay the high interest rate charged by unregulated MEIs Author feels that due to trajectory growth of the microfin anen in India, it in time for regulations to be imposed on MPI as it will be beneficial for all the stakeholders. The study further high lights the importance of Microfinance till 2012 and the role it played in streamlining many processes including fixing of interest rates that can be charged by the MFI. The author recommends that MFIs should being transparency in the interest rates charged introduction of technology to reduce the operating conts and lantly access to alternate sources of fund to reduce cost of capital.

Bhanot and hapat (2014) teated the impact of gross loan portfolio, portfolio at risk debt equity ratio return on mets, borrower per staff and deposits on Indian MPIs for the year 2010 using panel dataregression on a sample of 81 MFI picked from MIX databam and found fourfactors to be crucial to the sustainability namely, green loan portfolio return on assets, portfolio quality and staffproductivity. Further in their study they suggested a financial sustainability index to rank the Indian MYIs an per their ertainability score based on the methodology called TOPSIS

World Bank (1999) conducted a survey on 615 microcredit borrowers of Bangladesh which showed that macrofinance has brought in a positive change in the economic and social status of the horrowers. The results showed that for 98 percent of the borrowers, their income had increased, 29 percent of themhave been, able to purchase new land either for agriculture or for building a house in the village, the results were ahu seen in the improvement of child education in 75 percent of the borrowers and sanitation conditions improved for 60 percent. The credit of improvement was due to self employment of women participants

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध पत्र द्वितीयक समंकों पर आधारित है जिन्हें विभिन्न स्रोतों से संकलित किया गया है। अधिकांश आंकडे सूक्ष्म वित्त की सर्वोच्च संस्था राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) से लिये गये हैं नाबार्ड द्वारा प्रतिवर्ष प्रत्येक जनपद हेतु तैयार की जा रही सम्भावता युक्त ऋण योजनाओं (पी0एल0पी0) का प्रयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त अध्ययन में भारतीय अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित पुस्तकों में भारतीय अर्थव्यवस्था 2021-22, प्रतियोगिता दर्पण अतिरिक्तांक, उपकार प्रकाशन, आगरा व अन्य पुस्तकों के आंकड़ों का प्रयोग किया गया है। अन्य समंकों हेतु इण्टरनेट के माध्यम से विभिन्न बेवसाइट जैसे नाबार्ड व रिजर्व बैंक की बेवसाइट से संकलित आंकडों का प्रयोग किया गया है। तथा अध्ययन में ग्रामीण साख सर्वेक्षण के आंकड़ों का भी प्रयोग किया गया है। सम्पूर्ण अध्ययन केवल अवलोकन तथा आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। इस शोध पत्र में सूक्ष्म वित्त मॉडल का समग्र वित्तीय समावेशन के माध्यम से भारत की एक बडी जनसंख्या तक उनकी वित्तीय आवश्यकताओं के एक सशक्त उपाय के रूप में कितना सफल हुआ है, का मूल्यांकन किया गया है। सूक्ष्म ऋण का अभिप्राय अलग-अलग देशों में भिन्न होता है। भारत में 1 लाख रूपये से कम के सभी ऋणों को माइक्रोलोन या सूक्ष्म ऋण माना जा सकता है। इसकी सेवाओं में सूक्ष्म ऋण, सूक्ष्म बचत और सूक्ष्म बीमा शामिल है। वित्तीय कम्पनियाँ इन लोगों को छोटे ऋण प्रदान करती हैं जो समाज के वंचित और कमजोर वर्गों से हैं तथा बैकिंग संविधाओं तक पहुँच उपलब्ध नहीं है। सूक्ष्म वित्त संस्थाएँ उन कम्पनियों को कहा जाता है। जो निम्न आय वर्ग के लोगों को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिये अथवा कृषकों को सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज उपलब्ध कराते है। तथाकथित ब्याज दरें ज्यादातर मामलों में सामान्य बैंकों द्वारा वसूल किये जाने वाली दरों से कम होती है। अतः कुछ लोगों ने इन सूक्ष्म वित्त संस्थाओं पर गरीब लोगों के पैसे में हेरफेर करके लाभ कमाने का आरोप लगाया है। पिछले कुछ दशकों में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र तेजी से बढ़ा है और वर्तमान में इनके पास भारत की गरीब आबादी के लगभग 102 मिलियन खाते (बैंकों और छोटे वित्त बैंकों सहित) हैं।
विश्लेषण

सूक्ष्म वित्त मॉडल का विकास
सूक्ष्म वित्त की गैर-लाभकारी उत्पत्ति इस विचार पर बनाई गई थी कि यह एक सामाजिक और कल्याणकारी प्रस्ताव था। जो समुदाय आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से घरेलू आय में वृद्धि करके सामाजिक कल्याण में सुधार के उद्देश्य से प्रेरित था। हालांकि, इसके पश्चात, दुनिया भर में कई सूक्ष्म वित्त मॉडल विकसित हुए है, तथापि भारत में एक सूक्ष्म वित्त मॉडल विकसित करने के लिए दो अलग-अलग दृष्टिकोणों के माध्यम से ग्रामीण परिवारों और भीतरी इलाकों में वित्तीय समावेशन देने की खोज विकसित हुई है, पहला बैंक के नेतृत्व वाला दृष्टिकोण मुख्य रूप से स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बैंक लिंकेज प्रोग्राम (एसएचजी-बीएलपी) और दूसरा विशेष सूक्ष्म वित्त संस्थानों के नेतृत्व वाले मॉडल के माध्यम से भारत में सुक्ष्म वित्त की एक औपचारिक संरचना की शुरूआत और बड़े पैमाने पर सूक्ष्म वित्त की मान्यता और जोर, एसएचजी बैंक लिंकेज प्रोग्राम (एसबीएलपी) से पता लगाया जा सकता है। जिसे 1992 में कृषि राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा एक पायलट परियोजना के रूप में शुरू किया गया था। यह कार्यक्रमों बाद के वर्षों में काफी सफल साबित हुआ। एक पहल जो ग्रामीण ऋण में सुधार और प्रसार के एक सरल दृष्टिकोण के रूप में शुरू हुई थी, धीरे-धीरे ग्रामीण भारत में वित्तीय और तकनीकी क्षमताओं के निर्माण के लिए एक समावेशी कार्यक्रम में बदल गई है।
समय के साथ, सूक्ष्म वित्त संकुल के तहत सेवाओं के गुलदस्ते का विस्तार केवल ऋण से किया और लाभकारी उत्पादों तक हुआ है। जिसमें माइक्रो इंश्योरेंस, माइक्रो पेंशन, माइक्रो रेमिटेंस, डिजिटल भुगतान आदि शामिल है। यह विकास अन्य वित्तीय सेवाओं और उद्योग अभिविन्यास के महत्व की पहचान को दर्शाते हैं, जिसमें निम्न आय वर्ग को ऋण देने से आगे बढ़ते हुए वित्तीय व्यवहार्यता के साथ सामाजिक लाभ के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करना रहा है। इस प्रकार वंचितों की सेवा करते हूए, सूक्ष्म वित्त पिरामिड के निचले हिस्से में वित्तीय विकास के लाभों को विस्तारित करने का अवसर भी प्रस्तुत करता है।
1990 के दशक में माइक्रोफाइनेंस गतिविधियों को प्रमुखता मिली, तो आरबीआई ने इसे अपार संभावनाओं के साथ एक नए प्रतिमान के रूप में मान्यता दी और इसके विकास का बहुत समर्थन किया है। जब 2000 के दशक की शुरूआत में एमएफआई को विनियमित करने की आवश्यकता महसूस की गई तो एक विचार शामिल किया गया कि एमएफआई अन्य वित्तीय संस्थानों से काफी अलग है। संस्थागत संरचना और उत्पाद पोर्टफोलियो दोनों के मामले में और उन्हें अलग तरह से विनियमित करने की आवश्यकता है तब से, हमारा दृष्टिकोण इन संस्थानों के लिए विवेक, वित्तीय स्थिरता और ग्राहक हित के सिद्धान्तों को कमजोर किये बिना क्षेत्र की विशिष्ट बारीकियों के साथ संरेखण में एक अलग नियामक व्यवस्था तैयार करने का रहा है।
इस विनियामकीय ढांचे के विकास में एक प्रमुख मील का पत्थर श्री वाई. एच. मालेगम की अध्यक्षता में समिति का गठन था। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर आरबीआई ने दिसम्बर 2011 में एनबीएफसी-एमएफआई के लिए एक व्यापक नियामक ढांचा प्रस्तुत किया। उक्त विनियमों ने सूक्ष्म वित्त ऋणों के लिए पात्रता मानदंड निर्धारित किए जो कि सूक्ष्म वित्त की मुख्य विशेषताओं से जुडे थे अर्थात् कम आय समूह वाले उधारकर्ताओं को बिना संपार्श्विक के लचीले पुर्नभुगतान कार्यक्रम के साथ छोटी मात्रा में उधार देना। इसके अलावा उक्त विनियमों में ऋण लेने वालों की सुरक्षा और ऋण देने में उचित व्यवहार यथा प्रभाव शुल्कों में पारदर्शिता मार्जिन और ब्याज दरों की उच्चतम सीमा वसूली के गैर-दबावपूर्ण तरीके, एकाधिक उधार और अधिक ऋणग्रस्तता को रोकने के उपायों पर विशेष जोर दिया गया है।  
भारतीय सूक्ष्म वित्त क्षेत्र पर पिछले दो दशकों में निम्नलिखित दोनों में वृद्धि के मामले में अभूतपूर्व वृद्धि देखी हैं-सूक्ष्म वित्त प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या तथा साथ ही सूक्ष्म वित्त ग्राहकों को उपलब्ध कराये गये ऋण की मात्रा। वर्तमान में सूक्ष्म ऋण विभिन्न संस्थागत चैनलों जैसे अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों (एससीबी), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी), सहकारी बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों (एनबीएफसी), एनबीएफसी के साथ-साथ अन्य रूपों में पंजीकृत। धारा 8 कम्पनियों और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) के माध्यम से वितरित किया जाता है। 
लघु वित्त बैंक (एसएफबी) इस क्षेत्र में नवीनतम् संस्थान है। लघु वित्त बैंकों को लाइसेंस देने के बाद सूक्ष्म वित्त क्षेत्र का संस्थागत परिदृश्य भी महत्वपूर्ण रूप से बदल गया है। वर्ष 2014 में एक यूनिवर्सल बैंक शुरू करने के लिए मंजूरी दी गई दो संस्थाओं में से एक एनबीएफसी-एमएफआई थी, जबकि 2016 में लघु वित्त बैंक शुरू करने के दस संस्थाओं में से 8 एनबीएफसी-एमएफआई थीं। इसने इस क्षेत्र में और समेकन के अलावा इस सेक्टर में लगभग रु. 2.14 लाख करोड़ के कुल सकल ऋण पोर्टफोलियों में 30 जून 2021 तक विशेष एमएफआई की हिस्सेदारी के साथ बाजार की गतिशीलता में महत्वपूर्ण बदलाव किए है जो 30 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है। इस प्रकार एक वित्तीय गतिविधि के रूप में सूक्ष्म वित्त को अब विशिष्ट एमएफआई का गढ़ नहीं कहा जा सकता है।
हालांकि, मौजूदा नियामक ढंाचा, जो कम आय वाले परिवारों को ऋण उपलब्ध कराने और उधारदाताओं की कठोर वसूली प्रथाओं से उधारकर्ताओं को बचाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था, केवल एनबीएफसी-एमएफआई पर लागू होता है। जबकि सूक्ष्म वित्त पोर्टफोलियों में लगभग 70 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले अन्य ऋणदाता समान नियामक शर्तों के अधीन नहीं है। इसने एक असमान स्थिति निर्मित हुई है जिससे ग्राहकों के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न हुई हैं और इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के भीतर विभिन्न प्रथाओं का उदय हुआ है। हालांकि यह अपेक्षा थी कि अन्य ऋणदाता भी एनबीएफसी एमएफआई पर लागू उपर्युक्त नियमों के अनुरूप निर्देशित होगें, किन्तु ऐसा नहीं हुआ है।
अधिकतर सूक्ष्म वित्त उधारदाताओं के विरूद्ध आलोचनाओं के तीन अलग-अलग सेट रहे है (i) कि वे अपने उधारकर्ताओं को ऋण जाल जैसे स्थितियों में ले जाते है (ii) वे अत्यधिक ब्याज दर वसूलते हैं, जो अक्सर उनके वित्त पोषण और परिचालन लागत के अनुपात में नहीं होती है और (iii) वे वसूली के कठोर तरीके अपनाते हैं जिससे उधारकर्ताओं को परेशानी होती है। ये ऐसे मुद्दे है। जिन पर गंभीर रूप से आत्मनिरीक्षण करने और संकट की घटनाओं की पुनवृत्ति को रोकने के लिए ऋणदाताओं द्वारा इनका हल करने की आवश्यकता है।
सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में उभरती गतिशीलता के साथ-साथ ग्राहक सुरक्षा के बारे में चिंतायें इसलिए विनियमों की समीक्षा की मांग करती हैं ताकि सूक्ष्म वित्त में लगे सभी विनियमित संस्थाएं एक बेहतर आशंकित और सामंजस्यपूर्ण व्यवस्था के भीतर ग्राहक सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। जैस कि आप सभी जानते होगें रिजर्व बैंक ने हाल ही में सभी हितधारकों से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए ‘सूक्ष्म वित्त के विनियमन’ पर परामर्शी दस्तावेज (सीडी) जारी किया है। इस प्रस्तावित ढाचे के माध्यम से विचार करने का प्रयास कर रहे है। 
भारत गैर बैंकिग वित्तीय कम्पनियाँ और सूक्ष्म वित्त संस्थाओं का रिजर्व बैंक के गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनी माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (रिजर्व बैंक) निर्देश, 2011 द्वारा नियमन किया जाता है। गरीब लोगों के लिए विभिन्न प्रकार के वित्तीय सेवा प्रदाता उभरे है जैसे गैर-सरकारी संगठन, सहकारिता, स्व-सहायता समूह, क्रेडिट यूनियन, सामुदायिक आधारित विकास संस्थान, वाणिज्यिक और राज्य बैंक, बीमा तथा क्रेडिट कार्ड कम्पनियाँ, डाकघर आदि।
प्रमुख व्यवसाय मॉडल-
1.  संयुक्त देयता समूह-  यह आमतौर पर एक अनौपचारिक समूह है जिसमें 4-10 व्यक्ति शामिल होते है जो आपसी गारंटी पर ऋण प्राप्त करते है। यह ऋण आमतौर पर कृषि उद्देश्यों या सम्बन्धित गतिविधियों के लिये दिया जाता है।
2. स्वयं सहायता समूह- यह समान सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का एक समूह है। इस स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत छोटे उद्यमी एक छोटी अवधि के लिये एक साथ आते है और अपनी व्यावसायिक जरूरतों हेतु एक सामान्य फंड बनाते हैं। इन स्वयं सहायता  समूहों को गैर-लाभकारी संगठनों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक द्वारा क्रियान्वित स्वयं सहायता समूह का बैंक लिंकेज कार्यक्रम उल्लेखनीय हैक्योंकि इससे स्वयं सहायता समूह बैंकों से अपने पुनर्भुगतान का ट्रैक रिकॉर्ड प्रस्तुत करके ऋण ले सकते हैं।
3. ग्रामीण मॉडल बैंक- इस मॉडल को वर्ष 1970 के दशक में एक बांग्लादेशी नोबेल विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस द्वारा प्रतिपादित किया गया। इस मॉडल ने भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निर्माण को प्रेरित किया है। इस प्रणाली का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना है।
4.  ग्रामीण सहकारिता- इसकी स्थापना स्वतंत्रता के दौरान की गई। इस प्रणाली में जटिल निगरानी संरचनायें थी साथ ही इससे केवल ग्रामीण क्षेत्र में ऋण की सुविधा मुहैया कराई जाती थी। इसलिए इस प्रणाली को वह सफलता नहीं मिली जो इससे उम्मीद की गई थी।
सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के लाभ-
1. यह बिना किसी जमानत के आसानी से ग्राहकों को अल्पावधिक ऋण प्रदान करती हैं।
2. यह अर्थव्यवस्था के गरीब वर्गों को अधिक धन उपलब्ध कराती हैं। जिससे गरीब परिवारों की आय में बढ़ोतरी होती है
और रोजगार का भी सृजन होता है।
3. यह महिलाओंबेरोजगारों औरा दिव्यांगों समेंत समाज के अल्प वित्तपोषित समूहों को सेवायें प्रदान करती है।
4.  यह समाज के गरीब और असुरक्षित और कमजोर वर्गों को उनकी मदद के लिये उपलब्ध वित्तीय साधनों से अवगत कराती है और बचत की विधि विकसित करने में भी मदद करती है।
5. सूक्ष्म-ऋण से लाभ प्राप्त करने वाले परिवार अपने बच्चों को बेहतर और निरन्तर शिक्षा प्रदान करने में सक्षम होते है।  
सूक्ष्म वित्त संस्थाओं की चुनौतियाँ-
1.  खंडित डेटा- यद्यपि कुल ऋण खातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई हैकिन्तु ग्राहकों के गरीबी स्तर पर इन ऋणों का वास्तविक प्रभाव से सम्बन्धित कुछ स्पष्ट तथ्य मौजूद नहीं हैक्योंकि ग्राहकों के सापेक्ष गरीब स्तर में सुधार से सम्बन्धित सूक्ष्म वित्त संस्थाओं का डेटा पूर्णतः खंडित है। कोरोना वायरस महामारी ने सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को काफी अधिक प्रभावित किया है और इसके परिणामस्वरूप ऋण संग्रहण पर प्रारम्भिक प्रभाव के साथ .ऋण वितरण पर अभी तक कोई सार्थक बढ़ोतरी नहीं हो पाई है। 
2.  सामाजिक उद्देश्यों की अनदेखी- विकास और लाभप्रदाता उनकी खोज में सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के सामाजिक उद्देश्य यानी समाज के वंचित वर्गों के जीवन में सुधार लाने सम्बन्धी उद्देश्यधीरे-धीरे हाशिये पर चल गये है।
3. गैर-आय सृजन प्रयोजनों के लिये ऋण- गैर-आय सृजन उद्देश्यों के लियें उपयोग किये जाने वाले ऋणों का अनुपात रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किये गये अनुपातसूक्ष्म वित्त संस्थाओं के कुल ऋण का 30 प्रतिशत की तुलना में बहुत अधिक हो सकता है। यह ऋण प्रायः अल्प-अवधि के होते हैं और ग्राहकों की आर्थिक प्रोफाइल को देखते हुये इस बात की सम्भावना बढ़ जाती है कि वे जल्द ही स्वयं को एक खतरनाक ऋण जाल में पायेगेंजहाँ उन्हें पहले ऋण के भुगतान के लिये दूसरा ऋण लेना पड़ेगा। 
सूक्ष्म वित्त ऋणों का मूल्य निर्धारण
वर्षों से एमएफआई के लिए ऋण मूल्य निर्धारण को नियन्त्रित करने वाले नियामकीय निर्देशों और स्पष्टीकरणों में संशोधन बदलती परिस्थितियों के अनुरूप विकसित हुए है। मालेगाम समिति की सिफारिशों के बाद दिसम्बर 2011 में जारी दिशा निर्देशों ने एक समान मार्जिन कैप (100 करोड़ रूपये और उससे कम के पोर्टफोलियों वाले छोटे एनबीएफसी एमएफआई  के लिए 12 प्रतिशत और अन्य के लिए 10 प्रतिशत) के साथ-साथ व्यक्तिगत ऋण पर 26 प्रतिशत की सीमा निर्धारित की गई। बाद में 2012 में, 26 प्रतिशत की निश्चित ब्याज दर की सीमा को हटा दिया गया। जबकि अप्रैल 2014 में एक अतिरिक्त मानदंड लाया गयाजिसमें ऋण दर पांच सबसे बड़े वाणिज्यक बैंकों की औसत आधार दर के नियत गुणक (2.75 गुना) पर तय की गई।
ब्याज दर पर नियामकीय उच्चतम् सीमा केवल एनबीएफसी एमएफआई पर लागू होती हैं। एनबीएफसी-एमएफआई के लिए उधार दर की उच्चतम सीमा निर्धारित करने का अनपेक्षित परिणाम यह हुआ कि प्रतिस्पर्धा को आगे नहीं बढ़ने दिया गया। इस बात की चिंता है कि वर्तमान दिशानिर्देश केवल एनबीएफसी-एमएफआई के लिए ब्याज दर की उच्चतम सीमा निर्धारित करते हुएअन्य उधारदाताओं के लिए भी एक बेंचमार्क के रूप में प्रभावी रूप से कार्य कर रहे हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि सूक्ष्म वित्त खंड में अन्य उधारदाताओं की ब्याज दरें भी निधियों की तुलनात्मक रूप से कम लागत के बावजूद इस सीमा के आसपास ही रहती है। एनबीएफसी-एमएफआईके बीच भीपरिचालन के बढ़ते आकार के कारण बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप उनकी उधार दरों में कोई प्रत्यक्ष गिरावट नहीं आई है। परिणामस्वरूप यह उधारकर्ता हैजो बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धामौद्रिक नीति परिवर्तन के साथ-साथ बडे़ पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के लाभों से वंचित हो रहे हैं।
हालांकि बैंकों (एसएफबी सहित) को अक्टूबर 2019 से सभी नए फ्लोटिंग रेट व्यक्तिगत या खुदरा ऋणों को बाहरी बेंचमार्क पर निर्धारित करने की सूचना दी गई है। एनबीएफसी-एमएफआई सहित एनबीएफसी के लिए बेंचमार्क आधारित मूल्य निर्धारण्र अभी तक प्रस्तुत नहीं किया गया है। सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में काम करने वाले उधारदाताओं के बीच वित्तपोषण और परिचालन लागत के बीच पर्याप्त अन्तर को देखते हुएकिसी विशिष्ट बेंचमार्क या किसी बेंचमार्क पर किसी भी स्प्रेड को अनिवार्य करने से मौजूदा प्रणाली में विद्यमान बाधाओं को दूर करने की सम्भावना नहीं है। इसलिए संशोधित ढांचे के अन्तर्गत निर्धारित सीमा को समाप्त करने का प्रस्ताव है और सभी उधारदाताओं को सूक्ष्म वित्त उधारकर्ताओं से वसूल की जानी वाली सभी समावेशी ब्याज दर पर बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति बनाने का आदेश दिया गया है। उधारदाताओं को सूक्ष्म वित्त ऋणों के मूल्य निर्धारण पर एक सरलीकृत तथ्य पत्रक भी उपलब्ध कराना होगासाथ ही उनके द्वारा वसूल की जाने वाली न्यूनतम अधिकतम और औसत ब्याज दरों का प्रकटन करना होगा। यहाँ उद्देश्य यह है कि बाजार तंत्र को इस उम्मीद के साथ चलने में सक्षम बनाना है कि यह पूरे सूक्ष्म वित्त क्षेत्र के लिए उधार दरों को नीचे लायेगा और पारदर्शी प्रकटीकरण के माध्यम से ग्राहक को सशक्त बनायेगा।
संयुक्त देयता समूह (जे0एल0जी0) के माध्यम से वित्तपोषण
लघुसीमान्त और काश्तकार किसानों की विशाल संख्या की बैंकिंग संस्थाओं के ऋण तक पहुँच विभिन्न कारणों से नहीं है। जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ बहुत छोटी भू जोतों का होनाव्यक्ति स्तर पर अधिक संख्या में ग्राहकों की सेवा कर पाने में असमर्थतासमुचित स्वामित्व टाइटलों का अभाव इत्यादि है। इन किसानों की ऋण आवश्यकताएँ पूरी करने की दृष्टि से नाबार्ड ने किसानों को संयुक्त देयता समूहों में संगठित कर बैंकों के जरिये काश्तकार किसानों को वित्तपोषित करने के लिए एक अलग योजना तैयार की है। संयुक्त देयता समूह एक ऐसा अनौपचारिक समूह है। जिसमें मुख्यतः से 10 व्यक्ति शामिल रहते है। जो आपसी गारंटी के समक्ष अकेले अथवा सामूहिक रूप बैंक ऋण प्राप्त करने के लिए एकजुट होते है। संयुक्त देयता सूमहों के सदस्य संयुक्त रूप में बैक ऋण प्राप्त करने के लिए एकजुट होते है। संयुक्त देयता समूहों के सदस्य संयुक्त रूप से बैंक वचन देते हैं। जिससे उन्हें बैंक ऋण प्राप्त होता है।
स्वयं सहायता समूहबैंक लिंकेज कार्यक्रम एवं जेएलजी (संयुक्त देयता समूह) अनौपचारिक ऋण वितरण प्रणाली को तालिका के माध्यम से दर्शाया गया हैजिसमें बैंको द्वारा संवितरित ऋणबैंको का बकाया ऋण व बैंकों के पास बचत को स्वयं सहायता समूहबैंक लिंकेज कार्यक्रम एवं जेएलजी (संयुक्त देयता समूह) की संख्या एवं ऋण की धनराशि को करोड रूमें प्रदर्शित किया गया है।


तालिका
सूक्ष्म वित्त कार्यक्रमों की प्रगति (मार्च के अन्त में)

      
स्रोत- संम्भाव्यतायुक्त ऋण योजनावर्ष 2019-20, नाबार्डआगरा।
टिप्पणीः- 1. कोष्ठकों में दिये गये आकड़े 2017-18, 2018-19, 2019-20 के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) और राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) के तहत शामिल एसएचजी का विवरण देते है।
2. बैंकों से ऋण लेने वाले एमएफआई का वास्तविक संख्या खातों की संख्या से कम होगीक्योंकि अधिकांश एमएफआई एक ही बैंक से कई बार और एकाधिक बैंकों से भी ऋण लेते है।
सूक्ष्म वित्त के उपायों का बड़े पैमाने पर विस्तार-
नाबार्ड ने 1992 में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के सम्वर्धन का कार्यक्रम शुरू किया जिसका उद्देश्य था। ग्रामीण महिलाओं को बचत और ऋण के लिए बैंकों से जोड़ना ताकि वे अपने परिवारों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें ओर उनके सदस्यों की आजीविका में सुधार हो। यह स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (स्वयं सहायता समूह-बीएलपी) गरीबों को समूहों में एकत्रित करने के विश्व के सबसे बड़े अभियानों में से एक रूप में उभरा है। यह बचत आधारित महिला केन्द्रितस्व प्रबंधित कार्यक्रम है जिसके तहत बैंकिंग संविधाएँ ग्राहकों को उनके घर पर उपलब्ध कराई जाती है। इसमें एक करोड़ से अधिक समूह शामिल हैंजिन्हें बैंकों से जोड़कर 1लाख करोड़ से अधिक का ऋण उपलब्ध कराया जा चुका है। 31 मार्च 2020 की स्थिति के अनुसार स्वयं सहायता समूह- बैंक लिंकेज कार्यक्रम की मुख्य बातें इस प्रकार है।
102.43 लाख स्वयं सहायता समूह जिनसे लगभग 12.4 करोड़ से अधिक गरीब परिवार जुड़े हैं।
1. 2019-20 के दौरान 2.29 लाख नए स्वयं सहायता समूह जोड़े गये।
2. बैंकों में समूहों की बचत की शेष राशि 31 मार्च 2019 के रू0 23.32 हजार करोड़ से बढ़कर रू0 26.15 हजार करोड़ हो गई।
3. समूहों पर औपचारिक ऋणदाता संस्थाओं का बकाया ऋण रू0 1.08 लाख करोड़ रहा।
4. समूहों पर संस्थागत ऋण बकाया 31 मार्च 2010 की स्थिति से 24.08 प्रतिशत बढ़ गया।
5. 2019-20 के दौरान 31.46 लाख समूहों ने विभिन्न बैंकों से औसतन रू0 2.47 लाख प्रति स्वयं सहायता समूह की दर से कुल रू0 77.66 हजार करोड़ की ऋण सहायता प्राप्त की।
6. एनपीए का स्तर 31 मार्च 2019 के एनपीए स्तर 5.19 प्रतिशत से कम होकर 4.92 प्रतिशत हो गया।

निष्कर्ष

नाबार्ड ने वर्ष 1992 में स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (एसएचजी-बीएलपी) शुरू किया था, जिसमें एक छोटे पायलट के रूप में बैंकों तक पहुँच से दूरी वाले ग्रामीण गरीबों को अनौपचारिक चैनल के लचीलेपन और पहुँच को कायम रखते हुए औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की पहल की गई थी। यह पहल अब दुनिया के सबसे बड़े सूक्ष्म-वित्त कार्यक्रम में विकसित हुई है। जिसमें अखिल भारतीय स्तर पर 100 मिलियन ग्रामीण परिवारों के प्रतिनिधि के रूप में 8.5 मिलियन से ज्यादा स्वयं सहायता समूह शामिल है। स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) और संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) के माध्यम से सूक्ष्म वित्त के वितरण में नियमित प्रगति हुई। 2019-20 के दौरान 31.5 लाख नये स्वयं सहायता समूह को बैंकों के साथ क्रेडिट-लिंक्ड किया गया और इन स्वयं सहायता समूह को रु. 77,659 करोड़ (पुनरावृत्ति ऋण सहित) के ऋण वितरित किये गये। वर्ष के दौरान, संयुक्त देयता समूह ऋण और बैंकों द्वारा संवितरित राशि की संख्या में क्रमशः 161 प्रतिशत और 169 प्रतिशत की वृद्धि हुई। स्वयं सहायता समूह ऋण का एनपीए अनुपात पिछले वर्ष के 5.2 प्रतिशत से घटकर 4.9 प्रतिशत हो गया। स्वयं सहायता समूह ने कभी ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण को अपना प्रमुख लक्ष्य नहीं बनाया, लेकिन इसके बावजूद वे महिलाओं के सशक्तिकरण के मजबूत कारक के तौर पर उभरकर सामने आए है। देश में सूक्ष्म वित्त पहल के मेंटर और मुख्य सुविधादाता के रूप में नाबार्ड ने इस कार्यक्रम को आवश्यक बढ़त दी है। जिससे महिलाओं के सशक्तिकरण पर जबरदस्त सामाजिक आर्थिक प्रभाव पैदा हुआ है। स्वयं सहायता समूह, बैंक लिंकेज कार्यक्रम एवं संयुक्त देयता समूह अनौपचारिक ऋण वितरण प्रणाली का सुगम तथा सशक्त माध्यम है। स्वयं सहायता समूह, बैंक लिंकेज कार्यक्रम गरीब वर्ग, मुख्यतः महिलाओं, छोटे/सीमान्त किसानों के आर्थिक विकास में अत्यधिक प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम ने सामान्य रूप से ग्रामीण गरीबों और विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में 25 से अधिक वर्ष की सफल यात्रा की है। यह कार्यक्रम समग्र वित्तीय समावेशन के माध्यम से गरीबी उन्मूलन के एक सशक्त उपाय के रूप में उभरा है। सूक्ष्म वित्त वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय साधनों में से एक के रूप में उभरा है। यह गरीब और कम आय वाले परिवारों को अपनी आय के स्तर को बढ़ाने, उनके जीवन स्तर में सुधार करने और इस तरह गरीबी से बाहर निकलने में सक्षम बनाता है। इसमें तरह गरीबी में कमी, महिला सशक्तिकरण, कमजोर समूहों को सहायता और समुदायिक विकास को लक्षित करने वाली राष्ट्रीय नीतियों को प्राप्त करने के लिए एक साधन बनने की क्षमता भी है। सूक्ष्म वित्त की आगे की राह- सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को एक स्थायी और स्केलेबल माइक्रो फाइनेंस मॉडल बनाने पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है जो आर्थिक तथा सामाजिक दोनों के विषय में स्पष्ट हो। सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को ऋण का घोषित उद्देश्यसुनिश्चित करना चाहिए कि जो अक्सर ऋण आवेदन के चरण में ग्राहकों से पूछा जाता है तथा ऋण के कार्यकाल के अन्त में सत्यापित होता है। भारतीय रिजर्व बैंक को सभी संस्थाओं को सामाजिक प्रभाव स्कोरकार्ड के माध्यम से समाज पर उनके प्रभाव की निगरानी के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। जिला स्तर पर समस्त प्रकार के समूह (चाहे वे गरीबी रेखा के नीचे के अथवा ऊपर के हों) का सशक्तिकरण एवं विकास सुनिश्चित करने हेतु जिला स्तरीय समन्वय समिति का गठन करना चाहिए। एनआरएलएम योजना, स्वयं सहायता समूहों के सृजन/बैंक लिंकेज के साथ-साथ कृषक क्लब कार्यक्रम, संयुक्त देयता समूहों के सृजन/बैंक लिंकेज और कृषि तकनीकी हस्तान्तरण हेतु विशेष योजनाओं को समावेशित कर समग्र विकास किया जाना चाहिए। नये गैर-सरकारी संगठनों को जोड़कर जनपद के सभी विकास खंडों में स्वयं सहायता समूहों के सृजन/बैंक लिंकेज को विस्तारित किया जाये। ग्राम समूहों की समन्वित/एकीकृत विकास योजना, गैर-सरकारी संस्थाओं का तकनीकी संवर्धन और सूचना प्रोद्यौगिकी के तहत आनॅलाइन बैंकिंग के द्वारा खातों के आवेदन की प्रक्रिया के द्वारा प्रसार की दर को बढ़ाया जा सकता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

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5. https//www.nabard.org
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