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ग्रामीण संवृद्धि को समर्पित राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक- एक अध्ययन | |||||||
National Bank for Agriculture and Rural Development Dedicated to Rural Growth - A Study | |||||||
Paper Id :
17721 Submission Date :
2023-06-14 Acceptance Date :
2023-06-19 Publication Date :
2023-06-25
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सारांश |
भारत मुख्य रूप से एक ग्रामीण देश है जहां की दो तिहाई आबादी व 70 प्रतिशत श्रम शक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत है। शहरीकरण बढ़ने के साथ-साथ अनुमान है कि 2050 आते-आते भी भारत की आधी से अधिक आबादी ग्रामीण ही रहेगी। हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में शहरी सुविधायें प्रदान करने के लिये केन्द्र व राज्य सरकारों कारपोरेट जगत, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय विकास एजेंन्सियों की पहलों से ग्रामीण भारत का चेहरा उत्तरोत्तर बदल रहा है। नाबार्ड इस प्रयास में सक्रिय रूप से भागीदार रहा है।
प्रस्तुत पत्र में नाबार्ड द्वारा किये जा रहे विभिन्न प्रकार के वित्तीय कार्यों के अन्तर्गत पुनर्वित्त एवं कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु संसाधन जुटाने के लिये कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा विभिन्न कोषों के परिचालन, विकासात्मक कार्यों के अन्तर्गत वाटर शैड, जलवायु, वित्तीय समावेशन, प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन, जनजाति विकास आदि तथा नाबार्ड के पर्यवेक्षणीय कार्यों के माध्यम से ग्रामीण संवृद्धि एवं ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास हेतु किये जा रहे प्रयासों का अध्ययन किया गया है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | India is primarily a rural country with two-thirds of the population and 70 percent of the labor force residing in rural areas. Along with increasing urbanization, it is estimated that by 2050, more than half of India's population will remain rural. However, the face of rural India is changing progressively due to the initiatives taken by the Central and State Governments, corporate world, national and international development agencies to provide urban amenities in the rural areas. NABARD has been an active participant in this endeavour. In the presented paper, operations of various funds by the Agriculture and Rural Development Bank for refinance and raising resources for agriculture and rural development under various types of financial works being done by NABARD, watershed, climate, financial inclusion, natural Efforts being made for rural growth and development of rural infrastructure through resource management, tribal development etc. and supervisory works of NABARD have been studied. |
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मुख्य शब्द | ग्रामीण आधारभूत संरचना, पुनर्वित्त, विकास, पर्यवेक्षण, संवृद्धि। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Rural Infrastructure, Refinance, Development, Supervision, Growth. | ||||||
प्रस्तावना |
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी शुरूआत से ही कृषि उधार में गहरी रूचि दिखाई और उसके लिये एक पृथक विभाग बनाया गया। भारतीय रिजर्व बैंक राज्यीय स्तर के सहकारी बैंकों तथा भूमि विकास बैंकों के माध्यम से कृषि को अल्पकालीन मौसमी उधार के साथ मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन उधार की व्यवस्था करता रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कृषि पुनर्वित्त निगम की स्थापना की, ताकि कृषि विकास कार्यक्रमों, विशेषकर सावधि उधार सुविधाओं को विकसित किया जा सके। कृषि उधार से ग्राम विकास के रूप में बैंक उधार के कार्यभार में विस्तार के कारण इस बात की जरूरत महसूस की गयी कि ग्राम विकास के कार्यक्रमों के प्रतिपादन एवं कार्यान्वयन के लिये शिखर स्तर पर एक अधिक विस्तृत संस्था होनी चाहिये जो उधार संस्थाओं की सहायता कर सके और इनका मार्गदर्शन भी कर सके। इस उद्देश्य को लेकर राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की 12 जुलाई 1982 को स्थापना की गयी ताकि यह कृषि पुनर्वित्त विकास बैंकों के कार्य संभाल सके। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का करजर्व बैंक से सीधा सम्बन्ध है। पुनर्वित्त सम्बन्धी रिजर्व बैंक द्वारा किये जाने वाले कार्य अब राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के अन्तर्गत उत्तरदायित्व में आ गये हैं।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के कार्यों एवं सेवाओं का अध्ययन करना।
2. कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु संसाधन जुटाने के लिये कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा विभिन्न कोषों के परिचालन की स्थिति का अध्ययन करना।
3. कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास एवं ग्रामीण संवृद्धि हेतु किये जा रहे प्रयासों का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के गवर्नर वाई0वी0रेड्डी (2007) ने वित्तीय
समावेशन की सरल परिभाषा दी ’’नोबेल
पुरूष्कार विजेता प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस द्वारा समर्थित मानव अधिकार के रूप में
बैंक ऋण के लक्ष्य तक पहॅुचने की दिशा में कदम सुनिश्चित करना।’’ V.N.(2010) elaborate about an overview
of evolution of microfinance for socio
economic development. The research findings suggest that the Self
Help Groups contribute substantially in
pursuing the conditions of the female population up and through that chip
in poverty eradication. दत्ता, पी0 (2011) ने
नाबार्ड द्वारा शुरू किये गये पूर्व एस0एच0जी0 और पोस्ट एस0एच0जी0 परिदृश्य की तुलना करके गरीबी में कमी और लोगों
के सामाजिक सशक्तिकरण में एस0एच0जी0-बैंक लिंकेज कार्यक्रम के योगदान का अध्ययन किया। विभिन्न राज्यों में एस0एच0जी0-बैंक लिंकेज कार्यक्रम
के विकास में क्षेत्रीय व अन्तर्क्षेत्रीय असमानता का भी अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया कि भारत सरकार, बैंक, एन0जी0ओ0 एवं एस0एच0जी0 के सामूहिक प्रयासों का
ही परिणाम है कि अधिकांश ग्रामीण लोगों की आधुनिक वित्तीय प्रणाली के लाभों तक पहुँच
है।
Abraham, Tarfa W (2018) finds in his study that access to financial services by using formal financial institutions and farmer saving clubs benefits vulnerable farmers mostly women. Abhishek Garg and Dr. Hulas Pathak (2022) concluded
that the preference of farmers for availing KCC loan was found to be higher for
co-operative banks and Regional Rural banks were less preferred by the farmers.
The key reason for farmer to choose co-operative bank because of Chhattisgarh
state co-operative bank provide credit amount at zero percent interest rate and
seed, fertilizer & plant protection chemicals also provide to the findings
of the study. it is suggested that the commercial banks and regional rural
banks should also be provide kind support with the cash credit under kisan
credit card scheme.
Sonu shukla tiwari (2019) concluded that
the kisan credit card is very useful policy for rural development because these
policy as the only medium of short-term credit for agriculture. By anlyze the
financial aid provided by the commercial bank through kisan credit card scheme
is increased but due to the loans provided by district central co-operative
bank is less according to the needs of farmers as the farmers are not getting
the right advantages. Thus the farmers of Anuppur district have lack of
awareness due to which the operation is not proceeding well and the banks are
not able to complete their aims. So this scheme should be campaign well under
rural areas for the right advantages of farmers so that the development of
Agriculture and farming should be improved well. At the last we can say that
government time to time monitoring the policy and especially promote to rural
areas. |
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मुख्य पाठ |
कृषि विकास से ग्रामीण विकास तक के लिये बैंक साख की बढती हुई भूमिका एवं
विभिन्न साख संस्थाओं को ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के विनियमितीकरण और
क्रियान्वयन के लिये विस्तृत सहायता एवं निर्देशन देने के लिये राष्ट्रीय कृषि एवं
ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) प्रतिबद्ध है इसके सम्बन्ध में रामाकृष्णैया ने
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के लिये कहा- “To
innovate in regard to formulation of schemes, monitoring of implementation,
evaluation of results and evolution of suitable supporting structures of all
kinds of rural economic activities.” (रामाकृष्णैया चेयरमैन राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक इकोनोमिक टाइम्स
5 नवम्बर, 1982) राष्ट्रीय कृषि एवं
ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना के समय चुकता पूंजी 100 करोड़ थी जिसमें भारत सरकार तथा भारतीय रिजर्व बेंक का बराबर (50:50)
का योगदान था 13 अक्टूबर 2010 को किये गये इक्विटी हस्तान्तरण के अन्तर्गत भारतीय रिजर्व बैंक ने
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की केवल 1 प्रतिशत
हिस्सेदारी अपने पास रखी है, अब नाबार्ड की इक्विटी में
केन्द्र सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक की हिस्सेदारी क्रमशः 99 व 01 प्रतिशत है पुनः नाबार्ड की अधिकृत पूंजी
को सरकार ने बढाकर रू0 30000 करोड कर दिया है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक अपनी ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूर्ति
करने के लिये भारत सरकार, विश्व बैंक तथा अन्य एजेन्सियों जैसे- अन्तर्राष्ट्रीय विकास
संघ आदि से राशियां प्राप्त करता है और राष्ट्रीय कृषि (दीर्घ कालीन क्रियाओं और
स्थिरीकरण) निधि के संसाधनों का भी प्रयोग करता है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण
विकास बैंक, रिजर्व बैंक पर निर्भर करता है। 1. वित्तीय कार्य- पुनर्वित्त- नाबार्ड विभिन्न संस्थानों को उनके संसाधनों में वृद्धि के
लिये दीर्घावधि अल्पावधि पुनर्वित्त प्रदान करता है ताकि किसानों और ग्रामीण
कारीगरों आदि की निवेश संबंधी गतिविधियों को सहायता प्रदान करने के लिये पर्याप्त
ऋण प्रदान किया जा सके। अल्पावधि ऋण- वित्तीय संस्थाओं द्वारा किसानों को फसल उत्पादन के लिये
फसल ऋण दिये जाते हैं जिससे देश में खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। दीर्घावधि ऋण- नाबार्ड की दीर्घावधि (18 माह से 05 वर्ष तक)
पुनर्वित्त व्यवस्था के तहत वित्तीय संस्थाओं को कृषि और कृषित्तर क्षेत्रों की
विभिन्न गतिविधियों के लिये ऋण उपलब्ध कराया जाता है। नाबार्ड ने वर्ष 2020-21 के दौरान अल्पावधि और दीर्घावधि वित्तपोषण के लिये
बैंकों को क्रमशः रू0 130964 करोड़ और रू0 92786 करोड़ संवितरित किये गये। कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा परिचालित कोष- कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु संसाधन जुटाने के लिये कृषि एवं ग्रामीण विकास
बैंक निम्नलिखित कोषों को भी परिचालित करता है- दीर्घावधि सिंचाई निधि (एलटीआईएफ)- केन्द्रीय
बजट 2016-17 में घोषित इस निधि का उद्देश्य मध्यम एवं बडी
सिंचाई परियोजनाओं को एक-एक अभियान चलाकर तेजी से पूरा करना है। वर्ष 2020-21
के दौरान रू0 2461.84 करोड़ की राशि मंजूर की
गयी है व मार्च 2021 की स्थिति के अनुसार संचयी रूप से रू0
84326.60 करोड़ की राशि मंजूर व रू0 52479.71 करोड़ की राशि जारी की गई है। सूक्ष्म सिंचाई निधि (एमआईएफ)- केन्द्रीय
बजट 2019-20 में घोषित इस निधि का उद्देश्य राज्य सरकारों को
सूक्ष्म सिंचाई के अन्तर्गत अधिकाधिक सिंचाई परियोजनाओं को शामिल करने के लिये
अतितिरक्त संसाधनों के संग्रहण में सहायता करना है। वर्ष 2020-21 के दौरान रू0 1128.60 करोड़ की राशि मंजूर की गयी है
व मार्च 2021 की स्थिति के अनुसार संचयी रूप से रू0
3970.17 करोड़ की राशि मंजूर व रू0 1827.47 करोड़ की राशि जारी की गई है। विशेष चल निधि सुविधा (एसएलएफ)- लॉकडाउन
के दौरान किसानों को फसल कटाई और उत्पादन संबंधी गतिविधियों के लिये अबाधित ऋण
प्रवाह को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विशेष चल निधि सहायता प्रदान की। मार्च 2021
की स्थिति के अनुसार बैंकों को रू0 908.16 करोड़ की राशि संवितरित की। प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी)- यह
वित्तीय सहायता इस उद्देश्य के साथ प्रदान की गई कि पीएमएवाई-जी के तहत वर्ष 2022
तक कच्चे और जीर्ण-शीर्ण मकानों में रहने वाले लोगों सहित सभी बेघर
परिवारों को बुनियादी सुविधाओं से युक्त पक्के मकान उपलब्ध करवाना है। वर्ष 2020-21
के दौरान रू0 1128.60 करोड़ की राशि मंजूर की
गयी है व मार्च 2021 की स्थिति के अनुसार संचयी रूप से रू0
61975 करोड़ की राशि मंजूर व रू0 48819.03 करोड़ की राशि जारी की गई है। अल्पावधि बहुउद्देशीय ऋण हेतु जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों
को प्रत्यक्ष पुनर्वित्त सहायता (डीआरए)- नाबार्ड जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों
द्वारा प्रत्यक्ष पुनर्वित्त सहायता के रूप में विभिन्न प्रयोजनों के लिये ऋण
वितरण करता है। अल्पावधि बहुउद्देशीय ऋण हेतु महासंघों को ऋण सुविधा
(सीएफएफ)- अल्पावधि बहुउद्देशीय ऋण हेतु महासंघों को ऋण सुविधा के
तहत कृषि जींसों के विपणन, निविष्टियों की आपूर्ति तथा मूल्य
और आपूर्ति श्रंखला के प्रबन्धन हेतु राज्य सरकार की संस्थाओं जैसे- कृषि विपणन
महासंघ, सिविल सप्लाई, डेयरी
सहकारिताओं को ऋण प्रदान किया जाता है। डेयरी प्रसंस्करण और आधार संरचना विकास सहायता (डीआईडीएफ)- केन्द्रीय
बजट 2017-18 में घोषित रू0 2461.84 करोड़ की राशि के साथ डेयरी प्रसंस्करण और आधार संरचना विकास सहायता निधि का सृजन किया
है। भण्डारागार आधारभूत संरचना निधि (डब्ल्यूआईएफ)- भारत
सरकार द्वारा वर्ष 2013-14 में रू0 5000 करोड़ की समूह निधि के साथ देश में कृषि वस्तुओं के लिये वैज्ञानिक भण्डारण
की आधारभूत संरचना को पूरा करने के लिय इसका सृजन किया गया है। मार्च 2021 की स्थिति के अनुसार संचयी रूप से रू0 7620.69 करोड़ की राशि संवितरित की गई है। खाद्य प्रसंस्करण
निधि (एफपीएफ)- भारत
सरकार ने वर्ष 2014-15 में रू0 2000 करोड़ की राशि के साथ क्लस्टर आधारित संगठित क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से खाद्य प्रसंस्करण निधि की स्थापना की
गई। मार्च 2021 की स्थिति के अनुसार रू0 116.40 करोड़ की राशि मंजूर की गई है। नाबार्ड आधारभूत संरचना विकास (नीडा)- ग्रामीण
आधारभूत संरचना के वित्त पोषण के लिये सार्वजनिक क्षेत्र की सुव्यवस्थित संस्थाओं
को लचीला दीर्घकालिक ऋण प्रदान किया जाता है जिसमें ग्रामीण कनैक्टिविटी, नवीकरणीय उर्जा, विद्युत, संचार,
पेयजल, और स्वच्छता व अन्य सामाजिक व वाणिज्यिक
आधारभूत संरचना परियोजनाओं को नाबार्ड आधारभूत संरचना विकास के तहत वित्त पोषित
किया जाता है। ग्रामीण आधारभूत संरचना विकास निधि (आरआईडीएफ)- वर्ष 1995-96
में भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार ग्रामीण आधारभूत संरचना निर्माण
की परियोजनाओं में सहायता के लिये स्थापित ग्रामीण आधारभूत संरचना विकास निधि का
स्रोत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण वितरण
हेतु निर्धारित लक्ष्य में कमी की राशि है। नाबार्ड का वर्ष 2018-19 में आरआईडीएफ में संचयी आवंटन (भारत निर्माण में आवण्टित रू0 18500 करोड़ सहित) रू0 3,20,000 करोड़ हो गया। वर्ष 2020-2021
के दौरान रू0 29193 करोड़ की राशि संवितरित की
गई है। 2. विकासात्मक कार्य- वाटरशेड विकास- मार्च 2021 तक
संचयी रूप से 3401 वाटरशैड विकास परियोजनाओं, जिनके तहत 23.43 लाख हैक्टेयर का क्षेत्र कवर किया
गया है, को मंजूरी दी गई है। 1914 वाटरशैड
विकास परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया गया है इन सभी परियोजनाओं के लिये
रू0 2389.51 करोड़ की प्रतिबद्धता के सापेक्ष रू0
1902.46 करोड़ का संवितरण किया जा चुका है। जनजाति विकास- नाबार्ड द्वारा वर्ष 2003-04 में अपने लाभ में से 50 करोड़ समूह निधि के साथ
जनजाति विकास कार्यक्रम की स्थापना की गई। मार्च 2021 तक
इसके तहत 835 परियोजनायें मंजूर की गई। 5.33 लाख एकड क्षेत्र में फैले 5.60 लाख परिवार लाभान्वित
हुये हैं। इन परियोजनाओं के तहत रू0 2.378 लाख की संचयी
मंजूरी व रू0 1.688 लाख की राशि का संवितरण किया गया है। जलवायु अनुकूलन परियोजनायें- नाबार्ड
द्वारा ग्रीन क्लाइमेट फण्ड के तहत दो परियोजनायें, अडाप्टेशन
फण्ड के तहत छः परियोजनाओं को मंजूरी दी है। वर्ष 2020-21 के
दौरान जलवायु परिवर्तन निधि के अन्तर्गत जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपटने,
अनुकूलन और शमन के उपायों, जागरूकता निर्माण,
ज्ञान को साझा करने और संधारणीय विकास के लिये की जाने वाली गतिविधियों
के संवर्धन और सहयोग के लिये रू0 0.97 करोड़ की राशि संवितरित
की। प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर अम्ब्रेला कार्यक्रम- प्राकृतिक
संसाधन प्रबंधन पर अम्ब्रेला कार्यक्रम के तहत संचयी रूप से दस प्रमुख प्राकृतिक
संसाधन प्रबन्ध क्षेत्रों के लिये 334 परियोजनायें मंजूर की
गई हैं। मार्च, 2021 तक रू0 31.54 करोड़ की अनुदान सहायता के साथ संचयी संवितरण का राशि रू0 577.22 करोड़ थी। वित्तीय समावेशन- बैंकिंग सेवाओं के लिये मांग उत्पन्न
करने तथा आधार स्तर पर भुगतान/ स्वीकरण की आधारभूत संरचनाओं की स्थापना के
फलस्वरूप मार्च, 2021 तक वित्तीय समावेशन निधि के तहत
कार्यान्वित विभिन्न योजनाओं के लिये संचयी मंजूरी की राशि रू0 4592.81 करोड़ तथा संवितरण की राशि रू0 2527.67 करोड़ थी। सूक्ष्म वित्त क्षेत्र- वर्ष 1992 में
स्वयं सहायता समूहों बैंक सहबद्धता कार्यक्रम शुरू किया था मार्च 2021 के अनुसार इसमें लगभग 112.23 लाख स्वयं सहायता समूह
और देश के लगभग 13.5 करोड़ ग्रामीण परिवारों का सशक्तिकरण
किया गया। प्रति समूह औसत ऋण रू0 2.01 लाख हो गया है। ई-शक्ति- यह योजना स्वयं सहायता समूहों को
डिजिटाइज करने के उद्देश्य से 2015 को शुरू की गयी। स्वयं सहायता समूहों के आंकडों को इस पोर्टल पर अपलोड किया गया है। स्वयं सहायता समूह पर आधारित आजीविका सहयोग- स्वयं
सहायता समूह पर आधारित आजीविका सहयोग के अन्तर्गत दो कार्यक्रमों की शुरूआत के साथ
5.22 लाख सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया है। कौशल विकास- कौशल की कमी को पूरा करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में
मांग और परिणाम आधारित कार्यक्रमों के अन्तर्गत रोजगार/स्वरोजगार के अवसर सृजित
किये गये। कृषीत्तर उत्पादक
संगठन- बुनकर, दस्तकार, कृषीत्तर गतिविधि क्लस्टरों का उन्नयन करने और उन्हें एक औपचारिक
पंजीकृत इकाई बनाने के साथ व्यवसाय, बाजार, डिजाइन आदि में सहायता करने के उद्देश्य से 2016-17 में कृषीत्तर उत्पादक संगठन के
गठन की योजना शुरू की गई। मार्च 2021 तक 40 कृषीत्तर उत्पादक संगठनों को रू0 17.4 करोड़ की
सहायता प्रदान की। स्टैंड अप इण्डिया- वर्ष 2016 को भारत सरकार द्वारा शुरू की गई योजना के अन्तर्गत प्रति
बैंक शाखा एक अनु0 जाति या जनजाति उधार कर्ता और कम से कम एक
महिला उधारकर्ता को दस लाख से लेकर एक करोड़ तक के ऋण की सुविधा प्रदान करती है। पर्यवेक्षणीय कार्य- किसी भी अर्थव्यवस्था की वित्तीय प्रणाली के केन्द्र में बैंक होते हैं बैंकों
की सुदृढ स्थिति और कार्यप्रणाली में जनता का विश्वास सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है
इसके लिये विनियमन और प्रभावी पर्यवेक्षण आवश्यक होता है। ‘‘वाणिज्य को जिन्दा रखता है जोखिम, किन्तु बैंकिंग को जिन्दा रखती है सावधानी‘‘
-वॉल्टर बेजहाट
भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों और शहरी सहकारी बैंकों के पर्यवेक्षक के
रूप में उनका निरीक्षण करता है जिससे उनकी व्यवस्थागत असफलता से बचाया जा सके और
बैंकिंग व्यवस्था में जनता का विश्वास कायम रहे। ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं के लिये
रिजर्व बैंक के काउण्टर पार्ट के रूप में नाबार्ड निम्नलिखित संस्थाओं का
पर्यवेक्षण करता हैः 1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 2. राज्य तथा जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक 3. प्राथमिक कृषि ऋण समितियां 4. प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड द्वारा निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिये
पर्यवेक्षण किया जाता है- 1. वर्तमान और भविष्य के जमा कर्ताओं के हितों की रक्षा करना 2. नाबार्ड, भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार द्वारा जारी नियमों,
दिशानिर्देशों आदि का पालन सुनिश्चित करना। 3. यह सुनिश्चित करना कि पर्यवेक्षित संस्थाओं का व्यवसाय अधिनियमों, नियमों,
विनियमों और उपनियमों के अनुरूप होता है। 4. बैंकों की वित्तीय स्थिति की मजबूती की जॉच करना। वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये मार्च 2020 की स्थिति में बैंकों/ अन्य संस्थानों की वित्तीय स्थिति के सन्दर्भ में 302 सांविधिक निरीक्षण (राज्य सहकारी बैंकों के 34, जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों के 216 तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के 43 ) और 09 स्वैच्छिक निरीक्षण राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के निर्धारित एवं संचालित किये गये। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक इन तीन कार्यों के द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में अपना योगदान कर अपने विभिन्न दायित्वों का जैसे- पुनर्वित्त सहायता उपलब्ध कराना, ग्रामीण आधारभूत समस्याओं का निर्माण करना, जनपद स्तरीय ऋण योजनायें तैयार करना, बैंकिंग उद्योगों को ऋण वितरण के लक्ष्य प्राप्त करने के लिये दिशानिर्देश देना, और प्रेरित करना, सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का पर्यवेक्षण करना और श्रेष्ठ बैंकिंग पद्धतियों का विकास करने में मदद करना तथा उन्हें सीबीएस प्रणाली में शामिल होने में सहायता देना, ग्रामीण विकास के लिये नई योजनायें तैयार करना, भारत सरकार की योजनायें कार्यान्वित करना, हस्तशिल्प कारीगरों को प्रशिक्षण प्रदान करना और उनके उत्पादों की विक्री के लिये मंच उपलब्ध कराना आदि दायित्वों का निर्वहन कर रहा है। |
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निष्कर्ष |
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक, कृषि, लघु स्तर उद्योगों, कुटीर उद्योगों, हस्तशिल्पों और अन्य ग्राम दस्तकारों एवं ग्रामीण क्षेत्र की सम्बद्ध क्रियाओं के लिये शिखर संस्था है, जो इनसे सम्बन्धित समस्त मामलों में नीति निर्धारण, आयोजन एवं क्रियान्वयन के पहलुओं के लिये उत्तरदायी हैं ताकि इन क्षेत्रों को उधार का प्रवाह हो सके। भारत में सूक्ष्म वित्त प्रयासों को सुविधा जनक बनाने के लिये नाबार्ड अपने सूक्ष्म ऋण नवप्रवर्तन विभाग के माध्यम से अपनी भूमिका निभाता रहा है। इस विभाग का उद्देश है, विभिन्न सूक्ष्म वित्त नवोन्मेषों के माध्यम से बैंकिंग सेवाओं से अब तक वंचित ग्रामीण निर्धनों को कम लागत पर दीर्घकालिक रूप में वित्तीय सेवायें उपलब्ध कराना। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के लिये पुनर्वित्त के लिये कार्य यन्त्रीकरण एक मुख्य क्षेत्र रहा है समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम का विशेष उद्देश्य ग्रामीण समुदाय को पुनर्वित्त उपलब्ध कराकर कमजोर वर्गों की सहायता करना है।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ने देश में सहकारी ठांचे का पुनर्गठन करने एवं इसे मजबूत बनाने का कार्य किया है। कॉरपोरेट कम्पनियों, सहकारी संस्थाओं जैसी पंजीकृत संस्थाओं द्वारा कार्यान्वित की जाने वाली सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं को शामिल करने से नीडा के तहत वित्त पोषण का दायरा और व्यापक हो गया है। नीडा के तहत वित्त पोषण के क्षेत्र में राज्य सरकारों को ऑफ बजट और ऑन बजट उधार देना शामिल है। जिससे राज्य सरकारों की बजट संबंधी बाध्यतायें कम हो जाती है। आज देश में ग्रामीण आधारभूत संरचना के निर्माण हेतु निधीयन में ग्रामीण आधारभूत संरचना विकास निधि (आरआईडीएफ) का बहुत बडा योगदान है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक सभी प्रकार की कृषि एवं ग्राम विकास क्रियाओं की ऋण संबंधी आवश्यकताओं को समन्वित करने की एक मात्र एजेंसी है। सूक्ष्म वित्त यात्रा के पिछले 25 वर्षों में नाबार्ड ने लगातार परिष्कृत रणनीतियाँ तैयार की हैं और नवाचारों को प्रोत्साहन दिया है। कृषि और अनुसंगी गतिविधियों में पूंजी निर्माण, उत्पादकता और आय स्तर को बढ़ाने तथा ग्रामीण इलाकों में जीवन स्तर में सुधार लाने के लिये अतिमहत्वपूर्ण होता है जिसे राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक अपने विभिन्न कार्यों के माध्यम से भली प्रकार एवं कुशल रूप से निभा रहा है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक अपने विजन (ग्रामीण समृद्धि के लिये राष्ट्रीय विकास बैंक) एवं मिशन (सहभागिता, संधारणीयता और समानता पर आधारित वित्तीय और गैरवित्तीय सहयोगों, नवोन्मेषों, प्रौद्योगिकी और संस्थागत विकास के माध्यम से समृद्धि लाने के लिये कृषि और ग्रामीण विकास का संवर्धन) के द्वारा भारत के कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास को समर्पित संस्था के रूप में कार्य कर रहा हैं। नाबार्ड द्वारा ग्रामीण विकास हेतु वांछित प्रत्येक क्षेत्र जैसे- वाटर शैड, जनजाति विकास, सिंचाई, जलवायु, प्राकृतिक संसाधन, सूक्ष्म वित्त, नमोन्वेषन, ग्रामीण आजीविका एवं रोजगार, ग्रामीण आवास, खाद्य प्रसंस्करण, व्यवसायपरक प्रशिक्षण, जागरूकता आदि में लगातार किये जा रहे संस्थागत ऋण प्रवाह से भारतीय कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन हुये हैं।
आगे की राह-
रूपे केसीसी योजना को बढावा देकर नाबार्ड बैंकिग सुविधाओं से वंचित किसानों की बैंक ऋण तक पहुंच सुनिश्चित करनक के लिये प्रतिबद्ध है। किसानों को रूपे केसीसी कार्ड जारी किया गया है तथा शेष वंचित किसानों को अभियान चलाकर रूपे किसान क्रेडिट कार्ड जारी किये जा रहे हैं।
इसके अतिरिक्त नाबार्ड की नयी पहल के अन्तर्गत कृषक उत्पादक संगठनों (एफ0पी0ओ0) का गठन कर इन संगठनों को विभिन्न प्रकार से वित्तीय सहायता देकर एक बड़ी ग्रामीण आबादी को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 से 2021-22, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक।
2. संभाव्यता युक्त ऋण योजना (पीएलपी) 2021-2022, नाबार्ड, फिरोजाबाद, ।
3. भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवं प्रगति सम्बन्धी रिपोर्ट 2019-20, भारतीय रिजर्व बैंक।
4. भारतीय अर्थव्यवस्था, प्रतियोगिता दर्पण अतिरिक्तांक, वर्ष 2020-21, उपकार प्रकाशन, आगरा।
5. भारत सरकार, आर्थिक समीक्षा (2019-20)।
6. Abraham, Tarfa W (2018). “Estimating the Effects of Financial Access on Poor Farmers in Rural Northern Nigeria.” Financial Innovation.
7. https//www.rbi.org.in
8. https//www.nabard.org
9. Abhisek Garg and Dr. Hulas Pathak (2022), A Study on farmers' banking preferences for Kisan credit card (KCC) scheme in Bilaspur district, Chhattisgarh, India. The Pharma Innovation Journal 2022; SP-11(9): 3081-3083.
10. Sonu Shukla Tiwari (2019), Impact of Kisa Credit Card Scheme on the Socio- Econmic Status of Farmer's in Anuppur District of Madhya Pradesh(With Special Reference to Co-operative Bank), International Journal of science and research (IJSR) volume 8 issue 8, august 2019 pp 383-385. |