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पालि साहित्य में सुत्तपिटक का परिचय | |||||||
Introduction to Suttapitaka in Pali Literature | |||||||
Paper Id :
17751 Submission Date :
2023-06-12 Acceptance Date :
2023-06-22 Publication Date :
2023-06-25
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सारांश |
पालि साहित्य दो भागों में विभक्त किया गया है। पहले भाग में धर्म ग्रन्थ आते हैं और दूसरे में व्याकरण से सम्बन्धित ग्रन्थ। धर्म ग्रन्थों को त्रिपिटक की संज्ञा दी गयी है। त्रिपिटक में बुद्ध के उपदेशो का तथा शिक्षाओं को बताया गया है त्रिपिटक निम्न हैः-
1. विनय पिटक
2. सुत्त पिटक
3. अभिधम्म पिटक
त्रिपिटक संस्कृत में भी उपलब्ध होते हैं और पालि में भी। किन्तु पालि से प्राप्त त्रिपिटक ही प्राचीनतम व प्रामाणित माने जाते हैं। सुत्त पिटक में तर्क संवाद शैली व सिद्धान्तों का परिचय दिया गया है। सुत्त का अर्थ सूत या धागा और पिटक का अर्थ पिटारी या परम्परा।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Pali literature is divided into two parts. The religious texts come in the first part and the texts related to grammar in the second. Religious texts have been given the noun of Tripitaka. The teachings and teachings of Buddha have been told in Tripitaka. Tripitaka is as follows:- 1. Vinay Pitaka 2. Sutta Pitaka 3. Abhidhamma Pitaka Tripitakas are available in Sanskrit as well as in Pali. But only the Tripitakas obtained from Pali are considered to be the oldest and authentic. In the Sutta Pitaka, the logic, dialogue style and principles have been introduced. Sutta means thread or thread and Pitaka means box or tradition. |
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मुख्य शब्द | पालि साहित्य में सुत्त का अर्थ सूत या धागा और पिटक का अर्थ पिटारी या परम्परा। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | In Pali literature, Sutta means thread or thread and Pitaka means box or tradition. | ||||||
प्रस्तावना |
सुत्त पिटक बौद्ध साहित्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। भगवान बुद्ध के उपदेशों का सद्वचनो के रूप में परिचय करना ही सुत्त पिटक का एकमात्र विषय है। सुत्त का अर्थ है सूत या धागा और पिटक का अर्थ है पिटारी या परम्परा। सुत्त पिटक में पांच निकाय हैंः-
1. दीघ निकाय
2. मज्झिम निकाय
3. संयुक्त निकाय
4. अंगुत्तर निकाय
5. खुद्दक निकाय
सुत्तपिटक बौद्ध साहित्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। भगवान बुद्ध के उपदेशों का सद वचन के रूप में परिचय करना ही सुत्त पिटक का एक मात्र विषय है। सुत्त का अर्थ सूत या धागा और पिटक का अर्थ है पिटारी या परम्परा।
इसमें प्रश्नोत्तर रूप में संवादो तथा तर्कों के द्वारा भगवान बुद्ध के सिद्धान्तों का संग्रह है। इस पिटक में में मुक्तक छन्द भी है और प्राचीन छोटी-छोटी कहानियाँ भी है। इस प्रकार बुद्ध उपदेशों के साथ-साथ उनके शिष्यों के उपदेश भी सुत्त पिटक में सम्मिलित है। भगवान अपने मुख से जो-जो उपदेश दिये, अपने जीवन और अनुभवों के विषय में उन्होंने जो-जो कहाँ, जिन-जिन व्यक्तियों से उनका या उनके शिष्यों का सम्पर्क या संलाप हुआ, जिन-जिन प्रदेशो में उन्होंने भ्रमण किया था यह कह सकते है कि बुद्धन्त्व-प्राप्ति से लेकर निर्वाण-प्राप्ति तक के अपने 45 वर्षों में भगवान की जो जो भी जीवन - चर्चा रही उसी का यथावत् वर्णन हमें सुत्त-पिटक में मिलता है।
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अध्ययन का उद्देश्य | पालि साहित्य में सुत्त पिटक के विषय पर प्रकाश डालना है जिससे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सुत पिटक के तर्क व संवाद शैली का व उसके सिद्धान्तों का परिचय सरलता से हो सके। |
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साहित्यावलोकन | सुत्तपिटक में जो धर्म
ग्रन्थ है उसे त्रिपिटक की संज्ञा दी गयी है जो निम्न है विनय पिटक, सुत्तपिटक, अभिधम्म पिटक। पालि से प्राप्त त्रिपिटक
प्रमाणित माने जाते है सुत्त का अर्थ धागा और पिटक का अर्थ पिटारी। सुत्त पिटक में
भगवान बुद्ध के उपदेशो का सद्वचनों के रूप में परिचय कराना ही सुत्त पिटक का एक
मात्र विषय है। |
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मुख्य पाठ |
पालि साहित्य में भगवान
बुद्ध के वचनो को तीन पिटकों में विभक्त किया गया है। 1. सुत्तपिटक 2. विनय पिटक 3. अभिधर्म पिटक सुत्तपिटक के अन्तर्गत पांच
निकाय है। 1. दीघ निकाय 2. मज्झिम निकाय 3. संयुक्त निकाय 4. अंगुत्तर निकाय 5. खुद्दक निकाय दीघ निकाय दीघ आकार के
सुत्तों का संग्रह है इसे दीघागम या दीर्घ संग्रह भी कहा जाता है। आकार की दृष्टि
से जो सुत्त या बुद्ध उपदेश बडे़े है वे इस निकाय में संग्रहीत है इसलिए इसका नाम
दीर्घ निकाय है। दीर्घ निकाय में कुल 34 सुत्त है जो तीन भागों में विभाजित है
पहले सीलखन्घ सुत्त में 13 सुत्त है दूसरे महावग्ग में 10 सुत्त है और तीसरे पाथिक
वग्ग में 11 सुत्त है।[1] मज्झिम निकाय एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस निकाय में 152 सुत्तों का संग्रह है जो तीन पण्णासको (पचासों) में विभक्त है। प्रत्येक पण्णासक में दस-दस के पांच वग्ग है उपरि पण्णासक का चौथा
(विभंग) वग्ग इसका अपवाद है। जिसमें कि 12 सुत्त है वग्गो के नामो में कोई-कोई तो
किसी सुत्त के नाम के कारण है जैसे-मूल परियाय वग्ग। कोई-कोई वर्णित विषय के कारण
जैसे सलायतन वग्ग में कोई-कोई सुत्त में अधिकतर सम्बोधित व्यक्ति की श्रेणी पर है।
जैसे-परिब्बाजक वग्ग में परिब्राजक सम्बोधित किये गये है। राजवग्ग में राजा और
राजकुमार ब्राह्मण वग्ग में ब्राह्मण गृहपति वग्ग में गृहपति (वैश्य) मज्झिम निकाय
में सुत्त बुद्ध के ही कहे गये है लेकिन कुछ ऐसे भी है जिन्हे बुद्ध के शिष्य
सारिपुत्र, महाकात्यायन आदि ने कहे। संयुक्त निकाय भी सुत्त
पिटक का एक महत्वपूर्ण निकाय है। इस निकाय में छोटे बड़े सभी प्रकार के सुत्तो का
संग्रह है इसलिए इसका नाम संयुक्त निकाय पड़ा संयुक्त निकाय में 56 संयुक्त है।
जिन्हें पांच वग्गो में विभाजित किये गये है। 1. सगाथ वग्ग 11 संयुक्त
है। 2. निदान वग्ग जिसमे 10
संयुक्त है। 3. संघ वग्ग जिसमें 13
संयुक्त है। 4. सलायतन वग्ग जिसमें 10
संयुक्त है। 5. महावग जिसमें 10 संयुक्त
है। संयुक्त निकायों में, परम्परागत मान्यता के अनुसार कुल सूत्रों की संख्या 7762
है।[3] अंगुत्तर निकाय का चौथा
स्थान है इस निकाय का विभाजन बिलकुल संख्याबद्ध है। एक-एक, दो-दो, तीन-तीन इस
प्रकार क्रमानुसार ग्यारह तक उतनी ही उतनी संख्या से संबंध रखने वाले बुद्ध
उपदेशों का संग्रह है इस प्रकार यह महाग्रंथ ग्यारह निपातों (समूहों) में विभक्त
है। 1. एकक-निपात खुद्दक निकाय सुत्त पिटक का
पांचवा महत्वपूर्ण निकाय है। इसमें छोटे-छोटे स्वतंत्र 15 ग्र्रंथों का सम्मलित
निकाय है। सभी ग्रंथ छोटे भी नही है। जैसे-जातक आदि काफी बड़े भी है जिनकी गणना
नीचे लिखे क्रम से आचार्य बुद्धघोष ने की है। 1. खुद्दक पाठ |
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निष्कर्ष |
उपयुक्त निकायो के अनुसार पालि त्रिपिकट का सबसे महत्वपूर्ण भाग सुत्त पिटक ही है। बुद्ध के धम्म का यथा तथ्य रूप से परिचय कराना ही सुत्त पिटक का एकमात्र विषय है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. पालि साहित्य का इतिहास-भरत सिंह उपाध्याय, साहित्य सम्मेलन प्रयाग 12, सम्मेलन मार्ग, इलाहाबाद सन् 1986 पृष्ठ 143, 147
2. मज्झिम निकाय अनुवादक महापंडित राहुल सांकृत्यायन प्रकाश, भारतीय बौद्ध शिक्षा परिषद श्रावस्ती 1990 पृष्ठ (ञ) 2 सुत्त सूचि 1 से 6 तक
3. पालि साहित्य का इतिहास-डा0 प्रभा अग्रवाल प्रकाशन लखनऊ 1994 पृष्ठ 38
4. पालि साहित्य का इतिहास-डा0 प्रभा अग्रवाल प्रकाशन लखनऊ 1994 पृष्ठ 38 भरत सिंह उपाध्याय पृष्ठ 38, 143, 147
5. सुत्त निपात सम्पादक डा0 भिक्षु धर्म रक्षित प्रकाशन मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्राईवेट लिमिटेड दिल्ली 1988, 1994 पृष्ठ ग्रन्थ परिचय 3 |