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महिला सशक्तिकरण: मुद्दे एवं चुनौतियाँ कोटा नगर की
महिलाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन |
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Women Empowerment: Issues and Challenges A Sociological Study of Women of Kota City | |||||||
Paper Id :
17862 Submission Date :
2023-07-19 Acceptance Date :
2023-07-22 Publication Date :
2023-07-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
प्रस्तुत शोध पत्र
में कोटा शहर की महिलाओं में महिला सशक्तिकरण से संबंधित विभिन्न मुद्दों एवं
चुनौतियों का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन किया गया। शोध पत्र के प्रारम्भ
में समस्या के परिचय के अन्तर्गत प्राचीनकाल से आधुनिक काल में महिलाओं की
परिवर्तित स्थिति को दर्शाया गया है। महिलाओं की उच्च स्थिति के धीरे-धीरे निम्न
स्थिति में परिवर्तित होने के कारणों और परिस्थितियों पर प्रकाश डाला गया है। इस
शोध पत्र में विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं एवं प्रकाशित एवं अप्रकाशित लेखों के
माध्यम से सूचनायें प्राप्त की गई है किन्तु प्राथमिक तथ्यों का संकलन दैवनिदर्शन
विधि के माध्यम से किया गया। निष्कर्षत इस आलेख में कोटा क्षेत्र की महिलाओं में
सशक्तिकरण, कानूनों, अधिकारों के प्रति जागरुकता, उनकी विभिन्न
समस्याओं के समाधान के विभिन्न उपायों को खोजने का प्रयास किया गया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the presented research paper, various issues and challenges related to women empowerment among the women of Kota city were studied from a sociological point of view. In the beginning of the research paper, under the introduction of the problem, the changed status of women from ancient times to modern times has been shown. The reasons and circumstances for the gradual transformation of high status of women into low status are highlighted. In this research paper, information has been obtained through various newspapers and magazines and published and unpublished articles, but the primary facts were collected through forecasting method. In conclusion, in this article, an attempt has been made to find various measures for the empowerment of women of Kota area, awareness of laws, rights, solutions to their various problems. | ||||||
मुख्य शब्द | महिला सशक्तिकरण, घरेलू हिंसा, महिला कानून, सामाजिक असमानता, सामाजिक कुरीतियाँ। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Women Empowerment, Domestic Violence, Women Law, Social Inequality, Social Evils. | ||||||
प्रस्तावना | प्राचीन भारत में स्त्री का स्थान माता, पत्नी और बहन के रूप में अत्यन्त सम्माननीय था। ‘शतपथ ब्राह्मण’ में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहा गया है। गार्गी और मैत्री जैसी विदुषी महिलाएँ इस काल में ही थी। धर्मशास्त्रों में भी महिलाओं के प्रति अधिक उदार दृष्टिकोण अपनाया गया था। पूर्ववैदिक काल में कन्याओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। प्रागैतिहासिक काल के समय भी बहुत सारी महिलायें ऋचाओं की रचनाकार और कवियत्री के रूप में उद्धृत की गई है। लगभग 20 महिलाओं ने तो ऋग्वेद के लेखन में अपना योगदान दिया था। लोपामुद्रा, विसवावरा, सिकिता, निवावारी तथा घोषा ने ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की थी। इसके अलावा सुलभा, मैत्री, विदव, प्रतकृति तथा गार्गी इत्यादि महिलायें ऋचाओं की रचनाकार है। इस प्रकार प्रारम्भ में हमें महिलाओं की अच्छी स्थिति दिखाई देती है। आमतौर पर भी भारतीय संस्कृति की प्रशंसा करते हुये कहा जाता है कि भारतीय समाज में स्त्री शक्ति रूपा है एवं पूज्यनीय है। मनु ने भी कहा है कि जहाँ नारियाँ निवास करती है वहाँ देवता निवास करते है किन्तु वस्तु स्थिति बिल्कुल भिन्न हैं भारतीय समाज में नारी का वर्गीकरण शूद्र की तरह ही हुआ है। ब्राह्मण स्त्री-ब्राह्मण पुरुष से, क्षत्रीय स्त्री-क्षत्रीय पुरुष से, वैश्य की स्त्री वैश्य पुरुष से तथा दलित की स्त्री दलित पुरुष से निम्न है। इसका स्पष्ट तात्पर्य यह है कि प्रत्येक पदसोपान में खड़े पुरुष से स्त्री का स्थान निम्न ही है। 19वीं सदी में राजाराम मोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, ज्योतिबा फूले और रानाडे इत्यादि समाज सुधारकों ने सती प्रथा, विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा को लेकर आन्दोलन चलाया। ब्रिटिश सरकार ने भी कानून बनाए। किन्तु स्त्री की स्थिति में बहुत अधिक फर्क नहीं आया। जाति प्रथा के साथ-साथ स्त्रियों के प्रति भेदभाव भी जारी रहा। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. महिला सशक्तिकरण का वर्तमान के
सन्दर्भ में अवधारणात्मक निरूपण करना। 2. महिला सशक्तिकरण से संबंधित कानूनों
एवं सामाजिक प्रावधानों का ज्ञान व उनका प्रभाव जानना। 3. महिला सशक्तिकरण में वृद्धि
करने के अन्य उपायों को जानना। 4. कोटा शहर में महिलाओं की
वास्तविक स्थिति को ज्ञात करना। 5. राजनीतिक निर्णयों में महिलाओं
की भूमिका को ज्ञात करना। 6. महिला सशक्तिकरण की चुनौतियों
को ज्ञात करना। |
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साहित्यावलोकन | पुस्तक ‘महिला सशक्तिकरण
के नवीन आयाम’
(सामाजिक, राजनीतिक एवं
आर्थिक परिप्रेक्ष्य में) (2011), लेखक डॉ. इन्द्र शर्मा एवं डॉ. शिवाली
अग्रवाल के द्वारा लिखी गई है। पुस्तक उन्नीस अध्यायों में विभक्त है। प्रत्येक
अध्याय का लेखन अलग-अलग लेखकों द्वारा किया गया है। पुस्तक में भारत में महिलाओं
की राजनीतिक सहभागिता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से उल्लेख किया गया है। महिला
सशक्तिकरण आंदोलन, राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका, पॉवर वूमेन का
मिथक एवं यथार्थ वर्णन, मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण
नारी,
सशक्तिकरणः
आवश्यकता बुनियादी बदलाव की, बौद्ध साहित्य में नारी सशक्तिकरण के विविध पक्ष, नारी सशक्तिकरण और
अधिकार,
जनसंचार
माध्यम एवं महिला सशक्तिकरण, महिला विकास एवं मानवाधिकार, नारी शक्तिः
संघर्ष एवं उपलब्धि में कलाओं का सहयोग, राजनीतिक निर्णयों में महिलाओं की सीमित
सहभागिता,
भारतीय
चिन्तन में कुलाधार नारी, भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति (प्राचीन काल से
वर्तमान काल),
भारतीय
समाज में महिलाओं का बदलता स्वरूप, समकालीन महिला उपन्यासकार और स्त्री विमर्श, भारतीय समाज के
विभिन्न कालों में महिलाओं की दशा एवं भारतीय समाज में कामकाजी महिलाऐं आदि का
उल्लेख किया गया है। ‘नारी सशक्तिकरण का इतिहास’ (2012) पुस्तक लेखक
देवेन्द्र कुमार शरण के द्वारा लिखी गई है। पुस्तक इक्कीस अध्यायों में विभक्त है।
पुस्तक के अन्तर्गत विभिन्न कालों में महिलाओं की स्थिति का गहन विवरण किया गया
है। इसके अतिरिक्त उदारवादी नारीवाद, मार्क्सवादी नारीवाद, महिलायें एवं
क्रान्तिकारी आंदोलन आधुनिक भारत में महिलाएँ, दलित स्त्री विमर्श, 1857 में दलित
वीरांगनाएँ,
जनजातीय
नारी,
गाँधी
एवं नारी,
अम्बेडकर
और हिन्दू कोड बिल, भारत में तथाकथित अपराधी जातियाँ और जनजातियाँ तथा नारी संदर्भ, आधुनिक भारतीय
महिलाओं की साहित्य में भूमिका एवं महिलाएँ और भूमिका का स्पष्ट एवं सटीक उल्लेख
किया गया है। पुस्तक ‘महिलाएँ एवं मानव
अधिकार’
(2014) लेखिका
डॉ. सावित्री माथुर के द्वारा लिखी है। पुस्तक सत्रह अध्यायों में विभक्त है।
पुस्तक में भारत में महिलाओं की स्थिति एवं महिला सशक्तिकरण को केन्द्र बिन्दु
मानकर लेखन कार्य किया गया है। पुस्तक में महिलाओं से संबंधित विभिन्न विषयों का
गहन लेखन कार्य किया गया है जैसे-महिलाओं के लिये संवैधानिक सशक्तिकरण, महिला सशक्तिकरण
में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका, ग्रामीण महिला विकास और सशक्तिकरण, महिलाओं के कानूनी
अधिकार,
कामकाजी
महिलाओं के अधिकार महिलाओं के पारिवारिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार, विश्व महिला
सम्मेलन की उपादेयता, मानवाधिकार एवं कन्या भू्रण हत्या, कुटुम्ब न्यायालय 1984, मानवाधिकार: महिला
आरक्षण एवं राष्ट्रीय महिला आयोग एवं भारत में पंचायतीराज एवं महिला सशक्तिकरण
आदि। पुस्तक ‘‘भारतीय समाज एवं
महिला विकास कार्यक्रम’’ (2017) लेखक आर बोहरा के द्वारा लिखी गई है।
प्रस्तुत पुस्तक सोलह अध्यायों में विभक्त है। पुस्तक में भारतीय समाज एवं
सांस्कृतिक अवधारणा के पक्ष को प्रारम्भ के अध्यायों में दर्शाया गया है। इसके
पश्चात् भारतीय समाज का आधुनिकीकरण, नारी शिक्षा के उद्देश्य एवं धर्म, आधुनिक समाज में
नारी,
भारत
में नारी विकास एवं राजनीति, महिला विकास कार्यक्रम, भारत में संयुक्त परिवार
एवं नारी,
भारतीय
समाज में दहेज एवं अन्य समस्याएँ, भारत में विवाह एवं तलाक, कन्या भू्रण हत्या एवं
समाज,
स्त्रियों
के अधिकार एवं समाज, बालविवाह और समाज, भारत में कार्यशील महिलाएँ, महिला सशक्तिकरण
एवं समाज एवं महिला अधिकार एवं लोक अदालत आदि का गहनतम वर्णन एवं व्याख्या की गई
है। पुस्तक ‘‘21वीं सदी में
महिलाओं का बदलता हुआ स्वरूप’’ (2013) लेखक नैनेश गढ़वी एवं राम सोंदर्वा के द्वारा
रचित है। पुस्तक में महिलाओं से संबंधित विभिन्न कुप्रथाओं एवं समस्याओं को उजागर
करने का प्रयास किया गया है, जैसे-बाल विवाह, कन्या भू्रण हत्या, विवाह प्रथाएँ
आदि। इसके अतिरिक्त पुस्तक में नारी शिक्षा के उद्देश्य एवं मूल्य, सभ्यता और
संस्कृति के मूलभूत तत्व, 21वीं सदी में महिला विकास कार्यक्रम, भारत में कार्यशील
महिलाएँ एवं उनके अधिकार, आधुनिकीकरण और भारतीय समाज, वैश्वीकरण के युग में
परिवार एवं शिक्षा, भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति: स्वरूप एवं समस्याएँ, कामकाजी महिलाएँ
एवं समाज सुधारक दृष्टिकोण, भारतीय इतिहास में महिलाओं की शौर्य गाथा, भारत में महिला
मुक्ति संघर्ष और अन्तर्राष्ट्रीय महिला आंदोलन, समाज में नारी महत्व और
विकास योजनाएँ,
विश्व
में महिला सम्मेलन एवं उद्देश्य, महिलाओं के प्रति अत्याचार और कानून व्यवस्था, भारत में महिला
अधिकार एवं लोक अदालतें एवं शिक्षा के सिद्धान्त और आधुनिक समाज आदि का उल्लेख
किया गया है। आधुनिक समाज में कार्यशील
महिलाएँ (2009)
पुस्तक
लेखक ‘श्रीमती प्रमिला
दाधीच’
के
द्वारा लिखी गई हैं। यह पुस्तक सत्रह अध्यायों में विभक्त है। प्रस्तुत पुस्तक
आधुनिक समाज में महिलाओं की स्थिति का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करती है। इसमें
विभिन्न महिला विकास कार्यक्रम, महिलाएँ एवं कार्यक्षेत्र, स्वतन्त्र भारत में नारी
सुधार हेतु किये गये प्रयासों, राजनीति, कृषि विकास, पत्रकारिता, नारी संगठन, समाज, परिवार, पंचायतीराज, चलचित्र टेलीविजन, महिला आरक्षण
संस्कृति में नारी का योगदान, नारी की आधुनिकता का समाज पर प्रभाव आदि का उल्लेख
किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
समस्या का परिचय - भारत में महिला सशक्तिकरण से संबंधित समस्याओं और चुनौतियों के लेखन की कोई परम्परा नहीं रही। यद्यपि प्राचीन काल से अब तक कई प्रमुख महिलाओं का उल्लेख हुआ है जो विदुषी, दार्शनिक और साम्रज्ञी तक रही है। प्रारम्भ में महिलाओं की सामाजिक स्थिति उच्च दिखाई देती है किन्तु बाद के समय में महिलाओं को अपनी विभिन्न अधिकारों के लिये कई सदियों तक लम्बी लड़ाई करनी पड़ी है। शिक्षा प्राप्ति के अधिकार के लिये उसका संघर्ष काफी पुराना है। विश्व के विभिन्न धर्मों में भी महिला का पुरुष के अधीन और पुरुष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। 19वीं सदी भारतीय सन्दर्भ में इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत के पुनर्जागरण का काल था। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसायटी और रामकृष्ण मिशन सभी उन अन्ध विश्वासों के खिलाफ लड़ रहे थे। स्वतंत्रता के पश्चात् भी भारत में नारीवादी आन्दोलन में बिखराव दिखता है। 1980 के दशक में दहेज हत्या और बलात्कार को लेकर आन्दोलन तेज किया गया। आदिवासी और अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ भी बलात्कार की घटनाएँ बढ़ी। पर्सनल लॉ के इतिहास में भी शाहबानू का केस 1985 में काफी सुर्खियों में रहा। पर्सनल लॉ की इस बात को जारी रखा गया कि तलाक के तीन महीने बाद भरण-पोषण का अधिकार मुस्लिम स्त्री का नहीं है। यद्यपि आधुनिक भारत की महिलाओं को उपेक्षिता से महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ने वाली कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। विश्व में आधी जनसंख्या महिलाओं की है किन्तु भारत में पुरुषों की तुलना में यह अपेक्षा कम है जिसके कारण लिंगानुपात में असमानता निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। वर्ष 2001 में भारत में पुरुषों की तुलना में साढ़े तीन करोड़ महिलाऐं कम थी। इसीलिये लैंगिग समानता और निजी भूमि पर महिलाओं के दावों की बेहतरी के लिये सामाजिक स्तर पर प्रयास होने चाहिये। महिलाओं को कानूनी जानकारी एवं सहयोग भी मिलना चाहिये किन्तु महिलाओं को नहीं मिल रहा है। जिस देश में नारी की पूजा की जाती थी आज के सन्दर्भ में उसी देश में लड़के-लड़कियों का अनुपात असंतुलित हो गया है। यह एक चिंताजनक समस्या है जो हमारे समाज में भयावह रूप लेती जा रही है। राजनैतिक स्तर पर महिला प्रतिभागिता के क्षेत्र में भी अभी मंजिल हासिल करना बाकी है। संपत्ति के अधिकार में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी तो उनकी हालात में अपने आप सुधार आएगा। निष्कर्षत जहाँ एक ओर प्राचीन काल में स्त्रियों को समाज में इतना सम्मान दिया जाता था, वहीं मध्यकाल के समाज में महिलाओं की स्थिति खराब होती चली गई। अनेक कुरीतियों ने नारी को जकड़ लिया था। सदियों तक नारी अनेकानेक पीड़ाओं एवं अत्याचारों को सहन करती रही। किन्तु आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण के दावे किये जा रहे हैं इसी उद्देश्य से प्रस्तुत शोध कार्य एवं लेखन किया गया है। शोध कार्य की उपकल्पनाएँ 1. महिलाओं में सशक्तिकरण के अभाव का मुख्य कारण अशिक्षा एवं कानूनों की जानकारी का अभाव है। 2. कामकाजी महिलायें, गृहस्थ महिलाओं की तुलना में अधिक सशक्त हैं। 3. समाज में व्याप्त कुप्रथाएँ एवं परम्परायें महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधक है। 4. पुरुष प्रधान समाज, महिलाओं की अनभिज्ञता एवं आत्मनिर्भरता में कमी महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधक है। शोध प्रारूप समाज विज्ञानों में सामाजिक यथार्थता सामाजिक घटनाओं और सामाजिक संबंधों की जटिलता को देखते हुए अनुसंधान की उपयोगिता को बनाए रखने के उद्देश्य से शोध प्रारूप जैसा महत्वपूर्ण चरण सामाजिक विज्ञानों में किसी भी अनुसंधान की वैधता उसके निष्कर्ष पर आधारित होती है और निष्कर्ष की विश्वसनीयता इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उन निष्कर्षों की पुनरावृति हो सके। आर. एल एकॉफ ने लिखा है कि ‘‘अनुसंधान प्ररचना आने वाली परिस्थितियों में जो निर्णय लागू किये जाते हैं उनको परिस्थितियों के आने से पहले ही सोच समझकर निश्चित कर लेना योजना बनाना है, यह एक सचेत प्रक्रिया है।’’ प्रस्तुत शोध में वैज्ञानिक तत्वों को सम्मिलित करते हुए अनुसंधान की योजना बनायी गयी है जो निम्न चरणों द्वारा उल्लेखित हैं- 1. विषय की रूपरेखा एवं चुनाव 2. अध्ययन के उद्देश्य 3. अध्ययन क्षेत्र एवं अध्ययन ईकाइयों का निर्धारण 4. अध्ययन पद्धतियाँ एवं उपकरणों का चयन 5. उपकल्पनाओं का निर्माण 6. अवलोकन एवं तथ्यों का संकलन 7 तथ्यों की व्याख्या, वर्गीकरण एवं विश्लेषण 8. सामान्यीकरण 9. अध्ययन के महत्व का निर्धारण 10. जाँच एवं पुनः परीक्षण 11. भविष्यवाणी। प्रस्तुत शोध हेतु कोटा शहर को समग्र इकाई मानते हुए दैव निदर्शन विधि का प्रयोग करते हुये कुल 50 उत्तरदाताओं का चयन किया गया है। चयन का आधार इकाईयों की सहज उपलब्धता के अनुसार किया गया हैं, जो कि गृहिणी एवं कामकाजी महिलायें हैं। साक्षात्कार अनुसूची प्रविधि के माध्यम से प्राथमिक तथ्यों का संकलन किया गया तथा उन सभी कारकों से संबंधित प्रश्न निर्मित किये गये जिससे महिला सशक्तिकरण की वर्तमान स्थिति से संबंधित जानकारी प्राप्त हो सके। इस साक्षात्कार अनुसूची में सूचनादाताओं से प्रस्तुत समस्या से संबंधित विभिन्न प्रश्नों को सम्मिलित किया गया है तथा उन सभी कारकों से संबंधित प्रश्न निर्मित किये गये जिससे कोटा शहर की महिलाओं में सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियों की सही जानकारी प्राप्त हो सके। साथ ही द्वैतीयक तथ्यों हेतु क्षेत्रीय तथ्य एवं सामग्री का उपयोग किया गया जो पूर्व में किसी अनुसंधानकर्ता या किसी संस्थान द्वारा प्राप्त की हुई है तथा विभिन्न प्रकाशित एवं अप्रकाशित प्रलेख एवं साहित्य पूर्व अध्ययन, सरकारी आँकड़े, जर्नल्स में प्रकाशित, शोध-पत्र, पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में प्रकाशित तथ्यों का प्रयोग किया गया है तथा सूचनादाताओं के पारिवारिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, नैतिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि विभिन्न चरों एवं कारकों से संबंधित प्रश्नों को भी सम्मिलित किया गया है। ईकाईयों का चयन निदर्शन विधि के द्वारा किया गया। |
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निष्कर्ष |
कोटा शहर की निवासी
महिलाओं को प्रस्तुत शोध कार्य की उत्तरदाताओं के रूप में चयनित किया गया। ये
महिलाएँ शिक्षित-अशिक्षित, गृहिणी एवं कामकाजी, निर्धन एवं अमीर, विवाहित एवं अविवाहित आदि
सभी क्षेत्रों से चयनित की गई। जिनसे प्राप्त उत्तरों के माध्यम से निम्न निष्कर्ष
ज्ञात हुये:- 1. महिला सशक्तिकरण की स्थिति को ज्ञात करने
के लिये महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की स्थिति को ज्ञात करना भी आवश्यक है। चयनित
उत्तरदाताओं में 19 महिलाओं ने यह स्वीकार किया की वह
घरेलू हिंसा से पीड़ित है जिनका प्रतिशत 38 है तथा 41
महिलाएँ घरेलू हिंसा की शिकार नहीं है जिनका 82 प्रतिशत है। 2. उत्तरदाताओं से प्राप्त
जानकारी से यह ज्ञात हुआ कि गृहिणी महिलाओं की तुलना में कामकाजी महिलाएँ अधिक
सशक्त है। कुल 50 उत्तरदाताओं में से 30 महिलाएँ गृहिणी हैं जिन्होंने स्वयं को सशक्त एवं आत्मनिर्भर नहीं माना
बल्कि 20 महिलाएँ कामकाजी है जिन्होंने स्वयं को सशक्त
माना है जिनका प्रतिशत क्रमशः 60 और 40 तथा है। 3. चयनित उत्तरदाताओं में से 22
महिलाओं ने यह स्वीकार किया कि उनके परिवार में निर्णय पुरुष
लेते हैं। जिनका प्रतिशत है। बल्कि 28 उत्तरदाताओं ने कहा
कि उनके परिवार में महिला एवं पुरुष दोनों ही निर्णय लेते हैं जिसका 56 प्रतिशत है। 4. महिला सशक्तिकरण के प्रति
जागरुकता के आधार पर चयनित उत्तरदाताओं में से कुल 32 महिलाएँ
जागरुक है जिनका 64 प्रतिशत है। बल्कि 18 अर्थात् 36 प्रतिशत महिलाएँ जागरुक नहीं है। 5.
महिलाएँ ही महिलाओं के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। इस आधार
पर प्राप्त आँकड़ों में से सर्वाधिक 36 महिलाओं ने यह तथ्य
सत्य माना जिनका 72 प्रतिशत है बल्कि 14 अर्थात् 28 प्रतिशत महिलाएँ इससे असहमत हैं। 6.
अशिक्षा महिला सशक्तिकरण के मार्ग में बाधा है, इस आधार पर प्राप्त आँकड़ों के आधार पर यह ज्ञात हुआ कि 44 महिलाएँ अर्थात् 88 प्रतिशत इससे सहमत है एवं 16
अर्थात् 12 प्रतिशत महिलाएँ असहमत है। 7.
समाज में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के आधार पर प्राप्त आँकड़ों
से यह ज्ञात हुआ कि सर्वाधिक 48 महिलाओं अर्थात् 96
प्रतिशत इससे सहमत है बल्कि 02 अर्थात् 04
प्रतिशत महिलाएँ इससे असहमत हैं। 8. महिला
सुरक्षा कानून सही होने के आधार पर प्राप्त आँकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि चयनित
उत्तरदाताओं में सबसे अधिक 40 अर्थात् 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महिला सुरक्षा कानून को सही माना है तथा 10
अर्थात् 20 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने
महिला सुरक्षा कानून का जानकारी ही नहीं है। 9. दहेज
प्रथा, घरेलू हिंसा, असमान वेतन
एवं महिला असुरक्षा को महिला सशक्तिकरण के मार्ग में बाधा मानने के आधार पर
प्राप्त आँकड़ों के अनुसार अधिकांश 46 अर्थात् 92 प्रतिशत महिलाएँ इससे सहमत है बल्कि 04 अर्थात्
08 प्रतिशत महिलाएँ असहमत हैं। 10. महिला, सशक्तिकरण हेतु सामाजिाक सहभागिता की
स्थिति से संबंधित प्राप्त आँकड़ों के आधार पर सर्वाधिक 36 अर्थात् 72 प्रतिशत महिलाओं ने सामाजिक
सहभागिता की अच्छी स्थिति बताई बल्कि 14 अर्थात् 28
महिलाओं ने असहभागिता का अनुभव किया। 11. महिला सशक्तिकरण से ही आर्थिक विकास में वृद्धि होगी, इस आधार पर प्राप्त आँकड़ों से यह ज्ञात हुआ कि सर्वाधिक 48 महिलाएँ अर्थात् 96 प्रतिशत इससे सहमत है
बल्कि 02 अर्थात् 04 प्रतिशत
महिलाएँ इससे असहमत हैं। 12. महिलाओं के द्वारा परिवार
एवं समाज में असमानता एवं भेदभाव का अनुभव करने के आधार पर प्राप्त आँकड़ों के
अनुसार सर्वाधिक 33 अर्थात् 66 प्रतिशत
महिलाएँ भेदभाव का अनुभव करती है बल्कि 17 अर्थात् 34
प्रतिशत महिलाएँ भेदभाव का अनुभव नहीं करती है। 13. सामाजिक कुप्रथाएँ एवं परम्पराएँ महिला सशक्तिकरण के मार्ग में बाधक है,
इस आधार से प्राप्त आँकड़ों से यह ज्ञात हुआ कि सर्वाधिक 43
अर्थात् 86 प्रतिशत महिलाएँ इससे सहमत
है बल्कि 07 अर्थात् 14 प्रतिशत
महिलाएँ असहमत है। 14. पुरुष प्रधान समाज, महिलाओं में अशिक्षा एवं अनभिज्ञता का होना और आत्मनिर्भरता की कमी
महिला सशक्तिकरण के मुख्य बाधक तत्व है। इस आधार पर प्राप्त आँकड़ों के अनुसार
सर्वाधिक 47 अर्थात् 94 प्रतिशत
महिलाएँ इससे सहमत हैं किन्तु 03 अर्थात् 06 प्रतिशत महिलाएँ असहमत है। 15. महिला
सशक्तिकरण के समक्ष उत्पन्न होने वाली समस्याओं एवं चुनौतियों को ज्ञात करने के
उद्देश्य से महिलाओं से खुला प्रश्न किया गया जिससे यह ज्ञात हुआ कि कोटा शहर की
महिलाएँ अशिक्षा, वित्तीय आत्मनिर्भरता का अभाव, सामाजिक कुप्रथाएँ एवं रूढ़िवादी परम्परायें, महिला
असुरक्षा, पुरुष प्रधान समाज, कानूनों
की जानकारी का अभाव, घरेलू हिंसा एवं धार्मिक अंधविश्वास
को मुख्य कारण मानती है। 16. प्रस्तुत शोध पत्र में कोटा
शहर की महिलाओं में महिला सशक्तिकरण के मुद्दे एवं चुनौतियों की समस्या का
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से अध्ययन किया गया। जिससे निष्कर्षतः यह जानकारी
प्राप्त हुई कि इस क्षेत्र की अधिकांश महिलाएँ। घरेलू हिंसा से पीड़ित नहीं हैं,
जो महिलाएँ घरेलू हिंसा से पीड़ित है वे गृहिणी है, कामकाजी नहीं। सर्वाधिक सशक्तिकरण का अनुभव भी कामकाजी महिलाएँ ही करती
है। परिवार में अधिकांशतः व्यक्तिगत एवं पारिवारिक, राजनैतिक
मामलों में निर्णय पुरुष एवं महिला दोनों ही लेते हैं। महिलाएँ अपने अधिकारों और
सशक्तिकरण के प्रति जागरूक नहीं है। अधिकांश महिलाएँ इस तथ्य से भी सहमत हैं कि
महिलाएँ ही महिलाओं के मार्ग में बाधक होती है। महिलाओं ने समाज में महिला
सशक्तिकरण की आवश्यकता का अनुभव किया है। महिलाओं की सुरक्षा एवं अधिकारों के लिये
बने कानूनों से सभी महिलाएँ सन्तुष्ट है किन्तु दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, असमान वेतन एवं महिला असुरक्षा
को सशक्तिकरण के मार्ग में बाधक तत्व माना है। महिला सशक्तिकरण में वृद्धि करने के
लिये सामाजिक सहभागिता होती है। महिला सशक्तिकरण से ही आर्थिक विकास में वृद्धि
होगी, यह तथ्य भी सिद्ध होता है। किन्तु सर्वाधिक
नकारात्मक पक्ष जो हमें शोध के दौरान ज्ञात हुआ वह यह कि आज भी अधिकांश महिलाएँ
पुरुषों की तुलना में भेदभाव व असमानता का अनुभव कर रही है। पुरुष प्रधान समाज,
महिलाओं में अशिक्षा, अनभिज्ञता का होना
और वित्तीय आत्मनिर्भरता की कमी महिला सशक्तिकरण के मार्ग में मुख्य बाधक तत्व है।
महिलाओं ने अशिक्षा, महिलाओं की असुरक्षा, रूढ़िवादी प्रथा एवं परम्पराएँ, घरेलू हिंसा
एवं धार्मिक अंधविश्वास को महिला सशक्तिकरण हेतु चुनौती माना है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | 1. महिला सशक्तिकरण हेतु सर्वप्रथम स्त्री एवं पुरुष दोनों को ही समान पोषण मिलना चाहिये। 2. महिलाओं का आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षिक रूप से सशक्तिकरण करना आवश्यक है। 3. सामाजिक असमानता, पारिवारिक हिंसा, अत्याचार और आर्थिक अनिर्भरता का उन्मूलन करना होगा। 4. महिलाओं को निजी स्वतंत्रता और स्वयं के फैसले लेने के लिये अधिकार देना होगा। 5. महिला सशक्तिकरण के लिये सामाजिक सहभागिता भी अत्यन्त आवश्यक है। 6. महिला एवं बाल विकास विभाग को सार्थक प्रयास करना चाहिये। 7. महिलाओं के हित में बने कानूनों को सख्ती से लागू करना चाहिये। |
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आभार | प्रस्तुत शोध पत्र के सफलतापूर्वक लेखन कार्य पूर्ण करने के लिए शोधार्थी सर्वप्रथम परमपिता परमेश्वर, माता-पिता एवं अपने भाई बहन का हृदय से आभार प्रकट करती है। इन्होंने शोधार्थी की यथा संभव सहायता की तथा हमेशा शोधार्थी को उत्साहित एवं अग्रसर रहने हेतु प्रेरित किया। वस्तुतः वह पूर्ण शोध कार्य के दौरान शोधार्थी के प्रेरणा एवं उत्साह के स्त्रोत बने रहे, जिसके कारण शोधार्थी अपना शोध कार्य निश्चित समय पर सम्पन्न कर सकी। शोधार्थी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा एवं वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के समस्त पुस्तकालयाध्यक्षों एवं कर्मचारियों के प्रति भी आभार प्रकट करती हूँ जिन्होंने शोधार्थी को अपने शोध कार्य से संबंधित पुस्तकों एवं शोध-पत्रिकाओं को उपलब्ध कराने की विशेष सुविधा एवं सहयोग प्रदान किया। शोधार्थी अपने सभी गुरू मित्रों एवं संबंधियों को जिन्होंने शोधार्थी को इस शोध कार्य के लिये प्रेरणा एवं उत्साहवर्द्धन किया, उनको धन्यवाद देती है। अन्त में शोधार्थी इस शोध कार्य की मुख्य धुरी एवं केन्द्र बिन्दु रही कोटा शहर की उन समस्त महिलाओं का हृदय से आभार करती हैं जिन्होंने एक उत्तरदाता के रूप में शोधार्थी अपने शोध कार्य से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की एवं शोधार्थी की इस शोध की यात्रा को सुगम बनाने में अपना योगदान दिया। | ||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. दीपा जैन, 2007, ‘महिला सुरक्षा एवं महिला पुलिस राजस्थान’ हिन्दी
ग्रन्थ अकादमी, जयपुर |