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मारवाड़ परिक्षेत्र की मध्यकालीन (मुगल-राठौड़) सम्मिश्रण
चित्रकला परंपरा |
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Medieval (Mughal-Rathore) Composite Painting tradition of Marwar Region | |||||||
Paper Id :
17873 Submission Date :
2023-07-14 Acceptance Date :
2023-07-21 Publication Date :
2023-07-23
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सारांश |
भारतीय सभ्यता व
संस्कृति को गौरवान्वित करने में मुगल-राजपूत चित्रशेैली की भी विशिष्ठ भूमिका रही
है। इसकी प्रमुख विशेषताओं के अन्तर्गत लोक जीवन के चित्रण को प्रमुखता दी गई है,
लोक जीवन की भावनाओं का बाहूल्य विशेष दर्शनीय है इसके साथ
प्राकृतिक सुन्दरता व मनमोहन वातावरण, और इसी लोक जीवन के
कारण ही सांस्कृतिक जीवन में काव्य व कला की उद्भावना के लिए राजस्थान धरती अत्यंत
उपयुक्त है। राठौड़ी सभ्यता व संस्कृति का जीवंत चित्रण राजस्थानी चित्रकला के
माध्यम से किया है जो हमें दुर्ग, प्रासाद, हवेलियां, दरबार, मंदिर
व राजपूती शानो शौकत का अंकन बड़ी बारीकी के साथ किया गया है। इस छोटे से भू-भाग
में जिस अद्वित्तीय अदभूत व अमर सांस्कृतिक परम्परा, कला
साहित्य व जीवन की जिस पुरूषार्थ प्रधान पद्धति का सृजन किया वह निःसन्देह विश्व
में बेजोड़ है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Mughal-Rajput painting has also played a special role in glorifying Indian civilization and culture. Among its main features, prominence has been given to the portrayal of folk life, the abundance of emotions of folk life is particularly visible, along with natural beauty and enchanting atmosphere, and because of this folk life, Rajasthan land is very suitable for the emergence of poetry and art in cultural life. Lively depiction of Rathori civilization and culture has been done through Rajasthani painting, which has been done with great detail marking forts, palaces, havelis, courts, temples and Rajputi Shano Shaukat. The unique, wonderful and immortal cultural tradition, art literature and the effort-oriented way of life that was created in this small land is undoubtedly unmatched in the world. | ||||||
मुख्य शब्द | मध्यकालीन मारवाड़, स्थानीय चित्रकला, मुगल-राजपूत चित्रशेैली। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Medieval Marwar, Local Painting, Mughal-Rajput Painting Style | ||||||
प्रस्तावना | मध्यकालीन मारवाड़
में स्थानीय चित्रकला ने सामाजिक जीवन को भी अपने विषय रूप में लेना आरम्भ किया
हमें इनमें प्रमुख रूप से रागमाला तथा बारहमासा के चित्र बनाये गये परन्तु इनमे
राधा-कृष्ण की प्रेम प्रसंगो के चित्र बनने कम हो गये,
इस सदी में चित्रो को अधिक प्रभावी व सजीव बनाने हेतु विभिन्न
रंगों का प्रयोग किया जाने लगा। मुगल चित्रकला से मंत्रमुग्ध होकर शासकों व उनके
अधीन सामन्तो की वेशभूषा मुगलो के सदृश्य है। राजस्थान चित्रकला के सन्दर्भ मारवाड
की चित्रशैली का प्रादूर्भाव पन्द्रहवी सदी में अस्तित्व में आया, अतः यहां पर पड़े मुगल शैली के प्रभाव को लेकर अपने अलग-अलग मत व्यक्त
किए है। बीकानेर क्षेत्र में प्रारम्भिक समय में मुस्लिम चित्रकारों द्वारा चित्रण
नहीं हुआ है, मुगल दरबार से आये चित्रकारों का मारवाड़ में
अभाव रहा हैं। परन्तु राजपूत शासक स्वयं प्रभाव द्वारा चित्रकारों को अपने दरबार
में लाते थे। |
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अध्ययन का उद्देश्य | मुगल-राजपूत शैली
तत्वों का समन्वय, मारवाड की चित्रशैली पर काफी समय
तक प्रभाव रहा, राजपूत शासक मुगल सेवा में मनसबदार थे तो
उनकी नियुक्ति उत्तर से दक्षिण, पूर्व-पश्चिम तक होती थी
तो वहां की स्थानीय परिस्थिति, वेशभूषा, रहन-सहन, प्रकृति तथा सांस्कृतिक स्थितियो को
बारीकी से देखने का मौका मिला अतः उस वातावरण का प्रभाव राजपूत चित्र शैली पर भी
पडा। यह चित्रशैली परिपक्व होकर एक नई चित्रशैली की ओर अग्रसर होती है। राजपूत
मुगलों में आपसी विवाह एवम् पारिवारिक संबंधो के कारण यहां की चित्र शैली पर मुगल
राजपूत चित्र शैलियों का प्रभाव बढ़ता चला गया। |
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मुख्य पाठ |
बीकानेर के प्रारम्भिक प्रमुख चित्रों में से मथेन जाति के चित्रकारों द्वारा
चित्रित वेलि क्रिसन रूकमणी री की प्रति अनूप संस्कृत पुस्तकालय में उपलब्ध है। इस
चित्र में महाराजा पृथ्वीराज अपनी सहगामिनी वेलि की कथा सुनाते हुए के दृश्य का
चित्रण है, इस चित्रण में मछली आकार की आंखे भौंह तक लम्बी खिंची हुई,
पुरूष पहनावे मे बीकानेर में प्रचलित पगडी, महिलाओं
का पहनावा राजपूति पहनावा, एक वृक्ष से विभिन्न डालियो में
खिले-फूल अलंकरण के लिये प्रयुक्त की गई, इनमे चेहरो की
बनावट वस्त्रों की सिलवटे और भौहे रेखांकनो आदि पश्चिमी राजस्थानी चित्रकला की
प्रमुख विशेषता है। एक मुस्लिम चित्रकार साहबद्धीन के
चित्रण पर परम्परागत चित्रण का काफी प्रभाव बना हुआ था जैसे-जैसे राजपूत शासक मुगलों
के मनसबदार बनते गये त्यों-त्यों उन्हे मुगलों की दरबारी संस्कृति को जानने का
अवसर प्राप्त हो गया और उनकी चित्रण परम्परा को जानने की अभिलाषा हुई और अपने
क्षेत्र में भी वैसा ही चित्रण करवाया। एक चित्र राव भोज का जो मुसलिम चित्रकार
नूर मोहम्मद ने बनाया, इसमें राजपूत शैली का प्रयोग हुआ फिर
भी हरमन गोइट्ज इसमें
छोटी पगडी, कंगूरों से युक्त वस्तु व मेहराब (जो पित्रादूरा
से चित्रित है) के पास में खड़े होने से मुगल शैली की झलक स्पष्ट नजर आती है।
औरंगजेब ने संस्कृति के प्रति कठोर नीति के कारण उस समय के कलाकार जो मुगल दरबार
की शोभा हुआ करता था वह अपनी आजीविका हेतु नए शरण स्थलो में पूर्व की ओर बढ़ने लगे,
इसी दोैरान कई चित्रकार राजपूतो के यहां आये एवं अपना चित्र-कर्म
प्रारम्भ किया। इसी समय अनूपसिंह बीकानेर के राजा थे वे भारतीय संस्कृति व साहित्य
के उपासक थे व सर्वगुणी थी उन्होंने पुरातन राजपूत संस्कृति के प्रति लगाव को
व्यवहार में अपनाकर चित्रण में स्थान करवाया। कर्णसिंह द्वारा स्थापित कारखाना कला
के सभी चित्रकारों से अपने अनुरूप चित्रण करवाया। मुगल शैली के सिद्धहस्त चित्रकारों ने अपने शासक की इच्छानुसार राजपूत संस्कृति
की महता को ध्यान में रखते हुए मुगल-राजपूत शैली में समन्वय व सामंजस्य स्थापित
किया, उन्होंने मुगल तत्वो से युक्त चित्रण को नकारा नहीं, एवम् साथ ही अपनी राजपूत शैली को भी महत्व उतना ही दिया। एक अन्य मुस्लिम
चित्रकार रशीद का एक चित्र अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, महाराजा
अनूपसिंह व उनके भाई सभी एक साथ हाथियों पर बैठकर शेर का शिकार करते दिखाया गया है,
हाथियों के आगे भैसों के साथ सूअर का भी शिकार करते हुए दिखाया गया
है, चित्र का रंग सुनहरी चीनी ड्रेगनो से चित्रित हासिया बना
हुआ है। मुस्लिम चित्रकारों ने शासक की रूचि को ध्यान में रखते हुए वहां स्थानीय
लोक जीवन से जुडी राजपूत चित्र शैली के स्थानीय पूट का समावेश किया गया है।
अनूपसिंह के एक अन्य चित्रकार केशव की रसिक प्रिया का चित्र राजपूत शैली में तैयार
किया। रसिक प्रिया का चित्रकार रूकनुद्धीन था और अन्य सहयोगियों में मोहम्मद
उस्ताद बक, लुत्फी, नूर मोहम्मद,
गुल्लू और हसन जो उस्ताद के पुत्र थे। राजपूत व मुगल सम्मिश्रित
चित्रशैली के अन्तर्गत बादल और पेड, पीले रंग का प्रयोग,
वस्त्र जिसमें मुगल व राजपूत दोनों के वस्त्रों की झलक मिलती हैै।
शासक की रूचि के अनुरूप चित्रकारी की जाती थी। शुद्ध परम्परागत राजपूत शैली हो या
शुद्ध मुगल तत्वों पर आधारित चित्र हो। बीकानेर की चित्र सूची में कई चित्रों का उल्लेख है जिनमें रसिकप्रिया, बारहमासा,
ढोला-मारू, रागमाला, नायिका-भेद,
लोककथाओ पर चित्रण आदि का उल्लेख मिलता है। नीले, हरे और लाल रंगो का प्रयोग, पुरूषो में चिचुक तक
जुल्फे, शाहजहां व औरंगजेब जैसी पगड़ियां व ऊँटो के चित्र आदि
का चित्रण में प्रयोग होता था। महाराजा गजसिंह के समय बीकानेर व जोधपुर राज्यों के मध्य चल रहा संघर्ष समाप्त
कर संधि करने से बीकानेर व जोधपुर राज्यों के चित्रण पर राजपूत शैली का प्रभाव
अप्रत्याशित रूप में दिखलाई देता है। जूनागढ़ के चन्द्रमहल व फूल महल में भित्ति चित्रण की दृष्टि से काफी समृद्ध
है। दोनो महलों में दीवारों पर सोने की उभारदार रेखाएं, फूलो के
गुच्छो और जलपात्रो के रूप में चित्रित भित्ति चित्रों को एक-दूसरे से अलग करके
दर्शाई गई है। मारवाड़ लोकाभिव्यक्ति ‘‘मांडणा’’ की एक सुदीर्घ परम्परा रही है।
ग्रामीण व शहरी क्षेत्र के जन सामान्य का संरक्षण रहा है। आकृति आलेखन, पुत्र जन्म, विवाह व धार्मिक उत्सवों के अवसर पर
होता था इनमे सांकेतिक निशान बनाये जाते थे। सरदार निवास में परम्परागत बादलों का अंकन करवाया और महाराजा सरदार सिंह का एक
चित्र आदमकद भी बनवाया। |
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निष्कर्ष |
मारवाड़ में भित्ति
चित्रों की एक समृद्ध परम्परा रही है। यहां पर मन्दिर,
स्मारकों, छतरियों, राजप्रसाद व सेठ-साहूकारो की हवेलियों में भित्ति चित्रो का आलेखन
बहुतायत हुआ है। इन चित्रशैलियों में तकनीकी कार्य यथा रंग संयोजन अत्यंत सुन्दर व
मनमोहक है। अनेक नये चित्रों के साथ ही पुराने चित्रण का पुनरूद्धार भी किया गया।
मुगल शैली व राजपूत शैली के चित्रांकन का व्यापक आलेखन मिलता है। यही नही मुगल
चित्रकला में राजपूती शैली में बीकानेरी, जोधपुरी,
जयपुरी व नागौरी शैली का भी अंकन हुआ है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. डॉ. दशरथ शर्मा - राजस्थान थ्रू
दी एजेज भाग-1 |