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राजस्थान के मरूस्थली क्षेत्र में पर्यटकों के आकर्षण
स्थल एक शोधपरक अध्ययन |
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A Research Study of Tourist Attractions in the Desert Region of Rajasthan | |||||||
Paper Id :
17848 Submission Date :
2023-07-14 Acceptance Date :
2023-07-22 Publication Date :
2023-07-25
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सारांश |
प्रकृति ने पर्यटन
विकास की दृष्टि से मरूस्थली क्षेत्र को विषमता के साथ-साथ विविधता भी प्रदान की
है यहाँ के चमत्कारिक व चित्तकर्षक किलों तथा मंदिरों को देखकर देशी-विदेशी पर्यटक
आज भी चकित रह जाते हैं। यहाँ के भौगोलिक परिदृश्य में वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक
सम्पन्नता विशाल, प्राकृतिक धरोहर, ऐतिहासिक व धार्मिक आकर्षण के दर्शन होते हैं। यह मरूस्थली प्रदेश न
केवल शौर्य, साहस और सौन्दर्य के अद्भुत परिदृश्य के कारण
बल्कि दुर्लभ व अनुपम भित्ति-चित्रों, उच्च शिल्प कला से
विनिर्मित मंदिरों, हवेलियों व मकबरों के सौन्दर्य
वास्तुशिल्प, रंग-बिरंगे मेलों व उत्सवों तथा स्वर्णिम
बालू रेत के स्तूपों के कारण भी देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए स्वाभाविक, आकर्षण व जिज्ञासा का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Nature has provided diversity as well as heterogeneity to the desert region from the point of view of tourism development. Even today, domestic and foreign tourists are amazed to see the miraculous and fascinating forts and temples here. The diverse cultural richness, natural heritage, historical and religious attractions are visible in the geographical landscape here. This desert region has become a natural center of attraction and curiosity for domestic and foreign tourists, not only because of the amazing landscape of bravery, courage and beauty, but also because of the rare and unique mural paintings, the beautiful architecture of temples, havelis and tombs made of high craftsmanship, colorful fairs and festivals and golden sand stupas. |
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मुख्य शब्द | प्राकृतिक धरोहर, चमत्कारिक, भौगोलिक परिदृश्य, वैविध्यपूर्ण, सांस्कृतिक सम्पन्नता, भित्ति चित्र, वास्तुशिल्प, स्तूप। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Natural Heritage, Miraculous, Geographical Landscape, Diverse, Cultural Richness, Mural Paintings, Architecture, Stupa. | ||||||
प्रस्तावना | भारत प्राचीन
सभ्यताओें वाला देश है। यहाँ की सभ्यता एवं संस्कृतिक प्राचीनकाल से ही समृद्ध रही
हैं यहाँ पर धर्मों, वर्गों, जातियों और विभिन्न भाषा बोलने वाले लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। जो
एकता एवं शांति का प्रतिक है। हमारे देश में सारे संसार की झलक देखी जा सकती है
इसलिए शुरू से ही भारत विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। मरूस्थली
क्षेत्र के वीरोचित कार्य, शौर्य गाथाओं, स्थापत्यकला, कारीगरी के बेजोड़ नमूने एवं
अनुकरणीय आदर्शों में सदैव अगुवा रहा है। यहाँ की माटी, शूरवीरों,
धर्मात्मकाओं और दयालु महापुरुषों की गौरव गाथाओं की तरलता
सौंधी-सी गंध लाती है। यहाँ के आस्था और श्रद्धा के मूर्त रूप देवालय के साथ-साथ
अपनी कला से अभिभूत करते हैं। यहाँ के कूप, वापी, तड़ाग और जलाशय पथिक की प्यास बुझाने के साथ-साथ अपनी स्थापत्य कला के
नयनों एवं मनों को भी तृप्त करते हैं। इसी कारण इस मरूस्थली क्षेत्र के पर्यटन
स्थल सदियों से आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. अध्ययन क्षेत्र में विद्यमान
पर्यटन स्थलों का विस्तृत अध्ययन करना एवं उनकी महत्ता को समझना। 2. पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित
समस्याओं व विशेषताओं का विश्लेषण करना एवं उनमें सुधार की योजनाएँ बनाना। 3. केन्द्रीय व राज्य सरकार द्वारा
राज्य में पर्यटन स्थलों के विकास हेतु किये गये प्रयासों एवं उनकी पर्याप्तता का
विश्लेषण करना। 4. राजस्थान के मरूस्थली क्षेत्र
में पर्यटन स्थलों के विकास हेतु उपयोगी प्रभावपूर्ण एवं आदर्श प्रतिमान का
निर्माण करना व स्थानीय कलाकृतियों हस्तशिल्प की वस्तुओं आदि के विक्रय एवं
पर्यटकों की खरीद में रूचि की जानकारी प्राप्त करना। |
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साहित्यावलोकन | चटर्जी (1987) ने जैसलमेर पर्यटन पर प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में जैसलमेर जिले में पर्यटन निर्वाह क्षमता का आकलन प्रस्तुत किया। उन्होने अपने निष्कर्ष में बताया कि जिले का संतुलित व टिकाऊ विकास के आधार के रूप में पर्यटन उद्योग का विकास किया जाना चाहिए। जिले की पर्यटन उद्योग क्षमताओं का उन्होने मौद्रिक मूल्य
के रूप में आकलन किया और इसके लिए आधारभूत ढ़ांचा विकास की महत्ती आवश्यकता पर बल
दिया। एम.एल.शर्मा व एच.एस. शर्मा (1992) ने राजस्थान में पर्यटन के भौगोलिक आधारों का विश्लेषण किया। व्यास, राजेश कुमार (2011) पर्यटन उद्भव एवं विकास में राजस्थान में पर्यटन की सम्भावनाओं एवं नियोजन पर
नवीन दृष्टिकोण से प्रकाश डाला तथा भविष्य में पर्यटन से रोजगार के अवसर तथा
पर्यटन को उद्योग के रूप में विकसित किया जा रहा है। लक्ष्मीनारायण नाथूरामका (2012-13) राजस्थान की अर्थव्यवस्था में आर्थिक दृष्टि से
महत्त्वपूर्ण है तथा पर्यटन स्थलों के संरक्षण, पर्यटकों की सुरक्षा की व्यवस्था करना जरूरी है, क्योंकि पर्यटको को अच्छी सुविधा उपलब्ध करवाने से ग्रामीण अचंलों में उपलब्ध
प्राकृतिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं
संवर्द्धन पर बल देकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन किया जा
सकता है। मनोहर, राघवेन्द्र सिंह (2011) राजस्थान के प्रमुख दुर्ग नामक पुस्तक में राजस्थान के प्रमुख किलों व महलों का अनूठा स्थापत्य, अद्भुत शिल्प और सौन्दर्य, भव्य राजप्रसादों के कलात्मक वैभव और उनमें विद्यमान पुरा सम्पदा, त्याग और बलिदान आदि को पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बताया। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन क्षेत्र अध्ययन क्षेत्र के लिए राजस्थान के पश्चिमी रेतीले शुष्क मरूस्थली क्षेत्र लिया है। इसका विस्तार 2441’ उत्तरी से 3005’ उत्तरी अक्षांश और 69030’ पूर्वी से 70045’ पूर्वी देशान्तर के मध्य है। क्षेत्र का सम्पूर्ण क्षेत्रफल लगभग 108196.49 वर्ग किलोमीटर है, जो सम्पूर्ण राजस्थान का लगभग 31.61 प्रतिशत क्षेत्र सम्मिलित करता है । अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत शुष्क मरूस्थल के बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर व जोधपुर जिलों की 21 तहसीलों को सम्मिलित करते हुए अध्ययन किया है। इसके उत्तर में गंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की सीमा, पश्चिम में पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा, दक्षिण में गुजरात राज्य व पूर्व में जालौर, जोधपुर, नागौर एवं चुरू जिले की सीमाएँ हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 66.67 लाख व्यक्ति हैं। जनसंख्या घनत्व 62 व्यक्ति प्रति
वर्ग किलोमीटर है। इस क्षेत्र में उष्ण मरूस्थलीय जलवायु की दशायें पाई जाती हैं
जो अधिक शुष्क और कठोर है। गर्मी में यहाँ अधिकांशतः 40 डिग्री
सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान होता है, जो 50 डिग्री सेन्टीग्रेड तक पहुँच जाता है। जबकि शीत ऋतु में औसत तापमान 12
डिग्री सेन्टीग्रेड से 16 डिग्री सेन्टीग्रेड
रहता है। तापान्तर अत्यधिक 35 डिग्री सेन्टीग्रेड से 45
डिग्री सेन्टीग्रेड तक रहता है। जो कभी-कभी शून्य डिग्री तक पहुँच
जाता है। इस क्षेत्र में वर्षा का वार्षिक औसत 300 मिमी से
कम रहता है। मरूस्थली क्षेत्र में जिप्सम, लिग्नाइट, लाइम स्टोन, मुलतानी मिट्टी, तापसह
मिट्टिया आदि खनिज पाये जाते है। क्षेत्र के बाड़मेर जिले में मंगला, ऐश्वर्या, रागेश्वरी, भाग्यम्,
शक्ति आदि क्षेत्रो में तेल का विशाल भण्डार उपलब्ध है। मरूस्थली
क्षेत्र की वनस्पति को ऊष्ण कटिबन्धीय कांटेदार वन क्षेत्र में सम्मिलित किया जा
सकता है। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले फूलवाले पौधों में छोटी कांटेदार झाड़ियां
तथा जंगली घासे है, जो वर्षा के पश्चात् कुछ महीनों से अधिक
जीवित नहीं रह पाती है। मरूस्थली क्षेत्र के पर्यटक स्थल मरूस्थली क्षेत्र के पर्यटक स्थलों को प्राकृतिक, ऐतिहासिक,
धार्मिक एवं सांस्कृतिक भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। प्राकृतिक पर्यटक स्थल 1. सम रेत टिब्बा-जैसलमेर शहर से 42 किमी
की दूरी पर सम का रेत का टीला है। पर्यटक रेत के टीलों में शिविर, नित्य सूर्यास्त के समय ऊँट सवारी, लोक नृत्य का
कार्यक्रम होता है। जनवरी-फरवरी में मरू महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें
कठपूतली शो लोक नृत्य, ऊँट दौड़ व कई सांस्कृतिक कार्यक्रम
किये जाते हैं। 2. वुड फॉसिल्स पार्क ‘आकल’-जैसलमेर से 17 किमी. पूर्व में वुड फॉसिल्स पार्क
स्थित है। यहाँ 16 करोड़ वर्ष पुराने ‘वुड
फॉसिल्स’ है। यहाँ सबसे बड़ा वुड फॉसिल्स 7 मीटर लम्बा और 1.5 मीटर चौड़ा है। वुड फॉसिल्स पार्क
आंकल में आने वाले स्वदेशी व विदेशी पर्यटकों की संख्या वर्ष 2014 में 13096 के करीब थी। जिनसे 0.99 लाख रुपये की आय हुई। 3. राष्ट्रीय मरू उद्यान-जैसलमेर और बाड़मेर का 3162 किमी. का क्षेत्र राष्ट्रीय मरू उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया हैं
यह उद्यान जलवायु विषमताओं से प्रभावित हरता है। पारिस्थितिकी दृष्टि से यह अभ्यारण्य कंटिले वन का प्रतिक है। यहाँ पेड़-पौधों व जीवों की
प्रजातियों में विभिन्नता पाई जाती है। यहाँ गोडावण पक्षी का अभ्यारण्य आश्रय स्थल
है। 4. घड़सीसर झील-सोनारगढ़ से 2 किमी. पूर्व
में 1156 ई. में महारावल जैयशाल द्वारा निर्मित है। ईस्वी 1361
में महारावल घड़सी द्वारा जीर्णोद्वार करवाने पर इसका नाम घड़सीसर झील
पड़ा सरोवर के किनारे व मध्य में महल छतरियाँ स्थित है। 5. प्राकृतिक पक्षी विहार खींचन-जोधपुर के फलौदी से 5 किमी. दूर स्थित हैं खींचन में यूरोप के पश्चिम भू-भाग से डिमोसाइल केन
जिन्हें भारत में कुरंजा, करकरा, कूंच,
खिंचन गांव में प्रवास करते थे। ऐतिहासिक पर्यटन स्थल- जैसलमेर का किला (सोनारगढ़)- रावल जैसल द्वारा 1156 ई. में निर्मित यह किला सोनारगढ़ या
सोनागढ़ कहलाता है। यह पिले पत्थरों से निर्मित है। किले का निर्माण 250 फीट ऊँची पहाड़ी पर किया गया है। यह दुर्ग त्रिकूटाकृति का है जिसमें 99
बुर्ज हैं। इसे स्थानीय गहरे पीले रंग के पत्थरों को बिना चूने की
सहायता से आश्चर्य ढंग से जोड़कर बनाया गया है जो पर्यटकों को बरबस आकर्षित करता
है। जूनागढ़ का किला- इस किले का निर्माण महाराजा रायसिंह (74-1612) ई.
में करवाया। जूनागढ़ ‘धान्वन दुर्ग’ की
श्रेणी का है जो चतुर्भुजाकृति में 1078 गज की परिधि में
फैला है। इसमें 37 बुर्जे जो 40 फीट
ऊँची हैं तथा किले के चारों ओर 20-25 फीट कहरी खाई है।
पूर्वी दरवाजा कर्णपोल व पश्चिमी दरवाजा चांदपोल कहलाता है। किले में पाँच आंतरिक
द्वार हैं। सूरजपोल पर रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण हैं। बीकानेर का किला इतिहास,
कला और संस्कृति की बहुमूल्य धरोहर हैं। सिवाणा का किला- मारवाड़ में इस किले का निर्माण वीरनारायण पंवार ने दसवीं
शताब्दी में करवाया था। यह एक पर्वतीय दुर्ग है। वीरता और शौर्य की अनेक घटनाओं का
साक्षी सिवाणा किला आज भी शान से खड़ा है। इसके भवनों व दीवारों पर अनूठी
कलाकृतियाँ है। यहाँ यह पर्यटकों को अपनी भव्यता व इतिहास से आकर्षित करता है। पटवों की हवेली- जैसलमेर किले के नीचे प्राचीन शहर के अन्दर स्थित हैं यह हवेली
अपनी शिल्पकला, विशालता एवं अद्भुत नक्काशी के कारण प्रसिद्ध है। इसके प्रथम
मंजील पर जहाज के आकार के गवाक्ष, दूसरी मंजिल पर आयताकार
आधार एवं मेहराबदार छज्जे तथा ऊपरी मंजील पर स्वतंत्र एवं आकार के जाली-झरोखें
बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इस विशाल व पीले पाषाण की बारीक कुराई से
युक्त कलात्मक हवेली का निर्माण 18वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध
में पटवा गुमानमल बाफना ने आवासीय प्रयोजन के लिए करवाया था। जैतसर एवं बड़ा बाग- जैसलमेर से 5 किमी. दूर जैतसिंह द्वारा बनवाया गया बांध
है। यह बांध 1200 फुट लम्बा, 300 फुट
चौड़ा तथा 100 से 150 फुट ऊँचा है। इसके
निर्माण पश्चात् महारावलों के मृत्युपरांत अग्नि संस्कार इसी स्थान पर लिये जाते
हैं। बड़ा बाग खूबसूरत शाही स्मारक व आधुनिक पवन चक्कियों से घिरा है। जवाहर विलास- जैसलमेर के महारावलों के निवास हेतु बने जवाहर विलास 20वीं
शताब्दी की अद्भुत कलाकृतियों में से एक है। यह अमरसर पोल के बाहर सम रोड़ पर स्थित
है, इसको मुस्लिम सिलावटों ने तराशा था। नक्काशी जवाहर विलास
में झरोखों तथा छतरियों के साथ ही दीवारों पर की गई नक्काशी बहुत ही लुभावनी है।
इसका निर्माण 20वीं शताब्दी में महारावल जवाहरसिंह ने कराया
था। वर्तमान में यह विरासत हेरिटेज होटल के रूप में स्थित है। गजनेर पैलेस- बीकानेर से लगभग 30 किमी. दक्षिण-पश्चिम में गजनेर महल स्थित
हैं यह महाराजा गजसिंह के समय आबाद हुआ था और बीकानेर राज्य के प्रसिद्ध तालाब को
विषैला माना जाता है। इसके पास महाराजा के भव्य महल, डूंगर
विलास, लाल निवास, शक्त निवास, गुलाब निवास व सरदार निवास। लालगढ़ पैलेस- महाराजा गंगासिंह द्वारा अपने पिता लालसिंह की याद में निर्मित
वास्तुशिल्प में बेजोड़ महल है। यह लालगढ़, दुलमेरा के लाल पत्थरों से बना हुआ है तथा
यहाँ का संग्रहालय भी अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। सार्दुल संग्रहालय में प्राचीन
हस्तशिल्प ग्रन्थ डोलियाँ और ऐतिहासिक वस्तुओं का अद्भुत संग्रह है। धार्मिक पर्यटक स्थल- मरूस्थली क्षेत्र के इतिहास केवल तिथि क्रम से ही जुड़ा
हुआ नहीं है वरन् उसका सम्बन्ध उन मान्यताओं, परम्पराओं, विचारों
से भी है जिनमें संस्कृति और समाज के गहरे सांस्कृतिक सरोकार है। लक्ष्मीनाथ मंदिर- भगवान विष्णु का यह मंदिर 1437 ई. में महारावल वेरिसिंह के शासनकाल में
बनवाया गया। मंदिर का निर्माण प्रतिहार कालिन शैली से बना है। भगवान लक्ष्मीनाथ
मारवाड़ी सेठ के रूप में विराजमान है। केसरिया पाग और रक्तवर्णी बागा धारण कर तथा
वामन भाग में विश्व की सबसे बड़ी सेठानी देवी लक्ष्मी को साथ लेकर भगवान गरूड़ की
पीठ पर आसीन है। बाबा रामदेव जी का मंदिर- जैसलमेर जिले के पोकरण कस्बे के उत्तर दिशा में 12 किमी दूरी
पर स्थित रामदेवरा गांव है। यहाँ बाबा रामदेव की समाधि है। वर्ष 1931 में बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने समाधि के चारों और एक मंदिर बनवाया
रामदेवरा के समीप एक तालाब है जिसे स्वयं बाबा रामदेव ने बनवाया था। हिन्दू व
मुसलमान दोनों समुदाय के लोग रामदेवजी की समाधि पर रंग-बिरंगी पताकाएँ एवं कपड़े के
घोड़े चढ़ाते हैं। मुस्लिम इन्हें रामशाह पीर व हिन्दू इन्हें भगवान कृष्ण के अवतार
मानते हैं। लोद्रवा जैन मंदिर- जैसलमेर में 16 किमी दूर जैसलमेर की प्राचीन राजधानी
लोद्रवा स्थित है। क्षेत्र से प्राप्त ब्राह्मी लिपि के लेख के अनुसार यह स्थान
रूद्र क्षेत्र कहलाता था। वर्तमान में यहाँ से कुछ दूरी पर भगवान शिव का भूतेश्वर
मंदिर व वैशाली क्षेत्र विख्यात है। मान्यता के अनुसार यह क्षेत्र सरस्वती नदी के
किनारे स्थित था। लोद्रवा में श्वेताम्बर जैनियों का पर्श्वनाथ मंदिर दर्शनीय है। श्री रणछोड़राय तीर्थ (खेड़)- इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1230 में हुआ
था। मंदिर परकोटे से घीरा हुआ है जिसकी लम्बाई 79 मीअर व
चौड़ाई 100 मिटर है। मुख्य मंदिर 20×16 मीटर
क्षेत्र में बना हुआ है। गर्भगृह में रणछोड़जी की चतुर्भुज मूर्ति स्थापित है।
मंदिर में बड़ी संख्या में देव मूर्तियाँ, प्राचीन लेख
उत्कीर्ण है। यहाँ प्रतिवर्ष राधाष्टमी, माद्यमाह की
पूर्णिमा, वैशाख माह की पूर्णिमा को भव्य मेलों का आयोजन
होता है। श्री नाकोड़ा जैन मंदिर तीर्थ- बालोतरा जंक्शन से 9 किमी दूर
पश्चिम दिशा में जैन मतावलम्बियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान नाकोड़ा है जिसे मेवा
नगर के नाम से भी जाना जाता है। इस तीर्थ में मुख्यतः तीन जिनालय है। यहा दूर
पश्चिम दिशा में जैन मतावलम्बियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान नाकोड़ा है जिसे मेवा
नगर के नाम से भी जाना जाता है। इस तीर्थ में मुख्यतः तीन जिनालय है। यहाँ श्री
भैरव देव की कृपा प्राप्ति के लिए जैन मतावलम्बियों के साथ-साथ लाखों वैष्णव भी
प्रतिवर्ष यात्रा करते हैं। मूल मंदिर के पश्चिम में भगवान आदिनाथ का मंदिर है जो
स्थापत्य कला वैभव का बेजोड़ उदाहरण है। तीर्थ क्षेत्र में विक्रम संवत 1500
से लेकर 2062 तक लोने वाली विभिन्न
प्रतिष्ठाओं में प्रतिष्ठीत की गई प्रतिमाएँ विद्यमान हैं। इस प्रकार नाकोड़ा तीर्थ
अनेक धर्मों का संगम स्थल है। श्री सच्चियाय माता मंदिर- जैन ग्रंथों में ओसियां का पुरान नाम ‘उपकेरा
पट्टन’ प्राप्त होता है। संभवतः यह पतन सरस्वती नदी के तट पर
स्थित था। यहाँ स्थित प्राचीन नगर के खण्डहरों में 12 मंदिर
प्राप्त हुए हैं। इन मंदिरों में स्थित सच्चियाय माता का मंदिर हिन्दुओं और
ओसवालों में समान रूप से पूजित हैं। मारवाड़ के लोग इस मंदिर के दर्शनों के लिए
यहाँ आते हैं। प्रवासी ओसवाल महाजन इस मंदिर को बहुत ज्यादा मान्यता देते हैं और
विवाह के बाद इस मंदिर में आकर संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। ओसिया के अन्य
मंदिरों में हरिहर मंदिर की स्थापत्य कला अद्भुत है जिनमें भगवान विष्णु व नवग्रह
अंकन है। यहाँ स्थित सूर्य मंदिर 10वीं शताब्दी में निर्मित
है जो कोर्णाक मंदिर के समान भव्य है।
भगवान महावीर मंदिर- यह मंदिर 8वीं सदी में बना है। यहाँ वि.सं. 1252
में तुर्की सेना ने आक्रमण कर यहाँ के मंदिरों को तोड़ दिया और
लूटपाल की, लूटपाट की बढ़ती घटनाओं के फलस्वरूप यहाँ के ओसवाल
श्रेष्ठि ओसिया छोड़कर अन्य स्थलों को जाने लगे। अब भी वर्षा के दिनों में मिट्टी
से सने प्राचीन सिक्के मिलते हैं। जिन पर गर्दभ अंकित है। जन श्रुति के अनुसार यह
नगर बाहर योजन लम्बा और नौ योजन चौड़ा था जिस पर गर्दमिल नामक राजा राज्य करता था
ये सिक्के उसी राजा के हैं। |
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निष्कर्ष |
प्रस्तुत शोध पत्र
में प्रमुख पर्यटन स्थलों का प्राकृतिक, ऐतिहासिक
व धार्मिक एवं सांस्कृतिक भागों में वर्गीकरण करके विश्लेषणात्मक विवेचन किया गया
है। उपर्युक्त तथ्यों के वर्णन से निष्कर्ष निकलता है कि मरूस्थली क्षेत्र में
पर्यटकों के आकर्षण के लिए अनेक स्थल एवं भू-दृश्य उपलब्ध हैं। यह क्षेत्र
प्राकृतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक
एवं कला की अनूठी कृतियों से भरा हुआ है जिसे देखकर कोई भी पर्यटक भाव-विभोर हो
सकता है। अगर आवश्यकता है तो इन अनूठी कृतियों को सम्भालकर रखना तथा इनके बारे में
देश विदेश में प्रचार करना जिससे विश्व मानचित्र पर यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट पहचान
से पर्यटकों को आकर्षित कर सके। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. अग्रवाल, अनिता (1990), ”राजस्थान में पर्यटन योजना“,
नई दिल्ली। |