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चीन केंद्रित भारत की सामुद्रिक चुनौतियाँ रणनीति एवं तैयारियाँ | |||||||
China-centric Indias Maritime Challenges Strategy and Preparations | |||||||
Paper Id :
18037 Submission Date :
2023-08-12 Acceptance Date :
2023-08-21 Publication Date :
2023-08-25
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सारांश |
प्रस्तुत शोध पत्र
में चीन द्वारा हिन्द महासागर में प्रयोग में लाई जा रही विभिन्न चुनौतियों का
वर्णन किया गया है तथा भारत द्वारा उसके प्रतिकार के लिए की जाने वाली तैयारियों व
रणनीतियों को भी दर्शाया गया है, जिसमें
मुख्य रुप से चीन की मोतियों की माला रणनीति, बेल्ट एंड
रोड इनीशिएटिव तथा ऋण जाल कूटनीति के माध्यम से भारत की
सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का विस्तृत विवरण दिया गया है और भारत के द्वारा हीरो
के हार की परियोजना तथा क्वाड और अन्य प्रयासों का भी वर्णन किया गया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The research paper presented describes the various challenges being used by China in the Indian Ocean and also shows the preparations and strategies made by India to counter them, mainly China's string of pearls strategy, The impact on India's security through the Belt and Road Initiative, and debt trap diplomacy is detailed and India's Project Diamond's Necklace and the Quad and other efforts are also described. | ||||||
मुख्य शब्द | भारत, चीन, मोतियों की माला रणनीति, बेल्ट एण्ड रोड इनीशिएटिव, ऋण जाल कूटनीति, क्वाड, हीरो की हार परियोजना। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | India, China, String of Pearl Strategy, Belt and Road Initiative, Debt Trap Diplomacy, Quad, Project Heros Necklace | ||||||
प्रस्तावना | प्रायद्वीपीय भारत
का इतिहास प्राचीन काल से ही हिन्द महासागर से प्रभावित होता रहा है क्योंकि तीन
ओर से घिरे होने के कारण अपने समुद्री व्यापार हेतु वह इसी महासागर पर निर्भर
है। प्राचीन काल से ही भारत ने चीन और पश्चिम में भूमध्यसागरीय देशों को जोड़कर
वाणिज्य व सांस्कृतिक आदान -प्रदान करने की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता रहा
है। छठी शताब्दी तक मौर्य और आंध्र राजवंशों ने अपना सामुद्रिक एकाधिकार स्थापित
कर मलाया, सुमात्रा तथा जावा आदि क्षेत्रों
के अतिरिक्त प्रशांत महासागर के कुछ क्षेत्रों में अपने उपनिवेश स्थापित कर
संपूर्ण हिन्द महासागर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बनाए रखा। सन 1803 ई.वी. में ट्रफाल्गर की निर्णायक लड़ाई में ब्रिटेन ने फ्रांसीसी को
पराजित कर संपूर्ण हिन्द महासागर पर नियंत्रण कर इसे ब्रिटिश झील के रूप में
परिवर्तित कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ब्रिटेन द्वारा मलाया छोड़कर
संपूर्ण एशिया से अपनी शक्ति समेट लेने के परिणामस्वरूप जो रिक्तता उत्पन्न हुई
उसकी पूर्ति भारत, श्रीलंका व पाकिस्तान जैसे नवोदित
राष्ट्र द्वारा न कर पाने के कारण यहां अमेरिका व सोवियत संघ रूस जैसी महा
शक्तियों को प्रवेश करने का अवसर प्राप्त हुआ। जिससे इस संपूर्ण क्षेत्र की शांति,
सुरक्षा व स्थिरता के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोध पत्र
में चीन केंद्रित भारत की सामुद्रिक चुनौतियों एवं रणनीतियों का अध्ययन करने के
लिए इस क्षेत्र में चीनी नौसेना की गतिविधियों तथा इस क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाने
के लिए चीन द्वारा अपनायी जा रही विभिन्न कूटनीतिक चालों का अध्ययन किया गया है।
जिससे संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र के साथ-साथ भारत की सुरक्षा व संप्रभुता पर
पड़ने वाले दुष्प्रभावों का आंकलन करने का भी प्रयास किया गया है। इसके साथ ही साथ
चीन द्वारा किए जा रहे कुप्रयासों से क्षेत्र में उत्पन्न विभिन्न चुनौतियों से
निपटने के लिए भारत द्वारा किए जा रहे प्रयासों को भी सम्मिलित किया गया है। इसके
साथ ही इस क्षेत्र में भविष्य में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने के भारत
को किस तरह प्रयास करने की आवश्यकता है इसका भी अनुमापन करने का प्रयास किया गया
है।इसके साथ ही साथ भारत चीन सीमा क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं पर इन कारकों का
क्या प्रभाव है तथा भविष्य में इन समस्याओं से निपटने के प्रयासों का भी अध्ययन
करने का प्रयास किया गया है। |
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साहित्यावलोकन | हिन्द महासागर क्षेत्र में 45 तथा 6 द्वीपीय राष्ट्र आते हैं। किसी न किसी रूप से जिनके भू-राजनीति, अर्थव्यवस्था, व्यापार, विदेश नीति एवं सामुद्रिक नीतियों के निर्धारण में हिन्द महासागर एक प्रभावी तत्व रहा है। भारतीय समुद्र तट की लंबाई लगभग 7516.6 किलोमीटर है। इसमें से भारत की मुख्य भूमि का तटीय विस्तार 6100 किलोमीटर तथा अंडमान निकोबारद्वीप एवं लक्षद्वीप का संयुक्त तटीय विस्तार 1962 किलोमीटर है। भारत के पास कुल 1197 द्वीप है। भारतीय तटीय सीमा पर 13 बड़े 20 मध्यम तथा 200 छोटे आकार के बंदरगाह स्थित है। 21 वीं शताब्दी में परिवर्तित हो रहे भू- रणनीतिक व राजनीतिक आयाम पहले की तुलना में अत्यंत जटिल हो गए हैं तथा भू-अर्थशास्त्र की बढ़ती उपादेयता ने आर्थिक हितों के संरक्षण व विकास की दृष्टि से भारत हिन्द महासागर पर ही निर्भर है। आज भारत ऊर्जा उपभोक्ता के रूप में विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश है और भारत की ऊर्जा आवश्यकता का लगभग 70 की आपूर्ति हिन्द महासागर के माध्यम से होती है। हिन्द महासागर क्षेत्र में बढ़ रही आतंकवाद, समुद्री डकैती अवैध मादक द्रव्य और छोटे अस्त्रों के तस्करी के साथ-साथ मानव तस्करी जैसी घटनाएँ निरंतर बढ़ रही हैं तथा हिन्द महासागर में बढ़ रहे शक्ति स्पर्धा ने इस क्षेत्र की राजनीति को बहुत प्रभावित किया है। इन सभी तथ्यों पर ध्यान रखते हुए भारत निरंतर इस क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए प्रयासरत रहा है। भारत अपनी ऊर्जा, व्यापार और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहा है परन्तु पिछले कुछ दशकों से चीन इस क्षेत्र में अपनी गतिविधि काफी तेज की हैजिससे भारतीय सुरक्षा के समक्ष नवीन चुनौतियों का उदय हुआ है जिसमें चीन द्वारा संचालित की जा रही मोतियों की माला रणनीति, वन बेल्ट वन रोड या मैरिटाइम सिल्क रोड या बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव, ऋण जाल कूटनीति आदि ने भारत की के समक्ष नवीन चुनौतियाँ उत्पन्न की है। चीन इन रणनीतियों के माध्यम से अपनी ऊर्जा आवश्यकता को सुरक्षित करने तथा भारत को चारों तरफ से घेरने तथा हिन्द महासागर में अपने प्रभुत्व को स्थापित करने और अपनी मलक्का दुविधा को कम करने का प्रयास कर रहा है। चीन केंद्रित भारत की सामुद्रीक चुनौतियाँ “सिंट्रग ऑफ़ पर्ल्स“ 2004 में, यूएस कंसलिंटग फर्म बूज़ एलन हैमिल्टन ने “सिंट्रग ऑफ़ पर्ल्स“ परिकल्पना को प्रस्तुत किया। जिसका कहना था कि चीन हिन्द महासागर की परिधि के साथ नागरिक समुद्री बुनियादी ढांचे का निर्माण करके अपनी नौसैनिक उपस्थिति का विस्तार करने का प्रयास करेगा।[3] भू-राजनीतिक अवधारणा के रूप में इस शब्द का प्रयोग पहली बार 2005 में एक आंतरिक अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट, “एशिया में ऊर्जा भविष्य“ में किया गया था।[4] इस रिपोर्ट में यह तर्क दिया गया कि चीन अपने समुद्री मार्गों की रक्षा के लिए बंदरगाहों का एक नेटवर्क बना रहा है जिसके रास्ते से उसका अधिकांश तेल आयातविशेष रूप से मलक्का और होर्मुज जलडमरूमध्य से होता है। चीन अपने आयातित तेल का लगभग 80 मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से प्राप्त करता है। हिन्द महासागरीय क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को सुदृढ़ व प्रभावशाली बनाने का ही परिणाम है कि चीन ने अपनी "String of Pearls"[5] की नीति के अंतर्गत पाकिस्तान (ग्वादर), श्रीलंका (हम्बनटोटा), बांग्लादेश (चटगांव), म्यांमार में (Sittive, Coco Island, Hianggi, Kyaukpyn, Mergui and Zaddetkyi) थाईलैंड में Laem Chabang तथा कंबोडिया में Sihanoukville में सामुद्रिक व सैन्य सुविधाएं अर्जित करके अपनी सामुद्रिक सेना हेतु ’अग्रिम संक्रियात्मक आधार’ F.O.B.(Forward Operating Bases)[6] स्थापित कर लिया है। 2014 की बूज़ हैमिल्टन रिपोर्ट में यह बताया गया कि चीन किस प्रकार से हिन्द महासागर के तटीय देशों में बंदरगाहों रडार स्टेशनों आदि विभिन्न परियोजनाओं में निवेश कर रहा है। उल्लेखनीय है कि चीन लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि उसका निवेश विशुद्ध रूप से वाणिज्यिक है परंतु चीन की विस्तार वादी नीति को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। पाकिस्तान (ग्वादर) यह चीन की मोतियों की माला का एक प्रथम मोती है इस बंदरगाह से चीन को कई महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ प्राप्त होते हैं जैसे कि- यह एक संभावित चीनी नौसेना एंकर के रूप में कार्य कर सकता है। यह ग्वादर से शिनजियांग को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के माध्यम से पश्चिमी क्षेत्र में तेल ले जाने के लिए ऊर्जा परिवहन केंद्र के रूप में कार्य करता है। यह युद्ध की स्थिति में चीनी आयात को हस्तक्षेप से बचाने में मदद कर सकता है। शंघाई बंदरगाह चीनी औद्योगिक क्षेत्रों से लगभग 16000 किलोमीटर दूर है, जबकि ग्वादर से चीन मात्र 2500 किलोमीटर दूर है। यह अमेरिका, भारत और उनके समुद्री सहयोग की निगरानी के लिए एक लिसनिंग पोस्ट प्रदान करता है तथा यहाँ से चीन भारत के पश्चिमी तटीय क्षेत्र की निगरानी करता है। श्रीलंका (हंबनटोटा) हंबनटोटा श्रीलंका के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है और 2007 में हुए समझौते में एक कंटेनर बंदरगाह, एक ईंधन भरने की प्रणाली, एक रिफाइनरी और हंबनटोटा में एक हवाई अड्डे का विकास शामिल था। जिसके लिए चीन द्वारा 1 बिलियन अमरीकी डालर के खर्च में से 85 वित्त पोषित किया गया था। पोर्ट ऑफ कॉल के रूप में नौसेना के लिए इस मोती का महत्व है। इस बंदरगाह का उपयोग भारत के परमाणु, अंतरिक्ष और नौसैनिक सैनिक स्थलों की निगरानी करने के साथ-साथ ईंधन भरने के लिए भी किया जा सकता है। बांग्लादेश (चटगांव) चटगांव बांग्लादेश का एक प्रमुख बंदरगाह है जिसमें चीन एक कंटेनर बंदरगाह सुविधा विकसित कर रहा है। म्यांमार (सितवे) समुद्री गेटवे के रूप में सितवे बंदरगाह का उपयोग करना और इसके साथ म्यांमार के पश्चिमी अराकान राज्य से युन्नान तक गैस पाइपलाइन का उपयोग चीन द्वारा किया जाता है।1992 में म्यांमार ने चीन को कोको द्वीपों के उपयोग की अनुमति दी तथा अपनी नौसैनिक सुविधाओं में सुधार करने के लिए समझौता किया। चीन ने गहरे पानी के बन्दरगाह क्यौकप्यू का निर्माण किया। 2013 से, मध्य पूर्व और अफ्रीका के चीनी तेल टैंकर म्यांमार के सितवे और चीन द्वारा निर्मित क्युकफ्यू बंदरगाह पर बंगाल की खाड़ी को पार करने में सक्षम थे, जहां से कार्गो को पाइपलाइनों के माध्यम से युन्नान तक पहुँचाया जाएगा। कोको द्वीप समूह चीन के लिए इस ‘मोती’ की सामरिक रूप से काफी महत्व है क्योंकि यहां से श्रीहरिकोटा में इसरो और चांदीपुर में डीआरडीओ के प्रक्षेपण स्थल पर भारतीय नौसैनिक गतिविधि और गतिविधियों की आसानी से निगरानी की जा सकती है।बंगाल की खाड़ी और मलक्का जलडमरूमध्य के बीच अन्य नौसेनाओं की आसानी से निगरानी की जा सकती है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जिसे पहले वन बेल्ट वन रोड OBOR के रूप में जाना जाता था।[7] 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा इसका सूत्रपात हुआ जिसमें लगभग 150 देशों और कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने अपनी सहमति जताई।[8] इसे चीनी नेता शी जिनपिंग की विदेश नीति का एक केंद्रबिंदु माना जाता है।[9] बी.आर.आई. शी जिंगपींग की “मेजर कंट्री डिप्लोमेसी“ का एक केंद्रीय घटक है जो चीन को अपनी बढ़ती शक्ति और स्थिति के अनुसार वैश्विक मामलों के लिए एक बड़ी नेतृत्व भूमिका निभाने का आह्वान करती है।[10] चीन ने 149 देशों[11] और 30 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को BRI में शामिल किया है।[12] बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में बंदरगाह, रेलवे, राजमार्ग, बिजली स्टेशन, विमानन और दूरसंचार शामिल हैं।[13] बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव [14] में शामिल सभी गलियारे निम्न हैं- 1. न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज जो कजाकिस्तान के माध्यम से पश्चिमी चीन से पश्चिमी रूस तक चलता है और इसमें चीन के झिंजियांग स्वायत्त क्षेत्र, कजाकिस्तान, रूस, बेलारूस, पोलैंड और जर्मनी के माध्यम से सिल्क रोड रेलवे शामिल है। 2. चीन, मंगोलिया, रूसी आर्थिक गलियारा-उत्तरी चीन से मंगोलिया के माध्यम से रूस के सुदूर पूर्व तक चलेगा। रूस की सरकार द्वारा स्थापित रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष और चीन की चीन निवेश निगम, एक चीनी सरकार की निवेश एजेंसी, ने रूस-चीन निवेश कोष बनाने के लिए 2012 में भागीदारी की, जो द्विपक्षीय एकीकरण में अवसरों पर ध्यान केंद्रित करता है।[15] 3. चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया गलियारा- जो पश्चिमी चीन से तुर्की तक जायेगा । 4. चीन-इण्डो-चाइना प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा- जो दक्षिणी चीन से सिंगापुर तक चलेगा । 5. ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क- जो नेपाल को लैंडलॉक से सी -लिंक्ड देश में बदल देगा । 6. चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी)- जिसे “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से निकटता से संबंधित“ के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है।[16] 62 बिलियन यू.एस. डॉलर की लागत से पूरे पाकिस्तान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का विकास किया जाएगा।[17] जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के परिवहन नेटवर्क, ऊर्जा बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को तेजी से आधुनिक बनाना है।[18] 13 नवम्बर 2016 को, सीपीईसी आंशिक रूप से चालू हो गया जब चीनी कार्गो को अफ्रीका और पश्चिम एशिया के लिए आगे समुद्री शिपमेंट के लिए ग्वादर पोर्ट के लिए ओवरलैंड ले जाया गया।[19] ऋण जाल कूटनीति- ऋण जाल कूटनीति शब्द का प्रथम प्रयोग 2017 में ब्रह्म चेलानी द्वारा किया गया, जिसका वर्णन उन्होंने चीन की शिकारी उधार प्रथाओं को व्यक्त करने के लिए किया था। चीन द्वारा गरीब देशों को अस्थिर ऋण से अभिभूत किया जाता है कर्ज ना दे पाने के कारण रणनीतिक लाभ देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।[20] चेलानी के अनुसार, “यह स्पष्ट रूप से चीन की भू-रणनीतिक दृष्टि का हिस्सा है। इस तरह के ऋण देने के समझौते में ऋण की शर्तों को अक्सर प्रचारित नहीं किया जाता है।[21] हंबनटोटा अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह और मटला राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के लिए चीन के एक्ज़िम बैंक द्वारा श्रीलंका को दिए गए ऋण ऋण-जाल कूटनीति के उदाहरण हैं। श्रीलंका के असंगा अबेयगूनसेकरा ने श्रीलंका में चीनी ’रणनीतिक जाल’ की चेतावनी दी।[22] रणनीतिक-ट्रैप डिप्लोमेसी टर्म असंगा अबेयगूनसेकरा द्वारा गढ़ा गया था और वॉइस ऑफ अमेरिका के साथ एक साक्षात्कार में श्रीलंका में चीनी डेप्ट-ट्रैप डिप्लोमेसी का आकलन करते हुए 16 सितंबर 2021 को शुरू में प्रकाशित किया गया था।[23] भारतीय कमेंटेटर एस.के. चटर्जी कर्ज के जाल को चीन की सलामी स्लाइस रणनीति का आर्थिक आयाम मानते हैं।[24] चटर्जी के अनुसार, चीन की संप्रभुता काटने की रणनीति मुख्य रूप से ऋण जाल का उपयोग करके लक्षित राष्ट्रों की संप्रभुता को कमजोर करती है। चीन के लिए सबसे अधिक बाहरी ऋण वाले पाकिस्तान (77.3 बिलियन डॉलर), अंगोला (36.3 बिलियन डॉलर), इथियोपिया (7.9 बिलियन डॉलर), केन्या (7.4 बिलियन डॉलर), श्रीलंका (6.8 बिलियन डॉलर) और मालदीव का कर्ज उसकी सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का 31 प्रतिशत है। फोर्ब्स ने विश्व बैंक की 2020 की रिपोर्ट से डेटा एकत्र करते हुए कहा कि दुनिया भर के 97 देश चीनी कर्ज के नीचे हैं।[25] उपर्युक्त सभी रणनीतियों का अध्ययन करके निम्नांकित चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है- सामरिक प्रभाव- इन विभिन्न नीतियों द्वारा चीन अगर हिन्द महासागर के तटीय देशों में अत्यधिक सक्रिय हो जाएगा तो वह भारत की सुरक्षा को अवश्य प्रभावित करेगा क्योंकि चीन हमेशा विस्तार वादी रहा है। चीन निरंतर अपनी मलक्का दुविधा को कम करने के प्रयास में लगा हुआ है साथ ही वह भारत को भी घेरने की कोशिश कर रहा है। भारत के तटवर्ती क्षेत्रों की आसानी से निगरानी कर सकें। भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव- चीन निरंतर हिन्द महासागर के तथ्यों देशों से अपने व्यापार में वृद्धि कर रहा है यह भी भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से एक चुनौती है क्योंकि भारत का हिन्द महासागर के तटीय देशों के साथ व्यापार प्रतिशत चीन से बहुत कम है। इस तरह भारत को सक्रिय रूप से कार्य करने की आवश्यकता है। समुद्री सुरक्षा- यह भारतीय समुद्री सुरक्षा के लिए खतरा है। चीन अधिक पनडुब्बियों, विध्वंसक जहाजों और जहाजों के साथ उसकी बड़ी मारक क्षमता विकसित कर रहा है। उनकी उपस्थिति समुद्र के माध्यम से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पेश करेगा। नव उपनिवेशवाद- चीन अपनी ऋण जाल कूटनीति के माध्यम से नव उपनिवेशवाद स्थापना करने में लगा हुआ है। भारत के लगभग सभी पड़ोसी देश चीन के कर्ज के तले में दबे हुए हैं। चीन पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट सिटी तथा श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट सिटी का निर्माण कर रहा है जहां तकरीबन 500000 से अधिक चीनी कर्मचारी को बसाने की योजना है।चीन वहाँ अपनी सुरक्षा की दृष्टि से सेना भी रखना चाहता है। यह एक नव उपनिवेशवाद का आधुनिक विकसित स्वरूप है जो यह भारत के लिए एक गंभीर चुनौती का विषय है। सीमा संप्रभुता सम्बन्धी चुनौती- बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के पाक अधिकृत गिलगित बालटिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरता है जो भारत अपना अभिन्न अंग है यह उसकी संप्रभुता के समक्ष एक चुनौती भी है। भारत की रणनीतिक तैयारियाँ हीरो के हार की रणनीति[26]- इस रणनीति में भारत विभिन्न देशों के साथ समझौता करके वहाँ भारत के लिए सामरिक आधार व सुरक्षा सम्बधी सुविधायें प्राप्त कर रहा है। चांगी नेवल बेस, सिंगापुर- 2018 में, प्रधान मंत्री मोदी ने सिंगापुर के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। जिससे भारतीय नौसेना को इस बेस तक सीधी पहुँच प्राप्त हुई। दक्षिण चीन सागर से गुजरते हुए, भारतीय नौसेना इस बेस के माध्यम से अपने जहाज को फिर से ईंधन भर सकती है। सबंगा पोर्ट, इंडोनेशिया- 2018 में भारत और इंडोनेशिया के मध्य हुए समझौते के तहत सबंग पोर्ट तक सैन्य पहुंच मिली, जो मलक्का जलडमरूमध्य के प्रवेश द्वार पर स्थित है। यह जलडमरूमध्य विश्व के प्रसिद्ध चोक प्वाइंट में से एक है। इस क्षेत्र से व्यापार और कच्चे तेल का एक बड़ा हिस्सा चीन को जाता है। दुक्म पोर्ट, ओमान- 2018 में भारत और ओमान के मध्य हुए समझौते के तहत ओमान के दक्षिण-पूर्वी समुद्री तट पर स्थित दुक्म पोर्ट पर सैन्य सहायता प्राप्त हुई। यह बंदरगाह फारस की खाड़ी से भारत के कच्चे तेल के आयात की सुविधा प्रदान करता है। इसके अलावा, भारतीय सुविधा दो महत्वपूर्ण चीनी मोतियों - अफ्रीका में जिबूती और पाकिस्तान में ग्वादर के बीच स्थित है। अनुमान द्वीप, सेशेल्स- 2015 में भारत और सेशेल्स ने इस क्षेत्र में नौसैनिक अड्डे के विकास पर सहमति व्यक्त की। इससे सेना को भारत में प्रवेश मिलता है। यह आधार भारत के लिए सामरिक महत्व का है क्योंकि चीन समुद्री रेशम मार्ग के माध्यम से अफ्रीकी महाद्वीप में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है। चाबहार पोर्ट, ईरान- 2016 में, प्रधान मंत्री मोदी ने इस बंदरगाह को बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। बंदरगाह अफगानिस्तान तक पहुँच प्रदान करता है और मध्य एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग प्रदान करता है। मंगोलिया- प्रधानमंत्री मोदी इस देश की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। दोनों देश सहमत हुए हैं और भारत की क्रेडिट लाइन का उपयोग करके एक द्विपक्षीय हवाई गलियारा विकसित करने के लिए सहयोग करेंगे। जापान- भारत और जापान ने संयुक्त रूप से एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (एएजीसी) बनाने की घोषणा की है। वियतनाम- भारत वियतनाम के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाए हुए है और उसने अब तक देश को 4 गश्ती नौकाएँ बेची हैं तथा ब्रह्मोस मिसाइल बेचने पर अभी विचार चल रहा है। इस तरह से भारत चीन के मोतियों की माला का जवाब अपने हीरो के हार से देने के लिए तैयार है। क्वाड[27] (QUAD) ‘‘क्वाडिलैटरल सिक्योरिटी डॉयलॉग‘‘ क्वाड के चार सदस्य देश अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया हैं। 2007 में पहली बार इसका विचार आया था। जापान ने क्वाड बनाने की पहल की थी। तब उस समय चीन और रूस ने इसका विरोध किया था। 10 साल तक यह विचार ऐसे ही रहा पुनः 2017 में इस पर सक्रिय तरीके से काम शुरू हुआ। जिसके परिणाम स्वरूप नवंबर 2017 में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान ने क्वाड की स्थापना की। क्वाड का उद्देश्य है कि हिन्द-प्रशांत में रणनीतिक समुद्री मार्गों को किसी भी सैन्य या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना है। इसे मूल रूप से चीनी वर्चस्व को कम करने के लिए एक रणनीतिक समूह के रूप में देखा जाता है। क्वाड का मुख्य उद्देश्य नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था, नेविगेशन की स्वतंत्रता और एक उदार व्यापार प्रणाली को सुरक्षित करना है। गठबंधन का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में राष्ट्रों के लिए वैकल्पिक ऋण वित्तपोषण की पेशकश करना भी है। क्वाड नेताओं ने महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों, कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता, आपदा राहत, जलवायु परिवर्तन, महामारी और शिक्षा जैसे समकालीन वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। क्वाड के नेता समकालीन ग्लोबल मुद्दों जैसे टेक्नोलॉजी, क्लाइमेट चेंज, एजुकेशन आदि पर विचार साझा करते हैं। इसके साथ-साथ भारत अपनी अन्य नीतियों के माध्यम से भी चीन की विभिन्न रणनीतिक चुनौती को रोकने का प्रयास कर रहा है जिसमें नेबरहुड फास्ट की नीति, एक्ट ईस्ट नीति के माध्यम से वियतनाम ,जापान ,फिलीपींस, दक्षिणी कोरिया, इण्डोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड के साथ महत्वपूर्ण सैनिक और सामरिक समझौते किए हैं। बुनियादी ढांचा विकास और बंदरगाह विकास के संदर्भ में भी भारत में कई महत्वपूर्ण समझौते किए हैं जिसमें चाबहार बंदरगाह का विकास, सबंगा बंदरगाह का विकास, म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह में एक गहरे पानी के बंदरगाह का निर्माण, भारत-बांग्लादेश के समुद्री बंदरगाह को उन्नयन में बांग्लादेश की मदद करेगा तथा वह चटगांव बंदरगाह का भी इस्तेमाल कर सकता है। भारत ने म्यांमार के साथ नौसैनिक उन्नत और प्रशिक्षण करने के लिए एक रणनीतिक समझौता भी किया है इसके साथ भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट, जापान के साथ म्यूच्यूअल लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट और अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक सपोर्ट मेमोरेंडम एग्रीमेंट, बेसिक एक्सचेंज एण्ड कोऑपरेशन एग्रीमेंट भी किए हुए हैं। इसके साथ-साथ भारत विभिन्न देशों में अपना तटीय रडार सिस्टम भी लगा रहा है जिसमें बांग्लादेश में 20 तटीय रडार सिस्टम स्थापित करने के लिए समझौता किया है जिससे बंगाल की खाड़ी में आने वाले चीन के युद्धपोतों की निगरानी की जा सके। मालदीव में भारत ने 10 तटीय रडार सिस्टम लगाने वाला है यह रडार हिन्द महासागर क्षेत्र में चलने वाली जहाजों की लाइव इमेज वीडियो और स्थान की जानकारी प्रसारित करेंगे यह परियोजना भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा पूर्ण की जाएगी जिसमें से 7 रडार सिस्टम स्थापित हो चुके हैं। श्रीलंका 6 तटीय निगरानी रडार स्थापित किए गए हैं और मॉरीशस में 8 तटीय रडार स्थापित किए जा चुके हैं। सेसल्स में एक कार्यरत है तथा अभी 32 और तटीय निगरानी रडार सिस्टम लगाने की योजना है। भारत ने देश में 46 तटीय रडार स्टेशन, 16 कमाण्ड और नियंत्रण प्रणाली स्थापित की है तथा 38 और तटीय रडार स्टेशन और पाँच कमाण्ड कन्ट्रोल सिस्टम पर कार्य चल रहा है। इसके साथ भारत ने गुड़गांव में एक सूचना संलयन केंद्र की स्थापना की है जो हिन्द महासागर क्षेत्र के मित्र देशों के साथ रियल टाइम समुद्री डाटा एकत्रित और साझा कर सकेगा। |
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निष्कर्ष |
उपर्युक्त तथ्यों का
व्यापक अध्ययन व विश्लेषण करने के पश्चात् हम कह सकते हैं कि चीन अपनी ऋण जाल
कूटनीति और सिं्ट्रग ऑफ पर्ल्स स्ट्रैटेजी के माध्यम से हिन्द महासागर में अपने
नीतियों का विस्तार कर रहा है जिसके माध्यम से वह भारत को घेरने की मंशा रखता है
तथा अपनी ऋण जाल कूटनीति से वह भारत के आसपास स्थित देशों को उनके बुनियादी ढांचे
के विकास के लिए किस प्रकार से ऋण देकर उन पर अपने भू रणनीतिक हित साधने का दबाव
बनाता है। यह एक प्रकार का नव उपनिवेशवाद है। इसका अग्रदूत चीन अपने इस नए खेल से
रणनीतिक और आर्थिक लाभ उठा रहा हैं ग्वादर कराची पोर्ट सिटी,
श्रीलंका पोर्ट सिटी, इसके प्रमुख
उदाहरण है। यह भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के लिए एक खतरा है। चीन
एशिया और पूरी दुनिया में महाशक्ति के रूप में उभरने के लिए अपने विभिन्न
रणनीतियों का प्रयोग कर रहा है जिसमें बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव ऋण जाल कूटनीति तथा
मोतियों की माला रणनीति के माध्यम से वह हिन्द महासागर के कई तटीय देशों के समक्ष
चुनौती उत्पन्न कर रहा है तथा भारत की सुरक्षा को भी प्रभावित कर रहा है। हिन्द
महासागर के लगभग आधे तटीय देश किसी न किसी रूप से चीन के कर्जदार हैं जिसमें
पाकिस्तान, मालद्वीप, श्रीलंका,
जिबूती, म्यांमार और थाईलैंड शामिल है।
इसके साथ-साथ भारत के समक्ष एक चुनौती यह भी है कि भारत के लगभग सभी पड़ोसी देश चीन
के कर्जदार हैं तथा चीन किसी ना किसी रूप से उनके विदेशी मामलों में हस्तक्षेप
उत्पन्न कर रहा है। यह भारत की सुरक्षा की दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण
हैं।हिन्द महासागर के तटीय देशों में अपने व्यापार को और बढायें जिससे भारत के साथ-साथ
उन देशों का भी आर्थिक विकास होगा भारत को क्वाड को और अधिक विकसित करना चाहिए और
इसमें नए सदस्यों को शामिल करना चाहिए जिससे इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम
किया जा सके। चीन की ऋण जाल कूटनीति को भी ध्यान में रखकर भारत को अपने सभी
पड़ोसियों तथा हिन्द महासागर के तटीय देशों के साथ अपने आर्थिक रिश्ते को मजबूत
करना चाहिए। जिससे एक सुरक्षित शांत व आर्थिक रूप से सक्षम हिन्दमहासागर परिकल्पना
को मूर्त रूप दिया जा सके। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. India at a Glance, “National portal of India”,
Government of India. |