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21वीं
सदी में भारत अमेरिका राजनीतिक सम्बन्ध वाजपेयी एवं क्लिंटन की परस्पर यात्राओं के
संदर्भ में |
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India-America Political Relations in the 21st Century in the Context of Mutual Visits of Vajpayee and Clinton | |||||||
Paper Id :
18040 Submission Date :
2023-10-25 Acceptance Date :
2023-11-15 Publication Date :
2023-11-20
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सारांश |
भारत व
अमेरिका दुनिया के दो बड़े व महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं परन्तु सामरिक व
शक्ति के दृष्टिकोण से दोनों परस्पर भिन्न भी है। शक्ति क्षमताओं की विभिन्नताओं
के होते हुए भी दोनों में ऐतिहासिक, सामाजिक, भौगोलिक व राजनीतिक संदर्भ में कुछ
समानताएं अवश्य दृष्टिगोचर होती है। शीतयुद्ध के उपरान्त दक्षिण पूर्व एशिया में
बढ़ता हुआ तनाव, परमाणु शक्ति के प्रसार, इस्लामिक आतंकवाद, मानवाधिकारों का हनन,
मादक पदार्थों की तस्करी आदि
से उत्पन्न चुनौतियों ने भी भारत अमेरिका के संबंधों को पुनर्निधारित किया है।
अमेरिका ने अपने वृहद राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए शीतयुद्ध के बाद
उत्पन्न नवीन चुनौतियों व संभावनाओं के अनुरूप भारत के साथ संबंधों को निर्धारित
करने का प्रयास किया है। अतीत की गलतियों से सबक लेते हुए बदलते वैश्विक समीकरणों
के अनुरूप आज दोनों देश अपने पारस्परिक संबंधों को दृढ़ता प्रदान करने की दिशा में
निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। [1] |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | India and America are two big and important democratic nations of the world, but both are different from each other from the strategic and power point of view. Despite the differences in power capabilities, some similarities are definitely visible between the two in historical, social, geographical and political context. After the Cold War, the challenges arising from increasing tension in Southeast Asia, spread of nuclear power, Islamic terrorism, human rights abuses, drug trafficking etc. have also redefined India-US relations. Keeping in mind its larger national interest, America has tried to determine its relations with India in accordance with the new challenges and possibilities arising after the Cold War. Taking lessons from the mistakes of the past, in line with the changing global equations, today both the countries are continuously moving towards strengthening their mutual relations. | ||||||
मुख्य शब्द | दृष्टिकोण 2000, सी.टी.बी.टी । | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Approach 2000, CTBT. | ||||||
प्रस्तावना | भारत में 13वीं लोकसभा के चुनाव के पश्चात् 13
अक्टूबर,
1999 को राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक
गठबन्धन की सरकार सत्ता में आई। इसे भारत में लोकतन्त्र की सफलता का एक बड़ा प्रतीक
माना गया तथा अमेरिका ने इस पर प्रसन्नता जाहिर की तथा नए संबंधों की शुरूआत में
एक आशा के रूप में व्यक्त किया है। दिसम्बर, 1999 में जब भारतीय वायु सेना का एक विमान IC-814
को इस्लामिक आंतकियों ने बंदी
बनाकर कंधार (अफगानिस्तान) में उतार लिया तो अमेरिका ने इसकी कड़े शब्दों में
निन्दा की तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को रोकने की नीति को दोहराया। भारत तथा
अमेरिका ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति के लिए सहयोग करने का निर्णय लिया।
परिणामस्वरूप दोनों देशों के संबंधों में दृढ़ता आयी। [2] |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. भारत तथा अमेरिका के मध्य संबंधों
को समझाना 2. एन डी ए की सरकार के समय भारत- अमेरिका की व्यापारिक, आर्थिक, परमाणु, सामरिक एवं अन्य संबंधो की विवेचना
करना 3. भारत व अमेरिका विश्व के दो महत्वपूर्ण प्रजातांत्रिक देशों के आपसी
संबंधो का परिक्षण करना
4. दोनों देशों की द्विपक्षीय संवाद से अवगत होना |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत
शोधपत्र के लिए विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं जैसे इंडिया टुडे, प्रतियोगिता
दर्पण, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, जे.एन. दीक्षित की 'भारतीय विदेश नीति', बीएन खन्ना की 'भारत विदेश नीति'
आदि का अध्ययन किया गया है । |
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मुख्य पाठ |
भारत तथा अमेरिका के सम्बन्धों के वातावरण में जो सकारात्मक परिवर्तन जून 1998
से दिसम्बर 1999 के दौरान हुआ दोनों देशों के मध्य तनावों को दूर करने व सहयोग के
विभिन्न क्षेत्रों की खोज के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने मार्च 2000
में एन.डी.ए. सरकार के समय भारत की पांच दिवसीय राजकीय यात्रा की, जिसमें दोनों देशों ने अपने संबंधों के भविष्य की दिशा को
लेकर एक ’’दृष्टिकोण पत्र 2000 भारत
अमेरिकी संबंध 21वी शताब्दी के लिए एक परिकल्पना’’
नामक संयुक्त दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत-यात्रा एक लंबे समयान्तराल के बाद (लगभग 22 वर्षों बाद) किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने
21 मार्च 2000 से पाँच दिवसीय भारत यात्रा की। इस यात्रा से भारत-अमेरिकी संबंधों
में एक नया महत्वपूर्ण मोड़ आया। भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 21 मार्च 2000 को हैदराबाद हाऊस नई दिल्ली में
विभिन्न क्षेत्रों में आपसी संबंधों को प्रगाढ़ बनाने लिए विजन 2000 पर हस्ताक्षर
किये। इस दस्तावेज में जिसे ’दृष्टिकोण 2000’ नाम दिया गया है। भारत-अमेरिका के आपसी संबंधों को मजबूत
बनाने के लिए आठ सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की गयी है। दोनों देशों के
शासनाध्यक्षों के बीच नियमित रूप से शिखर बैठक,
सुरक्षा तथा परमाणु अप्रसार पर चल रही बातचीत को गति प्रदान करने, आपसी संबंध एवं अन्य मुद्दों की समीक्षा करने के साथ ही
आतंकवाद से और अधिक कारगर ढंग से मिलकर निपटने की प्रतिबद्धता पर सहमति व्यक्त की
गयी। तीन पृष्ठों के दृष्टिकोण पत्र में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि दोनों देश एशिया तथा विश्व में
सामरिक संबंधों में स्थिरता के लिए आपस में तथा विश्व के अन्य राष्ट्रों के साथ
मिलकर नियमित रूप से संपर्क बनायेंगे । दोनों देशों के बीच मतभेदों का विषय बने
परमाणु मुद्दों के बारे में दृष्टिकोण पत्र में कहा गया कि अमेरिका का यह नजरिया
है कि भारत को परमाणु हथियार नहीं रखने चाहिए,
जब कि भारत का कहना है कि वह अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए
विश्वसनीय न्यूनतम परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को अपनाये हुए है। लेकिन दोनों ही
देशों ने इस मसले में सहमति व्यक्त की कि वे परमाणु क्षेत्रों में अपने मतभेद के
मुद्दों को कम करेंगे तथा परमाणु अप्रसार व सुरक्षा मुद्दों पर अपनी समझ बूझ
बढ़ायेगे। दृष्टिकोण पत्र पर अमेरिका ने भारत के आर्थिक विकास, उदारवाद एवं विज्ञान तकनीक प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हुई
प्रगति की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए द्वि पक्षीय व्यापार निवेश तथा विशेष तौर पर
सूचना पर आधारित उद्योग वाले क्षेत्रों में आने वाली बाधाओं को दूर करने पर
प्रतिबद्धता व्यक्त की।[3] अन्य क्षेत्रों में संस्थागत संवाद कायम करने के उद्देश्य से लिये गये ठोस
निर्णयों के तहत दोनों पक्षों ने विदेश मंत्री स्तर पर आपसी संबन्धो पर व्यापक
बातचीत करने का फैसला किया[4] राष्ट्रपति क्लिंटन ने भारत के इस दृष्टिकोण को सही
ठहराया कि जब तक नियंत्रण रेखा का सम्मान न हो और उग्रवादी हिंसा पर काबू न किया
जाय तब तक भारत-पाक वार्ता नहीं हो सकती। 1. प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट कर दिया कि सुरक्षा
परिदृश्य की दृष्टि से भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह न्यूनतम परमाणु प्रतिरोधक
क्षमता बनाये रखे। 2. राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की
स्थायी सदस्यता के लिए अमेरिका का समर्थन माँगा और राष्ट्रपति ने भारत को विश्व की
एक आबादी का प्रतिनिधित्व मानते हुए इसके आकार एवं इसकी आर्थिक व तकनीकी स्थिति को
देखते हुए वाजिब माना है। 3. राष्ट्रपति क्लिटंन ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के लिए चार
सूत्री फार्मूला प्रस्तुत किया जिसमें दोनों देशों द्वारा नियंत्रण रेखा का आदर, संयम बरतना,
बातचीत का माहौल फिर से शुरू करना तथा हिंसा एवं आतंकवाद की समाप्ति।[5] भारत की यात्रा समाप्त करने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने पाकिस्तान
की यात्रा भी की। उन्होंने पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में कहा कि यदि उसने हिंसा
एवं आतंकवाद का समर्थन किया तो उसे विश्व में अलग-थलग होने का खतरा उठाना पडे़गा।
क्लिंटन ने सैनिक प्रशासक जनरल परवेज मुशर्रफ से कहा कि उनके देश का परमाणु हथियार
कार्यक्रम सिर्फ धन की बर्बादी है। उन्होंने मुशर्रफ से यह भी कहा कि पाकिस्तान को
चाहिए कि सउदी अरब में जन्मे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी ओसाम बिन लादेन को न्यायिक
कठघरे में खड़ा करने के लिए वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे। टेलिविजन पर जनता के
नाम संबोधन में क्लिंटन ने कहा ’यह युग उनका है जो सरहदों
से आगे देखकर वाणिज्य और व्यापार में साझीदार बनाना चाहते है’। क्लिंटन की भारत यात्रा में जहाँ अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति हुई, वहीं कई मुद्दों पर असहमति बनी रही। जैसे सी.टी.बी.टी.
प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम को स्थगित करना,
परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु सामग्री के निर्यात पर रोक संबंधी विषयों पर
सीधे समझौते नहीं हो सके। लेकिन दोनों देशों ने एक दूसरे के प्रति नजरिए को ऐसे
टकराव का मुद्दा नहीं माना कि जिसे मैत्री और सहयोग के प्रति समझ-बूझ के नए युग को
प्रारम्भ करने में बाधक माना जाए। कुल मिलाकर अमेरिका के राष्ट्रपति की यह यात्रा
विश्व में भारत के समुचित महत्व को उजागर करती है।[6] विल क्लिंटन की यात्राः नए परिवर्तन बिन्दु इस यात्रा के उद्देश्यों पर सार्वजनिक प्रकाश डालते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति
क्लिंटन ने कहा कि वह शांति का उद्देश्य लेकर भारत जा रहे हैं। विजन स्टेटमेंट
2000 में ये कहा गया - ’भारत व अमेरिका दोनों देश
अपने परमाणु अप्रसार एवं निशस्त्रीकरण के लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध है’। 21 मार्च 2000 को भारत तथा अमेरिका ने द्विपक्षीय सहयोग
को बढ़ाने की दिशा में एक स्वागत भरा कदम उठाया और यह संकल्प दोहराया कि विश्व के दो
सबसे बड़े लोकतन्त्रों में दीर्घकाल तक चलने वाले,
राजनीतिक तौर पर संबंध तथा आर्थिक पहलू के उत्पादक संबंधों को स्थापित करने का
प्रयत्न किया जाऐगा तथा भारत के साथ मिलकर ’आतंकवाद के विरूद्ध वैश्विक
युद्ध’ में भागीदारी करेगा।[7] अतीत में समय-समय पर सम्बन्धों में आ रही बाधाओं को देखते हुए यह कहा गया कि
अब दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के सिद्धान्त पर आधारित थे, जो सीमाओं की बंदिशों को लांघते हुए राष्ट्र के लोगों, अर्थव्यवस्थाओं तथा संस्कृतियों को जोड़ रहा है। नई शताब्दी
के प्रारम्भ में दोनों देशों ने साझे हितों तथा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय
सुरक्षा की प्राप्ति के लिए समान उत्तरदायित्व वाली विश्व शांति की नीति का
भागीदार बनना है। ‘‘हम नियमित विचार विमर्श
करेंगे तथा एशिया और इसके पार राष्ट्रीय सामरिक स्थायित्व के लिए मिलकर कार्य
करेंगे हम आतंकवाद एवं क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों के विरूद्ध मिलकर प्रयत्न
करेंगे। हम संयुक्त राष्ट्र के निर्देशन में अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था को
शक्तिशाली बनायेंगे तथा शांति सुरक्षा प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र का समर्थन
करेंगे हम स्वीकार करते है कि दक्षिण एशिया में विद्यमान तनाव क्षेत्रीय देशों
द्वारा ही हल किये जा सकते है भारत इस क्षेत्र में सहयोग एवं शांति तथा संप्रभुता
के प्रति वचनबद्ध है।[8] राष्ट्रपति क्लिंटन ने वाजपेयी को अमेरिका आने का निमन्त्रण दिया जिसे श्री
वाजपेयी ने स्वीकार कर लिया यह भी निर्णय लिया गया कि भविष्य में अमेरिकी
राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री को नियमित रूप से मिलना चाहिए ताकि द्विपक्षीय
वार्तालाप एवं सहयोगपूर्ण माहौल को संस्थागत रूप दिया जा सके। वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ’न्यूयार्क एशियाई सोसायटी’
के समक्ष भाषण देते हुए अपने संबोधन में कहा कि - ’भारत और अमेरिका स्वाभाविक मित्र है। भारत तथा अमेरिका ने
यह स्वीकार किया कि दोनों देश विश्व में लोकतन्त्रीय संस्थाओं को शक्तिशाली बनाने
के लिए अपने अनुभव अन्य देशों से साझा करेंगे तथा आतंकवादी शक्तियों द्वारा लोकतंत्रीय
व्यवस्था के लिए पैदा की जाने वाली चुनौतियों का सामना करेंगे। भारत और अमेरिका भविष्य की जरूरत की
ओर देखेंगे तथा अतीत को अतीत ही रखेंगे तथा आने वाले वर्षो में भारत-अमेरिका
सम्बन्धों के निर्माण के लिए नई और स्वस्थ नींव रखेंगे। इस नीति पत्र ने स्पष्ट
दिखाया कि अब अमेरिका भारत को एक स्वतन्त्र तथा सक्रिय नीति निर्माता के रूप में
देख रहा है तथा भारत और पाकिस्तान को एक पैमाने पर रखने की नीति त्याग़ रहा था।[9] 21वीं शताब्दी के आरम्भ में, विशेषकर अमेरिकी राष्ट्रपति
की भारत यात्रा के दौरान भारत-अमेरिकी सम्बन्धों के क्षेत्र, प्रकृति तथा गति का विश्लेषण करने के बाद स्पष्ट है कि
द्विपक्षीय सम्बन्धों के क्षेत्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रगति हुई। प्रधानमंत्री
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति क्लिंटन की यात्रा की समीक्षा करते हुए कहा
कि इस यात्रा ने द्विपक्षीय सम्बन्धों को ऐतिहासिक मोड़ देने का अनुपम उदाहरण दिया।
दोनों देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय एवं परराष्ट्रीय
आतंकवाद तथा नशीले पदार्थ से जुडे़ आंतकवाद के विरूद्ध सहयोक्त रूप में
कार्य करने का संकल्प किया। इस यात्रा के कुछ दिनों बाद ही अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी
सी.आई.ए. ने भारत में अपना एक कार्यालय प्रारम्भ किया जिससे दुनिया के इस भाग में
विद्यमान आतंकवादी समूहों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके तथा भारत की खुफिया
एजेंसियों के साथ इस सम्बन्ध में आंतकवादी गतिविधियों से जुड़े मुद्दों पर तथा इससे
निपटने की तैयारी में सहयोगपूर्ण माहौल बना सके। बाजपेयी की अमेरिका यात्रा एवं संबंधों में परिवर्तन भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में उत्पन्न हुई सकारात्मक सहयोग की प्रक्रिया को और
सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए जैसा कि दृष्टिकोण 2000 में स्पष्ट किया गया, भारतीय प्रधानमंत्री तथा अमेरिकी राष्ट्रपति ने सितम्बर
2000 में दोनों देशों के सम्बन्धों को अधिक सुदृढ़ तथा विकसित करने का निश्चय
दोहराया। ऐसा प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी की अमेरिका यात्रा (सितम्बर 2000) के
दौरान किया गया। राष्ट्रपति क्लिंटन के निमन्त्रण पर प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी ने
उच्चस्तरीय भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के साथ अमेरिका की राजकीय यात्रा की तथा दोनों
देशों के सम्बन्धों को और अच्छा बनाने का प्रयास किया गया। पाँच दिवसीय यात्रा के
दौरान प्रधानमंत्री ने अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को भी सम्बोधित किया तथा
राष्ट्रपति बिल क्लिंटन व अन्य अमेरिकी अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया। प्रधानमंत्री वाजपेयी की अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत-अमेरिकी सम्बन्धों को
और सुदृढ़ एवं व्यापक आधार देने का प्रयत्न किया गया। वार्तालाप के स्तर से ऊपर
निकलकर दोनों देशों ने विभिन्न मुद्दों पर एक जैसा आधार तथा नजरिया अपनाने संकल्प
लिया। दोनों देशों के सम्बन्धों के विषय में निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों पर सहमति
बनी:- 1. आतंकवाद का मुकाबला करने तथा इसे समाप्त करने के लिए द्विपक्षीय सहयोग एवं
भागीदारी को और सुदृढ किया जायेगा। 2. राष्ट्रीय सुरक्षा तथा परमाणु अप्रसार के मसले पर विद्यमान मतभेदों को
सीमित करने के लिए भविष्य में अधिक वार्तालाप किए जाएंगे। 3. भारत परमाणु परीक्षणों पर लगाई गई स्वेच्छा से रोक को तब तक जारी रखेगा जब
तक सी.टी.बी.टी. प्रभावी नहीं हो जाती,
परन्तु भारत ऐसा अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों की आवश्यकता अनुरूप ही करेगा
और भारत को सर्वोच्च हित उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा है। 4. एशिया की सुरक्षा के लिए सहयोगपूर्ण वातावरण जारी रखा जायेगा ताकि आपसी
साझेदारी को अधिक बढ़ावा दिया जा सके। 5. दोनों देश यह स्वीकार करते है कि एशिया की समस्याओं को दक्षिण एशिया के देशों
द्वारा शांतिपूर्ण साधनों से हल किया जाएगा। 6. अमेरिका कश्मीर समस्या को भारत का आंतरिक मामला मानता है इसीलिए यह मुद्दा
द्विपक्षीय मध्यस्थता नहीं वर्तालाप से सुलझेगा।[10] इस यात्रा के परिणामस्वरूप जो साझा निर्णय लिया गया उसमें न केवल आर्थिक और
क्षेत्रीय मुद्दों के बारे में एक सहमति प्रकट की अपितु साथ ही दक्षिण एशिया के
परिप्रेक्ष्य में आतंकवाद, परमाणु अप्रसार तथा सुरक्षा
के मुद्दों पर भी विचार प्रकट किये गये। दोनों देशों ने यह घोषणा की कि दक्षिण
एशिया में विद्यमान तनाव को दक्षिण एशिया के देशों द्वारा ही शांतिपूर्ण तरीके से
दूर किया जा सकता है। दोनों ने सुरक्षा तथा परमाणु अप्रसार के सम्बन्ध में आगे
विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया। भारत ने यह बताया कि वह सी.टी.बी.टी. के मुद्दों
पर राष्ट्रीय सहमति बनाने का प्रयास कर रहा था। सितम्बर 2000 में भारत तथा अमेरिका ने नशीली वस्तुओं और दवाईयों की तस्करी पर
नियन्त्रण के सम्बन्ध में आपसी सहयोग एवं सामंजस्य में भागीदारी बढ़ाने का समझौता
किया। इस समझौते के द्वारा यह निर्णय लिया गया कि अमेरिका 2 लाख डालर मूल्य की
मशीनरी और प्रशिक्षण भारत की उन राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर की एजेंसियों को देगा
जिससे नशीले पदार्थो की तस्करी को रोकने के लिए कार्य कर रही थी। नवम्बर 2000 में
संयुक्त राष्ट्र शांति सुरक्षा कार्यवाही के सम्बन्ध में संगठित किए गये भारत-अमेरिकी
सांझे कार्य समूह की एक बैठक दिल्ली में आयोजित हुई तथा दोनों पक्षों ने संयुक्त
राष्ट्र शांति एवं सुरक्षा कार्यवाही के समय अनुभव की जाने वाली जटिल बाधाओं का
विश्लेषण किया। दोनों देशों ने यह स्वीकार किया कि विश्व शांति तथा सुरक्षा के लिए
की जा रही कार्यवाहियों में अपने प्रयासों तथा सहयोग को बढ़ाया जायेगा।[11] श्री वाजपेयी की इस यात्रा से निश्चय ही भारत-अमेरिकी सम्बन्धों का माहौल और
भी अधिक सकारात्मक वातावरण बना। भारत-अमेरिका सम्बन्ध 2001 से मई 2004 सन् 2001 के आरम्भ में भारत-अमेरिका सम्बन्धों को बहुत अच्छा प्रोत्साहन उस
समय मिला जब नये अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश के प्रशासन ने विदेश
सम्बन्धों में भारत को अधिक महत्व दिये जाने का निर्णय लिया।[12] अमेरिका के विदेश
मंत्री जनरल पावेल ने फरवरी 2001 में अमेरिकी सीनेट में यह कहा कि अमेरिकी विदेश
नीति में भारत को एक महत्वपूर्ण स्थान देना आवश्यक है क्योंकि भारत एक परमाणु
शक्ति सम्पन्न देश है। अब ये अपनी अर्थव्यवस्था को मुक्त व्यवस्था एवं वैश्वीकरण
की उन्मुख किए हुए है।[13] भारत को महत्व दिये जाने की क्लिंटन प्रशासन की नीति को
बुश प्रशासन ने जारी रखा। इसने भारत-अमेरिकी सम्बन्धों के सकारात्मक विकास को
प्रोत्साहित किया। फरवरी 2001 में बुश प्रशासन ने इंग्लैण्ड द्वारा भारतीय नौ-सेना को सीकिंग, हैलिकाप्टर की आपूर्ति किये जाने के सम्बन्ध में लगाई गई
पाबन्दी को समाप्त कर दिया और यह भी संकेत मिला की पोखरन-प्प् के बाद अमेरिका
द्वारा लगाए प्रतिबंधों को भी नरम किया गया। अपै्रल 2001 में भारतीय विदेश तथा
रक्षामंत्री श्री जसवंतसिंह ने अमेरिका का दौरा किया तथा बुश प्रशासन के साथ
उच्चस्तरीय सम्बन्ध स्थापित किये। उन्हें राष्ट्रपति बुश के साथ बातचीत करने का
अवसर प्राप्त हुआ। राष्ट्रपति के इस कदम को अमरीका के इस विचार की अभिव्यक्ति माना
कि भारत एशिया में उसका एक महत्वपूर्ण सहयोगी है। इन यात्राओं से यह भी स्पष्ट
संकेत प्राप्त हुआ कि अब भारत तथा अमेरिका आपसी साझेदारी को अधिक स्वस्थ, सहयोगी तथा दृढ बनाने का प्रयास कर रहे थे। यद्यपि अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद समर्थक देश तो घोषित न करने का निर्णय
लिया तथापि इसने कश्मीर के मसले पर भारतीय सकारात्मक दृष्टिकोण की महत्ता को
स्वीकार करना आरम्भ कर दिया। बुश प्रशासन के द्वारा यह विचार प्रकट किया गया कि
विद्यमान सीमा पर आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान के राष्ट्रपति का आशीर्वाद विद्यमान
था।12 भारत और अमेरिका ने एक बार फिर अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का सामना करने के
लिए आपसी सहयोग एवं भागीदारी पर बल दिया। दोनों देशों ने परमाणु अप्रसार के मुद्दे
पर तो मतभेद विद्यमान रहे, परन्तु दोनों देशों ने एक
दूसरे के विचारों को अच्छी तरह समझना प्रारम्भ कर दिया। अब यह भी अनुभव किया जाने
लगा कि अमेरिका एशिया में चीन के मुकाबले लोकतांत्रिक भारत को अधिक महत्व देने की
ओर झुक रहा है। मई 2001 में बुश प्रशासन द्वारा घोषित राष्ट्रीय मिसाइल सुरक्षा प्रोग्राम के
प्रति भारत ने अपना समर्थन दिया और यह स्वीकार किया कि इसके द्वारा शस्त्र
नियंत्रण तथा निःशस्त्रीकरण की दिशा में वृद्धि हुयी। भारत ने राष्ट्रपति बु्रश की
नई अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था का सबसे पहला समर्थन किया। इस प्रकार के
भारतीय दृष्टिकोण का अमेरिका ने स्वागत किया और अमेरिका ने संकेत दिया कि भारत के
विरूद्ध लगाये गये आर्थिक प्रतिबन्धों को समाप्त करने की प्रक्रिया तेज होगी तथा
परमाणु टेक्नोलाजी, दोहरे प्रयोग वाली
टेक्नोलाजी तथा कुछ प्रकार के सुरक्षा आपूर्तियों को छोड़कर बाकी सभी प्रकार की
आपूर्तियों पर से प्रतिबन्ध समाप्त कर दिया जाएगें। ऐसे अनुमान ने भारत-अमेरिकी
सम्बन्धों को विकसित तथा दृढ़ बनाने के प्रयासों को अधिक शक्ति तथा उत्साहपूर्ण
प्रदान किया। जुलाई-अगस्त, 2001 में जब अमेरिका के नव
नियुक्त राजदूत राबर्ट डी-ब्लैकविल13 भारत पहुंचे तो उन्होंने एक साक्षात्कार में
यह कहा कि भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में बड़ा और अच्छा परिवर्तन आया है तथा अब
अमेरिका भारतीय परमाणु नीति का प्रतिरोध तथा अपने पाकिस्तान के प्रति दृष्टिकोण से
बाहर आ रहा था।[14] राष्ट्रपति बुश भारत-पाक सम्बन्धों से निकलकर इनको फिर से
परिभाषित किए जाने का विचार रखते है। श्री ब्लैकवेल ने इंडिया टुडे के कार्यकारी
सम्पादक श्री राजथेंगप्पा के साथ बातचीत करते हुए अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने
यह कहा कि दोनों देशों के उच्च स्तरीय नीति-निर्माता लगातार सम्पर्क में रहेंगे।
विश्व व्यापार की व्यवस्थाओं, परमाणु शस्त्रों, आतंकवाद विरोधी एवं जलवायु परिवर्तन आदि मुद्दों पर सहयोग
और साझेदारी होगी। दोनों देश अच्छे मित्रों की तरह सम्बन्धों कोे मिलकर प्रगति
करेंगे। श्री ब्लैकवैल ने यह स्वीकार किया कि आने वाला समय भारत और अमेरिका में
सुरक्षा सम्बन्धों में सामरिक भागीदारी का होगा और भारत को अमेरिकी साजो-सामान
खरीदने की सुविधा प्राप्त होगी, परन्तु कुछ सीमाएं तो रहेगी
और अमेरिका भारत के संबंधों को सामान्य होने में समय लेगा। इस प्रकार भारत अमेरिका
सम्बन्ध 2001 के मध्य तक पहुंचते-पहंुचते एक नई आशा तथा विश्वास से परिपूर्ण हो
गये।[15] 11 सितम्बर 2001 को जब अमरीका में विश्व व्यापार केन्द्र तथा अमेरिकी सुरक्षा
प्रतिष्ठान पेंटागन पर आतंकवादी हमले हुए जिसमें जान-माल की हानि हुई तो अमेरिका
ने आतंकवाद के विरूद्ध वैश्विक युद्ध के लिए अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को जड से
उखाड़ने का संकल्प किया। इस हमले के बाद अमेरिका का आतंकवाद के विरूद्ध नजरिया बदल
दिया। राष्ट्रपति बुश ने आतंकवाद को एक बुराई,
एक कलंक और बर्बरतापूर्ण, कायरतापूर्ण और घिनौना
कार्य माना तथा इस बुराई का सामना करने तथा इसकी समाप्ति के लिए कार्यवाही करना
अमेरिकी विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य माना। अफगानिस्तान के तालिबान शासन तथा इस
शासन की सुरक्षा में रह रहे सउदी अरब के निष्कासित नागरिक ओसामा बिन लादेन को
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के जनक, रक्षक तथा नेता मानकर
अमेरिका ने इसके विरूद्ध युद्ध की घोषणा की जिसके तहत एन्ड्यरिंग फ्रीडम चलाया
जिससे सामरिक एवं कुटनीतिक, आर्थिक कार्यवाहियों द्वारा
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के इस केन्द्र को समाप्त करने के लिए विश्व स्तर पर
वैश्विक भागीदारी तथा एकजुटता स्थापित करने के लिए प्रयास आरम्भ किए। इस सन्दर्भ
में अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्ध को सुदृढ़ करना एक आवश्यकता माना
क्यांेकि अफगानिस्तान के तालिबान शासन के विरूद्ध कार्यवाही के लिए पाकिस्तान ही
ऐसा देश था जिसकी धरती तथा वायुमण्डल का प्रयोग किया जा सकता था। अमेरिका ने
पाकिस्तान को सहयोग करने को कहा तथा पाकिस्तान ने इसे स्वीकार भी कर लिया। फलतः यह
मुद्दा द्विपक्षीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों को नया आयाम प्राप्त किया है।[16] भारत ने अमेरिका में हुए आतंकवादी आक्रमण की न केवल घोर निन्दा की अपितु
अमेरिकी लोगों के साथ पूर्ण सहानुभूति प्रकट की। आतंकवाद के विरूद्ध कार्यवाही में
अमेरिका के साथ पूर्ण सहयोग एवं भागीदारी प्रस्ताव रखा। विश्व स्तर पर आतंकवाद की
समाप्ति के लिए पूर्ण पतिवद्धता, व्यापक तथा निरंतर प्रयत्न
करने का संकल्प भी किया। अमेरिका ने भारत के समर्थन तथा सहयोग की प्रशंसा की तथा
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को इसके सभी स्वरूपों के साथ समाप्त करने के लक्ष्य को
दृढ़ता एवं सामंजस्य को दोहराया। भारत ने आतंकवादी ठिकानो, प्रशिक्षण केन्द्रों तथा उनके सम्भावित कार्यवाहियों के
सम्बन्ध में एकत्रित गुप्त सूचनाओं को अमेरिका को सौंपने में सहयोग किया। भारत और
अमेरिका ने यह निश्चय किया कि केवल ओसामा बिन लादेन के आतंकवादी संगठन और तालिबान
के शासन के समाप्ति से ही अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद समाप्त नहीं होगा। इसके बाद
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के सभी ठिकानों,
सभी संगठनों तथा आतंकवादियों की शरण स्थली तथा सुरक्षा देने वाले सभी देशों के
विरूद्ध भी कार्यवाही आवश्यकता है। अमेरिकी नेताओं ने अब कश्मीर घाटी में विद्यमान
आतंकवाद को भी एक बुराई तथा मुसीबत के रूप में देखना आरम्भ कर दिया तथा भारतीय
चिन्ताओं को समझाने का प्रयास किया। अमेरिका के मुसीबत की घड़ी में तथा अमेरिका द्वारा आतंकवाद के विरूद्ध छेड़े गये
युद्ध (अभियान) में भारतीय सरकार तथा भारत के सभी राजनीतिक दलों ने सहयोग तथा
यथोचित सहायता देने की नीति का समर्थन किया। भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में एक नये
प्रकार के सहयोग के नये क्षेत्रों के उभरने की आशा बनी। सितम्बर 2001 के अन्तिम
सप्ताह में अमेरिका ने भारत तथा पाकिस्तान पर मई 1998 के बाद लगाये गये सभी आर्थिक
एवं व्यापारिक प्रतिबन्धों को समाप्त किए। भारत ने इस निर्णय का स्वागत किया गया।
सितम्बर 2001 में भारतीय प्रधानमंत्री के मुख्य सलाहकार तथा राष्ट्रीय सुरक्षा
समिति के अध्यक्ष श्री बृजेश मिश्र ने अमेरिका का दौरा किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय
आतंकवाद के विरूद्ध दोनों देशों में आपसी समझ एवं साझेदारी तथा सहयोग के सम्बन्ध
में एक अच्छा आधार स्थापित करने का संकल्प दोहराया। अक्टूबर 2001 के प्रथम सप्ताह
में भारतीय विदेश तथा रक्षामंत्री जसवन्त सिंह अमेरिका की यात्रा पर गए। तथा
अमेरिकी नेताओं से उच्च स्तरीय आधिकारिक वार्तालाप हुआ। दोनों देशों ने आतंकवाद के
विरूद्ध अपने सहयोग को दृढ़ बनाने तथा आपसी सहयोग को विकसित करने की सहमति दी। भारत
ने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद की समस्या की ओर अमेरिका का ध्यान
दिलाया तथा इस मसले पर बल दिया कि अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरूद्ध किये जा रहे
युद्ध को सभी प्रकार के तथा सभी क्षेत्रों में विद्यमान आतंकवाद के विरूद्ध होना
चाहिए। भारत तथा अमेरिका के नेता लगातार सम्पर्क बनाए हुए है दोनों देशों में अब
सामरिक क्षेत्र में भी सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत और अमेरिका के मध्य
में एक द्विपक्षीय सैनिक सूचना समझौते पर हस्ताक्षर हुए जिसमें दोनों पक्षों ने
तकनीकी सहयोग बढ़ाने के मार्ग पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया। यह समझौता अमेरिकी रक्षा
सचिव श्री डोनाल्ड रम्स फिल्ड की भारत यात्रा के दौरान किया गया। अफगानिस्तान में विद्यमान आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध के समय जब अमेरिका और
पाकिस्तान के मध्य सम्बन्धों का एक नया दौर प्रारम्भ होने लगा तब संयुक्त राज्य
अमेरिका के नेताओं ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि इस नई व्यवस्था के दौर में
पाकिस्तान के साथ स्थापित हो रहे सम्बन्धों के कारण किसी भी प्रकार से भारत के साथ
अमेरिका के सम्बन्धों को सीमित नहीं करेगा। भारत ने यह स्वीकारा कि अफगानिस्तान
में विद्यमान आतंकवादी समर्थक तालिबानी शासन की समाप्ति के लिए अमेरिका को
पाकिस्तान के सहयोग की बड़ी आवश्यकता थी लेकिन यह तत्व भारत-अमेरिका सम्बन्धों के
क्षेत्रों को परिभाषित नहीं करेगा। भारत ने अमेरिकी वायुयानों को भारत से ईधन भरने
की सुविधा प्रदान करने का निर्णय लिया तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विरूद्ध
अमेरिका तथा अन्य सभी देशों के साथ समग्र सहयोग एवं साझेदारी करने की नीति को
दृढता से दोहराया। 13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले की संयुक्त राज्य
अमेरिका ने कड़े शब्दों में निन्दा की तथा इसे उदारवाद एवं लोकतंत्र के मंदिर पर
आक्रमण माना। भारत के पक्ष एवं उसके रवैए का समर्थन किया तथा पाकिस्तान पर यह दबाव
डाला कि वह अपने भू-क्षेत्र में चल रहे आतंकी मिशनों की गतिविधियों को समाप्त
करें। अमेरिका ने लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ऐ-मुहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों पर
प्रतिबन्ध लगा दिया।[17] भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आतंकवाद की समाप्ति के मुद्दे पर पूर्ण सहमति बनी
लेकिन उनके दृष्टिकोणों में मौलिक भिन्नता है।[18] दोनों देशों ने आपसी आर्थिक, राजनीतिक, सुरक्षा एवं सामरिक
सम्बन्धों को विकसित करने का निर्णय लिया। दोनों देशों के सुरक्षा सहयोग के
क्षेत्र में महत्वपूर्ण निर्णय लिए और अमेरिका ने भारत को सुरक्षा उपकरण एवं तकनीक
बेचने का निर्णय किया। भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को पूर्ण समर्थन दिया तथा
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मामले में एक दूसरे का समर्थन करने की रणनीति अपनाई
परन्तु साथ ही पाकिस्तान के विरूद्ध भारत सरकार द्वारा बनाए गए सुरक्षा दबाबों को
सीमित रखने की इच्छा भी प्रकट की। अमेरिका ने भारत के साथ सम्बन्ध को स्वतन्त्र
रूप में निर्धारित एवं मजबूत करने के लिए रणनीति को अपनाने के संकेत दिए। वर्ष
2002 के आरम्भ में भारत और अमेरिका के मध्य सुरक्षा सम्बन्धांे के विकास के लिए
अच्छे प्रयास आरम्भ किये गये। अमेरिका ने पाकिस्तान पर आतंकवादियों के विरूद्ध ठोस
कार्यवाही करने के लिए दबाव डालना आरम्भ किया। भारत ने यह स्पष्ट किया कि वह अपनी
राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सभी प्रकार के कदम (पाकिस्तान के विरूद्ध सैनिक दबाव
बनाने के सहित) दृढ़ रूप में उठाएगा तथा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ किसी
प्रकार का समझौता नहीं किया जाऐगा। इस दृष्टिकोण से यह लगता है कि काफी समय के बाद अब अमेरिका ने भारत के साथ
सम्बन्धों को लेकर पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धों से अलग करने का निर्णय लिया।
अपै्रल 2002 में अमेरिका ने भारत की सुरक्षा आवश्यकताओं को स्वीकार करते हुए भारत
को उच्च टेक्नोलॉजी रडार को स्वीकार किया। भारतीय स्थल सेना प्रमुख ने अमेरिका की
यात्रा भी की। भारत और अमेरिका में उच्चस्तरीय सुरक्षा सहयोग पर सहमति से नई आशा
बनी जो कि भारत-अमेरिकी सम्बन्ध में हो रही प्रगति को दर्शाती है। 2002 से 2004 के मध्य भारत-अमेरिका सम्बन्ध लगातार प्रगति की दिशा में अग्रसर
रहेे। इस समयान्तराल में कई भारतीय नेताओं तथा पदाधिकारियों ने अमेरिका की यात्रा
की तथा इसी तरह कई अमेरिकी पदाधिकारीयों तथा नेताओं ने भारत की यात्रा कर सहयोग के
नए क्षेत्रों को तलाश करने का प्रयास किया। दोनों देशों ने आपसी सम्बन्धों को
सहयोगपूर्ण बनाने के प्रयत्न किया। परन्तु अमेरिकी विदेश नीति में पाकिस्तान के
साथ सम्बन्धों को सामरिक रूप में अधिक विकसित करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, विशेषकर पाकिस्तान की ओर से भारत में प्रायोजित सीमा-पार
आतंकवाद की समाप्ति के दृष्टिकोण ने अमेरिकी तथा भारतीय दृष्टिकोणों में विद्यमान
भिन्नता ने द्विपक्षीय सम्बन्धों में विद्यमान गतिरोध, तनाव तथा उग्र-विरोध तो सीमित रहा जिससे अफगानिस्तान में चल
रहे अमेरिकी आतंकवाद-विरोधी अभियान को हानि न हो,
परन्तु उसने पाकिस्तान में विद्यमान भारत विरोधी आतंकी संगठनों की गतिविधियों
को रोकने के सम्बन्ध में पाकिस्तान पर अधिक दबाव न डालने की नीति चालू रखी। लेकिन
भारत का मानना है कि इस्लामिक आतंवाद एक खास तरह की ताकत है इसको जड़पूर्वक उखाड़ना
ही इसका हल है अमेरिका ने भारत के साथ सम्बन्धों की घनिष्ठता के एक उद्देश्य को तो स्वीकार
किया परन्तु अपनी सामरिक स्वार्थों और हितों को देखते हुए उसने पाकिस्तान के साथ
सम्बन्धों को विकसित करने में अधिक रूचि प्रकट की। संक्षिप्त में भारत के साथ
सम्बन्धों के महत्व को पूर्ण रूप में स्वीकार किया,
परन्तु वास्तविक व्यवहार में पाकिस्तान के साथ सामरिक सम्बन्धों के विकास कोे
प्राथमिकता ही दी। पाकिस्तान को आर्थिक तथा सैनिक सहायता देने की नीति को
पुनर्जीवित किया तथा पाकिस्तान के कर्जे भी माफ किये। जब 14 मई 2002 के कालचक्र पर
आतंकवादियों ने हमला किया तो अमेरिका ने उसकी कठोर निन्दा तो की परन्तु पाकिस्तान
द्वारा प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद तथा पाकिस्तान की धरती पर चल रहे आतंकवादी
परीक्षण केन्द्रों की समाप्ति से पाकिस्तान पर आवश्यक दबाव बनाने से परहेज ही
किया। इस प्रकार 2002-04 के दौरान भारत-अमेरिकी सम्बन्ध पाकिस्तानी तत्व से
प्रभावित रहे परन्तु अमेरिकी और भारतीय नेताओं ने सदैव ये घोषणा मात्र रही कि
दोनों देशों के सम्बन्ध आपसी राष्ट्रीय हितों के अनुरूप आवश्यकताओं और सांझे
मन्तव्यों पर आधारित थे तथा किसी तीसरे देश के साथ सम्बन्धों की प्रकृति पर निर्भर
नहीं करते थे।[19] 2002 में प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश
मिश्र तथा विदेश सचिव पंकज सिव्वल ने अमेरिकी अवर विदेश सचिव आर्मिटेज से बातचीत
की ताकि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सम्बन्धों को एक निश्चित सामरिक रूप-रेखा प्रदान
की जा सके।[20] तथा वैश्विक स्तर पर कुछ मुद्दों पर
भागीदारी बनाने का प्रयत्न किया। इससे पहले 2002 में भारत तथा अमेरिका की सैनिक
टुकड़ियों ने सांझे सैनिक अभ्यास किये थे तथा इससे भी पहले अपै्रल 2002 में भारत और
अमेरिका ने 146 मिलियन मूल्य के रक्षा सौदों पर हस्ताक्षर किये थे। दोनों देशों ने
सैनिक तथा तकनीकी क्षेत्रों में आपसी भागीदारी और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य
को स्वीकारा गया। इस भारतीय दृष्टिकोण की अमेरिका ने प्रशंसा की तथा भारत-अमेरिका
सैन्य और सामरिक सहयोग को विकसित करने को एक अच्छे और आवश्यक उद्देश्य के रूप में
स्वीकार किया। सितम्बर 2002 में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महा-सभा के अधिवेशन
में भाग लेने के समय अमरीकी जार्ज डब्ल्यु. बुश के साथ द्विपक्षीय वार्तालाप का एक
दौर चला। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सम्बन्धों की कार्य समीक्षा की तथा सहयोग के
पाँच प्रमुख क्षेत्रों को चिन्हित किया- . 1. उच्च तकनीक 2. अंतरिक्ष अनुसंधान 3. सिविल परमाणु तकनीक 4. आर्थिक और सामरिक सहयोग 5. क्षेत्रीय-वैश्विक मुद्दों पर सहयोग। वार्तालाप के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने यह वक्तव्य दिया कि अब अमरीका भारत
को केवल दक्षिण-एशिया के सन्दर्भ में नहीं देखता तथा भारत के साथ बहुमुखी
सम्बन्धों के विकास को एक आवश्यकता के रूप में स्वीकार करता है तथा एशिया में भारत
की भूमिका का समर्थन करता है। राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यु बुश ने आतंकवाद विरोधी
अभियान में दोनों देशों के सहयोग की आवश्यकता को स्वीकारा। भारत ने आतंकवाद के
विरूद्ध विश्वस्तर पर व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता तथा आतंकवाद के समर्थक
देशों के विरूद्ध कार्यवाही करने की आवश्यकता को दोहराया तथा उनके विरूद्ध विश्व
स्तर पर सहयोग की मांग प्रकट की। अमरीकी राष्ट्रपति ने यह आश्वासन भी दिया कि वह
पाकिस्तान को सीमा से कश्मीरी घुसपैठ रोकने की आवश्यकता पर सुदृढ़ता विचार विमर्श
करेगा।[21] फरवरी 2003 में अमरीकी सेना प्रमुख जनरल के. सिंसकी ने भारत की यात्रा की तथा
भारतीय सेना के प्रमुख जनरल एन.सी. ब्रिज,
नौ सेना प्रमुख एडमिरल माथवेन्द्र सिंह तथा रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडीस से
बार्तालाप किया। मालाबार सैन्य अभ्यास की तरह कई अन्य क्षेत्रों में सामरिक
भागीदारी पर यह यात्रा भारत-अमरीका
सुरक्षा सम्बन्धों में हो रहे विकास का प्रतीक थी। इसी महीने अमरीकी परमाणु उर्जा
नियमन बोर्ड के चेयर मैन रिचर्ड ए. मेसवर्स ने भारत की यात्रा की तथा भारतीय अणु
ऊर्जा कमीशन नियमन एस. पी. सुखतेज के साथ बार्तालाप किया। मई 1998 के पोखरन परमाणु
परीक्षणों के बाद दोनों देशों के परमाणु ऊर्जा उच्च अधिकारियों में यह पहला
सम्पर्क वार्तालाप था। फिर इसी महीने अमरीकी प्रशासन के इस्रायल द्वारा भारत को
अवाक्स बेचे जने के निर्णय को स्वीकार कर लिया। इस निर्णय पर भी भारत में
प्रसन्नता व्यक्त की गयी तथा इजरायल के प्रति बदलते भारतीय दृष्टिकोण से दोनों
पक्षों में नजदीकी बढ़ी। इन कुछ मसलों के अलावा भारत-अमेरिकी संबंधों में बढ़ोतरी
हुयी। जो वाइडेन भारत के व्यापारिक समझौतों को लेकर संतुष्ट है तथा उनका मानना है
कि आज का समय भारत अमेरिका साथ मिलकर चीन के विस्तारवाद से चुनौतियों का सामना
करें। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका आतंवाद के हर रूप के खिलाफ साथ मिलकर खड़े हैं
और इस क्षेत्र में शांति व स्थिरता को
बढ़ावा देने के कार्य कर रहे हैं, जिससे चीन और न ही अन्य
पड़ौसी हमें धमकी दे सकता है। जो वाइडेन ने संकेत दिया कि वह भारत के साथ घनिष्ठ
संबंध रखेंगे, क्योंकि भारत-अमरीका के लिए
अच्छा अवसर है वह साथ मिलकर विश्व स्तर पर अपनी क्षमता का प्रदर्शन करें। वर्तमान समय में भारत अमेरिका संबंध भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की 21-24 जून 2023 की पाँच दिवसीय
राजकीय यात्रा अमेरिकी भारत संबंधों में एक नया मोड़ साबित हो सकती है। इस यात्रा
के दौरान दोनों देशों के मध्य रक्षा,
अंतरिक्ष एवं व्यापार जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने हेतु कई
समझौते किए गये 1. अमेरिकी सेमीकंडक्टर कंपनी माइक्रॉन गुजरात में अपना प्लांट लगाएगी। 2. भारतीय रेलवे ने यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट इडिया के
साथ एमओयू। 3. आर्टेमिस एकार्डर्स समझौते के तहत नासा और इसरो 2024 में अन्तर्राष्ट्रीय
अंतरिक्ष स्टेशन के लिए संयुक्त मिशन पर सहमत। 4. इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी की शुरूआत हुयी।
दोनों पक्षों के मध्य बेंगलुरू एवं अहमदाबाद में दो नए वाणिज्य दूतावास खोलने
पर सहमति बनी। |
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निष्कर्ष |
निष्कर्षतः कह सकते
है कि अमेरिका भारत का सबसे अच्छा मित्र हो सकता है। निःसंदेह केवल भारतीय ही
निर्धारित करेंगें कि विश्व में भारत की कैसी भूमिका होगी,
भारत को नए रोजगार के अवसरों की भरमार होगी। हमारा देश ज्यादा
सुरक्षित होगा, विश्व की इन दो लोकतंत्रों के कारण ज्यादा
शांतिपूर्ण होगा। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र तथा सबसे पुराने लोकतंत्र दोनों को
साथ खड़ा होना होगा। सकारात्मक संकल्प के साथ दोनों देशों को साथ साथ सपने देखते
हुए सुखद कल के लिए काम करना होगा। आज का समय भारत अमरीकी सहयोगपूर्ण संबंधों पर
आधारित विश्व का है। |
||||||
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प्रतियोगिता दर्पण, मासिक 281 वां अंक, 10 दिसंबर 2001 लेख
आतंकवाद से मुक्ति 19.
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मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेंश रिपोर्ट 2002 पृ0
97-108 |