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दौसा जिले में कृषि भूमि-उपयोग प्रतिरूप का भौगोलिक अध्ययन |
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A Geographical Study of Agricultural Land-use Pattern in Dausa District | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18062 Submission Date :
2023-07-17 Acceptance Date :
2023-07-22 Publication Date :
2023-07-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.8328467 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
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सारांश |
राजस्थान का दौसा जिला सन् 1991
में जयपुर व सवाई माधोपुर जिलों से अलग होकर अस्तित्व में आया। इसमें
जयपुर जिले की चार तहसीलों, दौसा, सिकराय, लालसोट व बसवा तथा सवाई माधोपुर जिले की
महवा तहसीलों को मिलाकर दौसा जिले का पुनर्गठन किया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Dausa district of Rajasthan came into existence in 1991 by separating from Jaipur and Sawai Madhopur districts. In this, Dausa district has been reorganized by merging four tehsils of Jaipur district, Dausa, Sikrai, Lalsot and Baswa and Mahwa tehsils of Sawai Madhopur district. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | दौसा जिला, कृषि, पशुपालन, आखेट। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Dausa District, Agriculture, Animal Husbandry, Hunting. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | दौसा जिला राजस्थान राज्य के पूर्वी मध्य भाग में स्थित
है। इसका अक्षांशीय विस्तार 26023’
से 27015’ उत्तरी अंक्षाश तथा देशान्तरीय
विस्तार 76007’ से 77002’ पूर्वी देशान्तर के मध्य है। जिले का क्षेत्रफल 34004’.78 वर्ग किलोमीटर है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग एक प्रतिशत है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | इस अध्ययन का उद्देश्य दौसा जिले में परिवर्तनशील कृषि
भूमि-उपयोग प्रतिरूप का गहन अध्ययन करना है। साथ ही भूमि-उपयोग प्रतिरूप को
प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषण करना है। अध्ययन क्षेत्र राजस्थान का
महत्वर्पूण कृषि उत्पादक क्षेत्र है जहाँ जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
परिणाम स्वरूप यहाँ का भूमि-उपयोग प्रतिरूप भी परिवर्तित होता जा रहा है। |
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साहित्यावलोकन |
इस शोधपत्र के लिए कई पुस्तकों जैसे जोशी, वाई.जी. (1972), शुक्ल राजेश एवं शुक्ल रश्मि (2009), यादव, सत्यवीर (1996) तथा श्रीवास्तव, दया शंकर (1993) आदि का अध्ययन किया गया है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | इस अध्ययन के लिए
प्राथमिक एवं द्वितीयक आंकड़ों की सहायता ली गई है। द्वितीयक आंकड़े जिले के
भू-अभिलेख कार्यालय से संकलित किये गए हैं। इस अध्ययन में 15
वर्षों (2000-01 से 2015-16) के भूमि-उपयोग आंकड़ें लेकर निष्कर्ष निकाले गए हैं। |
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विश्लेषण | भूमि-उपयोग प्रतिरूप तालिका-1 दौसा जिले में भूमि उपयोग प्रतिरूप (क्षेत्र प्रतिशत
में)
स्रोत:-
कार्यालय जिला भू-अभिलेख, दौसा वनों के अन्तर्गत क्षेत्र दौसा जिले में सन् 2000-01 में 23,631 हैक्टेयर पर वनों का विस्तार था। यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 6.92 प्रतिशत था जो बढ़कर सन 2015-16 में 30,847 हैक्टेयर हो गया है। यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.67 प्रतिशत है। इस प्रकार विगत 15
वर्षों में वनों के क्षेत्र में 0.75 प्रतिशत की
वृद्धि देखी जा सकती है। सामान्यतः दौसा जिले में उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़
वन पाये जाते हैं, जो ग्रीष्म तथा शीत ऋतु के महीनों में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। हांलाकि
विगत 15 वर्षों में जिले में वनों के अन्तर्गत क्षेत्र में वृद्धि
दर्ज की गई है जो 6.94 प्रतिशत से बढ़कर सन 2015-16 में 7.67 प्रतिशत हो गया। यह प्रतिशत राज्य के वन प्रतिशत
9.54 प्रतिशत से भी कम है। जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार 33
प्रतिशत पर वनों का विस्तार होना चाहिए। जिले में कुल वनों का 17004
हैक्टेयर (55.12 प्रतिशत) संरक्षित वन, 13484 हैक्टेयर (43.71 प्रतिशत) आरक्षित वन तथा 358 हैक्टेयर
(1.17 प्रतिशत) अवर्गीकृत श्रेणी में आते
हैं। जिले में सबसे अधिक वन क्षेत्र सिकराय तहसील (11.92 प्रतिशत
क्षेत्र) व लालसोट तहसील (11.46 प्रतिशत
क्षेत्र) में मिलता है जबकि सबसे कम वन क्षेत्र दौसा तहसील में
(4.68 प्रतिशत) हैं। बसवा तहसील में 10.30
प्रतिशत क्षेत्र तथा महवा तहसील में 8.2 प्रतिशत
क्षेत्र पर वनों का विस्तार है। कृषि अयोग्य भूमि जिले में सन् 2000-01 में कृषि अयोग्य भूमि के अन्तर्गत
10.92 प्रतिशत क्षेत्र था जो बढ़कर 2015-16 में
11.56 प्रतिशत हो गया इस दौरान कृषि अयोग्य भूमि के अन्तर्गत
क्षेत्र में +0.64 प्रतिशत का परिवर्तन हुआ। क्षेत्र में कृषि
अयोग्य भूमि के अन्तर्गत सबसे अधिक (16.9 प्रतिशत) क्षेत्र लालसोट तहसील में है। दूसरा स्थान बसवा तहसील (12.6 प्रतिशत)
का है। तीसरे स्थान पर सिकराम तहसील (11.2 प्रतिशत)
है। कृषि अयोग्य भूमि से तात्पर्य उस भूमि से है जो वर्तमान समय में
कृषि के लिए उपयुक्त ढंग से काम नहीं आ रही है। इस भूमि को भविष्य में उपयुक्त तकनीकी
के माध्यम से कृषि कार्य में लिया जा सकता है। चरागाह भूमि दौसा जिले में चरागाह भूमि के अन्तर्गत
सन 2000-01 में 7.67 प्रतिशत क्षेत्र था
जो मामुली बढ़कर सन् 2015-16 में 7.96 प्रतिशत
हो गया। इस प्रकार विगत 15 वर्षों में चरागाह भूमि के अन्तर्गत
क्षेत्र में +0.29 की वृद्धि अंकित की गई। सन् 2015-16
के अनुसार चरागाह भूमि सबसे अधिक (4.5 प्रतिशत)
दौसा तहसील में मिलती है। जबकि सबसे कम चरागाह भूमि महुआ तहसील में (0.7
प्रतिशत) मिलती है। कृषि योग्य बंजर भूमि यह वह भूमि है जो इस समय किसी भी काम में नहीं आ रही है, लेकिन इसको वृहद् प्रयत्नों द्वारा कृषि योग्य बनाया जा सकता है। हमारे देश
में इस प्रकार की भूमि का काफी महत्त्व है क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकता को
पूरा करने के लिए कृषि के विस्तार की अत्यधिक आवश्यकता है। इसमें कुछ भूमि ऐसी भी शामिल
है जो पहले कृषि के अन्तर्गत रह चुकी है लेकिन अब कुछ कारणो जैसे भौतिक, सामाजिक, आर्थिक कारणों से बेकार हो गई है अर्थात अपनी
उर्वरता खो चुकी है। दौसा जिले में सन् 2000-01 के दौरान कृषि
योग्य बंजर भूमि के अन्तर्गत 2. 69 प्रतिशत भूमि थी जो 2015-16
में घट कर 1.33 प्रतिशत रह गई। जिसका मुख्य कारण
कृषि सुधारों का प्रभाव है। पड़त भूमि पड़त भूमि दो प्रकार की होती है (अ) पुरातन पड़त और (ब) चालू पड़त। पुरातन
पड़त भूमि वह भूमि है जिसको एक बार कृषि करने के बाद दो से पांच वर्ष तक के लिए खाली
छोड़ दिया जाता है जबकि चालू पड़त भूमि को इसलिए खाली छोड़ दिया जाता है ताकि कुछ समय
खाली रहने पर यह अपनी उर्वरा शक्ति फिर से प्राप्त कर लें। दौसा जिले में सन् 2000-01
में 9.16 प्रतिशत भूमि पड़त भूमि के अन्तर्गत आती
थी है यह सन् 2015-16 में घर कर 5.19 प्रतिशत
रह गई इस प्रकार विगत 15 वर्षों में इसके अन्तर्गत क्षेत्र में
-3.97 प्रतिशत की कमी देखी गई है। पड़त भूमि में कमी का मुख्य
कारण विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि तथा कृषि सुधारों का प्रभाव
रहा है। शुद्ध बोया गया क्षेत्र यह वह क्षेत्र होता है जिसमें फसलें बोयी व कटी जाती है भूमि उपयोग का यह भाग
कृषि भू-दृश्य को प्रत्यक्षतः परिलक्षित करता है। कृषि आधारित
अर्थव्यवस्था होने के कारण जिले के शुद्ध बोये गए क्षेत्र में परिवर्तन को जानना बहुत
आवश्यक हो जाता है। अतः विगत 15 वर्षों में दौसा जिले में शुद्ध
बोये गए क्षेत्र में हुए परिवर्तन को निम्न तालिका द्वारा समझा जा सकता है। तालिका-2 तहसीलानुसार शुद्ध बोया गया क्षेत्र (सन 2000-01 से
2015-16)
स्रोत:-
कार्यालय जिला भू-अभिलेख, दौसा उक्त सारिणी से एवं मानचित्र सं.
02 से स्पष्ट है कि सन् 2000-01 में जिले में शुद्ध
बोया गया क्षेत्र 211984 हैक्टेयर था जो सन् 2015-16 में बढ़कर 222226 हैक्टेयर हो गया है। इस दौरान शुद्ध
बोये गए क्षेत्र में 4.83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विगत 15
वर्षों में जिले के उत्तरी भाग में स्थित बसवा तहसील में ऋणात्मक परिवर्तन
आया है जिसका मुख्य कारण भूमि का अन्य रूपों में उपयोग बढ़ा है। जैसे आवासीय भूमि,
पत्थर की निकासी उद्योग इत्यादि जबकि जिले की सभी तहसीलों में घनात्मक
परिवर्तन आया है। सर्वाधिक वृद्धि दौसा तहसील में 24.73 प्रतिशत
की घनात्मक वृद्धि हुई है। |
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परिणाम |
समस्याएँ एवं समाधान |
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निष्कर्ष |
अध्ययन क्षेत्र में
भूमिगत जलस्तर 2 से 3 मीटर
प्रतिवर्ष की दर से गिरता जा रहा है जो एक चिंता का विषय है। क्षेत्र में वनों के
क्षेत्र में वृद्धि, पौधारोपण, ऐनीकटों
के निर्माण, जल संचयन जैसे कार्यक्रमों से उक्त समस्याओं
का निदान किया जा सकता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. हुसैन, माजिद (2000) -‘कृषि भूगोल’ रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर |