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मलिन बस्तियों की
सामाजिक स्थिति का अध्ययन (झाँसी नगर के विशेष सन्दर्भ में) |
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Study of Social Condition of Slums (With Special Reference to Jhansi City) | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18072 Submission Date :
2023-09-08 Acceptance Date :
2023-09-15 Publication Date :
2023-09-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.8402017 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/remarking.php#8
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सारांश |
प्रस्तुत शोध पत्र
झाँसी महानगर की मलिन बस्तियों के सामाजिक अध्ययन से सम्बंधित है। प्रत्येक सभ्यता
के शहरी विकास में मलिन बस्तियाँ हमेशा से एक समस्या के रुप में विद्यमान रही है
जिनका सामाजिक जीवन सामान्य धारा से अलग रहा है। किसी भी मलिन बस्ती का सामाजिक एवं
सांस्कृतिक मनोविज्ञान वहाँ के शहरी विकास के समानुपाती न होकर विलोमानुपाती होता
है। यदि शहर अत्यधिक विकसित अवस्था में है तो वहाँ पर पायी जाने वाली मलिन
बस्तियों की संख्या निश्चित रुप से अधिक और मलिन बस्तियों के निवासी जनसंख्या कम
से कम उपलब्ध साधनों में अपने दैनिक जीवन का निर्वाह करने वाली होती है। मलिन
बस्तियों के अध्ययन करने का मुख्य उद्देश्य मलिन बस्तियों की सामाजिक स्थिति का
अध्ययन करना है। मलिन बस्तियों में सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने के लिये
साक्षात्कार अनुसूची के माध्यम से मलिन बस्तियों के 200
सूचनादाताओं से आँकड़ों का संकलन किया गया है। सामाजिक स्थिति के
अध्ययन में मलिन बस्तियों के सूचनादाताओं की पारिवारिक संरचना,आयु संगठन, वैवाहिक स्थिति, आवास व्यवस्था का अध्ययन किया गया है। मलिन बस्तियों के अध्ययन करने पर
यह पाया गया कि मलिन बस्तियों में पारिवारिक संरचना का स्वरुप संयुक्त परिवार से
एकल परिवार की ओर बढ़ रहा है। मलिन बस्तियों की आवास व्यवस्था में अधिकतर कच्चे
मकान और झोपड़ियां है। मलिन बस्तियों में विवाहित की संख्या अधिक है और स्वास्थ्य
की स्थिति खराब होने के कारण विधवा और विधुर की संख्या बढ़ी है। मलिन बस्तियों में
निम्न वर्ग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की संख्या अधिक पायी जाती है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The presented research paper is related to the social study of slums of Jhansi metropolis. Educational level refers to the level of education that all sections of the society have received for personal upliftment. What level of education male and female members of any community have, such as pre-primary level or primary level or higher education. Economic status also determines the education of children. Those whose economic status is high, they give education to their children in good schools. Those with medium economic status manage their livelihood from their own sources but are unable to get their children admission in higher education institutions. Those with low economic status are not able to send their children to school. To study the educational and economic status in slums, data has been collected from 200 informants of slums through interview schedule. In the study of educational and economic status, the level of education, monthly income, type of business, condition of the house has been studied in the informants of slums. From the study of the educational status of the slums, it is concluded that most of the informants of the slums are illiterate who are able to do only unskilled jobs which are only for them to earn their livelihood. It is clear from the study of the economic condition of the slums that most of the informants of the slums are laborers and live in kutcha houses and huts and the income of most of the informants ranges from Rs.2000 to Rs.5000, which is an indicator of their economic condition being pathetic. Key words: slums, educational level, economic status, livelihood, interview etc. |
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मुख्य शब्द | मलिन बस्तियाँ, शहरी विकास, सांस्कृतिक मनोविज्ञान, समानुपाती, आर्थिक, विलोमानुपाती,साक्षात्कार अनुसूची, जनसंख्या। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Slums, Educational Level, Economic Status, Livelihood, Interview etc. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | मलिन बस्तियां मूलतः
औद्योगिक नगरों और महानगरों की उपज है। यहाँ व्यक्तियों को छोटा बड़ा काम मिल जाता
है पर रहने को घर नहीं मिलता । इन महानगरों में गरीबों को मलिन बस्तियों में शरण
मिलती है। कानपुर, कोलकाता, मुम्बई, अहमदाबाद, चेन्नई
में कई मलिन बस्तियां है। नगरीकरण और औद्योगीकरण ने जहाँ व्यक्ति को विज्ञान,
शिक्षा, तकनीकी ज्ञान और एक अच्छी
वैज्ञानिक समझ दी है वहीं करोड़ों व्यक्तियों को नारकीय जीवन व्यतीत करने हेुतु
विवश किया है। नारकीय जीवन को मलिन बस्तियों में देखा जा सकता है। एक छोटी सी
झोपड़ी, कच्चे मकान में दस से पन्द्रह लोग तक रहते है। जल
के निकास का कोई प्रबंध नहीं होता है। पानी यहाँ सड़ता रहता है,कूड़े कचरे का ढेर लगा रहता है। शौच का कोई स्थान नहीं है। बैठने के
लिये इनके पास कोई खुला स्थान नहीं है। तंग संकरी गलियों में मलिन बस्तियां जहाँ
जीवन कम और बीमारियां अधिक है। पीले मुरझाये चेहरे, चिपके
गाल, उभरती हड्डियाँ, फटे गन्दे
कपड़े यहां के सौन्दर्य हैं। इन्हें पता ही नहीं चलता कि कब जवान होते हैऔर कब बूढ़े
हो जाते है। कब इन्हें टी0बी0 हो
जाती है और कब कैंसर। ये तो मौत के मुंह में जन्म लेते है। इनका जिन्दा रहना समाज
के लिये कोई अर्थ नहीं रखता है। आखिर गरीब के मरने का कोई अर्थ नहीं होता है। मलिन
बस्तियों में इनका जीवन नाली के कीड़ों जैसा है। नेहरू जी ने कानपुर की गन्दी बस्ती
अहातों को देखकर एक बार कहा था कि “आदमी आदमी को किस रूप
में देखता है।“ इस प्रकार मलिन बस्तियों का सीधा संबंध
बढ़ती हुई आबादी और आवास व्यवस्था की कमी से है जो समय के साथ और गहरी होती जा रही
है। वर्तमान में झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की संख्या पिछले दशक से दोगुनी हो
गयी है। भारत सरकार के सर्वे 2011 के अनुसार मुम्बई,
कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली में शहरी आबादी क्रमशः 41प्रतिशत,
29 प्रतिशत, 28 प्रतिशत, और 15 प्रतिशत झुग्गी बस्तियों में ही रहती है
। इन झुग्गी बस्तियों में क्रमशः औसतन पाँच लोग एक कमरे में अपना गुजारा करते है।
भारत में जो लोग झुग्गियों में रहते है उनकी संख्या 2001 में
52 मिलियन थी वह 2011 में बढ़कर 65.5
मिलियन हो गयी है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. मलिन बस्तियों की पारिवारिक
संरचना का अध्ययन करना। 2. मलिन बस्तियों की आवास व्यवस्था
का अध्ययन करना। 3. मलिन बस्तियों की वैवाहिक
स्थिति का अध्ययन करना। 4. मलिन बस्तियों वर्ग व्यवस्था का
अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | अरोरा, नवनीत (2016): यह शोधपत्र चंडीगढ़ की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले
किशोंरों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक विवरण पर चर्चा करता है। यह
माना गया था कि चंडीगढ़ एक छोटा शहर, शिक्षा का केन्द्र और पड़ोस के स्कूलों के प्रावधान से झुग्गी झोपड़ी में रहने
वाले बच्चों की पढ़ाई के लिये प्रेरणा का बढ़ावा देना चाहिए। लेकिन हमारे
निष्कर्षों ने इसके विपरीत खुलासा किया। यह बात सामने आई है कि झुग्गी झोपड़ियों
मे रहने वाले किशोंरों को अध्ययन के लिये प्रेरित नहीं किया जाता है क्योंकि
प्रेरक कारक परिवार और उनके समुदाय से नहीं आते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि
उनकी झुग्गी झोपडी खूबसूरत शहर का हिस्सा है। यह शोध पत्र आस्कर लुईस के इस
प्रस्ताव के साथ समाप्त होता है कि गरीबी की संस्कृति झुग्गी बस्तियों मे व्याप्त
है जो किशोरों की अध्ययन छोड़ने की आदत बनाती है । वर्मा, सौरभ(2017): यह शोधपत्र बरेली महानगर की मलिन बस्तियों के आर्थिक एवं
सामाजिक जीवन के अध्ययन पर आधारित है। शोध में बरेली महानगर के मलिन बस्तियों के
निवासी अपने सीमित संसाधन के कारण आर्थिक रूप से अपने ग्रामीण क्षेत्र के
सम्बंधियों से भी पिछड़े हुए है। उनकी प्रति व्यक्ति आय ग्रामीण क्षेत्र के लोगों
से भी कम है। मलिन बस्तियों के निवासी अपनी अर्द्धकुशल एवं अकुशल क्षमता के कारण
अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में असफल रहे
हैं। मलिन बस्तियों में अस्वस्थ वातावरण, गंदगी, स्वच्छ जल का अभाव, शैक्षिक स्तर का अभाव भी आर्थिक विकास को प्रभावित करता
है। मलिन बस्ती के निवासी परिवार में गरीबी के स्तर को देखते हुए परिवार की
महिलायें अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाती है जिससे स्वास्थ्य सम्बंधी अनेक
समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। मलिन बस्ती के निवासी सामान्यतः वे परिवार होते है
जो रोजी रोटी की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते
हैं। मलिन बस्ती के निवासी अपनी अकुशल और अर्द्धकुशल क्षमता के कारण अपने परिवार
के जीवनयापन हेतु दैनिक वेतन पर रोजगार की तलाश करते है। कुपोषण, अपराधबोध, गंदी आदतें, आपसी झगड़े आदि इन परिवारों के विकास में बाधक बनते है जिससे
समाज का उच्च वर्ग इन परिवारों के युवाओं और महिलाओं को अपने निहित स्वार्थों को
प्रयोग में लातें है। कुमार, अनिल(2019): शोधपत्र में स्मार्ट सिटी योजना पर चर्चा की गई है तथा इस
योजना में उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख शहरों इलाहाबाद और कानपुर नगर दोनों को शामिल
किया गया। ये वह शहर है जहाँ पर मलिन बस्तियों और गरीब महिलाओं की जनसंख्या अधिक
है।इस योजना में शहरी मध्यवर्ग को प्रोत्साहित किया गया और गरीब महिलाओं को
दरकिनार किया गया है। 1990 के बाद से भारत सरकार द्वारा मलिन बस्तियों के
उन्मूलन हेतु विभिन्न प्रकार की योजनायें जैसे शहरी आवास मिशन, इन्दिरा आवास योजना, पण्डित जवाहर लाल नेहरू रोजगार योजना संचालित की गई किंतु जैसा दीवान वर्मा की
पुस्तक ‘स्लमिंग इंडिया’ में बताया गया है कि ”आवश्यकता मलिन बस्तियों के उन्नयन की नहीं मलिन
बस्ती उन्मूलन की है।” मलिन बस्तियों में जहाँ बच्चों की शिक्षा सम्बन्धी चुनौतियां है वहीं शुद्ध पेयजल के अभाव में मलिन बस्तियों में महिलाओं को
अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है वही मलिन बस्तियों का वातावरण भी स्वास्थ्य के लिये
अनुकूल नहीं है। सेठी, अर्चना-कृष्णन, प्रगति, ब्रह्मे, रविन्द्र.(2020): छत्तीसगढ़ आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार कुल जनसंख्या में से गंदी बस्तियों पर रहने वाले परिवारों की
जनसंख्या का प्रतिशत आन्ध्र प्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में 31.98 प्रतिशत सबसे अधिक है। जनसंख्या का तीव्र गति से बढ़ना, मकानों का अभाव, बेरोजगारी आदि के कारण मलिन बस्तियां उत्पन्न हुई है। शोध पत्र में कहा गया है
कि मलिन बस्तियों में निवासरत निदर्श परिवारों में से 84.6 प्रतिशत सदस्य शिक्षित एवं 15 प्रतिशत सदस्य अशिक्षित है। अशिक्षित जनसंख्या में 14 वर्ष आयु तक तथा 64 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या शामिल है। निदर्शन परिवार में 46 प्रतिशत सदस्य कार्यशील जनसंख्या है। रायपुर शहर की मलिन
बस्ती में निवासरत निदर्श परिवार में 40.75 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा के नीचे है। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन क्षेत्र:
पहुंज और वेतवा नदी के बीच बसा झाँसी शहर वीरता,साहस स्वाभिमान का प्रतीक है।ऐसा कहा जाता
है कि प्राचीनकाल में झाँसी चेदि राष्ट्र, जेजाक भुक्ति,
जझोटी और बुन्देलखण्ड का हिस्सा थी। झाँसी चन्देल राजाओं का गढ़ था।
इस स्थान का नाम बलवंत नगर था। लेकिन 11वीं शताब्दी में
झाँसी ने अपना महत्व खो दिया। ओरछा के राजा वीर सिंह देव के अधीन झाँसी फिर से
प्रमुखता से उभरी। राजा वीरसिंह देव के मुगल सम्राट जहाँगीर के साथ अच्छे सम्बंध
थे। 1613 में राजा वीर सिंह देव ने झाँसी के किले का निर्माण
कराया था। 1627 में उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु के
बाद उनके पुत्र जुहार सिंह उनके उत्तराधिकारी बने। पन्ना के महाराजा छत्रसाल
बुन्देला एक अच्छे प्रशासक एवं बहादुर योद्धा थे। 1729 में
मोहम्मद खान बंगश ने छत्रसाल पर आक्रमण किया। पेशवा बाजीराव प्रथम ने महाराजा
छत्रसाल की मदद की और मुगल सेना को हराया। कृतज्ञता के प्रतीक के रुप में महाराजा
छत्रसाल ने मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम का अपने राज्य का एक हिस्सा देने की पेशकश
की। इस भाग में झाँसी भी सम्मिलित था। किले के विस्तारित हिस्से को शंकरगढ़ कहा
जाता है। 1757 में नरोशंकर को प्रशवा ने वापस बुला लिया। उनके
बाद माधव गोविन्द काकिर्डे और फिर बाबूलाल कन्हाई को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। 1766
में विश्वास राव लक्ष्मण को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। उनका
कार्यकाल 1766से 1769 तक था। उनके बाद
रघुनाथ राव (द्वितीय) नेवालकर को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। वह बहुत योग्य
प्रशासक थे। उन्होने राज्य के राजस्व में वृद्धि की। उनक द्वारा महालक्ष्मी मंदिर
और रघुनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया। उनहोने अपने निवास के लिये
नगर में एक सुन्दर इमारत रानी महल का निर्माण कराया। 1796 में
रघुनाथ राव ने अपने भाई शिवराव हरि के पक्ष में सूबेदारी पारित कर दी। 1803
में ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा के बीच संघिपर हस्ताक्षर किये गये।
शिवराव की मृत्यु के बाद उनके पोते रामचंद्रराव को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। वह
एक अच्छे प्रशासक नहीं थे। 1835 में रामचंद्रराव की मृत्यु
हो गयी। उनकी मृत्यु के बाद रघुनाथराव तृतीय को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया। 1838
में रघुनाथराव तृतीय की भी मृत्यु हो गयी। तब ब्रिटिश शासकों ने
गंगाधरराव को झाँसी के राजा के रुप में स्वीकार कर लिया। रघुनाथ राव तृतीय के काल
में अकुशल प्रशासन के कारण झाँसी की वित्तीय स्थिति बहुत नाजुक थी। राजा गंगाधरराव
एक बहुत अच्छे प्रशासक थे। वह बहुत उदार और सहानुभूति से भरे हुए थे। उन्होने
झाँसी को बहुत अच्छा प्रशासन दिया। उनके काल में झाँसी की स्थानीय जनता बहुत
संतुष्ट थी। राजा गंगाधरराव का विवाह 1842 ई0 में मणिकर्णिका के साथ हुआ। इस
विवाह के बाद मणिकर्णिका का नया नाम लक्ष्मीबाई दिया गया, जिन्होने
1857 ई0 में अंग्रजो के खिलाफ सेना का
नेतृत्व किया । उन्होने 1858 ई0 में
भारतीय स्वतंत्रता के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया। 1861 में
ब्रिटिश सरकार ने झाँसी का किला और झाँसी शहर जीवाजीराव सिंधिया को दे दिया। झाँसी
तब ग्वालियर राज्य का हिस्सा बन गई थी। 1886 में अंग्रेजों
ने ग्वालियर राज्य से झाँसी वापस ले ली। स्वतंत्र भारत में झाँसी को उत्तर प्रदेश
में शामिल कर लिया गया। 2011 की अंतिम जनगणना रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य की
कुल जनसंख्या 19.98 करोड़ है जो कि देश के अन्य राज्यों के
सन्दर्भ में सर्वाधिक है और विश्व के देशों के सन्दर्भ में चीन, भारत अमेरिका और इण्डोनेशिया के बाद 5वें स्थान पर
है। भारत की कुल आबादी में से 16.50 प्रतिशत उत्तर प्रदेश
में रहती है। लेकिन प्रदेश का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 7.33 प्रतिशत ही है। क्षेत्रफल में यह राजस्थान, मध्य
प्रदेश, महाराष्ट्र, तथा आंध्र प्रदेश
के बाद 5 वें स्थान पर है। देश की कुल जनसंख्या में उत्तर
पदेश की जनसंख्या का हिस्सा 6 वां है। देश की कुल शहरी
जनसंख्या में उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान 11.79 प्रतिशत है जबकि देश की कुल ग्रामीण जनसंख्या में उत्तर प्रदेश का स्थान
प्रथम 18.63 प्रतिशत है। 2011 की
जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में मलिन बस्तियों की जनसंख्या 1.08 करोड़ है। तालिका संख्या 01 उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों में मलिन
बस्तियों की जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार
झांसी उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में एक नगर निगम शहर है। झांसी शहर को 60 वार्डों में विभाजित किया गया है, जिसके लिये हर पाँच साल में चुनाव होते है। झांसी नगर की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 505,693 है, जिसमे 265449 पुरूष है जबकि 240244 महिलायें है। 0-6 वर्ष आयु के बच्चों की जनसंख्या 55824 है जो कुल जनसंख्या की 11.04 प्रतिशत है। झांसी नगर का महिला लिंग अनुपात 905 है। जबकि बाल लिंग अनुपात 866 है। झांसी नगर की साक्षरता दर 83.02 प्रतिशत है। झांसी नगर में पुरूष साक्षरता लगभग 88.90 प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता 76.57 प्रतिशत है। झांसी नगर निगम का कुल प्रशासन 91150 से अधिक घरों में है जिसमें यह पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति करता है। यह नगर निगम की सीमा के भीतर सड़कों का निर्माण करने और अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली सम्पत्तियों पर कर लगाने के लिये भी अधिकृत है। 2011 की जनगणना के अनुसार झांसी नगर में मलिन बस्तियों की जनसंख्या कुल जनसंख्या की 19.68 प्रतिशत है। झांसी नगर में 30 मलिन बस्तियां अधिसूचित है।प्रस्तुत शोध उत्तर प्रदेश के झाँसी नगर की मलिन बस्तियों मे सामाजिक स्थिति का अध्ययन आंकड़ों के आधार पर किया गया है।
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सामग्री और क्रियाविधि | प्राथमिक स्रोत: प्रस्तुत शोध अध्ययन में तथ्य संकलन के लिये प्राथ्मिक स्रोत के रुप में साक्षात्कार अनुसूची, अवलोकन, समूह चर्चाआदि विधियों का
प्रयोग किया गया। द्वितीयक स्रोत: प्रस्तुत शोध अध्ययन में द्वितीयक स्रोत के रुप में विद्वानों द्वारालिखित ग्रन्थ,
सर्वेक्षण प्रतिवेदन सरकार द्वारा दस्तावेजों,
पत्र-पत्रिकाओं आदि का उपयोग किया गया है। |
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विश्लेषण | विश्लेषणात्मक पृष्ठभूमि: समस्त संकलित आंकड़ो या सूचनाओं को चयनित क्षेत्रों से संकलित किया गया है, जिसके आधार पर मास्टर चार्ट तैयार किया गया है, तत्पश्चात सारणीयन कर विश्लेषण एवं विवेचन किया गया है। मलिन बस्तियों में सामाजिक स्थिति का अध्ययन: मलिन बस्तियो के निवासी सामान्यतः वे परिवार होते है जो कि अपनी रोजी रोटी की तलाश में ग्रामीण अंचल में अपने परिवारों से अलग होकर शहरों की ओंर पलायन करते है और अपने उपलब्ध सीमित संसाधनों में अपने परिवार का जीवन यापन करने हेतु दैनिक वेतन पर रोजगार की तलाश करते है।इस प्रकार मलिन बस्तियों के परिवारों की मानसिकता मुख्य रुप से परिवार के मुखिया के साथ साथ परिवार के महिलाओं एवं बच्चों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है जिससे उनका सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक विकास से सामंजस्य बैठाने में कहीं पीछे दूट जाता है। कुपोषण, गन्दी आदतें, आपसी झगड़े, अपराध बोध यह सभी इन परिवारों के सर्व विकास के मध्य रोड़ा बनते है। जिससे समाज का उच्च वर्ग इन परिवारों की युवा महिला शक्ति को अपने निहित स्वार्थाें हेतु प्रयोग में लाता है चाहें वह उच्च वर्गीय परिवारों एवं असंगठित व्यवसाय में काम करने वाले बंधुआ मजदूर, राजनैतिक नेताओं में अपराधिक पृवृत्ति के लोग अथवा असमाजिक तत्वों के मध्य वेश्यावृत्ति, जुआ का अडडा, सट्टा संचालित करने वाले लोंगों का समूह।इस शोध अध्ययन के अन्तर्गत झाँसी महानगर की मलिन बस्तियों के परिवारों की सामाजिक स्थिति का अध्ययन एवं विश्लेषण निम्न बिन्दुओं पर करने का प्रयास किया गया है पारिवारिक संरचना का अध्ययन: तालिका संख्या 01 परिवार के प्रकार के आधार पर वर्गीकरण
प्रस्तुत तालिका संख्या 02 के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि मलिन बस्तियों में एकल परिवारों की संख्या 75.5 प्रतिशत पायी गयी और संयुक्त परिवारों की संख्या 24.5 प्रतिशत पायी गयी। शोध अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि मलिन बस्तियों में संयुक्त परिवारों की संख्या कम होती जा रही है और एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। भारत में परिवार का तात्पर्य संयुक्त परिवारों से ही होता था लेकिन औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरुप एकल परिवारों का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। मलिन बस्तियां भी इससे अछूती नही रहीं है। आवास व्यवस्था का अध्ययन: तालिका संख्या 03 घर की स्थिति के आधार पर वर्गीकरण
प्रस्तुत तालिका संख्या 03 के अध्ययन से ज्ञात होता है कि मलिन बस्तियों में कच्चे मकानों की संख्या 81.5 प्रतिशत है और पक्के मकानों की संख्या 10.5 प्रतिशत है और झोपड़ी वाले मकानों की संख्या 8 प्रतिशत है। मलिन बस्तियों में आवास व्यवस्था बहुत दयनीय है। स्वच्छ पानी मिलना भी बड़ा मुश्किल है। आवास के पास में ही गंदगी फैली हुई है । ऐसी स्थिति में मलिन बस्तियों में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्यायें गंभीर होती जा रही है। तालिका संख्या 04वैवाहिक स्थिति के आधार पर वर्गीकरण :
प्रस्तुत तालिका संख्या 04 के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि मलिन बस्तियों में 3.5 प्रतिशत सूचनादाता अविवाहित है और 83 प्रतिशत सूचनादाता विवाहित है।11 प्रतिशत सूचनादाता विधवा है और 2.5 प्रतिशत सूचनादाता विधुर है। अध्ययन से पता चलता है कि आज भी लोग विवाह को प्रमुखता प्रदान करते है। मलिन बस्तियों में 11 प्रतिशत सूचनादाता विधवा है इससे पता चलता है कि पुरुषों में मृत्यु दर अधिक पायी जाती है। तालिका संख्या 05 वर्ग के आधार पर वर्गीकरण
प्रस्तुत तालिका संख्या 05 के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि मलिन बस्तियों में सामान्य वर्ग के 6 प्रतिशत सूचनादाता और पिछड़ा वर्ग के 28 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के 58.5 प्रतिशत, और अनुसूचित जनजाति के 7.5 प्रतिशत सूचनादाता है। मलिन बस्तियों में अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की संख्या सर्वाधिक है। निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि मलिन बस्तियों में जो सामाजिक रुप से कमजोर जातियां हैं उनकी संख्या सर्वाधिक है। |
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निष्कर्ष |
मलिन बस्तियों की
वर्ग व्यवस्था के अध्ययन पर यह पाया गया कि मलिन बस्तियों की सामाजिक स्थिति में
पारिवारिक संरचना के अध्ययन करने पर यह पाया गया किमलिन बस्तियों में एकल परिवारों
की संख्या 75.5 प्रतिशत पायी गयी और संयुक्त
परिवारों की संख्या 24.5 प्रतिशत है। मलिन बस्तियों की
पारिवारिक संरचना संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर बढ़ रही है। मलिन बस्तियों की
घर की स्थिति के अध्ययन करने पर यह पाया गया कि मलिन बस्तियों में कच्चे मकानों की
संख्या 81.5 प्रतिशत है और पक्के मकानों की संख्या 10.5
प्रतिशत है और झोपड़ी वाले मकानों की संख्या 8 प्रतिशत है। मलिन बस्तियों में अधिकतर कच्चे मकान और झोपड़ी की संख्या
अधिक पायी गयी। मलिन बस्तियों में सामान्य वर्ग के 6 प्रतिशत
सूचनादाता और पिछड़ा वर्ग के 28 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के 58.5 प्रतिशत, और अनुसूचित जनजाति के 7.5 प्रतिशत सूचनादाता
है। मलिन बस्तियों में अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की संख्या सर्वाधिक है ।
निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि मलिन बस्तियों में जो सामाजिक रुप से कमजोर
जातियां हैं उनकी संख्या सर्वाधिक है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Al Sabir (1990) Slums within
Slums, A Study of Resettlement Colonies in Delhi, New Delhi,Vikas Publishing
house Pvt. Ltd. |