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दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में स्वातंत्रयोत्तर बालिका शिक्षा का विकास |
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Development of Post-independence Girls Education in the Tribal Areas of Southern Rajasthan | |||||||
Paper Id :
18102 Submission Date :
2023-09-14 Acceptance Date :
2023-09-20 Publication Date :
2023-09-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10020606 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/shinkhlala.php#8
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सारांश |
प्रस्तुत शोध का मुख्य
उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में स्वातंत्रयोत्तर बालिका शिक्षा
के विकास का अध्ययन करना है। इसके लिए राजस्थान राज्य के बाँसवाड़ा, चित्तौडगढ़, डूंगरपुर एवं
उदयपुर जिले के कुल 40 विद्यालयों के 40 प्रधानाचार्यों, 80 शिक्षकों, 240 बालिकाओं तथा 160 अभिभावकों का चयन न्यादर्श के रूप में किया गया।
इस न्यादर्श से प्राथमिक तथ्यों का संकलन सर्वेक्षण विधि के अंतर्गत स्वनिर्मित
उपकरणों- जाँच सूची, प्रधानाचार्यों, शिक्षकों एवं अभिभावकों के लिए साक्षात्कार अनुसूची तथा बालिकाओं के लिए
अभिमतावली के माध्यम से किया गया। यह शोध जनजातियों की शिक्षा में सुधार कर उनमें
आत्मविश्वास, नेतृत्व विकास और स्वयं निर्णय क्षमता को विकसित
करने की तेजी से सलाह देता है। सरकार को जनजातीय लोगों के लिए उचित योजनाएँ बनाने
की आवश्यकता है ताकि वे समाज के उच्च स्तर के साथ मिलकर जीवन यापन कर सकें।
प्राथमिक स्कूलों की शुरुआत जनजातीय बस्तियों में होनी चाहिए, उनके अभ्यासक्रम में सुधार करने की जरूरत है और उनके लिए
उचित सुविधाएँ बढ़ानी चाहिए। उन्हें उनकी मातृभाषा या बोली में शिक्षा देने का
प्रयास किया जाना चाहिए और उन्हें सृजनशील और संस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने वाले
अभ्यासक्रम तैयार करने की आवश्यकता है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The main objective of the presented research is to study the development of post-independence girls' education in the tribal areas of Southern Rajasthan. For this, 40 principals, 80 teachers, 240 girls and 160 parents of total 40 schools of Banswara, Chittorgarh, Dungarpur and Udaipur districts of Rajasthan state were selected as samples. Primary data from this sample was collected through survey method through self-made instruments - checklist, interview schedule for principals, teachers and parents and opinion poll for girls. This research strongly suggests improving the education of the tribals to develop their self-confidence, leadership development and self-determination capacity. The government needs to make proper schemes for the tribal people so that they can live together with the higher strata of the society. Primary schools should be started in tribal settlements, their curriculum needs to be improved and proper facilities should be increased for them. Efforts should be made to provide them education in their mother tongue or dialect and there is a need to prepare curricula that promote their creative and cultural development. | ||||||
मुख्य शब्द | दक्षिणी राजस्थान, जनजाति क्षेत्र, स्वातंत्रयोत्तर बालिका शिक्षा का विकास। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Southern Rajasthan, Tribal area, Development of Girls Education after Independence. | ||||||
प्रस्तावना | शिक्षा मानव जीवन में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मनुष्य के व्यक्तिगत और
बौद्धिक विकास का माध्यम होती है और उसे आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में
सफलता प्राप्त करने के लिए तैयार करती है। शिक्षा समाज में परिवर्तन और विकास की
प्रक्रिया को बढ़ावा देने में मदद करती है और मानव अधिकारों का महत्वपूर्ण हिस्सा
होती है। बालिका शिक्षा भी एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसके लिए
समाज में समग्र विकास के लिए उचित मौके प्रदान करने की आवश्यकता होती है। विविध उपक्रमों के बावजूद भी अनुसूचित जनजाति के लोगों की आर्थिक और सामाजिक
परिस्थिति संतोषजनक नहीं है। शिक्षा से वंचित रहने की समस्या अब भी मौजूद है और
इसे हल करने की आवश्यकता है। उनकी उन्नति के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण उपाय हो
सकती है, लेकिन उनके सामाजिक परिस्थितियों में कई समस्याएं हैं जो इसको
रोक रही हैं। भाषा की समस्या भी एक मुख्य विघ्न है, क्योंकि
पाठशाला में मानक भाषा का उपयोग होता है और छात्रों को अपनी मातृभाषा के अलावा और
भाषाओं को सीखना पड़ता है, जिससे वे अप्रसन्न होते हैं।
राजस्थान, जो क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सातवां सबसे बड़ा राज्य है,
लेकिन 2011 की जनगणना के अनुसार यहां महिला
साक्षरता की दर देश में सबसे कम है, अर्थात् 52.12 प्रतिशत ही है। इसी क्रम में दक्षिणी राजस्थान की जनजाति बहुलता को देखकर
शोध की दृष्टि से यह जानना आवश्यक होता है कि इन जनजाति क्षेत्रों में स्वतंत्रता
के पश्चात् बालिका शिक्षा का विकास किस दिशा में हुआ है। इसी कारण शोधार्थी ने
दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में स्वातंत्र्योत्तर बालिका शिक्षा के
विकास का अध्ययन प्रस्तुत शोध में किया। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोध कार्य हेतु निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये गये हैं- 1. दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में स्वातंत्रयोत्तर बालिका शिक्षा के विकास का अध्ययन करना। 2. दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा के विकास की वर्तमान दशा का अध्ययन करना। 3. दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा के विकास की वर्तमान दिशा का अध्ययन करना। 4. दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा के विकास में बाधक तत्वों का अध्ययन करना। 5. दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा के विकास हेतु सुझाव प्रस्तुत करना। |
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साहित्यावलोकन | अस्करी, ए., जावेद, ए., और अस्करी, एस. (2022) ने पाकिस्तान में महिलाओं की शिक्षा पर शोध किया, जिसमें सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों और पूर्णता दर को प्रभावित करने वाली गरीबी जैसी चुनौतियों का खुलासा हुआ। लड़कियों के स्कूलों और प्रौद्योगिकी-संचालित कार्यक्रमों सहित सरकारी पहल, आशाजनक दिखती हैं। अध्ययन में महिलाओं की शिक्षा की बदलती प्रकृति पर जोर दिया गया है, प्रगति के लिए सांस्कृतिक कारकों और सरकारी हस्तक्षेप को महत्वपूर्ण बताया गया है। हेखा, कयानी (2022) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और महिला शिक्षा के लिए इसकी सिफारिशों पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को शिक्षित करने के महत्व पर जोर दिया गया है। जबकि एनईपी 2020 सुझाव प्रदान करता है, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के संबंध में समाज में चल रहे मुद्दों को दर्शाती हैं। नकावी, जी.एच. (2022) अफगानिस्तान में महिला शिक्षा के उथल-पुथल भरे इतिहास की जांच करता है। ऐतिहासिक प्रतिरोध के बावजूद, 2001 में तालिबान के शासन के बाद आशा की एक किरण उभरी। हालाँकि, अमेरिका की वापसी सहित हाल के घटनाक्रमों ने एक बार फिर महिलाओं की शिक्षा तक पहुंच को बाधित कर दिया है, जिससे अफगानिस्तान नाजुक स्थिति में है। पांडे, देवाशीष (2022) भारत में महिलाओं की शिक्षा की जांच करते हैं, उच्च शिक्षा में बढ़ती भागीदारी लेकिन धीमी वृद्धि को देखते हुए। महिला शिक्षक की उपस्थिति नामांकन पर प्रभाव डालती है, जबकि ग्रामीण महिला संस्थानों में इसकी कमी है। सुधारों के बावजूद, महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में उनकी प्रगति में बाधा डालने वाली आंतरिक और बाहरी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जज़ील, ए.एम. (2020) घरेलू जीवन, सामाजिक प्रगति, आर्थिक समृद्धि और राष्ट्रीय एकता पर इसके प्रभाव का हवाला देते हुए, स्वतंत्रता के बाद श्रीलंका में महिलाओं की शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हैं। लैंगिक समानता के लिए संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, भेदभाव, उत्पीड़न और बाल विवाह जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। हाल की विकास पहलों से महिला शिक्षा में सुधार हुआ है लेकिन महिलाओं की जरूरतों पर ध्यान जारी रखने की मांग है। मीना, सावित्री देवी (2019) दक्षिणी राजस्थान में उच्च शिक्षा में जनजाति बालिकाओं की स्थिति, चुनौतियों और संभावनाओं की जांच करती हैं। विभिन्न हितधारकों के साथ साक्षात्कार और सर्वेक्षणों का उपयोग करते हुए, अध्ययन से पता चलता है कि शहरी जनजाति बालिकाओं को आम तौर पर अपने ग्रामीण समकक्षों की तुलना में मजबूत शैक्षिक, पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक समर्थन प्राप्त होता है। शहरी क्षेत्र जनजाति बालिकाओं के लिए भविष्य के अधिक अवसर भी प्रदान करते हैं, जैसा कि प्रधानाध्यापकों, व्याख्याताओं और अभिभावकों का मानना है। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन का औचित्य किसी भी शोध कार्य या अध्ययन का महत्व और आवश्यकता तब तक नहीं होता जब तक उसका यथार्थ में विशिष्ट और मूल्यक्षम उद्देश्य नहीं होता। जिसका मूल आधार व्यावहारिक योग्यता पर होता है। इसके साथ ही, जनजाति क्षेत्र में बालिकाओं की शिक्षा को उनकी भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति से गहरा प्रभाव पड़ता है। राजस्थान में जनजाति क्षेत्रों को आमतौर पर पिछड़े हुए क्षेत्रों के रूप में देखा जाता है और इनके विकास में सामाजिक बाधाओं का प्रभाव होता है। शोध कार्य के माध्यम से यह दिखाया जा सकता है कि जनजाति बालिकाओं की शिक्षा में वर्तमान स्थिति, समस्याएँ और भविष्य के अवसरों का पता लगाया जा सकता है और उन्हें उनकी शिक्षा में सुधार की दिशा में कदम उठाने के लिए सुझाव दिए जा सकते हैं। स्वतंत्रता से पहले, राजस्थान में जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा बालकों को सामंतीय और निजी नियंत्रण में प्राप्त होती थी। इसके परिणामस्वरूप, जनजातीय शिक्षा को अनदेखा किया जाता था। कुछ व्यक्तिगत और स्वयंसेवी प्रयासों के बावजूद, जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा की कमी बनी रही। ईसाई मिशनरियों द्वारा किए गए प्रमुख प्रयासों ने जनजाति शिक्षा में सुधार किया, लेकिन उनके योगदान का मूल्यांकन भी आवश्यक है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाएं और संविधान ने जनजाति क्षेत्रों को विशेष ध्यान देने का प्रावधान किया है। इन प्रावधानों ने जनजाति शिक्षा को कितना प्रभावित किया है तथा जनजातीय बालिकाओं की शिक्षा में अब भी क्या-क्या समस्याएँ आ रही हैं, को जानने हेतु शोधार्थी द्वारा प्रस्तुत शोध कार्य करने का निर्णय लिया गया है। पारिभाषिक शब्दावली प्रस्तुत शोध में समस्या से सम्बन्धित विभिन्न चरों का अर्थ निम्नलिखित अर्थों में लिया गया है- 1. बालिका शिक्षा:- प्रस्तुत शोध में बालिका शिक्षा से शोधार्थी का आशय राजनीतिक, गैर राजनीतिक एवं महाविद्यालायी स्तर पर बालिकाओं एवं बालिका के शैक्षिक विकास हेतु किये जाने वाली प्रयासों, कार्यक्रमों एवं उपायों से है। 2. बालिका शिक्षा का विकास:- प्रस्तुत शोध में बालिका शिक्षा के विकास को विभिन्न संकेतकों यथा- साक्षरता, नामांकन, शैक्षिक उपलब्धि एवं बालिका प्रोत्साहन योजनाओं के लाभार्थी इत्यादि के रूप में चिन्हित किया गया है। 3. दशा:- प्रस्तुत शोध में दशा से शोधार्थी की आशय बालिका शिक्षा की वर्तमान स्थिति से है। 4. दिशा:- प्रस्तुत शोध में दशा से शोधार्थी की आशय बालिका शिक्षा की वर्तमान प्रवृत्ति से है। अध्ययन का परिसीमन प्रस्तुत शोध अध्ययन का परिसीमन निम्नलिखित प्रकार से किया गया है- 1. क्षेत्रवार:- प्रस्तुत शोध का अध्ययन क्षेत्र उदयपुर, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर एवं प्रतापगढ़ जिलों तक सीमित रखा गया है। 2. विद्यालयवार:- प्रस्तुत शोध में केवल उच्च माध्यमिक स्तर के राजकीय विद्यालयों को सम्मिलित किया गया है। न्यादर्शवार:- प्रस्तुत शोध अध्ययन में बालिकाओं के न्यादर्श का विभाजन सिर्फ क्षेत्र के आधार पर अर्थात् ग्रामीण तथा शहरी के अंतर्गत किया गया है। |
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परिकल्पना | प्रस्तुत शोध कार्य हेतु निम्नलिखित शोध परिकल्पनाएँ निर्धारित की गई हैं- 1. दक्षिणी राजस्थान के ग्रामीण तथा शहरी जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा की दशा में कोई सार्थक अंतर नहीं है। 2. दक्षिणी राजस्थान के ग्रामीण तथा शहरी जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा की दिशा में कोई सार्थक अंतर नहीं है। |
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न्यादर्ष |
प्रस्तुत शोध में शोधार्थी द्वारा राजस्थान राज्य के बाँसवाड़ा, चित्तौडगढ़, डूंगरपुर एवं उदयपुर जिले के कुल 40 विद्यालयों के 40 प्रधानाचार्यों, 80 शिक्षकों, 240 बालिकाओं तथा 160 अभिभावकों का चयन न्यादर्श के रूप में किया गया।
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प्रयुक्त उपकरण | किसी प्रस्तुत शोध कार्य में प्राथमिक आंकड़ों के संग्रहण हेतु निम्नलिखित स्वनिर्मित उपकरणों का उपयोग किया गया है- I. शोधार्थी के लिए जाँच सूची II. प्रधानाचार्यों के लिए साक्षात्कार अनुसूची III. शिक्षकों के लिए साक्षात्कार अनुसूची IV. अभिभावकों के साक्षात्कार अनुसूची V. बालिकाओं के लिए अभिमतावली |
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विश्लेषण | शोध सम्प्राप्तियाँ प्रस्तुत शोध की शोध सम्प्राप्तियाँ निम्नलिखित रहीं - बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजनाओं से संबंधित- 1. गार्गी पुरस्कार योजना का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त बालिकाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करना है। 2. आपकी बेटी योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे जीवन योजना यापन करने वाले परिवारों की कक्षा 01 से 12 तक की बेटियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है जिनके माता-पिता दोनों/एक का निधन हो गया है। 3. मुख्यमंत्री हमारी बेटियाँ योजना का उद्देश्य प्रतिभाशाली छात्राओं को आर्थिक कारणों से अपना अध्ययन छोड़ने की प्रवृत्ति को रोकना है। 4. निःशुल्क स्कूटी वितरण योजना के तहत ग्रामीण और पिछड़े वर्ग की छात्राओं को फ्री में स्कूटी प्रदान की जाती है ताकि उनकी साक्षरता में वृद्धि हो सके। 5. इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार योजना के तहत प्रतिभाशाली छात्राओं को पुरस्कार प्रदान किया जाता है जिन्होंने बोर्ड परीक्षाओं में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया हो। 6. विदेश में स्नातक स्तर की शिक्षा योजना में राजकीय विद्यालयों में अध्ययनरत कक्षा-10 की माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की मेरिट लिस्ट में प्रथम 3 बालिकाओं को विदेश में स्नातक स्तर की शिक्षा की सुविधा प्रदान की जाती है। 7. ग्रामीण बालिकाओं के लिए ट्रांसपोर्ट वाउचर योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र की राजकीय माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा-9 से 12 में अध्ययनरत छात्राओं को उनके निवास स्थान से विद्यालय तक और वापस आने के लिए ट्रांसपोर्ट वाउचर प्रदान की जाती है। 8. निःशुल्क साईकिल वितरण योजना के अंतर्गत सभी वर्ग की कक्षा-9 में पढ़ रही छात्राओं को साईकिल क्रय हेतु राशि प्रदान की जाती है। 9. राजस्थान के पूर्व सैनिकों की पुत्रियों को देय छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत प्रतिभाशाली बालिकाओं को पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है। 10. बालिका खेल प्रतिभा विकास योजना के तहत प्रतिभाशाली छात्राओं को विभिन्न खेलों में प्रशिक्षण और सुविधाएँ प्रदान की जाती है। 11. एकल पुत्री/द्विपुत्री योग्यता पुरस्कार योजना में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली प्रतिभाशाली बालिकाओं को पुरस्कार प्रदान किया जाता है। सांकेतक विश्लेषण से संबंधित- 1. उदयपुर जिले को छोड़कर शेष तीन जिलों - बाँसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ में महिला साक्षरता के विकास की दर, समग्र राजस्थान में महिला साक्षरता की दर 8.20 से अधिक पाई गई है। इससे प्रमाणित होता है कि दक्षिणी राजस्थान में बालिका शिक्षा का उत्तरोत्तर विकास हुआ है। 2. उदयपुर जिले को छोड़कर बाकी तीन जिलों- बाँसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ में ग्रामीण महिला साक्षरता की दर 8.50 से अधिक है, जो कि समग्र राजस्थान में ग्रामीण महिला साक्षरता के विकास को दर्शाता है। 3. दक्षिणी राजस्थान के जनजाति बहुल ग्रामीण क्षेत्रों में बालिका शिक्षा की प्रगति हुई है, और वहां के विद्यालयों में बालिकाओं के नामांकन में, शैक्षिक उपलब्धि में और विभिन्न बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजनाओं में निरंतर वृद्धि हुई है। अभिधारकों के अभिमत विश्लेषण से संबंधित- 1. 70 प्रतिशत प्रधानाचार्यों के अनुसार बालिकाओं की नामांकन में प्रगति संतोषप्रद नहीं है और 60 प्रतिशत प्रधानाचार्यों के दृष्टि में उनका शैक्षिक प्रदर्शन भी संतोषप्रद नहीं है। प्रधानाचार्यों के अनुसार, जिन बालिकाओं की शैक्षिक उपलब्धि कमजोर है, उनके शैक्षिक स्तर को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रयास किए जाते हैं। सभी प्रधानाचार्यों ने स्वीकार किया कि बालिकाएँ शैक्षिक गतिविधियों में कम, जबकि सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद, साहित्यिक प्रतियोगिताओं, स्काउट आदि में अधिक भाग लेती हैं। प्रधानाचार्यों ने बताया कि जिन जनजातीय बालिकाओं की शैक्षिक गतिविधियों में उपेक्षा दिखती है, उन्हें उनकी रूचि क्षेत्रों में प्रोत्साहित किया जाता है। प्रधानाचार्यों के अनुसार, बालिकाओं के लिए भविष्य में असीम अवसर हैं जो उन्हें आगे बढ़ने में मदद करेंगे। 2. 70 प्रतिशत शिक्षक अपने विषय में बालिकाओं के शैक्षिक प्रदर्शन को औसत से कम स्तर का मानते हैं और जिन बालिकाओं का शैक्षिक प्रदर्शन औसत से कम स्तर का पाया जाता है, उन्हें ऊपर उठाने के लिए शिक्षकों द्वारा कई प्रकार के प्रयास किए जाते हैं। शिक्षकों द्वारा उच्च शैक्षिक उपलब्धि वाली तथा सृजनशील बालिकाओं के लिए भी कई प्रकार के प्रयास किए जाते हैं। सभी शिक्षकों ने स्वीकार किया कि अन्य बालिकाओं की तुलना में विद्यालय की सह शैक्षणिक गतिविधियों में बालिकाओं की सहभागिता अपेक्षाकृत कम रहती है और दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्र की बालिकाओं के भविष्य में अवसरों को लेकर विद्यालयों के शिक्षक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। 3. दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्र के अधिकांश अभिभावकों द्वारा बालिकाओं को अध्ययन हेतु पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराई गई है और सभी अभिभावकों ने स्वीकार किया कि उनकी बालिका को अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति प्राप्त हो रही है। इसके साथ ही जनजाति क्षेत्र के अधिकांश अभिभावकों के अनुसार विद्यालय में उनकी बालिकाओं के लिए एक पृथक 'विश्राम कक्ष' की व्यवस्था होनी चाहिए और 75 प्रतिशत अभिभावकों ने यह भी मांग रखी है कि विद्यालय में एक ऐसा दिन निश्चित किया जाना चाहिए जब वे अपनी समस्या विद्यालय प्रशासन के समक्ष रख सकें। 4. बालिकाओं के अनुसार, दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा की स्थिति विभिन्न स्तरों पर विभिन्न है। पारिवारिक स्तर पर और सामुदायिक स्तर पर बालिका शिक्षा की दशा असंतोषजनक पाई गई है, जबकि विद्यालय स्तर पर दशा संतोषजनक है। यहाँ तक कि जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा की समग्र रूप से असंतोषजनक होने की चर्चा भी हो रही है और अब भी बालिका शिक्षा में सुधार के लिए प्रयासों की आवश्यकता है। बालिकाओं के अनुसार, दक्षिणी राजस्थान के शहरी जनजाति क्षेत्रों में बालिका शिक्षा की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर है, लेकिन पारिवारिक और सामुदायिक स्तर पर बालिकाओं के शिक्षा के प्रति आकर्षण में कमी हो रही है जो कि सुधार की आवश्यकता को दर्शाता है। बालिका शिक्षा के विकास में बाधक तत्व- घरेलू समस्याएँ:- बालिकाओं के लिए उपयुक्त शिक्षा का वातावरण नहीं होने के कारण वे शिक्षा के लिए प्रोत्साहन नहीं पाती हैं। अधिकांश माता-पिता अशिक्षित होते हैं जिससे शिक्षा की महत्वपूर्णता समझाने में कठिनाई होती है। घरेलू कार्यों में शामिल होने के कारण बालिकाएँ अध्ययन के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाती हैं। सामाजिक समस्याएँ:- जनजातियों के समाज में प्राचीन परंपराओं की महत्वपूर्णता है, लेकिन इसके कारण कुछ कुरीतियाँ अब भी विद्या को प्राथमिकता नहीं देती हैं। ये कुरीतियाँ बालिकाओं की शिक्षा में असमानता लाती हैं और उनकी उच्चतम शिक्षा को बाधित करती हैं। आर्थिक समस्याएँ:- बालिकाओं के परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उन्हें आवश्यक समय पर शिक्षा सामग्री नहीं मिलती है। कई बालिकाओं को मजदूरी करनी पड़ती हैं जिससे उनके अध्ययन पर असर पड़ता है। शैक्षिक समस्याएँ:- बालिकाएँ अपनी समस्याओं को शिक्षा प्रशासन को बताने में संकोच करती हैं जिससे वे सहायता नहीं प्राप्त कर पाती। शिक्षा के क्षेत्र में भी वे अंतःक्रिया करती हैं और विषय की समझ में कठिनाई होती है। अन्य समस्याएँ:- बालिकाएँ अपने साथी बच्चों को सहायता नहीं प्रदान करने में कमी कर सकती हैं, साथ ही उनकी भय, संकोच और दुश्चिंता की अधिकता भी समस्याएँ बढ़ा सकती हैं। शैक्षिक निहितार्थ प्रस्तुत अध्ययन से जो निष्कर्ष सामने आये हैं, वे कई प्रकार की शैक्षिक समस्याओं के निराकरण में सहायक हैं। इसी में इस अध्ययन के शैक्षिक निहितार्थ छुपे हुए हैं। प्रस्तुत शोध के प्रमुख शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित हैं- 1. प्रस्तुत शोध दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से ठोस कदमों की सिफारिश करता है। इसके अनुसार, इन बालिकाओं की शिक्षा का प्रारंभ कक्षा 12 से ही किया जाना चाहिए ताकि उनकी शिक्षा की आधारभूत स्तर पर पुनर्निर्माण हो सके। शिक्षा की गुणवत्ता और बालिकाओं के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए सामाजिक स्तर पर उचित प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, इन बालिकाओं को शिक्षा से संबंधित सामग्री और निःशुल्क शिक्षा सहायता उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था करनी चाहिए। 2. शोध में उजागर हुआ है कि ग्रामीण जनजाति क्षेत्रों में बालिकाओं की शिक्षा को आर्थिक परिस्थितियों की कमी से भी प्रभावित होने का संकेत है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ-साथ उच्च शिक्षा को भी रोजगारपरक बनाए और गाँवों में बिजली की व्यवस्था को सुधारें ताकि शिक्षा में सुविधाएँ मिल सकें। 3. शोध में इस बात का परिचय भी दिया गया है कि बालिकाओं की शिक्षा को प्रभावित करने में परिवारिक और सामाजिक परिस्थितियाँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शोधार्थी का मानना है कि बालिकाओं के माता-पिता को उनकी शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है और उन्हें परीक्षा के दिनों में स्थितिकरण प्रदान करना चाहिए। 4. शोध में यह भी उजागर होता है कि सामाजिक परिस्थितियों का प्रभाव भी बालिकाओं की शिक्षा पर होता है, और उन्हें निम्न शैक्षिक प्रदर्शन में विकल्पों की कमी की ओर धकेलता है। इसके लिए बालिका शिक्षा के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। 5. शोध से प्रकट होता है कि बालिकाओं की शिक्षा के पिछड़ापन का कारण शिक्षकों के साथ सही संवाद की कमी भी है। इसके लिए शोधार्थी ने सुझाव दिया है कि शिक्षकों को बिना हिचकिचाहट के बालिकाओं की समस्याओं को समझने और समाधान करने का मार्ग दिखाना चाहिए। 6. इसके साथ ही, शोध में व्यक्त किया गया है कि विद्यालयों में बालिकाओं की विशेष आवश्यकताओं के साथ साथ उनके शिक्षा को भी ध्यान में रखते हुए सुविधाओं का प्रबंधन आवश्यक है। इसके साथ ही, विद्यालय स्तर पर कैरियर काउंसलर की नियुक्ति करने की भी आवश्यकता है ताकि बालिकाएं विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में भी अवसर पा सकें। |
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निष्कर्ष |
प्रस्तुत शोध का मुख्य
उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में स्वातंत्रयोत्तर बालिका शिक्षा
के विकास का अध्ययन करना है। इसके लिए राजस्थान राज्य के बाँसवाड़ा, चित्तौडगढ़, डूंगरपुर एवं उदयपुर जिले के कुल 40 विद्यालयों के 40 प्रधानाचार्यों, 80 शिक्षकों, 240 बालिकाओं तथा 160 अभिभावकों का
चयन न्यादर्श के रूप में किया गया। इस न्यादर्श से प्राथमिक तथ्यों का संकलन
सर्वेक्षण विधि के अंतर्गत स्वनिर्मित उपकरणों- जाँच सूची, प्रधानाचार्यों, शिक्षकों एवं
अभिभावकों के लिए साक्षात्कार अनुसूची तथा बालिकाओं के लिए अभिमतावली के माध्यम से
किया गया। यह शोध जनजातियों की शिक्षा में सुधार कर उनमें आत्मविश्वास, नेतृत्व विकास
और स्वयं निर्णय क्षमता को विकसित करने की तेजी से सलाह देता है। सरकार को जनजातीय
लोगों के लिए उचित योजनाएँ बनाने की आवश्यकता है ताकि वे समाज के उच्च स्तर के साथ
मिलकर जीवन यापन कर सकें। प्राथमिक स्कूलों की शुरुआत जनजातीय बस्तियों में होनी
चाहिए, उनके अभ्यासक्रम में सुधार करने की जरूरत है और उनके लिए उचित सुविधाएँ बढ़ानी
चाहिए। उन्हें उनकी मातृभाषा या बोली में शिक्षा देने का प्रयास किया जाना चाहिए
और उन्हें सृजनशील और संस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने वाले अभ्यासक्रम तैयार करने
की आवश्यकता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Askari, A.,
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भविष्य में अवसरों का अध्ययन", पीएचडी. (शिक्षा), मोहनलाल सुखाड़िया
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