ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- VIII September  - 2023
Innovation The Research Concept

जनपद अम्बेडकरनगर (उ0प्र0) में भूमि उपयोग का प्रतीक अध्ययन

Symbolic Study of Land use in Ambedkar Nagar District (Uttar Pradesh)
Paper Id :  18131   Submission Date :  2023-09-12   Acceptance Date :  2023-09-22   Publication Date :  2023-09-25
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DOI:10.5281/zenodo.10227542
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जगदेव
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल विभाग
सन्त गणिनाथ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मुहम्मदाबाद,
गोहना मऊ ,उ0प्र0, भारत
सारांश

भूमि मानव का सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। जो कृषि सहित सभी विकास कार्यों के लिए मूलभूत आधार प्रदान करता है। भूमि पर मानव विभिन्न क्रियाकलाप करता है। वस्तुतः भूमि उपयोग भौगोलिक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण परिवर्तनशील पक्ष है जो प्रारम्भिक काल से ही मानव प्रविधि विकास क्रम के अनुसार परिवर्तित होता रहा है। भूमि उपयोग न केवल कृषि के क्षेत्र में, अपितु नगरीय विकास एवं प्रादेशिक नियोजन एवं विकास में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भौगोलिक अध्ययन में ‘भूमि प्रयोग’ (Land use) ‘भूमि उपयोग’ (Land Utilization) तथा भूमि संसाधन उपयोग (Land Resources Utilization) विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है। फॉक्स (Fox 1956) के अनुसार भूमि प्रयोग के अन्तर्गत कोई भूभाग प्रकृति प्रदत्त विशेषताओं के अनुसार रहता है। प्रारम्भिक अवस्था में भूभाग वनस्पति आवरण से आच्छादित या वनस्पति विहीन रहता है। ऐसे किसी भूभाग जो मानवीय प्रभाव से अछूता है अथवा उसका उपयोग प्राकृतिक रूप से हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि ‘प्रयोग’ (Use) तथा उपयोग (Utilization) में सूक्ष्म अन्तर है। ‘प्रयोग’ शब्द संरक्षण के सन्दर्भ में प्रयुक्त होता है। जबकि ‘उपयोग’ शब्द व्यवहार सूचक है। जहाँ ‘प्रयोग’ शब्द एक क्षणिक प्रक्रिया के रूप में प्रकृति प्रदत्त संसाधन के प्रयोग को सूचित करता है वहीं ‘प्रयोग’ शब्द एक विकासशील दीर्घकालीन प्रक्रिया को व्यक्त करता है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Land is man's most important natural resource. Which provides the basic basis for all development works including agriculture. Humans perform various activities on land. In fact, land use is an important variable aspect of geographical study which has been changing since the beginning according to the human technological development. Land use holds an important place not only in the field of agriculture but also in urban development and regional planning and development. In geographical studies, the terms ‘land use’ and land resource use are used in different meanings. According to Fox (Thwag 1956) under land use, any land area remains according to the characteristics given by nature. In the initial stage the land is covered with vegetation or remains devoid of vegetation. Any land that is untouched by human influence or is being used naturally.
It is noteworthy that there is a subtle difference between ‘Prayog’ (Nemadh) and Use (Njapaspranjapavaddh). The word ‘experiment’ is used in the context of conservation. Whereas the word ‘use’ is indicative of behaviour. While the word ‘experiment’ indicates the use of resources provided by nature as a momentary process, the word ‘experiment’ expresses a developing long-term process.
मुख्य शब्द वन, बंजर तथा कृषि अयोग्य भूमि, गैर कृषि उपयोग हेतु प्रयुक्त भूमि, कृषि योग्य बंजर, स्थायी चारागाह एवं पशुचारण, वृक्षों एवं झाड़ियों के अन्तर्गत भूमि, चालू परती, अन्य परती, शुद्धबोया गया क्षेत्र, एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Forest, barren and uncultivable land, land used for non-agricultural use, cultivable barren, permanent pasture and animal grazing, land under trees and bushes, ongoing fallow, other fallow, pure sown area, area sown more than once.
प्रस्तावना

भूमि का वर्गीकरण सामाजिक व्यवस्थाओं के आधार पर भी किया जाता है। भू-स्वामित्व, कृषि तथा सामाजिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण आधार है। भूमि का उपयोग सामाजिक व्यवस्थाओं तथा संस्थाओं से विभिन्न प्रकार से प्रभावित होता है। काश्तकारों एवं (भू) जाते व्यवस्थाओं के आधार पर भी भूमि का विभाजन किया जा सकता है। विशेषतः एशियाई देशों भारत तथा चीन में जहां पर परम्परागत कृषि मिलती है भूमि विभाजन इन कारकों से प्रभावित होता है। अतएव भू-स्वामित्व भूविभाजन (वर्गीकरण) का एक महत्वपूर्ण आधार हो सकता है। कुछ क्षेत्रों में स्वामित्व के तहत भूमि की व्यवस्था की जाती है। जिन क्षेत्रों में काश्तकारी प्रथा प्रचलित है। वहां भू-स्वामित्व कम होता है। कुछ क्षेत्रों में सहकारिता के आधार पर कृषि की जाती है। वहाँ भूमि उपयोग भिन्न रूपों में होता है। उल्लेखनीय है कि बढ़ती हुई जनसंख्या तथा ज्ञान विज्ञान में प्रगति के कारण भूमि उपयोग की सीमाओं में बहुत अधिक अधिक परिवर्तन हो गये हैं। वस्तुतः भूमि उपयोग की सीमाएं दीर्घकाल तक कभी भी स्थिर नहीं रहती है।

अध्ययन का उद्देश्य

भूमि उपयोग और भूमि संसाधनों के भरपूर उपयोग और भूमि संसाधनों के भरपूर उपयोग हेतु भूमि उपयोग का विस्तृत तथा वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराना वन नीति के अनुसार देश में 33.3 प्रतिशत क्षेत्र वन लगाना, अधिवासों और परिवहन मार्गों के उदग्र आयाम में वृद्धि कर अकृष्य भूमि क्षेत्र में वृद्धि को रोकना, बंजर और आकृष्य भूमि का वैज्ञानिक विधि से सुधार करना, स्थायी चारागाह, वृक्षों और बागों के अन्तर्गत क्षेत्र बढ़ाना, कृष्य बेकार भूमि को कृषि या वनों मे लगाना, परती भूमि को कृषि के अन्तर्गत लाना तथा बहुफसली क्षेत्र में वृद्धि कर शस्य गहनता में वृद्धि करना रहा है। एतदर्थ भूमि सुधारों के उचित कार्यान्वयन की जरूरत है ताकि भूमि का स्वामित्व वास्तविक काश्तकार को मिल सके, अवक्रमिक और बंजर भूमि के उद्धार हेतु उनका पट्टा भूमिहीन और छोटे किसानों को दिया जा सके सूक्ष्म प्रादेशिक स्तर पर प्रत्येक प्रकार की भूमि हेतु भूमि उपयोग वर्ग निश्चित किया जा सके। तथा भूमि उपयोग नीति के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को दी जा सके। भूमि उपयोग सर्वेक्षण सरीखे संगठनों को नियोजकों, प्रशासकों पर्यावरणविदों कृषि विज्ञानियों, स्थानीय लोगों एवं सरकारी संगठनों के परामर्श से भूमि उपयोग विकास परियोजनाओं का अनुश्रवण करना चाहिए और बदलती सामाजिक आर्थिक आवश्यकताओं और समय के अनुसार उपयोग नीति में स्थानीय प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर पर उपयुक्त परिवर्तन करना चाहिए।

साहित्यावलोकन

फॉक्स (Fox 1956) के अनुसार भूमि प्रयोग के अन्तर्गत कोई भूभाग प्रकृति प्रदत्त विशेषताओं के अनुसार रहता है। प्रारम्भिक अवस्था में भूभाग वनस्पति आवरण से आच्छादित या वनस्पति विहीन रहता है। ऐसे किसी भूभाग जो मानवीय प्रभाव से अछूता है अथवा उसका उपयोग प्राकृतिक रूप से हो रहा है।

सामग्री और क्रियाविधि

अध्ययनक्षेत्र में जनसंख्या के बढ़ते दबाव एवं परिणामस्वरूप खाद्यान्नों की बढ़ती मँागविकासात्मक गतिविधियो और प्रौद्योगिकी उन्नति के कारण भूमि उपयोग के प्रतिरूप और प्रकार मे निरंतर परिवर्तन देखा गया है। कतिपय ध्यान देने योग्य प्रवृत्तियों के अन्तर्गत पिछले चार दशकों के दौरान शुद्ध बोये गये क्षेत्र में वृद्धि और नब्बे के दशक में इसके सर्वोत्तर स्तर तक पहुंच जानेबंजर और अकृषितकृष्य उजाड़परती भूमि और बाग-बगीचों के क्षेत्र में घटावकृष्येत्तर उपयोग के क्षेत्र में वृद्धिनगरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण भूमि उपयोग की बढ़ती जटिलताबहुशस्यनमिश्रित शस्यनशस्य विविधता आदि के कारण ग्रामीण भूमि उपयोग का गहनीकरण और लाभोन्मुखी भूमि उपयोग पर जोर देने आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। 

अध्ययन क्षेत्र मेें भूमि उपयोग ऐतिहासिक घटनाओं, प्राकृतिक पर्यावरण के साथ आर्थिक शक्तियों की अन्तःक्रियाओं तथा समाज के मूल्यों के समुच्चय का प्रतिफल होता है। भौगोलिक क्षेत्र के उपयोग के भौगोलिक वितरण पर प्राकृतिक पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रभाव के बावजूद सांस्कृतिक पारिस्थितिकी के साथ भूमि उपयोग के परवर्ती समायोजन प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। अतएव भूमि उपयोग तथा पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों के विश्लेषण की बहुत आवश्यकता है। मानव के कृषि सम्बन्धी क्रियाकलाप स्थलीय धरातल तक सीमितहैं जिस पर सीमित मृदा आवरण, विरल जल संसाधन, उच्चावच तथा जलवायु की भिन्नताएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। विकास तथा मानवीय क्रिया कलापों में विविधीकरण के कारण भूमि के लिए स्पर्द्धा में तेजी से वृद्धि हुई है जिसके फलस्वरूप अनुकूल स्थानों पर जनसंख्या संकेन्द्रण, प्राथमिक-द्वितीय-तृतीयक-चतुर्थक क्रियाओं का गहनीकरण एवं तटीय दलदली भागों जैसे कम अनुकूल क्षेत्रों की ओर जनसंख्या का विस्थापन हुआ है।

विश्लेषण

अध्ययन क्षेत्र-

अम्बेडकरनगर जनपद उत्तर प्रदेश के अयोध्या मण्डल के अन्तर्गत इसके पूर्वी भाग में स्थित है। इसकी स्थिति 26 डिग्री 10 मिनट से 26 डिग्री 40 मिनट उत्तरी अक्षांश और 82 डिग्री 22 मिनट से 83 डिग्री 10 मिनट पूर्वी देशान्तर के मध्य है। इसके उत्तर में बस्ती, संतकबीरनगर (खलीलाबाद) तथा गोरखपुर एवं दक्षिण में सुल्तानपुर जनपद एवं पूर्वी भाग में आजमगढ़ पश्चिमी भाग में अयोध्या जनपद स्थित है। घाघरा (सरयू) नदी अम्बेडकरनगर जनपद की उत्तरी सीमा बनाती है। बस्ती, संतकबीरनगर तथा गोरखपुर जनपदों को इससे पृथक करती है।

स्थानिक कालिक विश्लेषण: अध्ययन क्षेत्र विशेष में उपलब्ध भूमि का विविध कार्यों में उपयोग होता है। इस भूमि उपयोग की दृष्टि से जब भूमि को वर्गीकृत करते हैं तो उसे भूमि उपयोग वर्गीकरण कहते हैं। स्पष्ट है कि जितने कार्यों में भूमि का उपयोग होगा भूमि उपयोग के उतने ही वर्ग होंगे। चूंकि भूमि पर किये जाने वाले कार्यों की बहुलता विविधता एवं जटिलता होती है इसलिए सूक्ष्म स्तर पर भूमि उपयोग वर्गीकरण में संवर्गों की सूची बहुत लम्बी हो जाती है। ऐसे सूक्ष्म वर्गों का वर्गीकरण एवं मानचित्रण ग्राम स्तर पर ही सम्भव होता है। अध्ययन की इकाई बड़ी होने पर इन छोटे छोटे वर्गों को उपयोग की समरूपता के आधार पर एक में मिलाकर सामान्यीकरण किया जाता है। जिससे संवर्गों की संख्या कम हो जाती है। भूमि उपयोग का यह सामान्यीकृत वर्गीकरण ही सामान्य भूमि उपयोग वर्गीकरण कहलाता है। विशालता और भूमि के उपयोग की जटिलता के कारण देश में कोई एक मानक भूमि उपयोग वर्गीकरण प्रणाली विकसित नहीं रही है। राष्ट्रीय एटलस एवं विर्मेटिकल मानचित्र संगठन अखिल भारतीय मृदा एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण विभाग, आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालय, कृषि विभाग जैसे कुछ संगठनों ने भूमि उपयोग वर्गीकरण योजना विकसित की है।

आधुनिक वैज्ञानिक युग में सभी उपलब्ध साधनों के समुचित उपयोग हेतु निम्न नए तकनीकी ज्ञान एवं संयंत्रों की उपलब्धियां से पूर्ण रूप से प्रभावित है जनपद में भूमि उपयोग प्रतिरूप के परिवर्तन स्वरूप का विवेचन एवं विश्लेषण किया गया है साथ ही वर्ष 2021-22 के अनुसार विकासखण्ड स्तर पर भूमि उपयोग प्रतिरूप का विवेचन किया गया है।

तालिका सं0 1 जनपद अम्बेडकरनगर में भूमि उपयोग प्रतिरूप (प्रतिशत मे) 

क्रम सं.

भूमि उपयोग

वर्ष 1999-2000

वर्ष 2021-22

परिवर्तन % में

1

शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल

70-99

72-72

1-73

2

कृष्य बेकार भूमि

2-59

1-89

&0-7

3

वन

0-22

0-13

&0-09

4

वर्तमान परती

5-20

3-01

&2-19

5

अन्य परती

2-76

1-11

&1-65

6

ऊसर एवं कृषि अयोग्य भूमि

1-54

1-40

&0-14

7

कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि

14-50

18-50

4

8

चारागाह

0-24

0-24

0

9

उद्यानों एवं वृक्षों, झाड़ियों का क्षेत्रफल

1-92

0-96

&0-96


जनपद अम्बेडकरनगर में भूमि उपयोग प्रतिरूप का विकासखण्ड विवरण-

शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल: जनपद स्तर पर वर्ष 1999-2000 में 70.99 प्रतिशत एवं वर्ष 2021-22 में 72.72 प्रतिशत है जो विगत वर्षों की अपेक्षा वृद्धि देखी गयी है। वहीं विकासखण्ड स्तर पर देखें तो वर्ष 1999-2000 में सबसे अधिक 76.98 प्रतिशत एवं कमी की दृष्टि से टाण्डा में 56.91 प्रतिशत पाये गये हैं वहीं वर्ष 2021-22 में सबसे अधिक कटहरी 77.99 प्रतिशत एवं कमी की दृष्टि से टाण्डा विकासखण्ड में 63.14 प्रतिशत पाये गये हैं।

वन: जनपद स्तर पर वर्ष 1999-2000 में 0.22 प्रतिशत जो वर्ष 2021-22 में 0.13 प्रतिशत ही रह गये हैं। अतः विकासखण्ड स्तर पर देखें तो वर्ष 1999-2000 में सबसे अधिक कटेहरी विकासखण्ड 0.44 प्रतिशत वहीं सबसे कम मियांव विकासखण्ड 0.0004 प्रतिशत ही रह गये हैं।

कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि: जनपद कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि: जनपद स्तर पर देखें तो वर्ष 1999-2000 में 14.50 प्रतिशत था जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 18.50 प्रतिशत हो गया है। यदि विकासखण्ड स्तर पर देखें तो वर्ष 1999-2000 में सबसे अधिक टाण्डा विकासखण्ड में 23.80 प्रतिशत एवं कमी की दृष्टि से देखें तो सबसे कम कटेहरी विकासखण्ड में 9.06 प्रतिशत पाये गये हैं वर्ष 2021-22 में सबसे अधिक टाण्डा विकासखण्ड में 26.40 प्रतिशत एवं कमी की दृष्टि से कटेहरी विकासखण्ड में 11.03 प्रतिशत ही रह गई है।

निष्कर्ष

आंकड़ों के सांख्यिकीय विवेचन व मानचित्र प्रदर्शन के सम्मिलित विश्लेषण से यह तथ्य उभरकर सामने आता है कि जनपद अम्बेडकर नगर में भूमि उपयोग के कृषि विकास की अपार संभावनाएं हैं। जनपद में जनसंख्या के दबाव को देखते हुए भूमि उपयोग में परिवर्तन देखा गया है क्योंकि जनपद में शुद्ध बोया गया क्षेत्र एवं कृषि के अतिरिक्त उपयोग के क्षेत्र में वृद्धि पायी गयी है। इसके अलावा अन्य क्षेत्रफलों में कमी पायी गयी है। विगत 22 वर्षों के अन्तराल में यह परिवर्तन देखने को मिला है। जनसंख्या की अधिकता के कारण औद्योगिक विकास एवं सड़क मार्गों का विकास अनिवार्य रूप से पाया गया है। जिससे जनसंख्या का समन्वित विकास किया जा सके। आने वाले वर्षों में जनसंख्या की गत्यात्मकता भी पाई जा सकती है जिससे भूमि उपयोग में परिवर्तन देखने को मिल सकता है। 

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. जिला कृषि विभाग अम्बेडकरनगर

2. सांख्यिकी विभाग U.P

3. व्यक्तिगत सर्वेक्षण

4. कुमार विनोद (2013): “अकबरपुर (जनपद अम्बेडकरनगर) के परिवर्तित भूमि उपयोग का एक भौगोलिक अध्ययन

5. गौतम अलका-कृषि भूगोल शारदा पुस्तक भवन इलाहाबाद (2009)

6. Shafi, M. (1960) "Land Utilization of Eastern U.P" Aligarh University

7. Chouhan, D.S : "Studies in the Utilization of Agricultural land." Ist Ed (1966) P. 48

8. Stamp LD (1950) : The Land of Britain. Its use and misuse Longman Green of Co. Ltd. London P 426