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जनसंख्या वृद्धि का कृषि प्रतिरूप पर प्रभावः जनपद सम्भल का एक भौगोलिक अध्ययन |
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Impact of Population Growth on Agricultural Pattern: A Geographical Study of Sambhal District | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18174 Submission Date :
2023-10-12 Acceptance Date :
2023-10-18 Publication Date :
2023-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10053488 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
तीव्र
गति से बढ़ती जनसंख्या ने कृषि प्रतिरूप को परिवर्तित किया है। जनसंख्या के
भरण-पोषण हेतु कृषि फसलों के प्रतिरूप में परिवर्तन प्रतीत होता है। जनसंख्या के
भोजन एवं आवास की आपूर्ति हेतु भूमि उपयोग प्रतिरूप परिवर्तित हुआ है। कृषि योग्य
भूमि का क्षेत्रफल घट रहा है। अद्यः संरचनात्मक विकास के कारण भूमि उपयोग प्रतिरूप
तीव्र गति से परिवर्तित हो रहा है, जिससे फसल प्रतिरूप भी प्रभावित हो
रहा है। औद्योगिकरण एवं नगरीकरण की बढ़ती दर ने भी कृषि प्रतिरूप को प्रभावित किया
है, क्योंकि कृषकों ने बाजार में मांग के अनुसार कृषि उत्पादों को उपजाना प्रारम्भ
कर दिया है, जिस कारण से कृषि प्रतिरूप बदल रहा है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Rapidly increasing population has changed the agricultural pattern. There appears to be a change in the pattern of agricultural crops for the sustenance of the population. The land use pattern has changed to supply food and housing to the population. The area of cultivable land is decreasing. Due to recent structural development, the land use pattern is changing at a rapid pace, due to which the cropping pattern is also being affected. The increasing rate of industrialization and urbanization has also affected the agricultural pattern, because farmers have started growing agricultural products as per the demand in the market, due to which the agricultural pattern is changing. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | कृषि प्रतिरूप, संरचनात्मक विकास, कृषि सुविधाऐं, जनसंख्या दबाव, संसाधन। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agricultural Pattern, Structural Development, Agricultural Facilities, Population Pressure, Resources. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | स्वतन्त्रता
प्राप्ति के पश्चात् भारत में जनसंख्या की तीव्र गति से वृद्धि हुई है, जिस कारण से कृषि पर जनसंख्या का उच्च दबाव पड़ा है। भोजन, आवास तथा रोजगार की प्राप्ति हेतु तीव्र गति से नियोजन प्रस्ताव पारित किये
गये। भोजन की आपूर्ति हेतु कृषि में हरित क्रांति को विकसित किया गया है। कृषि के
विकास के परिणामस्वरूप कृषि आधारित उद्योग-धन्धों की स्थापना की गयी। कृषि पर
जनसंख्या की अत्यधिक निर्भरता है, जिस कारण से बेरोजगारी एवं गरीबी
जैसी समस्याऐं बढ़ रही हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में विकास होने के कारण मृत्यु दर
उच्च स्तर पर पहुंच गयी है। उक्त के परिणाम स्वरूप जनसंख्या में तीव्र गति से
वृद्धि हो रही है। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण कृषि भूमि का प्रतिरूप बदल
रहा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जिस कारण से संसाधनों के प्रतिरूप में परिवर्तन हो रहा है। छोटे एवं सीमांत
कृषकों की आजीविका कृषि से चल पाना मुश्किल हो गया है, जिस कारण से कृषकों ने
फसल प्रतिरूप में परिवर्तन किया है।
खाद्यान्न
कृषि के स्थान पर कृषकों ने सब्जियों की कृषि को विकसित किया है, जिस कारण से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। कृषि के साथ-साथ पशुपालन
करके अतिरिक्त आय प्राप्त करना लघु एवं सीमांत कृषकों का मुख्य व्यवसाय बन गया है।
कृषि जोतों के छोटे आकार के कारण उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों प्रभावित हो रहा है।
भूमिगत जल के गिरते स्तर ने कृषि लागत में वृद्धि कर दी है। छोटे कृषकों के पास
सिंचाई के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। छोटी जोतों में मशीनों की तुलना में
मानव श्रम अधिक लगता है, जिस कारण से कृषि में लाभांश
अपेक्षाकृत कम प्राप्त होता है। यातायात एवं परिवहन सुविधाओं के विकास ने यद्यपि
ग्रामीण स्तर पर कृषि सुविधाऐं विकसित की हैं, परन्तु उनका लाभ केवल बड़े
कृषकों तक ही सीमित नजर आता है। हरित क्रांति होने के बावजूद भी छोटे कृषक ही
उन्नत कृषि तकनीकी एवं कृषि अनुदान का लाभ प्राप्त हो सका है। बढ़ती जनसंख्या की
आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन के साथ-साथ एक वर्ष में
कई बार कृषि फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। ऐसा करने से भूमि की उर्वरता क्षमता
निरन्तर घटती जा रही है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत
शोध के उद्देश्य निम्नवत् हैं- 1.
अध्ययन क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि की स्थिति को ज्ञात करना। 2. अध्ययन क्षेत्र के फसल प्रतिरूप में हुए परिवर्तन को ज्ञात करना। 3. अध्ययन क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि के कारण फसल प्रतिरूप में पड़ने वाले दबाव का मूल्यांकन करना। |
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साहित्यावलोकन | भूमि
उपयोग में परिवर्तन, फसल प्रतिरूप में परिवर्तन, कृषि पर जनसंख्या का
दबाव इत्यादि विषय पर अनेक विद्वानों ने अनुसंधान का कार्य किया है। इनके कार्यों
में से कुछ चयनित विद्वानों के कार्यों को निम्न प्रकार से वर्णित करने का प्रयास
किया गया है। सिंह एवं चौहान (2010) ने उत्तर प्रदेश में जनपद मेरठ में भूमि उपयोग
प्रतिरूप का अध्ययन 16 चरों के आधार पर प्रस्तुत किया। इन्होंने इन 16 चरों के
मध्य आपसी सह-सम्बन्ध की गणना की तथा इनके मध्य सम्बन्ध के स्तर का मूल्यांकन
प्रस्तुत किया। सिद्दिकी (2013) ने 2001-2011 की अवधि में पश्चिमी बंगाल में भूमि
उपयोग में सीमांत परिवर्तन का अध्ययन प्रस्तुत किया। इन्होंने विविध कार्यों में
संलग्न भूमि का विश्लेषण किया। इसके साथ ही कृषि विकास हेतु रणनीति तैयार की। नेगी
(2013) ने गोवा में मैंग्रोव वनों की अवस्थिति तथा उनके क्षेत्र में होने वाले
परिवर्तन हेतु 1997, 2001 व 2006 के आंकड़ों का प्रयोग कर सेटेलाइट इमेज के
आधार पर भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन का अध्ययन प्रस्तुत किया। नायक (2014)
ने कर्नाटक राज्य के वैल्लारी जनपद में भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन का
अध्ययन भौगोलिक सूचना तंत्र तकनीकी के आधार पर करने का प्रयास किया। इन्होंने
मानवीय कारकों को भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन हेतु उत्तरदायी बताया।
इन्होंने खनन एवं विर्निमाण के क्षेत्र में विस्तार के कारण कृषि भूमि क्षेत्र का
कम होना पाया। फजल (2015) ने अलीगढ़ नगर के भू-उपयोग परिवर्तन को प्रभावित करने
वाले कारकों की व्याख्या की। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि नगर का विकास तीव्र
गति से हो रहा है। निवास एवं विविध कार्यों के उपयोग हेतु की मांग में निरन्तर
वृद्धि हो रही है। रजनी (2017) ने अपने अध्ययन में बताया कि 1996-2011 की अवधि में
अध्ययन क्षेत्र जनपद अलीगढ़ में रिहायशी क्षेत्र का आकार विस्तृत हुआ है। परती भूमि, कृषि अयोग्य भूमि तथा झाड़ियों एवं वृक्षों में संलग्न भूमि के क्षेत्रफल में
कमी अंकित की गयी है। अजहर उद्दीन (2019) ने अपना शोध कार्य “उत्तर प्रदेश में भूमि उपयोग परिवर्तन का पारिस्थितिकी प्रभाव” नामक शीर्षक पर पूर्ण किया। इन्होंने अपने शोध में पाया कि उत्तर प्रदेश राज्य
में प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की प्रधानता है। प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक
दोहन से न केवल यहां पर इनके अभाव की समस्या उत्पन्न हो रही है, बल्कि इनके अभाव से पारिस्थितिकी समस्या भी उत्पन्न हो रही है। मिश्र (2021)
ने अपना अनुसंधान का कार्य “भारत में भूमि उपयोग वर्गीकरण
प्रणाली-एक पुनरावलोकन” नामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया।
इन्होंने भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन के प्रमुख कारकों तथा उनके मापन की
विधियों का अध्ययन प्रस्तुत किया। |
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मुख्य पाठ |
शोध समस्याः- तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के कारण फसल प्रतिरूप में
परिवर्तन हुआ है, जिस कारण से भूमिगत जल का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा
है। कृषि योग्य भूमि अनुर्वर होती जा रही है। कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि
के क्षेत्रफल में वृद्धि होती जा रही है। दलहन एवं तिलहन जैसी फसलों का क्षेत्रफल
घट रहा है। कृषि भू-जोतों का आकार छोटा होता जा रहा है। अध्ययन क्षेत्रः- प्रस्तुत शोध को पूर्ण करने हेतु उत्तर प्रदेश राज्य के
सम्भल जनपद का चयन किया गया है। जनपद सम्भल प्रारम्भ में मुरादाबाद जनपद की एक
तहसील था, जो वर्ष 2011 में जनपद बना। इस जनपद का प्रारम्भ
में नाम भीमनगर था, जो 23 जुलाई, 2012 को
बदलकर सम्भल कर दिया गया है। इस जनपद में 3
तहसील (सम्भल, गुन्नौर व चंदौसी) व 8
विकासखण्ड हैं। इस जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल 2453.30 वर्ग
किमी॰ है। जनपद सम्भल का अक्षांशीय विस्तार 28º35' - 28º59' उत्तरी अक्षांश तथा देशांतरीय
विस्तार 78º34' - 78º57'
पूर्वी देशांतर के मध्य अवस्थित है। जनपद सम्भल की उत्तरी सीमा पर मुरादाबाद, रामपुर
तथा अमरोहा जनपद अवस्थित है, जबकि दक्षिणी सीमा पर अलीगढ़ जनपद
अवस्थित है। पूर्वी सीमा पर बदायूं तथा पश्चिमी सीमा पर बुलन्दशहर जनपद अवस्थित
है। अध्ययन क्षेत्र मैदानी प्रदेश में अवस्थित है। यहां की भूमि कृषि योग्य है, जहां
पर विविध प्रकार की फसलों की कृषि की जाती है। सिंचाई के साधनों के रूप में
नलकूपों की प्रधानता है। जनसंख्या वृद्धिः- किसी क्षेत्र में एक निश्चित समय अन्तराल में जनसंख्या
में होने वाला परिवर्तन जनसंख्या वृद्धि को व्यक्त करता है। यदि यह परिवर्तन
धनात्मक है, तो जनसंख्या में वृद्धि और यदि ऋणात्मक है तो जनसंख्या
में हृास को दर्शाता है। जनसंख्या वृद्धि से न केवल भूमि उपयोग प्रतिरूप परिवर्तित
होता है, बल्कि फसल प्रतिरूप में भी परिवर्तन होता है। अध्ययन
क्षेत्र जनपद सम्भल में जनसंख्या में हुए परिवर्तन को निम्न सारणी में दर्शाया गया
है- सारणी-1
स्रोतः जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद सम्भल वर्ष 2011 व 2021 जिला
सांख्यिकी पत्रिका जनपद मुरादाबाद, वर्ष 1995 उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र में वर्ष 1991-2001 की
अवधि में जनसंख्या में 27.25 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि 2001-2011 की
अवधि में 22.26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यहां पर वर्ष 1991-2001 की
अवधि में सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि 35.34 प्रतिशत गुन्नौर तथा सबसे कम 19.43
प्रतिशत बनियाखेड़ा विकासखण्ड में हुई है। 2001-2011 की
अवधि में सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि 37.62 प्रतिशत बनियाखेड़ा विकासखण्ड तथा
सबसे कम 4.54 प्रतिशत रजपुरा विकासखण्ड में हुई है। उपरोक्त आंकड़ों
से स्पष्ट होता है कि यहां पर जनसंख्या की वृद्धि की दर उच्च है, जो 2.27
प्रतिशत वार्षिक 1991-2001 की अवधि में तथा 2.22
प्रतिशत वार्षिक 2001-2011 की अवधि में रही है। फसल प्रतिरूप फसल प्रतिरूप से तात्पर्य उस क्षेत्र में एक वर्ष में
उत्पन्न की जाने वाली फसलों से है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उस क्षेत्र
में उत्पन्न की जाने वाली फसलों की संख्या तथा उनके क्षेत्रफल से है। अध्ययन
क्षेत्र जनपद सम्भल के फसल प्रतिरूप को निम्न सारणी में दर्शाया गया है- सारणी-2 जनपद सम्भल का फसल प्रतिरूप (वर्ष 2020-2021)
स्रोतः जिला
सांख्यिकी पत्रिका जनपद सम्भल, वर्ष 2021 अध्ययन क्षेत्र जनपद सम्भल में धान्य फसलों का
क्षेत्रफल वर्ष 2020-21 के अनुसार 272148 हेक्टेयर है, जो
कुल फसलों का 91.99 प्रतिशत है। दलहन का क्षेत्रफल 11269
हेक्टेयर है, जो कुल फसलों का 3.81
प्रतिशत है। तिलहन फसलों का कुल क्षेत्रफल 12443
हेक्टेयर है, जो कुल फसलों का 4.20
प्रतिशत है। धान्य फसलों में यहां पर सर्वाधिक क्षेत्रफल 137441
हेक्टेयर गेहूँ की फसल के अन्तर्गत सम्मिलित है, जो
कुल फसलों का 46.46 प्रतिशत है, जबकि सबसे कम 0.03
प्रतिशत ज्वार की कृषि के अन्तर्गत सम्मिलित है। दलहन फसलों के अन्तर्गत सर्वाधिक
क्षेत्रफल 9966 हेक्टेयर उड़द की फसल के अन्तर्गत सम्मिलित है। तिलहन
फसलों में सर्वाधिक क्षेत्रफल 11360 हेक्टेयर सरसों की कृषि के अन्तर्गत
सम्मिलित है। कृषि जोतों का आकार कृषि जोतों का आकार फसल प्रतिरूप को प्रभावित करता है।
कृषि फसलों का उत्पादन एवं उत्पादकता भी इसके आकार से प्रभावित होती है। छोटी-छोटी
कृषि जोतों में मात्र भरण-पोषण की कृषि को वरीयता प्रदान की जाती है, जबकि
विस्तृत भूखण्डों पर व्यापारिक कृषि को वरीयता प्रदान करते हैं। अध्ययन क्षेत्र
में अधिकांश कृषि जोतों का आकार छोटा है, जबकि बड़ी जोतों की संख्या बहुत कम है।
अध्ययन क्षेत्र जनपद सम्भल की कृषि जोतों के आकार के वितरण को निम्न सारणी में
दर्शाया गया है- सारणी-3 जनपद सम्भल में कृषि जोतों का
वर्गीकरण (वर्ष 2020-2021)
स्रोतः जिला
सांख्यिकी पत्रिका जनपद सम्भल, वर्ष 2021 उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र में वर्ष 2020-21 के
अनुसार कृषि जोतों की कुल संख्या 305238 है, जिनका
क्षेत्रफल 197026 हेक्टेयर है। इनमें सर्वाधिक 59.79
प्रतिशत जोतों का आकार 0.50 हेक्टेयर से भी कम है। 0.50-1.00
हेक्टेयर क्षेत्रफल के आकार वाली जोतें 22.50 प्रतिशत, 1.00-2.00
हेक्टेयर आकार वाली जोतें 11.31 प्रतिशत, 2.00-4.00
हेक्टेयर आकार वाली जोतें 5.44 प्रतिशत, 4.00-10.00
हेक्टेयर आकार वाली जोतें 0.93 प्रतिशत तथा 10.00
हेक्टेयर से अधिक आकार वाली कृषि जोतों 0.03 प्रतिशत है। भूमि उपलब्धता
स्रोतः जिला
सांख्यिकी पत्रिका जनपद सम्भल, वर्ष 1991, 2011 व 2021 उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र में कृषि भूमि
उपलब्धता में जनसंख्या वृद्धि के कारण हृास हो रहा है। 1991 में
यहां पर कृषि भूमि की उपलब्धता 0.21 हेक्टेयर थी, जो
वर्ष 2001 में घटकर 0.14 हेक्टेयर रह गयी है और वर्ष 2011 में
घटकर 0.11 हेक्टेयर रह गयी है। उक्त अवधि 1991-2011 में
प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता में 0.10 हेक्टेयर की कमी अंकित की गयी है।
कृषि भूमि उपलब्धता में कमी के कारण फसल प्रतिरूप परिवर्तित हो रहा है। सैम्पल प्रस्तुत शोध को पूर्ण करने हेतु 100
व्यक्तियों का सैम्पल लिया गया है, जिसके आधार पर फसल प्रतिरूप तथा
परिवार के आकार का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है, जिसे
निम्न प्रकार से वर्णित किया गया है- सारणी-5
सारणी-6 जनपद सम्भल में चयनित व्यक्तियों के परिवार में सदस्यों की संख्या
संख्या वृद्धि का कृषि प्रतिरूप पर प्रभाव जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल
निरन्तर घट रहा है, क्योंकि आवास, सड़क, उद्योग
इत्यादि के उपयोग में कृषि योग्य भूमि का अतिक्रमण हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि
होने से उत्पन्न आवास की समस्या, परिवहन की समस्या, रोजगार
की समस्या, पर्यावरण प्रदूषण की समस्या इत्यादि का जन्म हो रहा है।
जनसंख्या वृद्धि का कृषि प्रतिरूप पर निम्न प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ते हैं- 1. कृषि
विविधता का हृास |
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न्यादर्ष |
प्रस्तुत शोध को
पूर्ण करने हेतु प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आंकड़ों का प्रयोग किया गया
है। प्राथमिक आंकड़ों का संग्रह अध्ययन क्षेत्र से प्रश्नावली/अनुसूची के माध्यम से
व्यक्तिगत साक्षात्कार विधि का प्रयोग करके प्राप्त किये गये हैं। द्वितीयक आंकड़े
जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद सम्भल से प्राप्त किये गये हैं। सेम्पल हेतु 100 व्यक्तियों का चयन
किया गया है, जिनके आधार पर शोध
समस्या के स्तर तथा परिणाम को प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। अध्ययन को
पूर्ण करने हेतु वर्णनात्मक एवं विश्लेषणात्मक शोध विधि का प्रयोग किया गया है।
शोध समस्या के स्तर तथा प्रतिरूप को व्यक्त करने हेतु विभिन्न सांख्यिकीय विधियों
का प्रयोग किया गया है। |
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निष्कर्ष |
तीव्र गति
से बढ़ती जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों पर न केवल दबाव डाल रही है, बल्कि
उनके उपयोग को भी प्रभावित कर रही है। कृषि का विकास मृदा,
सिंचाई तथा उन्नत किस्म के
बीजों पर निर्भर है, परन्तु सतत् विकास हेतु रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर
जैविक खादों का प्रयोग का प्रयोग कर न केवल कृषि भूमि को बंजर होने से बचा सकते
हैं, बल्कि जैव विविधता का भी संरक्षण कर सकते हैं। जनसंख्या की उच्च वृद्धि ने ही
कृषि प्रतिरूप तथा फसल प्रतिरूप को प्रभावित किया है। रहने के लिए आवास की निरन्तर
मांग बढ़ रही है, जिस कारण से कृषि योग्य भूमि का अतिक्रमण हो रहा है। इसी अतिक्रमण के कारण
प्राकृतिक वनस्पति का क्षेत्रफल भी निरन्तर घटता जा रहा है। खाद्यान्न फसलों का
स्थान सब्जियों एवं फलों की कृषि ग्रहण करती जा रही है। छोटे कृषक हॉर्टीकल्चर को
वरीयता प्रदान कर रहे हैं, क्योंकि खाद्यान्न की कृषि से उनकी आर्थिक
स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। औद्योगिकरण एवं नगरीकरण के कारण न केवल भूमि
उपयोग प्रतिरूप परिवर्तित हुआ है, बल्कि नगरीय क्षेत्रों का विकास एवं
विस्तार भी हुआ है। वर्तमान समय में एक्सप्रेस-वे तथा मार्गों के चौड़ीकरण के कारण
निरन्तर कृषि क्षेत्र संकुचित हो रहा है। एक्सप्रेस-वे की मांग आज बढ़ती जनसंख्या
का ही परिणाम है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | कृषि पर बढ़ती जनसंख्या के दबाव को कम करने तथा कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन की गति को कम करने हेतु निम्न उपाय किये जा सकते हैं- 1. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण 2. अनअधिकृत कॉलोनियों के विकास पर नियंत्रण 3. न्यूनतम भू-भाग का अधिकतम उपयोग 4. बहुमंजिला इमारतों का निर्माण 5. आवासीय विकास की नियोजित प्रणाली का विकास 6. रोजगार के नये स्रोतों का विकास 7. कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता को कम करना 8. कृषि आधारित उद्योग-धन्धों का विकास 9. पशुपालन को वरीयता 10. जलीय कृषि का विकास 11. जैव विविधता को संरक्षण प्रदान करने हेतु रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाना। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Mishra, D.P. (2021)– “Methods of
Land use Classification in India – A Review”, Review of Research Vol. 10, Issue
10, July 2021, ISSN: 2249–894 |