ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- IX October  - 2023
Innovation The Research Concept

ऋग्वेद में आतंकवाद विमर्श

Terrorism discussion in Rigveda
Paper Id :  18226   Submission Date :  2023-10-15   Acceptance Date :  2023-10-21   Publication Date :  2023-10-25
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DOI:10.5281/zenodo.10083452
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रमेश चन्द वर्मा
प्रोफेसर
संस्कृत
राजकीय महाविद्यालय, एवं डीन कोटा विश्वविद्यालय
कोटा, गंगापुर सिटी,राजस्थान, भारत
सारांश

इन्द्र अन्तरिक्ष का स्वामी है इस पारम्परिक अर्थ का विस्तार करते हुऐं हमें यह मानना चाहिये कि इन्द्र एक सम्राट है जिसका यौगिक अर्थ होगा जो भी ऐश्वर्य सम्पन्न है शासक है वह इन्द्र है। इस अर्थ में अन्तरिक्ष का स्वामी भी इन्द्र है तथा पृथ्वी का चक्रवती सम्राट भी इन्द्र है जैसे बराक ओबामा, मनमोहन सिंह और प्रान्तीय शासक जैसे- अशोक गहलोत, मायावती है। इनको चाहिये कि जो भी समाज में भय उत्पन्न करते है आतंक फैलाते है उनको कठोरतम दण्ड दे। जैसे अन्तरिक्ष स्थानीय इन्द्र ने वृत्र को अपने बज्र से मारा शम्बर को 40 वर्ष तक खोजकर अन्त में उसका वध किया। अन्ततः कहना यह कि शासक को राष्ट्रध्यक्ष को अपने राजधर्म का पालन करते हुऐ आतंक वादियों को मृत्युदण्ड देना चाहिऐ यही पौरूषेय वेद का आतंकवाद से निजात पाने का एक मात्र आदेश है। विद्वत् उपनिषद्। वसिष्ठ ऋषि द्वारा चौथे मण्डल के 104 वे सूक्त के बाईसवें मन्त्र में आतंकियों से हमारी रक्षा करने की प्रार्थना के साथ लेखक अपने कथन का समापन करता हैं। उलूकयातुं शुषुलूक यातुं, जहिष्वयातुम् उत कोकयातुम्सुपर्णयातुम् उत गृध्रयातुम् दृषदेव प्र मृणरक्ष इन्द्र।।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Expanding the traditional meaning that Indra is the lord of space, we should believe that Indra is an emperor whose compound meaning would be that whoever is blessed with opulence is a ruler is Indra. In this sense, the lord of space is also Indra and the Chakravati emperor of the earth is also Indra, like Barack Obama, Manmohan Singh and provincial rulers like Ashok Gehlot, Mayawati. They should give harshest punishment to those who create fear in the society and spread terror. Like the space local Indra killed Vritra with his thunderbolt, searched for Shambar for 40 years and finally killed him. Finally, to say that the ruler and the head of the nation should give death penalty to the terrorists while following their royal dharma, this is the only order of the Paurusheya Veda to get rid of terrorism. Vidvat Upanishad. The author concludes his statement with a prayer to protect us from terrorists in the twenty-second mantra of the 104th Sukta of the fourth chapter by sage Vashishtha.
मुख्य शब्द ऋग्वेद, आतंकवाद, विमर्श।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rigveda, Terrorism, Discussion.
प्रस्तावना

विश्व का प्राचीनतम उपलब्ध साहित्यिक ग्रंथ ऋग्वेद है। वेद साक्षात्कृत है। अपौरूषेय भी हैऔर पौरूषेय भी। तत्त्वात्मक वेद अपौरूषेय हैअनादि है, अनन्त हैअक्षर हैजबकि शब्दात्मक वेद पौरूषेय है। ऋचाओंकविताओं में निबद्ध हैअपौरूषेय वेद का अध्ययन साक्षात ऋषि कर सकते है जबकि पौरूषेय वेद का अध्ययन अध्यापन पठन पाठन वैज्ञानिकआधुनिक विद्वान करते हैऋषि अपने शरीर को प्रयोगशाला बनाकर अपौरूषेय वेद का साक्षात् करते है। जबकि वैज्ञानिक (आधुनिक विद्वान) लकड़ी की टेबिल पर अपने प्रयोग को अन्जाम देते है ऋषि होने के लिए ध्यान धारणासमाधि परम आवश्यक है जबकि वैज्ञानिक क्रियमाण कर्म त्यागकर घूम फिर सकते है मनोविनोद कर सकते है। ऋषि अक्षर की उपासना करते है। जबकि वैज्ञानिक क्षर का पोस्ट मार्टम करते है। निष्कर्ष यह कि अपौरूषेयवेद अक्षर है जब कि पौरूषेय वेदक्षर है। 

अध्ययन का उद्देश्य

ऋग्वेद में आतंकवाद विमर्श।

साहित्यावलोकन

विश्व का प्राचीनतम उपलब्ध साहित्यिक ग्रंथ ऋग्वेद है वेद साक्षात्कृत है अपौरूषेय भी है और पौरूषेय भी। तत्त्वात्मक वेद अपौरूषेय है अनादि है अनन्नत हैअक्षर हैजबकि शब्दात्मक वेद पौरूषेय है ऋचाओं कविताओं में निबद्ध है अपौरूषेय वेद का अध्ययन साक्षात ऋषि कर सकते है जबकि पौरूषेय वेद का अध्ययन पठन पाठन वैज्ञानिक आधुनिक विद्वान करते है। ऋषि अपने शरीर को प्रयोगशाला बनाकर अपौरूषेय वेद का साक्षात करते है। जबकि वैज्ञानिक (आधुनिक विद्वान) लकड़ी की टेबिल पर अपने प्रयोग को अन्जाम देते है। ऋषि होने के लिए ध्यानधारणासमाधि परम आवश्यक है जबकि वैज्ञानिक क्रियमाण कर्म त्यागकर घूम फिर सकते है मनोविनोद कर सकते है। ऋषि अक्षर की उपासना करते है। जबकि वैज्ञानिक क्षर का पोस्ट मार्टम करते है। निष्कर्ष यह कि अपौरूषेय वेद अक्षर है जब कि पौरूषेय वेदक्षर है। विद्वत् परिषद। इस शोधपत्र की मर्यादा पौरूषेय वेद है निबन्ध का विषय अत्याधुनिक है अतः इसमें नवीन शब्दाडम्बर आच्छादित रहेगा एतदर्थ लेखक आप सभी का क्षमा प्रार्थी है।

मुख्य पाठ

शोध पत्र की मर्यादा पौरूषेय वेद है शोध पत्र का विषय अत्याधुनिक है अतः इसमें नवीन शब्दाडम्बर आच्छादित रहेगा एतदर्थ लेखक सभी का क्षमा प्रार्थी है। ऋग्वेद में आंतकवाद की गवेषणा दुरैषणा है फिर भी अल्यल्पमत्या आपको बलात् शुश्रुषु बनाना लेखक का प्रयोजन है जिसमें अपौरूषेय भगवान वेद रक्षा करे।

आतंक शब्द का अर्थ

1. व्याकरण की दृष्टि से आ उपसर्ग पूर्वक तक हसने अथवा ताकि कृच्छ्रजीव ने धातु से धञ अथवा अच् प्रत्यय लगकर भाव अर्थ में आतंक शब्द बनता है जिसका अर्थ हॅसीकष्टग्रस्त जीवनरोगडर,भय आदि होगा।

2. प्रसिद्ध कोषकार वामनशिवराम आप्टे ने आतंक के चार अर्थ दिये है

i. रोग/शरीर की बीमारी

ii. पीड़ा अधिक व्यथावेदना

iii. डर, आशंका

iv. ढोल या तबले की आवाज

3. नालन्दा अद्यतन हिन्दी शब्दकोश में भी आतंक शब्द के चार अर्थ दिये गये है-

i. रोषदबदबा

ii. भय     

iii. रोग

iv. कठोर कार्यवाहियोंअत्याचारोंप्रकोपों आदि के कारण लोगो के मन में होने वाला भय

4. अंग्रेजी कोशकार फादर कामिल बुल्के ने आतंक के अनुवाद टेरोरिज्म के चार अर्थ दिये है-

i. आतंकित करनादहलाना

ii. त्राससंत्रासदहशत

iii. विभीषिका

iv. लोक कटंकउपद्रवी

उपर्युक्त कथ्य का विमर्श यह है कि आतंक शब्द का प्रारम्भिक प्रवृति निमित्त व्याधि था जोपहले आधि में परिवर्तित हुआ और अन्ततः वर्तमान में व्याधि और आधि शरीर और मन दोनो पर छा गया।

आतंकवाद का अर्थः- वद् के भाव को (वड़घन) को वाद अथवा वद के समूह (वदानां समूहों) को वाद कहते है अर्थात जिसमें किसी बात का भाव होअथवा विचार का भाव हो अथवा बातों विचारों का समूह हो वह वाद है और जिस विचार धारा में आतंक ही आतंक हो डर ही डर हो रोग ही रोग हो दहशत ही दहशत हो वह आतंक वाद है।

नालन्दा अद्यतन हिन्दी शब्दकोश में आतंकवाद का अर्थ इस प्रकार दिया गया है- अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए लोगों के मन में भय या आतंक उत्पन्न करने का सिद्धान्त। इन्टरनेट की गूगल सर्च में आतंकवाद के सम्बन्ध में 1,80000 पृष्ठ उपलब्ध है जो इसके विश्वव्यापी विमर्श को प्रस्तुत करते है अधिक जिझासु अन्वेषकों को नेट के नेटवर्क को खोलना रूचिकर रहेगा।

ऋग्वेद में आतंकवादः-

सभ्य सभासद्! अल्पविषयामति मैं आपका ध्यान मुख्य विषय ऋग्वेद में आतंकवाद की ओर आकृष्ट करने की धृष्टता करता हॅू। ऋग्वेद में तीन प्रकार के आतंकवादी प्राप्त होते है जो इस प्रकार है

इसका विशेष परिचय इस प्रकार है।

1. वृत्रः- इसका शाब्दिक अर्थ है- एक राक्षस का नामबादलअन्धकारशत्रुध्वनि और पर्वत। निघन्टु में पुलिंक वृत्र का पाठ तीस मेघ नामों में रखा गया है तथा नपुसकलिंग वृत्रम् पद को अट्ठाईस धन नामों में गिना गया है। यास्क ने वृत्र की निष्पत्ति इस प्रकार दी है।- तत् को वृत्र मेघ इति नैरूक्ताः। त्वाष्ट्रो - असुर इति ऐतिहासिकाः - इसको इन्द्र ने अपने वज्र से पराजित किया था। यह अलौकिक आतंकवादीयों में प्रमुख माना जाता है।

2. शम्बरः- निघन्टु मे पुलिंग शम्बरः पद का प्रयोग 30 मेध नामों में किया गया है। जबकि नपुसकलिंग शम्बर का उल्लेख 100 जल नामो में वर्णित है। इसका शाब्दिक अर्थ है- एक राक्षसपहाड़एक प्रकार का हिरणमछलीयुद्धजलबादलदौलतसंस्कार या कोई धार्मिक अनुष्ठान।

ऋग्वेद में इन्द्र के एक शत्रु का नाम है। शुष्ण पिप्रु और वर्चिन के साथ उल्लेख है। एक स्थल पर इसे कुलितर का पुत्रएक दास कहा गया है। एक स्थल के अनुसार यह स्वयं को देव मानता था। इसके 90,99,100 दुर्गो का सन्दर्भ मिलता है। इसका महान शत्रु दिवोदास अतिथिग्व था जिसने इन्द्र की सहायता से इस पर अनेक बार विजय प्राप्त की थी वास्तव में संभ्सवतः शम्बर भारत में पर्वतों पर रहने वाला एक आदिवासी आतंकवादी था।

3. दस्युः- यास्क के अनुसार इसकी निष्पत्ति हैः- दस्युः दस्यतेक्षयार्थात् उपदस्यन्ति आस्मिन रसाः उपदासयति कर्माणि’’ इसके शाब्दिक अर्थ है- दुष्कर्मियो याराक्षसो का समूह जो देवताओं के विद्रोही तथा मानव जाति के शत्रु थे और इन्द्र के द्वारा मारे गये। जाति बहिष्कृतअपने कर्तव्यों से च्युत हो जाने के कारण जाति से बहिस्कृत, 3-चोर लुटेरेउच्क्का। 4-दुष्ट उत्पातशील, 5-आततायीउद्धतः अत्याचारी।

यह कुछ संन्दिग्ध व्युत्पिति वाला शब्द है। ऋग्वेद में अनेक स्थलों पर स्पष्टतः अति मानवीय शत्रुओं के लिये व्यवह्हत् हुआ है दूसरी और स्थलों पर मानव शत्रुऔ संभवतः आदीवासीयों को भी इसी नाम से व्यक्त किया जाता है। दस्यु आर्याे का विरोधी है। आर्यगण इन्द्र की सहायता से इनको पराजित करते है। दस्युओ को यज्ञ न करने वालेसंस्कार विहिनविचित्रव्रतो में लीनदेवो से घृणा करने वाले मृध्रवाच्अनास आदि कहा गया है। दस्युओं को किसी वंश विशेष का उल्लेख नही किया गया है। फिर भी ‘दस्यु’ एक विशेष जाति कि लोग रहे होगें। (वेदिक इन्डेक्स- 1/388) चुमुरिशम्बरशुष्ण आदि प्रमुख दस्युओं के नाम है।

4. दासः- यास्क इसकी निस्पत्ति देते है- दासो दस्यतेः उपदासयति कर्माणि इसका शाब्दिक अर्थ है।- गुलाम सेवकमधुआशूद्र चौथेवर्ण का पुरूष वैदिक इन्डेक्स के अनुसार दास शब्द ऋग्वेद में दानवी प्रकृति की शत्रुऔ का घोतक है। किन्तु अनेक स्थलो पर इसको आर्या के मानव शत्रु का ही आशय है। दासो के पास दुर्गा(पुरः) थे और कबिले (विषः) थे। दासों के रंग संभवतः आदिवासियों के श्यामवर्ण का आशय है। संभवतः ऋग्वेद के शिष्नपूजको से भी इनका ही आशय है। अधिकतर दासो के सेवक अथवा दास बना लिये जाने के कारण ऋग्वेद में अने स्थलों पर दास शब्द साधारण दास का ही घोतक है। दासों के पास पर्याप्त सम्पत्ति थी। प्रमुख दासो के नाम - इलिविश चमुरिघुनिपिपू्रवर्चिन व शम्बर है।(वेदिक इन्डेक्स- 1/399-401 )

5. चुमुरिः- ऋग्वेद में यह दभीति के शत्रु का नाम है। इन्द्र ने चमुरि और इसके मित्र धनु को दभिति के लिये पराजित किया था। एक अन्य स्थल पर शम्बरपिप्रु और शुष्ण सहित चुमुरि और धनु को इन्द्र द्वारा पराजित करने का उल्लेख है ये वास्तविक रूप में मनुष्य थे अथवा दानाव यह कहना असंम्भव है किन्तु इस नाम का चुमुरि रूप एक ऐसे मनुष्य का घोतक होने का प्रमाण है जो आर्य- प्रतीत नही होता है। (वेदिक इन्डेक्स- 1/294)

6. पिप्रुः- ऋग्वेद में इन्द्र शत्रु के रूप में इसका वर्णन है- ऋजिश्वन् के लिये इन्द्र ने इसे बार-बार पराजित किया था। इसको दुर्गो का स्वामीदास और असुर भी गया है। काली संन्तान वाले और काली जाति के लोगो का मित्र भी कहा गया है। यह अनिश्चित है कि यह दानव था अथवा मानव शत्रु।(वेदिक इन्डेक्स-1/606)ऋग्वेद में उपर्युक्त आतंकवादियों के मण्डलानुसार प्राप्त सन्दर्भ इस प्रकार है।

क्र..  

प्रकार

अभिधान

संगठन

1

प्राकृतिक/अलौकिक

वृत्रशम्बरअहि

वृत्र

2

पार्थिव/लौकिक

दस्युदास

दस्यु

3

क्षेत्रीय/वर्गीय

नमुचिचुमुरिधनु

अनार्य

 

1

असुरः राक्षसः

प्रथम

34.12

2

दस्युहत्याय जज्ञेषे

प्रथम

51.6

3

विजानीहि आर्यान् च दस्यवो

प्रथम

51.7

4

इन्द्र दस्युम् दरयन्त

प्रथम

53.4

5

दस्यून् योनौ अवकृतौ

प्रथम

63.4

6

यो दस्यून् अवधुनूषे

प्रथम

78.4

7

रक्षस्यो दह प्रति

प्रथम

79.6

8

दासप्रवर्गम् रयिम् अश्साम

प्रथम

92.8

9

दस्यून शिम्यून् च पुरूषत एवैं हत्वा

प्रथम

100.18

10

इन्द्रोयो दस्यून अधरान् अवातिरत्

प्रथम

101.5

11

दासीः दस्यवे आर्भ्यम्

प्रथम

103.5

12

दस्यु हत्यायश्रवसे

प्रथम

103.4

13

देवासो दास्सय मन्युम् श्मनन् ते

प्रथम

104.2

14

दस्योः ओकः नः ददर्शि

प्रथम

104.5

15

त्रसद्स्युम्

प्रथम

112.14

16

दस्युम् मनुस्याय आर्याय

प्रथम

117.21

17

दाशा भृगवः

प्रथम

127.6

18

यातुमतीनाम्

प्रथम

133.2.3

19

मातृतमादासाः स्वयंदासः

प्रथम

158.5

20

दासाय उपबृंहनीम् कः

प्रथम

174.5

21

दासीःविशः सूर्येण सहया

द्वितीय

11.4

22

निमासिनो दानवस्य माया

द्वितीय

11.1

23

निसत्यतः सादि दस्युः इन्द्र

द्वितीय

11.8

24

स्पृध आर्येण दस्यून्

द्वितीय

11.19

25

यादासम्वणम् अधरं गुहाक्ः

द्वितीय

12.4

26

योदस्योः हन्ता

द्वितीय

12.1

27

ओतायमानं अहिजघान

द्वितीय

12.11

28

दानुं शयानम् स जनास इन्द्र

द्वितीय

12.11

29

दासवेशाय च आबह्ः

द्वितीय

13.8

30

अरज्जौ दस्युन् समुनप

द्वितीय

13.9

31

दासस्य स्वधावान्

द्वितीय

20.6

32

कृष्णयोनिः दासीःविशः वि ऐरयत्

द्वितीय

20.7

33

हत्बी दस्यून्पुरः आपसीः नितारीत

द्वितीय

20.8

34

दासस्य सुगमत्वं अस्मे धेहि

द्वितीय

21.6

35

दासपत्नीः अधुनूतम तृतीय

तृतीय

12.6

36

बाधस्व दिषेरक्षसो अमीवा

तृतीय

15.1

37

अभिमाती अयास्यः

तृतीय

25.1

38

येम देवासो असहन्त दस्यून्

तृतीय

29.9

39

दासम्

तृतीय

34.1

40

संपिपेष मायाभिः दस्यून्

तृतीय

34.9

41

हत्वी दस्यून् आर्यम् वर्णम् वर्णम् आवत्

तृतीय

34.9

42

अहिहत्ये शम्बरे

तृतीय

47.8

43

अभिमात् आयुः दस्योः

तृतीय

49.5

44

निमायावान् अद्रहमा दस्युः अर्त

चतुर्थ

16.9

45

आ दस्युध्ना नाबी

चतुर्थ

16.10

46

सधो दस्युध्ना प्रमृण

चतुर्थ

16.12

47

धिया स्यामरथयाः सुदासाः

चतुर्थ

16.21

48

शिरोदासस्य सपिणग् वधेन

चतुर्थ

18.9

49

पुरा दष्युन मन्ध्यन्दिनात् अभी कै

चतुर्थ

28.3

50

अधमान् दस्युन् विश्वमात अकृणोः

चतुर्थ

28.4

51

उत दासं के लिए बृहतः पर्चतादधि

चतुर्थ

28.4

52

अवाहन इन्द्र शम्बरर्म

चतुर्थ

29.2

53

वर्चिनः दासस्य

चतुर्थ

30.15

54

अस्वायर दासानाम इन्दो मायया

चतुर्थ

30.21

55

पुरो दासीः अमीत्य

चतुर्थ

32.10

56

त्रसदस्युः दस्युम्यः धनं ददलुः

चतुर्थ

38.1

57

त्रसदस्यु पौरूकृत्स्य ऋषि

चतुर्थ

42 वे सूक्त का

58

ते अजायन्त त्रसदस्युम्

चतुर्थ

42.8

59

अथ राजामं त्रसदस्युम् वृत्रहणं अद्ध्र देवं ददलुः

चतुर्थ

42.9

60

वधुन दस्युं प्रति हिचातयस्व

पन्चम

5.46

61

प्रतिश्वसन्तं दानवं हन

पन्चम

29.4

62

अनासो दस्यून् अमृण वधेन

पन्चम

29.10

63

अत्रा दासस्य नमुचेः शिरोयत्

पन्चम

30.7

64

शिरोदासस्य नमुचे मथावन्

पन्चम

30.8

65

स्त्रियो हिदासः आयुधानिचके

पन्चम

30.9

66

अथो पैति युधये दस्युं इन्द्र

पन्चम

30.9

67

अर्भ्यर्वन्त दस्युन्

पन्चम

31.5

68

अय दस्युन् असेधः

पन्चम

31.7

69

विधाराअक दानवं हन

पन्चम

32.1

70

स्वे औकांसि दासम् नामचित्

पन्चम

33.4

71

यथावशं नयति दासम् आर्व्यः

पन्चम

33.6

72

तुर्च्याम् दस्युम् तनूभिः

पन्चम

70.3

73

तं दस्युहन्तमम् धनन्जयम् सभीधे

षष्ठ

16.15

74

तुर्वन्तः दस्युम आय व्रतैः

षष्ठ

14.3

75

त्वं हनुत्यद अदभूयोदस्यून् एकः

षष्ठ

18.6

76

शिरो दासस्य नमुचेः मथायन्

षष्ठ

20.6

77

यया दासानि अर्याणि वृत्रा आकरः

षष्ठ

23.10

78

अरन्धयः शर्धात इन्द्र दस्यून्

षष्ठ

24.2

79

दस्यू जूतामनः स्तवान

षष्ठ

24.8

80

आर्याय किशः अवतारीः दासीः

षष्ठ

25.2

81

अव गिरेः दासम्

षष्ठ

26.5

82

शम्बरस्यपुरो जधन्त प्रतिनिध्स्योः

षष्ठ

31.4

83

हतो दासानि सहयती

षष्ठ

60.6

84

त्वं दस्यून् ओकसो अग्न आत्यज उरू ज्योति अजनयन् आर्याय

सप्तम

5.6

85

न्यूकृतून् ग्रथिमः मृध्रवाचः पणीन् अश्रस्धान् अवर्धन अयज्ञान् प्रतान् दस्यून् अग्मि विवाय पूर्वः चक्रार अपरान् अयन्जूम्

सप्तम

6.3

86

दांस यत शुष्णं कुवयं अरन्धय

सप्तम

19.2

87

पौरूकृत्सिम् त्रसदस्युं आवः

सप्तम

19.3

88

त्वं नु दस्युं चुमुरिम् धुनिं न्यस्वायपः

सप्तम

19.4

89

दासा च वृत्रा हतंआर्याणि दाशराजामः

सप्तम

83.7

90

अरं दासेम्यो मीकदुसे

सप्तम

86.7

91

दासस्य चित वृषशिप्रस्य माया

सप्तम

99.4

 

मण्डल अष्टम्

 

   

 

क्र.सं.

     ऋचांश

मण्डल

सन्दर्भ

92

अक्दस्यूम् अधूनुथाः

अष्टम

8.14.14

93

वृत्राणि वृत्रहन् जहि

अष्टम

8.17.9

94

नृभिः वृत्रम् हन्याम

अष्टम

8.21.12

95

निमायिनः तपुष रक्षसो दह

अष्टम

8.23.14

96

वृत्रहत्येन वृत्रहा

अष्टम

8.24.2

97

धिया नो वृत्रहन्तम

अष्टम

8.24.7

98

वद्यः दासस्य तुविनृम्जा नीनमः

अष्टम

8.24.27

99

नेदीयसः कुलयात् पणीम् उत

अष्टम

8.26.10

100

यः सृविन्दम् अनर्शनिम् पियुं दास अहिभुवम् वधीम उग्रो रणन्नयः

अष्टम

8.32.2

101

हतं रक्षासिं सेधतम् अभिवाः

अष्टम

8.35.11

102

वृत्रहणा अपसुजिता

अष्टम

8.38.2

103

गुष्पितम् ओजो दासस्य दम्भय

अष्टम

8.40.6

104

आत्वा पणिम् यदीम हे

अष्टम

8.45.14

105

येभिः भिदस्यूम् मनुषो निधोषयों

अष्टम

8.50.8

106

ऋषिृः त्वो तो दस्यवे वृकः

अष्टम

8.51.2

107

दासः शेवधिया अरिः

अष्टम

8.51.9

108

महान् उग्र ईशान् कृत

अष्टम

8.52.5

109

राधस्ते दस्ये वृक

अष्टम

8.55.1

110

प्रति ते दस्यवे वृकराधः

अष्टम

8.56.1

111

सहस्रा दस्यवे वृकः

अष्टम

8.56.2

112

शतं दासान् अतिसत्र

अष्टम

8.57.30

113

पाहि श्विस्माड्. रक्षसः

अष्टम

8.60.10

114

पदापणी रराधसः

अष्टम

8.64.2

115

विश्वान् बेकनासन् अहः दृश

अष्टम

8.66.10

116

इन्द्र बुद्याणि वृत्रहन्

अष्टम

8.66.1

117

निदासं शिश्णथो हथैः

अष्टम

8.70.10

118

अन्यव्रतम् अमानुषम्अज्वानम् अदेवयुम्। अवस्वः दुववीत पर्वतःसुध्नय दस्युम् पर्वतः।

अष्टम

8.70.11

119

वि वृत्रस्य अभिनत् शिरः

अष्टम

8.72.2

120

इन्द्र यत् दस्युहा अभवः

अष्टम

8.76.11

121

समित्तान वुत्रहा खिदत्पुवृद्धो दस्युहाभवत्

अष्टम

8.77.3

122

वृत्रस्य त्वा श्वसथात् ईषमाणाः

अष्टम

8.96.7

123

वृत्राणां तविषो बभूथ

अष्टम

8.96.18

124

हन्ता दस्योः मनोः वृद्धः पति दिवः

अष्टम

8.96.26

125

विश्वा अप द्विषो ब्रहि

नवम्

9.13.8

126

ध्नन्तो वृत्राणी भूर्णयः

नवम्

9.17.1

127

साद्वांसः दस्युम् अव्रतम्

नवम्

9.41.2

128

चेतन्ते दस्यु तर्हणा

नवम्

9.42.2

129

दिवोदासाय शम्बरम्

नवम्

9.61.2

130

बब्रीवांसम् महीरथः

नवम्

9.61.2

131

जहि रक्षासि सुक्रतो

नवम्

9.63.28

132

अपध्नम् सोमं रक्षसो

नवम्

9.63.29

133

यः उग्रेभ्यः चिर् ओजीयान्

नवम्

9.66.17

134

हन्ता विश्वस्याकसि सोम दस्योः

नवम्

9.88.4

135

विभर्ति चारू इन्द्रस्य नामसेनविश्वाग्नि वृत्रा जघान

नवम्

9.109.14

136

परि वृत्राणि सक्षणिः

नवम्

9.110.1

137

अकर्मा दस्युः अभि नो अमन्तृः अन्यव्रतो अमानुषः

दशम

22.8

138

वध दासस्य दम्भय

दशम

22.8

139

अव क्ष्णौमि दासास्य नामचित

दशम

23.2

140

कृरू क्षवणाम त्रासदस्यवं राजानम्

दशम

33.4

141

योनो दास आर्यो वा परिष्टुत

दशम

33.3

142

दस्युहनम् सत्यम्

दशम

47.4

143

अहं दस्युम्यः परिमृरणं आददे

दशम

48.2

144

वधः यमं न यो ररेआर्यम् नाम दस्यवे

दशम

49.3

145

सं वृत्रेव दासं वृत्रहारूजम्

दशम

49.4

146

ऋधक् कृषेः दासं कृत्व्यं हजैः

दशम

49.7

147

प्र आमः देवान् दासम् आतिरः

दशम

54.1

148

शूरः निर्थुधा अधमत् दस्यून्

दशम

55.8

149

दासा वृत्राणि आर्या जिगेथ

दशम

69.6

150

उप दस्युम् आगहि

दशम

75.5

151

त्वं जगन्थ नमुचिं मरवस्युं दासम्

दशम

73.7

152

साहयाम दासम् आर्यम् त्वया भुजा

दशम

831.53

153

हनाव दस्युन् उत बोधि आयेंः

दशम

83.6

154

अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च विश्वा जहि

दशम

83.6

155

रणाय वर्धयन् दस्युहत्याय देवाः

दशम

95.7

156

पुरः अभिनत् अर्हन दस्तुहत्ये

दशम

99.7

157

श्येनः यो अयाषिः हन्ति दस्यून्

दशम

97.8

158

दासस्य वा मधवन् आर्यस्य वा सनुतः यवया वधम्

दशम

102.3

159

ब्रजं य चक्रे सुहनाय दस्यवे

दशम

14.07

160

आवोयत् दस्युहत्ये कुत्स पुत्रम् प्रावोयत् दस्युहत्ये कुत्सवत् सम

दशम

10.41

161

शत्रुः दासायभियसं दधाति

दशम

12.2

162

किदत् दासाय प्रतिमानम् आर्यः

दशम

13.82

163

दासीः विशः सूर्येण सहयाः

दशम

148.2

164

अग्निः अत्रिम भरदवाजम् गविष्ठिरं प्रसन्नः कण्व त्रसदस्युम् आहवे

दशम

15.4

165

अभित्रहा वृत्रहा दस्युहन्त मम

दशम

18.2

166

मृगेन भीमो कुचरा गिरिष्ठाः

दशम

18.2

निष्कर्ष

मान्य सुधिजन। उपर्युक्त सन्दर्भों के निष्कर्ष पर आलोच्य शोध पत्र का विमर्ष प्रस्तुत किया जा सकता है शब्दत्मक ऋग्वेद के अनुसार वृत्र प्राकृतिक आतंकवादी है जिसके अन्य नाम शम्बर अहि इत्यादि है जिसको अन्तरिक्ष का सम्राट इन्द्र अपने वज्र से दण्डित करता है। दस्यु पार्थिव आतंकवादी है जिसके दासदानव आदि अपर अभिधान है जिसका पृथ्वी स्थानीय ऐश्वर्यसम्पन्न सम्राट (इन्द्र) अपने शस्त्र से दण्डित करता है और धनु चुमुरि नमुचि आदि क्षेत्रीय प्रान्तीय या वर्गीय आतंकवादी है जिनको प्रान्तीय शासक दण्डित करते है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. माधवीया धातुवृत्ति- द्वारिकादास-ताराबुक एचेन्सी कामछा वाराणसी 2000

2. संस्कृत हिन्दी कोश-बी.एस.आप्टे-मोतीलाल बनाटसीदास वाराणसी 1984

3. नालन्दा अधतन कोश-पुरूषोतमनारायण अग्रवाल, जगदीश बुक डिपो 1984

4. अंग्रेजी हिन्दी कोश फादरकामिल बुल्के एस. चन्द एण्ड कम्पनी रामनगर, नई दिल्ली 1997

5. नालन्दा अधतन कोश-वही

6. ऋग्वेद भाषा भाष्य (13 खण्ड) दयानन्द सरस्वती वैदिकपुस्तकालय, दयानन्द आश्रम, अजमेर संवत 2019

7. वेदो के राजनीतिक सिद्धान्त-प्रियव्रत, मीनाक्षी प्रकाशन नई दिल्ली 1983

8. वेदपरिचय, कृष्णलाल, दिल्ली विश्वविद्यालय 1990

9. वैदिक संस्कृति और सभ्यता, मुंशीराम शर्मा, ग्रन्थम् कानपुर 1987

10. संस्कृत वाड.मय का बृहत्तर इतिहास बलदेव उपाध्याय (वेद खण्ड) उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ1996       

11. वैदिक इन्डेक्स - (2 खण्ड) सम्पादक- डॉ. राम कुमार राष्, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी 1920