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कृषि विकास में
महिलाओं की भूमिका-जनपद हापुड़ का एक भौगोलिक अध्ययन |
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Role of Women in Agricultural Development-a Geographical Study of District Hapur | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18287 Submission Date :
2023-10-13 Acceptance Date :
2023-10-23 Publication Date :
2023-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का
मुख्य स्रोत कृषि तथा पशुपालन है। यहां पर निवास करने वाली जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत भाग कृषि तथा पशुपालन में संलग्न है। कृषि में
अधिकांशतः जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न है, जिससे आजीविका चलती है। कृषि कार्यों में महिलाओं की संख्या
निरन्तर बढ़ती जा रही है, जबकि पुरुष जनसंख्या निरन्तर घट रही है। छोटे
कृषक परिवार के सदस्यों सहित कृषि कार्यों में संलग्न रहते हैं। ग्रामीण स्तर पर
गरीबी एवं बेरोजगारी के कारण अधिकांशत जनसंख्या कृषि तथा पशुपालन में संलग्न है।
इतना ही नहीं महिला श्रमिकों की संख्या कृषि कार्यों में बढ़ने से उनकी आर्थिक
स्थिति में सुधार हो रहा है। महिलाओं की सर्वाधिक संलग्नता पशुपालन में प्राप्त
हुई है। यह महिलाएँ कृषि में विविध स्तर के कार्यों को नियमित रूप से करती हैं।
साक्षरता में वृद्धि के कारण इन्होंने विभिन्न समूह निर्मित करके आर्थिक स्थिति को
सुदृढ़ किया है। सस्ती दर पर महिला श्रम प्राप्त होने के कारण बुवाई, कटाई, निराई इत्यादि
कृषि कार्यों में इनका प्रतिशत उच्च प्राप्त हुआ है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The main sources of rural economy are agriculture and animal husbandry. About 70 percent of the population living here is engaged in agriculture and animal husbandry. Most of the population is directly and indirectly engaged in agriculture, which provides livelihood. The number of women in agricultural work is continuously increasing, while the male population is continuously decreasing. Small farmers are engaged in agricultural work along with family members. Due to poverty and unemployment at the rural level, most of the population is engaged in agriculture and animal husbandry. Not only this, due to increase in the number of women workers in agricultural work, their economic condition is improving. Maximum involvement of women has been achieved in animal husbandry. These women regularly perform various levels of work in agriculture. Due to increase in literacy, they have strengthened their economic situation by forming various groups. Due to availability of women labor at cheaper rate, their percentage has been higher in agricultural works like sowing, harvesting, weeding etc. |
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मुख्य शब्द | महिला श्रमिक, कृषि विकास, परिवर्तन, निर्भरता, पशुपालन। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Women Labour, Agricultural Development, Change, Dependency, Animal Husbandry | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। इसकी लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है। इसकी
आजीविका का प्रमुख स्रोत कृषि तथा पशुपालन है। कृषि प्राचीन उद्यम है। इसमें
महिलाएँ विशेष रूप से अपना योगदान प्राचीन काल से देती आ रही है। कृषि, पशुपालन तथा घरेलू कार्य के साथ-साथ महिलाएँ, बच्चों एवं बुजुर्गों की देखभाल से सम्बन्धित कार्यों को भी
नियमित रूप से करती है। कृषि से सम्बन्धित विभिन्न कार्य फसलों की बुवाई, कटाई, निराई, फसलों का एकत्रीकरण, अनाज को साफ करना इत्यादि कार्यों को महिलाएँ वर्ष पर्यन्त करती हैं। महिलाएँ
पशुपालन के कार्य में अत्यधिक रूप से संलग्न हैं। इनमें वह दूध निकालना, मक्खन बनाना, घी बनाना, पशुओं को चारा खिलाना, चारे की व्यवस्था करना, पशुओं को निहलाना इत्यादि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त डेयरी उत्पाद को बाजारों
में बेचने का भी कार्य महिलाएँ करती हैं। पुरुषों के गैर कृषि कार्यों में संलग्न
होने के कारण महिलाओं पर पशुपालन की जिम्मेदारी अधिक रहती है।
फल-फूल एवं साग-सब्जी की कृषि में मानव श्रम की अधिक आवश्यकता होती है। पुरुषों की तुलना में महिला श्रम सस्ती दर पर प्राप्त होने के कारण महिलाएँ उक्त कार्य में अधिक संलग्न हैं। बाजारों में फल एवं सब्जी बेचने में महिलाएँ मुख्य भूमिका निभा रही हैं। इन कार्यों में मुख्यतः मध्यम एवं निम्न आय वर्ग की महिलाएँ संलग्न हैं, जबकि उच्च आय वर्ग की महिलाएँ गैर कृषि कार्यों में संलग्न मिलती है। वह व्यापार एवं नौकरी को वरीयता प्रदान करती हैं। इसी कारण इनके मध्य आर्थिक विषमता दिखलाई पड़ती है। कृषि में लगभग 35 प्रतिशत महिलाएँ संलग्न हैं। कई महिलाओं ने कृषि में अपनी अलग पहचान बनायी है, जिससे अन्य लोगों को प्रेरणा मिली है। दिन-प्रतिदिन कृषि में परिवर्तन होता जा रहा है। कृषि में तकनीकी का प्रयोग होने से उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है, जिससे कृषि आधारित उद्योग-धन्धों का विकास हुआ है। यह उद्योग-धन्धे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार में वृद्धि करते हैं, जिससे आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। शोध समस्याः-
ग्रामीण स्तर पर कृषि एवं
पशुपालन विकसित होने से महिलाओं के लिए रोजगार के संसाधनों में वृद्धि हुई है।
घरेलू कार्यों में महिलाओं की संलग्नता में वृद्धि हुई है। डेयरी उद्योग का विकास
अधिकांशतः महिला श्रम का परिणाम है। कृषि जोतों के छोटे आकार के कारण तथा फल-फूल
एवं साग-सब्जी की कृषि ने मानव श्रम को बढ़ावा दिया है। पुरुषों की गैर कृषि
कार्यों में भागीदारी बढ़ने के कारण महिला श्रम का प्रतिशत कृषि एवं पशुपालन में
बढ़ा है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. अध्ययन क्षेत्र में कृषि तथा पशुपालन में महिलाओं
की संलग्नता को ज्ञात करना। 2. अध्ययन क्षेत्र में महिला साक्षरता में हुए परिवर्तन को ज्ञात करना। 3. अध्ययन क्षेत्र में महिलाओं की मासिक आय को ज्ञात करना। |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण
करने हेतु निम्न शोध कार्यों का अध्ययन किया गया है। इनके अवलोकन को कालक्रमानुसार
निम्न प्रकार से व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया है- अग्रवाल एवं शर्मा (2013)
ने अपना शोध कार्य कृषि में महिलाओं का योगदान तथा उनके समक्ष उपस्थित चुनौतियों
के संदर्भ में प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध में पाया कि जम्मू जनपद में
महिलाएँ विभिन्न कृषि कार्यों में संलग्न है। वह निम्न मजदूरी, अत्यधिक श्रम अवधि, निम्न लाभांश, अनिश्चित मजदूरी, देरी से भुगतान इत्यादि समस्याओं का सामना कर रही है। मण्डल (2013) ने अपना
शोध पत्र महिलाओं का कृषि क्षेत्र में योगदान के संदर्भ में पश्चिमी बंगाल के सागर
द्वीप को आधार मानकर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध में पाया कि महिलाऐं कृषि, पशुपालन, मत्स्यन तथा खनन
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह फसलों के उत्पादन से लेकर कटाई एवं सफाई के
कार्यों के अतिरिक्त पशुओं से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों चारा की व्यवस्था, दूध निकालना, मक्खन एवं घी बनाना, पशुओं के बच्चे की देखभाल करना, दवाई, निहलाना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर बांधना इत्यादि कार्यों में
संलग्न रहती है। जयशीला (2015) ने अपना शोध पत्र कृषि क्षेत्र में महिलाओं की
भूमिका के संदर्भ में प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध में पाया कि महिलाओं का
कृषि में अतुलनीय योगदान है। वह कृषि कार्यों में विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से
संलग्न रहती है। पशुओं के लिए चारा, ईंधन की व्यवस्था, फसलों की कटाई, निराई, बुवाई, सफाई इत्यादि कठिन कार्यों में उनकी संलग्नता उच्च स्तर पर है। इन कार्यों में
महिलाओं का अत्यधिक समय लगता है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक बाधाओं के बावजूद भी वह
श्रमिक बाजार में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है। दास (2015) ने उड़ीसा में
कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में अध्ययन प्रस्तुत किया।
इन्होंने अपने शोध में पाया कि महिला श्रमिक कृषि कार्यों में अधिक सक्रिय है।
इनकी सरलता से उपलब्धता तथा सस्ता श्रम कृषि में इनकी भागीदारी के लिए उत्तरदायी
है। स्थानीय स्तर पर रोजगार प्राप्त होने से महिलाएँ कृषि में सरलता से संलग्न हो
जाती हैं। तटवर्ती क्षेत्र होने से मत्स्यन, चारा एवं ईंधन में भी यहां पर महिलाएँ संलग्न है। मुल्तानी एवं संघवी (2017)
ने अपने शोध पत्र में पाया कि वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर भारत में कृषि से
सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के कार्यों में महिलाएँ 41.1 प्रतिशत संलग्न है।
इन्होंने बताया कि पुरुष वर्ग दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु नगर में मजदूरी के
लिए चला जाता है, जबकि महिला वर्ग घर पर कृषि तथा पशुपालन के
कार्यों में संलग्न रहती है। वह घरेलू एवं पारिवारिक कार्यों के साथ-साथ आर्थिक
विकास हेतु कृषि तथा पशुपालन से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों को करती है। पाटिल एवं
बाबू (2018) ने अपने अनुसंधान में पाया कि महिलाओं ने कृषि विकास हेतु एक नई
आधारशिला रखी है। घरेलू कार्यों की व्यस्तता के बावजूद भी कृषि तथा पशुपालन में
नियमित रूप से 7-8 घण्टे प्रतिदिन कार्य को करती है। कृषि श्रमिक के रूप में निम्न
मजदूरी पर भी महिलाएँ कृषि कार्यों को निरन्तर रूप से करती हैं। मनेश, मंजू एवं कविता (2019) ने अपना शोध पत्र “कृषि में महिलाओं की भूमिका- एक समीक्षा” नामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध पत्र में
बताया कि महिलाएँ कृषि एवं पशुपालन में औसत 8-9 घण्टे प्रतिदिन कार्य करती है।
इसके अतिरिक्त घरेलू कार्यों में औसतन 4 घण्टे कार्य प्रतिदिन करती है। इन्होंने
बताया कि कृषि में महिला श्रम पुरुषों से बेहतर है। यह महिलाएँ फसल, बुवाई, कटाई, निराई, ढुलाई, सफाई, सिंचाई, दवाई छिड़कवाना, फसल संग्रह इत्यादि कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गौतम (2020) ने
अपना शोध पत्र “कृषि में महिलाओं की भूमिका” नामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध में पाया
कि ग्रामीण जनसंख्या की आर्थिक वृद्धि का प्रमुख आधर कृषि है। इसके माध्यम से ही
गरीबी एवं बेरोजगारी को कम किया जा सकता है। इन्होंने बताया कि ग्रामीण जनसंख्या
का लगभग 70 प्रतिशत भाग कृषि तथा उससे सम्बन्धित कार्यों में संलग्न है। इन्होंने
कृषि कार्यों में लैंगिग अन्तराल को दर्शाया है। इन्होंने बताया कि यद्यपि कृषि
कार्यों में महिलाओं की संलग्नता बढ़ी है, परन्तु कुल संलग्नता में कमी अंकित की गयी है। युवराज, पूनम एवं प्रवीन (2020) ने अपना शोध पत्र “कृषि में महिलाओं की भूमिका-एक समीक्षा” नामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध पत्र में
पाया कि भारत में महिला कृषक, श्रमिक एवं
उद्यमी की भागीदारी कृषि क्षेत्र में बढ़ती जा रही है। इन्होंने बताया कि वर्ष 2018
में कृषि क्षेत्र में 80 प्रतिशत रोजगार प्रदान किया है। वर्ष 2017-18 के आर्थिक
सर्वे में पाया गया कि पुरुषों का नगरों की ओर पलायन होने से कृषि में महिलाओं की
भागीदारी बढ़ी है। कुककुट पालन में महिलाओं का योगदान बढ़ता जा रहा है। परिवार के
लिए भोजन तथा पशुओं के लिए चारा एवं ईंधन की व्यवस्था करने में महिलाओं का योगदान
पुरुषों से अधिक पाया गया है। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन
क्षेत्रः-
प्रस्तुत शोध को पूर्ण करने
हेतु जनपद हापुड़ का चयन किया गया है। इसके अन्तर्गत जनपद का ग्रामीण क्षेत्र चयनित
किया गया है। यह जनपद भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 60 किमी॰ की दूरी पर पूर्व में अवस्थित है। यह पश्चिमी उत्तर
प्रदेश में अवस्थित एक जनपद है, जिसका मुख्यालय
हापुड़ नगर में अवस्थित है। जनपद गाजियाबाद की तीन तहसीलों हापुड़, धौलाना व गढ़मुक्तेश्वर को पृथक करके 28 सितम्बर, 2011 को नया जनपद
बनाया गया, जिसका मुख्यालय हापुड़ नगर में अवस्थित है। इसका
भौगोलिक क्षेत्रफल 1116 वर्ग किमी॰ है। इसके अन्तर्गत 329 गाँव सम्मिलित है। इस जनपद की वर्ष 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या 13.38 लाख है, जिसमें 9.4 लाख ग्रामीण व 3.98 लाख नगरीय जनसंख्या सम्मिलित हैं। |
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परिकल्पना | प्रस्तुत शोध को पूर्ण करने हेतु निम्न शोध परिकल्पनाओं का प्रयोग किया गया है- 1. पुरुषों के गैर कृषि कार्यों की ओर बढ़ने के कारण महिलाओं की भागीदारी कृषि कार्यों में बढ़ रही है। 2. ग्रामीण स्तर पर शिक्षण संसाधनों में वृद्धि होने तथा आर्थिक स्थिति में सुधार होने से महिलाओं की साक्षरता दर में वृद्धि हो रही है। 3. कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन से महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध में प्राथमिक
एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। प्राथमिक आँकड़ों का
चयन प्रश्नावली/अनुसूची का प्रयोग करके व्यक्तिगत साक्षात्कार विधि से किया गया
है। इसके साथ ही साथ क्षेत्रीय भ्रमण, अन्वेषण एवं पर्यवेक्षण द्वारा भी प्राथमिक आँकड़े एकत्र किये गये हैं।
द्वितीयक आँकड़े जनपद हापुड़ की जिला सांख्यिकी पत्रिका से प्राप्त किये गये हैं।
इसके साथ ही साथ विभिन्न इंटरनेट साईटस का प्रयोग द्वितीयक आँकड़े एकत्रित करने में
किया गया है। इन आँकड़ों के प्रदर्शन हेतु सारणीयन का प्रयोग किया गया है। शोध
समस्या के स्तर एवं प्रतिरूप को दर्शाने हेतु विभिन्न सांख्यिकीय विधियों का
प्रयोग किया गया है। |
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न्यादर्ष |
प्रस्तुत अध्ययन को पूर्ण करने हेतु 200 महिलाओं का चयन यादृच्छिक विधि (Randomly Method) द्वारा किया गया है। इन आँकड़ों के एकत्रीकरण हेतु निम्न न्यादर्श प्रारूप का प्रयोग किया गया है- सारणी-1
प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण
करने हेतु 8 गाँवों को सेम्पल के रूप में चयनित किया गया है। प्रत्येक गाँव से
25-25 महिलाओं को सेम्पल हेतु चयनित किया गया है। इस प्रकार कुल 200 महिलाओं को
सेम्पल हेतु चयनित किया गया है। |
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विश्लेषण | अध्ययन क्षेत्र
की व्यवसायिक संरचनाः- सारणी-2 जनपद हापुड़ की
व्यवसायिक संरचना (जुलाई 2023)
उपरोक्त सारणी के अनुसार
अध्ययन क्षेत्र जनपद हापुड़ में 21.54 प्रतिशत महिला
कृषक का कार्य करती हैं, जबकि पुरुष 78.46 प्रतिशत कृषक के रूप में कार्य करते हैं। यहां पर 42.40 प्रतिशत व्यक्ति कृषक के रूप में कार्यरत हैं। कृषि श्रमिक
16.88 प्रतिशत, पारिवारिक
श्रमिक 1.20 प्रतिशत, पशुपालन में 13.85 प्रतिशत, उद्योग-धन्धे 8.25 प्रतिशत तथा 4.65 प्रतिशत व्यक्ति व्यापार एवं वाणिज्य में संलग्न हैं। यहां पर 3.50 प्रतिशत परिवहन तथा 9.27 प्रतिशत व्यक्ति सेवाओं में संलग्न हैं। उक्त कार्यों में महिलाएँ कृषक 21.54 प्रतिशत, कृषि श्रमिक 42.57 प्रतिशत, पारिवारिक
श्रमिक 23.85 प्रतिशत, पशुपालन 57.74 प्रतिशत, उद्योग-धन्धे 32.70 प्रतिशत, व्यापार एवं वाणिज्य 18.32 प्रतिशत तथा सेवाओं में 34.78 प्रतिशत महिलाएँ सम्मिलित हैं। उपरोक्त आँकड़ों से स्पष्ट
होता है कि यहां पर सर्वाधिक 57.74 प्रतिशत
महिलाएँ पशुपालन में संलग्न है। यहां पर उक्त कार्यों में पुरुषों की भागीदारी 71.06 प्रतिशत तथा महिलाओं की भागीदारी 28.94 प्रतिशत है। कृषि एवं
पशुपालन में महिलाओं की संलग्नताः- कृषि एवं पशुपालन में
महिलाओं का योगदान बढ़ता जा रहा है। फल-फूल एवं साग-सब्जी की कृषि में मानव श्रम की
अधिक आवश्यकता होती है। महिला श्रम सस्ता होने के कारण तथा सरलता से प्राप्त होने
के कारण इनकी भागीदारी बढ़ती जा रही है। इसके साथ-साथ पुरुषों का गैर कृषि कार्यों
में संलग्नता के स्तर में वृद्धि होने से भी महिलाओं की संलग्नता कृषि तथा पशुपालन
में बढ़ रही है। अध्ययन हेतु चयनित 200 महिलाओं के सेम्पल सर्वे के आधार पर कृषि तथा पशुपालन में महिलाओं की
संलग्नता को निम्न सारणी में दर्शाया गया है- सारणी-3 चयनित सेम्पल के आधार पर महिलाओं की कृषि एवं पशुपालन में संलग्नता (जुलाई 2023)
स्रोतः शोधार्थी द्वारा सर्वेक्षित आँकड़ों की गणना पर आधारित। उपरोक्त सर्वेक्षित आँकड़ों
का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यहां पर चयनित महिलाएँ बुवाई के कार्य में 69.00 प्रतिशत, निराई के कार्य
में 73.00 प्रतिशत, कटाई के कार्य में 76.00 प्रतिशत, सफाई के कार्य में 61.00 प्रतिशत तथा फसलों एवं अनाज के एकत्रीकरण में 60.00 प्रतिशत महिलाएँ संलग्न हैं। पशुपालन के कार्य में 86.00 प्रतिशत, दूध निकालने, 94.00 प्रतिशत मक्खन बनाने, 94.00 प्रतिशत घी बनाने में 94.00 प्रतिशत, 70.00 प्रतिशत महिलाएँ, पशुओं के लिए चारा लाने, 82.50 प्रतिशत पशुओं
को चारा खिलाने, 69.00 प्रतिशत पशुओं को निलहाने, 85.00 प्रतिशत महिलाएँ पशुओं की देखभाल करने में संलग्न है। इसके
अतिरिक्त 88.00 प्रतिशत महिलाएँ पशुशाला की सफाई करने, 95.00 प्रतिशत महिलाएँ गोबर से उपले बनाने तथा 95.00 प्रतिशत महिलाएँ गोबर को खाद हेतु एकत्रीकरण के कार्य में
संलग्न हैं। उक्त आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि पशुपालन में महिलाओं की उच्च संलग्नता
है, जबकि कृषि में भी इनकी संलग्नता बढ़ती जा रही है। महिला साक्षरता
में परिवर्तनः- वर्ष 1991 के पश्चात महिला साक्षरता में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
साक्षरता में वृद्धि होने से न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि उनकी कार्य संरचना भी परिवर्तित हुई है। प्राथमिक
क्रिया-कलापों के स्थान पर द्वितीयक एवं तृतीयक श्रेणी के क्रिया-कलापों में
महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है। साक्षरता में वृद्धि के परिणाम स्वरूप
महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई है। अध्ययन क्षेत्र जनपद हापुड़ में
महिलाओं की साक्षरता में हुए परिवर्तन को निम्न सारणी में दर्शाया गया है- सारणी-4 जनपद हापुड़ में महिला साक्षरता में परिवर्तन (वर्ष 1991-2011)
स्रोतः जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद हापुड़, वर्ष 2001, 2005 व 2015 उपरोक्त सारणी के अनुसार
अध्ययन क्षेत्र में महिला साक्षरता में वर्ष 1991-2001 की अवधि में 17.95 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2001-2011 की अवधि में 3.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 1991-2011 की अवधि में
महिला साक्षरता में 21.41 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। साक्षरता में वृद्धि
होने के कारण तथा गैर कृषि कार्यों में रोजगार के अवसर बढ़ने के कारण कृषि में
महिला श्रमिकों की संख्या घटती जा रही है। इसी के साथ-साथ कृषि में कृषि यंत्रों व
मशीनरी का प्रयोग बढ़ने से भी महिला श्रमिकों की संख्या कम हुई है, परन्तु पशुपालन में महिलाओं की भूमिका बढ़ती जा रही है। महिलाओं की
मासिक आयः-
उपरोक्त सारणी के अनुसार चयनित 200 महिलाओं में 46.50 प्रतिशत महिलाएँ उच्च आय वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित पायी गयी हैं, जबकि 32.50 प्रतिशत महिलाओं की औसत मासिक आय मध्यम स्तर की है। 21.00 प्रतिशत महिलाएँ निम्न आय वर्ग में सम्मिलित हैं। उक्त आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। उच्च आय वर्ग में 46.50 प्रतिशत महिलाओं का सम्मिलित होना महिलाओं के आर्थिक विकास को दर्शाता है। रोजगार की प्राप्तिः- अध्ययन हेतु चयनित महिलाओं की कृषि में रोजगार की प्राप्ति हेतु अध्ययन किया गया है। इसमें कृषि श्रमिक को सम्मिलित कर अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। रोजगार प्राप्त दिवस के आधार पर कृषि महिला श्रमिकों को निम्न सारणी में रखा गया है- सारणी-6 चयनित महिलाओं
की कृषि में रोजगार की प्राप्ति (वर्ष 2022-23)
उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र से चयनित 200 महिलाओं में कृषि श्रमिकों को एक वित्तीय वर्ष में कृषि में रोजगार 22.50 प्रतिशत महिलाओं को सर्वाधिक 90-120 दिन प्राप्त हुआ है, जबकि 210 दिन से अधिक रोजगार केवल 7.50 प्रतिशत महिलाओं को प्राप्त हुआ है। इनमें 7.00 प्रतिशत महिलाओं ने केवल 30 दिन से भी कम रोजगार प्राप्त किया, जबकि 8.50 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार 30-60 दिन प्राप्त हुआ। 10.00 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार 60-90 दिन प्राप्त हुआ है। 18.50 प्रतिशत महिलाओं ने रोजगार 120-150 दिन प्राप्त हुआ है। 12.00 प्रतिशत महिलाओं ने रोजगार 150-180 दिन प्राप्त किया। 14.10 प्रतिशत महिलाओं को 180-210 दिन रोजगार वित्तीय वर्ष 2022-23 में प्राप्त हुआ है। यहां पर केवल 21.50 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार 180 दिन से भी अधिक प्राप्त हुआ है। कृषि में मौसमी रोजगार की प्राप्ति होती है, जिससे अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है। |
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निष्कर्ष |
ग्रामीण क्षेत्र में कृषि
के बदलते प्रतिरूप ने महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान किये हैं। पुरुष वर्ग की
गैर कृषि कार्यों में संलग्नता बढ़ने से कृषि तथा पशुपालन में महिलाओं की संलग्नता
बढ़ती जा रही है। घरेलू कार्यों के साथ-साथ महिलाएँ कृषि एवं पशुपालन से सम्बन्धित
विभिन्न कार्यों को नियमित रूप से करती है। उक्त कार्यों को करने से उनकी आर्थिक
स्थिति में सुधार हुआ है। महिलाएँ पशुपालन के कार्य में अत्यधिक संलग्न हैं।
पशुपालन से इनको औसत मासिक आय 26500 रू॰ प्राप्त
होती है। फसलों की बुवाई, कटाई, निराई, एकत्रीकरण, अनाज की सफाई, सिंचाई, दवाईयों का छिड़काव इत्यादि कृषि कार्यों में महिला संलग्नता उच्च स्तर पर है।
इतना ही नहीं फल, फूल, सब्जी बेचने में महिलाएँ महत्वपूर्ण योगदान प्राप्त कर रही हैं। इस कार्य से
औसत मासिक आय 21000 रू॰ प्राप्त होती है। पशुओं से सम्बन्धित
विभिन्न स्तर के कार्यों में महिलाओं की संलग्नता उच्च स्तर पर है, जिसमें दूध निकालना, मक्खन एवं घी बनाना, चारा लाना, पशुशाला की सफाई, पशुओं के बच्चों की देखभाल, पशुओं को निहलाना, चारा डालना इत्यादि सम्मिलित हैं। इन कार्यों में महिलाओं का महत्वपूर्ण
योगदान है। यद्यपि पुरुषों का भी इन कार्यों में सहयोग प्राप्त होता है, परन्तु गैर कृषि कार्यों में पुरुषों की संलग्नता उच्च होने
के कारण उनका महत्व गौंण स्तर पर प्राप्त होता है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | कृषि विकास में महिलाओं के योगदान तथा उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु निम्न सुझाव प्रस्तुत हैं- 1. पशुपालन में रोजगार की सम्भावना उच्च एवं नियमित है। पशुपालन को उच्च स्तर पर विकसित करके डेयरी उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे परिवार की मासिक आय को 3 गुना तक बढ़ाया जा सकता है। 2. कृषि में फल, फूल एवं सब्जियों के उत्पादन को वरीयता प्रदान कर वर्ष पर्यन्त रोजगार एवं उच्च आय की प्राप्ति सम्भव है। 3. कृषि यंत्रों एवं उपकरणों का प्रशिक्षण महिलाओं को प्रदान कर न केवल महिलाओं के शारीरिक श्रम को कम किया जा सकता है, बल्कि उच्च आय की प्राप्ति कर निर्धनता के स्तर को भी कम किया जा सकता है। 4. ग्रामीण स्तर पर कृषि मण्डी एवं परिवहन की सुविधा को विकसित कर फसलों के उच्च दाम की प्राप्ति कृषकों को प्रदान की जा सकती है। 5. महिलाओं को सूक्ष्म ब्याज दर पर ऋण की सुविधा प्रदान कर कृषि आधारित उद्योग-धन्धे विकसित किये जा सकते हैं, जिससे नगरों की ओर होने वाले पलायन को कम किया जा सकता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Kasal,
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