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कलौता समाज में
राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना जागृत करने में पंचायती राज के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
- देपालपुर विकास खण्ड का एक अध्ययन |
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Major Challenges Before Panchayati Raj in Awakening Political and Social Consciousness in Kalauta Society - A study of Depalpur Development Block | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18277 Submission Date :
2023-11-16 Acceptance Date :
2023-11-23 Publication Date :
2023-11-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10231473 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/researchtimes.php#8
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सारांश |
प्रस्तुत शोध पत्र में कलौता समाज में राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना जागृत करने में पंचायती राज के समक्ष आ रही प्रमुख चुनौतियों का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन हेतु इन्दौर जिले के देपालपुर विकास खण्ड के 5 ग्रामों को निदर्शन के रूप में चुना गया है। प्रत्येक ग्राम से कलौता समाज के 32-32 उत्तरदाताओं से प्राथमिक आंकड़े संकलित किए गए है। निष्कर्ष के तौर पर पाया गया है कि नवीन पंचायती राज व्यवस्था में कड़े प्रावधानों, महिलाओं को पुरुषों के बराबर प्राप्त आरक्षण तथा ग्राम सभा को प्रदान की गई केन्द्रीय भूमिका के पश्चात भी कलौता समाज में पंचायती राज के प्रावधानों की जानकारी का अभाव, अशिक्षा, पुरुष प्रधानता, ग्राम पंचायत में सरपंच की केन्द्रीय भूमिका, ग्राम सभा की बैठक का आयोजन न किया जाना तथा इन बैठकों के आयोजन के विषय में जानकारी न होना एवं मतदाताओं की उदासीनता के कारण आवश्यक गणपूर्ति सुनिश्चित न होना, महिला नेतृत्व के उत्तरदायित्वों का निर्वहन उनके पति या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा किया जाना, भ्रष्टाचार एवं गुटबंदी पंचायती राज के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the presented research paper, the major challenges facing Panchayati Raj in awakening political and social consciousness in Kalauta society have been studied. For this study, 5 villages of Depalpur development block of Indore district have been selected as samples. Primary data has been collected from 32-32 respondents of Kalauta community from each village. As a conclusion, it has been found that despite the strict provisions in the new Panchayati Raj system, reservation given to women equal to men and the central role given to Gram Sabha, there is lack of information about the provisions of Panchayati Raj in Kalauta society, illiteracy, male primacy, the central role of the Sarpanch in the Gram Panchayat, non-organization of Gram Sabha meetings and lack of information regarding the organization of these meetings and the necessary quorum not being ensured due to the apathy of the voters, the responsibilities of women leadership being discharged by their husbands. Or by other members of the family, corruption and factionalism are the major challenges before Panchayati Raj. |
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मुख्य शब्द | नवीन पंचायती राज, अशिक्षा, पुरुष प्रधानता, ग्राम सभा, महिला नेतृत्व, भेदभाव। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | New Panchayati Raj, Illiteracy, Male Dominance, Gram Sabha, Women Leadership, Discrimination. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | देश में 73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से लागु त्रि-स्तरीय पंचायती राज
व्यवस्था समानता और सत्ता के विकेंद्रीकरण के महात्मा गाँधी की कल्पना को साकार
करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है। इसके माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक
एवं आर्थिक सहित सभी प्रकार के भेदभावों का उन्मूलन तथा विकास योजनाओं को बनाने और
उन पर निर्णय-प्रक्रिया में सभी वर्गों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए सभी
आवश्यक प्रावधान किए गए है। पंचायती राज व्यवस्था कमजोर, पिछड़े, महिलाओं और समाज के अन्य सभी समुदायों
के सशक्तिकरण की दिशा में बहुत सहायक सिद्ध हो रही है। पंचायती राज व्यवस्था के क्रियान्वयन से गाँवों में जहाँ एक ओर विकास को गति मिली है एवं गाँवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, आवागमन आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य पंचायतों द्वारा किए गए वहीँ परम्परागत ग्रामीण राजनीतिक एवं सामाजिक ढांचे में व्यापक परिवर्तन हो रहे है। ग्रामीण समाज का एक बड़ा वर्ग अपनी निर्धनता, जन्मस्थिति, लिंगभेद, अशिक्षा तथा उच्च कुलीन वर्गों द्वारा थोपी गई सामाजिक मान-मर्यादाओं के कारण नीति निर्धारण के पदों एवं अधिकारों से वंचित था उसे आरक्षण के माध्यम से इन अधिकारों एवं पदों की प्राप्ति हुई है। इन सब उपलब्धियों के बाद भी पंचायती राज व्यवस्था के समक्ष अनेक नवीन चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई है। भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही व भाई-भतीजावाद जैसे तत्व ग्रामीण विकास योजनाओं का क्रियान्वयन व आवंटन सही ढंग से नहीं होने देते है। पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा, मारपीट, गुंडागर्दी व गाली-गलोच की घटनाएँ होने के कारण चुनाव की निष्पक्षता सुनिश्चित नहीं हो पाती है। पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को प्रदान किए गए आरक्षण के बाद भी वास्तविक सत्ता पुरुष वर्ग के हाथों में केन्द्रित होती है। महिलाएँ अशिक्षा, जागरूकता की कमी और सामाजिक मान्यताओं के कारण नाममात्र की निर्वाचित प्रतिनिधि बन कर रह जाती है। गाँवों में विभिन्न वर्गों के मध्य तनाव और वैमनस्य के कारण पंचायतें सही ढंग से अपने कार्यों का संचालन नहीं कर पाती है। नवीन पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम सभा को केन्द्रीय भूमिका प्रदान की गई है। लेकिन ग्राम सभा की बैठकों का आयोजन ना किया जाना या इसकी बैठकों में आवश्यक गणपूर्ति सुनिश्चित नहीं होना पंचायती राज के समक्ष एक बड़ी चुनौती बन गई है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. पंचायती राज व्यवस्था में कलौता समाज के मतदाताओं की जागरूकता का अध्ययन करना। 2. कलौता समाज में पंचायती राज व्यवस्था के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | गौरव कुमार (2015) ने कुरुक्षेत्र पत्रिका में ’’जमीनी लोकतंत्र का सशक्तिकरण’’ नामक लेख में ग्राम
सभा की भूमिका पर चिंता प्रकट की है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि 11 वी सूची में
वर्णित 29 विषयों पर योजना निर्माण, क्रियान्वयन एवं
निर्देशन का अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है। लेकिन ग्राम सभा की नियमित बैठकें
ही नहीं होती है। इस कारण ना ही सर्वसम्मति से कोई योजना बन पाती है और ना ही
सामूहिक रूप से विचार विमर्श हो पाता है। प्रथम तो ग्रामीणों को बैठकों की सूचना
ही नहीं मिल पाती और दूसरा ग्रामीण भी इसकी बैठकों के प्रति उदासीन होते है। अशोक डी. पाटिल (2016) ने पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं
की निम्न भागीदारी के कारणों को स्पष्ट किया है। इन कारणों में प्रमुख रूप से
सामान्य परिवारों की महिलाओं की सहभागिता नहीं होना, महिलाओं
की यथार्थ सहभागिता नहीं, कार्यप्रणाली एवं नियमों की
जानकारी का अभाव, निरक्षरता, पारिवारिक सहयोग का अभाव एवं पंचायत के कार्यों में महिलाओं की रूचि न
होना बताये है। नरेन्द्र चंद्र सक्सेना (2018) ने
कुरुक्षेत्र पत्रिका में ’’पंचायतों की कार्यकुशलता सुधारने
के प्रयास जरुरी’’ नामक लेख में चुनाव में खर्च की जाने वाली
धन राशि के आधार पर भ्रष्टाचार का विवेचन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि
पंचायत चुनाव प्रचार में औसतन पांच से छः लाख रूपयें खर्च कर दिए जाते है। लेकिन
बाद में जन-प्रतिनिधि इस खर्च का दस गुना अधिक राशि विकास योजनाओं के खर्च में से
कटौती करके वसूल कर लेते है। इस प्रकार योजनाओं का लाभ कमजोर और पिछड़े व्यक्तियों
को नहीं मिलता और भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलता है। मांगीलाल (2022) ने अपना अध्ययन राजस्थान के बाड़मेर जिले के सन्दर्भ में किया है। उनका यह तुलनात्मक अध्ययन पंचायती राज व्यवस्था में महिला एवं पुरुष की राजनीतिक सहभागिता पर आधारित है। अपने अध्ययन में उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की न्यून राजनीतिक भागीदारी के कारणों में प्रमुख रूप से राजनीतिक अनुभवहीनता, आरक्षण व्यवस्था में कमी, बेरोजगारी एवं निर्धनता और सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन बताए है। उन्होंने स्पष्ट किया है संवैधानिक रूप से प्राप्त आरक्षण के माध्यम से भले ही पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई हो लेकिन अशिक्षा और जागरूकता के अभाव में महिलाएं वर्तमान में भी पुरुषों के अधीन है। कुलदीप सिंह एवं ज्योत्सना पटेल (2022) का अध्ययन ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण में स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर आधारित है। उन्होंने अपना यह विश्लेषण पंचायती राज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर प्रस्तुत किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की सहभागिता उन हिस्सों में ज्यादा है, जहाँ पहले से ही महिलाओं की स्थिति ठीक रही है। लेकिन जहाँ की स्थिति महिला सहभागिता के अनुकूल नहीं है या राजनीतिक दलों से सकारात्मक समर्थन प्राप्त नहीं हुआ है वहां महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्ष कर रही है। |
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मुख्य पाठ |
देपालपुर विकास खण्ड का सम्पूर्ण भू-भाग का 22.37°-23.05° उत्तरी अक्षांश से 75.25°-75.45° पूर्वी देशांतर तक विस्तार तथा समुद्र तल से ऊंचाई 519 मीटर है। विकास खण्ड का क्षेत्रफल 124489 हेक्टयर है। देपालपुर विकास खण्ड की सीमा का विस्तार उत्तर और उत्तर पश्चिम में उज्जैन जिले तक, दक्षिण पश्चिम में धार जिले तक, दक्षिण में महू विकास खण्ड तक एवं पूर्व एवं उत्तर पूर्व में सांवेर विकास खण्ड तक एवं दक्षिण पूर्व में इन्दौर विकास खण्ड तक है। विकास खण्ड की जलवायु ठंडी एवं मानसूनी प्रकार की है। औसत न्यूनतम तापमान यहाँ 20° से अधिकतम 42° के मध्य तक रहता है। इस क्षेत्र में 1 विकास खण्ड, 1 जनपद पंचायत, 108 ग्राम पंचायत एवं 173 ग्राम है। |
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न्यादर्ष |
इन्दौर जिले के
देपालपुर विकास खण्ड के 5 गाँवों (भील बडोली, नेवरी, पितावली, हरनासा, कड़ोदा) का अध्ययन हेतु निदर्शन
के रूप में चुनाव किया गया है। प्रत्येक गाँव से कलौता समाज के 32-32 मतदाताओं को
चुना गया है। इस प्रकार कलौता समाज के 160 मतदाताओं (80 पुरुष एवं 80 महिलाओं) से
प्राथमिक आंकड़े साक्षात्कार अनुसूची के माध्यम से संकलित किए गए है। द्वितीयक
आंकड़ों का संकलन विषय से सम्बंधित पुस्तकों एवं कुरुक्षेत्र पत्रिका से किया गया
है। |
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विश्लेषण | तालिका 1: आयु
महिला उत्तरदाताओं की स्थिति को देखे तो स्पष्ट है कि 50 प्रतिशत महिला उत्तरदाता युवा वर्ग समूह से एवं 32.50 प्रतिशत महिला उत्तरदाता मध्य वर्ग समूह से है। 17.50 प्रतिशत महिला उत्तरदाता बुजुर्ग वर्ग समूह से है। तालिका 2: शैक्षणिक पृष्ठभूमि
तालिका 2 से स्पष्ट होता है कि 17.50 प्रतिशत उत्तरदाता निरक्षर है। 22.50
प्रतिशत उत्तरदाता केवल साक्षर है। 29.37 प्रतिशत उत्तरदाता प्राथमिक स्तर तक, 18.12
प्रतिशत उत्तरदाता माध्यमिक स्तर तक, 10.63 प्रतिशत
उत्तरदाता हाई स्कूल तक एवं 1.88 प्रतिशत उत्तरदाता स्नातक स्तर तक शिक्षा प्राप्त
है। महिला उत्तरदाताओं की शैक्षणिक स्थिति के सन्दर्भ में देखे तो स्पष्ट है कि
28.75 प्रतिशत महिला उत्तरदाता निरक्षर तथा 33.75 प्रतिशत महिला उत्तरदाता केवल
साक्षर है। 21.25 प्रतिशत महिला उत्तरदाता प्राथमिक स्तर तक, 10
प्रतिशत उत्तरदाता माध्यमिक स्तर तक एवं 6.25 प्रतिशत महिला उत्तरदाता हाई स्कूल
तक की शिक्षा प्राप्त है। इस प्रकार स्पष्ट है कि चयनित महिला उत्तरदाताओं का शैक्षणिक स्तर अति निम्न
है। एक चौथाई महिला उत्तरदाता निरक्षर है। जबकि एक तिहाई महिला उत्तरदाता केवल
साक्षर है जिन्होंने किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की है। तालिका 3: पंचायती राज के प्रावधानों की जानकारी
तालिका 3 से स्पष्ट होता है कि 62.50 प्रतिशत उत्तरदाताओं को पंचायती राज के
प्रावधानों के विषय में जानकारी है। जबकि 37.50 प्रतिशत उत्तरदाताओं को पंचायती
राज के प्रावधानों के विषय में जानकारी नहीं है। महिला उत्तरदाताओं के सन्दर्भ में
देखे तो केवल दो चौथाई महिला उत्तरदाताओं को ही इस विषय में जानकारी है। तालिका 4: ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेने की स्थिति
तालिका 4 से स्पष्ट होता है कि 27.50 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने ग्राम सभा की
बैठकों में भाग लेना बताया है। 35.62 प्रतिशत उत्तरदाता ग्राम सभा की बैठकों में
भाग लेने से इंकार करते है। जबकि 36.88 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने ग्राम सभा की बैठक
के आयोजन के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं होना बताया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि कुल उत्तरदाताओं में से दो तिहाई उत्तरदाताओं की
भागीदारी ग्राम सभा की बैठकों में नहीं हो पाती है। तालिका 5: ग्राम पंचायत में महिला जन-प्रतिनिधि द्वारा उत्तरदायित्व का निर्वहन
इस प्रकार स्पष्ट है कि चयनित उत्तरदाताओं में से केवल एक चौथाई उत्तरदाताओं की ग्राम पंचायतों में ही स्वयं महिला जन-प्रतिनिधि द्वारा उत्तरदायित्वों का निर्वहन किया जाता है। तालिका 6: विभिन्न योजनाओं के लिए हितग्राहियों के चयन का तरीका
तालिका 6 से स्पष्ट होता है कि 27.50 प्रतिशत उत्तरदाताओं की ग्राम पंचायतों
में विभिन्न योजनाओं के लिए हितग्राहियों का चयन ग्राम सभा के माध्यम से किया जाता
है। जबकि 72.50 प्रतिशत उत्तरदाताओं की ग्राम पंचायतों में हितग्राहियों का चयन
सरपंच या सचिव द्वारा किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि केवल एक चौथाई उत्तरदाताओं की ग्राम पंचायतों में ही
सही प्रक्रिया अर्थात ग्राम सभा के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के लिए हितग्राहियों
का चयन किया जाता है। तालिका 7: गुटबंदी का प्रभाव
तालिका 7 से स्पष्ट होता है कि 70.62 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने पंचायत चुनाव में
गुटबंदी का प्रभाव बताया है। 51.25 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने विकास योजनाओं के
क्रियान्वयन में गुटबंदी का प्रभाव बताया है। 41.87 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने गाँव
की राजनीति में गुटबंदी का प्रभाव बताया है। तालिका 8: विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रमुख बाधाएँ
तालिका 8 से स्पष्ट होता है कि 34.37 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने वित्त के अभाव को
विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में प्रमुख बाधा बताया है। 66.25 प्रतिशत
उत्तरदाताओं ने ग्रामीणों का आपसी मतभेद, 53.12 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने
भ्रष्टाचार एवं 76.25 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने जनप्रतिनिधियों की उदासीनता को विकास
कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में प्रमुख बाधा बताया है। |
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निष्कर्ष |
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर शोधार्थी द्वारा निम्न निष्कर्ष निकाले गये है - 1. कलौता समाज के चयनित उत्तरदाताओं में से आधे से अधिक
उत्तरदाता निरक्षर है या फिर बहुत ही कम (प्राथमिक स्तर या उससे कम) शिक्षा
प्राप्त है। 2. कलौता समाज के चयनित उत्तरदाताओं में पंचायती राज के
प्रावधानों की जानकारी का अभाव है। लगभग एक तिहाई उत्तरदाताओं को पंचायती राज के
प्रावधानों के विषय में जानकारी नहीं है। इनमें लगभग दो तिहाई महिला उत्तरदाता है। 3. पंचायती राज के नवीन प्रावधान के अनुसार ग्राम सभा को
केन्द्रीय नियामकीय निकाय बनाया गया है। लेकिन ग्राम सभा की नियमित बैठकों के अभाव
में तथा आवश्यक गणपूर्ति सुनिश्चित नहीं होने के कारण सर्वसम्मति से कोई निर्णय
नहीं लिए जा सके है एवं सरपंच की केन्द्रीय भूमिका में केवल आंशिक कमी ही हुई है। 4. नवीन पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को नेतृत्व में
पुरुषों के बराबर भागीदारी प्रदान की गई है। लेकिन महिला अशिक्षा एवं पुरुष
प्रधानता के कारण महिला जन-प्रतिनिधि की स्थिति केवल नाममात्र प्रतिनिधि की है।
ग्राम पंचायत में महिला जन-प्रतिनिधि के उत्तरदायित्वों का निर्वहन पति या परिवार
के अन्य सदस्यों द्वारा किया जाता है। 5. पंचायत चुनाव में गुटबंदी के आधार पर प्रत्याशी निर्वाचित
करने का प्रयास किया जाता है तथा अधिकांश अवसरों पर जन-प्रतिनिधियों द्वारा
गुटबंदी के आधार पर विकास योजनाओं के लिए हितग्राहियों का चयन किया जाने लगा है। 6. ग्राम पंचायत में जन-प्रतिनिधियों की उदासीनता एवं ग्रामीणों
का आपसी मतभेद तथा भ्रष्टाचार एवं वित्त की समस्या के कारण ग्रामीण विकास की
अधिकांश योजनाएँ क्रियान्वित नहीं हो पाती है।
इस प्रकार निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि कलौता समाज में अशिक्षा, पुरुष
प्रधानता, सरपंच की केन्द्रीय भूमिका और ग्राम पंचायत
की कार्यप्रणाली में मतदाताओं की निम्न सहभागिता, जानकारी
का अभाव, भ्रष्टाचार और गुटबंदी नवीन पंचायती राज
व्यवस्था के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ है। |
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आभार | अर्जुन चौहान, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद से डॉक्टोरल फेलोशिप प्राप्तकर्ता है। उनका यह शोध पत्र काफी हद तक आईसीएसएसआर द्वारा प्रायोजित उनके डॉक्टरेट कार्य का परिणाम है। हालाँकि, शोध पत्र में बताए गए तथ्यों, व्यक्त किए विचारों और निकाले गए निष्कर्ष की जिम्मेदारी पूर्ण रूप से लेखक की है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. कुमार, पार्थिव, “नए समाज की बुनियाद पंचायती राज”, कुरुक्षेत्र, अंक 8, वर्ष 62, अगस्त
2018, पे.न. 45 2. सिसोदिया, यतीन्द्रसिंह एवं भट्ट, आशीष, “मध्यप्रदेश में पंचायत राज व्यवस्था:
विविध आयाम”, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, 2011, पे.न. 155 3. मोदी, अनीता, “ग्रामीण विकास और पंचायतें”, कुरुक्षेत्र, अंक 3, वर्ष 60, जनवरी
2014, पे.न. 12 4. कुमार, गौरव, “जमीनी लोकतंत्र का सशक्तिकरण”, कुरुक्षेत्र, अंक 1, वर्ष 62, नवम्बर
2015 5. पाटिल, अशोक डी., “ग्रामीण एवं नगरीय समाजशास्त्र”, मध्यप्रदेश
हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, 2016, पे.न. 105-106 6. सक्सेना, नरेश चन्द्र, “पंचायतों की कार्यकुशलता सुधारने के प्रयास जरुरी”, कुरुक्षेत्र, अंक 9, वर्ष 64, जुलाई 2018, पे.न.
18-19 7. मांगीलाल (2022), पंचायती राज
व्यवस्था में महिला - पुरुष राजनीतिक सहभागिता: बाड़मेर जिले के विशेष सन्दर्भ में
एक तुलनात्मक अध्ययन, शोध प्रबंध, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर 8. सिंह, कुलदीप एवं पटेल ज्योत्सना
(अक्टूबर से दिसम्बर, 2022), ग्रामीण महिला सशक्तिकरण स्थानीय स्वशासन के विशेष सन्दर्भ में, शोध चेतना (पत्रिका), अंक 4, वर्ष 8, जी. एच. पब्लिकेशन, रीवा 9. जिला सांख्यकी पुस्तिका - इन्दौर, 2016, पे.न. 6 10. डिस्ट्रिक्ट सेन्सस हैंडबुक इन्दौर, 2011, पे.न. 5,11 |