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डूँगरपुर जिले में जनसंख्या वितरण एवं वृद्धि का
विश्लेषणात्मक अध्ययन |
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Analytical Study of Population Distribution And Growth In Dungarpur District | |||||||
Paper Id :
18283 Submission Date :
2023-11-12 Acceptance Date :
2023-11-21 Publication Date :
2023-11-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10300436 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
जनसंख्या किसी प्रदेश के
विकास का केन्द्र बिन्दु मानी जाती है, जिसकी धुरी में अन्य सभी प्रादेशिक विकास की गतिविधियाँ सम्पन्न होती है। किसी
क्षेत्र की उन्नति वहाँ पाई जाने वाली जनसंख्या के वितरण, उसके घनत्व, व्यक्तियों का स्वभाव, उनकी कार्यक्षमता आदि पर निर्भर करती है। विश्व
में दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देश एक तरफ अधिक जनसंख्या घनत्व को दर्शाते है, वही ध्रुवीय, पर्वतीय एवं मरूस्थलीय क्षेत्र विरल जनसंख्या को। अतः जनसंख्या का अध्ययन किसी
भी शोध कार्य को विभिन्न आयामों में परखने के लिए आवश्यक माना जाता है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Population is considered to be the central point of development of a region, on whose axis all other regional development activities are carried out. The progress of an area depends on the distribution of the population found there, its density, the nature of the people, their efficiency etc. On one hand, the countries of South-East Asia in the world show high population density, while on the other hand, the polar, mountainous and desert areas show sparse population. Therefore, study of population is considered necessary to examine any research work in various dimensions. | ||||||
मुख्य शब्द | जनसंख्या वृद्धि, वितरण, घनत्व, लिंगानुपात। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Population Growth, Distribution, Density, Sex Ratio. | ||||||
प्रस्तावना | भौगोलिक अध्ययनों में मानव
संसाधन विकास को सामाजिक भूगोल का अभिन्न अंग माना जाता है। जनसंख्या से सम्बन्धित
समंको के ज्ञान से राज्य की जनशक्ति का अनुमान लगाया जाता है। किसी भी प्रदेश के
विकास के साधनों में जनसंख्या का अत्यधिक महत्व होता है। जनसंख्या का अध्ययन मानव भूगोल में किया जाता है। प्रारंभ
में जनसंख्या सम्बन्धी अध्ययन क्षेत्र जनगणना तक ही सीमित था किन्तु आधुनिक काल
में जनसंख्या का अध्ययन सांख्यिकीय एवं गणितीय विश्लेषणों द्वारा किया जाता है।
जनसंख्या का विस्तृत एवं वैज्ञानिक अध्ययन वर्तमान शताब्दी से ही प्रारम्भ हुआ है।
इसी समय से विश्व में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से होने लगी है, जिससे सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विभिन्नताएं विकसित हुई है। किसी देश की जनसंख्या में
वृद्धि का प्रभाव वहां की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। डूँगरपुर जिला भारत की प्राचीन
रियासतों में से एक रहा है। साथ ही यह आदिवासी बहुल जिला होने से यहां की जनसंख्या
का विस्तृत एवं विभिन्न दृष्टिकोणों से अध्ययन प्रस्तुत शोधपत्र में किया गया है।
राजस्थान के दक्षिणी भाग
में स्थित डूँगरपुर को “पहाड़ों का नगर” कहा जाता है। यहाँ का धरातल असमान है। यहाँ विभिन्न प्रकार की अरावली श्रेणी
की छोटी-छोटी पहाड़ियाँ जनसंख्या संरचना को प्रभावित करती है। यह जिला विकास की
दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ हैं। यहाँ की जनसंख्या जनजाति से सम्बन्धित है अतः यहाँ
की जनसंख्या की संरचना तथा वितरण का अध्ययन करना न केवल शोध कार्य के लिए बल्कि इस
क्षेत्र के विकास के लिए भी आवश्यक है। प्रशासनिक दृष्टि से जिले को 4 तहसीलों व 5
पंचायतों एवं तीन उपखण्डों में बांटा गया है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र में
निम्नांकित उद्देश्यों को आधार माना गया है- 1. डूँगरपुर जिले में
जनसंख्या वितरण प्रतिरूप की तहसीलवार व्याख्या करना। 2. जनसंख्या वृद्धि, घनत्व आदि में सहसम्बन्ध ज्ञात करना।
3. क्षेत्र की ग्रामीण एवं
नगरीय जनसंख्या के विकास एवं संरचना का भौगोलिक अध्ययन प्रस्तुत करना। |
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साहित्यावलोकन | जनसंख्या संरचना सम्बन्धी
अध्ययन विभिन्न विद्वानों ने अलग - अलग दृष्टिकोणों से किये है। माना जाता है कि
विश्व में जनसंख्या पर सर्वप्रथम कार्य अरस्तु एवं प्लेटों नामक विद्वानों ने
जनसंख्या पर कार्य प्रारम्भ किये। जिसमें माल्थस महोदय ने अपनी जनसंख्या सम्बन्धी
विचारधारा से लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। इस प्रकार विभिन्न भूगोलवेत्ताओं, समाजशास्त्रियों, नियोजनकर्ताओं ने भी विभिन्न दृष्टिकोणों से जनसंख्या संरचना का अध्ययन किया
है। जनांकिकी शब्द का सर्वप्रथम
प्रयोग 1662 में प्रसिद्ध लेख “Nature And Political
Obsenction Made Upon The Life Of Mortality” के प्रकाशन से प्रारम्भ हुआ। जनसंख्या एवं संसाधनों के अन्तर्सम्बन्धों का
वैज्ञानिक विवेचन सबसे पहले रॉबर्ट माल्थस ने अपने निबन्ध 'Principle of Population' में किया। उन्होने इसमें बताया कि जनसंख्या वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी
में बढती है जबकी खाद्य सामग्री समान्तर श्रेणी में। मानव तथा प्रकृति के
सम्बन्धों को डेविस (1948) ने अपनी पुस्तक “Man And Earth” में स्पष्ट किया है। सन् 1953 में ट्रिवार्था ने अपने शोध
पत्र में विश्व की जनसंख्या के प्रादेशिक अन्तर का अघ्ययन किया तथा बताया कि
जनसंख्या भौगोलिक अध्ययन का आधार स्तम्भ है, जिसके चारों ओर सभी तथ्य पाये जाते है। ट्रिवार्था के साथ जेलेस्की ने अफ्रीका
एवं बेल्जियम की जनसंख्या के आकार, परिवर्तन, प्रादेशिक अन्तर तथा वहाँ की जनसंख्या की भावी
प्रवृत्तियों का विवेचन किया। रेमर (1952) ने बढती
जनसंख्या एवं संसाधन का अध्ययन किया। पी. जॉर्ज तथा जेम्स (1954) ने भी जनसंख्या
पर कार्य किया। गार्नियर ने जनसंख्या के विकास, परिवर्तन तथा सांख्यिकीय आंकडो की प्राप्ति में कठिनाई तथा तथ्यों की
अनिश्चितता आदि का वर्णन अपनी पुस्तक “Geography Of
Population” में किया। मेहता बी.सी. (1978) ने “Regional
Population Growth” में राजस्थान
की जनसंख्या का अध्ययन किया। चौहान टी.एस. (1981) ने ग्रामीण जनसंख्या तथा शुष्क
वातावरण के सम्बन्धों को जैसलमेर के विशेष संदर्भ मे स्पष्ट किया। मामोरिया सी.बी. (2022) ने
जनसंख्या वृद्धि पर विस्तृत प्रकाश अपनी पुस्तक ‘‘जनसंख्या भूगोल‘‘ में डाला है। उन्होने जनसंख्या वृद्धि के कारणों
के साथ-साथ जनसंख्या के नियंत्रण हेतु किये जाने वाले प्रयासों को भी अपनी पुस्तक
में प्रस्तुत किया है। मौर्य एस. डी. (2023) ने
विश्व में जनसंख्या के घनत्व को अपनी पुस्तक में विस्तृत रूप से समझाया है।
उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘जनसंख्या भूगोल‘‘ में अधिक जन घनत्व वाले क्षेत्रों के साथ ही विरल जन घनत्व के क्षेत्रों को
उल्लेखित करते हुए उनके कारणों पर भी प्रकाश डाला है। |
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विश्लेषण | जिला जनगणना प्रतिवेदन 2011, डूँगरपुर से प्राप्त जनसंख्या वृद्धि दर को सारणी 1 एवं
आरेख 1 में प्रदर्शित किया गया है। वर्ष 1931 से 2011 तक जनसंख्या वृद्धि के
समंकों पर दृष्टि डाले तो डूँगरपुर जिले में वृद्धि अधिक आंकी गई है।
सारणी 2 में प्रदर्शित जनसंख्या वितरण की स्थिति देखें तो डूँगरपुर
जिले में वर्ष 2001 में स्त्रियोें की संख्या पुरूषों से अध्कि
दिखाई पड़ती है जबकि दो दशकों; 1991 एवं 2011 में स्त्रियों की संख्या पुरूषों से मामूली कम आंकी गई है।
यदि ग्रामीण-नगरीय दृष्टिकोण से देखें तो अब शहरीकरण बढ़ने से नगरीय जनसंख्या तेजी
से बढ़ रही है। डूँगरपुर जिले की आसपुर तहसील को छोड़कर शेष तहसीलों में नगरीय
जनसंख्या पायी गयी है। सारणी 3 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अनुसार जनसंख्या
का वितरण प्रदर्शित किया गया है। डूँगरपुर जिले में वर्ष 1991, 2001 एवं 2011 की स्थिति देखें
तो अनुसूचित जाति की तुलना में अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत बहुत अधिक दिखाई पड़ता
है। वर्ष 2001 एवं 2011 की
तहसीलवार स्थिति देखें तो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत ऐसा ही
दिखाई पड़ता है। तहसीलवार उपरोक्त स्थिति को सारणी से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता
है।
लिंगानुपात एवं
जनघनत्व - लिंगानुपात से आशय प्रति
हजार पुरूषो पर स्त्रियों की संख्या से होता है। यद्यपि वागड़ प्रदेश
सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है फिर भी यहॉ के सामाजिक रीति रिवाज एवं
परम्पराएँ आज भी मौजूद है। आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं का अभाव होते हुए भी यहॉ
स्त्रियों की पर्याप्त संख्या विद्यमान है। यदि राज्य स्तर पर तुलना करे तो वागड़
प्रदेश का डूँगरपुर जिला लिंगानुपात की दृष्टि से सर्वोच्च स्थान रखते है।
डूँगरपुर जिले के ग्रामीण-नगरीय एवं कुल लिंगानुपात का तुलनात्मक विश्लेषण सारणी 4 से स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इस प्रदेश का सम्पूर्ण
धरातल ऊबड़-खाबड़ एवं अरावली की अवशेष श्रेणियों से बना होने के कारण प्रदेश का
जनांकिकीय विकास भी कम हुआ है। वागड़ प्रदेश का जनघनत्व अर्थात् प्रति वर्ग
किलोमीटर क्षेत्र में जनसंख्या के निवास को देखें तो बहुत अधिक सघन बसे क्षेत्र कम
ही दिखाई देते है। केवल डूँगरपुर नगर तथा तहसील मुख्यालय को छोड़ दे तो शेष स्थानों
पर जनघनत्व कम ही है। अतः तुलनात्मक अध्ययन हेतु ग्रामीण-नगरीय घनत्व भी तहसीलवार
सारणी 4 में दर्शाया गया है। डूँगरपुर जिले का घनत्व 1991 में 232 व्यक्ति प्रति
वर्ग किलोमीटर था जो बढ़कर 2001 में 294 व्यक्ति एवं 2011 में 368 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर हो गया। सारणी 4 में लिंगानुपात पर दृष्टि डाले तो पाएंगें कि वर्ष 1991 एवं 2001 में डूँगरपुर
जिले में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की तुलना में अधिक रही। वर्ष 2011 की जनगणनानुसार लिंगानुपात 994 था। लिंगानुपात की दृष्टि से डूँगरपुर जिला राज्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता
है। ग्रामीण- नगरीय लिंगानुपात की स्थिति देखें तो शहरी क्षेत्रों की तुलना में
ग्रामीण लिंगानुपात अधिक दिखाई पड़ता है। साथ ही तहसीलवार लिंगानुपात में भी इसी
प्रकार की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है। |
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निष्कर्ष |
अन्त में कहा जा सकता है कि
डूंगरपुर जिला विकास की दृष्टि से राज्य के अन्य जिलों की तुलना में पिछडा हुआ
जिला है। जिले के भौगोलिक स्वरूप तथा जनसंख्या वितरण को आधार मानकर जिले के भावी
स्वरूप के बारे में अभी से विचार करना आवश्यक है ताकि भविष्य में जिले का सन्तुलित
विकास किया जा सके। जिले के विकास के लिये सरकार को विभिन्न योजनाएं बनानी चाहिये
तथा इन योजनाओं को सम्पूर्ण जिले में सुचारू रूप से लागु किया जाना चाहिये। आम
जनता को भी इसमें अपना सम्पूर्ण योगदान देना चाहिये। साक्षरता, शिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, चिकित्सा, स्वास्थ्य, जनसंख्या वृद्धि आदि की स्थिति में सुधार लाना आवश्यक है ताकि जिले का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास हो सके। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Chandana,
R.C. (1979), “India’s Population Policy” Hongkong, vol.7, No.4 2. “Census Of
India” (1901 to 2011), Primary Census Abstract, General Population, Dungarpur
District 3. Ghosal, G.S.
(1967),”Regional Aspects Of Rural Literacy India”, Transactions Of Indian
Council Of Geographer, Vol.4 4. Gibbs
(1963), ”The Evaluation Population Concentration”, Economic Geography, Vol.39,
Page 119. 5. Mamoria,
C.B. & Dangi, S. K. (2019), “Population Geography”, Sahitya Bhawan Publications, Agra.
6. Maurya, S.D.
(2023), “Population Geography”, Sharda Pustak Bhawan, Prayagraj. |