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पकरीबरबाडीह कोयला
खनन उद्योग का प्रभावित परिवारों पर समाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव: एक अध्ययन |
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Socio-cultural Impact of Pakribarbadih Coal Mining Industry on Affected Families: A study | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18307 Submission Date :
2023-10-13 Acceptance Date :
2023-10-19 Publication Date :
2023-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.10400801 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/shinkhlala.php#8
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सारांश |
प्रस्तुत शोध आलेख झारखण्ड राज्य के हजारीबाग जिला में एनटीपीसी लिमिटेड को कैप्टिव माइंस के लिए आबंटित पकरीबरबाडीह कोयला खनन परियोजना प्रभावित प्रथम चरण के सात गांवों पर किये गए मानवशास्त्रीय क्षेत्र कार्य पर आधरित है। पकरीबरबाडीह कोयला खनन परियोजना के कारण हजारीबाग जिला के बड़कागांव प्रखण्ड के उन्नीस तथा केरेडारी प्रखण्ड के नौ गांव पूर्ण रूपेण प्रभावित होने वाले हैं। खनन परियोजना का कार्य तीन चरणों में निष्पादित होना है। प्रथम चरण में बड़कागांव प्रखण्ड के पकरीबरबाडीह, चिरूडीह, आराहारा, चेपाकलां, डाडीकलां तथा केेरेडारी प्रखण्ड
के इतीज, चुरचू व नगड़ी गांव पूर्ण रूपेण प्रभावित हुये हैं। सभी प्रभावित गांवों की भूमि
अधिग्रहित किये जा चुकें हैं, कुछ गांव यथा-जुगरा आदि एवं गांव विशेष के कुछ परिवारों नें भूमि
अधिग्रहण के मुआवजे की राशि को स्वीकार नहीं किया है। पकरीबरबाडीह, चिरूडीह, इतीज, चुरचू गांव से प्रभावित सभी
परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है। डाडीकलां तथा आराहारा गांव से विस्थापन की
प्रक्रिया चल रही है। नगडी एवं चेपाकलां गांव से प्रभावित परिवारों को निकट भविष्य
में विस्थापित किया जाना है। पकरीबरबाडीह कोयला खनन परियोजना में विगत सात वर्षों
से कोयला उत्पादन व वितरण का काम जारी है। कोयला खनन परियोजना के कारण भूमि
अधिग्रहण, विस्थापन तथा पुनर्वासन की प्रक्रिया में प्रभावित परिवारों के सामाजिक
एवं सांस्कृतिक जीवन की दशा व दिशा में निरंतर अभूतपूर्व बदलाव आ रहें हैं और
प्रत्यक्ष व परोक्ष दूरगामी परिणाम पड़ने वाले हैं। कुछ प्रभावों की प्रकृति व
स्वरूप अस्थायी व तात्कालिक तो कुछ के स्थायी व दूरगामी हैं। प्रभावित परिवारों के
सामाजिक पूंजी, सामजिक परिवेश, सामाजिक संबंधों के संजाल, सामाजिक संरचना व व्यवस्था, सामाजिक भूमिका एवं प्रस्थिति, सामाजिक संस्थाओं के साथ साथ
सांस्कृतिक जीवन, भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The presented research article is based on the anthropological field work conducted on seven villages affected by the first phase of Pakribarbadih coal mining project allotted for captive mines to NTPC Limited in Hazaribagh district of Jharkhand state. Nineteen villages of Barkagaon block of Hazaribagh district and nine villages of Keredari block are going to be completely affected due to Pakribarbadih coal mining project. The mining project is to be executed in three phases. In the first phase, Pakribarbadih, Chirudih, Arahara, Chepakalan, Dadikalan of Barkagaon block and Itiz, Churchu and Nagadi villages of Keredari block have been completely affected. The land of all the affected villages has been acquired, some villages like Jugra etc. and some families of a particular village have not accepted the compensation amount for land acquisition. All the affected families from Pakribarbadih, Chirudih, Itij, Churchu villages have been displaced. The process of displacement is going on from Dadikalan and Arahara villages. The affected families from Nagdi and Chepakalan villages are to be displaced in the near future. The work of coal production and distribution has been going on for the last seven years in Pakribarbadih Coal Mining Project. In the process of land acquisition, displacement and rehabilitation due to the coal mining project, unprecedented changes are taking place in the condition and direction of social and cultural life of the affected families and are going to have direct and indirect far-reaching consequences. The nature of some impacts are temporary and immediate while some are permanent and far reaching. There has been a negative impact on the social capital, social environment, network of social relations, social structure and system, social role and status, social institutions as well as cultural life, material and non-material culture of the affected families. |
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मुख्य शब्द | परियोजना प्रभावित व्यक्ति, सामाजिक पूॅजी, भौतिक संस्कृति, अभौतिक संस्कृति, सांस्कृतिक पारिस्थितिकी। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Project Affected Persons, Social Capital, Material Culture, Non-Material Culture, Cultural Ecology. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | किसी भी
देश की आर्थिक प्रगति उसके भौतिक एवं औद्योगिक प्रगति पर आश्रित है। देश की भौतिक
एवं औधोगिक प्रगति काफी हद तक मूल्यवान खनिज संपदाओं के पर्याप्त मात्रा में
उपलब्धता पर निर्भर करता है। भारत में उर्जा सृजन के क्षेत्र मे कोयला निर्णायक की भूमिका का निर्वहन करता हैं। कोयला
उर्जा सृजन के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करता है। राष्ट्र व राज्य के राजस्व व सकल घरेलू उत्पाद में कोयला का महत्वपूर्ण स्थान है। देश में उर्जा की मांग एवं खपत
में विगत चार वर्षों में सात सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विकास में कोयला की
भूमिका से नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है। कोयला उत्पादन क्षेत्र में विश्व में
भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में कोलफील्ड मुख्यरूप से झारखण्ड,
उड़ीसा,
छतीसगढ़,
मध्यप्रदेश,
उतरप्रदेश,
महाराष्ट्र,
तेलंगाना,
पश्चिम बंगाल,
सिक्कम अरूणाचल प्रदेश मेधालय
व बिहार राज्य में है। पावर सेक्टर कोयला का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसके अतिरिक्त
आयरन, स्टील एवं सिमेंट उद्योग में भी कोयला के खपत एवं मांग में काफी वद्धि हो रही
है। कोयला भण्डारण व उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड देश का सबसे बड़ा राज्य है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोध अध्ययन के उद्देश्य निम्नवत हैं:- कोयला खनन परियोजना का प्रभावित परिवार के सामाजिक जीवन एवं पूॅजी पर पड़ने
वाले प्रभावों का अध्ययन करना। कोयला खनन परियोजना का प्रभावित परिवार के परिवार की संरचना एवं प्रकार्यो पर
पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना। कोयला खनन परियोजना का प्रभावित परिवार के सामजिक संबंधों, नातेदारी
संबंधों एवं जजमानी व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का
अध्ययन करना।
कोयला खनन परियोजना का प्रभावित परिवार के सांस्कृतिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों
का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोध विषय पर मानवशास्त्रीय साहित्यों की काफी कमी है। कोयला खनन उद्योग के पर्यावरणीय प्रभावों से संबंधित साहित्य की उपलब्धता है। कोयला खनन उद्योग के
सामाजिक प्रभावों का अंकेक्षण संबंधी साहित्य भी हैं तथापि सांस्कृतिक जीवन और
सामाजिक संबंधों व संस्थाओं पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा काफी कम है। दुबे, कुमुद (2017) सोशियो
इकोनॉमिक इम्पैक्ट स्टडी ऑफ माइनिंग एण्ड माइनिंग पॉलिसी आन लायवलीहुड ऑफ लोकल
पोपुलेशन इन द विन्ध्य रिजन ऑफ उत्तरप्रदेश विषयक प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट
डायरेक्टर के रूप में सेन्टर फॉर सोशल फोरेस्टरी एण्ड इको रिहैविलेशन, देहरादून की ओर से नीति आयोग को वर्ष 2017 में समर्पित
प्रतिवेदन में उत्तरप्रदेश के विन्ध्यक्षेत्र में इलाहाबाद, मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिलें में कोयला खनन परियोजनाओं का
स्थानीय आबादी पर पड़ने वाले सामाजिक व आर्थिक प्रभावों का विवरण व विश्लेषण है।
कोयला खनन के संदर्भ में भूमि अधिग्रहण,
विस्थापन व पुनर्वासन, मुआवजे की अदायगी, प्रभावितों के अन्य लाभों व हितों का संरक्षण व संपोषण आदि
से संबंधित अधिनियमों, प्रावधानों व कानूनों के
प्रति प्रभावित व स्थानीय लोगों की अज्ञानता व असजगता के नकारात्मक आयामों व
प्रभावों की स्पष्ट वर्णन है। कोयला खनन
से जुड़े कंपनियों द्वारा प्रभावित परिवारों के प्रति अपनाये गये कार्य व्यवहार के
साथ साथ सामाजिक निगमित दायित्व व सामाजिक विकास के नाम किये गये कार्यों का भी
वर्णन है। प्रभावित परिवारों में अशिक्षा के कारण अपनों हितों के संरक्षण में आने
वाले कठिनाईयों की भी चर्चा है। सामाजिक निगमित
दायित्व व सामाजिक विकास मद में कंपनी द्वारा किये गये कार्यों के सकारात्मक
प्रभावों की ओर भी ध्यानाकृष्ट किया गया हैं। नरसिंहम, एस व सुब्बाराव, डी0वी0 (2018) भारत में माइनिंग का जनजातियों पर पड़ने वाल
सामाजिक एवं आर्थिक प्रभावों तथा पर्यावरणीय खतरों का विस्तृत विवरण है। माइनिंग के
कारण रोजी रोटी के अवसरों में विस्तार हो रहा है किन्तु विस्थापन के कारण
जनजातियों को विविध प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। भूमि अधिग्रहण
एवं विस्थापन के परिणामस्वरूप घर एवं जमीन से बेदखल कर दिये जाने के कारण
जनजातियों के जीवन की दशा व दिशा का वर्णन है। औद्योगिक विकास के नाम पर सामाजिक व
सांस्कृतिक हानियों की अनदेखी बौद्धिक जमात के साथ साथ सरकार एवं प्रशासन के लिए
चुनौतिपूर्ण मामला है। माइनिंग सृजित विस्थापन एवं पुर्नवासन की समस्या सामाजिक
संधारणीयता पर अत्यन्त नकारात्मक प्रभाव डालता है। प्रभावित परिवारों के उनके
उत्पादक साधन व संसाधन, आय के स्रोतों, सामाजिक-सांस्कृतिक पारिस्थितिकीयों, अपने मूल अधिवासों एवं पीढ़ी दर पीढ़ी जिन्दगी गुजर बसर करने
वाले गांव, समाज व पर्यावरण से बेदखल
कर दिये जाने के कारण लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक,
आर्थिक एवं राजनैतिक जीवन का ताना बाना बिगड़ जाता है। माइनिंग से जुड़े
कंपनियों द्वारा प्रभावित व स्थानीय परिवारों के हितों को नजरअन्दाज किये जाते है।
सभी प्रभावितों को कंपनी में रोजगार नहीं दिये जाते हैं। कंपनी प्रभावितों के
प्रति मानवीयता व सहानुभूति नहीं रखती है। विस्थापन व पुर्नवासन के दौरान
व्यावहारिक, अधिनियमित, वैधानिक एवं नीतिगत आयामों को समुचित तरीके से अनुपालित
नहीं किया जाता है। माइनिंग के कारण सामाजिक सुरक्षा एवं खाद्य सुरक्षा की हानि
होती है। सामाजिक नेटवर्क का संजाल बिखर जाता है। सिंह, अमित कुमार एवं सिंह वाई0
के0(2022) प्रस्तुत आलेख में झारखण्ड राज्य के धनबाद जिला के कोल माइनिंग एरिया
में आने वाले पेशागत एवं सामाजिक परिवर्त्तनों का विवरण है। कोयला खनन के कारण औद्योगिक विकास एवं परिदृश्य का ग्रामीण समाज के परम्परागत संरचनाओं पर अत्यधिक
प्रभाव पड़ा है। जातीय संस्तरण एवं प्रभुता में बदलाव आये हैं। माइनिंग परिक्षेत्र
में विजातीयता की प्रतिशतता में वृद्धि हुई हैं। माइनिंग के कारण प्रभावित परिवारो
के सोच, विश्वदृष्टि, कार्य-व्यवहार,
कार्य-संस्कृति और आहार-व्यवहार में बदलाव आये हैं। पैटेंडन (1998) वोमेन इन माइनिंग कारलटन नामक आलेख में उल्लेख किया है कि हाल
के वर्षों में खान अभियांत्रिकी, धातुकर्म, भूविज्ञान, कोयला खनन उद्योग आदि के
क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी में बढ़ोत्तरी हुआ है। गैर परम्परागत पेशाओं में
महिलाओं को नित्य नये नये समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रतिवेदन में कोयला
खनन उद्योग में कार्यरत महिलाओं विशेषकर श्रमिक महिलाओं के समस्याओं का वर्णन किया
गया है। माइनिंग क्षेत्र में निवास करने वाली तथा माइनिंग से प्रभावित होने वाले
परिवार की महिलाओं के व्यावहारिक कठिनाईयों व संघर्षों का वर्णन किया है। सलीम, अहमद (2001) ने माइनस
वर्कर्स: वर्किंग एण्ड लिभिंग कंडीशन नामक आलेख में पाकिस्तान में कोयला खनन उद्योग से जुड़े खदान मजदूरों की दशा व दिशा का वर्णन किया है। कोयला खदानों के कार्य
संस्कृति और कामगारों की दशाओं का वर्णन है।
कोयला खदानों में अपर्याप्त सुरक्षा व संरक्षण के कारण श्रमिकों के जीवन पर पड़ने
वाले नकारात्मक प्रभावों की चर्चा हैं संविदाकर्त्ताओं व ठेकेदारों के द्वारा
कोयला मजदूरो के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहारों एवं अमानवीय क्रिया-कलापों का
भी वर्णन है। कोयला मजदूरों में होने वाले बिमारियों का भी चित्रण किया गया है। दास, नवनिता (2005) ने
सोशियो-इकोनोमिक इम्पैक्ट ऑफ माइनिंग ऑन रूरल कम्यूनीटीज: ए केस स्टडी ऑफ द आई0
बी0 वैली कोलफील्ड विषयक शोध प्रबंध में इस तथ्य को उद्धाटित किया है कि कोयला एक
तरह से पर्यावरणीय एवं सामाजिक रूप से कई प्रकार के हानियों एवं बोझ को बढ़ावा
देता है। कोयला उद्योग राष्ट्रीय आय एवं सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि सहायक व निर्णय
भूमिका निभा रहा है। आरम्भ में कोयला खनन उद्योग हेतु परियोजना प्रभावित समुदायों के
जीवनयापन स्रोतों और साधन-संसाधन के साथ साथ पारिवारिक व सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन
के ताने बाने को तहस नहस का औघोगिक विकास को गतिशील रखना विविध प्रकार के सामाजिक
व सांस्कृतिक चुनौतियों एवं समस्याओं को जन्म देता है। कोयला खनन उद्योग के कारण
कृषि आधारित आजीविका का सर्वनाश, प्राकृतिक सम्पदाओं एवं
संसाधनों का विनाश, पर्यावरणीय व पारिस्थितिकीय
कुप्रभावों से उत्पन्न स्थितियों से निपटना सरकार व समाज के लिए दुष्कर प्रतीत
होता है। प्रस्तुत शोध प्रबंध में कोयला खनन उद्योग का ग्रामीण व कृषक समाज की
संरचना एवं संगठन सहित सभी आयामों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का विवरण है।
कोयला खनन उद्योग के आर्थिक सकारात्मक प्रभावों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों
का भी वर्णन है। प्रभावित परिक्षेत्र के भौतिक संस्कृति के साथ साथ अभौतिक
संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा है। कोयला खनन उद्योग के कारण आजीविका के नये स्रोतों का सृजन होता
है दूसरी ओर प्रभावित परिवारों को उनके पुश्तैनी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से अलग
थलग कर दिये जाने से स्थानीय बाजारों पर नकारात्मक प्रभाव पडा है। कालान्तर में
खनन परियोजना के आरम्भ के साथ हीं खनन प्रभावित लोगों के मघ्य सामाजिक नेटवर्क व
संबंध बिगड़ रहे हैं और संरचनात्मक पहलू का पारंपरिक आधार अपना महत्व खो चुके हैं।
कोयला खनन परिक्षेत्र में आधारभूत विकासात्मक संरचनाओं में सुधार के साथ साथ वायु, जल एवं ध्वनि
प्रदुषण में भी वृद्धि हुआ है। प्रभावितों के स्वास्थय पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा
है। कुंतला लाहिड़ी, दत्त (2005) ने अपने आलेख
रोलस एण्ड स्टेटस ऑफ वोमन इन एक्स्ट्रेटिव इंडस्ट्रीज इन इंडिया: मेकिंग ए प्लेस
फोर ए जेडंर सेनसेटिव माइनिंग डेवलपमेंट में कोयला खनन उद्योग में महिला संवेदनशीलता
का स्थान और महिलाओं की समकालीन चुनौतियों का वर्णन एवं विश्लेषण है। खनन कार्य
महिलाओं के लिए गैर पारंपरिक कार्य भले हीं है किन्तु हाल के दिनों में इस क्षेत्र
में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। कोयला खनन उद्योग के संदर्भ में महिलाओं के प्रति
लिंगीय संस्थागत संवेदनाओं के जातिगत,
सामाजिक व सांस्कृतिक जुड़ावों में आये परिवर्तनों की झलक भी इस आलेख में है।
कोयला खनन उद्योग में रोजगार की दृष्टि से पुरूषों की तुलना में महिलाओं की
हिस्सेदारी काफी कम है। पारंपरिक तौर पर कोलियरी में काम करने वाले ज्यादातर लोगों
का संबंध अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, दलित, पिछड़े व निर्धन परिवारों से
है। शर्मा (2009) ने अपने शोध आलेख इकोनॉमिक लैविलीटीज ऑफ इन्भारमेंटल पोपुलेशन
वाई कोल माइनिंग इन इंडियन सेनेरियो में
कोयला खनन उद्योग में पर्यावरण के हितो के संरक्षण व संवर्द्धन के प्रावधानों के
होने के बावजूद होने वाले पर्यावरणीय व पारिस्थितिकीय हानियों व असंतुलनों का वर्णन
हैं। कोयला खनन, परिचालन व प्रसंस्करण के
प्रक्रिया में विविध प्रकार के प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जन होता है, जिनका वायु,
जल, जमीन, पर्यावरण, भूमि आदि पर अत्यन्त
नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।काफी परिव्यय का दिखावा व दावा करने के बाबजूद पर्यावरण
के लिए आवश्यक परिवेश का निर्माण नहीं हो पाता है। चौहान (2010) ने माइनिंग डेवलपमेंट
एण्ड इन्भारमेंट: ए केस स्टडी ऑफ बिजोलिया माइनिंग इन राजस्थान नामक शोध आलेख
में इस तथ्य पर बल प्रदान किया है कि कोयला
खनन एक तरह से विनाशकारी विकासात्मक गतिविधि है जहां पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण
को अर्थव्यवस्था व औघोगिक विकास की बलिवेदी पर नुकसान उठाना पड़ता है। खनन उद्योग में जंगलो का विनाश, मानवीय अधिवासों की हानि, जैवविविधता का क्षरण एवं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन समाहित
है। कोयला निष्कर्षण एवं प्रसंस्करण में पर्यावरणीय हानि व्यापक तौर पर होता है।
प्रस्तुत आलेख में मानवीय पारिस्थितिकी तंत्र पर कोयला खनन के प्रभावों का वर्णन
एवं विश्लेषण किया गया है। राजू,एलिया (2014) ने ए स्टडी आन
प्लूमोनरी फंक्शन टेस्ट इन कोल माइन वर्कर्स इन खम्मन डिस्ट्रीट,तेलंगाना नामक शोध आलेख में कोयला खनन परिक्षेत्र में लोगों
तथा माइनिंग वर्कर्स के श्वसन प्रणाली पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की चर्चा
है। कोयले की धूल एवं अन्य प्रदूषक पदार्थों का फेफड़ो पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता
है। प्लूमोनरी फंक्शन टेस्ट से स्पष्ट होता है कि कोयला खनन का श्रमिकों एवं
स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आनन्द, एन (2006) ने इनडेनजरिंग
माइनिंग कम्यूनीटीज एक्जामीनेशन द मिसिंग जेण्डर कन्सर्न इन कोल माइनिंग
डिस्पलेसमेंट एण्ड रिहैविलीटेशनइन इंडिया नामक आलेख में इस तथ्य की ओर ध्यानाकृष्ट
किया है कि भारत में कोयला खनन उद्योग में लिंग आधारित पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया
जाता है। विस्थापन एवं पुर्नवासन की प्रक्रिया में महिलाओं की समस्याओं, व्यवहारिक आवश्यकताओं को पूरी तरह से नजरअन्दाज कर दिया
जाता है। रोजगार के अवसरों में भी महिलाओं की घोर उपेक्षा की जाती है। महिलाओं के
जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की ओर कोल माइनिंग कंपनी एवं सरकार का अपने
दायित्वों का निर्वहन नहीं करते। गर्भवती महिलाओं पर कोयला खनन उद्योग का कुप्रभाव
पड़ता है। महिलाओं की भावनाओं, विचारों, जरूरतों, भागीदारी एवं आजीविका के प्रति कोयला खनन उद्योग में
सकारात्मक पहल का घोर अभाव है। कोयला खनन परियोजनाओं के कारण महिलाओं को विविध
प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पाण्डेय जितेन्द्र, कुमार धीरज, बिरेन्द्र कुमार सिंह एवं नीरज कुमार मोहालिक (2016):
इन्भारमेंटल एण्ड सोशियो इकोनोमिक इम्पैक्टस ऑफ फायर इन झरिया कोलफील्ड, झारखण्ड नामक आलेख में झरिया कोलफील्ड कोलफील्ड के संदर्भ
में किये गए शोध के आधार पर कोयला खदाानों के सामाजिक, सुरक्षात्मक,
आर्थिक एव पर्यावरणीय विपरित प्रभावों का वर्णन एवं विश्लेषण किया गया है।
कोयला खनन का सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ता है। कोयला खनन के कारण
उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण,
वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि का प्रभावित लोगों के जीवन व स्वास्थ्य
पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कोयला माइन्स फायर के
कारण भी विविध प्रकार की दुर्घटनायें होती है। स्थानीय लोगों का जीवन संकटमय हो
जाता है। भूमि की उत्पादकता एवं जलस्तर में गिरावट आती है। कोयला खनन के कारण
प्रभावित लोगों को विस्थापन एवं पुनर्वासन के लिए विवश होना पड़ता है। रोजगार की
तलाश में बाहरी लोगों का आगमन होता है जबकि स्थानीय लोगों को प्रवासित होने के लिए
विवश होना पडता है। सिंह, गुरूदीप (2008) ने अपने
आलेख मिटिगेटींग इनभारमेंटल एण्ड सोशल इम्पैक्ट ऑफ कोल माइनिंग इन इंडिया में
कोयला उद्योग के पर्यावरणीय एवं सामाजिक चुनौतियों का वर्णन किया है। ओपन कास्ट
माइनिंग के कारण बड़े पैमाने पर भूमि विशेषकर उपजाऊ एवं अधिवासीय भूमि की हानि, पैतृक निवास से लोगों का विस्थापन, कृषि कार्य की हानि होती है। भूमि, वायु एवं जल की गुणवत्ता पर कोयला खनन का नकारात्मक प्रभाव
पड़ता है। कायेला खनन परियोजना के कारण जल,
जंगल व जमीन तीनों पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष व परोक्ष कुप्रभावों का दुष्परिणाम
प्रभावित परिवार के लोगों को झेलना पड़ता है। पेय जल स्रोतों, नदी, तालाब, नालों को भी कोयला खनन उद्योग बुरी तरह से कुप्रभावित करते
हैं। ध्वनि प्रदूषण की समस्या दिनानुदिन विकराल रूप धारण करते जाते हैं। कोयला खनन
का समाज के विविध आयामों, सामुदायिक संरचनात्मक
व्यवस्थाओं, परम्परागत मूल्यों और
प्रतिमानों, सामाजिक जीवन की सातत्यता, सतत विकास एवं कंपनी के भूमिका की सामाजिक स्वीकृित आदि
पहलुओं पर चर्चा किया गया है। कोयला खनन के अपने आर्थिक एवं विकासात्मक फायदे हैं
तथापि विस्थापन एवं पुर्नवासन का सामाजिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैै।
प्रभावित परिवारों को भूमिहीनता, रोजगारविहीनता एवं
सांस्कृतिक हानियों का सामना करना पड़ता है। राजू (2006) कोयला खनन के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण के कारण प्रभावित परिवारों के जीवन के
समस्त आयाम प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप् से प्रभावित होता है। पर्यावरणीय चुनौतियों, वायु प्रदूषण,
जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण के साथ साथ
विविध प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक हानियों से संघर्ष करना पड़ता है। कोयला खनन
परियोजना के कारण विस्थापित परिवारों के सदस्यों विशेषकर बच्चों, महिलाओं, वृद्धों, गर्भवती महिलाओं के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रभावित परिवारों को विविध प्रकार के मानसिक व शारीरिक दिक्कतों का सामना करना
पड़ता है।
घोष(2002) कोयला खनन की प्रक्रिया में भूमि की भौतिक हानि समय के साथ साथ अधिक
होती जाती है। कोयला खनन का तत्कालिक एवं दूरगामी प्रभाव पड़ता है। कोयला खनन के
कारण संबंधित परिक्षेत्र के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश का ताना बाना परिवर्त्तित
हो जाता है। |
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मुख्य पाठ |
कोयला खनन उद्योग राष्ट्रीय
अर्थव्यवस्था की दृष्टिकोण से लाभदायक है। राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में भी
कोयला खनन उद्योग का महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। औघोगिक विकास में भी कोयला खनन
उद्योग की सकारात्मक व निर्णायक भूमिका है। कोयला खनन उद्योग में रोजगार के नये अवसरों
का सृजन होता है। प्रभावित क्षेत्र में आर्थिक गतिशीलता एवं वस्तु और सेवाओं कीं
मांग व खपत में भी वृद्धि होने से नये परिवेश का नवनिर्माण होता है। किन्तु दूसरी
ओर सबसे बड़ा खामियाजा परियोजना प्रभावित परिवारों, गांवों व समुदायों को भुगतना पड़ता है। परियोजना प्रभावित परिवारों व लोगों के
जीवन के समस्त आयामों पर कोयला खनन उद्योग का प्रत्यक्ष व परोक्ष, अस्थायी व स्थायी और तात्कालिक व दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
परियोजना प्रभावित परिवारों व लोगों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के विविध
आयामों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के कारण लोगों को विविध प्रकार के सामाजिक
व सांस्कृतिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
उपरोक्त चारों कोल ब्लाक में पकरीबरवाडीह कोयला खनन
परियोजना के लिए सबसे पहले भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया प्रारम्भ किया गया। वर्ष
2010 में एनटीपीसी लिमिटेड द्वारा कोयला खनन के लिए प्रभावित 28 गांवों के 8056
एकड़ भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है। आवश्यकतानुसार ग्रामीणों को विस्थापित
किया जा रहा है पकरीबरवाडीह कोल माइंस ब्लॉक झारखण्ड राज्य के हजारीबाग जिला के
अन्तर्गत बड़कागांव एवं केरेडारी प्रखण्ड के उत्तरी कर्णपुरा कोलफील्ड में अवस्थित
है। एनटीपीसी लिमटेड को अपने सुपरथर्मल पावर स्टेशनों में आवश्यक कोयला खपत की आपूर्ति करने के पकरीबरवाडीह कोलफील्ड
को कैप्टिव माइनिंग के रूप में कोयला खनन मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा पत्रांक 13016/29/2003-सी.ए. दिनांक
11 अक्टूबर,
2004 एवं समसंख्यक पत्रांक दिनांक 24 अगस्त, 2005 से
कुलक्षेत्र 46.25 वर्ग किलोमीटर के लिए कोल ब्लॉक आंबंटित किये गये।
पकरीबरवाडीह कोयला खनन परियोजना के तीन
मुख्य उपक्षेत्र हैं- i.
पकरीबरवाडीह पश्चिमी कोयला खनन परियोजना ii.
पकरीबरवाडीह पूर्वी कोयला खनन परियोजना iii.
पकरीबरवाडीह उत्तर पश्चिमकोयला खनन परियोजना मेसर्स मेकन एवं सीएमपीडीआई द्वारा कोयला माइनिंग के लिए
भूगर्भीय माइनिंग प्रतिवेदन तैयार किया गया। कालान्तर में 2016 में पुनः एनटीपीसी
लिमिटेड द्वारा माइनिंग योजना को सुधार कर तैयार किया गया। पकरीबरवाडीह कोयला
परियोजना से बड़कागांव प्रखण्ड के उन्नीस तथा केरेडारी प्रखण्ड के नौ गांव पूर्ण
रूपेण प्रभावित होने वाले हैं। बड़कागांव प्रखण्ड का भौगोलिक विस्तार 113470 वर्ग
किलोमीटर एवं केरेडारी प्रखण्ड का भौगोलिक विस्तार 8160.52 वर्ग किलोमीटर है।
बड़कागांव प्रखण्ड के अन्तर्गत 15 पंचायत एवं 84 राजस्व ग्राम हैं जबकि
केरेडारी प्रखण्ड के अन्तर्गत 13 पंचायत
एवं 76 राजस्व ग्राम हैं। बड़कागांव एवं केरेडारी
प्रखण्ड में और दूसरी भी कोयला खनन परियोजना संचालित है। बड़कागांव प्रखण्ड
की 19 प्रतीशत और केरेडारी प्रखण्ड की 21 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति की है।
बड़कागांव प्रखण्ड की 11 प्रतीशत और केरेडारी प्रखण्ड की 9 प्रतिशत आबादी अनुसूचित
जनजाति की है। पकरीबरवाडीह कोयला परियोजना में खनन कार्य हेतु 27 वर्षों के लिए
मेसर्स थिएसीस प्राइवेट लिमिटेड को एमओडी के रूप में कार्य आबंटित किये गये पुनः
30.11.2015 को एमओडी के रूप में त्रिवेणी सैनिक माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड को
संविदा दिया गया। 17.05.2016 को खनन कार्य प्रारम्भ हुआ। 020.12.2016 को कोयला
उत्पादन का श्रीगणेश हुआ।16.02.2017 को कोयला का प्रथम रैक रवाना किया गया।
01.04.2019 को खनन परियोजना को व्यावसायिक घोषित किया गया। पकरीबरवाडीह उत्तर
पश्चिम कोयला खनन परियोजना में विगत सात वर्षों से कोयला का उत्पादन व वितरण का
काम हो रहा है। अध्ययनित इकाई:- पकरीबरवाडीह कोयला परियोजना के प्रथम चरण में पूर्णतया प्रभावित होने वाले
बड़कागांव प्रखण्ड के पकरीबरबाडीह,
चिरूडीह,
आराहारा,
चेपाकलां,
डाडीकलां तथा केेरेडारी प्रखण्ड के इतीज, चुरचू व
नगड़ी गांव के प्रभावित परिवार के सदस्यगण का प्रयोग प्रस्तुत शोध आलेख में अध्ययन इकाई के रूप में किया गया है।
पकरीबरवाडीह कोयला परियोजना के कारण
सम्प्रति इन आठ गांवों के 3127 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित किया गया है। इन आठ गांवों
के 2211 परिवारों के 11960 व्यक्ति कोयला खनन परियोजना से प्रभावित हो रहे
हैं।इसमें लगभग दो हजार छः वर्ष से कम आयु वाले हैं। प्रस्तुत शोध अध्ययन के लिए
गुणात्मक आंकड़ों के संकलन हेतु 150 सूचनादाताओं का प्रयोग किया गया है। साथ ही साथ कम्पनी के अधिकारियों व कर्मचारियों से भी साक्षात्कार किया गया है। उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि पकरीवरवाडीह कोयला खनन
परियोजना के कारण प्रथम चरण में आठ गांव के 2211 परिवारों को भूमि अधिग्रहण, विस्थापन
व पुर्नवासन का शिकार होना पड़ा। आठ गांव के कुल 11960 व्यक्तियों जिसमें 6124
पुरूषों,
5836 महिलाओं तथा छः वर्ष से कम आयु के 2010 बच्चों पर कोयला खनन का प्रत्यक्ष व स्थायी
प्रभाव पड़ रहा है। औसतन प्रति परिवार पांच व्यक्तियों को कोयला खनन परियोजना के
कारण विस्थापन एवं पुर्नवासन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है। प्रभावित परिवारों
में सताइस प्रतिशत अनुसूचित जाति के हैं। अनुसूचित जनजाति की संख्या काफी कम है। तालिका:-02
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि परियोजना प्रभावित
लगभग आधी आबादी निरक्षर है। महिलाओं में पुरूषों की तुलना में निरक्षरता ज्यादा है। अलग
अलग गांव में निरक्षरता की प्रतिशतता में अंतर है। कई गांवों में कामगारों की संख्या गैर कामगारों की तुलना
में अधिक है। सीमान्त कामगारों की प्रतिशतता में गांवों में भिन्नता है। लगभग तीस
से पैंतिस प्रतिशत कामगार सीमान्त कामगार हैं। कामगारों में लगभग 20 प्रतिशत
परिवार भूमिहीन हैं तथा चिरूडीह जैसे कुछ गांवों में प्रभावित परिवारों के पास रैयती भूमि नहीं है। वे गैरमजरूआ, वन भूमि व
अन्य किस्म के सरकारी भूमि पर पीढ़ी दर पीढ़ी आजीविका का भरण पोषण करते आ रहे थे। तालिका:-04
स्रोत:- वर्ष 2022-23 में किये गये क्षेत्रकार्य उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि इन आठ गांवों में कोयला खनन
परियोजना से प्रभावित होने वाले कृषकों की संख्या सताईस सौ चौवालीस एवं कृषक
मजदूरों की संख्या सोलह सौ चौवन है। महिला कृषक मजदूरों की संख्या पुरूष कृषक
मजदूरों से लगभग पच्चीस प्रतिशत अधिक है।
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परिणाम |
परियोजना प्रभावित परिवारों को विस्थापन एवं पुर्नवासन के कारण
सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन और सामाजिक पूंजी पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से स्थायी व
दूरगामी बहुआयामी नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। कोयला खनन परियोजना के कारण प्रभावित
परिवारों के परिवार की संरचना एवं प्रकार्यो पर प्रत्यक्ष व परोक्ष, तात्कालिक
व दूरगामी प्रभाव पड़ा है। कृषि आधारित संयुक्त परिवार तेजी से एकल परिवार में बदल
रहें हैं। परिवार की संरचना, स्वरूप व प्रकार्य में
अभूतपूर्व बदलाव आ रहे हैं। पारिवारिक समरसता परम्परागत अर्थव्यवस्था व रोजी
रोजगार के साधन एवं संसाधन के अकस्मात व अनैच्छिक हानि के कारण लोंगों के जीवन की
दशा व दिशा में क्रांतिकारी बदलाव आये हैं। सामुदायिक एवं राजनैतिक जीवन का कुनबा
बिखरने लगता है। कोयला खनन परियोजना का प्रभावित परिवार के सामजिक संबंधों, नातेदारी संबंधों एवं जजमानी व्यवस्था पर अत्यन्त हीं नकारात्मक प्रभाव
पड़ा है। विस्थापन के कारण सामाजिक संबंधों का कुनबा बिखर गया है। सामाजिक पूंजी पर हुए कुठाराधात के परिणाम स्वरूप सामाजिकता, सामुदायिकता
व सामूहिकता का संजाल बिखर चुका है। सांस्कृतिक पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण पर भी
नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। विशेषकर जब कृषि योग्य भूमि पर पीढ़ी दर पीढ़ी कृषि
आधारित अर्थव्यवस्था एवं वनोपज संसाधनों के सहारे जीवन गुजर बसर करने वाले बसे
बसाये ग्रामीण एवं कृषक समाज की भूमि को अधिग्रहित कर अनैच्छिक रूप से विस्थापित
कर कोयला उद्योग को स्थापित किये जाने से परिस्थिति और
भी बदत्तर होने लगी है। सूचनादाताओं का मानना है कि कोयला उद्योग में संलिप्त
कंपनियों के द्वारा प्रभावित परिवारों के हितों, भावनाओं
का सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर संरक्षण व संवर्द्धन नहीं किया जा रहा है। ग्रामीण व
कृषक समाज के जीवन परम्परा, मूल्य व प्रतिमान, विश्वास व विश्वदृष्टि, संरचना एवं स्वरूप के
साथ साथ संस्कृति के समस्त आयामों पर कोयला खनन उद्योग का तात्कालिक व दूरगामी
प्रभाव पड़ रहा है। संस्कृति के एक आयाम दूसरे आयामों को
प्रभावित कर रहें हैं। प्रभावित परिवारों को रोजगारविहीनता, आवासहीनता, भूमिहीनता सहित विविध प्रकार के
सामाजिक व सांस्कृतिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। भूमि अधिग्रहण, अधिग्रहित भूमि के मुआवजे की अदायगी, कंपनी में रोजगार पाने, परियोजना प्रभावित व विस्थापित परिवारों के लाभों की प्राप्ति की प्रक्रिया के दौरान प्रभावित परिवार के लोगों को विविध प्रकार के मानसिक व शारीरिक परेशानियों से संघर्ष करना पड़ता है। सूचनादाताओं का मानना है कि सरकार, पुलिस प्रशासन एवं जिला प्रशासन सभी कंपनी के हितों को तरजीह देते हैं। सूचनादाताओं से इस तथ्य की अभिपुष्टि होती है कि कोयला खनन उद्योग से जुड़े कंपनियों एवं प्रभावित परिवारों के मध्य सहयोग, समर्थन और सामंजस्यता स्थापित करने में पुलिस प्रशासन एवं जिला प्रशासन भी प्रभावितों के पक्ष से सकारात्मक पहल नहीं करती है। |
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निष्कर्ष |
कोयला खनन के कारण सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी के साथ साथ स्थानीय समुदाय के
लिए आजीविका के स्रोतों में भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में वृद्धि आती हैं।
कोयला खनन परियोजना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष में प्रभावित परिक्षेत्र में रोजगार
के नये अवसरों का सृजन हुआ है। कोयला खनन परियोजना प्रभावित परिक्षेत्र में
प्रवासियों के आगमन तथा अस्थायी व स्थायी निवास के कारण वस्तु एवं सेवाओं की मांग
में वृद्धि हुई है। क्षेत्र में धन के प्रवाह में अधिक गतिशीलता आयी है। लोगों के
भौतिक जीवन स्तर में भी प्रगति अभिमुख बदलाव हो रहे हैं। कोयला खनन परियोजना में
मुख्यरूप से खुले खदान से कोयले के उत्पादन, उत्पादित
कोयला का परिवहन, उत्पादित कोयला का भण्डारण, परियोजना के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण, प्रभावित
परिवारों के विस्थापन व पुर्नवासन, सामाजिक निगमित
दायित्व और सामुदायिक विकास योजनाओं के संचालन, मानव
संसाधन की व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था, प्रभावित क्षेत्र में आधारभूत संरचनाओं का निर्माण और सुरक्षा व्यवस्था
आदि के संदर्भ में रोजगार का सृजन हुआ है। आर्थिक साधन, संसाधन एवं व्यवस्था में हाने वाले क्रांतिकारी बदलावों का प्रभावितों के
जीवन स्तर, जीवन शैली और पारिवारिक व सामाजिक जीवन पर
प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रभाव पड़ा है।
संयुक्त परिवार के स्थान पर एकल परिवार की संख्या में वृद्धि हुआ है।
सामुदायिक प्रवृतियों के स्थान पर व्यक्तिवादी मनोवृति फलने फूलने लगी है। सामाजिक
व सांस्कृतिक पूंजी के साथ ही साथ सामुदायिक परिसंपत्तियों, धार्मिक
आधारभूत संरचनाओं, स्वास्थ्य एवं शैक्षणिक आधारभूत
संस्थाओं की भी घोर हानि होती है। सांस्कृतिक परिपाटियों, उत्सवों एवं अवसरों को मनाने के तौर तरीकों में बदलाव आ रहें हैं।
नातेदारी संबंधों, जजमानी व्यवस्था, समाजिकता और सामूहिकता पर भी कोयला खनन उद्योग का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
सांस्कृतिक पारिस्थितकी, सामाजिक परिवेश व पर्यावरण, पर्यावरणीय दशाओं, भूस्थलीय दशाओं पर भी कोयला
खनन उद्योग का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। |
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