ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- I February  - 2022
Innovation The Research Concept
1857 ई0 क्रान्ति में जनपद गाजियाबाद की प्रमुख घटनायें
Major Events Of District Ghaziabad in 1857 AD Revolution
Paper Id :  15710   Submission Date :  2022-02-18   Acceptance Date :  2022-02-18   Publication Date :  2022-02-25
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आनंद कुमार
शोधार्थी
इतिहास विभाग
एम0 एम0 पी0जी0 कॉलेज
मोदीनगर ,उत्तर प्रदेश
भारत
सारांश
10 मई 1857 को मेरठ शहर से क्रान्ति का प्रारम्भ हुआ। देखते ही देखते क्रान्ति की ज्वाला पूरे उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न भागो में फैल गयी। 1857 की इस क्रान्ति में जनपद गाजियाबाद के विभिन्न क्षेत्रों से क्रान्ति को समर्थन मिलने लगा। क्या गांव क्या नगर हर तरफ लोग अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए तत्पर हो उठे। जनपद गाजियाबाद का क्षेत्र 1857 की इस क्रान्ति का उदगम क्षेत्र था। क्रान्ति से सम्बन्धित अनेको घटनाएं यहाँ घटित हुई और अग्रेंज सैनिको से क्रान्तिकारियों की मुठभेड़ गाजियाबाद की धरा पर हुई। इतिहास का कार्य है कि वह वर्तमान को अतीत का दृश्य दिखाए ताकि आम जन मानस को अपने इतिहास का भान हो सके। जनपद गाजियाबाद की भूमि वीर नायकों की भूमि रही है। 1857 ई के इस समर में अपने प्राणों की आहुति देकर इन वीरो ने अपना नाम इतिहास में अमर कर दिया। शेधार्थी ने जनपद गाजियाबाद के 1857 ई0 की क्रान्ति में सम्मलित नायकों व उनसे सम्बन्धित स्थलों का विवरण अपने शोधपत्र में दिया है। 1857 ई0 की यह क्रान्ति भारत ही नही बल्कि विश्व इतिहास की सबसे प्रमुख घटनाओं में से एक है। 1857 ई0 की क्रान्ति में गाजियाबाद की जनता की सक्रिय भूमिका रही थी।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद On 10 May 1857, the revolution started from the city of Meerut. The flame of revolution spread to different parts of the country including the whole of Uttar Pradesh. In this revolution of 1857, it started getting support from different areas of Ghaziabad district. People from everywhere in villages or cities get ready to teach a lesson to the British? The area of ​​district Ghaziabad was the origin area of ​​this revolution of 1857. Many incidents related to the revolution happened here and the encounter of the revolutionaries with the British soldiers took place on the ground of Ghaziabad. The function of history is to show the present a view of the past so that the common man can be aware of his history. The land of district Ghaziabad has been the land of heroic heroes. By sacrificing their lives in this summer of 1857, these heroes immortalized their name in history. Shedharthi has given in his research paper the details of the heroes involved in the revolution of 1857 AD in Ghaziabad district and the places related to them. This revolution of 1857 is one of the most important events not only in India but in world history. The people of Ghaziabad had an active role in the revolt of 1857.
मुख्य शब्द क्रान्ति, ज्वाला, घटनाओं, भूमिका।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Revolution, Flame, Events, Role.
प्रस्तावना
‘भोजपुर गांव की घटना’ भोजपुर गांव गाजियाबाद जिले के मोदीनगर तहसील में स्थित है। 1857 की क्रान्ति में इस गांव का भी एक मुख्य स्थान है। 10 मई 1857 ई0 को जब मेरठ शहर में क्रान्ति भड़क गयी थी तब क्रान्तिकारियों ने शहर पर कब्जा कर लिया था। जेल में बन्द बन्दियों को क्रान्तिकारियों ने रिहा कर दिया। इन रिहा हुए कैदियों में भोजपुर गांव का रामदयाल नामक एक व्यक्ति भी था जोकि कर्ज न चुका पाने के कारण जेल में बन्द था। जिस गांव के साहूकार की गवाही पर रामदयाल को जेल में बन्द किया गया था वह साहूकार अंग्रेजो का हितैषी था। रामदयाल जैसे ही जेल से मुक्त हुआ वह तुरन्त भोजपुर पहुँचा और उसने अंग्रेजों के पिटठू साहूकार की हत्या कर दी।[1] रामदयाल ने गांव के अन्य युवकों के साथ एक संगठन खड़ा किया और 1857 की क्रान्ति में क्रान्तिकारियों का साथ दिया। गांव कुम्हैड़ा पर अंग्रेजों का हमला 1857 ई. की क्रान्ति में गांव कुम्हैड़ा का भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। मेरठ से क्रान्ति का बिगुल जैसे ही बजा गाजियाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों में भी क्रान्ति का स्वर फूट पड़ा। कुम्हैड़ा, सुराना, बसौत, ग्यासपुर, जलालाबाद जैसे अनेको गांव क्रान्ति के समर्थन में उतर आये।[2] क्रान्तिकारियों ने जब दिल्ली पर अधिकार कर लिया तो कुछ अंग्रेज व उनके परिजन दिल्ली से मेरठ की ओर जान बचाकर भाग निकले। इन अंग्रेजों की कुम्हैड़ा गांव में क्रान्तिकारियों द्वारा हत्या कर दी गयी। इस हत्याकाण्ड की सूचना जब उच्च अधिकारियों तक पहुँची तब बाबूगढ़ छावनी से सैनिक टुकड़ी कुम्हैड़ा गाँव पहुँची। अंग्रेज सैनिकों ने गाँव को घेरकर आग लगा दी और अनेक युवकों को अपने साथ अंग्रेज सैनिक मेरठ ले गये। यहां पर इन क्रान्तिकारियों को फाँसी पर लटका दिया गया।[3] गाँव वासी इन युवकों के शव गांव में ले आये। आज भी इनके मढ़ (समाधियां) गांव में बनी हुई हैं।[4] ग्यासपुर, सुराना जैसे गांवों को अंग्रेजो ने बागी घोषित कर दिया। सरेआम पीपल और आम के पेड़ों पर क्रान्ति में शामिल लोगों को सामूहिक रूप से फांसी दी गयी। गाजियाबाद हिण्डन तट का युद्ध 10 मई 1857 ई. को क्रान्ति भड़की और अगले ही दिन 11 मई 1857 ई. को क्रान्तिकारियों ने दिल्ली पर भी कब्जा जमा लिया। अन्तिम बादशाह बहादुर शाह जफर को क्रान्तिकारियों ने भारत का सम्राट घोषित किया वे 1857 क्रान्ति के सर्वमान्य नेता चुने गए।[5] मेरठ से दिल्ली आने जाने व दिल्ली को जोड़ने की दृष्टि से हिण्डन नदी का पुल बड़ा महत्वपूर्ण था। गाजियाबाद के हिण्डन नदी के पुल पर क्रान्तिकारियों ने कब्जा कर रखा था। 30 व 31 मई 1857 को भारतीय क्रान्तिवीर सैनिको और अंग्रेजो के बीच भयंकर लड़ाई लड़ी गयी। हिण्डन के तट पर हुई इस भीषण लड़ाई में पहले दिन अंग्रेज सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। कैप्टन एन्ड्रूज समेत 10 सैनिक अंग्रेजों के मारे गये। 11वीं पलटन के एक सिपाही ने स्वंय को बारूद से उड़ा दिया और अंग्रेजों के हाथों में अपनी 5 तोपों को जाने से बचा लिया। उसके इस बलिदान ने अंग्रेजो के पैर उखाड़ दिये। 31 मई 1857 को अंग्रेजों ने फिर योजना बनाकर क्रान्तिकारियों पर हमला किया लेकिन लेफ्टिनेंट नेपियर की युद्ध में मृत्यु हो गई। अपने अधिकारी की मृत्यु से अंग्रेज सेना के हौसले पस्त हो गये। अंग्रेजों के जो सैनिक 30 व 31 मई 1857 को हिण्डन तट के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे उनकी कब्र आज भी हिण्डन नदी के तट पर ‘हिण्डन विहार’ में बनी हुई है।[6] इतने कम संसाधनों के बावजूद भारतीय क्रान्किारियों ने अंग्रेजो के दांत खटटे कर दिये और पुल पार नहीं करने दिया। धौलाना के 14 शहीदों का बलिदान 1857 ई. की क्रान्ति में धौलाना के 14 शहीदों का योगदान सर्वोपरि रहा है। यह 1857 ई. की क्रान्ति की एक ऐसी घटना थी जिसने क्रान्ति को एक नया आयाम दिया। धौलाना के ये क्रान्तिवीर महाराणा प्रताप के वंशज कहलाते हैं। विक्रमी संवत 1384 में बैशाख सुदी पंचमी में दिन सोमवार को राजा चूहणमल द्वारा धौलाना को बसाया गया था। राजा चूहड़मल चित्तौड़ राजपरिवार से सम्बन्धित थे। इसी क्षेत्र में 60 गांव सिसौदिया और 84 गांव तोमरों के बसाये गये इसलिये इस पूरे क्षेत्र को साठा-चौरासी कहा जाता है।[7] राजा चूहड़मल की नौवीं पीढ़ी में चंचल सिंह गहलोत के दो पुत्र हुए नौनिद्धि सिंह व ठाकुर दुर्गा सिंह। ठाकुर दुर्गा सिंह इंग्लैंड से पढ़कर भारत आ चुके थे। उस समय 1857 की क्रान्ति का दौर चल रहा था। राणा प्रताप के वंशज गुलामी की जंजीरों के आदी नहीं रहे हैं। अतः ठाकुर दुर्गा सिंह ने 1 वैश्य और स्वंय सहित 14 लोगों का एक संगठन बनाकर क्रान्ति की योजना बनाकर धौलाना तहसील को अंग्रेजों से मुक्त करने की तैयारी शुरू कर दी। 11 मई 1857 को ठाकुर दुर्गा सिंह व झनकूमल के नेतृत्व में धौलाना थाने में आग लगा दी गई और धौलाना क्षेत्र को गोरों के शासन से मुक्त कर दिया।[8] नवम्बर 1857 ई. तक धौलाना अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त रहा लेकिन धीरे-धीरे क्रान्ति शिथिल पड़ने लगी। अंग्रेज कलैक्टर डनलप ने धौलाना पर खाखी रिसले के साथ धावा बोल दिया। मुखबिरों की सूचना पर झनकूमल, ठाकुर दुर्गा सिंह समेत 14 क्रान्तिकारियों को बन्दी बना लिया गया। 14 क्रान्तिकारियों को चौपाल के पीपल के पेड़ पर लटकाकर फांसी देदी गयी क्रान्तिकारियों को अपमानित करने के लिए गांव के 14 कुत्तों को गोली मारकर शहीदों के साथ दफनाया गया।[9] आज भी धौलाना में इन 14 शहीदों की स्मृति में शहीद स्तंम्भ बना हुआ है। जिस पेड़ पर शहीदों को फांसी दी गई थी वह पेड़ कुछ वर्ष पहले ही आंधी में उखड़ गया था। डाकुर दुर्गा सिंह के परिवार के सातंवीं पीढ़ी के विजय सिंह अभी भी गांव धौलना में ही रहते हैं। उन्होंने क्रान्ति से सम्बन्धित तथ्यों को संजोकर रखा हुआ है। धौलाना का बलिदानी इतिहास क्रान्ति के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। डासना के लाला मटोलचन्द का योगदान 1857 ई. की क्रान्ति में डासना का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिस समय दिल्ली, मुरादनगर, गाजियाबाद, लोनी, मेरठ, धौलाना, बेगमाबाद, गढ़मुक्तेश्वर पर क्रान्तिकारियों का अधिकार था। ठीक उसी समय मुगल सम्राट बहादुर शाहजफर का संदेश डासना के लाला मटोलचन्द जी को मिला। बादशाह ने लाला जी को दरबार में शीघ्र उपस्थित होने का हुक्म जारी किया। अतः संदेश प्राप्त होते ही लाला मटोलचन्द दिल्ली लाल किले बादशाह बहादुर शाह जफर से मिलने पंहुचे। जब लाला जी दरबार में पंहुचे तब बादशाह अन्य लोगों से मन्त्रणा कर रहे थे। कुछ देर बाद बादशाह बहादुर शाहजफर लाला मटोलचन्द से मिले और उन्हें क्रान्ति की सारी योजना बताई तथा लालाजी से 1857 ई. क्रान्ति के लिए धन का सहयोग मांगा। लालाजी सहायता का आश्वासन देकर डासना लौट आये। लाला मटोलचन्द जी का डासना में सर्राफा, डेरी एवं खेतीबाड़ी का बड़ा कारोबार था। कुछ ही दिन में धन का बन्दोबस्त करके तथा सारा धन एक बैलगाड़ी में भरकर लालाजी 1857 की क्रान्ति के सहायतार्थ लाल किले जाकर सम्राट बहादुर शाह जफर को सौंप आये।[10] सम्राट लालाजी का समर्पण देखकर निःशब्द रह गये। निश्चित ही लालाजी 1857 ई. की क्रान्ति के भामाशाह थे। उनके जैसे लोग कम ही होते हैं। डासना में आज भी उनकी छोटी 52 डयोढ़ी हवेली खण्डहर के रूप में खड़ी हैं। जो उनकी दानशीलता और वैभव की कहानी कह रही है। क्रान्ति के बाद डासना क्षेत्र की जमींदारी एक अंग्रेज अधिकारी को सौंप दी गयी थी, इसका विरोध हुआ। विरोध करने वालों में नैन सिंह त्यागी व बसारत अली प्रमुख थे। बसारत अली को अंग्रेजों द्वारा (वर्तमान आजाद मैमोरियल कॉलेज) डासना में पीपल के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गयी थी।[11] जिस अंग्रेज अधिकारी को डासना की जमींदारी दी गयी थी उसकी कोठी मंसूरी गंग नहर पर आज भी स्थित है। पिलखुवा, मुकीमपुर गढ़ी के क्रान्तिकारियों का योगदान 1857 ई0 की क्रान्ति में पिलखुवा क्षेत्र भी बागी हो गया था। पिलखुवा में अंग्रेजों को राजपूतों व गुर्जरों ने नाकों चने चबवा दिये थे। पिलखुवा के पास मुकीमपुर गढ़ी में किसानों ने अंग्रेजो द्वारा भेजे गये मालगुजारी वसूल करने वाले कर्मचारियों की हत्या कर दी थी। इस घटना से कलैक्टर डनलप आग बबूला हो गया और पिलखुवा पर आक्रमण करने का आदेश उसने दिया। पिलखुवा के मण्डी मौहल्ले में अंग्रेजों द्वारा खूब लूटमार की गयी व यहां के चार क्रान्तिकारियों को फांसी दे दी गयी।[12] मुकीमपुर गढ़ी के प्रसिद्ध जमींदार ठाकुर गुलाब सिंह थे। 1857 क्रान्ति के दौरान इन्होंने अपनी हवेली को क्रान्तिकारियों का अडडा बना दिया। अंग्रेजों को जब इस बात की भनक लगी तो उन्होंने हवेली को तोप के गोलों से उड़ा दिया।[13] गुलाब सिंह के पुत्र बांके सिंह को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। पहले बांके सिंह को फांसी देेने की योजना थी किन्तु बाद में उन्हें मुक्त कर दिया गया। मुकीमपुर गढ़ी व पिलखुवा क्षेत्र के समस्त गांवों पर अंग्रेजों ने भयंकर अत्याचार किये। राजस्व वसूली के लिए अमानवीय अत्याचार की सारी हदे लांघ दी गयी। हापुड में 1857 की क्रांन्ति 10 मई को जैसे ही मेरठ में क्रान्ति का श्रीगणेश हुआ वैसे ही खबऱ मिलते ही हापुड़ क्षेत्र में भी क्रान्ति का बिगुल बज गया। हापुड़ तहसील अंग्रेजों का गढ़ मानी जाती थी। लेकिन जनता ने निडरता दिखाई 27 गांवों के गुर्जरों, राजपूतों व मुसलमानों ने विद्रोह किया।[14] हापुड में चौधरी जबरदस्त खां व उल्फत खां ने क्रान्ति का नेतृत्व संभाला। इन क्रान्तिकारियों को बहादुर शाह जफर के समधी वलीद खां भी समर्थन प्राप्त था। विद्रोह का दमन करने के लिए ब्रिगेडियर विलियम को सेना सहित भेजा गया। वलीद खां ने बहादुर शाह जफर से सहायता मांगी लेकिन यह सहायता समय से न मिल सकी। क्रान्तिकारी जबरदस्त खां को हापुड़ रामलीला मैदान में पीपल के पेड़ पर फांसी दी गयी। उल्फत खां को भी अंग्रेजों द्वारा गोली मार दी गयी। [15] हापुड़ क्षेत्र में जनता को भयाक्रान्त करने के लिए जगह जगह सरेआम क्रान्तिकारियों को फांसी पर लटकाया गया। क्रान्ति में शामिल परिवारों की सम्पत्तियां अंग्रेजों द्वारा जब्त करके अपने हितैषियों में बांट दी गयी। हापुड़ के क्रान्तिवीरों की स्मृति में प्रत्येक वर्ष रामलीला मैदान में शहीद मेला लगता है।[16] ताकि आने वाली पीढ़ियां इससे प्रेरणा पा सकें और पूर्वजों के बलिदान पर गर्व कर सके। दादरी के 84 बलिदानी दादरी में राजा राव उमराव सिंह भाटी के नेतृत्व में 1857 क्रान्ति की चिंगारी भड़की थी। क्रान्तिकारियों ने दादरी, सिकन्दराबाद, बुलन्दशहर तक के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। यहां से अंग्रेजों को मार भगाया गया, सिकन्दराबाद में अंग्रेजों का खजाना लूटा गया । दादरी क्षेत्र के गांव गांव में लोग क्रान्ति के मतवाले हो उठे थे। क्रान्ति को दबाने के लिए सितम्बर 1857 में अंग्रेजों ने एक बड़ी सेना लेकर दादरी पर धावा बोल दिया। अंग्रेज से आधुनिक हथियारों से लैस थी फिर भी क्रान्तिकारियों ने डटकर सामना किया। इस संघर्ष में बड़ी संख्या में क्रान्तिकारी शहीद हुए थे। राजा उमराव सिंह भाटी के चाचा रोशन सिंह भाटी को अन्य क्रान्तिकारियों सहित अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया तथा 84 क्रान्तिकारियों को विद्रोह के जुर्म में फांसी दे दी गयी।[17] इन 84 क्रान्तिकारियों के नाम दादरी तहसील लेख में लिखे हुए हैं। 20 सितम्बर 1857 को कर्नल ग्रीथेड ने दादरी क्षेत्र के गांवों में भयंकर उत्पात मचाया। राजा उमराव सिंह भाटी ने शव की उपाधि का त्याग कर दिया और प्राणों का बलिदान दे दिया। लोनी में 1857 ई. क्रान्ति की घटनायें लोनी जनपद गाजियाबाद का मुकुट कहा जाता है यह रामायण काल से आबाद रहा है। महाभारत काल तक का सफर लोनी के इतिहास को अति प्राचीन बना देता है। मुगल राजघराने के लोगों की सैरगाह लोनी ही थी। 1857 की क्रान्ति में लोनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। मेरठ की क्रान्ति के साथ ही लोनी, बड़ौत, बागपत तक के क्षेत्र में क्रान्ति की लपटें बड़ी तेजी से फैली। लोनी में क्रान्ति का नेतृत्व बाबा शाहमल ने किया।[18] उनके नेतृत्व में यहां के लगभग सभी गांवों में क्रान्ति का स्वर फूट पड़ा था। अंग्रेजों के चापलूस दरोगा करम अली ने बाबा शाहमल की हत्या कर दी थी। क्रान्ति में शामिल लोगों को गढ़ी जायसी गांव में बरगद के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गयी थी। लोनी के दरोगा करम अली को पुरस्कार स्वरूप बागपत की नवाबी प्रदान की गयी।[19] सिखैड़ा गांव में 1857 क्रान्ति की घटना गाजियाबाद जनपद के सिखैड़ा गांव ने 1857 की क्रान्ति में क्रान्तिकारियों का साथ दिया था। एक अंग्रेज महिला की मृत्यु सिखैड़ा गांव में क्रान्ति के दौरान हो गई थी। इससे क्रुध होकर अंग्रेजों ने सेना सहित गांव को घेर लिया और गोलीबारी शुरू कर दी। गांव वासियों में भगदड़ मच गयी इसी दौरान एक युवक मटटर सिंह को गोली लगी और वह शहीद हो गया।[20] आज भी सिखैड़ा गांव में मटटर सिंह का मंढ (समाधि) बनी हुई है। इसे गांव वासी मटटर का मंढ कहते हैं। मटटर सिंह जैसे अनेकों वीरों ने अपनी शहादत देकर 1857 क्रान्ति को चमत्कृत किया। आज शायद उन सभी वीरों के हम नाम भी न जानते हों। लेकिन उनका योगदान, बलिदान अविस्मरणीय है।
अध्ययन का उद्देश्य
शोधपत्र का उद्देश्य जनपद गाजियाबाद की 1857 ई0 की क्रान्ति में भूमिका और क्रान्ति से सम्बन्धित घटनओं पर प्रकाश डालना है साथ ही शोध का उद्देश्य गाजियाबाद के इतिहास को उजागर करना है।
साहित्यावलोकन
गढ़मुक्तेश्वर में 1857 की क्रान्ति गाजियाबाद जनपद की तीर्थनगरी कहा जाने वाला गढ़मुक्तेश्वर क्रान्ति का एक प्रमुख केन्द्र रहा था। यहां पर बरेली से आने वाली सेनायें गंगा पार करके एकत्र होती थीं। गढ़मुक्तेश्वर में भी क्रान्ति के आरम्भ होते हीयहां से अंग्रेजों को मार भगाया गया। क्रान्तिकारियों ने बाबूगढ़ फार्म पर भी कब्जा कर लिया था। [21] यहां पर हिन्दू, मुस्लिम ने कन्धे से कन्धा मिलाकर क्रान्ति में सहयोग किया। क्रान्तिकारियों, सैनिकों को गंगापार कराने के लिए अपनी नावों को लगा दिया। पूरा गंगा घाट उस समय क्रान्तिकारियों के कब्जे में था। गढ़मुक्तेश्वर क्षेत्र में 1857 क्रान्तिकारियों का नेतृत्व तहब्बर अली खान ने किया था उनका खौफ अंग्रेजों में इतना जबरदस्त था कि उनसे टकराने की हिम्मत अंग्रेज सेनायें जुटा नहीं सकी। क्रान्ति की धार कुन्द पड़ जाने पर फिर से गढ़मुक्तेश्वर पर अंग्रेजो ने अधिकार कर लिया। सिकन्द्रबाद के मुंशी लक्ष्मण सिंह की गवाही पर तहव्वर खान को फांसी दे दी गयी और उनकी सम्पत्ति को जब्त कर लिया गया।[22]
निष्कर्ष
1857 ई. की क्रान्ति 10 मई को मेरठ से प्रारम्भ हुई थी। उस समय गाजियाबाद अलग जपनद नहीं था। लेकिन वर्तमान जनपद का समस्त क्षेत्र क्रान्तिमय हो गया था। ऐसा कोई गांव, कस्बा या नगर नहीं था जहां क्रान्ति की चिंगारी न भड़की हो। 1857 की क्रांति के यदि तथ्यों को ध्यापनूर्वक देखा जाये तो यह विश्व की सबसे बड़ी और व्यापक क्रांति थी। जिसमें पूरे भारत में 4 करोड़ लोगों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया और लगभग 4 लाख लोगों का बलिदान इस क्रान्ति में हुआ। 10 मई से लेकर लगभग सितम्बर महीने तक क्रान्तिकारियों ने जनपद गाजियाबाद को अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त रखा लेकिन संसाधनों के अभाव और अपने ही लोगों के सहयोग न करने के कारण क्रान्ति अपने पूर्ण उददेश्य को प्राप्त न कर सकी। 1857 क्रान्ति में जनपद गाजियाबाद के निवासियों ने जो भूमिका निभाई उसका इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. ठाकुर प्रसाद सिंह स्वतन्त्रता संगा्रम के सैनिक जिला मेरठ पेज ‘ख’ 2. शिव कुमार त्यागी साक्षात्कार 21/03/2021 ग्राम भनैड़ा 3. महेश शर्मा साक्षात्कार 21/03/2021 ग्राम कुम्हैड़ा 4. महेश शर्मा साक्षात्कार 21/03/2021 ग्राम कुम्हैड़ा 5. बनारसी सिंह ‘सन सत्तावन के भूले बिसरे शहीद’ भाग- 3 दिल्ली पेज - 33 6. बनारसी सिंह ‘सन सत्तावन के भूले बिसरे शहीद’ भाग- 3 दिल्ली पेज - 33 7. साक्षात्कार विजय सिसौदिया वंशज ठाकुर दुर्गा सिंह धौलाना 8. अमर उजाला 10 मई 2021 पृष्ठ - 4 गाजियाबाद 9. अमर उजाला 10 मई 2021 पृष्ठ - 4 गाजियाबाद 10. युग करवट समाचार पत्र 10 मई 2021 पृष्ठ 6 गाजियाबाद 11. ओमप्रकाश जिन्दल साक्षात्कार डासना (लाला मटोलचन्द के वंशज) 12. ठाकुर प्रसाद सिंह स्वतन्त्रता संग्राम के सैनिक जिला मेरठ पेज ‘ध’ 13. ठाकुर प्रसाद सिंह स्वतन्त्रता संग्राम के सैनिक जिला मेरठ पेज ‘ध’ 14. रिछपाल त्यागी ‘हापुड़ का इतिहास’ पेज संख्या - 7 15. रिछपाल त्यागी ‘हापुड़ का इतिहास’ पृष्ठ-78 16. अमर उजाला मेरठ 12 मई 1998 पेज - 2 17. दादरी तहसील लेख से प्राप्त जानकारी 18. चिंतामणि शुक्ल प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 में उत्तर प्रदेश का योगदान पेज -199 19. चिंतामणि शुक्ल प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 में उत्तर प्रदेश का योगदान पेज -199 20. ठाकुर प्रसाद सिंह स्वतन्त्रता संग्राम के सैनिक जिला मेरठ पेज ‘ध’ 21. श्रामेश्वर आध्याय शिवकुमार शर्मा गढ़मुक्तेश्वर का इतिहास पेज -12 22. श्रामेश्वर आध्याय शिवकुमार शर्मा गढ़मुक्तेश्वर का इतिहास पृष्ठ - 13