|
|||||||
राम कथा में नारी दर्शन | |||||||
Nari Darshan in Ram Katha | |||||||
Paper Id :
15963 Submission Date :
2022-04-15 Acceptance Date :
2022-04-20 Publication Date :
2022-04-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
|
|||||||
| |||||||
सारांश |
वैदिक साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि आर्यों का सामाजिक जीवन बहुत ही सुव्यवस्थित था। परिवार में पुरुष की प्रधानता होते हुए भी वैदिक कालीन भारतीय समाज में नारियों को सम्मानित स्थान प्राप्त था। भारतीय इतिहास में विभिन्न कालों में नारी के विकास, उसकी उन्नति, अवनति, उसके संघर्ष, उसको प्राप्त अधिकार और उस पर लगने वाले प्रतिबंधों की एक लम्बी कहानी है, जो इतिहास के विभिन्न काल खण्डों में नारियों की भिन्न-भिन्न स्थितियों को दर्शाती है। रामायण काल तो वैदिक काल का मध्य भाग रहा है। इस काल में नारियों को दिये गये वचन को पूरा करना कर्तव्य का रुप माना जाता था। राम कथा भारत की आदि कथा है। बाल्मीकि रामायण में कौशल्या, कैकेयी, सीता, तारा आदि नारियों द्वारा वेद मंत्रों का उच्चारण, अग्निहोत्र, संध्योपासन का वर्णन आता है। प्रस्तुत शोध-पत्र के माध्यम से राम कथा में आये हुए नारी पात्रों के चरित्रों एवं उनके कर्तव्यों को दर्शाया गया है।
|
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The study of Vedic literature shows that the social life of the Aryans was very well organized. Despite the predominance of men in the family, women had a respected place in the Vedic era Indian society. There is a long story of the development of women, her progress, her struggles, her rights and the restrictions imposed on her in different periods in Indian history, which shows the different conditions of women in different periods of history. The Ramayana period is the middle part of the Vedic period. In this period, fulfilling the promise given to women was considered as a form of duty. Ram Katha is the original story of India. In Valmiki Ramayana, there is a description of the recitation of Veda mantras, Agnihotra, Sandhyapasan by women like Kaushalya, Kaikeyi, Sita, Tara etc. Through the present research paper, the characters and their duties of the female characters who have come in the story of Ram have been depicted. | ||||||
मुख्य शब्द | वैदिक साहित्य, नारी, रामायण काल। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Vedic Literature, Women, Ramayana Period. | ||||||
प्रस्तावना |
नारी समाज की आधारशिला है। माता और पत्नी के रूप में वह जिन कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का निर्वाह करती है उन्हीं कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों पर किसी समाज की उन्नति या अवनति आधारित होती है। नारी की सामाजिक स्थिति से सम्पूर्ण समाज प्रभावित होता है। ऐसा देखा गया है कि नारियों की उन्नति एवं अवनति का इतिहास सम्पूर्ण समाज की उन्नति व अवनति का इतिहास कहलाता है। भारतीय इतिहास में विभिन्न कालों में नारी के विकास, उसकी उन्नति, अवनति, उसके संघर्ष, उसको प्राप्त अधिकार और उस पर लगने वाले प्रतिबंधों की एक लम्बी कहानी है जो इतिहास के विभिन्न काल खण्डों में नारियों की भिन्न स्थितियों को दर्शाती है।
|
||||||
अध्ययन का उद्देश्य | राम कथा में वर्णित नारी पात्रों की भूमिका, उनका चरित्र एवं उनके कार्यों का अन्वेषण किया गया है तथा यह बताने का प्रयास किया गया है कि नारी वर्तमान में किस प्रकार अपनी संस्कृति को सुरक्षित रख सकती है। |
||||||
साहित्यावलोकन |
वैदिक काल से ही नारी को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त थे। वैदिक काल का समय नारियों के लिए न केवल आजादी से भरा माना जाएगा, बल्कि इस काल में उनके अन्दर छिपे हुए सर्जनात्मक गुण भी वेदों में श्लोकों के माध्यम से नजर आये। रामायण के नारी पात्रों के चरित्रों को लेकर अलग-अलग कई रचनाएं हुई हैं। बाल्मीकि रामायण एवं रामचरित मानस में नारी पात्रों की चर्चा की गयी है। मैथिली शरण गुप्त की अमर कृति ‘‘साकेत’’ है। साकेत भी राम कथा पर आधारित है किन्तु इसके केन्द्र में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला हैं। इस कृति में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के विरह के मानवीय संवेदनाओं को रेखांकित किया गया है। पंचवटी में भी सीता का मार्मिक वर्णन के साथ-साथ सूर्पणखा का भी चरित्र चित्रण किया गया है। प्रस्तुत शोध साहित्य के अध्ययन से कम समय में राम कथा में वर्णित सभी नारी पात्रों की सशक्त भूमिका की जानकारी प्राप्त हो जायेगी। |
||||||
मुख्य पाठ |
वैदिक साहित्य के अध्ययन
से पता चलता है कि आर्यों का सामाजिक जीवन काफी सुव्यवस्थित था। परिवार में पुरूष
की प्रधानता होते हुए भी वैदिक कालीन भारतीय समाज में नारियों को सम्मानित स्थान
प्राप्त था।[1] नारी व पुरूष को समाज
में बराबर का दर्जा प्राप्त था दोनों की सामाजिक प्रतिस्थिति समान थी। प्रत्येक सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में नारियों की उपस्थिति अनिवार्य थी। नारी को पुरूष
की सहधर्मिणी माना जाता था और यह समझा जाता था कि नारी के बिना पुरूष का कोई यज्ञ
व धार्मिक कृत्य पूरा नहीं हो सकता था।[2] संतानोत्पादन, संतान का पालन पोषण, अतिथियों तथा मित्रों का सत्कार, लोक व्यवहार का पालन,
घर के बड़े
बुजुर्गों की सेवा, धार्मिक कृत्य नारियों के
द्वारा किये जाते थे।[3] मनु ‘‘नारी को कोई अनिश्चित बोझ नहीं समझते, अपितु मनुष्य की सांसारिक एवं आध्यात्मिक अभिलाषाओं की
पूर्ति का मुख्य साधक मानते थे।‘‘[4]
|
||||||
निष्कर्ष |
रामकथा भारत के सांस्कृतिक आदर्शों की कहानी है। उसमें वर्णित नारी पात्र आदर्श की स्थापना करने वाले, समयानुकूल समायोजन करने वाले, प्राचीन मूल्यों का संवहन करने वाले, वीरत्व, त्याग, सहिष्णुता, कर्मठता, पतिव्रत को धारण करने वाले है, साथ ही वर्तमान युग की विसंगतियों का समाधान करते हुए नारी की महिमा को पुर्स्थापित करने की क्षमता भी रखते हैं। समग्रतः रामकथा में नारीदर्शन वर्तमान में सर्वाधिक प्रासंगिक है, क्योंकि आधुनिकता के चकाचौंध में नारी की भव्य गरिमा को वे ही सुरक्षित रखवा सकते हैं। इस भूमि पर नारी पूज्य रही है, रहेगी, परन्तु उसे स्वयं भी अपनी ईश्वर-प्रदत्त वैभव को सुरक्षित रखना होगा। रामकथा में नारीदर्शन यही संदेश देते हैं। |
||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. शर्मा व व्यास, भारत का इतिहास प्रारम्भ से 1200ई0 तक, पृष्ठ-114
2. सत्यकेतु विद्यालंकार, प्राचीन भारत का धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन, पृष्ठ - 207
3. मनु 9.27.28 उत्पादनमपत्यस्य जातस्य परिपालनम।
प्रत्यहं लोकयात्रायाः प्रत्यक्षं स्त्री निवंधनम्।।
4. डाॅ0 लता सिंहल, भारतीय संस्कृति में नारी, पृष्ठ - 223
5. मैथिलीशरण गुप्त, पंचवटी, पृ0 16
6. श्रीमद्वाल्मीकिय रामायण, द्वितीय खण्ड, पृ0 81-82.
7. श्रीमद्वाल्मीकिय रामायण, द्वितीय खण्ड, पृ0 291
8. तुलसीदास -रामचरित मानस - पृष्ठ- 365
9. तुलसीदास- पूर्वाेद्धृत - पृष्ठ- 366
10. तुलसीदास - पूर्वाेद्धृत - पृष्ठ -712
11. तुलसीदास - पूर्वाेद्धृत - पृष्ठ - 714 |