ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- X January  - 2024
Anthology The Research

भारत की राजनीति में गठबंधन की धारणा

The Concept of Alliance in Indian Politics
Paper Id :  18425   Submission Date :  06/01/2024   Acceptance Date :  11/01/2024   Publication Date :  15/01/2024
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DOI:10.5281/zenodo.10561300
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साधना पाण्डेय
प्राध्यापक
राजनीति शास्त्र
उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान
भोपाल,मध्य प्रदेश, भारत
राजकुमार कुशवाहा
शोधार्थी
राजनीति शास्त्र
उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान
भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत
सारांश

भारत में एक लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली हैI संविधान निर्माताओं ने भारत की विविधता में एकता को संजोये रखने के लिए देश में संघीय स्वरूप को अपनाया तथा संकटकाल में देश की एकता एवं अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए एकात्मक व्यवस्था की विशिष्टताओं को भी समुचित स्थान दिया। लोकतंत्र के साथ भारत एक बहुदलीय प्रणाली वाला देश भी है, यद्यपि बहुदलीय व्यवस्था होते हुए भी 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 1977 तक केंद्र में एकदलीय स्पष्ट बहुमत की सरकार ही रही। 1977 में पहली बार बहुत सारे दलों से मिलकर नवीन गठित जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी की सरकार गठित होने पर पहली  बार भारत में अप्रत्यक्ष रूप से गठबंधन की राजनीति का आरंभ हुआ, किन्तु पाँच वर्ष की निर्धारित अवधि से पूर्व ही चुनाव होने एवं पुनः एकदलीय स्पष्ट बहुमत की सरकार बनने से यह धारणा भी मजबूत हुई कि गठबंधन की सरकारें अस्थिर सरकारें ही रहेंगी। कालांतर में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू पी ए) तथा राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन (एन डी ए) की गठबंधन की सरकारों ने सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया और गठबंधन की सरकारों के अस्थिर होने के भ्रम को खंडित भी किया। संभवतः देश के संघीय स्वरूप, राज्यों की स्वायत्तता एवं विविधता में एकता को गठबंधन की सरकारें, एक दलीय स्पष्ट बहुमत की सरकारों की तुलना में बेहतर संवर्धित एवं संरक्षित कर सकती है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद India has a democratic governance system. The framers of the Constitution adopted the federal form in the country to preserve the unity and diversity of India and also gave due importance to the peculiarities of a unitary system to safeguard the unity and integrity of the country in times of crisis. Along with democracy, India is also a country with a multi-party system, although despite having a multi-party system, from the first general elections in 1952 till 1977, there was a single-party government with a clear majority at the centre. In 1977, for the first time, the government of the newly formed Janata Party was formed with many parties. With the formation of the Janata Party government, coalition politics indirectly started in India for the first time, but elections were held before the stipulated period of five years and The formation of a clear majority single-party government again strengthened the belief that coalition governments would remain unstable. Over time, the coalition governments of the United Progressive Alliance (UPA) and the National Democratic Alliance (NDA) completed their tenure and also shattered the illusion of the coalition governments being unstable. Probably, due to the federal structure of the country, the states' Coalition governments can better promote and protect autonomy and unity in diversity than governments with a clear single-party majority.
मुख्य शब्द संघीय व्यवस्था, लोकतंत्र, गठबंधन, बहुदलीय प्रणाली।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Federal System, Democracy, Coalition, Multi-party System.
प्रस्तावना

भारत की राजनीति में गठबंधन की धारणा का आरंभ प्राचीन काल से ही हो गया था I भारत की स्वतंत्रता से पूर्व 1946 में एक अंतरिम सरकार का निर्माण किया गया था जो की एक प्रकार की गठबंधन सरकार ही थी I प्रसिद्ध समाजवादी डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को आजादी के बाद भारतीय राजनीति में गठबन्धन का जनक माना जाता है। 1960 के दशक में लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद की राजनीति विकसित की थी और विपक्ष को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट किया।

कई राजनीतिक दलों ने गठबन्धन का प्रयोग सत्ता में आने के लिए किया तो कई राजनीतिक दलों ने गठबंधन का प्रयोग किसी एक निश्चित उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया I वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में 17-18 जुलाई 2023 को बेंगलुरू में विपक्षी दलों की बैठक हुई जिसमें लगभग 26 दलों ने हिस्सा लिया और एक नए गठबंधन इंडियाकी घोषणा की गई। इस नए गठबंधन इंडिया” (INDIA)  का मुख्य उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केंन्द्र की सत्ता से बाहर करना है । हालांकि चुनाव से पहले और चुनाव के बाद गठबंधन की नीति कोई नयी नहीं है किंतु यह देखना आवश्यक होगा कि नया गठबंधन 2024 के अपने उद्देश्यों को कहां तक पूरा करता है।

अध्ययन का उद्देश्य

संविधान निर्माताओ ने देश की एकता , अखंडता तथा विविधता में एकता को मजबूत बनाए रखने के लिए भारत में एक संघीय व्यवस्था को अपनाया I सामान्य काल में राज्यों को पर्याप्त स्वायत्तता तथा महत्व देने के उद्देश्य को सर्वोपरि रखा गया I भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ एक बहुदलीय प्रणाली है इसलिए गठबंधन सरकारों की स्थिति में कैसे राज्यों की स्वायत्ता को बेहतर महत्व मिल सकेगा, इन्ही परिस्थितियों का अध्ययन एवं विश्लेषण का उद्देश्य है I

साहित्यावलोकन

चतुर्वेदीके एनभारत में केन्द्रीय स्तर पर गठबंधन सरकारें नई दिल्लीक्लासिकल पब्लिकेशंस

पुस्तक में भारत में पहले आम चुनाव से लेकर 17वीं लोकसभा चुनाव तक केंद्र में बनने वाली सरकारों एवं उनकी कार्यप्रणाली का विस्तृत विवरण है, जिससे संघीय स्वरूप में एक दलीय तथा गठबंधन सरकारों को समझने में सरलता होती हैI

नेमाजी पीभारत में राज्यों की राजनीति  जयपुरकालेज बुक डिपो

यह पुस्तक भारत में राज्यों के गठन, भारत में संघीय व्यवस्था, केंद्र राज्य संबंध, गठबंधन की राजनीति, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के विकास इत्यादि को समझने एवं जानने का महत्वपूर्ण स्रोत हैI यह पुस्तक उन सभी शोधार्थियों, सामाजिक एवं राजनैतिक कार्यकर्ताओं तथा विद्यार्थियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है,जो भारतीय संविधान एवं उसके संघीय स्वरूप को समझना तथा राष्ट्र को सशक्त करना चाहते हैंI

मुख्य पाठ

भारतीय राजनीति में गठबंधन का प्रयोग अलग-अलग तरीके से किया जाता रहा हैकभी चुनाव से पूर्व एक निश्चित  उद्देश्य  प्राप्त करने के लिए तो कभी चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए। ऐसी धारणा बन गई है कि गठबंधन कभी समान रूप से स्थाई नहीं रहता क्योंकि काल और परिस्थितियाँ प्रत्येक गठबंधन की आवश्यकता और उद्देश्य को पूरा करने में असमर्थ होते हैं जिससे गठबंधन कमजोर पड़ जाता है। कई गठबंधन सिर्फ कुछ निश्चित (अल्प) समय के लिए ही किए जाते हैं और कुछ गठबन्धन लंबे (दीर्घ) समय के लिए किए जाते हैं। लंबी अवधि के गठबन्धन अपने आप कमजोर पड़ने लगते हैं और गठबंधन में शामिल दलों के मध्य टकराव और मतभेद की स्थिति निर्मित होने लगती है जिससे गठबंधन समाप्त भी हो जाता है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) जिसकी स्थापना वर्ष 2004 में हुई। इस गठबंधन की स्थापना 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद हुई क्योंकि किसी भी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं था और सरकार बनाने के उद्देश्य  को लेकर आपसी सहमति के आधार पर यूपीए गठबंधन की स्थापना की गईजिसका नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने किया। 2004 से 2014 तक दो बार इस गठबंधन की सरकार बनी और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। व्यावहारिक रूप से इस गठबंधन का उद्देश्य सरकार बनाना था किंतु सैद्धांतिक रूप से इस गठबंधन ने कांग्रेस पार्टी और कई छोटे दलों को एकजुट एजेंडा प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया (जिसे राष्ट्रीय साझा न्यूनतम् कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है जिससे समर्थन जुटाया जा सके)। वर्तमान समय में यूपीए गठबंधन दलों ने 18 जुलाई 2023 को इस गठबंधन को समाप्त कर नए गठबंधन इंडियाकी घोषणा की  हैअब आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम ही बता पाएंगे कि इस गठबंधन ने अपने उद्देश्यों  को कहां तक प्राप्त किया।

भारतीय राजनीति में गठबंधन का व्यावहारिक एवं सैद्धांतिक प्रयोग

भारतीय राजनीति में गठबन्धन का व्यावहारिक प्रयोग प्रादेशिक सरकारों के माध्यम से सन् 1967 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में शुरू हुआ था। राज्यों में पहली बार आधिकारिक और सैद्धांतिक रूप से आजादी के 20 वर्ष बाद मार्च 1967 में पश्चिम बंगाल में संयुक्त मोर्चे की गठबंधन वाली सरकार बनी , जिसके मुख्यमंत्री अजय कुमार मुखर्जी रहे। इस संयुक्त मोर्चे में यूनाइटेड लेफ्ट इलेक्शन कमेटी और यूनाइटेड लेफ्ट फ्रंट शामिल थे। पश्चिम बंगालकेरल और महाराष्ट्र में गठबंधन सबसे अधिक सफल रहे। महाराष्ट्र में 1995 में भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन किया। 1997 में उत्तरप्रदेश में गठबंधन सरकार बनी जिसका नेतृत्व कल्याण सिंह ने किया। कल्याण सिंह ने गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं को खुश करने के लिए 97 मंत्रियों का विशाल मंत्रिमण्डल बनाया किन्तु इसके बावजूद सरकार महज 2 वर्ष ही चल सकी थी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में धुर विरोधी दल बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी ने 2014 में गठबंधन किया था। झारखंड मात्र एक ऐसा राज्य है जहां प्रारम्भ से ही गठबंधन सरकार रही है और जिसने अपने सभी विधानसभा कार्यकाल पूर्ण किये।

केन्द्रीय स्तर पर गठबंधन का प्रयोग लोकसभा चुनाव 1977 में हो गया था जब जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों से मिलकर केंद्र में अपनी सरकार बनाई और मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। किंतु सैद्धांतिक रूप से प्रथम बार गठबंधन का प्रयोग 1998 में हुआ। मई 1998 में एनडीए का गठन किया गया और इसके संयोजक जॉर्ज फर्नांडिस बने। इस गठबंधन को बनाने का मुख्य उद्देश्य केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनाना था। एनडीए गठबन्धन में कुल 16 राजनीतिक दल शामिल थे किन्तु वर्तमान में इसमें लगभग 38 दल शामिल है। वर्तमान में एनडीए में भारतीय जनता पार्टी प्रमुख दल है जिसके कारण एनडीए का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के हाथ में था और है।

दिसंबर 2017 में राज्यों के विधानसभा चुनावों में राजनीति के विद्वानों द्वारा गठबंधन की राजनीति को समाप्त माना जा रहा था क्योंकि भाजपा शीर्ष पर थी। ऐसा माना जाने लगा कि क्षेत्रीय दलों की गठबंधन सरकारों का दौर खत्म हो रहा है। उस समय देश में सिर्फ छः राज्यों में गठबंधन सरकारें थी। लेकिन 2 वर्ष बाद गठबधंन की राजनीति भारतीय दलों को अपनी महत्वाकांक्षा और सत्ता प्राप्त करने के लिए उपयोगी सिद्ध होने लगी जिससे एक बार पुनः गठबंधन की राजनीति को भारतीय राजनीति में महत्व मिलना  स्वीकार किया गया। वर्ष 2019 में निम्न 7 राज्यों में गठबन्धन की सरकारें थी-

केन्द्रीय स्तर पर गठबंधन सरकारों की स्थिति
छठवीं लोकसभा चुनाव-1977 के परिणामों ने भारत की केन्द्रीय स्तर की राजनीति में नवीन प्रयोग का सूत्रपात किया। केन्द्र में स्वतंत्रता के पश्चात् प्रथम बार गैर-कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार का निर्माण हुआ जो कि विभिन्न दलों से मिली-जुली सरकार के समतुल्य थी। जिससे दो बातें सिद्ध हुयी- पहली यह कि केन्द्र में गैर-कांग्रेसी सरकार का भी निर्माण किया जा सकता है और दूसरी बात यह कि राज्य ही नहीं अपितु केन्द्र में भी क्षेत्रीय दलो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 1977 से 2019 तक केन्द्र में गठबंधन सरकारों का कार्यकाल निम्न प्रकार से है-

क्रमांक

गठबंधन

कार्यकाल

प्रधानमंत्री

1

जनता पार्टी

1977-1979

मोरारजी देसाई

2

जनता पार्टी(सेक्युलर)

1979-1980

चरण सिंह

3

राष्ट्रीय मोर्चा

1989-1990

वी.पी. सिंह

4

जनता दल(सोशलिस्ट) या
समाजवादी जनता पार्टी

1990-1991

चन्द्रशेखर

5

संयुक्त मोर्चा

1996-1997

एच.डी.देवगौड़ा

6

संयुक्त मोर्चा

1997-1998

इन्द्रकुमार गुजराल

7

भाजपा नेतृत्व वाला गठबंधन 

1998-1999

अटल बिहारी वाजपेयी

8

एन.डी.ए

1999-2004

अटल बिहारी वाजपेयी

9

यू.पी.ए

2004-2009

डा.मनमोहन सिंह

10

यू.पी.ए

2009-2014

डा.मनमोहन सिंह

11

एन.डी.ए

2014-2019 

नरेन्द्र मोदी

12

एन.डी.ए 

2019-वर्तमान में

नरेन्द्र मोदी

1977 से 1979 तक केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार रही किन्तु यह सरकार प्रशासनिक दृष्टि से दुर्बल सिद्ध हुई क्योंकि यह विभिन्न दलों से बनी मिली-जुली सरकार के समान थी। पार्टी के भीतर मतभेद की स्थिति में मोरारजी देसाई अपना कार्यकाल पूर्ण नहीं कर पाये और उन्हें अपना त्यागपत्र देना पड़ा। जुलाई 1979 मे चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टी तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने जिन्हें बाहर से कांग्रेस (इ.) और सी.पी.आई से समर्थन मिला।

1989 में कांग्रेस की पराजय के बाद जनता दल और अन्य क्षेत्रीय दलों से मिलकर बना गठबंधन राष्ट्रीय मोर्चा अस्तित्व में आया जिसने केन्द्र में वी.पी. सिंह के नेतृत्व में अपनी सरकार बनाई। 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले वी.पी.सिंह ने जन मोर्चालोकदलजनता पार्टी और कांग्रेस(एस) को मिलाकर जनता पार्टी बनाई थी। चुनाव के बाद उन्होंने वाम और दक्षिण पंथी कुछ दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय मोर्चा बनाया।

1990 में जनता दल या भारतीय समाज पार्टी की गठबंधन वाली सरकार बनी जिसके प्रधानमंत्री चंद्रशेखर बने I इस सरकार को बाहर से कांग्रेस ने समर्थन दिया था। जनता दल में जनता पार्टीलोकदलभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (जगजीवन राम) और जन मोर्चा शामिल थे।

1996 के चुनाव के दौरान किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका थाइसलिए 13 पार्टियों ने मिलकर संयुक्त मोर्चा (यूनाइटेड फ्रंट) बनाया। संयुक्त मोर्चे की पहली गठबंधन सरकार 1996 में एच.डी.देवगौड़ा के नेतृत्व में बनी और दूसरी बार इंद्रकुमार गुजराल के नेतृत्व में बनी किन्तु दोनों ही बार कांग्रेस के समर्थन वापस लेने की वजह से सरकार गिर गई।

1998 के आम चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) बनाया गया जिसमें 13 दल शामिल थे। चुनाव के बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी लेकिन एडीएमके के समर्थन वापसी से यह सरकार मात्र 13 दिन में ही गिर गई। इसके बाद 1999 में पुनः चुनाव हुए जिसमें एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला और फिर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने।

यह तथ्य विचारणीय है कि 1977 से लेकर 1998 तक सात बार लोकसभा चुनाव हुए। जिसमें यदि केवल 1980 से 1989 तक के कार्यकाल को छोड़ दे तो यह स्पष्ट दिखता है कि किसी भी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था I सभी सरकारें गठबंधन के सहारे बनी तथा कोई भी सरकार अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी थी। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर सौदेबाजी वाला प्रतिमानविद्यमान था। मोरारजी देसाई (1977), चौधरी चरणसिंह (1979), विश्व नाथ प्रताप सिंह (1989), चन्द्रशेखर (1990), श्री एच.डी.देवगौड़ा (1996), श्री इन्द्रकुमार गुजराल (1997) तथा श्री अटल बिहारी वाजपेयी (1998) के नेतृत्व में  बनने वाली सभी केन्द्रीय सरकारें अल्पमतीय थी जिन्हें सत्ता में बने रहने के लिए क्षेत्रीय दलों का सहारा लेना पड़ा। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय की केन्द्रीय गठबन्धन की  सरकारें क्षेत्रीय दलों के दबाव में थी। जबकि 1998 के बाद से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में केन्द्र में गठबन्धन सरकारों ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया हैजिससे ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव पूर्व हुए गठबंधन लंबी अवधि के लिए और स्थिर होते हैं क्योंकि यह गठबन्धन एक निश्चित  उद्देश्य  और सभी के हितों को ध्यान में रखकर पूर्व सुनिश्चित  किये जाते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि गठबन्धन सरकारों में कई दलों का सम्मिलन होता हैइसलिये गठबन्धन सरकारों में अधिक सर्वसम्मति आधारित निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।

उपरोक्त शोध पत्र के अन्त में निष्कर्ष स्वरूप हम यह कह सकते हैं कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने देश के लिये संघीय स्वरूप को अपनाया है। संविधान के अनुच्छेद में यह उल्लेखित है कि भारत राज्यों का संघहोगा। किन्तु संघीय स्वरूप के साथ संविधान में एकात्मक स्वरूप के भी कुछ लक्षण स्वीकार किये गये हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सामान्य काल में भारत संघीय स्वरूप को स्वीकार करते हुये राज्यों को उनकी सामाजिकसांस्कृतिकआर्थिकभौगोलिकराजनैतिक विविधताओं के आधार पर पर्याप्त महत्व व स्वायत्तता देते हुये केन्द्र के समकक्ष महत्व प्रदान किया गया हैसाथ ही देश में राष्ट्रीय संकट के समय देश की एकताअखण्डतासुरक्षा को प्राथमिकता व वरीयता देते हुये एकात्मक स्वरूप (बिना किसी संवैधानिक संशोधन के) अर्थात केन्द्र को न केवल राज्यों के ऊपर वरीयता दी गयी है बल्कि सम्पूर्ण शक्तियॉं एवं दायित्व की संवैधानिक व्यवस्था केन्द्र के पक्ष में की गयी है। इसका स्पष्ट आशय है कि सामान्य काल में राज्यों की विविधता एंव स्वायत्तता को सम्मान देने की संवैधानिक व्यवस्था भारत में स्पष्ट रूप से की गयी है। 

इसी क्रम में हमें यह भी समझना होगा कि भारत एक लोकतान्त्रिक देश हैसाथ ही यहाँ बहुदलीय प्रणाली प्रचालित है। यह सही है कि स्वतन्त्रता के पश्चात  एक लम्बे समय तक केन्द्र में एकदलीय स्पष्ट बहुमत की सरकार रही है किन्तु समय के साथ परिस्थितियों में बदलाव भी आया और देश में केन्द्र की राजनीति में बहुदलीय गठबन्धन की सरकारें भी अस्तित्व में आयीं। गठबन्धन सरकारों के आरम्भिक दौर में अस्थिर सरकारों ने यह भी एक धारणा अवश्य  निर्मित की कि एकदलीय स्पष्ट बहुमत की सरकारें ही स्थायी सिद्ध हो सकेंगी। किन्तु कालान्तर में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) एवं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (एनडीए) की सरकारों के  अपने दो कार्यकाल सफलतापूर्वक पूर्ण करने  से गठबन्धन की सरकारों के अस्थिर होने का भ्रम अवश्य  खंडित हुआ। यद्यपि यूपीए एवं एनडीए के गठबन्धन की स्थितियॉ पृथक है(यूपीए में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था किन्तु एनडीए गठबंधन में भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत भी है)

निष्कर्ष

अतः निष्कर्ष रूप में भारतीय राजनीति का विकासदलीय स्थितिएकदलीय एवं गठबन्धन सरकारों का संक्षिप्त विश्लेषण  करने के पश्चात  हम यह कह सकते है कि गठबन्धन सरकार में कई राज्यों के क्षेत्रीय दल भी शामिल होते हैंअतः राज्यों को महत्व एवं स्वायत्तता संभवतः एक दलीय स्पष्ट बहुमत की सरकारों से अधिक प्राप्त होने की संभावना रहती है। क्योंकि भारत न केवल एक विशाल जनसंख्या वाला लोकतान्त्रिक देश हैबल्कि यह बहुत विविधताओं से परिपूर्ण देश भी है। इसलिये विविधता में एकताराज्यों का समावेशी विकासजो देश की एकताअखण्डतासुरक्षा के लिये अपरिहार्य हैयह केन्द्र में गठबन्धन सरकारों की स्थिति में बेहतर संभव हो सकेगा। इसी प्राथमिकता एवं लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही संविधान निर्माताओं ने देश के लिये संघीय स्वरूप को स्वीकार किया। निश्चित  रूप से गठबंधन सरकारों की जो कमियॉं सामने आती हैंउनको दूर करने की आवश्यकता हैइस पर गठबंधन में सम्मिलित सभी दलों को गम्भीरता से विचार-विमर्श  करके उसको व्यावहारिक धरातल पर उतारना होगा।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. चतुर्वेदीके एनभारत में केन्द्रीय स्तर पर गठबंधन सरकारें  नई दिल्लीक्लासिकल पब्लिकेशंस

2. नेमाजी पीभारत में राज्यों की राजनीति  जयपुरकालेज बुक डिपो

3. शर्माएच सीभारत में शासन और राजनीति  जयपुरजनशक्ति प्रकाशन

4. सईदएस एमभारतीय राजनीतिक व्यवस्था  नई दिल्लीसुलभ प्रकाशन

5. सेंगरशैलेन्द्रभारतीय लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियाँ  नई दिल्लीगुंजन प्रकाशन

6. कोठारी,रजनी. भारत में राजनीति  हैदराबाद: ओरिएंट ब्लैकवैन प्रकाशन

7. कुमार,संजीव. राजनीति सिद्धांत की समझ  हैदराबाद: ओरिएंट ब्लैकवैन प्रकाशन

8. मिश्रा,वीणा गोपाल.गठबंधन की राजनीति देहली:राजपाल प्रकाशन