ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- IX , ISSUE- IV May  - 2024
Innovation The Research Concept

समसामयिक परिप्रेक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् को लोकतान्त्रिक बनाने की आवश्यकता

The Need To Democratize The UN Security Council In The Contemporary Perspective
Paper Id :  18431   Submission Date :  2024-01-06   Acceptance Date :  2024-03-16   Publication Date :  2024-05-02
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DOI:10.5281/zenodo.12703183
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विश्वामित्र वैष्णव
असिस्टेंट प्रोफेसर
राजनीति विज्ञान विभाग
गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज, सरवर
अजमेर ,राजस्थान, भारत
सारांश

पं0 जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, “संयुक्त राष्ट्र ने कई बार हमारे उत्पन्न होने वाले संकटों को युद्ध में परिणित होने से बचाया हैइसके बिना हम आधुनिक विश्व की कल्पना नहीं कर सकते हैं।“ उपर्युक्त कथन के आलेख में यह कहा जा सकता है कि 24 अक्टूबर1945 से ही अंर्तराष्ट्रीय संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र विश्व का अंतकरण एवं आशा का केंन्द्र बना हुआ है। यद्यपि इसे अनेक कमियों एवं असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है फिर भी यह एक सजीव संगठन के रूप में पिछले 77 वर्षों से राजनैतिकआर्थिकसामाजिक तथा मानवीय समस्याओं का समाधान ढूंढने का प्रयत्न करके विश्व पर अपनी छाप छोडता जा रहा है। 1945 में जैसे ही यह अपने अस्तित्व में आया और विश्व के प्रत्येक भाग में अभूतपूर्व परिवर्तन होने लगे लेकिन विश्व रंगमंच पर संयुक्त राष्ट्र ने सभी तरह के परिवर्तनों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई विशेष रूप से उन परिवर्तनों के लिए जिनसे विश्व के लोगों के बीच परस्पर सहयोग की आवश्यकता को गतिशीलता मिलती है परंतु संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख कार्य है विश्व शांति व सुरक्षा जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रमुख दायित्व है लेकिन यह जगजाहिर है कि निषेधाधिकार या वीटो की शक्ति के दुरूपयोग के कारण विश्व के सभी राष्ट्रों के साथ सदस्य देशों का भी विश्वास खोता जा रहा है। समसामयिक विश्व की समस्याओं के संदर्भ में विमर्श का सार यह है कि विश्व को तृतीय विश्व युद्ध से बचाये रखनेशांतिसुरक्षा और मानव कल्याण हेतु इस अंर्तराष्ट्रीय संगठन को अधिक विश्वव्यापी बनाने एवं संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों और लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु संयुक्त राष्ट्र के मुख्य कार्यकारी अंग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का लोकतांत्रिक होना समय की आवश्यकता है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद According to Pt Jawaharlal Nehru, “The United Nations has many times saved our arising crises from escalating into war, without which we cannot imagine the modern world.” In the graph of the above statement it may be stated that Since October 24, 1945, the United Nations as an international organization has been the heart and hope of the world. Although it faces many shortcomings and failures, it has been making its mark on the world as a vibrant organization for the past 77 years by trying to find solutions to political, economic, social and humanitarian problems. As soon as it came into existence in 1945 and every part of the world began to undergo unprecedented changes but on the world theater the United Nations played its vital role in all kinds of changes specially for those changes that mutual cooperation among the people of the world But the main task of the United Nations is world peace and security which is the main responsibility of the United Nations Security Council but it is obvious that the abuse of veto power of all nations of the world as well as member states Trust is being lost. The essence of the discussion in the context of contemporary world problems is to save the world from World War III, to make this international organization more global for peace, security and human welfare and to achieve the principles and goals of the United Nations The democratization of the main executive organ, the UN Security Council, is the need of the hour.
मुख्य शब्द संयुक्त राष्ट्र चार्टर, सुरक्षा परिषद, वीटो/निषेधाधिकार शक्ति, स्थाई और अस्थाई सदस्यता।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद UN Charter, Security Council, Veto Power, Permanent and Temporary Membership.
प्रस्तावना

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को पामर और पार्किंस ने संयुक्त राष्ट्र की कुंजीकहा है यह संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख 6 अंगों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा बनाये रखने का प्रमुख उत्तरदायित्व सुरक्षा परिषद् का है। सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक विषयों में संघ की कार्यपालिका है और इस रूप में यह उसका मूल और प्रधान अंग है। सुरक्षा परिषद को संयुक्त राष्ट्र की कुंजी और कार्य अभिकरण कहा जाता है। सुरक्षा परिषद ही संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र अंग है जो अंन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाये रखने के लिए तथा आक्रमण के विरूद्ध सामूहिक अनुशासन का प्रयोग कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाये रखने के प्रमुख दायित्व होने के कारण ए.एच. डॉक्टर इसे संघ की प्रवर्तन भुजाकहते है और डेविड कुशमेन के अनुसार यह दुनिया का पुलिसमैनहै। राष्ट्र संघ का अनुभव यह था कि तत्कालीन समय विश्व समुदाय में पांच महाशक्तियां विद्यमान थी जिनकी मित्रता एवं एकमत पर ही विश्व की शांति एवं सुरक्षा कायम रह सकती थी। फलतः वीटो या निषेधाधिकार की व्यवस्था की गई जिससे एकराय एंव शांति के लिए संकट सिद्ध होने वाले, शांति भंग अथवा आक्रमण कृत्यों की विद्यमानता पर शीघ्र निर्णय लेकर उनके निराकरण के लिए तुरंत एवं प्रभावी कार्यवाही करने में पूर्णतः सक्षम हो।[1] यद्यपि संयुक्त राष्ट्र की अंर्तराष्ट्रीय जगत में महत्वपूर्ण भूमिका रही क्योंकि शक्तिशाली देशों का समर्थन प्राप्त है लेकिन निषेधाधिकार या वीटो के दुरूपयोग के कारण आलोचना का पात्र भी बनी, विश्व समुदाय के विश्वास को खोना तथा कई क्षेत्रों में असफल भी रही अतः संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार कर वर्तमान परिस्थितिनुकुल और बदलते विश्व के शक्तिकेन्द्रों के अनुकुल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लोकतांत्रिक बनाना अरिहार्य हो गया हैं। संयुक्त राष्ट्र को अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर में सुरक्षा परिषद के संबंध में संशोधन आवश्यक है।

अध्ययन का उद्देश्य

1. संयुक्त राष्ट्र का परिचय व शांतिसुरक्षा हेतु प्रमुख लक्ष्य एवं सिद्धांत का महत्व,

2. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद परिचयसंगठन एवं कार्यप्रणाली,

3. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका व इसके समक्ष वीटो की समस्या,

4. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पुर्नगठन की आवश्यकता एवं सुझाव।

साहित्यावलोकन
प्रस्तुत शोधपत्र के अध्ययन के लिए विभिन्न पुस्तकों, शोधग्रंथों, समाचार पत्रों तथा ऑनलाइन स्रोतों का अध्ययन किया गया है जिनका विस्तृत वर्णन शोधपत्र के मुख्य भाग में उल्लिखित है
मुख्य पाठ

संयुक्त राष्ट्र- विश्व सुरक्षाशांति एवं मानव कल्याण हेतु संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आता है लेकिन शांति एवं सुरक्षा का महत्वपूर्ण दायित्व संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पर विश्व की महान शक्तियों की सहमति के सिद्धांत पर आधारित है लेकिन बदलती हुई वैश्विक परिस्थितियों एवं वीटो शक्ति के दुरूपयोग के कारण न केवल सुरक्षा परिषद अपितु संयुक्त राष्ट्र भी अप्रांसगिक सा लगने लगा है जबकि संपूर्ण विश्व इस संस्था की तरफ आशा के दृष्टिकोण से देखते है अतः इस संस्था को प्रांसगिक बनाने हेतु सुरक्षा परिषद की निर्णय लेने की प्रक्रिया में समयानुकुल परिवर्तन या संशोधन अनिवार्य है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर जिस पर आपने भी हस्ताक्षर किये हैएक ऐसी शक्तिशाली नींव है जिस पर एक सुंदर विश्व का निर्माण किया जा सकता है। इसके लिए इतिहास आपका सम्मान करेगा।“ (पूर्व अमरीकन राष्ट्रपति) जिस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध की विभीषिका तथा उसकी विनाशलीला से संत्रस्त होकर विश्व समुदाय ने राष्ट्र संघ का निर्माण कियाउसी प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। विश्वयुद्ध के दौरान ही इसकी आवश्यकता महसूस होती है जिसका परिणाम राष्ट्र संघ से कहीं अधिक व्यापकसशक्त तथा सक्षम अंतराष्ट्रीय संगठन की संयुक्त राष्ट्र की स्थापना है जो गत कई दशकों में अपनी प्रासंगिक भूमिका का निर्वाह कर रहा है और इस पृथ्वी को तृतीय विश्व युद्ध से बचाये रखा है जो कि इन दोनों अंतराष्ट्रीय संगठनों में अंतर को दर्शाता है।

मानव प्रतिनिधित्व के लिए संयुक्त राष्ट्र के रूप में एक अंर्तराष्ट्रीय संस्था की स्थापना होती है जो एक नई आशा लेकर इस विश्व में आता हैआशा एक अच्छे कल के लिए। संयुक्त राष्ट्र का एक चार्टर अथवा संविधान है जिसमें संघ के उद्देश्योंसिद्धांतों तथा नियमों का उल्लेख किया गया है। ये उद्देश्य मानवता को भविष्य में आने वाले युद्धों के प्रकोप से बचानेसामान्य जनमानस को उनके मौलिक अधिकार दिलानेआर्थिक तथा सामाजिक उन्नति करने आदि बातों से संबंधित है। चार्टर में 10 हजार से भी ज्यादा शब्द है तथा 111 अनुच्छेद है जो 19 अध्यायों में विभक्त है। इस घोषणा पत्र की मूल प्रति अमरीका के राष्ट्रीय पुरालेखागार (यूनाइटेड स्टे्टस नेशनल अर्काइब्ज) में सुरक्षित रखी गयी है।

संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों में अंर्तराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाये रखनाइसके लिए प्रभावपूर्ण सामूहिक प्रयत्नों द्वारा शक्ति के लिए संकटों को रोकना और समाप्त करना तथा आक्रमण की एवं शांति-भंग की अन्य चेष्टाओं को दबाना तथा न्याय एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार विवादों अथवा स्थितियों को सुलझाना अथवा निपटारा करना जिनसे शांति भंग होने की आशंका होलोगों के समान अधिकार एवं आत्म-निर्णय के सिद्धांतों के प्रति सम्मान के आधार पर राष्ट्रों के बीच मित्रतापूर्ण संबंधों का विकास करना तथा विश्व-शांति को सुरक्षित रखने के लिये अन्य उपयुक्त साधनों को अपनानाविश्व की सामाजिकसांस्कृतिकअथवा मानवतावादी समस्याओं के समाधान के हेतु तथा बिना जातिभाषालिंगधर्म के भेद-भाव के सब के लिये मानव-अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान को बढाने एवं प्रोत्साहन देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना तथा इन सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के हेतु राष्ट्रों के कार्यो में सामंजस्य लाने के लिए एक केन्द्र बनना।

संयुक्त राष्ट्र का आधार इसके सभी सदस्यों की प्रभुसता-पूर्ण समानता का सिद्धांत हैसभी सदस्य उन दायित्वों को निष्ठापूर्वक निभायेंगे जिन्हें उन्होंने वर्तमान चार्टर के अनुसार अपने उपर लिया है जिसके फलस्वरूप सभी को इसकी सदस्यता के कारण अधिकार एवं लाभ निश्चित रूप से प्राप्त हो सकें सभी सदस्य अपने अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण साधनों द्वारा इस प्रकार निपटारा करेंगे कि विश्व की शांति एवं सुरक्षा तथा न्याय खतरे में न पडें सदस्य प्रादेशिक अखण्डता अथवा राजनीतिक स्वाधीनता के विरूद्ध बल की धमकी नहीं देंगे अथवा इसका प्रयोग नही करेंगेसामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत पर कार्य करेंगे जो राष्ट्र सदस्य नहीं है वे भी संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करे इसका प्रयास करना राष्ट्र के अधिकार क्षेत्र में अहस्तक्षेप के सिद्धांतों का पालन किया जायेगा।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद- संयुक्त राष्ट्र के अनुभवों ने संयुक्त राष्ट्र के निर्माताओं के मस्तिष्क में यह धारणा उत्पन्न करा दी थी कि समूचे विश्व समुदाय के अंदर एक पांच महाशक्तियों का भी समुदाय विद्यमान है जिनकी मित्रता एवं एकमत पर ही विश्व की शांति एवं सुरक्षा कायम रह सकती है फलतः डंबार्टन ऑक्स सम्मेलन 1944 में इस तथ्य पर अत्यधिक बल दिया गया था कि एक ऐसे कार्यपालक अंग की स्थापना की जाए जिसकी सदस्यता सीमित हो जिसमें 5 बड़ें राष्ट्रों को प्राथमिकता दी जाये जो विश्व शांति एवं सुरक्षा की रक्षा हेतु पुलिस दायित्व से संपन्न हो जो अंर्तराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक सजग प्रहरी का कार्यभार ग्रहण कर सके जिसका सत्र कभी समाप्त न हो और जो शांति के लिए संकट सिद्ध होने वालेशांति भंग अथवा आक्रमण कृत्यों की विद्यमानता पर शीघ्र निर्णय लेकर उनके निराकरण के लिए तुरंत एवं प्रभावी कार्यवाही करने में पूर्णतः सक्षम हो।[2]

इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के निर्माताओं ने विश्व संस्था की सम्पूर्ण शांति सुरक्षा परिषद में निहित कर दी है। सुरक्षा परिषद को अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा का पहरेदार माना जाता है। अतः सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र का हदय है। इसका गठन कुछ इस प्रकार किया गया है कि वह लगातार काम कर सके जब कभी कोई विवाद या संघर्ष शुरू होता है तो सुरक्षा परिषद की सबसे पहले चिंता उसे तुरंत रोकने की होती है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सदस्यता - संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 स्थाई और 10 अस्थाई सदस्य कुल 15 सदस्य होते है स्थायी सदस्यों में संयुक्त राज्य अमरीकाब्रिटेनरूसचीन और फ्रांस है। अस्थायी सदस्यों में से पांच एशियाई अफ्रीकी देशों में सेएक पूर्वी यूरोपदो अमरीका महाद्वीप व शेष दो पश्चिमी यूरोप व अन्य राज्यों में से होते है और इन अस्थाई देशों का कार्यकाल 2 वर्ष के लिए होता है अर्थात इन राष्ट्रों का चयन संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के संबंध में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के योगदान का तथा भौगोलिक क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने की आवश्यकता का ध्यान रखा जाता     है।[3]

संयुक्त राष्ट्र का सबसे विवादास्पद विषय सुरक्षा परिषद की मतदान प्रणाली है जो इस शोध का प्रमुख विषय भी है। “सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होगाक्रियाविधि संबंधी मामलों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय नौ सदस्यों के स्वीकारात्मक मत से किये जायेंगे। अन्य सभी मामलों में सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थायी सदस्यों के समर्थक मत सहित नौ सदस्यों के स्वीकारात्मक मत से किये जाएंगे।[4] इस प्रकार प्रत्येक स्थायी सदस्य को सभी महत्वपूर्ण विषयों में निषेधाधिकार प्राप्त है। पाचों सदस्यों की सहमति को महान आम सहमति और वीटों निषेधाधिकार प्राप्त शक्ति के रूप में जाना जाता है।

निषेधाधिकार अथवा वीटों की समस्या- संयुक्त राष्ट्र चार्टर का कोई भी अन्य अनुच्छेद इतना विवादास्पद नहीं रहा है जितना की अनुच्छेद-27 की वह व्यवस्था जो सुरक्षा परिषद के पाचों स्थायी सदस्यों में से प्रत्येक को निषेधाधिकार प्रदान करती है। इसका विवाद तो संयुक्त राष्ट्र के जन्म से ही चला आ रहा है यह इस संपूर्ण संगठन के लोकतंत्रीकरण में सबसे महत्वपूर्ण समस्या है जैसे यह समानता के सिद्धांत के विपरित हैअप्रजातांत्रिक व्यवस्था हैविश्व लोकमत की उपेक्षा होती है और निश्चित रूप से आज तक वीटो का दुरूपयोग ज्यादा ही हुआ है।[5]

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का लोकतंत्रीकरण की आवश्यकता- वर्तमान में सुरक्षा परिषद का पुनर्गठन किया जाना न केवल समयोचित होगा अपितु लंबे समय से चली आ रही इस मांग को देखते हुए ऐसा करना न्यायोचित भी होगा विशेष रूप से बदलते विश्व परिदृष्य को ध्यान में रखते हुए। जब सुरक्षा परिषद का गठन किया गया तब उसमें 11 सदस्य थे 1965 में इसकी सदस्य संख्या बढाकर 15 की गयी उस समय संयुक्त राष्ट्र की संख्या 90 थी और वर्तमान में 193 है जबकि आज भी सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या 15 ही बनी हुई है । 1990 के दशक से निरंतर यह मांग चल रही है कि सुरक्षा परिषद का पुनर्गठन हो और इसके सदस्यों की संख्या 15 से ज्यादा होनी चाहिए और इनमें ब्राजीलभारतइंडोनेशियाजापानमिश्र और जर्मनी को भी सम्मिलित किया जाना चाहिये। यह भी सुझाव है कि या तो स्थाई सदस्यता की व्यवस्था समाप्त कर दी जाये अथवा कुछ अन्य देशों को भी स्थाई सदस्य बनाया जाये। जर्मनी व जापान को स्थाई सदस्य बनाने के विषय में कोई विवाद नहीं है सुरक्षा परिषद इस पर पूर्णत सहमत है। इसी तरह यह मांग की जा रही है कि भारतब्राजीलमिश्र को भी सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाये परंतु इस विषय में कोई सहमति नही हो पाई है इसका कारण यह है कि पाकिस्तान भारत के दावे को चुनौति दे रहा है दूसरी ओर मिश्र के दावे को दक्षिणी अफ्रीका द्वारा चुनौती दी जा रही है जबकि ब्राजील के दावे को अर्जेंटीना व मैक्सिको आदि चुनौति दे रहे है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद की पुर्नरचना में विकासशील देशों के पारस्परिक मतभेद और बहुत बडा मतभेद बने हुए है इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि पाचों स्थायी सदस्य देशों भी सुरक्षा परिषद के विस्तार में वास्तविक रूचि नही रखते जिसका प्रमुख कारण यह है कि वे न तो अपने एकाधिकार को समाप्त करना चाहते है और न ही उनका विभाजन चाहते है परंतु यह सत्य है कि वर्तमान परिस्थितियों में सुरक्षा परिषद का विस्तार किया जाना नितांत आवश्यक और उचित है।[6] 2003 में इराक पर आक्रमण के समय तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा भी था, “जब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सुधार और पुर्नगठन नहीं हो जाता तब तक इसका निर्णय वास्तव में राष्ट्रों के समुदाय की सामूहिक इच्छा को प्रतिबिंबित नहीं कर सकता।“ पूर्व महासचिव कोफी अन्नान द्वारा संयुक्त राष्ट्र में सुधार हेतु गठित उच्चस्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया है कि वैश्वीकरण के दौर में राष्ट्रों के समक्ष गरीबीअभाव एवं व्यापक रोगआतंकवाद एवं व्यापक विनाश के हथियार की तरह ही खतरनाक हैंअतः विकास एवं मानव सुरक्षा प्रमुख मुद्दे है। सुरक्षा परिषद के विस्तार हेतु समूह ने सभी भौगोलिक क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व को संभव बनाने के लिए सुरक्षा परिषद में 6 से 8 नए स्थायी सदस्यों सहित सुरक्षा परिषद की कुल सदस्य संख्या 24 रखने का सुझाव दिया है समूह ने सुरक्षा परिषद के विस्तार हेतु 2 मॉडल सुझाए है। प्रथम मॉडल के तहत् समूह ने सुरक्षा परिषद विस्तार हेतु 2 मॉडल सुझाए हैं। इसमें 2-2 सदस्य एशिया और अफ्रीका के तथा 1-1 सदस्य यूरोप एवं अमरीका महाद्वीप के होंगे एवं सदस्यों की कुल संख्या 24 होगी। दूसरे मॉडल के तहत् स्थायी सदस्यों की संख्या 5 ही रखी जाएगी पर 8 अर्द्ध स्थायी सदस्यों की एक नई श्रेणी गठित की जाएगी जिनका 4 वर्ष का पुर्ननवीनीकरण योग्य कार्यकाल होगा। साथ ही इसमें 11 अस्थायी सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी। सुरक्षा परिषद के इस विस्तार से विकासशील राष्टों के विचारों की बेहतर सुनवाई हो सकेगी।[7] ऑस्ट्रेलियाई सरकार सुरक्षा परिषद में 25 सदस्यों सहित विस्तार होने की बात करती है इसमें जर्मनी और जापान की औद्योगिक शक्तियां और स्थायी सीटों में अधिक संतुति तर्कसंगत प्रतिनिधित्व शामिल हैभले ही इसके लिए रोटेशन आधार पर आवश्यकता हो।[8] संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य सुरक्षा परिषद में सुधार के पक्ष में हैं जिसमें दोनों श्रेणियों स्थायी और अस्थायी सदस्य में विस्तार शामिल है लेकिन विशिष्ट बातों पर अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है सुधार के विरोधियों के प्रतिरोध के बावजूदसुधार पर सभी पदों को रेखांकित करने वाला पहला फ्रेमवर्क दस्तावेज महासभा के 70 वे सत्र में विचार के लिए सर्वसम्मति से अपनाया गया था। (69/560) जी 4 सदस्य 23 सितंबर 2020 को मंत्री स्तर पर बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए मिलकर कर काम करने का संकल्प दोहराया।[9] 1965 के सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या में परिवर्तन के बाद आज तक लगातार इसकी सदस्य संख्या और वीटो शक्ति के लोकतांत्रिकरण के लिए प्रयत्न किये जा रहे है।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का लोकतंत्रीकरणविस्तार और समान प्रतिनिधित्व बदलते विश्व परिदृष्य के अनुकूल होना चाहिएनई सहस्त्राब्दी का उदय के साथ विश्व महत्वपूर्ण परिवर्तन तथा संक्रमण के तौर पर गुजर रहा है इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र का भी दूरगामी बदलावों का दौर जारी है वैश्वीकरणविश्व के स्वरूप को बदल रहा है जिससे कुछ देशों को अत्यधिक लाभ हुआ है तो दूसरी ओर एक विरोधी प्रक्रिया भी जन्म ले रही है क्योंकि लाभों का असमान वितरण है आज 75 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र के समक्ष अनेक चुनौतियां है जिसकी कल्पना 1945 में नहीं की गई थी। विश्व शांति और सुरक्षा संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख एजेंडा है लेकिन सुरक्षा परिषद की कुछ कमियों के कारण संयुक्त राष्ट्र अपने सिद्धांतों और लक्ष्यों में पीछे है और अनेक अंतराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है इसीलिए रूस-युक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन जैसी समस्याऐं विकराल रूप ले लेती है संयुक्त राष्ट्र सभी परिवर्तनों में अहम भूमिका निभा सकने में सक्षम हो इस हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलते परिप्रेक्ष्य में सुधार की आवश्यकता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1.   Manoj Pandy & Onkar Kedia, (1998) United Nations in The Service of The Common Man, Pg.28.

2.   Manoj Pandy & Onkar Kedia, (1998) United Nations in The Service of The Common Man, Pg.57.

3.   अनुच्छेद 23, संयुक्त राष्ट्र चार्टर ( संयुक्त राष्ट्र संघ सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष) नीना शिरीष,

4.   अनुच्छेद 27, संयुक्त राष्ट्र चार्टर ( संयुक्त राष्ट्र संघ सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष) नीना शिरीष,

5.   पंतडॉपुष्पेशअंतराष्ट्रीय संबंधमिनाक्षी प्रकाशनमेरठ,

6.   संयुक्त राष्ट्र चार्टर (संयुक्त राष्ट्र संघ सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष) नीना शिरीष पृ0 0 257

7.   डॉ0 महेषसंयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिकालेख प्रतियोगिता दर्पण दिसंबर 2005 पृ00 125

8.   जॉनसन स्टेनली सबमिशन न. 57 पृ00 491 आस्ट्रेलियन पीस कमेटी,

9.   रिफॉर्म ऑफ द यूनाइटेड नेशंस सिक्यूरिटी कॉंसिल (व्हाट डज द जी प्रपोजल कंप्राइज) 

https://www.auswaertiges-amt.de/