ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- X November  - 2023
Innovation The Research Concept

कार्यशील महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति: सामाजिक अध्ययन (हजारीबाग जिले सदर एवं बड़कागाँव प्रखण्ड के संदर्भ में)

Social and Political Status of Working Women: Social Study (With Reference to Hazaribagh District Sadar and Barkagaon Block)
Paper Id :  18383   Submission Date :  2023-11-11   Acceptance Date :  2023-11-19   Publication Date :  2023-11-25
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DOI:10.5281/zenodo.10716074
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पुष्पा कुमारी
असिस्टेंट प्रोफेसर
समाजशास्त्र विभाग
गौतम बुद्ध शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय
हजारीबाग,झारखंड, भारत
सारांश

भारत एक विकासशील देश है इसी प्रकार भारत में महिलाओं की स्थिति भी विकासशील ही है। प्राचीन काल से आधुनिक काल तक इनकी स्थिति में अनेक परिवर्तन देखने को मिलते है। यदि कोई राष्ट्र उन्नति करना चाहता है तो उसे सबसे पहले अपने राष्ट्र की महिलाओं की उन्नति करनी होगीक्योंकि जिस देश में नारी सशक्तजागृत एवं शिक्षित हो वह देश संसार में उन्नत देश माना जाता है। नारी मानव सृष्टि में ही नहीं बल्कि समाज निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जिस प्रकार किसी भी परिवार में महिला-पुरूष के कार्य व दायित्व अलग अलग होते हैंउसी प्रकार समाज में भी महिला पुरूष के कार्य व स्थान में भी भिन्नता पाई जाती है। महिलाओं की सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति का अध्ययन करना एक कठिन विषय है। समाज में महिलाओं की स्थिति सदा से दयनीय रही है। इनकी सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति हमेशा से समाज के नियमों एवं बंधनों में बंधी रही है। आजादी के बाद 76 वर्षों की विकास यात्रा में महिलाओंउनकी सामाजिक स्थितिराजनीतिक स्थिति एवं शैक्षिक स्थिति आदि में परिवर्तन की सुगबुगाहट अवश्य हुई है लेकिन इस विशाल और अनगिनत विविधता वाले देश में इस परिवर्तन का अंश नगण्य ही है। संविधान में महिलाओं को पुरूषों के समान ही अधिकार दिये है। अत्याचारों से दबी महिलाओं के दयनीय जीवन की सामाजिकराजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई हैं परन्तु उनकी विकास की स्थिति आज भी चिन्तनीय है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद India is a developing country, similarly the status of women in India is also developing. Many changes are seen in their condition from ancient times to modern times. If a nation wants to progress, then first of all it has to progress the women of its nation, because the country where women are strong, awakened and educated is considered to be the most advanced country in the world. Women play an important role not only in human creation but also in society building. Just as in any family the work and responsibilities of men and women are different, similarly in the society also there is difference in the work and place of men and women. Studying the social and political status of women is a difficult subject. The condition of women in the society has always been pathetic. Their social and political status has always been bound by the rules and restrictions of the society. In the 76 years of development journey after independence, there has been a flurry of change in women, their social status, political status and educational status etc. but in this vast and innumerable diverse country, the extent of this change is negligible. In the Constitution, women have been given equal rights as men. Many welfare schemes have been made to change the miserable social, political and economic condition of women oppressed by atrocities, but their development status is still a matter of concern.
मुख्य शब्द कार्यशील महिलाएँ, सामाजिक एवं राजनीतिक, सामाजिक अध्ययन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Working Women, Social and Political, Social Studies.
प्रस्तावना

यदि हम इतिहास की बात करे तो पाते हैं कि उस समय ऐसी बहुत सी महिलाएँ थी जिन्होने अपनी विद्या का लोहा मनवाया था और इस कारण उनका नाम इतिहास में अमर हो गया। ऐसी स्त्रियों में सावित्री, मैत्रेयी, अपाला, घोषा एवं गार्गी जैसी महिलाओं के नाम मिलते हैं। जिन्होनें विद्यार्जन कर स्त्रियों के अस्तित्व को गौरव प्रदान किया था। उनकी शक्ति एवं प्रेरणा थी उनकी शिक्षा, परन्तु बाद के कालों में उनकी शिक्षा रूपी शक्ति छीनी जाने लगी। जो उनकी अवनति का कारण बना। देखा जाये तो आज भी वो स्थिति प्राप्त नहीं हो पायी है। कुछ हद तक उसने अपने को उबारा है, लेकिन अभी भी पूर्ण रूप से उन्नति होना बाकी है। सामाजिक कुरीतियों का उन्हें शिकार बनाया गया है। बाल-विवाह प्रारंभ हुए, उपनयन संस्कार से उन्हें वंचित किया जाने लगा इसके परिणामस्वरूप उनका व्यक्तित्व कुंठित होता चला गया।

बाल विवाह के कारण उनकी शिक्षा का अधिकार छिन गया और शिक्षा केवल सवर्ण परिवारों की महिलाओं तक सीमित हो गई। पुरूषों की संकीर्ण मानसिकता ने स्त्रियों को शिक्षा से वंचित कर दिया। समाज में पर्दा-प्रथा, सती-प्रथा, वेश्या वृत्ति एवं देवदासी जैसी अनेक बुराईयों की बेड़ियों में जकड़ गई जिससे उनके सामाजिक अधिकार, राजनैतिक अधिकार, शैक्षिक अधिकार आदि अनेक अधिकार छिन गये। शिक्षा अपने प्रति हो रहे अत्याचारों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है तथा अपने अधिकारों के प्रति सचेत भी करती है।

नारी की पुरानी व नई स्थिति में कोई विशेष फर्क नहीं आया है। यदि आया होता तो आजादी के इतने वर्षों बाद भी माँ-बहने, वेश्यावृति करने को मजबूर नहीं होती। दहेज के लिए सैकड़ों बहनों को प्राण न गवाने पड़ते। अतः महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर ही उनकी राजनीतिक स्थिति निर्भर करती है।

अध्ययन का उद्देश्य

कार्यशील महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति में हमेशा से परिवर्तन आते रहे हैं। प्राचीन काल से आधुनिक काल तक में महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति में जो परिवर्तन देखने को मिलते हैं इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या यह परिवर्तन सभी महिलाओं के जीवन में आये हैं या अभी भी यह परिवर्तन कुछ ही महिलाओं तक सीमित है। यदि यह परिवर्तन कुछ महिलाओं तक ही सीमित है, तो इसके क्या कारण है इन्ही प्रश्नों का उत्तर तलाश करना इस शोधपत्र का उद्देश्य है।

साहित्यावलोकन
वैदिक साहित्य में स्त्रियों को गृह शासिका के रूप में स्थापित किया गया है तथा साथ ही साथ एक बेहद सम्माननीय स्थान दिया गया है। वैदिक काल में नारी को रत्न के भांति समझा जाता था। (शर्मा, 1971) छंदोग्य तथा वृहदारण्यक उपनिषदों में नारी से सम्बंधित विचार मिलते हैं। इस काल में महिलाएँ विद्या प्राप्त करती थीं। विदुषी कन्याओं को प्राप्त करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी की जाती थी। माता सर्वथा वंदनीय थी (सिंघल, 1991)
मुख्य पाठ

उपर्युक्त उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रस्तुत पत्र को प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के द्वारा तैयार किया गया है। साक्षात्कार को प्रमुख शोध प्रविधि के रूप में रखकर आंकडों एवं सूचनाओं को संकलित करने के लिए प्रश्नावली एवं अवलोकन शोध उपकरणों को आधार बनाया गया है। अध्ययन का विषय कार्यशील महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति से सम्बंधित है इसलिए आवश्यक था कि किसी ऐसे क्षेत्र का चुनाव किया जाय जहाँ कार्यशील महिलाएँ हों। इस लिए उद्देश्यपूर्ण निदर्शन के माध्यम से हजारीबाग जिले के दो प्रखण्डों सदर और बड़कागाँव क चुनाव किया गया। इन दो प्रखण्डों के सभी गाँवों का चुनाव न करके सिर्फ बभनवै, मोरांगी, मुकुन्दगंज, खपरियावाँ, हरहद, बड़कागाँव, महुगाईं खुर्द, हरली, सलैया, मासीपीढ़ी गाँव को चयनित किया गया है। प्रत्येक गाँव में 50 कार्यशील महिलाओं पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया है। जिसमें सरकारी, अर्द्धसरकारी एवं गैर सरकारी (प्राईवेट/व्यवसाय/मजूदरी) करने वाली महिलाओं से बातचीत की गई है।

सामाजिक राजनीतिक स्थिति:

पुरूष और महिला सृष्टि रथ के दो पहिये हैं और उस रथ को चलाने के लिए दोनों पहियों का एक समान मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है। समकालीन विश्व में महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जा रहा है। कई बार हम महिलाओं की स्थिति को बेहतर करने के लिए पश्चिमी देशों की ओर देखते हैं। परन्तु यदि हम महिलाओं की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति को जानने के लिए अपनी बहुमूल्य धरोहर को टटोलना होगा। वैदिक साहित्य में स्त्रियों को गृह शासिका के रूप में स्थापित किया गया है तथा साथ ही साथ एक बेहद सम्माननीय स्थान दी गई है। 

महाकाव्यकाल, महाभारत, जैनकाल तथा विभिन्न ग्रन्थों में महिलाओं की राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति का उल्लेख मिलता है। सभी कालों में इसकी स्थिति में उतार-चढ़ाव नजर आये हैं। आधुनिक काल में शहरी क्षेत्रों में धीरे-धीरे नई विचारधारा के प्रति लोगों में जागरूकता आ रही है परन्तु ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति खराब ही है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को मुखिया या सरपंच के पद पर महिलाओं को आसीन तो कर दिया जाता है। पर इसके प्रमुख कर्ता-धर्ता पुरूष अपने हाथों में ही रखते हैं। इसी प्रकार महिलाओं की सामाजिक राजनीतिक स्थिति के रास्ते में आने वाली बाधाएँ पितृसत्तात्मक समाज, घरेलू जिम्मेदारियों का अधिक होना, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना, सांस्कृतिक प्रतिबंधता एवं रुढ़िवादी विचारधाराएँ इत्यादि हैं। इन बाधाओं को दूर करने के लिए स्त्री-पुरूष दोनों का सहयोग आवश्यक है।

विभिन्न कालों में महिलाओं की सामाजिक राजनीतिक स्थिति:-

भारतीय इतिहास की सबसे प्राचीन सभ्यता सैंधव सभ्यता है। इस सभ्यता से जो प्रमाण प्राप्त होते है उनके आधार पर कहा जा सकता है कि उस समय महिलाओं को पूजनीय माना जाता था तथा समाज में उनको विशेष स्थान प्राप्त था सैन्धव सभ्यता से प्राप्त मुहरों पर मातृशक्ति के प्रतीक के रूप में मातृदेवी के चित्र समाज में उसके स्थान को निर्धारित करते हैं। सभ्यता में नारी की ऊर्वरा के प्रतीक के रूप में पूजा जाता था।[1] ऐतिहासिक युग अर्थात् ऋगवैदिक काल पितृसत्तात्मक समाज समाज होने पर भी स्त्रियों की स्थिति प्रतिष्ठित एवं सम्मानित थी। इस काल में पत्नी के लिए जायेदस्तम शब्द का प्रयोग किया जाता था। जिसका तात्पर्य होता है पत्नी ही गृह है।[2] उत्तर वैदिक काल में पूर्व के कालों की उपेक्षा इनकी स्थिति में परिवर्तन आने लगा था। कन्याओं को उपनयन संस्कार से वंचित कर दिया गया जिसके कारण उनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न हो गई। ऐतरेय ब्राह्मण में कन्याओं के जन्म की निन्दा की गई है। मैत्रायणी संहिता में स्त्री को द्यूत तथा मदिरा की श्रेणी में रखा गया है।[3] उत्तर वैदिक काल में विधवा पुनर्विवाह का अधिकार प्राप्त था, परन्तु यह मात्र पुत्र प्राप्ति के लिए। क्योंकि पिता की सम्पत्ति का अधिकारी पुत्र ही होता था। इसलिए पुत्र प्राप्ति पर अधिक जोर दिया जाता था।[4] सुत्रकाल में स्त्री को निम्न समझा जाने लगा। इस काल में स्त्रियों को स्वतंत्रता के योग्य नहीं समझा जाता था। बाल्यावस्था पिता की संरक्षण में यौनावस्था पति के संरक्षण में एवं वृद्धावस्था पुत्र के संरक्षण में बिताने की बात कही गई। इस प्रकार स्त्री किसी पुरूष पर ही आश्रित हो गई थी।[5] मौर्यकाल में भी इनकी स्थिति पूर्ववत ही थी। स्वयंवर प्रथा, विशेष परिस्थितियों में विवाह विच्छेद के अधिकार प्राप्त थे, परन्तु इन्हें भोग एवं सन्तानोत्पत्ति का साधन माना जाता था।[6] गुप्त काल में महिलाओं को प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था। उनके जन्म को दुर्भाग्य का कारण नहीं समझा जाता था। स्त्री का पद माता एवं पत्नी के रूप में ऊँचा था। स्त्री रत्न एवं वीरप्रसविनी नाम से सम्बोधित किया जाता था।[7] गुप्तकाल में पर्दा का प्रचलन नहीं मिलता है परन्तु इसी काल में घूँघट शब्द का प्रचलन मिलता है। कुलीन वर्ण की महिलाएँ घर बाहर जाने पर अपना मुँह ढ़ककर चलती थी।[8] पूर्वमध्यकाल में स्त्रियों के अधिकारों एवं स्थिति में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इस काल में सामाजिक, व्यवस्था को अत्यंत कठोर बना दिया गया। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पतन दिखाई देने लगे थे। इस काल के साहित्य एवं ललित कलाओं में महिलाओं को भोग्या के रूप में प्रदशित किया गया है।[9] राजपूत काल में महिलाओं को सम्मान प्राप्त था। उन्हें सम्पति सम्बंधि अधिकार प्राप्त थे, परन्तु विधवाओं को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था।[10]

विश्लेषण

आधुनिक काल में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। सरकारीगैर सरकारी संगठनों तथा समाज सुधारकों के प्रयासों के परिणाम स्वरूप आज भारतीय नारी की स्थिति मध्य कालीन या पूर्व के कालों से अच्छी है। आज महिलाएँ पुरूषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं। उन्हें तलाक का अधिकार प्राप्त हैसम्पति का अधिकार प्राप्त हैजीवन साथी चुनने का अधिकार प्राप्त हैराजनीति के क्षेत्र में पंचायती स्तर पर आरक्षण प्राप्त है। राज्य विधान सभा एवं लोक सभा में भी आरक्षण हेतु सभी राजनीतिक दल प्रयासरत हैं। आज भारतीय नारियाँ पूर्णतः पुरूषों पर ही आश्रित नहीं है। वह पुरूष की जीवनसाथी बनती जा रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् औद्योगीकरण व नगरीकरणएकाकी परिवारों की संख्या में वृद्धिमहिलाओं में सामाजिक चेतनाराजनीतिक चेतना तथा वैधानिक सुविधाओं ने महिलाओं की स्थिति को पुरूषों के बराबर लाने में सहायता की है। राजनीतिक क्षेत्र में भी महिलाएँ प्रवेश कर रही हैं। शिक्षा नेउनकी कार्यशीलता ने उनके व्यक्तित्व में विकास लाने का प्रयास तो किया हैपरन्तु आज भी वे पूरी तरह से स्वतंत्र सुरक्षित नहीं हैं। उनके प्रति हिंसा बढ़ी है। उन्हें गैर-परम्परागत क्षेत्रों में आगे आने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

सांख्यिकीय आधार पर कार्यशील महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण:-

कार्यशील महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति को निम्न सारणियों एवं ग्राफ्स के माध्यम से अध्ययित क्षेत्रों की महिलाओं से जानकारी प्राप्त कर समझने का प्रयास किया है।

तालिका क्रमांक - 4.1 (1)

कार्यशील महिलाओं की आयु जानकारी


स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित।

उपरोक्त ग्राफ 4.1 (1) के अवलोकन से ज्ञात होता है कि सर्वेक्षित कार्यशील महिलाओं में से 3.4 प्रतिशत (17) महिलाएं 20 वर्ष से कम आयु वर्ग की हैं 21 से 25 वर्ष की आयु वर्ग में कार्यशील महिलाओं का 13.6 प्रतिशत है। 26-30 वर्ष में 30.6 प्रतिशत है, 31 से 35 वर्ष वाली महिलाओं की संख्या 33.8 प्रतिशत रही है तथा 35 वर्ष या उससे अधिक वालों की संख्या 18.6 प्रतिशत पाया है।

इस प्रकार इस अध्ययन से ज्ञात होता हैकि अधिकांश सर्वेक्षित कार्यशील महिलाएं 31 से 35 आयु वर्ग की है तथा 20 वर्ष से कम आयु वर्ग की कार्यशील महिलाएं सबसे कम हैं। इसको और अच्छे से समझने के लिए ऊपर के ग्राफ का सहारा लिया जा सकता है।

शिक्षा संबंधी

महिला सशक्तिकरण और शिक्षा का अत्यंत घनिष्ठ सम्बंध है। शिक्षा वह प्रकाश हैजो अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करता है। हेनरी बेरो ब्रोधन के अनुसार ‘‘शिक्षा लोगों का नेतृत्व सरल बनाती हैलेकिन उन्हें हाँकना कठिन हैउन पर शासन करना सरल बनाता हैलेकिन गुलाम बनाना असंभव है।’’ यदि नारी के जीवन को जानना हैतो उसकी शिक्षा के बारें में पता करेंकि उसकी शिक्षा क्या हैयह बात अनेक शोधों से पता चला है कि जब-जब समाज में शोषण घटा हैतब शिक्षा का स्तर बढ़ा हुआ होता है। गुन्नार मिर्डल के शब्दों में ‘‘साक्षरता संसार का मार्ग प्रशस्त करती है अन्यथा वे बन्द पड़े रहते है’’ यह किसी भी प्रकार के कौशल एवं व्यवहार प्राप्ति के लिए अतिआवश्यक है।

अतः हम कह सकते है कि शिक्षा के द्वारा महिला सशक्तिकरण संभव है इस अध्ययन में शिक्षा के स्तर को जानने का प्रयास किया गया है। इसमें महिला उत्तरदाताओं से प्रश्न किया गया कि आपकी शैक्षणिक योग्यता क्या है?

तालिका क्रमांक 4.1 (2)

शिक्षा से संबंधित


स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित

कार्यशील महिलाओं की शिक्षा संबंधी अध्ययन यह दर्शाता है कि शोध अध्ययन में शामिल 13 प्रतिशत कार्यशील महिलाएँ प्राथमिक कक्षा की पढ़ाई की हुई हैं, 16.2 प्रतिशत महिलाएँ माध्यमिक स्तर तक शिक्षित है, 00 प्रतिशत महिलाओं ने स्नातक तक अध्ययन किया हैंवहीं स्नातकोत्तर तक शिक्षित महिलाओं की संख्या 19.6 प्रतिशत है, 12.6 प्रतिशत महिलाओं ने व्यवसायिक शिक्षा भी प्राप्त की हैंपरन्तु 7.2 प्रतिशत महिलाएँ निरक्षर हैं।

अतः उपरोक्त विवरण से पता चलता है कि सबसे अधिक 31.4 प्रतिशत महिलाओं ने स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है और सबसे कम 13 प्रतिशत महिलाओं ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की है।

विवाह संबंधी

विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई है तथा परिवार का मूल है। विवाह जिसे शादी भी कहा जाता हैदो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन दो लोगों के बीच अधिकारों और उत्तरदायित्वों को स्थापित करता है। विवाह के उपरान्त व्यक्ति की निर्णय क्षमताविचारशीलता आदि प्रभावित होती है। अतः महिलाओं की विचारशीलता आदि प्रभावित होती है। महिलाओं की विचारशीलता निर्णय आदि की स्थिति को जानने के लिए उत्तरदाता ने महिलाओं से यह प्रश्न किया है।




तालिका क्रमांक - 4.1 (3)

क्रम संख्या

वैवाहिकस्थिति

 

प्राप्त उत्तर

संख्या

प्रतिशत

1

हाँ

356

71-2

2

नहीं

144

28-8

 

कुल योग

500

100

स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित

उपरोक्त तालिका क्रमांक 4.1 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि 71.2 प्रतिशत कार्यशील महिलाएँ विवाहित है तथा 28.8 प्रतिशत कार्यशील अविवाहित है।

अतः अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अधिकतर 71.2 प्रतिशत कार्यशील महिलाएँ विवाहित है।

तालिका क्रमांक - 4.2 (1)

जाति संबंधी


स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित।

उपरोक्त तालिका 4.2 के अवलोकन के आधार पर ज्ञात होता है कि सर्वेक्षित कार्यशील महिलाओं में से सामान्य जाति में 17.6 प्रतिशत हैअनुसूचित 31.2 प्रतिशत हैअनुसूचित जनजाति 7.4 प्रतिशत हैपिछड़ा वर्ग 43.8 प्रतिशत) है।

उपरोक्त विश्लेषण से ज्ञात होता है कि 500 कार्यशील महिलाओं में सबसे अधिक पिछड़ा वर्ग में 43.8 प्रतिशत है एवं सबसे कम अनुसूचित जनजाति 7.4 प्रतिशत हैं।


महिलाओं की पारिवारिक स्थिति

परिवार एक ऐसी संस्था हैजो सभी कालों और सभी समाजों में सदा विद्यमान रही है। परिवार शब्द अंग्रेजी भाषा के श्थ्ंउपसलश् शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। अंग्रेजी शब्द 'Famulus' लैटिन भाषा के शब्द 'Famulus' से निकला है 'Famulus' शब्द का अर्थ एक ऐसे शब्द से लगाया जाता है जिसमें माता-पिताबच्चे नौकर तथा यहाँ तक कि दास भी शामिल किये जाते हैं। इलियट एवं मरिल ‘‘परिवार को पति-पत्नी तथा उनके बच्चों की एक जैविकीय सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है’’ क्सेयर के अनुसार ‘‘परिवार को हम सम्बंधों की वह व्यवस्था समझते है जो माता-पिता और उसकी संतानों के मध्य पायी जाती है।’’

अतः साधारण शब्दों में परिवार को एक ऐसे समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें पति-पत्नी और उनके बच्चे पाये जाते है। जिसमें बच्चों की देख-रेख तथा पति-पत्नी के अधिकार व कर्तव्यों का समावेश होता है। किसी भी महिला की सामाजिक स्थिति जानने के लिए पहले उसकी पारिवारिक स्थिति जानना अति आवश्यक है। शोध अध्ययन में पारिवारिक स्थिति ज्ञात करने के लिए परिवार को दो भाग संयुक्त परिवार और एकल परिवार में वर्गीकृत किया है।

संयुक्त परिवार से तात्पर्य ऐसे परिवार से हैजिसमें पति-पत्नी और सन्तानों के साथ अन्य रक्त सम्बंधियों का भी समावेश है। इसमें दो या तीन पीढ़ी के लोग एक साथ एक छत के नीचे रहते हैं तथा एक ही रसोई का उपयोग करते हैं। परिवार में एक मुखिया होता है।

एकल परिवार या एकांकी परिवार में पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार के परिवार में सदस्यों की संख्या कम होती है इस लिए इसका आकार छोटा होता है। बदलते परिवेश में इन परिवारों का चलन बढ़ रहा है। इस प्रश्न को महत्वपूर्ण समझते हुए शोधार्थी ने शोध में शामिल किया है।

तालिका क्रमांक - 4.2 (2)
परिवार की संरचना

स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित।

उपरोक्त तालिका क्रमांक 4.2 (2) के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सर्वेक्षित कार्यशील महिलाओं में से 71.4 प्रतिशत कार्यशील महिलाएँ एकल परिवार में निवास करती हैंजबकि 28.6 प्रतिशत कार्यशील महिलाएँ संयुक्त परिवार में निवास करती है।

अतः अध्ययन से ज्ञात होता है कि अधिकांश 71.4 प्रतिशत कार्यशील महिलाएँ एकल परिवार में निवास करती हैं।

तालिका क्रमांक - 4.2 (5)

समाज के लोगों का कार्यशील महिलाओं के प्रति नजरिया


स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित।

उपरोक्त तालिका क्रमांक 4.2 (5) से ज्ञात होता है कि 57.8 प्रतिशत कार्यशील महिलाओं के प्रति समाज के लोगों का नजरिया अच्छा हैजबकि 27.4 प्रतिशत महिलाओं के प्रति सामान्य नजरिया रखने की बात कही हैवहीं 10.8 प्रतिशत तथा 04 प्रतिशत महिलाओं अपने प्रति समाज के लोगों की नजरिये प्रश्न के जबाब में अच्छा नहीं एवं संदेह जनक बताया।

अतः विश्लेषण से पता चलता है कि सबसे अधिक 57.8 प्रतिशत महिलाओं के प्रति समाज में लोगों का नजरिया अच्छा है तथा 4 प्रतिशत कार्यशील महिलाओं के प्रति नजरिया संदेह जनक है।

तालिका क्रमांक - 4.2 (6)
परिवार के महत्वपूर्ण निर्णय कौन लेता है?

क्रम संख्या

परिवार के महत्वपूर्ण निर्णय 

 

प्राप्त उत्तर

संख्या

प्रतिशत

1

पति/पिता

456

91-2

2

आप/माँ

44

8-8

 

कुल योग

500

100-0

स्रोत- शोधार्थी के सर्वेक्षण के आधार पर

उपरोक्त तालिका क्रमांक 4.2 (6) में यह दर्शाया गया है कि कार्यशील महिलाओं के घर में महत्वपूर्ण निर्णय 91.2 प्रतिशत उनके पति/पिता के द्वारा लिये जाते हैंजबकि 8.8 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि महत्वपूर्ण निर्णय वे या उनकी माता लेती हैं।

अतः अधिकांश 91.2 प्रतिशत परिवार में उनके पति/पिता द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाता है।

तालिका क्रमांक - 4.3 (1)

सेवा/नौकरी प्रारंभ करने की स्थिति:-


स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित।

उपरोक्त तालिका से यह पता चलता है कि विवाह से पूव नौकरी करने वाली महिलाओं की 39.2 प्रतिशत जबकि 60.8 प्रतिशत महिलाओं ने विवाह के पश्चात् नौकरी करना प्रारंभ किया।

अतः अधिकांशत 60.8 प्रतिशत महिलाएँ विवाह के पश्चात् कार्य करना प्रारंभ की। उन महिलाओं ने नौकरी करके अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया है तथा अपने समय का अच्छा से उपयोग कर सकी। वहीं 39.2 प्रतिशत महिलाएँ ऐसी थी जिन्होंने विवाह से पूर्व ही नौकरी करना प्रारंभ किया था उन्होनें कहा कि जिन्होंने अपने पैरों पर खड़ा होने तथा अपने समय का सदुपयोग करने के लिए नौकरी करना प्रारंभ किया था।

तालिका क्रमांक - 4.3 (06)

कार्यशील होने के बाद आपके जीवन में क्या परिवर्तन आयें?

 

स्रोत:- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित।

तालिका क्रमांक 4.3 (11) से स्पष्ट होता है कि कार्यशील महिलाएँ आत्मनिर्भर हुई या नहीं। 42.6 प्रतिशत महिलाओं ने बहुत अच्छा कहा, 47.4% महिलाओं ने अच्छा कहा है वहीं 10% महिलाओं ने सामान्य कहा है जबकि अच्छा नहीं में 00 और कोई नहीं में भी 00 उत्तर प्राप्त हुआ।

अतः उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि अधिकतम 47.4 प्रतिशत महिलाओं की प्रक्रिया अच्छी रही और न्यूनतम 10 प्रतिशत महिलाओं ने सामान्य माना। अच्छा नहीं और कोई जबाव नहीं में 00 रहा।

तालिका क्रमांक - 4.5 (22)

क्या आप मानती है कार्यशील महिलाओं की आर्थिक स्थिति उनकी सामाजिक स्थिति उनकी सामाजिक स्थिति को प्रभावित सकती है?

क्रम संख्या

उनकी आर्थिक स्थिति सामाजिक स्थिति को प्रभावित

प्राप्त उत्तर

संख्या

प्रतिशत

1

हाँ

498

99-6

2

नहीं

02

0-4

 

कुल योग

500

100-0

स्त्रोतः- शोधार्थी के सर्वेक्षण पर आधारित।

उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि 500 कार्यशील महिलाओं में 99.6 प्रतिशत (498) ने माना है कि उनकी आर्थिक स्थिति से उनकी सामाजिक स्थिति प्रभावित होती हैजबकि 0.4 प्रतिशत (02) ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति सामाजिक स्थिति को प्रभावित नहीं करती है।

निष्कर्ष

समाज में महिलाओं का स्थान पुरूषों के समान ही होना चाहिए, क्योंकि दोनों समाज रूपी रथ के दो पहिये हैं। आज महिलाएँ अपनी कार्यशीलता और शिक्षा से अबला से सबला होने का प्रयास कर रही हैं। जैसे जैसे महिलाएँ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं वैसे-वैसे उनकी सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन देखने का मिल रहे हैं।

अतः स्पष्ट है कि महिलाओं को सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन का पूर्ण अनुभव तब ही होगा जब उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दिया जायेगा। जब-जब उन्हें अवसर मिला है उन्होंने अपनी दक्षता का पूर्ण परिचय दिया है, लेकिन भारतीय समाज ने इनकी हितों को अनदेखा किया है। जिसके कारण आज भी इनकी अधिकांश जनसंख्या को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आधुनिक सामाजिक व्यवस्था और उसमें महिलाओं की समस्याओं को देखते हुए जरूरी है कि सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर इनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाय। आजादी के 70-75 वर्ष हो जाने के बाद भी इनकी सक्रियता कम ही है इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक सक्रियता के प्रति गभ्भीर प्रयास करने की आवश्यकता है। अतः महिलाओं को भी स्वयं जागरूक एवं एकजुट होने से अपने अधिकारों की प्राप्ति होगी। महिलाओं को दृढ़ संकल्पित होकर प्रयास करना होगा तथा समस्याओं का हल निकालना होगा।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

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7. देवपुरा प्रतापभल (2006- 05 मार्च) ‘महिला सशक्तिकरण में शिक्षा का महत्व’ कुरूक्षेत्र।

8. व्यास डॉ. मिनाक्षी (2008) ‘नारी चेतना और सामाजिक विधान’ रोशनी पब्लिकेशन्स, कानपुर।

9. श्रीवास्तव सुधा रानी (1999) ‘भारत में महिलाओं की वैधानिक स्थिति’ कॉमनवेल्थ पब्लिशर्स, नई दिल्ली।

10. अंसारी, एम. ए. (2001) ‘महिला और मानवाधिकार’ ज्योति प्रकाशन, जयपुर।

11. मिश्रा के. के. (1965) ‘विकास का समाजशास्त्र’ वैशाली प्रकाशन, गोरखपुर।

12. http://www.allstudyjournal.com
अंत टिप्पणी
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2. सत्यकेतु विघालंकार, ‘भारत का इतिहास’ श्री सरस्वती सदन, नई दिल्ली, 2017 पृ0 सं0 161
3. ए0 एल0 वाशम, ‘अभ्दुत भारत’ शिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी, आगरा पृ0 सं0 40
4. द्विजन्द्रनारायण झा, कृष्णमोहन श्रीमाली, ‘प्राचीन भारत का इतिहास’ हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, 2001, पृ0 सं0 232
5. डॉ0 कैलाश चन्द्र जैन, ‘भारतीय सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाएँ ’मध्य प्रदेश हिन्दी अकादमी ग्रन्थ, भोपाल, 1987 पृ0 सं0 40
6. रोमिला थापर, ‘भारत का इतिहास’ राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 1993, पृ0 सं0 85
7. नील कंठ शास्त्री, ‘ए हिस्टी ऑफ साउथ इण्डिया’ ऑक्फोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1966, पृ0 सं0 190
8. नीरज श्रीवास्तव ‘मध्यकालीन भारत प्रशासन, समाज एवं संस्कृति’ ओरिंयट ब्लैकस्वॉन, द्वितीय संस्करण, 2018 पृ0 15
9. डॉ सुष्मिता पाण्डेय, ‘सामाजिक आर्थिक व्यवस्था एवं धर्म’ मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, प्रथम संस्करण, 1991 पृ0 सं0 189
10. पाठक पी0 डी0 (2015), शिक्षा, पाठ्यचर्या और शिक्षार्थी, श्री विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा। पृष्ठ संख्या 05-10
11. अहुजा, राम (2004) सामाजिक अनुसंधान, रावत पब्लिकेशन, जयपुर।
12. ओझा एस0 के0 ‘‘अरिहन्त’’ पब्लिकेशन्स (इण्डिया) लिमिटेड (समाजशास्त्र) नेट/जे0 आर0 एफ0 कालिन्दी टी0 पी0 नगर मेरठ यूपी 250002 पेज नं0 119
13. अग्रवाल डॉ0 नीता, ‘‘फैमिली डायनैमिक्स’’ 2010 अग्रवाल पब्लिकेशन्स संजय प्लेस आगरा-2