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गोरखपुर के सामाजिक सद्भाव के विकास में हनुमान प्रसाद पोद्दार का योगदान |
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Contribution of Hanuman Prasad Poddar in the Development of Social Harmony of Gorakhpur | |||||||
Paper Id :
18463 Submission Date :
2024-02-11 Acceptance Date :
2024-02-19 Publication Date :
2024-02-24
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सारांश |
हनुमान प्रसाद पोद्दार का जन्म आश्विन कृष्ण 12, संवत 1949 वि0 (17 सितम्बर 1892) को शिलांग, आसाम में हुआ था। इनका परिवार मूलतः राजस्थान (रतनगढ़, बीकानेर स्टेट) का रहने वाला था। इनका व्यापार कलकत्ता एवं आसाम में था। बाल्यकाल में ही इनकी माता का देहान्त हो गया तथा पालन पोषण इनकी दादी ने किया। हनुमान प्रसाद पोद्दार को ‘भाईजी’ के नाम से भी जाना जाता है। गोरखपुर आने से पहले ही पोद्दार जी में सामाजिक कार्यो में अभिरूचि कलकत्ता में ही हो गयी थी। कलकत्ता में ही कुछ मारवाड़ी नवयुवकों ने मिलकर एक गुप्त समिति की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य सामाजिक सेवा करना था। इसके सदस्य के रूप में पोद्दार जी भी अपनी सेवायें दी।[1] सन् 1927 में व्यापार के कामकाज से सम्बन्ध तोड़कर बम्बई से गोरखपुर आये। उनके आने से पहले उनके मौसेरे भाई जयदयाल गोयन्दका (सेठजी) जो गीता के अनन्य प्रचारक थे, उन्होंने गीता को शुद्ध भाषा के रूप में प्रकाशित करने के उद्देश्य से सन् 1923 में गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की तथा एक आध्यात्मिक एवं धार्मिक पत्रिका ‘कल्याण’ का भी प्रकाशन इस प्रेस द्वारा प्रारम्भ हुआ था। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Hanuman Prasad Poddar was born on Ashwin Krishna 12, Samvat 1949 (17 September 1892) in Shillong, Assam. His family was originally from Rajasthan (Ratangarh, Bikaner State). His business was in Calcutta and Assam. His mother died during his childhood and he was brought up by his grandmother. Hanuman Prasad Poddar is also known as 'Bhaiji'. Even before coming to Gorakhpur, Poddar ji had developed interest in social work in Calcutta. In Calcutta itself, some Marwari youth had together established a secret committee, whose objective was to provide social service. Poddar ji also served as its member. [1] In 1927, he broke his ties with business and came to Gorakhpur from Bombay. Before his arrival, his cousin brother Jaidayal Goyandka (Sethji), who was an ardent propagator of Gita, established Gita Press in Gorakhpur in 1923 with the aim of publishing Gita in its pure language and published a spiritual and religious magazine 'Kalyan'. Publication of also started by this press. |
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मुख्य शब्द | गोरखपुर, सामाजिक, विकास, हनुमान प्रसाद, पोद्दार, योगदान। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Gorakhpur, Social, Development, Hanuman Prasad, Poddar, Contribution. | ||||||
प्रस्तावना | पोद्दार जी अपने भाई जयदयाल गोयन्दका जी के सम्पर्क में आये उन्होंने ही पोद्दार जी को गीताप्रेस एवं ‘कल्याण’ पत्रिका का कार्य देखने के लिए गोरखपुर भेजा था। सेठजी ने भाईजी को कहा था कि दो-तीन महिने रहकर सारा काम सम्हाल देना, फिर तुम चले जाना पर होना वही है जो श्री भगवान के मंगलमय विधान के अनुसार होना होता है। ‘कल्याण’ को गीताप्रेस से प्रकाशित कराने की व्यवस्था हो जाय इतने काम के लिए ही भाईजी गोरखपुर आये थे, पर प्रेस और ‘कल्याण’ का काम उत्तरोत्तर बढ़ता गया। आसक्ति या वासना वश भाई जी का मन उसी में अधिक से अधिक लगने लगा और वे गोरखपुर का ही होके रह गये।[2] ‘करी गोपाल की सब होय।’ |
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अध्ययन का उद्देश्य |
राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर हनुमान प्रसाद
पोद्दार के सामाजिक क्षेत्रों में किए गए योगदान को रेखांकित करना। |
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साहित्यावलोकन | भाई जी चरितामृत-सं0 श्याम सुन्दर दुसारी इस पुस्तक का पटना संस्करण वि0सं0-2050 (1993) में प्रकाशित
हुआ था। इसमें हनुमान प्रसाद पोद्दार (श्री भाई जी) के पदों, लेखों तथा पत्रों आदि का संकलन है जो उनके जीवन के विभिन्न
पक्षों एवं परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है। जिसका प्रकाशन गीता वाटिका प्रकाशन, गोरखपुर-273006 है। |
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मुख्य पाठ |
आज गोरखपुर की पहचान पूरे भारत एवं विश्व में गीताप्रेस के कारण भी है। गीताप्रेस का स्वरूप जो आज दिखाई दे रहा है उसमें भाईजी का बहुत बड़ा योगदान है। गीताप्रेस की स्थापना से लोगों को रामायण, गीता, महाभारत, रामचरितमानस, उपनिषद, वेद इत्यादि जो संस्कृत भाषा या अन्य भाषाओं में थेय उन्हें अनुवादित कर हिन्दी में प्रकाशित करवाने का कार्य हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने किया, जिसके कारण आम जनमानस भी इन धार्मिक एवं आध्यात्मिक ग्रन्थों का रसपान किया। ‘कल्याण’ के विशेषांकों का चयन और सम्पादन भी पोद्दार जी ने किया, जिसके कारण वंचित एवं गरीब लोग भी इन ग्रन्थों को पढ़कर अपने सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन का उन्नयन किया। गीताप्रेस तथा कल्याण के प्रति सभी वर्ग के लोगों की बड़ा सद्- भावना थी। आचार्य, साधु, महात्मा तथा सभी धर्मो के विद्वान, सरकारी, गैरसरकारी, राजनीतिक क्षेत्र की विभिन्न पार्टियां सभी ‘कल्याण’ से प्रेम करते थे। ‘‘कल्याण’ का किसी भी धर्म-सम्प्रदाय, मत-मतान्तर तथा किसी भी क्षेत्र के साधु, महात्मा, आचार्य, फकीर, पादरी आदि से कोई विरोध नही। गोरखपुर के सामाजिक सद्भाव को आगे ले जाने में ‘कल्याण’ का भी बहुत बड़ा योगदान है।[3] कट्टर सनातनधर्मी होते हुए तथा सनातन धर्म का प्रचार मुख्य उद्देश्य होने पर भी किसी भी मत-सम्प्रदाय की अच्छी बाते ‘कल्याण’ में बिना संकोच आदर सहित प्रकाशित की जाती है। विभिन्न सम्प्रदाय धर्म के लोग अपनी बात पढ़ने के लिए ‘कल्याण’ लेते है पर ‘कल्याण’ लेने पर अन्यान्य लेख भी वे पढ़ लेते है। सभी श्रेणी के लोगों में इसी से गीताप्रेस के प्रति सबकी आत्मीयता एवं ममता है। जो सामाजिक सद्भाव का एक मिशाल है जो भाईजी के अथक परिश्रम एवं लगन के कारण सम्भव हो सका। ‘कल्याण’ के बारे में भाईजी ने कहा था कि वह महात्माओं की जूठन का प्रसाद बांटा जाता है। हमारा उसमें कुछ भी नहीं है। सारा ज्ञान भगवान व्यास का उच्छिष्ट है और सब महात्मा उन्हीं व्यास के स्वरूप है। ‘कल्याण’ तो उन्हीं व्यास जी के उच्छिष्ट का ही प्रसार करता है। अपने पास, ‘कल्याण’ के पास कुछ है ही नहीं। यह सौभाग्य महात्माओं की कृपा से मुझे प्राप्त है। यह भगवान की कृपा है। ‘गीताप्रेस’ एवं ‘कल्याण’ के माध्यम से पोद्दार जी ने जो समाज के लिए अतुलनीय कार्य किया वह स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा। गीताप्रेस के द्वारा भी आध्यात्मिक, धार्मिक-ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ, पर बिना किसी योजना के अपने आप ही संयोग बनते गये।[4] योग्य से योग्य विद्वान तथा अपने विषय के अनुभवी लेखक मिलते गये प्रेरणा मिलती गयी और काम होता गया। गोरखपुर आने के पश्चात् भाईजी का गीताप्रेस और ‘कल्याण’ या अन्य किसी भी संस्था से आर्थिक सम्बन्ध नहीं रहा, न ही इन्होंने कभी किसी से एक पैसा लिया। पोद्दार जी द्वारा विभिन्न संस्थाओं की, भूकम्प, बाढ़, अकाल, अग्निकाण्ड आदि दैवी प्रकोपों से पीड़ित प्राणियों की एवं विधवा महिलाओं की सहायता करते रहते थे। यह सब उन लोगों के भाग्य से और दाताओं के भगवत्प्रेरित या स्वेच्छाप्रेरित दान से होता था।[5] पोद्दार जी महिलाओं के लिए भी बहुत सा कार्य किये। जिस समय ये गोरखपुर आये उस समय निर्धन महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय थी। उन्हें अच्छे ढंग का वस्त्र भी पहनने को नहीं मिल पा रहा था। भाईजी समय-समय पर बाढ़ एवं अकाल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर उन्हें साड़ी एवं आवश्यक वस्तुओं का वितरण करते थे। इन्होंने धनी महिलाओं के बारे में कहा था- ‘‘यदि हमारी बहने चार-पाँच सौ की साड़ी न पहनकर, तीस-चालीस रूपये की साड़ियां पहन ले और जो बचे उसमें वे पॉच-छः रूपये मूल्य वाली साड़ियाँ खरीदकर पचासों बहनों को पहना दे तो कितना अच्छा हो ! देश की एक भी बहन नंगी न रहे। बढ़िया कीमती कपड़े पहनना पाप है।’’[6] सन् 1956 में भाईजी लगभग 600 व्यक्तियों जिसमें समाज के लगभग सभी वर्गो के लोग सम्मिलित थेय के साथ स्पेशल टेªन दादर सम्पूर्ण भारत की तीर्थयात्रा पर गये थे। जिससे यहाँ के लोगों को समाज के प्रति एक समरसता का सन्देश दिया। भाईजी शूद्र और अन्त्यज जातियों के लिए भी कहा था कि उनके साथ बैठकर भोजन करने या सत्संग करने में कोई भेद-भाव नहीं है। बशर्ते वह अपना जो कार्य है (मांस खाना और चमड़े का कार्य) वह छोड़ दे। वह कहते थे कि मन्दिरों में प्रवेश से कुछ होने वाला नही है। इनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कार्य किया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में वह गांधीजी से भी समय-समय पर पत्र व्यवहार किया करते थे। भाईजी हमेशा प्रवचन एवं सत्संग के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों के प्रति लोगों को जागरूक किया करते थे तथा उनकी आध्यात्मिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए निरन्तर कार्यशील बने रहे।[7] गोरखपुर में कई सार्वजनिक संस्थाएं बनी उसमें भी भाईजी का योगदान सराहनीय रहा। कुष्ठ सेवाश्रम और मुक-बधिर विद्यालय में इनका विशेष सहयोग रहा है। इसके अतिरिक्त एक अखिल-भारतीय संस्था बनी। ‘भारतीय चतुर्धाम वेद-भवन-न्यास’ इस संस्था के संयुक्त मंत्री का दायित्व भी भाईजी ने निभाया। गो-रक्षा के लिए भाईजी पहले से ही सचेष्ट थे। सन् 1966 के गो-रक्षा आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। गोरक्षा-आन्दोलन से जुड़े सभी महापुरूषों को एक मंच पर लाना तथा उसके लिए अर्थव्यवस्था करने का श्रेय भाईजी को ही है।[8] पोद्दार जी गोरखपुर के सामाजिक सौहार्द के लिए जिसे आज हम गीता वाटिका के नाम से जानते है, उसकी स्थापना की। पहले यह गोयन्दका गार्डेन के नाम से भी जानी जाती थी। गीता वाटिका की भूमि 30 मई 1933 को सेठ ताराचन्द्र घनश्याम दास जी (कलकत्ता) से खरीदी गई। भाईजी के रहने के लिए सन् 1934-35 में कोठी (वर्तमान पावन कक्ष) का निर्माण हुआ। इससे पहले पोद्दार जी गोरखनाथ मन्दिर के पास कान्तिबाबू के बागीचे में रहते थे। सन् 1939 ई0 जून मास में भाईजी श्रीराधा बाबा से दीक्षा ली। उसके पश्चात् पोद्दार जी और श्रीराधा बाबा साथ ही साथ यहाँ रहने लगे। सन् 1968 में पोद्दार जी ने राधाष्टमी के दिन से ‘अखण्ड हरिनाम संकीर्तन’ प्रारम्भ करवाया जो अनवरत् चला आ रहा है। वर्तमान संकीर्तन मण्डल का निर्माण सन् 1995-1996 में हुआ।9 पोद्दार जी ने 22 मार्च 1971 को महाप्रयाण गीतावाटिक में ही किया।[10] गीता वाटिका में श्री गिरिराज-परिक्रमा का शुभारम्भ पूज्य बाबा द्वारा पोद्दार जी के जन्म दिवस अश्विन कृष्ण द्वादशी (12 दिसम्बर, 1965) को किया गया।[11] पोद्दार जी के पावन स्मृति में सन् 1974 में हनुमान प्रसाद पोद्दार स्मारक समिति का गठन हुआ। समिति के दो प्रमुख प्रकल्प है। (1) हनुमान प्रसाद कैंसर अस्पताल एवं शोध संस्थान (2) श्रीराधा-कृष्ण साधना केन्द्र। श्रीराधा-कृष्ण साधना केन्द्र प्रकल्प के अन्तर्गत ही पावन समाधि, श्रीराधा-कृष्ण साधना मन्दिर, नेह निकुंज, अखण्ड हरिनाम संकीर्तन एवं श्रीकृष्ण गोशाला का संचालन भी किया जा रहा है। श्रीराधाष्टमी महोत्सव गीता वाटिका में मनाये जाने वाले उत्सवों में सबसे प्रमुख है। सन् 1945 से अद्यावधि श्रीराधाष्टमी महोत्सव भव्य रूप से मनाया जा रहा है। मन्दिर के भूतल में कथा सभागार है, जहाँ समय-समय पर कथा-प्रवचन के विविध कार्यक्रम होते रहते हैं और लोग उससे लाभान्वित होते है। सभागार के पार्श्व में श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ‘प्राच्च शोध संस्थान’ एवं ग्रन्थालय भी स्थापित है। जो वर्तमान के युवा पीढ़ी को पोद्दार जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालने के साथ-साथ यहॉ के लोगों के सामाजिक एवं आध्यात्मिक उन्नयन में भी अग्रसारित है। श्रीराधा-कृष्ण मन्दिर का निर्माण ‘नागर शैली’ में हुआ है। इसके आर्किटेक्ट अहमदाबाद निवासी श्री सी0बी0 सोमपुरा है। मन्दिर का शिलान्यास भाईजी की धर्मपत्नी श्रीमती रामदेई पोद्दार के कर कमलों द्वारा 13 दिसम्बर 1975 को हुआ। मन्दिर में छोटे-बड़े कुल 16 गर्भगृह है तथा छोटे-बड़े 35 शिखर है। भाईजी के उदार समन्यवादी दृष्टिकोण के अनुरूप हिन्दू समाज मंे प्रचलित प्रायः सभी प्रमुख सम्प्रदायों के उपास्य विग्रहों की प्रतिष्ठा की गयी है। आज पोद्दार जी द्वारा दी गयी अमूल्य सेवा का ही देन है कि गीताप्रेस, ‘कल्याण’, ‘कल्याण तरू’ (पत्रिका), गीता वाटिका तथा हनुमान प्रसाद पोद्दार हास्पिटल से समाज सेवा के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द बढ़ाने का कार्य भी हो रहा है। |
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निष्कर्ष |
पोद्दार जी का समाज सेवा तथा साधना दोनों ही महत्वपूर्ण रही हैं ये भारतीय वांगमय एवं चिन्तन धारा के विद्वान व्याख्याता थे, अपितु एक कुशल साहित्यकार, प्रभावी वक्ता, महान कर्मयोगी, आदर्श समाजसेवी एवं परमसिद्ध गृहस्थ संत के रूप में समादृत थे। भाईजी रोगियों, विकलांगो, अनाथों और विधवाओं के अवलम्ब, कुष्ठ रोगियों एवं बाढ़ पीड़ितों के संरक्षक तथा दरिद्र नारायण के अकिंचन सेवक के रूप में सर्वविदित थे। सभी धर्मो को आदर देते हुए वे हिन्दू आदर्शो के अनन्य पुजारी थे। श्रीराम-जन्मभूमि, अयोध्या एवं श्री कृष्ण-जन्मभूमि मथुरा के उद्धार में प्रमुख सहयोग दिया। ‘राय बहादुर’, ‘सर’ एवं ‘‘भारत रत्न’’ जैसी राजकीय उपाधियों के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया। गृहस्थ संत पोद्दार जी गोरखपुर के साथ-साथ राष्ट्र के सामाजिक सौहार्द के योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। आज उनके न रहने पर भी उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं के माध्यम से समाजसेवा एवं सामाजिक सौहार्द बढ़ाये जाने वाले कार्य निरन्तर किए जा रहे है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. श्याम सुन्दर दुजारी (सं0) भाई जी-चरितामृत पृष्ठ-18 2. श्याम सुन्दर दुजारी (सं0) भाई जी-चरितामृत, पृष्ठ - 66 3. श्याम सुन्दर दुजारी (सं0), पूर्वोक्त पृष्ठ - 86 4. श्याम सुन्दर दुजारी (सं0), पूर्वोक्त पृष्ठ - 95 5. भाई जी का लिखा हुआ पत्र 5 अगस्त 1934 6. भाई जी का डालमिया दादरी को लिखा पत्र 11 दिसम्बर 1939 7. गीताप्रेस, गोरखपुर 13 मई 1956 (पूज्य श्री जोशी जी महाराज को लिखा पत्र) 8. राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद को लिखा गया पत्र 30 जनवरी 1953 9. गीता वाटिका में अंकित शिलालेख 10. गीता वाटिका में अंकित शिलालेख 11. गीता वाटिका के कार्यालय प्रमुख गंगा प्रसाद पाण्डेय जी द्वारा उपलब्ध कराया गया हस्तलिखित दस्तावेज। |