P: ISSN No. 2231-0045 RNI No.  UPBIL/2012/55438 VOL.- X , ISSUE- III February  - 2022
E: ISSN No. 2349-9435 Periodic Research
निरन्तर बढ़ती ऊर्जा माँग और राजस्थान में सौर ऊर्जा की संभावनाएं: जोधपुर संभाग के संदर्भ में विशेष अध्ययन
The Ever-increasing Energy Demand and The Potential of Solar Energy in Rajasthan: Special Reference to Jodhpur Division
Paper Id :  15894   Submission Date :  2022-02-12   Acceptance Date :  2022-02-20   Publication Date :  2022-02-25
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मुकेश कुमार घोसलिया
शोधार्थी
भूगोल विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
राजस्थान,जयपुर
भारत
इन्द्राज गुर्जर
प्राध्यापक
शिक्षा विभाग
राजस्थान सरकार
जयपुर, राजस्थान, भारत
सारांश
ऊर्जा विज्ञान के शब्दों में कार्य करने की वह क्षमता है जो भौतिक और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करती है। ऊर्जा किसी भी देश के लिए विकास रूपी गाड़ी का इंजन होती है, जिसके सहारे विकास प्रक्रिया आगे बढ़ती है। किसी देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत वहां के जीवन स्तर का सूचक होती है। अभी भी विश्व के अनेक देशों से भारत पिछड़ा हुआ है। औद्योगीकरण, कृषि विकास तथा तीव्र आर्थिक गतिविधियों के लिए ऊर्जा आपूर्ति एक नवीन चुनौती है। विश्व इस चुनौती का समाधान नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों में देखता है। भारत में नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों को तलाशना अति आवश्यक है। इसके लिए ऊर्जा उत्पादन के उन असीमित स्रोतों पर ध्यान केन्द्रीत करना होगा जो कभी भी समाप्त नहीं होने वाले है। प्रस्तुत शोध पत्र में राजस्थान के नव्यकरणीय ऊर्जा की संभावना वाला क्षेत्र जोधपुर संभाग का अध्ययन किया गया है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Energy, in scientific terms, is the ability to do work that ensures physical and economic growth. Energy is the engine of development vehicle for any country, with the help of which the development process moves forward. Per capita energy consumption in a country is an indicator of its standard of living. India is still lagging behind many countries of the world. Energy supply is a new challenge for industrialization, agricultural development and rapid economic activity. The world sees a solution to this challenge in renewable energy sources. It is very important to find renewable energy sources in India. For this, attention has to be focused on those unlimited sources of energy production which are never going to end. In the present research paper, the Jodhpur division of Rajasthan's renewable energy potential area has been studied.
मुख्य शब्द आर्थिक विकास, समानिकृत लागत, ऊर्जा आपूर्ति, नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोत, फोटोवोल्टिक विधि, सीज, सोलर पार्क, पीएम कुसुम योजना ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Economic Development, Equitable Cost, Energy Supply, Renewable Energy Sources, Photovoltaic Method, SEZ, Solar Park, PM Kusum Yojana.
प्रस्तावना
ऊर्जा विज्ञान के शब्दों में कार्य करने की वह क्षमता है जो भौतिक और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करती है। ऊर्जा किसी भी देश के लिए विकास रूपी गाड़ी का इंजन होती है, जिसके सहारे विकास प्रक्रिया आगे बढ़ती है। समाज के हर क्षेत्र उद्योग, व्यापार, कृषि, परिवहन, आवास आदि सबके लिए ऊर्जा नितांत आवश्यक है। मौजूदा व्यापारिक और औद्योगिक अर्थव्यवस्था का मूल आधार ही ऊर्जा है। आर्थिक विकास की बुनियादी जरूरतों के साथ विकसित होते औद्योगिक समाज का समस्त ढांचा ऊर्जा उपलब्धता पर टिका है। किसी देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत वहां के जीवन स्तर का सूचक होती है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो विश्व के तमाम देशों से भारत काफी पिछे है। देश की आबादी पिछड़ेपन से जूझ रही है। लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए हमारी आवश्यकताऐं भी बढ़ रही है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमें औद्योगीकरण और कृषि विकास की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। तीव्र आर्थिक गतिविधियों के बीच ऊर्जा आपूर्ति एक नवीन चुनौती के रूप में हमारे सामने खडी है। जैसे-जैसे विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे हमारी जरूरते तेजी से बढ़ती जा रही हैं। विश्व में नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता में अत्यधिक विषमता है। सौभाग्य से भारत में इन स्रोतों की अधिकता है। आज ऊर्जा क्षेत्र में सबसे बड़ा संकट यह है कि ऊर्जा के परम्परागत स्रोत सीमित है। विश्व के सभी भागों में मशीनीकरण के बढ़ते ऊर्जा उपयोग में वृद्धि हो रही है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष ऊर्जा की खपत 2 प्रतिशत बढ़ रही है। यदि यह वृद्धि इसी तरह जारी रही तो सन् 2030 तक पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस का अभुतपूर्व संकट उत्पन्न हो जायेगा। विकास की तेज गति का नतीजा है कि पिछले दो दशकों में विश्व ऊर्जा उत्पादन में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि विकासशील देशों में 1970 से 2004 के बीच ऊर्जा उपभोग में 9 गुना वृद्धि हुई है। पी प्यूटनम ने बताया की औद्योगिकरण के बाद विश्व की ऊर्जा आवश्यकता 20 गुना बढ़ गई है। लगातार दोहन से परम्परागत स्रोतों का एक न एक दिन समाप्त होना तय है, क्योंकि जैविक ईधन (कोयला, पैट्रोलियम) के भण्डार सीमित हैं एवं इनकी निर्माण प्रक्रिया करोड़ों वर्षों में पूरी होती है। ऐसे में ऊर्जा उत्पादन के गैर-परम्परागत स्रोतों का विकास समय की आवश्यकता है। इसके लिए ऊर्जा उत्पादन के उन असीमित स्रोतों पर ध्यान केन्द्रीत करना होगा जो कभी भी समाप्त नहीं होने वाले है। पुनरोपयोगी ऊर्जा स्रोतों का महत्व हमारे देश में 1970 के दशक की शुरूआत में समझा गया। भारत में पूरे वर्ष में प्रकाश की उपलब्धता 250 से 300 दिनों तक है। भारत में नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता देशभर में है। दूर-दराज के इलाकों में इन ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता का लाभ यह है कि ऊर्जा की स्थानीय जरूरतों को आसानी से पूरा किया जा सकता है। ये पर्यावरण के अनुकूल है तथा न्यूनतम प्रचालन लागत में इनकी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है। अध्ययन क्षेत्र का परिचय जोधपुर संभाग राजस्थान प्रदेश के पश्चिमी भाग में अवस्थित है जिसमें छः जिलों जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, पाली और सिरोही को सम्मलित हैं। इसके उत्तर-पश्चिम व पश्चिम में पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा, दक्षिण में गुजरात के साथ अन्तर्राज्यीय सीमा व उदयपुर, पूर्व में राजसमंद और अजमेर, उत्तर में नागौर व बीकानेर जिले की सीमा लगती है। जोधपुर संभाग का अक्षांशीय विस्तार 24˚20’ उत्तरी अक्षांश से 28˚23’ उत्तरी अक्षांश तक एवं देशान्तरीय विस्तार 69˚20’ पूर्वी देशान्तर से 74˚18’ पूर्वी देशान्तर तक है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 117801 वर्ग किमी है। इस संभाग की कुल जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार 1,18,63,484 व्यक्ति हैं, जिसमें से 23,55,891 व्यक्ति नगरीय क्षेत्रों में तथा 9507593 व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। संभाग का जनसंख्या घनत्व 101 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी है जो राज्य के औसत घनत्व से लगभग आधा है। फिर भी बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप पिछले दो दशकों में ऊर्जा खपत में बढ़ोतरी हुई है। इस प्रकार बढ़ती ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता है। क्योंकि अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत एक सीमित सीमा तक है। जोधपुर संभाग में जिनको भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित कर उनके नये विकल्प नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों यथा - सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस आदि की महती भूमिका हो सकती है।
अध्ययन का उद्देश्य
1. अध्ययन क्षेत्र में सौर ऊर्जा की उत्पादन की संभाव्यता का आंकलन करना। 2. क्षेत्र में विभिन्न उपयोगों के लिए ऊर्जा की हो रही खपत का आंकलन करना। 3. सतत् विकास के लिए क्षेत्र में नव्यकरणीय ऊर्जा संसाधनों के विकास का प्रारूप तैयार करना।
साहित्यावलोकन
सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी को निष्क्रिय और सक्रिय, तापीय और फोटोवोल्टिक तथा केन्द्रित और अकेन्द्रित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है। निष्क्रिय सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी सूर्य की गर्मी को अन्य रूपों में बदले बिना ही ऊर्जा उत्पादन होता है, उदाहरण के लिए इमारतों को डिजायन कर दिन की रोशनी का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जाता है (ब्र्रेडफोर्ड, 2006 व चीरस, 2000)। इसके विपरीत सक्रिय सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी सौर ऊर्जा दोहन के अनुप्रयोगों के संदर्भ में फोटोवोल्टिक और सौर तापीय दो समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में सूर्य का प्रकाश अर्द्ध-चालक सामग्री पर गिरता है तो इलेक्ट्रोन उत्तेजित हो जाते हैं तथा चालकता की दृढ़ता बढ़ जाती है (सोरेनसेन, 2000)। सौर ताप संग्राहको को स्थापित करने के लिए उपयुक्त स्थानों पर कम से कम 2000 किलोवाट प्रति मीटर/वर्ष सूर्य की विकिरण प्राप्त होनी चाहिए। ये स्थल पृथ्वी पर 400 उत्तरी और दक्षिण अक्षांशों के मध्य अवस्थित होते हैं। सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्रों में दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका, मध्य और दक्षिण अमेरिका, उतरी और दक्षिणी अफ्रीका, यूरोप के भू-मध्य सागर तटीय प्रदेश, मध्य-पूर्व ईरान और भारत-पाकिस्तान के मरूस्थलीय मैदान, चीन, आस्ट्रेलिया प्रमुख हैं (अरिन घोप, 2005)। सौर ऊर्जा नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सबसे प्रमुख स्रोत के रूप में प्रतिनिधित्व करता है। प्रभावी सौर विकिरण पृथ्वी की सतह पर उच्च अक्षांशों पर लगभग 0.06 किलोवाट/मीटर2 से निम्न अक्षांशों पर 0.25 किलोवाट/मीटर2 तक के विस्तार में पहुँचता है। एक क्षेत्रीय आधार पर मूल्यांकन किया जाये तो यह ज्ञात होता है कि विश्व के सौर ऊर्जा की अधिकतम सम्भावना वाले क्षेत्रों में वर्तमान में कुल प्राथमिक ऊर्जा खपत की तुलना में कई गुना अधिक है। यहां अक्षय ऊर्जा के विकल्प के रूप में सौर ऊर्जा की अधिकतम सम्भावनाऐं हैं (डी. वरियस, 2007)। यदि विश्व के रेगिस्तानों के 4 प्रतिशत भू-भाग पर फोटोवोल्टिक सेल स्थापित की जाये तो दूनिया की वर्तमान ऊर्जा खपत की पूर्ति के लिए पर्याप्त बिजली का उत्पादन होगा (कुरोकवा, 2007)। फोटोवोल्टिक विधि से विद्युत उत्पादन की दो प्रौद्योगिकी वर्तमान में बाजार में उपलब्ध है। सौर तापीय गैर-विद्युत और दूसरा सौर तापीय विद्युत, इसमें पूर्व के अनुप्रयोगों अनाज सुखाने के रूप में, सोलर वाटर हीटर, सौर हवा हीटर, सौर शीतलन प्रणाली और सोलर कुकर आदि भी सम्मलित किया जाता है (वेइस, 2009)। सन् 2000 के बाद सौर ऊर्जा बाजार में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। सन् 2000 से 2010 के बीच सौर आधारित बिजली उत्पादन क्षमता में कुल स्थापित क्षमता से 40 गीगावाट से भी अधिक की वृद्धि हुई है (रैन, 2011)। वर्तमान मोदी सरकार की मनसा है कि बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सन् 2022 तक नव्यकरण ऊर्जा स्रोतों की उत्पादन क्षमता 48,000 मेगावाट से 100,000 मेगावाट तक बढ़ायी जायेगी, इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए चीन, जापान, जर्मनी और अमेरिका की कम्पनीयों को निवेश के लिए आमंत्रण किया जायेगा (दास व गोपीनाथ, 2015)। विश्वभर में उच्च ऊर्जा की माँग को पूरा करने में फोटोवोल्टिक ऊर्जा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अक्षय ऊर्जा बाजार में फोटोवोल्टिक ऊर्जा की भागीदारी बढ़ाने के लिए सबसे पहले इसके लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, साथ ही नई प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास को बढ़ाने के लिए विश्व स्तर पर प्रयास करना है। क्रिस्टल सिलिकाॅन सौर सेल की कोशिकाओं को विकसित किया गया है। जो उत्पादन की लागत में कमी अधिक दक्षता के साथ कार्य करे। सौर ऊर्जा के लिए प्रोत्साहन और ऐसी प्रौद्योगिकीयों की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में गहन अध्ययन से सम्बन्धित भविष्य के अनुसंधान की आवश्यकता है। (Sanpaia and Gonzalcz, 2017) "मैंने मुख्यमंत्री के रूप में अपने प्रथम कार्यकाल में राजस्थान में पवन ऊर्जा की सम्भावनाओं को पहचान कर इस दिशा में शुरूआत की थी। आज राज्य में लगभग 4500 मेगावाट पवन ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। हमारी सरकार पवन और सौर ऊर्जा नीति को बेहतर बनाएगी" (गहलोत, अशोक 2019)। जैसे-जैसे सौर फोटोवोल्टिक ऊर्जा बाजार में तेजी आऐगी, वैसे-वैसे फोटोवोल्टिक (पी.वी.) अपशिष्ट की मात्रा में वृद्धि होना शुरू हो जाऐगी। इलेक्ट्रिक वाहनों में काम आने वाली लिथियम-आयन बैटरी के लिए भी यही पूर्वानुमान है। अतः सौर पी. वी. के उत्पादन डिजाइन से लेकर उत्पाद के अन्तिम जीवन तक पर ‘‘अत्याधुनिक’’ अनुसंधान की व्यवस्थित रूप से समीक्षा करना है, जिससे रणनीतियों को लागू किया जा सकता है। (Franco and Groesser Stefan, 2021)
सामग्री और क्रियाविधि
शोध-पत्र के लिए आंकड़ों का संग्रहण प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों से किया गया है। प्राथमिक स्रोतों के अन्तर्गत साक्षात्कार, अनुसूची, परिचर्चा विधियों से एकत्रित किये गये। द्वितीयक आंकडे़ विभिन्न सरकारी व अर्द्ध-सरकारी प्रकाशन, प्रलेख, समाचार पत्र पत्रिकाओं एवं अप्रकाशित स्रोतों से एकत्रित किये गये। जिनमें जनसंख्या के आंकड़ों का संग्रहण आर्थिक एवं सांख्यिकीय निदेशालय, जयपुर से लिये गये हैं। भारतीय मौसम विभाग कार्यालय, पश्चिमी वृत्त, जयपुर से संभाग के भौगोलिक एवं मौसमी जानकारी का उपयोग किया गया है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कर संभाग में नवीन एवं नवीकरण ऊर्जा संसाधनों का अध्ययन किया गया है।
विश्लेषण

समानिकृत लागत
विभिन्न तकनीकों से विद्युत उत्पादन में लगने वाली लागत समानिकृत लागत कहलती है। इसे ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है -

सूत्र में-

  • LCOE  =     levelized cost of electricity
  • OC      =      is the overnight construction cost (or investment without accounting for interest payments during construction)
  • OMC   =     is the series of anmualized operation and maintenance (O & M) costs
  • FC       =     is the series of annualized fuel costs
  • CRF    =     is the capital recovery factor
  • CF       =    is the capacity factor
  • R         =    is the discount rate   
  • T         =     is the economic life of the plant

सौर ऊर्जा
राजस्थान में प्रतिवर्ग किलोमीटर 6-7 किलोवाट सौर ऊर्जा उपलब्ध है। राजस्थान में नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार के आंकलन के अनुसार सौर स्रोतों से 142 गीगावाट सौर ऊर्जा बनाने की क्षमता है। राज्य सरकार द्वारा निवेशकों के अनुकूल राजस्थान सौर ऊर्जा नीति, 2019 जारी की गई, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में 31 जनवरी 2022 तक 10000 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जा चुके हैं।
राजस्थान के पश्चिमी मरूस्थली जिलों में सौर ऊर्जा के विकास की असीम सम्भावनाऐं विद्यमान हैं, जिनके दोहन हेतु भरसक प्रयत्न किये जा रहे हैं। सूर्य नगरी के नाम से प्रसिद्ध जोधपुर वर्ष भर सूर्याताप की अत्यधिक मात्रा प्राप्त करता है। राज्य के पश्चिमी जिले प्रति वर्ग मीटर 5.8 से 6.4 किलोवाट सौर ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इस सौर ऊर्जा को ताप ऊर्जा में बदलने के लिए राजस्थान में गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के लिये आंवटित कुल वार्षिक योजना राशि का बहुत बड़ा हिस्सा व्यय किया जा रहा है। राजस्थान देश का प्रथम राज्य है जिसे ‘जवाहरलाल नेहरू सौर ऊर्जा मिशन’ के 1100 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन में से 994 मेगावाट बिजली का लक्ष्य मिला है। रिलांयस इण्डस्ट्रीज ने निजी क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी सौर परियोजना में 1.67 मेगावाट विद्युत का उत्पादन नागौर में खींवसर में आरम्भ हो गया है। 10 जुलाई 2010 को रिलायंस और पार सोलर कम्पनी को राज्य सरकार ने 5-5 मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजना की स्वीकृत किया गया।
भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन
 वर्तमान में भारत की कुल उत्पादन क्षमता लगभग 3.7 लाख मेगावाॅट है। जिसमें सौर ऊर्जा का योगदान 45.6 हजार मेेगावाॅट है। अर्थात 12.32 प्रतिशत सौर ऊर्जा का हिस्सा है। सारणी 1 एवं आरेख में भारत के सौर ऊर्जा उत्पादन को प्रदर्शित किया गया है। सौर ऊर्जा उत्पादन में राजस्थान का प्रथम स्थान है तथा इसके पश्चात क्रमशः कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडू आन्ध्रप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, महाराष्ट,ª उतरप्रदेश व पंजाब का स्थान है। भारत सरकार ने वर्ष 2022 के अन्त तक सौर ऊर्जा का लक्ष्य 100 गीगावाॅट है, इस लक्ष्य की प्राप्ति अभी 50 प्रतिशत ही हो सकी है।  


आरेख 1: भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन परिदृश्य (सन् 2021)


स्रोत: शोधार्थी द्वारा निर्मित आरेख।
राजस्थान में सौर ऊर्जा उत्पादन
राजस्थान अक्षय ऊर्जा उत्पादन तीव्रता से बढ़ रहा है। प्रशासनिक एवं प्रगति प्रतिवेदन 2021-22, राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के अनुसार राज्य में वर्ष 2011-12 में 193.5 मेगावाॅट सौर ऊर्जा का उत्पादन हुआ। यह उत्पादन 10 वर्षों में बढ़कर 7738 मेगावाॅट हो गई।
आरेख 1 राजस्थान में सौर ऊर्जा की संकलित कुल स्थापित क्षमता

स्रोत: शोधार्थी द्वारा निर्मित आरेख।
आरेख 3 का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि राजस्थान में सौर ऊर्जा उत्पादन आंशिक उतार-चढ़ाव के साथ बढ़ा है।
आरेख 2 राजस्थान में वित्तीय वर्ष के अनुसार स्थापित सौर ऊर्जा

    

सीज (SEEZ)
जोधपुर, जैसलमेर एवं बाड़मेर जिलों में सौर ऊर्जा के विकास की विपुल संभावनाओं को देखते हुए जहाँ वर्षा न्यून होती है वहाँ विशेष जोन स्थापित किये गये, जिसे सीज की संज्ञा दी गयी। सीज का पूरा नाम ‘‘सौर ऊर्जा उपक्रम क्षेत्र’’ (सोलर एनर्जी एन्टरप्राइज जोन- Solar Energy Enterprise Zone) है। एमको एनराज के अध्ययन के अनुसार ‘‘थार की भूमि और आकाश’’ में इतनी अधिक शक्ति है कि मात्र 5 प्रतिशत भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगा दिये जाए तो पूरे देश की विद्युत समस्या का हल हो सकता है।
सीज में स्थापित सोलर संयंत्र
इस क्षेत्र में कुल 5,410 मेगावाट क्षमता के निम्न 6 सोलर पार्कों को सैद्धान्तिक स्वीकृति प्रदान की गई है -
1. भड़ला सोलर पार्क फेज द्वितीय में 680 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जा चुके हैं।
2. भड़ला सोलर पार्क फेज तृतीय का विकास सुराज द्वारा किया गया है जिसमें 800 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जा चुके हैं।
3. भड़ला सोलर पार्क फेज चतुर्थ का विकास मैसर्स अढ़ानी कम्पनी द्वारा किया जाकर 500 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा के संयंत्र लगाये जा चुके हैं।
4. फलौदी-पोकरण सोलर पार्क (750 मेगावाट) का विकास मैसर्स एसेल लि. द्वारा किया जा रहा है।
5. फतेहगढ़ फेज-1बी (1500 मेगावाट का विकास मैसर्स अढ़ानी लि. द्वारा किया जा रहा है।
6. नोखा सोलर पार्क (980 मेगावाट) का विकास राजस्थान सोलर पार्क डवलपमेंट कम्पनी द्वारा किया जा रहा है।
सीज के लिए तीन अन्य परियोजनाओं, जिसकी कुल क्षमता 300 मेगावाट है, का चयन किया गया है यथा -
(अ) एनरजन इन्टरनेशनल कम्पनी, नई दिल्ली द्वारा सीज क्षेत्र में जैसलमेर के समीप 200 मेगावाट क्षमता का एक विद्युत उत्पादन संयंत्र स्थापित किया गया है।
(ब) सनसोर्स इण्डिया लिमिटेड के द्वारा आगोरिया गांव शिव तहसील (बाड़मेर) में 50 मेगावाट की क्षमता की इकाई स्थापित की है।
(स) एमको-एनरान सोलर पावर कम्पनी जैसलमेर जिले में सोनू गांव के निकट 50 मेगावाट की क्षमता की इकाई स्थापित कर रहा है।
इनके साथ-साथ जालौर, सिरोही, पाली जिलों में रिलायंस पावर की ओर से पावर प्लांट लगाने की शुरूआत की जा रही है। एशियाई विकास बैंक के द्वारा रिलायंस पावर को राजस्थान में 40 मेगावाट की क्षमता की दहानू सौर बिजली परियोजना (जैसलमेर) के लिए 4.8 डाॅलर (250 करोड़ रु.) का दीर्घकालीन ऋण प्रदान किया गया है। 17 मई, 2011 को बीकानेर से 24 किमी दूर भैरू खीरा गांव में एशिया के पहले सोलर थर्मल पावर प्लांट में बिजली उत्पादन प्रारम्भ हो गया है।
पीएम कुसुम योजना
यह केन्द्र सरकार की योजना है, जिसका क्रियान्वयन राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम द्वारा किया जा रहा है। जिसके तहत 33/11 किलोवाॅट सब स्टेशनों की 5 किलोमीटर परिधि में स्थित किसानों की बंजर(अनुपयोगी) भूमि पर 0.5 मेगावाॅट सेे 2 मेगावाॅट क्षमता तक के ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जा रहे हैं। राजस्थान में दिसम्बर 2021 तक 12.5 मेगावाॅट क्षमता 11 संयंत्र स्थापित किये जा चुके हैं।

जाँच - परिणाम वर्तमान में किसी देश के भौतिक एवं आर्थिक विकास की सुनिश्चितता के लिए नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों को तलाश कर उनका विकास करना अति आवश्यक हो गया है।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में किसी देश के भौतिक एवं आर्थिक विकास की सुनिश्चितता के लिए नव्यकरणीय ऊर्जा स्रोतों यथा - सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस आदि को तलाश कर उनका विकास करना अति आवश्यक हो गया है। पश्चिमी राजस्थान में नव्यकरणीय ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं, अभी तक जिनका आंशिक विकास हुआ है। सतत् विकास के लिए ऊर्जा की आपूर्ति हेतु सरकार तथा निजी क्षेत्र को संयुक्त रूप से निवेश किया जाना चाहिए।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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