ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- II March  - 2022
Innovation The Research Concept
भारत की विदेश नीति, अतीत से वर्तमान तक
Foreign Policy of India, Past to Present
Paper Id :  15871   Submission Date :  2022-03-10   Acceptance Date :  2022-03-19   Publication Date :  2022-03-25
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शैल श्रीवास्तव
एसोसिएट प्रोफेसर
राजनीति शास्त्र विभाग
गवर्नमेंट गर्ल्स पी0 जी0 कॉलेज
इंदौर ,मध्य प्रदेश, भारत
सारांश
विदेश नीति एक ढाँचा है जिसके भीतर किसी देश की सरकार बाहरी दुनिया के साथ अपने संबंधों को द्विपक्षीय क्षेत्रीय और बहुपक्षीय रूप से संचालित करती है।किसी भी देश की विदेश नीति का मूल उद्देश्य अपने राष्ट्रीहितोंकी सुरक्षा करना है। भारत के परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा,आतंकवाद से मुकाबला,ऊर्जासुरक्षा, साइबर सुरक्षा तथा स्वयं को महाशक्ति के रूप मे स्थापित करना आदि जैसे महतव्पूर्ण मुद्दे शामिल है।अतः समय की मांग है कि भारत भी अपनी कोमल छवि से बाहर निकले और अपनी विदेश नीति के आदर्शों पर भी चलते हुए यथार्तता के धरातल पर भी काम करे। भारत की वर्तमान सरकार ने देश के राष्ट्रीय हितों को दृष्टिगत रखते हुए भारत की विदेश नीति में बदलाव के स्पष्ट संकेत दिए हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Foreign policy is the framework within which a country's government conducts its relations with the outside world, both bilaterally, regionally and multilaterally. The basic objective of foreign policy of any country is to safeguard its national interests. India's perspective includes important issues such as protecting territorial integrity, combating terrorism, energy security, cyber security and establishing itself as a superpower, etc. Therefore, the need of the hour is that India should also come out of its soft image and start its foreign affairs. While working on the ideals of policy also work on the ground of reality. Keeping in view the national interests of the country, the present government of India has given clear indications of changes in India's foreign policy.
मुख्य शब्द विदेश नीति, आतंकवाद, ऊर्जासुरक्षा, साइबर सुरक्षा, महाशक्ति ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Foreign Policy, Terrorism, Energy Security, Cyber Security, Superpowers.
प्रस्तावना
प्रत्येक स्वतंत्र तथा संप्रभु राष्ट्र की विदेश नीति का उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना, उनका संवर्धन करना एवं वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करना होता है। आधुनिक युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है। विश्व के सभी राष्ट्र एक दूसरे पर इतने अधिक निर्भर होते जा रहे है कि पूरा विश्व एक गांव के रूप में सिमटता जा रहा है। बावजूद इसके प्रत्येक स्वतंत्र तथा संप्रभुता सम्पन्न राष्ट्र अपनी विदेश नीति के माध्यम से अपने राष्ट्र के हितों को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयत्नरत रहता है। राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीयता दोनों के बीच का प्रत्येक राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का संचालन कर रहा है। इन सब में विदेश नीति की महती भूमिका रहती है। जॉज मोडेलस्की के अनुसार- 'विदेश नीति राज्यों की गतिविधियों का वह व्यवस्थित और विकसित रूप है, जिनके माध्यम से कोई राज्य दूसरे राज्यों के व्यवहार को अपने अनुकूल बनाने या अपने व्यवहार को अन्तर्राष्ट्रीयत परिस्थितियों के अनुरूप ढालने का प्रयास करता है।'
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य भारत की विदेश नीति का अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन
किसी भी देश की विदेश नीति के निर्धारण में उस देश का भूगोल, जनसंख्या, संस्कृति, प्राकृतिक संसाधन, नेतृत्व, विचारधारा, तकनीक, कूटनीति, सैन्य बल आदि तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत की विदेश नीति भी उक्त तत्वों से अछूती नहीं है।
मुख्य पाठ

भारत की विदेश नीतिविभिन्न चरण
निरन्तरता और परिवर्तन की दोनों विशेषताऐं भारत की विदेश नीति में साथ-साथ चलती रही है। प्रारंभ से ही भारत की विदेश नीति तरह-तरह की अग्निपरीक्षाओं से गुजरती रही। मुख्यतः इसकी गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर प्रारंभ से ही महाशक्तियों द्वारा प्रश्नचिह्न लगाया गया और भारत को संदेह की दृष्टि से देखा गया। अपनी परिस्थितियों के अनुसार भारत ने कभी गुटनिरपेक्षता की नीति पर सुदृढता से तो कभी इसके प्रति नरम रूख अपना कर अपने हितों की पूर्ति सुनिश्चित की। गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को हास्यास्पद कहा गयालेकिन अपनी विदेश नीति में इस सिद्धांत पर व्यापक स्तर पर अमल करके भारत अपना विकास करने में सफल हो सका। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की विदेश नीति की विशेषता पुराने और नये तथा परम्परा और परिवर्तन का द्वंद रही। तात्कालिक भारत-पाक संबंधभारत सोवियत संघ संबंधभारत अमेरिकाचीन संबंध इसके ज्वलंत उदाहरण रहे। आदर्शवाद की विदेश नीति पर चलने के कारण भारत को उसके राष्ट्रीय हितों की क्षति भी उठानी पड़ी। लालबहादुर शास्त्री के अल्पकालीन प्रधानमंत्रित्व काल की उपलब्धि भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय के रूप में रही। यद्यपि ताशकंद समझौते को भारत की कूटनीतिक हार माना जाता हैलेकिन विदेश नीति को यथार्थता के धरातल पर लाने का काम शास्त्रीजी ने अवश्य किया। श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में भारत की विदेश नीति और मुखर हुई। बांग्लादेश का उदयपोखरण में परमाणु विस्फोट जैसे साहसिक कार्य करक उन्होंने भारत की विदेश नीति को जबरदस्त सफलता प्रदान की यद्यपि भारत-पाक युद्ध में उनकी सरकार द्वारा अगस्त 1971 को सोवियत संघ के साथ जो शांति मित्रता और सहयोग की संधि पर किये गये हस्ताक्षर के कारण भारत पर गुटनिरपेक्षता की नीति छोड़ने का तथा रूस के साथ सैन्य संधि का आरोप भारत विरोधी राष्ट्रों लगाया लेकिन राजनीति में केवल आदर्शों पर नहीं चला जा सकता है। विदेश नीति तभी सफल हो सकती है जब उसमें आदर्श और यथार्थ का मिश्रण हो। श्रीमती गांधी ऐसा ही किया। उनके समय भारत का सम्मान बढ़ा यथार्थवादी रूख अपनाते हुए उन्होंने वैश्विक पटल पर भारत को एक शक्ति रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। खाद्यान्न के प्रश्न पर परमाणु नीति के संदर्भ में श्रीमती गांधी एक व्यवहारिक नेता सिद्ध हुई देश की अन्दरूनी समस्याओं के बाद भी उन्होंने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का महत्वपूर्ण केन्द्र बिन्दु बनाया।
भारत ने मई 1998 में अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में सफलता पूर्वक पोखरण विस्फोट को विश्व को एक संदेश दिया कि भारत की परमाणु नीति केवल आत्मरक्षा लिये है। और इसका प्रयोग केवल रचनात्मक कार्यों के लिये ही होगाकिसी के विरूद्ध नहीं। भारत पर कई प्रतिबंध भी लगाये गये लेकिन अपने विदेश नीति के आदर्शों पर चलकर भारत विकास के रास्ते पर चलता रहा। कांधार घटनाक्रम ने भारतीय विदेश नीति की असफलता भी उजागर कीलेकिन कारगिल युद्ध जैसी स्थितियों से सफलतापूर्वक निकलकर उसने विदेश नीति को गतिमान बनाये रखा। राजीव गांधीगुजराल,नरसिम्हा राव,मनमोहन सिंह के समय में भारत की विदेश नीति एक समतल ढरे पर चलती रहीबिना किसी विशेष उपलब्धि के। लेकिन मोदी सरकार के शासनकाल में इसकी सक्रियता बढ़ गयी है और आज आदर्श और यथार्थ दोनों के रूप यह निर्वाधरूप से काम कर रही है।
भारत विदेश नीति में बदलाव के संकेत
प्रधानमंत्री मोदी का पहला कार्यकाल उनकी विदेश नीति में परिवर्तन लाने के संकेत देने वाला साबित हुआ। मई 2014 में अपने शपथग्रहण समारोह में उन्होंने "सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर अपनी विदेश नीति के मैत्रीपूर्ण संबंधों की और संकेत दिया। पार्टी की प्रखर वक्ता श्रीमती सुषमा स्वराज को विदेशमंत्री बनाया गयाजिन्होंने अपने कूटनीतिक वक्तव्यों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर भारत के आदर्श तथा उसकी विदेश नीति को स्पष्ट कर भारत के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए विश्व के सभी देशों से संबंध सुधारने की दिशा में कार्य किया। भारत की विदेश नीति में समय की मांग के साथ बदलाव करके वह भारत को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिये दृढ संकल्पित है।
भारत की वर्तमान विदेश नीति पड़ौसी राष्ट्रों के साथ
भारत-पाक संबंध आज तक कड़वाहट से भरे पड़े हैं। अपने आदर्शों पर चलते हुए भी अतीत से आज तक कोई सरकार पाकिस्तान से मधुर संबंध नहीं बना पाई। आदर्शवाद अच्छा हैलेकिन राष्ट्रीय हितों की कीमत पर नहीं। मोदी सरकार की विदेश नीति चाणक्य नीति से प्रभावित लगती है। पुलवामा कांड बाद सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्यवाही कर भारत ने अपना बदला लिया। पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक कार्यवाही कर भारत ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने का प्रयास किया। विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की सकुशल वतन वापसी भारत की विदेश नीति की बहुत बड़ी सफलता कही जा सकती है। मृतप्राय "सार्क" को पुनर्जीवित करने की बात भारत से की जा रही है। लेकिन भारत के पड़ोस में काफी अस्थिरता है। पाकिस्तान लगभग असफल राष्ट्र होने के कगार पर है। नेपाल म्यांमार बांग्लादेशअफगानिस्तानश्रीलंका से भी भारत के संबंध बनते-बिगड़ते रहे हैं। सरकार द्वारा सर्जिकल स्ट्राइकबलूचिस्तान का उल्लेख, कुलभूषण जाधव आदि जैसी घटनाओं से जहां भारत पाक संबंधों में कडवाहट और अधिक बढ़ी हैवही मॉरीशससेशेल्सजापान से भारत के संबंध गहरे भी हुए हैंजो कि हमारी विदेश नीति की सफलता को दर्शाते हैं। भारत ने मालद्वीवइजराइलईरानसउदी अरब आदि से भी अच्छे संबंध स्थापित किये हैं।
महाशक्तियों और भारत की विदेश नीति वर्तमान में
चीन के साथ भारत के संबंधों को लेकर सदैव से ही संदेह की स्थिति बनी रही है। व्यापारिक तालमेल होने के बावजूद भी भारत चीन संबंधों में टकराव की स्थिति बनी हुई है। साम्यवादी चीन लगातार न केवल भारत की संप्रभुता चुनौती रहा हैबल्कि अपनी विस्तारवादी नीति चलते म्यांमारबांग्लादेशश्रीलंका और नेपालमें अपना प्रभाव रहा दक्षिण एशिया में आज चीन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर भारत के लिए एक चुनौती बन रहा है। सीमा-विवाद सहित कई अन्य विवादों के चलते डोकलाम घटनाक्रम ने भारत चीन संबंधों मे दरार और बढ़ा दी है। लेकिन भारत को भी अब अपनी Soft State वाली छवि से बाहर निकलकर डोकलाम घाटी मे चीन विरुद्ध अपनी शक्ति प्रदर्शन लिये बाध्य होना पड़ा और ऐसा करके भारत ने विश्व को अपनी विदेश नीति बदलाव के संकेत दे दिये है।
भारत और अमेरिका विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देश है और ऐसा माना जाता कि मानवीय स्वतंत्रता और विश्व शांति में इनका विश्वास है लेकिन पूर्व भारत अमेरिका संबंध कभी मधुर नहीं रहे। भारत-अमेरिका संबंधों को “लव एंड हेटरिलेशनशिप कहा जा सकता है। यद्यपि मोदी जी ने अमेरिका से भारत से संबंधों को बहुत बेहतर बनाया है। विभिन्न व्यापारिक समझौते साथ ही "क्वाड" (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता] भी भारत-अमेरिका संबंधों की बेहतरी को दर्शाता है। लेकिन अतीत गवाह है कि अमेरिका कभी भी भारत का विश्वस्त सहयोगी नहीं रहा। जहां अमेरिका सम्पन्न देशों का प्रतिनिधित्व करता है
भारत और अमेरिका विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देश है और ऐसा माना जाता कि मानवीय स्वतंत्रता और विश्व शांति में इनका विश्वास है लेकिन पूर्व भारत अमेरिका संबंध कभी मधुर नहीं रहे। भारत-अमेरिका संबंधों को “लव एंड हेटरिलेशनशिप कहा जा सकता है। यद्यपि मोदी जी ने अमेरिका से भारत से संबंधों को बहुत बेहतर बनाया है। विभिन्न व्यापारिक समझौते साथ ही "क्वाड" (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता] भी भारत-अमेरिका संबंधों की बेहतरी को दर्शाता है। लेकिन अतीत गवाह है कि अमेरिका कभी भी भारत का विश्वस्त सहयोगी नहीं रहा। जहां अमेरिका सम्पन्न देशों का प्रतिनिधित्व करता है
भारत और अमेरिका विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देश है और ऐसा माना जाता कि मानवीय स्वतंत्रता और विश्व शांति में इनका विश्वास है लेकिन पूर्व भारत अमेरिका संबंध कभी मधुर नहीं रहे। भारत-अमेरिका संबंधों को “लव एंड हेटरिलेशनशिप कहा जा सकता है। यद्यपि मोदी जी ने अमेरिका से भारत से संबंधों को बहुत बेहतर बनाया है। विभिन्न व्यापारिक समझौते साथ ही "क्वाड" (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता] भी भारत-अमेरिका संबंधों की बेहतरी को दर्शाता है। लेकिन अतीत गवाह है कि अमेरिका कभी भी भारत का विश्वस्त सहयोगी नहीं रहा। जहां अमेरिका सम्पन्न देशों का प्रतिनिधित्व करता है
भारत और अमेरिका विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देश है और ऐसा माना जाता कि मानवीय स्वतंत्रता और विश्व शांति में इनका विश्वास है लेकिन पूर्व भारत अमेरिका संबंध कभी मधुर नहीं रहे। भारत-अमेरिका संबंधों को “लव एंड हेटरिलेशनशिप कहा जा सकता है। यद्यपि मोदी जी ने अमेरिका से भारत से संबंधों को बहुत बेहतर बनाया है। विभिन्न व्यापारिक समझौते साथ ही "क्वाड" (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता] भी भारत-अमेरिका संबंधों की बेहतरी को दर्शाता है। लेकिन अतीत गवाह है कि अमेरिका कभी भी भारत का विश्वस्त सहयोगी नहीं रहा। जहां अमेरिका सम्पन्न देशों का प्रतिनिधित्व करता है
भारत और अमेरिका विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देश है और ऐसा माना जाता कि मानवीय स्वतंत्रता और विश्व शांति में इनका विश्वास है लेकिन पूर्व भारत अमेरिका संबंध कभी मधुर नहीं रहे। भारत-अमेरिका संबंधों को “लव एंड हेटरिलेशनशिप कहा जा सकता है। यद्यपि मोदी जी ने अमेरिका से भारत से संबंधों को बहुत बेहतर बनाया है। विभिन्न व्यापारिक समझौते साथ ही "क्वाड" (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता] भी भारत-अमेरिका संबंधों की बेहतरी को दर्शाता है। लेकिन अतीत गवाह है कि अमेरिका कभी भी भारत का विश्वस्त सहयोगी नहीं रहा। जहां अमेरिका सम्पन्न देशों का प्रतिनिधित्व करता हैवहीं भारत एशिया और अफ्रीका के गरीब अविकसित संघर्षशील राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करता है। जहां अमेरिका स्वयं को विश्व का नेता मनवाना चाहता हैवहीं भारत भी अपने को विश्व शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिये प्रयत्नशील है। ऐसे में अमेरिका कभी भी भारत को अपने समकक्ष नहीं बैठा सकता। इसलिये मोदी सरकार के समय हमारी विदेश नीति को चुनौती ही रहेगी कि वह किस सीमा तक जाकर भारत-अमेरिका संबंधों को सुदृढ़ता प्रदान कर पायेगी। ट्रम्प की अमेरिका फर्स्ट तथा वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन की नीतियों से भारत सरकार को सतर्क रहने की आवश्यकता है। लेकिन अमेरिका से अपने रिश्तों में बढ़ावा देकर विदेश नीति में बदलाव के संकेत मोदी सरकार द्वारा अवश्य दिये गये हैं। व्यापारिक मुद्दों पर असहमतियों के चलते भारत-चीन संबंध भी खराब दौर से गुजर सकते हैं। अतः कूटनीतिक रूप से अमेरिका से स्वस्थ संबंध बनाये रखना तथा उससे भी सतर्क भी रहनायह हमारी विदेश नीति के लिये एक चुनौती हो सकती है और इसमें भारतीय विदेश नीति कहां तक सफल हो पायेगीयह भविष्य के गर्भ में छिपा है।
असंलग्नता की नीति होने के बावजूद भी भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारों का झुकाव सोवियत संघ के प्रति रहा और रूस ने भी भारत का सहयोग कियालेकिन वह इस बात को जताने से भी नहीं चुका कि कश्मीर प्रश्न पर भारत का साथ देना, भारत के प्रति हमदर्दी के कारण नहीं बल्कि अपनी भी राजनीतिक आवश्यकता के कारण देता है। लेकिन सोवियत संघ द्वारा सं.रा. संघ सुरक्षा परिषद में कश्मीर प्रश्न पर भारत साथ देना, 1971 भारत मैत्री संधि करनासुरक्षा परिषद भारत की सदस्यता का समर्थन करना, भारत को सैन्य हथियारों की आपूर्ति करना आदि जैसे कार्यों के द्वारा उसने स्वयं को भारत का मित्र सिद्ध करने का प्रयास किया है। यद्यपि उसके पीछे उसके राष्ट्रीय हित की भावना निहित है। चीन के बढ़ते प्रभुत्व के खिलाफ रूस की मंशा है कि भारत इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाये रखने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। यद्यपि भारत और रूस की विदेश नीतियों मे अंतर है लेकिन बदलते वैश्विक घटनाक्रम मे अपनी स्थिति मजबूत करने के लिये दोनो देशो मे  द्विपक्षीय संबंधों को निरंतर मजबूत किया जा रहा है।
मोदी सरकार दूसरा शासनकाल:  भारत की विदेश नीति
अपने दूसरे प्रधानमंत्रित्व काल में शपथग्रहण समारोह मे प्रधानमंत्री मोदी ने बिम्सटेक” के सदस्य देशों को बुलाकर संभवतः यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया कि भारत सरकार अपनी पूर्वी सीमाओं की ओर सुरक्षा के उद्देश्य से अपनी विदेश नीति मे इस संगठन को प्रमुखता दे रही है। सार्कको दरकिनार कर भारत की बिम्सटेक से निकटता बढ़ी है, क्योंकि अगर इस्कए सदस्य देशों (बांग्लादेशम्यांमारश्रीलंकाथाईलैंडनेपालभूटान) से उसका अच्छा तालमेल बैठ पाया तो भारत के पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में मजबूती प्रदान करने मे मददगार सकता हैजो कि विदेश की महत्वपूर्ण उपलब्धि रहेगी। इसके अतिरिक्त भारत की विदेश नीति को अधिक सक्रिय और सार्थकता प्रदान करने उद्देश्य से उन्होंने मालद्वीव श्रीलंका की यात्रा कर संबंधों को मज़बूती प्रदान करने का प्रयास किया। विदेश मंत्रि एस जय शंकर ने भी भूटान की यात्रा कर ये साबित कर दिया कि भारत की नेवरहुड पॉलिसीमें आस्था बरकरार है। विश्व के विभिन्न देशों की मैराथन यात्राओं दौरान प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को संयुक्त खतरा माना और इस आतंकवाद से मुक्ति लिये भारत उसका नेतृत्व प्रदान करने इच्छा प्रकट की।
रूस यूक्रेन संघर्ष और भारत की विदेश नीति
पुनः विश्व में घटित नवीनतम घटनाक्रम, रूस-यूक्रेन संकट में भारत की विदेश नीति की परीक्षा होती दिख रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वोटिंग पर भाग न लेकर भारत ने रूस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता ही दिखायी है। पाश्चात्य देशों द्वारा इस समय भारत को शक की निगाह से देखा जा रहा है। उनका कहना है कि भारत को अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिये। लेकिन इस विषय पर भारत का रूख बेहद संतुलित रहा है। अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने की खातिर भारत रूस को नाराज नहीं कर सकता। पश्चिम और यूरोपियन देशों ने कभी भी खुले दिल से भारत का हित नहीं चाहा। वहीं रूस ने कई मौकों पर भारत की मदद कर भारत का पक्ष लिया है। भारत अपने 60 प्रतिशत सैन्य उपकरणों की आपूर्ति रूस से करता है। ऐसे में भविष्य में झांकने पर यह संभावना हो सकती है कि यदि भारत-रूस की आलोचना करता है तो संभवत सं. रा.स में या चीन के साथ तटस्थता का रूख न अपना कर रूसचीन का साथ दे तो उसका दुष्परिणाम भारत को भुगतना पड़ सकता है। रूसी हथियारों की मेन्टनेन्स में यदि रूस ने भारत की मदद करना छोड़ दी और अमेरिका ने भी भारत का साथ न दिया तो यह स्थिति भारत को कमजोर कर सकती है। चीन तथा पड़ौसी राष्ट्र तो पहले से ही भारत विरोधी रहे हैं। ऐसे में रूस और अमेरिका के बीच सामंजस्य बनाये रखना भारत की विदेश नीति के लिये एक बड़ी चुनौती है। रूस और भारत के हित इसी में है कि दोनों को ही एक दूसरे की आवश्यकता है और शायद इसी के मद्देनजर भारत प्रत्यक्षतः रूस विरोधी वक्तव्य देना नहीं चाह रहा है और रूस और यूक्रेन दोनों से ही वार्ताओं के द्वारा समस्या का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिये कह रहा है।

निष्कर्ष
अपने उच्च स्तरीय मूल्यों पर आधारित होने के कारण भारत की विदेश नीति को गौरवशाली माना जाता है। “वसुधैव कुटुम्बकम” के सिद्धांत पर चलते हुये इसने विश्वशांति के लिये प्रयास किया है और आज भी इसके लिए प्रयासरत् है लेकिन वैश्विक परिदृश्य एवं अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुये भारत को समयानुसार अपनी विदेश नीति में कुछ बदलाव लाने पड़े है। सैन्य और आर्थिक हितों को लेकर भारत की विदेश नीति की आलोचना भी हुई कि उसका स्वरूप वास्तव में क्या है? विदेश नीति के अपने सैनिक संगठनों से दूर रहने के सिद्धांत पर भी भारत पर, कुछ प्रश्नचिन्ह लगाये जा रहे हैं। "क्वाड" (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) का सदस्य होने के कारण भारत की विदेश नीति पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं कि इसके सदस्य राष्ट्रों के साथ भारत "नाटो" जैसे सैन्य समझौता कर रहा हैं। लेकिन यह एक पक्षीय दृष्टिकोण हैं, व्यवहारिकता में जो देश के लिये करना पड़े, वो करना चाहिये, केवल आदर्शों पर चलकर देश की अखण्डता सुरक्षित नहीं रखी जा सकती। अपनी विदेश नीति के मूलभूत आदर्शों से भारत की विदेश नीति बिल्कुल भी नहीं भटकी बल्कि उसी राह पर वह पूर्ण सक्रियता के साथ चल रही हैं। भारत के लिये यह उत्साहवर्धक रहा कि सांस्कृतिक कूटनीति में उसकी भूमिका बढी है। मोदी प्रशासन द्वारा विश्व से सहयोगी रूख अपनाने के पीछे भारत सरकार ने "इण्डिया फर्स्ट" को अपनी विदेश नीति का उद्देश्य बनाने का प्रयास किया है। विश्व की महाशक्तियों के साथ अपने पड़ोसी "आसियान, पश्चिम देशों से किस प्रकार तालमेल बिठाया जाए यह विदेश नीति के लिये एक चुनौती है। महाशक्तियों से संतुलित संबंध रखने में हमारा गुट निरपेक्षता का सिद्धान्त कही न कही परिलक्षित अवश्य हो रहा हैं। हमारी नीतियों के कारण ही अन्तराष्ट्रीय मंचो पर भारत की स्थिति मजबूत होती जा रही है। अमरीका के साथ विश्व के और भी राष्ट्र भारत को एक उभरती हुयी महाशक्ति के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, उर्जा संकट, कोरोना महामारी, आदि जैसी कुछ मुख्य समस्याओं से निपटने में भारत की महत्व पूर्ण भूमिका हो सकती है। साथ ही आज भूमंडलीकरण के दौर में भारत को अपनी विदेश नीति की सफलता के लिये कुछ प्रयास जैसे सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता, परमाणु शक्ति के रूप में भारत की छवि प्रस्तुत करना, आर्थिक रूप से भी अपना विकास करने, दक्षिण एशिया में नेतृत्व, अंतर्राष्ट्रीय शांति सुरक्षा बनाये रखना, साफ्टवेयर तकनीक के क्षेत्र में और अधिक प्रभावशील बनाना आदि के प्रयास करने चाहिये। आज भारत विश्व में एक नयी शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। भारत की विदेश नीति में जो भी बदलाव हो रहे हैं. यह इसलिये कि राष्ट्रीय हितों को साधा जा सकें, ऐसे में हमारी विदेश नीति की एक बड़ी चुनौती पुराने मित्र देशों से जुड़े रहना और नये देशों को अपने साथ जोड़ने की भी है। अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर चीन के विरोध के बावजूद भी भारत ऐसी स्थिति में है कि दुनिया के राष्ट्र उसकी रणनीतियों पर विश्वास करते हैं। दक्षिण एशिया तथा विकासशील देशों के नेतृत्व की भूमिका भी उसकी विदेश नीति मे आये बद्लाव को इंगित कर रही है। लेकिन बदलाव के इस दौर के बावजूद भी भारत की विदेश नीति आक्रामकता पर नहीं बल्कि निर्माणात्मकता पर जोर देती है और यही उसकी विशेषता भविष्य में उसे और अधिक स्वर्णिम युग तक पहुँचाएगी। यद्यपि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में कुछ निश्चित नहीं है। कहीं भी कुछ भी हो सकता है लेकिन हमारे शीर्ष नेतृत्व ने अपनी विदेश नीति के आदर्श पर धैर्य के साथ चलकर काम किया है उससे हमारी विदेश निति की सफलता की संभावना अवश्य ही बढ़ जाती है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. विदेश नीतियां- डॉ. मथुरालाल शर्मा, प्रकाश नारायण नाटाणी 2. आधुनिक स्त्रातेजिक विचारधारा मैकियाविली से परमाणु युद्ध तक तथा राष्ट्रीय सुरक्षा डॉ. अशोक सिंह 3. 21वीं शताब्दी में अन्तर्राष्ट्रीय संबंध- डॉ. पुश्पेष पंत 4. दैनिक भास्कर समाचार पत्र 5. दैनिक जागरण समाचार पत्र 6. https://www.drishtiias.com/hindi/dialy-updates/daily news editorials / Indian foreign policy. 7. https://www.bbc.com/hindi/India-48600542