ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- XI February  - 2024
Anthology The Research

बाल श्रम की समस्या एवं समाधान - सरकारी प्रयास

Problem and Solution of Child Labor - Government Efforts
Paper Id :  18574   Submission Date :  2024-02-12   Acceptance Date :  2024-02-22   Publication Date :  2024-02-25
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DOI:10.5281/zenodo.11162450
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इन्द्रा शुक्ला
विभागाध्यक्ष एवं एसोसियेट प्रोफसर
अर्थशास्त्र विभाग
महिला विद्यालय पी0जी0 कॉलेज
लखनऊ,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

वर्तमान समय में भारत विश्व की एक उभरती हुयी अर्थव्यवस्था यानि आर्थिक महाशक्ति है देश के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति हो रही है वहीं दूसरी ओर नजर डाले तो 5 से 10 करोड़ के बीच बाल श्रमिक अनेक हानिकारक तथा गैर हानिकारक कार्यो में लगे हुये हैं।

बाल श्रम हमारे देश व समाज के लिये बहुत ही गंभीर विषय है बाल श्रम को जड़ से उखाड़ फेंकना हमारे देश के लिये आज एक चुनौती बन चुका है क्योंकि बच्चों को माता-पिता ही बच्चों से कार्य करवाने लगे हैं उससे बच्चों का भविष्य तो खराब होता ही है साथ ही देश में गरीबी फैलती है और देश के विकास में बाधायें आती है। देश में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चें विभिन्न उद्योगों व कृषि कार्यो में लगे हुये हैं। इन बाल श्रमिकों के उन्मूलन के लिये लगभग पिछले 3-4 दशकों से कार्य किया जा रहा है तथा अनेक प्रकार के कानून व नियम बनाये गये तथा बहुत से अनेक गैर सरकारी संगठन भी इसके उत्थान हेतु कार्य कर रहे हैं लेकिन अपेक्षित प्रभाव बाल श्रम उन्मूलन पर नहीं पड़ रहा है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The problem of child labor is becoming a challenge before the country. The government has taken many steps to deal with this problem and has implemented welfare schemes. Considering the scope and depth of the problem, it has been considered an economic and social problem which is linked to lack of consciousness, poverty and illiteracy. To solve this problem, collective efforts are needed by all sections of the society.
मुख्य शब्द आर्थिक महाशक्ति, उभरती हुयी अर्थव्यवस्था, कृषि कार्य, गैर सरकारी संगठन, अपेक्षित प्रभाव, उन्मूलन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Child Labour, Welfare Schemes, Lack of Consciousness, Llliteracy, Intensity and Extent, Economic and Social Problems.
प्रस्तावना

किसी भी बच्चे के बाल्यकाल के दौरान पैसों या अन्य किसी भी लालच बदले में करवायें जाने वाले किसी भी काम को बाल श्रम कहा जाता है। 14 वर्ष की कम आयु के बच्चों से उनका बचपन, खेलकूद व शिक्षा का अधिकार छीनकर, उन्हे काम में लगाकार शारीरिक, मानसिक व सामाजिक रूप से प्रताड़ित कर, कम रूपयों में काम करा कर शोषण करके उनकें बचपन को श्रमिक रूप में बदल देना ही बाल श्रम कहलाता है।

बाल श्रम पूर्णता गैर कानूनी है इस प्रकार की मजदूरी को समाज के सभी वर्गों द्वारा निंदित किया जाता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद-24 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी, कारखाना, ढाबों, होटलों व घरेलू नौकर आदि के रूप में कार्य करवाना बाल श्रमके अर्न्तगत आती है यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता पाया जाता है तो उसके लिये उचित दण्ड का प्रावधान है। संविधान के अनुसार देश के 6 से 14 की आय के हर बच्चें को शिक्षा देना अनिवार्य है जो कि सरकार द्वारा निःशुल्क दी जानी चाहियें ताकि वह अपने सपनों को पूरा कर सके। यदि इस उम्र के बीच में कोई बच्चा काम करता है तो उसें बाल मजदूर कहा जाता है।

बाल श्रम से जुड़े कानूनों में वर्ष 2016 में संशोंधन किया गया जिसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति 14 साल से कम उम्र के बच्चों को काम पर लगाता है तो उस पर 50 हजार रूपयें का जुर्माना ओर दो वर्ष कैद हो सकती है। ज्वलन शील पदार्थ या विस्फोटक पदार्थ के कारखानों में आदि में यह उम्र 14 वर्ष से बढ़कर 18 वर्ष तक हो जाती है। लेकिन बाल श्रम से जुड़े कारखानों में फिल्मों, विज्ञापन और टी0वी0 के क्षेत्र में छूट दी गयी है।

भारत में बाल श्रम की स्थिति

अनेक गरीब परिवार अपनें बच्चों के मजदूरी के सहारे हैं कभी-कभी यही उनकी आय के स्रोत होते है। बाल श्रम कृषि निर्वाह और शहरो के अनोपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है। अनुभव किया गया है कि ये बच्चें पैसे वालों की इच्छा के अधीन रहते है। बच्चें की सहमति या काम करने के कारण भिन्न हो सकते है। एक बच्चा काम करने के लियें सहमत हो सकता है यदि आय आकर्षक है या यदि बच्चा स्कूल से नफरत करता है लेकिन इस प्रकार की सहमति को व्यक्त नहीं किया जा सकता है। कार्यस्थल बच्चें के लिये लम्बें समय में अवांछनीए स्थिति पैदा कर सकता है। एक प्रभावशाली समाचार पत्र में ‘‘बाल श्रम के अर्थशास्त्र‘‘ पर अमेरिकी आर्थिक समीक्षा (1998) के कौशिक बसु और हुवांग वान का तर्क है कि बालश्रम का मूल कारण माता-पिता की गरीबी है। यदि ऐसा है तो उन्होने बाल श्रम के वैधानिक प्रतिबन्ध पर आगाह किया और तर्क दिया कि उसका उपयोग व्यस्क मजदूरी प्रभावित होने पर ही करना चाहिये और प्रभावित गरीब बच्चें के परिवार को पर्याप्त रूप से मुआवजा देना चाहियें।

अध्ययन का उद्देश्य

1. भारत में बालश्रम की समस्या एंव स्वरूप पर प्रकाश डालना।

2. बालश्रम की समस्या के उन्मूलन हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदमों का विश्लेषण।

साहित्यावलोकन

भारत और बंगला देश सहित कई देशों में अभी भी बालश्रम व्यापक रूप से विद्यमान है। यद्यपि इस देश के कानून के अनुसार 14 वर्ष से कम बच्चें काम नहीं कर सकते है। फिर भी कानून को नजरे अंदान कर दिया है। बंगलादेश की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक हार्वेस्ट रिचहै जिसने बाल श्रम का प्रयोग न करने का दावा किया है। हालांकि बच्चें को केवल 01 डालर प्रति सप्ताह मिलता है। बाल श्रम औद्योगिक क्रांति की देन है। उदाहरणार्थ कार्ल मार्क्स ने अपने कम्युनिस्ट मैनिफैस्टों में कहा है कि कारखानों के मौजूदा स्वरूप में बाल श्रम का त्याग। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि सार्वजनिक नैतिक सहापराध के जरियें जैसे उत्पादन जो विकासशील देशों में विकसित बाल श्रम से बने है। उनकी खरीद को हतोत्साहित किया जायें। दूसरी ओर चिन्ता यह है कि बाल श्रम से बनी वस्तुओं का बाहिष्कार करने पर यह बच्चें वेश्यावृत्ति या कृषि जैसे काम से अधिक खतरनाक या अति उत्साही व्यवसायों में जा सकता है। यूनिसेफ के एक अध्ययन में यह पाया गया है। कि 5000 से 7000 नेपाली बच्चें वेश्यावृत्ति की तरफ मुड़ गयें है इसके अलावा अमेरिका में बाल श्रम निवारण अधिनियम (1986) में लागू होने के बाद एक अनुमान के अनुसार 5000 बच्चों को बंग्लादेश में उनके परिधान उद्योग में नौकरी में बर्खास्त कर दिया गया था। यह सब तथ्य यूनिसेफ के एक अध्ययन पर आधारित है।

12 जून का दिन प्रतिवर्ष विश्व बाल दिवसके रूप में मनाया जाता है ताकि लोग बाल श्रम के प्रति जागरूक हो सके अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ ने पहली बार अन्तराषट्रीय स्तर पर बाल श्रम को रोकने की मांग उठाई गयी थी। उसने 2012 में सर्वसम्मति से एक कानून पास किया गया। इसके तहत छोटे बच्चों से काम कराना अपराध है। 2002 में ही 12 जून को पहली बार बाल श्रम निषेध दिवसमनाया गया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 5 से 14 वर्ष तक के बच्चों को किसी भी काम के माध्यम से बंदी बनाना या उन्हों हानि पहुँचाना अन्तराष्ट्रीय व राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करना माना जाता है। यदि काम उन्हें स्कूली शिक्षों से वंचित करता है वह काम बाल श्रम है। भारत में बाल श्रम की स्थिति बहुत भयावह है सबसे अधिक बाल मजदूर भारत में है।

1991 को जनगणना के अनुसार सबसे अधिक बाल मजदूर का अंाकडा भारत में 11.3 मिलियन था। 2001 में बढ़कर 127 मिलियन तथा 2011 में भारत में 5 से 14 वर्ष के 25.06 करोड़ बच्चों में से 1.01 करोड़ बाल श्रम कर रहे है। यहँा लगभग 43 लाख से अधिक बच्चें बाल मजदूरी में लगे पायें गयें। यूनीसेफ के अनुसार विश्व भर के कुल बाल श्रम में से 12 प्रतिशत बच्चें अंकेले भारत के है। अफ्रीका में 7.21 करोड़ बच्चें तथा अमेरिका में एक करोड़ से अधिक बच्चें बाल श्रम करते है।

अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन तथा यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के प्रभावों के चलते बाल श्रम में संलग्न बच्चों की संख्या 160 मिलियन हो गयी। भारत में सबसे अधिक बाल श्रम उत्तर प्रदेश में (8.16 लाख) उसके बाद बिहार (4.51लाख) तथा तीसरे स्थानपर राजस्थान (2.52 लाख) है।

मुख्य पाठ

बाल श्रम के कारण

1. बाल मजदूरी का सबसे बड़ा कारण बच्चों का अनाथ होना है, माता- पिता के अभाव में बच्चे के पास अपने गुजारे के लिये बाल श्रम ही एकमात्र विकल्प होता है इसके अलावा माता- पिता का शिक्षित न होना, उनके बीच असंतोष व लालच होना भी बाल मजदूरी का एक कारण है।

2. माता-पिता या परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अधिकांश बच्चें माता- पिता पर बोझ बन जाते है जिस कारण उन्हें अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मजदूरी करनी पड़ती है। कई बच्चों को अपनी खेलने - कूदनें और स्कूल जाने की कच्ची उम्र में मजदूरी करनी पड़ती है।

3. बड़े कारखानों का निर्माण भी बाल श्रम का कारण है क्योंकि उद्योगपति अधिक लाभ कमाने के लाच में बच्चों से कम मजदूरी पर काम कराते हैं वे बच्चों की मासूमियत का लाभ उठाकर बड़े- बडे़ कार्याे को करने के लिये प्रेरित करते है। ज्ञान की कमी व पैसों की कमी के कारण वे हर काम करने को तैयार रहते है।

4. छोटे कारखानों, लघु उद्योग, कृषि फर्म हाउस, छोट रेस्टोरेन्ट, घरों के काम छोटी दुकानों के मालिक कम मजदूरी में छोटे बच्चों से काम करवाकर अधिक लाभ प्राप्त करने में सफल हो जाते है।

5. इसके अतिरिक्त बाल मजदूरी के कारणों में सामाजिक मापदण्ड, वयस्कों तथा किशोेंरो के लिये अच्छे काम करने के अवसरों का अभाव, प्रवास एवं इमरजेन्सी शमिल है। ये सब केवल भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम भी है।

6. जनसंख्या वृद्धि का दबाव इस कारण लोग उन स्थानों के लिये पलायन करते है जहाँ जनंसख्या कम है। सामान्यता शहरी क्षेत्रों के लिये पलायन अधिक करते है रोजगार की दृष्टि से अभिभावक अपने बच्चें को लघु उद्योगों या ढाबों में बाल श्रमिक के परिवार के पालन पोषण के लिये बच्चों का हो श्रमिक बना दिया जाता है।

7. जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक सम्पदा कम होती जा रही है। प्राकृतिक सम्पदा की कमी के कारण गाँवो में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। आय के स्रोत कम हो रहे है अतः रोजगार पाने के लिये उन्हे अपने बच्चों को बाल श्रमिक के रूप में कार्य पर लगा देते है।

बल श्रम के दुष्परिणाम

1. बाल मजदूरी का सबसे बड़ा कारण बच्चों का अनाथ होना है,  माता- पिता के अभाव में बच्चें के पास अपने गुजारें के लिये बाल श्रम ही एकमात्र विकल्प होता है इसके अलावा माता-पिता का शिक्षित न होना उनके बीच अंसतोष व लालच होना भी बाल मजदूरी का एक कारण।

2. माता-पिता या परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अधिकांश बच्चें माता-पिता पर बोझ बन जाते है जिस कारण उन्हे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये मजदूरी करनी पड़ती है। कई बच्चों को अपनी खेलने - कूदने और स्कूल जाने की कच्ची उम्र में मजदूरी करनी पड़ती है।

3. बच्चों का बचपन छीन लिया जाता है जिसकी वजह से बच्चें मनोरंजन , खेलकूद तथा अन्य गतिविधियों में अपना योगदान नहीं दे पाते है।

4. बाल मजदूरी करवाने वाले लोग भिक्षावृत्ति में भी संलग्न रहते है जो कानून अपराध है।

5. बाल श्रम कर रहे है। बच्चे व बच्चियों का शारीरिक शोषण भी किया जाता है। जो कि उन पर दोहरी भार है। एक रिपोर्ट के अनुसार 40 प्रतिशत बच्चों का बाल श्रम में शोषण का शिकार होता है जिसके कारण कुछ बच्चों की मृत्यु तक हो जाती है।

6. बाल श्रम करने वाले कुपोषण का शिकार इस लिये होते है कि उनके मालिक काम तो अधिक करवाते है परन्तु खाना उनके शरीर के हिसाब से नहीं देते है।

7. कुछ माता-पिता इतने गरीब होते है कि वह बच्चों को मजदूरी पर लगा देते हैं वे यह नहीं जानते है कि यदि उनका बच्चा पढ़ेगा नहंी तो उन्हे नौकरी नहीं मिलेगी जिसके कारण उसे जिन्दगी भर मजदूरी करनी पड़ेगी। इसी कारण वे गरीबी में फंसते चले जाते है।

बल श्रम रोकने के सरकारी प्रयास- वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल श्रम की समस्या और उससे निजात दिलाने हेतु गुरूपाद स्वामी समिति का गठन किया समति ने उस समस्या का अध्ययन करके अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। समिति ने पाया कि जब तक गरीबी बनी रहेगी तब तक बाल मजदूरी को हटाना संभव न होगा। समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाये तथा अन्य क्षेत्रों से काम से स्तर में सुधार लाया जाये। समिति ने पहली सिफारिश की कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपाटनें के लिये बहुआयामी नीति बनाने की आवश्यकता है।

बाल श्रम पर आयोग व समितियाँ

राष्ट्रीय श्रम आयोग - 1881

अंग्रेज सरकार द्वारा मजदूरों के लिये गठित यह प्रथम आयोग य जिसकी अध्यक्षता विण्टलें ने की थी, उसमें बाल श्रम के व्यापार प्रयोग को एक बुराई के रूप में चिन्हित किया गया।

धातु उद्योग से सम्बन्धित आयोग (1906)- इसके अर्न्तगत बच्चों, औरतों को दिन व रात में कार्य पर लगाने के परीक्षण हेतु इस आयोग का गठन किया गया।

श्रम पर शाही आयोग (1929)- इस आयोग ने बीडी, कपड़ा, कालीन, माचिस तथा अन्य उद्योगों में बाल श्रम की संख्या की जानकारी दी। 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को काम करने पर कानूनी रूप से प्रतिबंध लगाने की बात कही गयी।

राष्ट्रीय बाल श्रम आयोग (1979)

इसके अर्न्तगत प्राकृतिक विकास तथा शिक्षा के विषय को गंभीर माना है तथा बच्चों को कार्यस्थल में ही अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने की सिफारिश की गयी।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (2007)

यह आयोग काम पर रखने के दौरान बाल अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें आने पर सम्बद्ध विभाग पर बाल श्रमिकों के बचाव एवं रिहाई के लिये दबाव डालता है। यह बाल श्रमिकों के शोषण पर सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करता है एवं बच्चों की शिक्षा व्यवस्था करने पर जोर डालता है।

चाइल्ड हेल्पलाईन- बेसहारा बच्चों की सहायता हेतु एक चाइल्ड हेल्पलाईन की स्थापना की गयी जो कि एक विशेष टेलीफोन नं0 1098 पर आधारित देश भर में 73 शहरों में कार्यरत है। सहायता के अतिरिक्त ऐसे बच्चों की समाज में पुर्नस्थापना व पुर्नवास के प्रयास भी है।

चिल्ड्रेन्न इन नीड ऑफ केयर एण्ड प्रोटेक्शन- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार की यह योजना उन बच्चों के लिये है जो घरों, ढाबों या मोटर गैराजों में कार्यरत है। इस योजना के चिकित्सीय सहायता योजना आदि का प्रावधान है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (2007)

यह आयोग काम पर रखने के दौरान बाल अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें आने पर सम्बद्ध विभाग पर बाल श्रमिकों के बचाव एवं रिहाई के लिये दबाव डालता है।

पेन्सिल- सरकार ने एक समर्पित मंच लांच किया है लेकिन पेंसिल जी00वी0 इन बाल श्रम कानूनों के प्रभावी क्रियान्यन को सुनिश्चित करने एवं बाल श्रम को समाप्त करने के लिये इसकी स्थापना की गयी।

इसके अतिरिक्त कई गैर सरकारी संगठन भारत में बाल श्रम को समाप्त करने के कार्यरत है जैसे

1. बचपन बचाओ

2. केयर इण्डिया

3. चाइल्ड इण्डिया एण्ड यू

4. ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट लेबर

5. राइट इण्डिया

6. चाइल्ड लाइन आदि

बाल मजदूरी सम्बन्धी संवैधानिक प्रावधान

1. अनुच्छेद 53(3) बच्चों के लिये अलग से कानून बनाने का अधिकार है जिसमें बच्चों के हित के लिये उनके अधिकार दिये जायेगंे।

2. अनुच्छेद-12- इसके अर्न्तगत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का अधिकार है।

3. अनुच्छेद-23- इस अनुच्छेद में बच्चों की खरीद व बिक्री पर रोक लगाई गयी है।

4. अनुच्छेद -89 इसके अर्न्तगत बच्चों के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दिया जाता है। उन्हे आवश्यक औषधियाँ उपलब्ध करायी जाती है।

5. अनुच्छेद 51 (क)- माता-पिता को बच्चों की शिक्षा के लिये अवसर प्रदान किया जाता है ताकि वह बच्चों की सही ढंग से शिक्षित कर सके।

भारत में बाल श्रम मुख्य समस्याओं में से एक है। बाल श्रम का जड़ से उन्मूलन करने के लिये बहुत से सरकारी प्रयास व उपाय किये गये है बाल श्रम के प्रति विरोध एवं जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 12 जून को बाल श्रम निषेधदिवस मनाया जाता है।

एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आई0सी0पी0एस0) (2009-10)

इस योजना के अर्न्तगत बाल संरक्षण हेतु अलग-2 कार्यक्रम लागू किये गये जैसे-:

A. बाल न्याय के लिये कार्यक्रम

B. फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिये एकीकृत कार्यक्रत

2. नये कार्यक्रमों सहित देश के अंदर बच्चों केा गोद लेने को बढ़ावा देने के लिये शिशु गृह को सहायता की योजना

A. राष्ट्रीय बाल भवन

B. राष्ट्रीय खाद्ध सुरक्षा अधिनियाम 2015

2. बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन विधेयक (2016)

यह विधेयक बच्चों को विशेष प्रकार के व्यवसायों में काम करने पर रोक लगाता है और दूसरे व्यवसायों में बच्चों के काम करने की स्थिति को नियमित करता है। बाल श्रम कानून 2016 में यह छूट दी गयी है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चें (पारिवारिक व्यवसाय में काम कर सकते है।) बिल में दिये गये खतरनाक कामों में खनन, ज्वलनशील पदार्थ तथा खतरनाक प्रक्रियाओं में बाल श्रम को नही लगाया जा सकता है।

3. बाल श्रम संशोधन अधिनियम (2017)

बाल श्रम कानून की आलोचना की वजह से खतरनाक व्यवस्थाओं की संख्या 83 से घटाकर तीन कर दी गयी और बच्चों को पारिवारिक व्यवसाय में काम करने की इजाजद जैसे फैसले को शामिल किया गया। निम्न कानूनांे में आवश्यक बदलाव किये गये जैसेः-

क. बच्चें अब स्कूल के बाद केवल 3 घण्टे ही पारिवारिक व्यवसाय में मदद कर

सकते है।

ख. बच्चें शाम 7 तथा सुबह 8 बजे के पारिवारिक व्यवसायों में मदद नही कर सकेंगंे।

ग. बच्चें या किशोरों को एक कलाकार के रूप में 01 दिन केवल 5 घण्टे और बिना आराम किये 3 घण्टे तक काम करने की इजाजत दी गयी है।

घ. किसी भी आडियों- वाइरल मीडिया निर्माता जिसमें बच्चें या किशोंरों की भागीदारी हो ऐसाक रेन के लिए हर 6 माह में जिला मजिस्ट्रेट से मंजूरी लेनी होगी।

ड़ किसी भी बच्चें या किशोर को उसकी सहमति के बिना आडियों- वीजिउल मीडिया में काम पर नही लगाया जा सकता है।

4. राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना

बल श्रम से आजाद करायें गये बच्चों के पुनर्वास के लिये सरकार ने यह योजना लागू की है इसका उद्देश्य बाल मजदूरों से आजाद कराये गये बच्चों को विशेष स्कूल में दाखिला कराया जाता है जहाँ उन्हे व्यवसायिक प्रशिक्षण पौष्टिक आहार एवं स्वास्थ्य जैसी महत्वपूर्ण सुविधायें उपलब्ध कराई जाती है।

बाल श्रम के लिये कार्य कर रहे कुछ गैर सरकारी संगठन भी बाल मजदूरों को रोकने के लिये काम कर रहे है जैसेः-

1. देश बचाओं आन्दोलन

2. कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउन्उेशन

3. CRY child Right and you

4. प्रथम संगठन

5. चाइल्ड फण्ड

6. तलाश एसोसियेशन

7. RIDE India

5. निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2004)

ठसके अन्तगत बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त होना आवश्यक है। इसके लिये समाज की जागरूकता आवश्यक है जो भविष्य को निर्धारित करती है इस अधिनियम के लिये समाज को जागरूक रखना आवश्यक है।

सर्वशिक्षा अभियन (2001-02)

मानव संसाधन विकास मंत्रायल भारत सरकार की यह योजना बच्चों के शैक्षिक विकास के लिये है एवं 06-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों केा यह सुनिश्चित करना था कि सभी बच्चें शिक्षा जारी रखने के साथ लड़के व लड़कियों के बीच अन्तराल एवं समाजिक वर्ग विशेषतायें समाप्त हो।

इण्डस बाल श्रम परियोजना 2004

बाल मजदूरी उन्मूलन हेतु भारत अमेरिका सहयोग के अन्तर्गत जारी संयुक्त वक्तव्य (अग 2000) की फालोअप कार्यवाही के रूप में चलाई जा रही है। इसकों प्रारम्भ 10 फरवरी 2004 में किया गया। इस योजना के अन्तर्गत अब तक लगभग 80,000/- से अधिक बच्चों की शिक्षा को शिक्षा को मुख्य धारा से जोड़ा गया।

राष्ट्रीय बाल कार्य योजना 2005

इस योजना में बाल अधिकारों व सुरक्षा हेतु राष्ट्र व राज्य स्तरों पर बाल आयोग व बाल न्यायालय के गठन का प्रावधन है।

बाल श्रम रोकने के सुझाव

1. बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी है। रोजगार के लिये ऋण की सरल व्यवस्था से बाल श्रम को रोका जा सकता है।

2. बाल श्रम को रोकने के लिये शिक्षा को बढ़ावा देना आवश्यक है। लोगों में जागरूकता लाकर बाल श्रम कम किया जा सकता है क्योंकि तभी हर बालक के माता-पिता समाज व देश के नाते बालाको के प्रति दायित्व को समझ पायेगें

3. जनसंख्या पर नियंत्रण रखकर बाल मजदूरी को कम किया जा सकता है।

4. यदि रोजगार का सृजन कर लिया जाये तो भी बाल श्रम कम हो सकता है।

5. यदि आप किसी रेस्तरों में खाना खाते वक्त वहाँ किसी बच्चें को बाल श्रम करते हुये देखे तो इसकी सूचना चाईल्ड लाईन 1098 पर कॉल करें।

6. बाल मजदूरी उन्मूलन सम्बन्धी जो कानून बने है उनका सख्ती से पालन किया जाये जो कानून बने है उनकी कमियों को दूर किया जाये।

7. बाल मजदूरी उन्मूलन सम्बन्धी कानूनों को लागू करने के लिये जो मशीनरी उपलब्ध है उसमें चुस्ती और ईमानदारी लाने की आवश्यकता है।

8. प्रशासन स्तर पर प्रत्येक जिला अधिकारी को बाल मजदूरी की समस्या को गम्भीरता को जानने के लिये वहां पर सर्वे करवायें जाये समस्या की जानकारी होने पर उसके समाधान हेतु स्थानीय लोगों, समाजिक संस्थाओं एवं अन्य माध्यमों से लाभ प्राप्त करने के लिये कार्य योजना बनाकर उसे सख्ती से लागू करें।

निष्कर्ष
इस प्रकार बढ़ती हुयी बाल मजदूरी की समस्या कम करने के लिये सरकार ने उचित कदम उठाये है। सरकारी निर्णय को भी कई बार लोगों ने अवहेलना की है। आज के बदले हुये परिवेश में लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ गई। समाज ने भी अपनी भागेदारी, सही ढंग से निभाई है। बाल मजदूरी उन्मूलन के लिये शिक्षा को बढ़ावा देना आवश्यक है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

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