ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- VII October  - 2023
Anthology The Research

हिंदी भाषा: भूगोल एवं संस्कृति

Hindi Language: Geography and Culture
Paper Id :  18602   Submission Date :  2023-10-15   Acceptance Date :  2023-10-22   Publication Date :  2023-10-25
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DOI:10.5281/zenodo.10707948
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उषा सिन्हा
प्रोफेसर
हिंदी विभाग
भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय
मधेपुरा,बिहार, भारत
सारांश
प्रत्येक भाषा एवं संस्कृति अपने भौगोलिक संरचना से प्रभावित रहती है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी भाषा का भूगोल एवं संस्कृति से गहरा संबंध होता है। भौगोलिक परिवेश में ही भाषा का अंकुरण होता है और वह विकास पाता है। उसी से संस्कृति का जन्म होता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Every language and culture is influenced by its geographical structure. What I mean to say is that any language has a deep connection with geography and culture. Language germinates and develops only in the geographical environment. From that, culture is born.
मुख्य शब्द भाषा, संस्कृति, भौगोलिक, भू-भाग, भाषा-विज्ञानी, भूगोल, विश्व, मुहावरा।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Language, Culture, Geography, Territory, Linguist, Geography, World, Idiom.
प्रस्तावना

प्रत्येक भू-भाग का अपना महत्त्व है। जिस प्रकार जमीन या भू-भाग में फूल, पौधे, पेड़ आदि उगते और विकसित होते हैं, उसी प्रकार उस सरजमीन पर भाषा भी अंकुरित एवं पुष्पित होती चलती है। जैसे- पटना के दीघा का मालदा आम प्रसिद्ध है, तो मुजफ्फरपुर की लीची। हाजीपुर का केला प्रसिद्ध है, तो मिथिला का मखान। इसी प्रकार, बंगाल में धान, पंजाब में गेहूँ, केरल में नारियल, कश्मीर में सेब, नागपुर में संतरा आदि। हम मिट्टी की अपनी अलग-अलग विशेषता है। हर जमीन पर हरेक प्रकार के पेड़-पौधे नहीं लगते हैं। सभी का उपजाउपन एक-दूसरे स्थान से भिन्न होता है। इस भिन्नता का प्रमुख कारण जलवायु एवं मिट्टी का प्रकार है। उसी प्रकार प्रत्येक भू-भाग अपने ही भौगोलिक पर्यावरण में भाषा की उत्पत्ति करता है। यही कारण है कि एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र की भाषा में भिन्नता पायी जाती है। कहा भी गया है-

कोस कोस पर पानी बदले

चार कोस पर वाणी।

अध्ययन का उद्देश्य
विदेशी भाषा के तुलना में अपनी भाषा के महत्त्व को बतलाना इस आलेख का उद्देश्य है। जैसे- जमीन पर उगे वृक्ष विशाल छायादार बनते हैं, पर गमले के पेड़ बौने हो जाते हैं। उसी प्रकार, अँगरेजी या कोई भी विदेशी भाषा सीखना अच्छी बात है, पर उसे जीना हमें बौना बना देता है।
साहित्यावलोकन

भू-भाग में भिन्नता नहीं होतीतो शब्द एवं भाषा में भी भिन्नता नहीं होती। पूरे विश्व में एक ही भाषा होती। यही कारण है कि पूरे विश्व में 6141 भाषाएँ एवं 400 लिपियाँ हैं। (20020 में संयुक्त राष्ट्रसंघ की गण्ना के अनुसार)[1]

मनुष्य का रंग-रूपआकर-प्रकाररहन-सहनखान-पानरीति-रिवाजबोली-वाणी सभी के भिन्नता का आधार भूगोल ही है। अर्थात् संस्कृति का आधार भी भूगोल है। संस्कृति भूगोल में समाहित है। इसकी उत्पत्ति भूगोल से ही होती है।

मनुष्य प्रकृति की सबसे सुंदर रचना है और मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि भाषा का आविष्कार है। आचार्य निशांतकेतु लिखते हैं- ‘‘1870 ई0 में जेनेवा में नव्य-वैयाकरणों का एक विश्वस्तरीय सम्मेलन आयोजित हुआ थाजिसमें जर्मनी के भाषाविज्ञानी और वैयाकरण वेंकर (Wenker) ने जोरदार शब्दों भाषा और शब्द को भूगोल से जोड़ने की जरूरत पर व्याख्यान दिया था। तुलनात्मक भाषा विज्ञान के विरोध में ही शब्द-भूगोल का विकास हुआ। वेंकर के अलावा इस चिंतन क्षेत्र में एच.शुचार्ट (H.Schuchart) का उल्लेखनीय योगदान है। उन्होंने परम्परा के स्थान पर प्रत्येक शब्द का निजी इतिहास और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के स्थान पर शब्द-भूगोल की महत्ता का प्रतिपादन किया।’’[2]

मुख्य पाठ

हिंदी हमारी राजभाषा तो है ही। हमने उसे राष्ट्रभाषा भी मान लिया है और अब वह सम्पर्क भाषा के रूप में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है। यह भाषा ही नहीं, वरन् भूगोल एवं संस्कृति भी है। हम गौर से विचार करें, तो पाते हैं कि प्रत्येक शब्द अपने भौगोलिक क्षेत्र में प्रचालित होकर शब्द-चरित्र का निर्माण करते हैं। उदाहरणस्वरूप घरशब्द के भूगोल को देखते हैं-

- मैंने घर बनाया। (मकान)

- घर-घर में चर्चा है। (समाज)

- छत पर पानी घर कर गया। (जमाव)

- कन्या के लिये घर देखा जा रहा है। (वर)

- घर की तरह समझिए। (परिवार)

- वह घर बसाने जा रहा है। (विवाह) आदि।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि भौगोलिक परिवेश भाषा का चरित्र-निर्माण करते हैं।

भारत का एक भू-भाग है- रेगिस्तान। मुहावरा बना- ऊँट के मुँह में जीरा।अंगरेजी का भू-भाग समुद्र से घिरा है। अतएव मुहावरा बना- A drop in the ocean. मुहावरा भी भूगोल से अछूता नहीं है।

हमारी संस्कृति का आधार भी भूगोल ही है। प्रत्येक भाषा की संस्कृति होती है, जो भौगोलिक-परिवेश पर आधारित होती है। वहीं से विचार का जन्म होता है और वही विचार भाषा एवं साहित्य की आधारशिला बनती है। विद्यापति (मैथिली), तुलसीदास (अवधी), सूरदास (ब्रजभाषा), मीरा (राजस्थानी) आदि हिंदी में ही हो सकते हैं। संस्कृत में ही कोई वाल्मीकि या व्यास हो सकता है। अँगरेजी भाषा में आज तक कोई तुलसीदास, सूरदास, वाल्मीकि या व्यास नहीं हुआ। इसी प्रकार, हम भारतीय दो सौ से अधिक वर्षों से अँगरेजी पढ़ते आ रहे हैं, पर कोई शेक्सपीयर नहीं हुआ। इसका एकमात्र कारण भाषा भूगोल है।

निष्कर्ष

हिंदी भाषा हमारी साँस है, संस्कृति है, भूगोल है। जिस प्रकार, साँस के बिना जीवन की अहमियत नहीं है, उसी प्रकार अपनी भाषा हिंदी के बिना हमारे व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास नहीं हो सकता। कोई कितना भी विदेशी भाषा का ज्ञाता बन जाय, उसकी सोच अपनी मातृभाषा में ही होगी। विदेशी भाषा में कोई भी व्यक्ति मनोनुकूल अभिव्यक्ति नहीं दे सकता। हम भारतीय विदेशी भाषा को सीखकर ज्ञान तो प्राप्त कर सकते हैं, परंतु वह इस भौगोलिक परिवेश में विशाल वृक्ष नहीं बन सकता।

अतएव हमें अँगरेजी को छोड़कर हिंदी भाषा की स्वीकार्यता पर बल देने से हिंदी का और अधिक विकास होगा और यह विश्व में सम्पर्क भाषा के रूप में दूसरे से पहले स्थान को प्राप्त करने में समर्थ होगी।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. सचल सवाक् शब्द: आचार्य निशांतकेतु, निर्मल पब्लिकेशन, शाहदरा, दिल्ली-110094, 20080

2. उपरिवत्।

3. Social change and Perspective Publisher Novelty and Company Patna.

4. उपरिवत्।

5. सचल तीर्थ वागर्थ: निर्मल पब्लिकेशन्स दिल्ली, डॉ. विन्देश्वर पाठक।

6. उपरिवत्।