ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- XI February  - 2024
Anthology The Research

भारत के संविधान निर्माण में बिहारियों की भूमिका

Role of Biharis in Making the Constitution of India
Paper Id :  18609   Submission Date :  2024-02-13   Acceptance Date :  2024-02-19   Publication Date :  2024-02-24
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DOI:10.5281/zenodo.10836992
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मुकुल प्रकाश
शोधार्थी
इतिहास
मगध विश्वविद्यालय
बोधगया,बिहार, भारत
सारांश

संविधान किसी राष्ट्र के संचालन का आधार तत्व होता है। अपने राष्ट्र के सफल संचालन के लिए औपनिवेशिक काल में भारतीयों के लिए खुद के द्वारा निर्मित संविधान की मांग पुरानी थी। अंग्रेज अपने हितों को ध्यान में रखते हुए इस मांग को टालते आ रहे थे। भारत में जन आंदोलन का दबाव और इंग्लैंड में श्रमिक दल की सरकार बनने की परिस्थिति भारतीयों की मांग के लिए अनुकूल हो गई। ब्रिटेन की नई सरकार की पहल पर भारत में मार्च 1946 ईस्वी में भेजी गई कैबिनेट मिशन ने प्रांतीय विधान मंडलों द्वारा सदस्यों के निर्वाचन, सांप्रदायिक आधार पर सीटों का बंटवारा एवं 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि का फार्मूला दिया। कुल निर्धारित 389 सीटों पर संपन्न चुनाव में सत्ता से दूर होते मुस्लिम लीग ने अपने लिए अलग राष्ट्र अलग संविधान की मांग शुरू कर दी।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Constitution is the basic element of governance of a nation. The demand for a self-made constitution for Indians during the colonial period for the successful functioning of their nation was an old one. The British had been postponing this demand keeping their interests in mind. The pressure of the mass movement in India and the formation of the Labor Party government in England became favorable for the demands of the Indians. On the initiative of the new British government, the Cabinet Mission sent to India in March 1946 gave a formula for election of members by provincial legislatures, distribution of seats on communal basis and one representative per 10 lakh population. The Muslim League, which was out of power in the elections held on a total of 389 seats, started demanding a separate nation and a separate constitution for itself. After considering the demands of the Muslim League and the Mountbatten Plan, the British Parliament passed the Indian Independence Act 1947 on 15 July 1947, thus India and Pakistan became two new nations. Due to the partition of the country and non-participation of many princely states, the number of members of the Indian Constituent Assembly was reduced to 299. It is proved from ancient historical sources that democratic rule was established in Bihar. The active role of 36 members of erstwhile Bihar in the making of the Constitution of modern India seems to be a repetition of the glorious past. Loyalty towards public aspirations and public interest as well as national interest is evident from the brief biographies of those members and the cross-examination of the Constituent Assembly. After two years, 11 months and 18 days of tireless efforts, the Constitution of India was prepared and on 26 January 1950 came into force.
मुख्य शब्द भारत राष्ट्र का संविधान निर्माण, संविधान सभा, संविधान सभा के बिहारी सदस्य, संविधान सभा के वाद-विवाद।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Making of the Constitution of India, Constituent Assembly, Bihari Members of the Constituent Assembly, Debates in the Constituent Assembly.
प्रस्तावना

मुस्लिम लीग की मांग एवं माउंटबेटन योजना पर गौर करने के पश्चात ब्रिटिश संसद ने 15 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 पास कर दियाइस प्रकार भारत और पाकिस्तान दो नए राष्ट्र बने। देश विभाजन एवं कई रियासतों के भाग न लेने के कारण भारतीय संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 299 रह गई थी। प्राचीन ऐतिहासिक स्रोतों  से यह प्रमाणित है की बिहार में लोकतांत्रिक शासन स्थापित हुआ था। आधुनिक भारत के संविधान निर्माण में तात्कालिक बिहार के 36  सदस्यों की सक्रिय भूमिका गौरवशाली अतीत की पुनरावृत्ति प्रतीत होती है। जन आकांक्षाओं और लोकहित के साथ-साथ राष्ट्रहित के प्रति निष्ठा उन सदस्यों के संक्षिप्त जीवन वृत्त एवं संविधान सभा की जिरह से स्पष्ट होता है। दो वर्ष 11 महीना 18 दिन के अथक प्रयत्न के बाद भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

अध्ययन का उद्देश्य

1. संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा के बिहारी सदस्यों की विशिष्ट भूमिका को प्रकाशित करना।

2. संविधान सभा के पटल तत्कालीन बिहार के सदस्यों द्वारा विचारों की प्रस्तुति का विश्लेषण करना।
साहित्यावलोकन

इस शोध आलेख हेतु संविधान निर्माण की पृष्ठभूमि एवं संविधान निर्माण से जुड़े साहित्य का अध्ययन मददगार है। लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित संविधान सभा के वाद विवाद की सीरीज के चयनित भाग एवं कई बिहारी संविधान सभा के सदस्यों की आत्मकथा, सदस्यों के जीवन वृत्त से जुड़ी  किताबें शोध आलेख से जुड़े विभिन्न आयामों का अंधकार दूर करती है।

मुख्य पाठ

भारत का लोकतंत्र अगर  अन्य  एशियाई और अफ्रीकी देशों के लिए नजीर रहा है तो विद्वानों के एक वर्ग का यह भी मानना है की प्राचीन बिहार का लोकतंत्र भी प्रतीक है हमारे गौरवशाली अतीत का। इस लिहाज से लोकतंत्र की विचारधारा आयातित नहीं है बल्कि बिहार प्रदेश द्वारा उत्पादित है। आधुनिक काल में हमारे भारत देश में लोकतंत्र की स्थापना संविधान के निर्माण के  बाद इसके अमल में लाए जाने से होती है। इस पावन कार्य में भी तत्कालीन बिहार की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। संविधान सभा के अस्थाई अध्यक्ष के तौर पर डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा का चुनाव एवं स्थाई अध्यक्ष के तौर पर डॉ राजेंद्र प्रसाद का मनोनयन से विशेष भूमिका स्पष्ट होती है। गौरतलब तथ्य है की राजनीतिक स्तर पर बिहारी अस्मिता के आधार पर अलग राज्य की स्थापना की मुहिम में सफल रहे सच्चिदानंद सिन्हा जी संविधान सभा के सबसे वयोवृद्ध और अनुभवी सदस्य थे। देश की विविधताओं और आकांक्षाओं पर उनकी पैनी समझ उनके अध्यक्षीय संबोधन में दिखती है। उन्होंने कहा था की "संविधान निर्माताओं को बहुत सारे समझौते करने होंगे। भारत विविधताओं का देश है, अतःदेश के हर वर्ग की आकांक्षाओं को पूरा करना संविधान निर्माताओं का ध्येय होगा।" संविधान सभा के समापन के मौके पर खराब स्वास्थ्य एवं  वयोवृद्धता की वजह से सदन में उपस्थित नहीं थेअतः संविधान की प्रतियों पर हस्ताक्षर के लिए 14 फरवरी 1950 को पटना स्थित उनके आवास पर लाया गया । हस्ताक्षर के बाद जनता के नाम अपने अंतिम संबोधन में उन्होंने कहा कि" संविधान सभा के में सभा पतित्व की शुरुआत और समापन बिहार में पैदा हुए व्यक्ति के हाथों होना बिहार के इतिहास की गौरवपूर्ण घटना है।" भारत के संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद छात्र जीवन से ही अंग्रेजों के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन से जुड़ चुके थे। सत्याग्रह एवं रचनात्मक कार्यों से जुड़ने के कारण महात्मा गांधी से उनकी निष्ठा जग जाहिर थी। जेपी कृपलानी ने संविधान सभा में अध्यक्ष के तौर पर उनके नाम का प्रस्ताव रखा थाजिसे सर्वसम्मति से सब ने स्वीकार कर राजेंद्र बाबू को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना। अपने अध्यक्ष भाषण में राजेंद्र बाबू ने कहा कि "हमें देश के लिए ऐसा विधान तैयार करना है देश के हर एक स्त्री पुरुष को यह मालूम हो जाए की चाहे वह किसी मजहब और प्रांत के क्यों नहीं हो ,उनके सभी अधिकार सब तरह से सुरक्षित होने चाहिए।" भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को अपनाया जाने की वकालत उन्होंने की । 24 जनवरी 1950   को संविधान सभा के पटल पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान को सामान प्रतिष्ठा दिया जाना चाहिए।

बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह अपने योगदानों के वजह से इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। 16 दिसंबर 1946 ई को संविधान सभा में नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि "यह भावी भारत का जीवन चित्र अंकित करता है और हमें बतलाता है कि भारत एक जनतांत्रिक और विकेंद्रित जनतंत्र होगा। जिसमें अंतिम संप्रभुता जनता के हाथ में होगी।"उनकी यह दृष्टि वर्तमान दौर में सजीव रूप में विद्यमान है। 

बिहार प्रदेश के प्रथम उपमुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री डॉ अनुग्रह नारायण सिंह संविधान सभा के सदस्य थे।संविधान सभा में अलग-अलग मुद्दों पर उन्होंने अपने विचार  दिए। उन्होंने केंद्रीय उत्पाद शुल्क का कुछ हिस्सा प्रति को देने की वकालत की। इस प्रकार प्रान्तों के भीतर आय बढ़ाने के संकल्प को दोहराया।
महात्मा गांधी के आह्वान पर वकालत पेशे को छोड़कर असहयोग आंदोलन में कूदने के अतिरिक्त स्वतंत्रता आंदोलन में कई बार जेल यात्रा करने वाले जगत नारायण लाल भी संविधान सभा के एक सक्रिय सदस्य थे। 1 मई 1947 ईस्वी को संविधान सभा में समानता के अधिकार पर उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को अपना धर्म, पेशा चुनने का अधिकार है। उन्होंने दलित आरक्षण पर कहा कि दलितों को आरक्षण आर्थिकसामाजिक और शैक्षणिक आधार पर स्पष्ट तौर पर मिलना चाहिए। धार्मिक अल्पसंख्यक के आधार पर आरक्षण को उन्होंने नकारा। जगत नारायण लाल एक मजबूत केंद्र के समर्थक थे,इसके अलावा वे देश के नाम के तौर पर "भारत" के समर्थक थे। 1948 ईस्वी में उन्हें प्रांतीय भाषाओं आयोग की का सदस्य बनाया गया। उन्होंने आयोग एवं संविधान सभा के पटल पर कहा कि भाषाई आधार पर राज्य निर्माण भारतीयता के हित को हानि पहुंचाएगा।
श्याम नंदन सहाय  मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र से पहले और दूसरी लोकसभा के लिए सांसद चुने गए थे।इस दायित्व से पूर्व वे संविधान सभा के सदस्य का दायित्व निभा चुके थे। 23 नवंबर 1948 ई को संविधान सभा में उन्होंने कहा कि "सबको समान तौर पर शिक्षा,स्वास्थ्य,नौकरी मुहैया कराया जाए ताकि देश का विकास हो सके।"
समाजवादी विचार वाले नेता के टी शाह  मूल रूप से गुजरात से जुड़े थे,परंतु बिहार से संविधान सभा के सदस्य की हैसियत से चुने गए थे। 21 नवंबर1948 ई को संविधान सभा में बहस के दौरान उन्होंने कहा कि "जाति,वर्ग,लिंग भेद सब को हटाते हुए सबको एक समान अधिकार मिले और कानून ऐसा हो कि जिस देश का विकास हो सके।" नीति निर्देशक तत्व को उन्होंने केवल नैतिक सिद्धांत कहा। प्राकृतिक चीजों जैसे जल,जंगल,पहाड़ आदि को निजी संपत्ति बनाने का उन्होंने विरोध किया था। उन्होंने संविधान में सेकुलर,फेडरल और सोशलिस्ट शब्द को संविधान में शामिल करने का प्रयास किया परंतु डॉक्टर अंबेडकर द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था।
स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण सिन्हा को बिहार लेजिसलेटिव असेंबली के अलावा सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली के सदस्य होने का अनुभव हासिल था। वे संविधान सभा के सदस्य भी थे। संविधान सभा के 11 सदस्य वाले स्टीयरिंग कमेटी के चुनाव में हुए चुने गए थे। कई मसलों पर उन्होंने संविधान सभा में अपने विचार प्रस्तुत किया।
छोटा नागपुर केसरी से ख्याति प्राप्त हजारीबाग के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण सिंह संविधान सभा के सदस्य होने के हैसियत से सदन के पटल पर पंचायती राज पर अपना पक्ष मजबूती से रखा।उन्होंने कहा था कि जन प्रतिनिधि को जनता के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। जनतंत्र में किसी का एक छत्र राज नहीं होता है अतः उन्होंने अंबेडकर के संसदीय व्यवस्था का समर्थन किया।

संविधान सभा में  दलितों के आकांक्षाओं की प्रस्तुति एवं प्रतिनिधित्व बिहार प्रदेश से जगजीवन रामचंद्रिका राम, रघुनंदन प्रसाद ने किया।जगजीवन राम संविधान सभा की कई समितियों के सदस्य थे। खास तौर पर मुख्यतः अधिकारों के उप समिति के सक्रिय सदस्य थे।

संविधान सभा में तत्कालीन बिहार से जनजातीय अधिकार और प्रतिनिधित्व की अगुवाई जयपाल सिंह मुंडा, बोनीफास लाकङा, देवेन्द्र नाथ सामंतो ने किया। संविधान सभा में एक मौके पर जयपाल सिंह कहते हैं की "मेरे आदिवासी समाज का पूरा इतिहास गैर मूल निवासियों के हाथों लगातार शोषण और छीना झपटी का इतिहास रहा है,जिनके बीच में जब तब अव्यवस्था भी फैली है। इसके बावजूद मैं नेहरू जी के संकल्प में विश्वास करता हूं कि अब हम नया अध्याय रचना जा रहे हैं जहाँ किसी की अपेक्षा नहीं होगी।आदिवासियों के लिए आरक्षण की जरूरत का तर्क उनके अनुसार यह था कि इस प्रकार औरों को आदिवासी आवाज को सुनने के लिए मजबूर किया जा सकता है। उन्होंने संविधान सभा में राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत नशाबंदी के प्रस्ताव का तर्क के आधार पर विरोध किया कि यह आदिवासियों के धार्मिक रीति रिवाज के प्रतिकूल है। चावल से बनने वाली शराब आदिवासियों को हर तरह की बीमारी से बचाता है।

संविधान सभा में बिहार से मुस्लिम जमात के प्रतिनिधि भी शामिल थे। मोहम्मद हुसैन इमामतजामुल हुसैन, लतीफुर रहमान, मोहम्मद ताहिर, एवं सैयद जफर इमाम इनमें थे। तजामुल हुसैन ने संविधान सभा में केंद्र को प्रतिरक्षा अधिकार देकर मजबूत करने के संकल्प पर बल दिया, इससे बाहरी तत्वों पर काबू पाया जा सकेगा। उन्होंने ही सलाह दिया था कि हैदराबाद को सैनिक क्षमता के इस्तेमाल से भारत का हिस्सा बनाया जाए,बाद में सरकार ने इस पर अमल भी किया। मोहम्मद हुसैन इमाम ने भी मजबूत केंद्र पर इस तर्क के आधार पर बल दिया कि इससे राज्यों के बीच मतभेद सुलझाने में मदद मिलेगी और एक बेहतर राष्ट्र बनाया जा सकेगा।
उपरोक्त व्यक्तित्व के अलावा केबी सहाय, विनोदानंद झा, भगवत प्रसाद, बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला, कामेश्वर सिंह,दीप नारायण सिंह, बृजेश्वर प्रसाद, महेश प्रसाद सिन्हासारंगधर सिन्हाजदुवंश सहाय, बाबू गुप्तनाथ सिंह, कमलेश्वरी प्रसाद यादव, पीके सेन, श्री नारायण महथा, और अमिय कुमार घोष  ने संविधान सभा के सदस्य के तौर पर अलग-अलग मुद्दों पर विचार प्रस्तुत कर संवैधानिक प्रावधानों को तय करने में अपनी भूमिका अदा किया।

सामग्री और क्रियाविधि

1. प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों से सुचिंतित आधारों पर तथ्यों का संकलन

2. संकलित तथ्यों के आधार पर शोध की विषय संबंधी घटनाओं एवं उत्पन्न अवधारणाओं की व्याख्या

निष्कर्ष

भारत के संविधान सभा में तत्कालीन बिहार से प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों की भूमिका अमूल्य है। भारत के संविधान के लगभग सभी प्रावधानों को स्थापित करने में बिहार के सदस्य अछूते नहीं रहे हैं। बिहार सदस्य को सर्वसम्मति से  संविधान सभा के अध्यक्ष का ओहदा प्रदान करना भी ऐतिहासिक है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. संविधान सभा के वाद विवाद की सरकारी रिपोर्ट, द्वितीय पुर्नर्मुद्रण, 2015, लोकसभा सचिवालय 

2. बागीश्वर प्रसाद सिन्हा, सच्चिदानंद सिन्हा, प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली

3. तारा सिन्हा, युग पुरुष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, प्रभात पब्लिकेशन, नई दिल्ली

4. रामचंद्रप्रसाद एवं अशोक कुमार सिन्हा, श्री कृष्ण सिंह, प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली

5. लाइट अन टू द सेल, मनीष सिन्हा

6. डॉ हरीश कुमार, युगपुरुष जगजीवन राम

7. अश्विनी कुमार पंकज, संविधान सभा में जयपाल