ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- XII March  - 2024
Anthology The Research

नगर नियोजन व भू-उपयोग प्रतिरूप (जयपुर नगर का विशेष भू-उपयोग अध्ययन)

City Planning and Land Use Pattern (Special Land Use Study of Jaipur City)
Paper Id :  18679   Submission Date :  2024-03-07   Acceptance Date :  2024-03-16   Publication Date :  2024-03-20
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DOI:10.5281/zenodo.10942820
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अशोक कुमार मीना
संस्थापक एवं सचिव
ग्रीन अर्थ ऑर्गनाइज़ेशन सोसाइटी
भूगोल विभाग
जयपुर,राजस्थान, भारत
सारांश

नगर नियोजन का विषय क्षेत्र सभ्यता के विकास के अनुसार परिवर्तित होता रहा हैं। तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार नगरों में उत्तम व्यवस्था सु-नियोजित भू-उपयोग, नगर नियोजन की विषय सामग्री रही है किन्तु आधुनिक समय में नगर-नियोजन का विषय क्षेत्र बहुत व्यापक होता जा रहा है वर्तमान परिस्थितियों के साथ-साथ भविष्य की परिस्थितियों को भी ध्यान में रखकर नगर नियोजन की विषय सामग्री का चयन किया जाता है। किसी भी नगर की स्थापना व विकास उस क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व सामरिक परिस्थितियों का प्रतिफल होता है। इसके अतिरिक्त नगर की स्थापना व विकास के कारणों को जानने के लिए इन कारणों के साथ-साथ नगर के बसाव स्थान की भौगोलिक व जलवायुवीय दशाओं का अनुकूल होना परम आवश्यक है। विश्व के अनेक विद्वानों व भूगोलवेत्ताओं के अतिरिक्त भारतीय विद्वानों व भूगोल वेताओं ने भी नगरों के बसाव स्थान व बसाव स्थिति के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The subject area of town planning has been changing according to the development of civilization. According to the contemporary circumstances, good arrangement in the cities, well-planned land use, has been the subject matter of town planning, but in modern times, the subject area of town planning is becoming very wide. Along with the present circumstances, future circumstances are also taken into consideration. Keeping this in mind, the subject matter of town planning is selected. The establishment and development of any city is the result of the economic, social, political and strategic conditions of that area. Apart from this, to know the reasons for the establishment and development of the city, it is very important that along with these reasons, the geographical and climatic conditions of the place of settlement of the city are favorable. Apart from many scholars and geographers of the world, Indian scholars and geographers have also presented their views regarding the settlement location and settlement situation of cities.
मुख्य शब्द आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, नगर नियोजन, भू-उपयोग, जयपुर नगर।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Economic, Social, Political, Town Planning, Land Use, Jaipur City.
प्रस्तावना


आधुनिक समय में जैसे-जैसे नगरों का विकास होता जा रहा है वैसे-वैसे विभिन्न प्रकार की भौतिक समस्याएँ उत्पन्न होती जा रही हैं। नगरों का विकास सुनियोजित नगरीय विकास की परम्परा को तोड़कर अनियोजित तरीके से हो रहा है जिसका प्रमुख कारण नगरों की जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होना तथा नगर नियोजन संस्थाओं व प्रशासन की अदूरदर्शिता है। अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि के कारण नगर में भवनों की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, यातायात अवरूद्ध होने जैसी समस्याएँ, दुर्घटनाएँ, अपराधिक घटनाओं का बढ़ना, गंदी बस्तियों की संख्या में वृद्धि भौतिक साधनों की कमी जैसी समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं।

अध्ययन का उद्देश्य

इस शोध पत्र का उद्देश्य नगर नियोजन व भू-उपयोग प्रतिरूप जयपुर नगर का विशेष भू-उपयोग का अध्ययन करना

साहित्यावलोकन

जयपुर नगर का विशाल जनसमूह और इन्हें बसाने के लिये विस्तृत रिहायशी बस्तियों का अस्त-व्यस्त निर्माण जयपुर नगर के सुनियोजित नगर की परंपरा को तोड़ने लगे थें। अनियोजित बस्तियों और इनसे उत्पन्न समस्याओं के निराकरण व सुनियोजित विकास के लिए जयपुर नगर को एक बहुउद्देशीय योजना की आवश्यकता थी इसलिये जयपुर नगर का पहला मास्टर प्लॉन 1971 (यू आई टी) के समय बनना शुरू हुआ और 1976 में इसे लागू किया पहली बार तैयार किया गया मास्टर प्लॉन का लक्षित वर्ष 1991 ही था । जयपुर विकास प्राधिकरण ने स्वयं के स्तर पर पहला जयपुर मास्टर विकास प्लॉन 2011 बनाया। नगर-नियोजन नगरवासियों की वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ भविष्य की आवश्यकताओं को भी पूरा करने की योजना थी। यह नगर की आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व भौतिक विशेषताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था। नगर नियोजन के द्वारा नगर का मास्टर प्लॉन 2025 का स्वरूप इस प्रकार विकसित किया गया है कि नगर का विकास भविष्य में आने वाली परिस्थितियों के अनुकूल हो व उनका समायोजन किया जा सके।

मुख्य पाठ

‘‘हैराल्ड बर्नहीम’’ हमारी समस्या केवल अपने जीवन स्तर को सुरक्षित रखना ही नहीं है, बल्कि उसे बनाये रखने की आवश्यकता है। नगरों में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान समय में नगरों में सभी प्रकार की व्यवस्थाएँ बनाने व भविष्य में आने वाली विकट परिस्थितियों से बचने के लिये नगरों को सुनियोजित ढ़ंग से विकसित किया जाए।

’’विश्व में अपनायी जाने वाली नगर नियोजन की परम्परा उतनी ही पुरानी है जितनी की नगर।’’ आज से 2000 हजार वर्ष पूर्व रोमवासियो ने नगर नियोजन के सम्बन्ध में बताया था जो कि विश्व में नगरीय जीवन के संस्थापक माने जाते है। भारत में भी नगर नियोजन की परस्पर सभ्यता के प्रारम्भ से ही शुरू हो गयी थी जिसके उत्तम उदाहरण सिन्धु घाटी सभ्यता, मोहनजोदड़ो व हड़प्पा में देखे जा सकते हैं। यहाँ के नगरों की सड़कें और गलियांँ सीधी बनी हुई थी और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। मोहनजोदड़ो नगर की प्रधान सड़क नगर के बीच में उत्तर से दक्षिण को जाती थी। इसकी चौड़ाई 10 मीटर व लम्बाई 800 मीटर थी। अन्य सड़कों से समानान्तर और समकोण पर मिलने और काटने वाले मार्ग को मिलाने वाली सड़कें भी 3 मीटर से कम नहीं होती थी।

नगर सदैव तत्कालीन सभ्यता व परिस्थितियों के सूचक रहे है। नगरों की उत्पत्ति, विकास और अवनति, रूप और संरचना विभिन्न युगों की विशेषता को बताते है।

नगर नियोजन की परिभाषा

नगर नियोजन को विश्व के विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है जो निम्न प्रकार है:-

1. जेम्स फोर्ड के अनुसार ‘‘नगर नियोजन प्रमुख रूप से नगरो के सतत् परिवर्तनशील प्रारूप से सम्बन्धित विज्ञान ओर कला दोनों है।

2. प्रोफेसर जेकसन के अनुसार ‘‘नगर नियोजन समुदाय की विभिन्न आवश्यकओं जैसे सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोरंजन आदि के अनुसार नगरों के भौतिक विकास का सही निर्देशन करने तथा उसे उचित रूप प्रदान करने का प्रयास करता है।

3. एन.पी. लेविस के अनुसार ‘‘नगर नियोजन दूर दृष्टि सम्बन्धी एक प्रयास मात्र है जो नगर तथा वातावरण का ऐसा व्यवस्थित और स्थानिक विकास है, जिसमें विवेकपूर्ण रीति से स्वास्थ्य और सुविधाओं तथा व्यापारिक और ओद्यौगिक प्रगति का समुचित ध्यान रखा जाता है।

4. अमरीकी विद्वानों के अनुसार ‘‘नगर नियोजन के क्रिया-कलापों का विशिष्ट क्षेत्र नगरीय समुदायों और उनके पर्यावरण राज्यों, प्रदेशों और राष्ट्र के एकीकृत विकास का नियोजन करना होता है जो भू-उपयोग अधिनियम, भू-आधिपत्य और विनियमन की व्यापक व्यवस्था के निश्चय के द्वारा व्यक्त होता है।

नगर नियोजन की विषय सामग्री

नगर नियोजन का विषय क्षेत्र सभ्यता के विकास के अनुसार परिवर्तित होता रहा हैं। तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार नगर में उत्तम व्यवस्था सु-नियोजित भू-उपयोग, नगर नियोजन की विषय सामग्री रही है किन्तु आधुनिक समय में नगर-नियोजन का विषय क्षेत्र बहुत व्यापक होता जा रहा है वर्तमान परिस्थितियों के साथ-साथ भविष्य की परिस्थितियों को भी ध्यान में रखकर नगर नियोजन की विषय सामग्री का चयन किया जाता है। नगर नियोजन की विषय सामग्री के सम्बन्ध में विश्व के विभिन्न विद्वानों के मत निम्नानुसार है-

1. पेट्रिक एवर क्राम्बी के अनुसार ‘‘नगर नियोजन के प्रमुख चार विषय है:- (1) आर्थिक कटिबन्ध (2) संचार के साधन (3) खुले स्थान  (4) सामुदायिक समूहन।

2. आर्थर बी. गैलियन के मतानुसार ‘‘ भूमि का उपयोग के नियोजन के अन्तरगत भवन, वाणिज्यिक क्रियाएँ, उद्योग खुले स्थान, परिवहन, संचार के लिए नियोजन के अन्तर्गत राजमार्गो, सड़कों, रेलमार्गो, हवाई अड्डों, जलमार्गों, तथा संचार-व्यवस्था का नियोजन किया जाता है।

नगर नियोजन के उद्देश्य

नगर नियोजन की विषय सामग्री के अनुसार ही नगर नियोजन के उद्देश्य भी विभिन्न कालक्रमानुसार परिवर्तित होते रहे है। सभ्यता के प्रारम्भ में नगरों का नियोजन तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रख कर किया जाता था तथा नगर नियोजन के उद्देश्य भी तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर ही निर्धारित किये जाते थे तथा वर्तमान समय में नगर नियोजन के उद्देश्य भिन्न हैं। आधुनिक समय में नगरो का नियोजन तत्कालीन परिस्थितियों के साथ-साथ भविष्य में आने वाली परिस्थितियों को भी ध्यान में रख कर किया जाता है।

नगरीय विकास समितियों के द्वारा किसी नगर की विकास योजना के उद्देश्य निर्धारित करने से पहले उस नगर के पिछले उद्देश्यों में प्रयासरत आवासीय भूमि, यातायात मार्गों की पर्याप्त व्यवस्था बाजार की स्थिति, नगर का सौन्दर्य, पार्क व मनोरंजन के खुले स्थान की व्यवस्था आधारभूत व भौतिक सुविधाओं की पर्याप्तता, व औद्योगिक क्षेत्रों का निर्धारण करना है। नगर नियोजन का उद्देश्य नगरवासियों की आवश्यकतओं को पूर्ण करना है, जिसमें स्वास्थ्य सेवाएँ, पेयजल, मनोरंजन, सीवरेज, बिजली, यातायात, सेवाएँ प्रदान करना है नगरीयकरण योग्य भूमि का आवश्यकतानुसार उत्तम भू-उपयोग करना उपलब्ध साधनों के अनुसार नगर कि विरासत का सरंक्षण करते हुए नगर को अधिक से अधिक सुन्दर बनाना। नगर में आवश्यकतानुसार पर्याप्त बाजार व वाणिज्यिक केन्द्रों की स्थापना करना तथा वाणिज्यिक कार्यों को प्रोत्साहन देना। नगर के वातावरण की स्वच्छता को ध्यान में रख कर औद्योेगिक इकाइयों को नगर से पर्याप्त दूरी पर स्थापित करना। नगरवासियों को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराना। नगर में यातायात जाम होने जैसी समस्याओं के निवारण के लिए उत्तम तकनीकी का प्रयोग करना तथा पर्याप्त यातायात के साधनों की व्यवस्था करना एवं नगर के बाहरी क्षेत्रों से पर्याप्त सम्पर्क मार्गों का निर्माण करना ताकि नगर में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति आसानी से की जा सके। अर्थर बी.गैलियन के मतानुसार ‘‘नगर नियोजन का उद्देश्य नगरवासियों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, समाज-कल्याण और सुविधा की संवृद्धि के लिए नगर के व्यवस्थित विकास का निर्देशन है। इसमें नगर के भू-उपयोग, एक कार्य-क्षेत्र का दूसरे कार्य क्षेत्र से सम्बन्ध व उनमें परस्पर समन्वय आदि बातों पर भी ध्यान दिया जाता है। यह नगर में होने वाले परिवर्तनों और विकास (क्षेत्रीय) के मार्ग का निर्धारण करता है। नगर नियोजन नगर का ढाँचा समुदाय की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार करता है।

नगर नियोजन के सिद्धांत

प्राचीन नगर केवल भौतिक तत्वों व मध्यकाल में नगर नियोजन की योजनाएँ केवल भौतिक तŸवों पर ही अधिक आधारित होते थे जबकि आधुनिक समय में नगर नियोजन की योजना नगर के विभिन्न बिन्दुओं को ध्यान में रख कर बनायी जाती है जिसमें नगर के सुविधा केन्द्र, सेवा केन्द्र, विकास केन्द्र प्रमुख होते है आधुनिक नगर नियोजन की योजनाएँ व्यापक स्तर पर बनाई जाती है, जिन्हें इंजीनियरों के द्वारा विभिन्न नगर नियोजन के सिद्धान्तों को अपनाते हुए बनाया जाता है। आधुनिक समय में नगर नियोजन के लिए प्रमुख सिद्धांतो को अपनाया जाता है जो निम्न प्रकार हैः-

1. आवासीय भूमि की पर्याप्तताः- नगरो में अधिवासों के निर्माण के लिए भूमि की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। अतः नगरों में से आवासीय भूमि की पर्याप्त व्यवस्था करना नगर नियोजन का प्रमुख सिद्धान्त है।

2. सुनियोजित विकासः- यह आधुनिक नगरों का सबसे महत्वपूर्ण सिद्वान्त है। इसके बिना नगर नियोजन अधूरा है।

3. नगर का उचित कार्यक्षेत्रों में विभाजितः- नगर में प्रत्येक कार्य के लिए अलग-अलग क्षेत्र बनाये जाने चाहिए। रिहायशी क्षेत्र, व्यापारिक क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, मनोरंजन क्षेत्र आदि।

4. यातायात का नियोजन एंव नियन्त्रणः- नगर नियोजन में यातायात व्यवस्था का सबसे बड़ा योगदान होता है। इसमें राष्ट्रीय राजमार्ग, प्रमुख सड़कें, सहायक सड़के व गलियों को अनुपातिक आधार पर विभाजित करके इनकी पर्याप्त चौड़ाई-लम्बाई, प्रतिरूप पर्याप्त यातायात मार्ग जाल का विस्तार किया जाना चाहिए।

5. सार्वजनिक स्थानों की व्यवस्था- नगरवासियों के मनोरंजन, धार्मिक आस्था व सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक स्थलों व मनोरंजन स्थलों की पर्याप्त व्यवस्था कि जानी चाहिए जिसके अर्न्तगत पार्क, खेल के मैदान, धार्मिक स्थल, क्लब, सामुदायिक केन्द्र, आदि स्थल प्रमुख हैं।

6. हरित पेटियों का विकास- ये नगर के स्वरूप केन्द्र कहलाते हैं। यहाँ प्राकृतिक भू-दृश्य व स्वच्छ वातावरण की व्यवस्था होती है जो कि नगर के वातावरण को स्वच्छ बनाने के साथ-साथ सौन्दर्यीकरण में भी सहायक होते हैं। इसके अन्तर्गत, प्राकृतिक वनस्पति क्षेत्र, जंगल, पहाड़ियाँ, सेन्ट्रल गार्डन सम्मिलित किये जाते है।

7. औद्योगिक इकाइयों के लिए उचित स्थानों की व्यवस्था- नगरीय क्षेत्र से औद्योगिक इकाइयों को दूर स्थापित किया जाना चाहिए ताकि ये इकाइयाँ अपने अवशिष्टों से नगर के वातावरण को दूषित ना कर सके। जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि जो कि नगरवासियोें के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव न डाल सके तथा नगर के वातावरण को भी दूषित ना कर सके।

8. गन्दी बस्तियो पर नियंत्रण- आधुनिक नगर नियोजन योजना का यह सबसे महत्वपूर्ण सिद्वान्त है नगर में होने वाली विभिन्न प्रकार की असामाजिक गतिविधियां, अपराध, वेश्यावृत्ति, इन बस्तियों में ही पनपते हैं। इसके अलावा ये नगर के सौन्दर्यीकरण में भी बाधक हैं। गन्दगी का प्रसार होने के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उत्पत्ति केन्द्र भी ये गन्दी बस्तियाँ होती है। अतः योजना के तहत इन पर नियंत्रण आवश्यक है।

9. अनुचित भूमि के उपयोग पर नियंत्रणः- किसी भी नगर की योजना बनाते समय इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाये की नगर में जो भूमि जिस उपयोग के लिए चिन्हित की गयी है, उसे उसी उपयोग में लिया जाना चाहिए। जैसे आवासीय भूमि में वाणिज्यिक व औद्योगिक गतिविधियाँ स्थापित न हो।

10. नगरीयकरण के विस्तार पर नियंत्रण- नगर के समीपवृत्ति क्षेत्रों में स्थित कृषि भूमि पर आवासीय योजनाएँ बनती जा रही हैं जो कृषि भूमि के लिए नुकसानदायक सि़द्ध हो रही है। कृषि भूमि का भू-उपयोग परिवर्तन करके आवासीय वाणिज्यिक व औद्योगिक भू-उपयोग में परिवर्तन किया जा रहा है, जो कि खाद्यान्न व अन्य खाद्य वस्तुओं की कमी का कारण बन रहा है तथा यह मँहगाई को बढ़ावा दे रही है।

11. नगर के भावी विकास का प्रावधान- नगर का आर्थिक विकास होने के साथ-साथ राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनती है जो कि नगरवासियों कि सुविधाओं, रोजगार तथा मनोरंजन के अवसरों में वृद्धि करता है जिससे नगरवासियों के उच्च जीवन स्तर में वृद्धि होगी।

भारत में नगर नियोजन सम्बन्धी कार्य मुख्य रूप से तीन प्रकार से किया जाता हैः-

i. पुराने नगरों को आधुनिक नगर नियोजन के सिद्धान्तों द्वारा विकसित किया जा रहा हैं।

ii. पुराने नगर जो कि सुनियोजित योजना के अनुसार बसाये गये थे, कि परम्परा का क्रमिक विकास किया जा रहा हैं।

iii. नये नगरों की स्थापना व विकास नगर नियोजन के आधुनिक सिद्धान्तों के आधार पर किया जा रहा हैं। आधुनिक नगर नियोजन योजना के अनुसार विकसित किये गये नगरों में मुख्यत चंडीगढ़, जयपुर, दिल्ली, नोएडा, बेंगलूर प्रमुख है।

जयपुर नगर का तुलनात्मक भू-उपयोग विश्लेषण मास्टर प्लान 19711991


1971 में विकसित तथा 1991 के लिए प्रस्तावित क्षेत्र







भू-उपयोग विश्लेषण मास्टर प्लान 19711991

(क्षेत्र एकड़ में)

क्र.सं.

भू-उपयोग

मास्टर प्लान 1991 में प्रस्तावित भूमि

वास्तवित विकसित भूमि 1991

विद्यमान क्षेत्र 1971

प्रस्तावित भूमि

कुल विकसित क्षेत्र

कुल विकसित क्षेत्र

मास्टर प्लान के अनुसार विकसित क्षेत्र

अनियोजित विकसित क्षेत्र

1

आवासीय

5000

12]200

17200

15880

12014

3866

2

वाणिज्यिक

340

1260

1600

950

684

266

3

औद्योगिक

710

3750

4460

2490

1767

723

4

प्रशासनिक

210

230

440

390

287

103

5

मनोरंजन

330

670

1000

530

487

43

6

सार्वजनिक/अर्द्ध सार्वजनिक

1680

900

2580

2120

1751

369

7

पर्यटन सुविधाएं

-

200

200

-

-

-

8

यातायात

1730

4290

6020

2910

2909

1

 

कुल

10,000

23500

33500

25270

19899

5371

स्रोत: मास्टर डेवलपमेंट प्लान-2011

1991 के लिए प्रस्तावित भू-उपयोग में विचलन


अतः नगर के सम्पूर्ण भू-उपयोग के आँकड़ो का विश्लेषण करने पर संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि 1971 से पूर्व नगर की विकास गति व 1971 के पश्चात नगर के विकास के अनुमान के आधार पर नगर के विभिन्न मदों में जिस अनुपात में मास्टर प्लान 1991 में भू-उपयोग प्रस्तावित किया गया था, यथार्थ में मास्टर प्लान की समय अवधि में उतना भू-उपयोग नही हो सका। अर्थात प्रस्तावित भूमि का विकास सुनियोजित ढंग से पूर्ण नहीं हो सका। इसके उत्तरदायी कारणों में प्रसाशनिक उदासीनता, जयपुर विकास प्राधिकरण की अदूरदर्शिता व अधूरे विकास के उद्देश्य तथा अनियोजित नगरीय विकास के कारण प्रमुख है।



यू-1 क्षेत्र में विद्यमान भू-उपयोग विश्लेषण मास्टर प्लान 1991 2011

क्र.सं.

भू-उपयोग

क्षेत्र  हैक्टेयर में

क्षेत्र एकड़ में

विकसित क्षेत्र का प्रतिशत

कुल क्षेत्र का प्रतिशत(हैक्टेयर)

1

आवासीय

19072

47107-84

68-02

 

2

व्यवसायिक/मिश्रित

1978

4885-66

7-05

 

3

औद्योगिक

2119

5233-93

7-56

 

4

सार्वजनिक/अर्द्धसार्वजनिक

2029

5011-63

7-24

 

5

सैनिक छावनी क्षेत्र

1103

2724-41

3-93

 

6

उद्यान

543

1341-21

1-94

 

7

यातायात मार्ग जाल

1196

278-22

4-27

 

8

विकसित क्षेत्र

28040

69258-8

100-00

35-14

9

कृषि

30708

75848-76

 

38-48

10

जल (अपवाह तंत्र)

322

795-34

 

0-40

11

वन भूमि

7445

18389-15

 

9-33

12

खुले क्षेत्र

13285

32813-95

 

16.65

 

कुल क्षेत्र (8+9+10+11+12)

79800

197106

 

100-00

स्रोत- मास्टर प्लान 2025

अतः नगर के आधारभूत आवश्यकताओं के भू-उपयोग के लिए यू-1 क्षेत्र की नगरीय भूमि 69258.8 एकड़ क्षेत्र विकसित है जबकि नगर के यू-1 भूमि का कुल 197106 एकड़ क्षेत्र विद्यमान है।

जयपुर नगर के विकसित क्षेत्र का भू-उपयोग (किमी.में)

जयपुर नगर का आवासीय भू-उपयोग के लिए 190.72 वर्ग किमी. क्षेत्र विद्यमान है। यह अन्य भू-उपयोग कारकों से अधिक है। नगर के वाणिज्यिक भू-उपयोग अर्थात खुदरा, थोक व्यापार, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों व मिश्रित भू-उपयोग के लिए 19.78 वर्ग किमी. क्षेत्र विद्यमान है। यह परकोटेदार शहर एवं एम.आई. रोड के सहारे-सहारे अधिक सघन क्षेत्र विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त नगर में अलग-अलग स्थानों पर वाणिज्यिक भू-उपयोग विद्यमान है।

नगर की औद्योगिक क्रियाओं के भू-उपयोग के लिए 21.19 वर्ग किमी. क्षेत्र समाविष्ट किया गया है। प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र जयपुर नगर के उत्तर व दक्षिण दिशा में अवस्थित है। इसके अतिरिक्त कुछ छोटी-छोटी औद्योगिक इकाईयाँ सम्पूर्ण नगर में फैली हुई हैं।

नगर में सार्वजनिक व अर्द्ध-सार्वजनिक भू-उपयोग के लिए 20.29 वर्ग किमी. क्षेत्र विद्यमान है जो मुख्यतः जे.एल.एन. मार्ग के समीप व स्टेच्यू सर्किल से विधानसभा तक विद्यमान है, जहांँ मुख्यतः सरकारी कार्यालय अवस्थित है। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे सरकारी कार्यालय नगर के विभिन्न हिस्सों में भी फैले हुए हैं। नगर में सैनिक छावनियों के लिए 11.03 वर्ग किमी. क्षेत्र विद्यमान है। यह क्षेत्र अमानीशाह नाले के पश्चिम में सीकर रोड से अजमेर रोड तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त छावनी का एक भाग निवारू रोड के पश्चिम भाग में भी अवस्थित है। नगर में मनोरंजन हेतु भू-उपयोग के लिए उद्यानों, खुले स्थानों के रूप में काफी भूमि उपलब्ध है। इस भू-उपयोग के लिये 11.96 वर्ग किमी. क्षेत्र विद्यमान है।

नगर के विकसित क्षेत्र के अतिरिक्त गौण कारकों के अधीन तीन प्रमुख भू-उपयोग अर्थात कृषि भूमि, जल निकास व परिस्थिति क्षेत्र (जंगल) के लिए समाविष्ट की गई है। इनमें सर्वाधिक कृषि कार्य के अंतर्गत यू-1 क्षेत्र का 37% क्षेत्र विद्यमान है। इसके अतिरिक्त जल निकास के लिए अमानीशाह नाले को समाविष्ट किया गया है। यह यू-1 क्षेत्र के आर-पार और ढूँढ नदी व झालाना नदी में प्रवाहित होता है जबकि नगर में जंगल क्षेत्र नगर के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है।

निष्कर्ष

अतः जयपुर नगर के भू-उपयोग विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वर्ष 2007 तक आवासीय भू-उपयोग के लिए 34147.75 एकड़ क्षेत्र प्रस्तावित किया गया था किन्तु उपयोग के अधीन प्रस्तावित क्षेत्र से कुछ अधिक अर्थात 34580 एकड़ क्षेत्र विकसित हुआ जबकि नगर की वाणिज्यिक गतिविधियों के अंतर्गत प्रस्तावित 50980.08 एकड़ क्षेत्र में से केवल 18031 एकड़ क्षेत्र ही शेष रह गया है। यह 1991 में जो क्षेत्र विद्यमान था उससे नीचे आ गया है। नगर की औद्योगिक भू-उपयोग के लिए प्रस्तावित 4510.22 एकड़ भूमि में से 3952 एकड़ भूमि ही विकसित की गई अर्थात् 558.22 एकड़ क्षेत्र अविकसित रह गया जो कि नगर के औद्योगिक क्रियाओं के संबंध में नकारात्मक संकेत हैं। नगर में सरकारी भू-उपयोग के लिए 14869.4 एकड़ क्षेत्र में से मात्र 8398 एकड़ क्षेत्र ही विकसित हो सका जो कि नगर की प्रशासनिक विकास में तुलनात्मक अवनति को प्रदर्शित करता है। इसके अतिरिक्त नगर की मनोरंजन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुल प्रस्तावित 8398 एकड़ भूमि में से केवल 1008 एकड़ (12%) क्षेत्र ही विकसित किया जा सका जो कि नगर में मनोरंजन की सुविधाओं की अपर्याप्तता को दर्शाता है।

अतः जयपुर नगर में आवासीय इकाईयों के अंतर्गत ही सर्वाधिक भू-उपयोग हुआ है। जिसका मुख्य कारण नगर की जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ नगर के बाहर से भी विशाल जन समूहों का नगर की और आगमन है। जिसके फलस्वरूप नगर के समीपवर्ती क्षेत्रों की कृषि भूमि का विशाल पैमाने पर भू-उपयोग परिवर्तन किया गया। यह भू-उपयोग परिवर्तन कृषि भूमि व पर्यावरण हृास के लिए उत्तरदायी रहा है तथा नगर का वर्तमान आवासीय विन्यास में नगर की सुनियोजित नगर नियोजन की परम्परा व जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा निर्मित मास्टर प्लान के सिद्धान्तों के विपरीत अभियोजित आवासीय विन्यास का अनुसरण किया जा रहा है। अनियोजित आवासीय कॉलोनियाँ व मास्टर प्लान के विपरीत भवन निर्माण प्रतिरूप विकसित हो रहे हैं जो कि सुनियोजित नगर विन्यास में बाधा होने के साथ-साथ अनेक प्रकार की समस्याएँ भी उत्पन्न कर रहे हैं। जबकि नगर में उपयुक्त आवश्यकताओं के अनुसार वाणिज्यिक भूमि आरक्षित नहीं होने के कारण नगर की आवासीय व गैर वाणिज्यिक भूमि का वाणिज्यिक भू-उपयोग किया जा रहा है जो कि सुनियोजित भू-उपयोग व्यवस्था के विरूद्ध होने के साथ-साथ आवासीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं व दुर्घटनाओं की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। नगर में अत्यधिक आवासीय भू-उपयोग के फलस्वरूप अन्य मदों के अंतर्गत भूमि का पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है जिसके फलस्वरूप नगर में अनियोजित भू-उपयोग की व्यवस्था उत्पन्न हो रही है जो कि सुनियोजित नगरीकरण में बाधक सिद्ध हो रही है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. प्रों.हेरिस सी. डी.(1943) अमेरीका के नगरों का कार्यिक वर्गीकरण; मीनाक्षी प्रकाश मेरठ; पृ.सं. 424

2. प्रों. इरिकशन ई.जी (1954) अरबन बिहेवियर, न्यूयार्क;

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17. ज.वि.प्रा. की साहित्यिक, सांस्कृतिक, संगठनात्मक, गतिविधियों का दस्तावेज।