ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- XI February  - 2024
Anthology The Research

आधुनिक भारतीय समाज में महिला सशक्तिकरण में डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का योगदान

Contribution of Dr. Bhimrao Ambedkar in Women Empowerment in Modern Indian Society
Paper Id :  18533   Submission Date :  2024-02-10   Acceptance Date :  2024-02-20   Publication Date :  2024-02-25
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DOI:10.5281/zenodo.11084178
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भारती थापा
सहायक प्रवक्ता
राजनीति विज्ञान विभाग
चमन लाल महाविद्यालय, लण्ढौरा
जैनपुर झंझेरी, ,उत्तराखंड, भारत
धर्मेन्द्र कुमार
सहायक प्रवक्ता
राजनीति विज्ञान विभाग
चमन लाल महाविद्यालय, लण्ढौरा
जैनपुर झंझेरी, उत्तराखंड, भारत
सारांश

समाज हम मनुष्यों के द्वारा बनता है, समाज को जीवित बनाये रखने वाली परम्पराये, प्रथायें, धर्म, रीति-रिवाज, त्यौहार आदि का निर्माण व पालन भी हम मनुष्यों द्वारा किया जाता हैं। यह सभी कर्म समाज में विविधता और एकता बनाये रखने का एक सरल माध्यम हैं। समाज द्वारा निर्मित यह प्राचीन परम्परायें समय में परिवर्तन के साथ अपने शुद्ध व उपयोगी स्वरूप को बनाये रखने के लिए कुछ कठोर व विकृत रूप धारण कर लेती हैं, किन्तु जब यह धार्मिक परम्पराये समाज को बांधने एवं जीवित बनाये रखने के स्थान पर समाज को बांटने व असमानता उत्पन्न करने वाले बीज को बोने लगे ओर यही बीज समय व्यतीत होने के साथ-साथ विकराल विषैले वृक्ष का रूप धारण कर ले तो निश्चित रूप से समाज में रहने वाले मनुष्यों के लिए महाकष्ट दायी बन जाता हैं।

भारतीय सामाजिक व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में उपरोक्त कथन सत्य दिखाई देते है, अनेक विदेशी आक्रमणों से बदलती धार्मिक मान्यताओं ने भारतीय समाज को उसके शुद्ध रूप से विकृत कर अनेक कुप्रथाओं को समाज का भाग बना दिया था। यह भी सत्य कथन है कि यही समाज हमें समय-समय पर ऐसे महान समाज सेवी, जागरूक, बुद्धिजीवी व्यक्ति भी उत्पन्न करके देता हैं जो समाज में पनप रहें इस विषैले वृक्ष को जड़ से उखाड़ फेकने का महान कार्य करते हैं और समाज को पुनः नयी ऊर्जा से भर देते है जिससे समाज और अधिक सम्पन्न व समृद्ध बन सकें। इन्हीं महान बुद्धजीवी मनुष्यों में डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। डॉ. अम्बेडकर एक महान कर्मयोगी थे जिनके बनाये मार्ग पर चलकर लाखों महिलाओं ने स्वयं के जीवन को बदला हैं तथा सम्मानपूर्वक जीवन यापन करना प्रारम्भ किया।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Society is formed by us (humans), the traditions, customs, religion, customs, festivals etc. which keep the society alive are also created and followed by us. All these actions are a simple means to maintain diversity and unity in the society. These ancient traditions created by the society take some harsh and distorted forms with the change of time to maintain their pure and useful form, but when these religious traditions, instead of binding the society and keeping it alive, divide the society and If the seed causing inequality gets dwarfed and with the passage of time, this seed takes the form of a huge, poisonous tree, then it will definitely cause great trouble to the people living in the society.
In the context of Indian social system, the above statements appear to be true, the changing religious beliefs due to many foreign invasions had distorted the Indian society from its pure form and made many bad practices a part of the society. It is also a true statement that the same society, from time to time, produces such great social workers, conscious and intellectual persons who do a great job of uprooting this poisonous tree growing in the society and making the society new again. Fills it with energy so that the society can become more prosperous and prosperous. Among these great intellectuals, the name of Dr. Bhimrao Ambedkar will be written in golden letters. Dr. Ambedkar was a great Karmayogi, following whose path lakhs of women changed their lives and started living a respectable life.
मुख्य शब्द महिलाएं, दलित, सशक्तिकरण, समाज, अधिकार।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Women, Dalits, Empowerment, Society, rights.
प्रस्तावना

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महाराष्ट्र के मध्य प्रान्त के महु में हुआ था वह एक साधारण परिवार से सम्बधित थे एवं एक दलित परिवार में जन्में थे। वह एक राजनेता, अध्यापक, वकील, समाज सेवी, संविधान निर्माता, एवं नारीवादी नेताओं में अग्रणी थे।1 जिस समय इनका जन्म हुआ भारतवर्ष अग्रेजी सरकार का उपनिवेष बन चूका था साथ ही कई विदेशी आक्रमणों व विदेशी शासन का दंश भी झेल चुका था। इन विदेशी आक्रमणों का प्रभाव भारत की सामाजिक व्यवस्था पर गहरा व विपरीत परिणाम लाने वाला सिद्ध हुआ। भारत की गौरवशाली संस्कृति का पतन हो चुका था साथ ही अनेक कुप्रथायें घर कर चुकी थी जो न केवल अमानवीय थी वरन् समाज को बाँटने का कारक भी बनी परिणामस्वरूप बाल-विवाह, देवदासी प्रथा, छुआ-छूत, बहुविवाह, विधवा विवाह निषेध, जात-पात, ऊँच-नीच, व शिक्षा का परिसीमन जैसी अनेक कुप्रथाएं भारतीय समाज का अंग बन गयी थी। जिससे भारतीय समाज कई वर्गों में बंट गया था निचली जाति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति व दलित जाति की स्थित समाज में बहुत ही अधिक पिछड चूकी थी समाज के अन्य उच्च वर्गों द्वारा इनका शोषण किया जाता था उन्हें समाज में किसी भी प्रकार का सम्मान व अधिकार प्राप्त नहीं थे न ही उन्हें किसी प्रकार से सार्वजनिक स्थानों पर आने जाने का अधिकार, ग्रहण करने का अधिकार एवं उपयोग करने का अधिकार नहीं था। इन सभी पिछड़े वर्गों की महिलाओं की स्थित तो और भी अधिक बुरी थी उनका शोषण सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर बहुत अधिक किया जाता था उन्हें केवल पुरूषों की आज्ञा पालन करना होता था जिस कारण तथा संतान उत्पन्न करने ही होता था। जिस कारण उन्हें तो कहीं-कहीं मानव होने जैसी स्थिति भी प्राप्त नहीं थी वह केवल घर के कार्य करने के क्षेत्र तक सीमित हो चुकी थी। महिलाएं अत्यधिक सामाजिक शोषण का शिकार बन रही थी एवं इसे अपनी नियति मान कर बिना किसी विरोध के जीवन जीने की आदि हो चुकी थी।[2]

अध्ययन का उद्देश्य
डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु किये गये प्रयासों का अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

1. डॉ धर्मेंद्र कुमार द्वारा लिखित पुस्तक "वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता" 21वीं सदी  में अंबेडकर हमारे सामाजिक राजनीतिक विमर्श में कुछ इस तरह उभरे है कि वह महात्मा गांधी से भी महत्वपूर्ण नजर आते हैं क्योंकि अंबेडकर एक महान सामाजिक चिंतक के साथ सामाजिक विश्लेषक भी हुए हैंl

2. अहमद कुरैशी द्वारा लिखित पुस्तक "महिला सशक्तिकरण में बाबा साहब का योगदान" महिला सशक्तिकरण हेतु पारिवारिक स्तर पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह निषेध, महिलाओं का अशिक्षित होना आदि कुरीतियों  का विरोध किया व  महिलाओं को भी विरोध करने हेतु प्रेरित कियाl

3. डॉ कुसुम मेधवल द्वारा लिखित पुस्तक "भारतीय नारी के उद्धारक डॉक्टर बी आर अंबेडकर" अंबेडकर जी ने भारतीय समाज में सभी वर्गों से संबंधित महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किया डॉक्टर अंबेडकर जी भारत में प्रमुख नारीवादी आंदोलनकर्ता रहे हैं उनके द्वारा महिला उत्थान के लिए कई साहसिक कार्य किए गएl

मुख्य पाठ

डॉ. अम्बेडकर स्वयं दलित समाज से आते थे उन्होनें स्वर्ण जातियों द्वारा दलित जाति के व्यक्तियों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार को बचपन से लेेकर पूरे जीवन भर देखा व सहा था अतः वह महिलाओं के साथ होने वाले दोहरे व्यवहार से भली भाँति परिचित थे। भारतीय समाज में महिलाओं विशेषकर पिछड़ी, दलित, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, पारिवारिक व शैक्षिक क्षेत्र में भाग लेने पर कठोर निषेध व नियंत्रण था। महिलाएं पूर्णरूप से पुरूषों पर आश्रित हो चुकी थी उन्हें अपने निजी जीवन के विषय में सोचने, कार्य करने, व निर्णय लेने की भी अनुमति नहीं थी। इस समय पर अम्बेडकर जी ने महिलाओें को जागरूक करने व उनकी दशा में सुधार लाने, सम्मान दिलाने तथा पुरूषों के समान समानता के स्तर पर लाने हेतु कार्य करने का संकल्प लिया उन्होनें हर सभंव प्रयास व कार्य किया जिससे नारीवादी आन्दोलन को आगे बढ़ाया जा सकें।[3] नारीवादी आन्दोलनकर्ता के रूप में अम्बेडकर ने कई कार्य किये उन्होने साप्ताहिक पत्रिका मूकनायक‘बाहिष्कृत भारतका प्रकाशन प्रारम्भ किया जिसके माध्यम से महिला सशक्तिकरण पर अपने विचारों को फैलाया।[4] भारतीय समाज की दुदर्शा का एक महत्वपूर्ण कारण उन्होनें वर्ण व्यवस्था को माना जिससे सभ्य समाज को चार वर्णों में विभाजित कर न केवल बांटा वरन् असमानता उत्पन्न की जिससे ऊँची जातियों को निम्न व दलित जातियों के साथ अमानवीय व्यवहार व शोषण करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गया निश्चित रूप से इससे महिलाएं अधिक प्रभावित हुई परिणामस्वरूप महिलाएँ दूसरे निम्न स्तर की प्राणी मात्र बनकर रह गयी।

अम्बेडकर जी ने सभी लोगों से आग्रह किया कि वे परिवार की महिलाओं व बालिकाओं को शिक्षित बनायें, क्योंकि शिक्षा ही वह माध्यम है जो महिलाओं को इन सामाजिक वर्ण व्यवस्था को तोड़ने की शक्ति प्रदान करा सकती हैं। अम्बेडकर जी ने महिलाओं से कहा कि वे न केवल शिक्षा ग्रहण करें साथ ही सवर्ण जाति की महिलाओं के समान वस्त्र पहने व सम्मानपूर्वक जीवन भी जीना शुरू करें। जिससे समाज में उन्हें भी समानता व सम्मान का पात्र समझा जायेगा। शिक्षा उन्हें वह अवसर उपलब्ध करायेगी जिससे वह अब तक वंचित थी। उन्होनें महिलाओं से कहा हमें अपने स्वाभिमान की बलि दिये बगैर गरीबी में सही तरीके से और इज्जत से जीना चाहिए।[5] 1928 में वह बाम्बे परिषद के सदस्य मनोनीत किये गये तब उन्होंने महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश देने की माँग की जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य की देख-रेख का समय मिल सकें।[6] अम्बेडकर जी द्वारा 1928 महिला समिति की स्थापना की गयी जिसकी अध्यक्षा रमाबाई अम्बेडकर जी की पत्नी थी यह एक ऐसा मंच था जो महिलाओं के अधिकारों के लिये बनाया गया था बड़ी संख्या में महिलाएं इस मंच का भाग बनी।[7] 1932 में अम्बेडकर जी ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया सम्मेलन में भी उन्होनें महिलाओं के लिए समानता का अधिकार देने पर जोर दिया, जब वह सम्मेलन से वापस देश लौटे तो उन्होनें हजारों की संख्या में महिलाओं को सम्बोधित किया और उन्हे समान अधिकार देने की बात कही। निश्चित रूप से जब अम्बेडकर जी ने भारत का संविधान लिखा तो उसमें देश के सभी नागरिकों को बिना किसी भेद-भाव के समान नागरिक अधिकार प्रदान किये।[8]

पारिवारिक स्तर पर महिलाओं के साथ होने वाले भेद-भाव जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह निषेध, लडकियों के साथ असमानता का व्यवहार, अशिक्षा का अम्बेडकर जी ने सदा विरोध किया तथा महिलाओें को भी विरोध करने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होनें ने कई कल्याणकारी व परिवर्तनकारी कार्य किये। अम्बेडकर जी ने वर्षों से चली आ रही देवदासी प्रथा तथा मन्दिरों में महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण के विरूद्ध कार्य किया। इसके लिए उन्होनें महिलाओं से कहा कि वह स्वयं आगे बढ़े और इन अमानवीय प्रथाओं का विरोध कर स्वयं को इस प्रकार देवदासी बनने व समुदाय विशेष के लिए उपस्थित होने से मना    करें।[9] महिलाएं भी अपने अधिकारों के लिए जागरूक हुई और इन प्रथाओं का विरोध करने लगी। अम्बेडकर जी ने भारतीय समाज में सभी वर्गों से सम्बधित महिलाओं के लिए कार्य किया ऐसे में उन्होनें वैश्यावृत्ति कर जीवनयापन करने वाली महिलाओं के लिए भी कार्य किया यह कार्य बहुत ही सहासिक था। 19 जून 1936 में बम्बई के देवदास ठक्कर हॉल में अम्बेडकर जी ने बडी संख्या में वैश्याओं को सम्बोधित कर कहा कि वह वैश्यावृत्ति का त्याग कर साधारण महिलाओं के समान जीवन जीना प्रारम्भ करें, विवाह भी करे एवं घर बसा कर समाज में सम्मानपूर्वक जीवन जिये। उनके ओजपूर्ण भाषण का सकारात्मक प्रभाव इन महिलाओं पर पडा परिणामस्वरूप कई महिलाओं ने वैश्यावृत्ति का त्याग कर साधारण महिलाओं के समान जीवन जीना प्रारम्भ किया।[10]

10 नवम्बर 1938 में बंबई विधानसभा में परिवार नियोजन के उपाय अपनाने केे लिए अम्बेडकर जी ने सभी से कहा और अपने विचारों को सभी से समक्ष रखा उन्होनें महिलाओं से कहा कि केवल अधिक संताने उत्पन्न कर वंश को आगे बढ़ाना उनका एकमात्र कार्य नहीं हैं वह मानते थे कि गर्भावस्था धारण करना महिलाओं के लिए एक विकल्प हैं जिसे वह अपनी सुविधानुसार स्वयं को ध्यान में रखकर चुन सकती हैं साथ ही अम्बेडकर जी ने महिलाओं को जन्म नियंत्रण की सुविधा देने की मांग की।[11] 20 जुलाई 1942 में अम्बेडकर जी श्रम सदस्य बने तब उन्होनें श्रमिक महिलाओं की कार्य करने की स्थिति को स्वयं देखा और यह माना कि कार्यस्थल पर महिलाओं को लिए बहुत अधिक सुविधाओं की कमी है जिन्हें उपलब्ध कराने के लिए बहुत से कार्य उनके द्वारा किये गये। सर्वप्रथम उन्होने कार्य के घन्टों को कम कराया एवं जिससे महिलाओं को स्वयं के लिए समय मिल सके साथ श्रमिक महिलाओं के छोटे बच्चों की देख भाल के लिए भी विश्राम स्थल कि व्यवस्था करायी जिससे वह अपने बच्चों की चिंता से मुक्त हो कर कार्य कर सकें। महिलाओें के लिए अवकाश की मांग कि साथ ही प्रसव काल में सवेतन अवकाश की सुविधा की मांग की और तर्क दिया कि जब नियोक्ता को महिला श्रमिक से लाभ मिलता है तो उन्हें भी आंशिक रूप से महिलाओं का समर्थन करना चाहिऐ। अम्बेडकर जी ने कहा कि शेष धनराशि सरकार को महिला श्रमिक को देनी चाहिए क्योंकि महिलाएं जब बच्चे को जन्म देती है तो वह देश के लिए आने वाली संतान देती है अतः उन्हें मातृत्व अवकाश की सुविधा देनी चाहिए। उन्होंने महिलाओं को पुरूष श्रमिक के समान ही वेतन देने को पूर्ण समर्थन किया।[12] अम्बेडकर जी ने हिन्दू धर्म के कुछ ग्रन्थों का विरोध किया विशेषकर मनुस्मृति का विरोध किया क्योंकि मनुस्मृति में कुछ ऐसे श्लोक लिखे गये हैं जो पूर्ण रूप से हिन्दू महिलाओं को पुरूषों की अधीनता स्वीकार करने पर बाध्य करते हैं साथ ही महिलाओं के विकास के मार्ग में बाधां उत्पन्न करते थे अतः अम्बेडकर जी ने महिलाओं को एकत्र कर बहुत सारी मनुस्मृति की प्रतियों को जला दिया था और यह स्पष्ट संदेश दिया कि जो भी पुस्तक, धर्म, संस्कार, प्रथा महिलाओं के विरूद्ध होगी तथा महिलाओं के जीवन का हास करेगी वह उसका विरोध करेंगें।[13] अम्बेडकर जी द्वारा विरोध करने की जो युक्ति अपनायी गयी  आज भी लोगों के द्वारा अपना विरोध प्रकट करने का माध्यम बनी हुई हैं। अम्बेडकर जी ने महिलाओं के उत्थान के लिए अन्तिम विकल्प के रूप में एक मार्ग यह चुना कि हिन्दू धर्म का त्याग कर दिया जाये वह मानते थें कि महिलाओं के जीवन में आयी इस दुदर्शा का प्रमुख कारण स्वयं हिन्दू धर्म हैं। तत्कालीन समय में हिन्दू धर्म में इतनी अधिक कुप्रथाएं व संस्कार आ चुके थे कि उन्हें समाप्त कर पाना संभव नहीं था अतः एक कर्मयोगी नारीवादी आन्दोलनकर्ता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अम्बेडकर जी ने यह उचित समझा कि हिन्दू धर्म का त्याग करें जिससे महिलाओं और समाज को हिन्दू धर्म के अमानवीय पक्षपात से सदा के लिए मुक्त कर दिया जाये। अतः अम्बेडकर जी ने स्वयं बौद्ध धर्म अपनाया और उन्हीं के साथ 50000 व्यक्यिों ने भी हिन्दू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया जिसमें हजारों की संख्या में महिलाओं ने भी हिन्दू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया और सदा के लिए स्वयं को हिन्दू धर्म में अपनायी जाने वाली कुप्रथाओं से मुक्त हो गयी।

निष्कर्ष

डॉ. अम्बेडकर जी भारत में प्रमुख नारीवादी आन्दोलनकर्ता रहे है उनके द्वारा महिला उत्थान के लिए कई साहसिक व परिवर्तनकारी कार्य किये गये है जिनका वर्णन एक शोध पत्र में कर पाना संभव नहीं हैं आज वर्तमान भारत में महिलाएं जिस स्वतन्त्रता को बिना किसी रोक के अनुभव कर पा रही है उसका श्रेय निश्चित रूप से अम्बेडकर जी को जाता हैं। अम्बेडकर जी ने तत्कालीन भारतीय समाज में फैली बुराइयों विशेषकर दलित व निम्न जाति के साथ होने वाली अमानवीय व्यवहार को स्वयं अनुभव किया है अतः वह महिलाओं की स्थिति को सही अवलोकन कर पाये और महिलाओं के जीवन के दुख को समझकर ही वह जीवनपर्यन्त महिलाओं के लिए आन्दोलन करते रहें। अम्बेडकर जी ने संविधान के माध्यम से महिलाओं को पुरूषों के समान ही सभी प्रकार के नागरिक अधिकार प्रदान किये। आज महिलाऐं सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, पारिवारिक, शैक्षिक व सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त कर पायी है वह अम्बेडकर जी की ही महिलाओं के लिए एक प्रकार से उपहार हैं। उन्होनें बिना किसी भेद-भाव के जीवन जीने का अधिकार महिलाओं को प्रदान किया और इन अधिकारों का किसी प्रकार हनन न किया जा सके इस हेतु न्यायपालिका को वह अधिकार व शक्ति प्रदान की जो कि उनकी दूरदृष्टि को प्रकट करता हैं। उनके द्वारा किये गया नारीवादी सघर्ष ने देश ही नहीं विदेश में भी नारीवादी आन्दोलन को प्रेरणा प्रदान कि हैं व सदैव करते रहेगें। महिला उत्थान व सशक्तिकरण के लिए उनके द्वारा किये गये कार्य मील के पत्थर सिद्ध हुऐ है और आगे भी आने वाली नयी पीढ़ी को प्रेरित करते रहेगें।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. hi.wikipedia.org

2. बिपिन चन्द्र व अन्य, हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जुलाई 2009, पृ.2

3. डॉ.नीषु भाटी, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डॉ. अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता, प्रगतिशील प्रकाशन, नई दिल्ली, 2018, पृ.29

4. कु. हेमलता वर्मा, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डॉ. अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता, प्रगतिशील प्रकाशन, नई दिल्ली, 2018, पृ.41

5. मनीष चन्द्र, महिला सशक्तिकरण में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का योगदान, टाइम्स पब्लिकेशन, नई दिल्ली, 2015, पृ. 283    

6. डॉ. प्रभात कुमार व दीपाक्षी शर्मा, आधुनिक युग का मनुः डॉ. भीमराव अम्बेडकर, प्रगतिशील प्रकाशन, नई दिल्ली, 2018, पृ.63

7. मनीश चन्द्र, महिला सशक्तिकरण में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का योगदान, टाइम्स पब्लिकेशन, नई दिल्ली, 2015, पृ. 284

8. www.legalservicesindia.com

9.https://www.thequint.com/opinion/ambedkar-feminism-women-empowerment-indian-women-right-to-vote-divorce-property-rights-gender-equality

10. मनीष चन्द्र, महिला सशक्तिकरण में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का योगदान, टाइम्स पब्लिकेषन, नई दिल्ली, 2015, पृ. 285

11. https://gaurilankeshnews.com/babashaheb-ambedkar-champion-of-womens-rights/

12. मनीश चन्द्र, महिला सशक्तिकरण में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का योगदान, टाइम्स पब्लिकेशन, नई दिल्ली, 2015, पृ. 289

13.https://gaurilankeshnews.com/babashaheb-ambedkar-champion-of-womens-rights/