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चीन-अमेरिका सम्बंध - नवीन परिप्रेक्ष्य में |
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China-US Relations – In a New Perspective | |||||||
Paper Id :
18774 Submission Date :
2024-03-11 Acceptance Date :
2024-03-21 Publication Date :
2024-03-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.11076511 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
द्वितीय महायुद्ध के बाद
यूक्रेन में सबसे रक्तरंजित संघर्ष देखने को मिल रहा है, परन्तु इन दिनों चीन और अमेरिका में जिस तरह की तनातनी
लगातार चल रही है, उसे देखकर लगता है, कहीं दोनों महाशक्तियों के बीच चल रहा शीतयुद्ध खुले संघर्ष
में न बदल जाए ? दोनों राष्ट्रों के बीच उभरती द्विध्रुव्रीयता
ने वैचारिक शत्रुता को और बढ़ा दिया है। इस लेख में दोनों
महाशक्तियों द्वारा एक दूसरे की आर्थिक-सामरिक मोर्चाबन्दी हेतु किए जा रहे
संस्थागत और प्रकार्यात्मक क्रियाकलापों का तार्किक विश्लेषण किया जाएगा। चीन की
आर्थिक नाकाबन्दी के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापार युद्ध (Trade war) का उद्घोष किया। दक्षिण चीन सागर में चीन की एकाधिकारवादी
प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए दुनिया के चार बड़े लोकतंत्रो ने चतुष्कोण (Quad) की रचना की। वहीं हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन की
घेराबन्दी करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका (AUKUS) ने
सामरिक गठबन्धन बनाया। चीन के ‘उइगर समुदाय के मानवाधिकारों के विषय पर अमेरिका संयुक्त राष्ट्र में
नियन्त्रण और दबाव के साधनों से चीन पर दबाव बनाने की कोशिश करता है।
वहीं चीन नैन्सी पैलोसी की
ताइवान यात्रा का जबरदस्त विरोध करता है और इसे चीन की सम्प्रभुता पर हमला बताता
है। अमेरिका के परमाणु ठिकानों की जासूसी करने के लिए गुब्बारों का प्रयोग करता
है। चीन के विदेश मंत्री यांग - यी हर जगह नियन्त्रण और दबाव बनाने की अमेरिकी
रणनीति को ‘जिन्दगी और मौत के खेल‘ के रूप में प्रचारित करते है। दोनों महाशक्तियाँ एक दूसरे
के विरुद्ध वही दाव खेल रही हैं, जो शीतयुद्ध के
जमाने में अमेरिका और सोवियत संघ खेला करते थे। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | After the Second World War, Ukraine is witnessing the bloodiest conflict, but looking at the ongoing tension between China and America these days, it seems that the ongoing cold war between the two superpowers might turn into an open conflict. ? The emerging bipolarity between the two nations has further increased the ideological animosity. In this article, a logical analysis will be made of the institutional and functional activities being carried out by both the superpowers for economic-strategic blockade of each other. US President Donald Trump declared a trade war for China's economic blockade. To curb China's monopolistic tendencies in the South China Sea, four major democracies of the world formed the Quad. Australia, United Kingdom and America (AUKUS) formed a strategic alliance to encircle China in the Indo-Pacific region. America tries to put pressure on China through means of control and pressure in the United Nations on the issue of human rights of China's Uyghur community. At the same time, China strongly opposes Nancy Pelosi's visit to Taiwan and calls it an attack on China's sovereignty. Uses balloons to spy on America's nuclear sites. China's Foreign Minister Yang Yi promotes the American strategy of control and pressure everywhere as a 'game of life and death'. Both the superpowers are playing the same game against each other that America and the Soviet Union used to play during the Cold War era. |
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मुख्य शब्द | द्विध्रुवीयता, एकाधिकारवादी प्रवृत्ति, शीतयुद्ध, चतुष्कोण, वैचारिक प्रतिद्वंद्विता सामरिक घेराबन्दी, राजनयिक पराजय। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Bipolarity, Authoritarian Tendencies, Cold War, Quadrilateral, Ideological Rivalry, Strategic Siege, Diplomatic Defeat. | ||||||
प्रस्तावना | शोध पत्र में चीन - अमेरिकी
सम्बंधों को शीतयुद्ध की भाँति तीन भागों में विभाजित कर विश्लेषित किया जाएगा।
दोनों देशों के आरंभिक सम्बंध शीतयुद्ध के कारण कठोर साँचे में ढ़ले हुए थे।
माओत्से-तुंग के नेतृत्व में 1949 में चीन में साम्यवादी क्रांति हुई। इस क्रांति
की सफलता को अमेरिका ने अपनी राजनय पराजय के रूप में लिया। अमेरिका ने साम्यवादी
चीन की बजाय फारमोसा टापू की राष्ट्रवादी सरकार को मान्यता दी, साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O) में सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता भी प्रदान की। चीन ने
अमेरिका से प्रतिद्वंद्विता के चलते कोरिया- युद्ध में उत्साह से भाग लिया। साम्यवादी
चीन ने म्यामांर, वियतनाम, कम्पूचिया, इण्डोनेशिया के मुक्ति संग्रामों में हस्तक्षेप
करना आरम्भ कर दिया। साम्यवादी होने के नाते चीन सोवियत संघ खेमे का प्रभावशाली
सदस्य बन गया, जिससे पूर्वी ब्लॉक की शक्ति में इजाफा हुआ। चीन
की उग्र नीतियों के चलते उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा। साथ
ही एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने, व्यापारिक प्रतिबंधों से उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयों से
निपटने हेतु चीन की विदेश नीति शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और मृदुता की ओर बढ़ने लगी। 1969 में चीन-वियतनाम युद्ध
शुरू हो गया। राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के नाम पर अमेरिका भी इस
युद्ध में उतर गया । परन्तु युद्ध की उलझनों से यू.एस.ए. शीघ्र ही परेशान हो गया।
1971 में अमेरिकी विदेश सचिव हेनरी किसिंगर ने चीन की यात्रा की। 1972 में अमेरिकी
राष्ट्रपति निक्सन ने भी चीन का दौरा किया। चीन की मदद से अमेरिका वियतनाम युद्ध
की उलझन से बाहर निकल पाया। अमेरिका ने चीन को राजनायिक मान्यता प्रदान की और
सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बना दिया। फारमोसा (ताइवान) को संयुक्त राष्ट्र से
बाहर कर अमेरिका ने ‘एक चीन‘ सिद्धान्त को भी स्वीकार कर लिया। जून 1981 में सोवियत विस्तारवाद को रोकने के
लिए पीकिंग-वाशिंगटन के बीच समझौता हो गया। इस संधि के बाद चीन अमेरिका के सुर में
सुर मिलाने लगा। अफगानिस्त में सोवियत सेना के प्रवेश, कम्पूचिया में वियतनाम के हस्तक्षेप के मुद्दों पर चीन का
दृष्टिकोण अमेरिका के समान रहा। 1985 में दोनों देशों (चीन-अमेरिका) के बीच परमाणु
समझौता हुआ। वर्ष 1997 में जियांग जैमिन - विल क्लिंटन के बीच नाभिकीय अप्रसार, सैन्य सम्पर्क, पर्यावरण वाणिज्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, विधि, प्रशासन आदि
विषयों में परस्पर सहयोग करने पर सहमति हुई। सोवियत संघ के विस्तार को रोकने, आर्थिक और व्यापारिक जरूरतों ने दोनों राष्ट्रों के
सम्बंधों में दैतान्त काल जैसा माहौल पैदा कर दिया! शीतयुद्धकालीन सम्बंधों का यह स्थिलन चाहे किसी भी मजबूरी का परिणाम हो, परन्तु वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही चीन साम्यवादी जगत का नेतृत्व करने को लालायित हो गया। साम्यवादी भूमिका को विश्वव्यापी बनाने के लिए चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार किये। साथ ही चीन ने अपनी छवि को ’सॉफ्ट पॉवर‘ के रूप में स्थापित करने के प्रयास शुरू कर दिए। अपनी संस्कृति, मूल्यों और उत्पादों को विदेशों में एक ब्राण्ड के रूप में स्थापित कर व्यापार निवेश, वाणिज्य, मित्रता के रास्ते खोजना इस नीति का अंग है। इमेज - बिल्डिंग के कार्यक्रम के साथ ही चीन एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में तेजी से संरचनात्मक निवेश कर रहा है। तीसरे विश्व में सड़क, पुल, बाँध, बन्दरगाह, एयरपोर्ट, रेल, खनन, के विकास में चीन गहरी रुचि ले रहा है। चीन के बढ़ते आर्थिक साम्राज्य से सुपर पावर अमेरिका का चिंतित होना स्वाभाविक है। चीन वन वेल्ट वन रोड (OBOR) के माध्यम से एशिया, अफ्रीका के साथ यूरोप तक अपना व्यापारिक - वाणिज्यिक साम्राज्य मजबूत करने में लगा है। अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन की एकाधिकारवादी शक्ति पर नकेल कसने की तैयारी में है। चीन की आर्थिक - सामरिक मोर्चाबन्दी करने के लिए लोकतांत्रिक देशों का गठबंधन तैयार किया है। इस क्रम में चीन तानाशाह और निरंकुश शासकों से अपनी नजदीकियाँ बढ़ा रहा है। इस प्रतिस्पर्धा ने चीन-यूएस सम्बंधों को प्रतिद्वंद्वात्मक और संघर्षपूर्ण बना दिया है, इन्हीं तनावपूर्ण सम्बंधों को चीन-अमेरिकी नवीन शीतयुद्ध की संज्ञा दी जा रही है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. चीन और अमेरिका की
द्विधु्रवीय प्रतिद्वंद्विता का विश्लेषण करना। 2. दोनों महाशक्तियों के
बीच शीतयुद्ध जैसी संभवानाओं की खोज करना। 3. दोनों राष्ट्रों के मध्य
चल रही आर्थिक और सामरिक मोर्चाबन्दी का अध्ययन करना। 4. वैश्विक नेतृत्व के संघर्ष में दोनों देशों की प्रतिस्पर्द्धा की समीक्षा करना। 5. विश्व शांति हेतु दोनों राष्ट्रों के मध्य सहयोग, सौहार्द्ध व विश्वास बहाली के उपाय सुझाना। |
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साहित्यावलोकन | 1. बघेल, वीरेन्द्र सिंह, “भारत, चीन अमेरिका संबंध“ गैलेक्सी पब्लिशर्स पुस्तक में समाहित कुल 24 अध्यायों में से अध्याय, ’चीन ने अमेरिका को दी ’तीसरे विश्व युद्ध’ की धमकी में “दोनों शक्तियो की दक्षिण चीन सागर में चल रही प्रतिद्वंदिता को लेकर विवरण
लिया है। चीन की दक्षिण चीन सागर में एकल प्रभुत्व की आकांक्षा और उसे रोकने के
लिए अमेरिका के राजनयिक और सैन्य गठबंधनों का उल्लेख किया गया है। 2. चक्रवर्ती, डॉ मानस, ’अमेरिका-चीन- ताइवान तनाव का एक त्रिकोण’ वर्ल्ड फोकस, अंक 133, अप्रैल 2023 लेख में बताया गया है कि “अंतर्राष्ट्रीय
संबंधों में ताइवान का मुद्दा चीन और अमेरिका के संबंधों में सबसे गर्म और
सर्वाधिक बहस वाले क्षेत्रों में से एक है। 3. बाजपेयी प्रो. अरुणोदय, ’अमेरिका - चीन रणनीतिक प्रतिद्वंदिता प्रमुख चालक और
धारणाएं, वर्ल्ड फोकस, अंक 133, अप्रैल 2023 में लिखते है, वर्ष 2017 में ट्रम्प शासन ने नवीन सुरक्षा रणनीति अपनाते हुए चीन को अमेरिकी हितों और
वैश्विक प्रभाव के लिए नंबर एक वैश्विक खतरे के रूप में पहचान की। अमेरिका ने ताइवान
को हथियारों की सप्लाई बढ़ाई, क्वाड़ (QUAD) को पुर्नजीवित किया। वहीं बाइडन सरकार ने प्रशांत क्षेत्र
की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए सितम्बर 2021 में AUKUS त्रिपक्षीय सैन्य गठबंधन बनाया। 4. घीसिंग डॉ आदित्य कांत ’हिन्द प्रशांत में यूएसए-चीन संबंध एक क्षेत्रीय
परिप्रेक्ष्य में उभरते मुददे वर्ल्ड फोक्स अंक 133 अप्रैल 2023 में बताते है कि 21 वीं शताब्दी की शुरूआत एक नवीन शीत युद्ध से हुई है। चीन
की महत्वाकांक्षी ओबोर (OBOR - One belt One Road) योजना की
घोषणा के बाद चीन और अमेरिका जैसी दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में बहुस्तरीय
प्रतियोगिता प्रारंभ हो गयी है। अमेरिका ने चीन की घेराबंदी के लिए अपना फोकस मध्य
पूर्व की बजाए हिन्द प्रशांत क्षेत्र में किया है। 5. निम, अवनीत कुमार, ’यूएसए व चीन के बीच शीतयुद्ध की कुटनीति’ वर्ल्ड फोकस, अंक 133, अप्रेल 2023 में विश्लेषण करते हुए लिखते हैं कि, ’21 वी. शताब्दी बहुध्रुवीयता के लिए चिन्हित है। पिछले 20 वर्षों में चीन ने आर्थिक, तकनीकी और सैन्य क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। चीन का त्वरित विकास
अमेरिका के एकल प्रभुत्व को चुनौती दे रहा है। दोनों शक्तियों ने व्यापार में
संरक्षणवाद, सैन्य तनाव, व्यापार बाधाओं, उलझी रणनीतियों से एक दूसरे को प्रतिद्वंदी बना
लिया है। 6. न्यूयॉर्क टाइम्स के साभार दैनिक भास्कर मई 2022 में छपे लेख के अनुसार चीन का ताइवान के प्रति आक्रमक
रवैया है। अमेरिका लोकतांत्रिक देशों की रक्षा के लिए प्रतिबद्व है। अमेरिका ने
चीन से इतर हिन्द प्रशांत क्षेत्र के 12 राज्यों के साथ मिलकर इण्डों पैसेफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क बनाया है।
7. न्यूयार्क टाइम्स के साभार दैनिक भास्कर जनवरी 2023 में प्रकाशित लेख में बताया है कि 10 से 12 फरवरी 2023 के बीच अमेरिका के एयर स्पेस के स्पेशल बैस व मोंटाना क्षेत्र में जासूसी
गुब्बारें देखे गए। अमेरिका का दावा है कि चीन इन जासूसी गुब्बारों से अमेरिका के
परमाणु ठिकानों की जासूसी करवा रहा है। जबकि चीन का कहना है कि ये गुब्बारें मौसम
विज्ञान के अध्ययन के लिए छोड़े गए थे, परन्तु मार्ग भटक जाने से अमेरिका की तरफ चले गए। |
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मुख्य पाठ |
चीन विश्व की दूसरी बड़ी
अर्थव्यवस्था है। अपनी मजबूत सैन्य और आर्थिक ताकत के बल पर वह तीसरी महाशक्ति का
दर्जा प्राप्त कर चुका है। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस अमेरिका से प्रत्यक्ष
संघर्ष करने से परहेज करने लगा है। ऐसे में विश्व में नया शक्ति संतुलन स्थापित हो
रहा है जिसके एक पलड़े में चीन व दूसरे में अमेरिका है। इस नवीन शक्ति संतुलन में
दोनों राष्ट्रों में उग्र शीत युद्ध का नया दौर प्रारंभ हो गया हे। जनवादी चीन और
संयुक्त राज्य अमेरिका के सम्बंध सर्वाधिक प्रतिस्पर्द्धात्मक और
प्रतिद्वंद्वात्मक हो रहे हैं। ताइवान - अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की घोषणा, ‘‘यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका उसका सुरक्षा
कवच बनेगा ।‘‘ ताइवान के प्रति चीन की आक्रमक नीति के कारण
यूएस को ताइवान के प्रति अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा। ताइवान के प्रति
अमेरिका की प्रतिबद्धता से जापान, दक्षिण कोरिया
और भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों को भी मुख्य कवच प्राप्त होगा। परन्तु अमेरिका को
यह भी ध्यान रखना होगा कि वह चीन से आयातित माल पर शुल्क बढ़ाकर चीन को आर्थिक
नुकसान पहुंचाने की नीति भी साथ-साथ अपनाएं। क्योकि चीन सैनिक दृष्टि से बहुत
मजबूत है परन्तु आर्थिक मोर्चे पर चोट पड़ेगी तो सैनिक मोर्चा भी कमजोर पड़ेगा । चीन, ताइवान में बाहरी हस्तक्षेप का घोर विरोधी है, वह ‘एक चीन‘ सिद्धान्त के अंतर्गत ताइवान को अपना ही भाग मानता है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा
की स्पीकर नैन्सी पैलोसी की ताइवान यात्रा से चीन भड़क गया और उसने यूएस को युद्ध
करने की धमकी तक दे दी। पैलोसी की ताइवान यात्रा शुरू होते ही चीन के 21 सैन्य
विमान, ताइवान डिफेन्स जोन में घुस गए। अमेरिका ने
ताइवान की खाड़ी में जहाजी बेड़ा भेजकर पैलोसी की सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए।
पैलोसी ने कहा, कि ‘‘उनकी ताइवान यात्रा का एकमात्र उद्देश्य स्वशासित ताइवान का समर्थन है।
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका निरंकुश ताकतों के विरुद्ध लोकतंत्र के लिए संघर्ष
कर रहा है, सभी लोकतांत्रिक देशों को यूएस के साथ आना
चाहिए।’’ व्यापार युद्ध - व्यापार संवाद की कमी के कारण अमेरिका-चीन के बीच
व्यापार-युद्ध का जन्म हुआ। इस व्यापारिक टकराव के चलते दोनों राष्ट्रों ने एक
दूसरे के उत्पादों पर आयात शुल्क अधिरोपित किये। डोनाल्ड ट्रम्प ने 2018 में
अमेरिकी उद्योगों के संरक्षण के लिए, बेकारी की समस्या के समाधान बाबत और व्यापार संतुलन हेतु चीन से आने वाले
उत्पादों यथा रसायन, मेटल्स और रेलवे के सामानों पर 25 फीसदी आयात
शुल्क लगाया। जवाबी कार्यवाही करते हुए चीन ने अमेरिका से आने वाली कारों, कोयला इत्यादि उत्पादों पर 25% इम्पोर्ट टैक्स लगा दिया।
विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के साथ-साथ सोयाबीन और सोरगम (मुर्गी, सुअर दाना) जैसी फसलें भी व्यापार युद्ध की चपेट में आ गयी।
यद्यपि जो बाइडन की सरकार का रूख कुछ नरम पड़ चुका है, फिर भी दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ एक दूसरे से टकरा रही है। हाल ही में वाशिंगटन में
अंतरर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की प्रबन्ध निदेशक क्रिस्टालिना
जॉर्जीवा ने बसंतकालीन संयुक्त बैठक में कहा ‘‘सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हम वैश्विक आपूर्ति की सुरक्षा बढ़ाने के संकल्प
को मजबूत करते हुए भी दुनिया को दूसरे शीतयुद्ध की ओर जाने से रोक सकते हैं।
व्यापार, उद्योग, आपूर्ति, ऊर्जा सुरक्षा इत्यादि मुद्दों पर चीन और
अमेरिका में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। दोनों विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ
हैं, प्रथम आने और प्रथम बने रहने के लिए दोनों के
बीच घनघोर शीतयुद्ध चल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि, ‘‘दुनिया भर में बढ़ते भूराजनीतिक तनाव के मद्देनजर वैश्विक
अर्थव्यवस्था एक बार फिर खेमों में बंट सकती है और इसके कारण वित्तीय अस्थिरता
बढ़ेगी जिसके चलते दुनिया की G.D.P में 2023 में ही
0.2% से 7% तक गिरावट आ सकती है। चीन और अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों के चलते दोनों के बीच टकराव तो बढ़ ही रहा है। वैश्विक मूल्य श्रृंखला, विनिर्माण, उद्योग, श्रम - गहन उत्पादन के खतरों के कारण विश्व व्यापार पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। प्रशुल्क के खतरों के कारण विश्व व्यापार संगठन (W.T.0.) के अस्तित्व पर भी प्रश्न-चिन्ह लग रहा है। G-7 के विदेश मंत्रियों की जापान की बैठक में चीन का नाम लिये बिना संकल्प लिया गया ‘‘सप्लाई चेन का विविधकरण जरूरी है जिससे निम्न मध्यम आय वर्ग के देशों को भी बड़ी भूमिका मिलेगी और आपूर्ति श्रृंखला लचीली और टिकाऊ होगी।" मानवाधिकार - शीतयुद्ध के मोर्चे पर अमेरिका, चीन एक दूसरे के विरुद्ध दूषित प्रचार-प्रसार से भी नहीं चूक रहे। दोनों देश वैश्विक मंचों पर और क्षेत्रीय आर्थिक, राजनीतिक संगठनों में एक दूसरे को बदनाम करने के लिए मानवाधिकार को भी मुद्दा बना रहे है! अमेरिका वर्ष 1989 के थ्येनआनमन चौक के युवा नरसंहार की बात उछाल कर चीन को लोकतंत्र का हंता बताता है। हाल ही में चीन के
जिनजियांग प्रांत के ‘उइगर‘ समुदाय (मुस्लिम समुदाय) मानवाधिकारों के हनन विषय को अमेरिका ने खूब हवा दी
है। यहीं नहीं अमेरिका चीन के विरुद्ध मानवाधिकार हनन के विषय को संयुक्त राष्ट्र
मानवाधिकार आयोग (UNHRC) में भी घसीट ले गया।
अमेरिका की विशेष रुचि के कारण UNHRC ने उच्चायुक्त
मिशेल बैचलेट को जिनजियांग प्रांत का दौरा करने चीन भेजा। यद्यपि चीन ने UNHRC की टीम को 21 दिन के क्वांरटीन मे रख कर मीडिया को दूर कर
वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए मिशेल की रिपोर्ट पर मन मुताबिक लीपापोती करवा ली। फिर
भी चीन के उइगर मुस्लिम समुदाय के मानवाधिकार का मुद्दा विश्व व्यापी बन गया। अमेरिका और चीन ने वैचारिक शत्रुता के लिए जिस तरह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप किया, उससे इस वैश्विक संस्था की विश्वसनीयता को निश्चित रूप से धक्का लगा। दोनों महाशक्तियों की आपसी खींचतान से न केवल संयुक्त राष्ट्र संघ जेसी संस्थाओं की साख को बट्टा लगेगा, वरन इसकी आनुषंगिक संस्थाएं भी पंगु हो जाएगी। जासूसी: आर्थिक सामरिक मोर्चाबन्दी के साथ-साथ अमेरिका और चीन एक दूसरे की परमाण्विक क्षमता, अंतरिक्ष कार्यक्रमों, सुरक्षा के हथियारों, मिसाइलों की तैनाती इत्यादि की टोह लेने की कोशिशें करते रहते हैं। चूंकि दोनों महाशक्तियां तेजी से अपना वर्चस्व विश्व में स्थापित करने का प्रयास कर रही है, इसलिए दोनों एक दूसरे की जासूसी करने से भी बाज नहीं आते। जनवरी 2023 में अमेरिका के एयर स्पेस के स्पेशल बेस व इण्टर कॉण्टिनेंटल मिसाइल ऑपरेट करने वाले स्थल मोंटाना में स्पाई बैलून नजर आया, जिसे 5 फरवरी 2013 को यूएस एयरफोर्स ने नष्ट कर दिया । अमेरिका का दावा है कि चीन, यूएस और उसके मित्र राष्ट्रों की जासूसी करने के लिए वर्ष 2020 से ही स्पाई बैलून और यूएफओ (एनआइडेंटिफाइटु फ्लाइंग ऑब्जेक्ट) लगातार काम में ले रहा है। जबकि चीन का कहना है कि यह स्पाई बैलून मौसम सम्बंधी अध्ययन करने के लिए नागरिक उद्देश्यों से परिपूरित प्रोजेक्ट था, जिसे अमेरिका ने नष्ट कर मौसम विज्ञान को नुकसान पहुंचाया। |
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निष्कर्ष |
निष्कर्ष रूप में कह सकते
हैं कि चीन और अमेरिका नई विश्व व्यवस्था में एक नये शीतयुद्ध की तरफ, आगे बढ़ रहे हैं। नई विश्व व्यवस्था में वर्तमान भू-राजनीति, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने दोनों शक्तियों के बीच
तनाव में वृद्धि की। रिपब्लिकन चीन ने अमेरिका
को अपनी परिधि पर हावी होने से रोकने के लिए ’मार्च वेस्ट’ की नीति तैयार की। बिजिंग की यही नीति वेल्ट एंड
रोड इनीशियेटिव का आधार बनी। वहीं वाशिंगटन ने ओबामा के कार्यकाल में वर्ष 2011
में एशिया के पुर्नसंतुलन की रणनीति बनाकर चीन की घेराबंदी का प्रयास तीव्र कर
दिया। बेल्ट एण्ड रोड पहल (बीआरआई) के विरुद्ध अमेरिका ने 2017 में फ्री एण्ड ओपन
इंडो-पैसिफिक रणनीति को अपना कर चीनी आक्रमकता को सीमित करने के लिए समान
विचारधारा वाले राज्यों के नेटवर्क का निर्माण शुरू कर दिया। इस प्रकार वर्तमान अमेरिका-चीन
प्रतिद्वंद्विता केवल वैश्वीकृत विश्व व्यवस्था पर हावी होने के लिए एक शक्ति
प्रतिस्पर्धा नहीं है बल्कि यह दोनों के बीच सीमाओं का टकराव, स्वयं के मूल्यों को सार्वभौमिक बनाने का प्रयास, लोकतंत्र, मानवाधिकार
विधि-शासन, समुद्र की स्वतंत्रता का टकराव है।
21 वी शताब्दी का स्वरूप
अमेरिका-चीन सम्बंधों के रूवरूप पर निर्भर करेगा । दोनों शक्तियों के सम्बंध इतने
जटिल है कि उनकी सरलता से व्याख्या नहीं की जा सकती। उनके बीच न कोई सांस्कृतिक
सम्बंध है, न सैद्धान्तिक बस शुद्ध स्वार्थ के सम्बन्ध है।
इसलिए न वे परस्पर शत्रु है न मित्र । यदि दोनों के बीच वैचारिक टकराव बढ़ेगा तो
विश्व को विभिन्न भागों में वैचारिक संघर्ष तेज हो जायेंगे। संरक्षणवादी नीतियों
से वैश्विक सप्लाई चैन और अर्थव्यवस्थाओं पर बुरे प्रभाव पड़ेगे। मानवाधिकार, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय समस्याओं, लोकतंत्र की स्थापना के लिए हो रहे वैश्विक
प्रयासों को धक्का लगेगा। रूस-यूकेन, गजा-इजराइल, सीरिया, यमन विद्रोह जैसी घटनाएं निरन्तर बढ़ेगी। विश्व के समता आधारित समावेशी विकास
के लिए दोनों शक्तियों के बीच तनाव कम हो, सीमित हो तो बेहतर रहेगा। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. बघेल वीरेन्द्र सिंह 2023 ’भारत, चीन और अमेरिका संबंध’ गैलेक्सी पब्लिर्शस, दिल्ली 2. बिस्वाल, तपन, 2013 ’अंतर्राष्ट्रीय संबंध मैक्मिलन पब्लिर्शस इण्डिया, लि. नई दिल्ली 3. सारस्वत माधवानन्द, 2017 ’भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध’ श्वेता मल्टीमीडिया, पिलानी (राज.) 4. चौधरी, डॉ अमिता, 2017, ’बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत-चीन सम्बंधों का अध्ययन, राधा पब्लिकेशन्स, दिल्ली 5. फडिया, डॉ. बी.एल., 2021, ’ अंतर्राष्ट्रीय संबंध ’ साहित्य भवन पब्लिकेशन्स आगरा 6. धई, यू. आर. 2002, ’अंतरर्राष्ट्रीय राजनीति, सिद्धान्त और व्यवहार न्यू एकेडेमिक पब्लिशिंग कम्पनी, जालन्धर 7. चक्रवर्ती डॉ. मानस, अप्रेल 2023, ’अमेरिका-चीन-ताइवान तनाव का एक त्रिकोण, वर्ल्ड फोकस अंक 133 8. वाजपेयी डॉ. अरुणोदय, अप्रेल 2023, ’अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता प्रमुख चालक और धारणाएं, वर्ल्ड फोकस अंक 133 9. मोहंती, डॉ. बिस्वा रंजन, मिश्रा, सूरज कुमार, अप्रैल 2023 ’ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच टकराव’ वर्ल्ड फोकस अंक 133 10. शर्मा, डॉ. श्वेता, अप्रेल 2023, ’अमेरिका-चीन समीकरणः हिन्द प्रशान्त क्षैत्र में प्रभुत्त्व हेतु प्रतिद्वंद्विता ’ वर्ल्ड फोकस अंक 133 |