P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VIII , ISSUE- XII March  - 2024
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation

स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान की राजनीति में महिलाओं की सहभागिता

Participation of Women in Politics of Rajasthan after Independence
Paper Id :  18809   Submission Date :  2024-03-09   Acceptance Date :  2024-03-15   Publication Date :  2024-03-20
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DOI:10.5281/zenodo.11077012
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निर्मला सैनी
शोधार्थी
राजनीति विज्ञान
राजऋषि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय
अलवर,राजस्थान, भारत
सारांश

भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में महिलाएं  पुरुषों से  कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। अपनी काबिलियत के दम पर भारतीय महिलाओं ने न केवल देश में बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बना रखी है। भारतीय महिलाएं विश्व स्तर पर खेल से लेकर मनोरंजन जगत और बिजनेस से लेकर राजनीति तक में परचम लहरा रही हैं। लेकिन आज समाज में भारतीय महिलाओं का जो स्थान है उसकी नींव इतिहास की कुछ महिलाओं ने रखी थी। इतिहास में कई ऐसी महिलाएं हुई, जिन्होंने पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया। स्वतंत्रता के बाद महिलाओं ने अपनी राजनीतिक सहभागिता से अपनी पहचान को और मजबूत किया। राजस्थान की राजनीति को भी कुछ महिलाओं ने काफी प्रभावित किया तथा राजस्थान के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In a male-dominated country like India, women keep pace with men. On the basis of their ability, Indian women have made their mark not only in the country but also across the world. Indian women are flying the flag globally in everything from sports to entertainment to business to politics. But the foundation of the place that Indian women have in the society today was laid by some women in history. There have been many women in history who struggled to get equal rights as men. She made unprecedented contributions to strengthening the status of women. After independence, women further strengthened their identity through their political participation. Some women also greatly influenced the politics of Rajasthan and made unprecedented contribution in the development of Rajasthan.
मुख्य शब्द साहसी, दूरदर्शी, राजस्थान, भारतीय महिलाएं।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Courageous, visionary, Rajasthan, Indian women.
प्रस्तावना

स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान की राजनीति में महिलाओं की सहभागिता का विश्लेषण किया गया हैं। आज समाज में भारतीय महिलाओं का जो स्थान हैउसकी नींव इतिहास की कुछ महिलाओं ने रखी है। स्वतंत्रता के बाद महिलाओं ने अपनी राजनीतिक सहभागिता से अपनी पहचान को और मजबूत किया। राजस्थान की राजनीति को भी कुछ महिलाओं ने काफी प्रभावित किया तथा राजस्थान के विकास में भी योगदान दियाजिनमें महारानी गायत्री देवीमहारानी महेन्द्र कुमारीवसुंधरा राजेशकुंतला रावतसाफिया खानअनिता भदेलकृष्णा पूनियाँममता भूपेशसूर्यकांता व्याससिद्धी कुमारीशोभारानी कुशवाह आदि के नाम उल्लेखनीय है।

अध्ययन का उद्देश्य

इस अध्याय में महारानी गायत्री देवी के पारिवारिक जीवनराजनीति में प्रवेशआपातकाल के दौरान उनका संघर्षराजस्थान की राजनीति में उनका संघर्ष तथा वसुंधरा राजे का जीवन परिचयराजनीतिक जीवन की शुरुआतमुख्यमंत्री के रूप में राजे की यात्रा एवं वर्तमान में भी राजे का राजस्थान की राजनीति में सक्रिय रूप से जुड़ाव का विश्लेषण किया गया है। शकुंतला रावत जो कि वर्तमान में एक  सक्रिय विधायक हैंइनके राजनीतिक जीवन एवं राजस्थान के विकास में योगदान का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।

साहित्यावलोकन

राजमाता गायत्री देवीः ‘‘मेरी स्मृतियाँ’’ (2017) -इस पुस्तक में गायत्री देवी ने अपने सम्पूर्ण जीवन का विस्तृत वर्णन किया है, जिसके अन्तर्गत उनके बचपन के राजघराने के जीवन, शिक्षा, राजनीति में प्रवेश, राजनीति में संघर्ष आदि पर प्रकाश डाला गया है।

प्रकाश नारायण नाटाणीः ‘‘भारत की प्रसिद्ध महिलायें’’ (2020) -इस पुस्तक में लेखक द्वारा कमला बेनीवाल के राज्य सरकार में विभिन्न मंत्रालयों को संभालने की जानकारी का उल्लेख किया गया है।

विजयनागरः ‘‘वसुंधरा राजे और विकसित राजस्थान’’(2016)- इस पुस्तक में लेखक द्वारा वसुंधरा राजे के राजनीतिक संघर्ष का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में यह बताया गया है कि वसुंधरा राजे के ऊर्जावान, संवेदनशील आदि गुणों का लाभ राजस्थान को विकसत बनाने में किस प्रकार सहायक रहा।

मुख्य पाठ

1. महारानी गायत्री देवी

महारानी गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 लंदन में हुआ था। वे जयपुर के राजघराने में ताल्लुक रखती थीं। गायत्री देवी के पिता का नाम राजकुमार जितेंद्र नारायण था, जो बंगाल में कूच बिहार के युवराज के छोटे भाई थे। हालांकि कूंच बिहार के राजा की मौत के बाद जितेन्द्र राजा बन गए थे। वहीं गायत्री देवी की माता राजकुमारी इंदिरा राजे थीं, जो कूंच बिहार की रानी और बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव की बेटी थीं। जब गायत्री और उनके अन्य चार भाई बहन छोटे थे, तभी पिता का निधन हो गया और माता इंदिरा राजे ने ही बच्चों और राजघराने को संभाला था।[1]

गायत्री देवी के बचपन का नाम आयषा था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन से पूरी की और बाद में ग्लेन डोवेर प्रिपरेटरी स्कूल, लंदन, विष्व-भारती यूनिवर्सिटी, लॉसेन और स्विटजरलैंड से शिक्षा हासिल की। पढ़ाई के साथ राजकुमारी गायत्री घुड़सवारी और पोलो की बेहतरीन खिलाड़ी थीं। उनका निशाना कमाल का था, वह अक्सर शिकार पर जाया करती थीं।[2] वे जब भी अपने बचपन के बारे में बात किया करती थीं, तो उनके चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी। एक बार गायत्री देवी ने टाइम्स ऑफ इंडियाको इंटरव्यू दिया था, जहाँ उन्होंने अपनी जिंदगी को लेकर कई खुलासे किये थे। इंटरव्यू में गायत्री देवी ने कहा था, ‘‘जब भी मैं अपनी आँखें बंद करती हूं तो कूच-बिहार में बिताये गए अपने जीवन के सबसे सर्वश्रेष्ठ दिनों में पहुंच जाती हूँ।’’ मैं अक्सर अपने बचपन के दिनों को याद किया करती हूँ, जब हमने भाइयों और बहनों के साथ मिलकर खूब मस्ती की थी।[3]

जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय को पोलो खेल में बहुत दिलचस्पी थी। जब वे 21 साल के थे तो कोलकात्ता के वुडलैंड्स 1931 का पोलो मैच खेलने गए थे और यहीं पर उनकी मुलाकात गायत्री देवी से हुई थी। उस समय गायत्री देवी की उम्र केवल 12 साल थी। गायत्री देवी महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के व्यक्तित्व से इतनी प्रभावित हुई थीं कि देखते ही उन्हें उनसे प्यार हो गया था। महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय की पहले ही दो शादियां हो चुकी थीं, इसलिए लोगों ने गायत्री देवी की मां को सचेत किया कि गायत्री के लिए महाराजा की तीसरी पत्नी बनना बहुत मुश्किल होने वाला है, परन्तु गायत्री देवी ने महाराजा की तीसरी पत्नी बनना स्वीकार किया और 9 मई, 1940 में गायत्री देवी ने मानसिंह द्वितीय से शादी कर ली।[4]

महारानी गायत्री देवी अपनी अद्वितीय सुन्दरता, समाज सेवा, देश सेवा, आतिथ्य सत्कार के कारण काफी प्रसिद्ध रही हैं। वह अत्यन्त साहसी, दूरदर्शी, दबंग, उदार, राजमाता के रूप में जानी जाती है। जयपुर नरेश व गायत्री देवी ने ब्रिटिशकालीन शासन-व्यवस्था में भी अपने रसूख को कायम रखा था। जयपुर के राजसी वैभव की रक्षा करते गायत्री देवी ने अपना जीवन एक आदर्श के साथ जिया। अपने जमाने में उच्च शिक्षा प्राप्त गायत्री देवी अपने नैसर्गिक सौन्दर्य एवं गुणों के कारण पूरे राजस्थान में सम्मान की पात्र रही हैं। गुलाम भारत में वह महिलाओं की शिक्षा एवं उनकी दशा को लेकर काफी चिन्तित रहा करती थीं।[5]

राजस्थान जैसे पिछड़े क्षेत्रों में महिलाओं में शिक्षा के साथ में जागरूकता लाने के लिए उन्होंने विशेष प्रयास किये। महारानी गायत्री देवी ने एम.जी. डी. स्कूल की स्थापना इसलिए की ताकि वहाँ लड़कियां आकर पढ़ सकें। इस सर्वसुविधायुक्त स्कूल की भव्य इमारत का वातावरण उन्होंने शिक्षा के सर्वथा उपयुक्त रखा। योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों को बाहर से लाकर यहाँ अध्यापन कार्य उन्हें सौंपा गया। यह स्कूल आज भी अपनी अद्भुत अध्यापन शैली के कारण पहचाना जाता है। महारानी गायत्री देवी ने सवाई मानसिंह अस्पताल का भी निर्माण       करवाया।[6]

राजनीति में प्रवेश

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने गायत्री देवी को कांग्रेस में आने का न्योता दिया था, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। गायत्री देवी ने 1960 में राजकीय तौर पर राजनीति में कदम रखा था। 1950 के दशक में वे अपनी माँ से मिलने बम्बई गई थी तो वहाँ उन्होंने स्वतंत्र पार्टी नामक एक नई पार्टी बनाये जाने के बारे में अपनी माँ को उत्सुकता से बातें करते सुना था। दो-तीन महीने बाद मीनू मसानी और लेजली सोनी जयपुर आई थीं, वे पूरे देश का भ्रमण करके लोगों को स्वतंत्र पार्टी के सिद्धांतों से अवगत करा रही थीं।[7]

1961 की शरद ऋतु में गायत्री देवी इंग्लैंण्ड से भारत लौटी, उनके भारत लौटते ही स्वंतत्र पार्टी के जनरल सेक्रेटरी मीनू मसानी का पत्र उन्हें मिला, जिसमें गायत्री देवी से यह पूछा गया था कि क्या वे अगले वर्ष होने वाले आम चुनावों में जयपुर संसदीय सीट के लिए स्वतंत्र पार्टी की प्रत्याशी के रूप में खड़ा होना चाहती हैं? यह सब गायत्री देवी के लिए आश्चर्यजनक था, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था, तब महाराजा मानसिंह ने उन्हें समझाया कि जयपुर सीट के लिए उनका चयन तो स्वाभाविक ही था और स्वतंत्र पार्टी की सदस्या होने के नाते इसे स्वीकार करना उनका कर्तव्य है।[8]

1962 में स्वतंत्र पार्टी पहली बार चुनाव लड़ रही थी। जयपुर में पार्टी के कुछ नेताओं और खास सदस्यों की एक गोष्ठी हुई, जिसमें यह तय हुआ कि जयपुर की संसद सीट के लिए चुनाव लड़ने के अलावा गायत्री देवी भूतपूर्व जयपुर रियासत के स्वतंत्र पार्टी उम्मीदवारों के चुनाव को सुरक्षित रखने के लिए भी जिम्मेदार होगी। चूँकि स्वतंत्र पार्टीएक नई पार्टी थी, इसलिए उचित उम्मीदवार मिलने में बड़ी कठिनाई आई, आखिरकार कुछ अच्छे उम्मीदवारों को आकर्षित करने में पार्टी के नेता सफल हो गये।[9]

उम्मीदवारों के चयन के बाद चुनाव अभियान पूरे जोर-शोर से शुरू हो गया। गायत्री देवी ने जयपुर के नये-नये क्षेत्रों में जाना तथा भांति- भांति के लोगों से मिलना शुरू किया, जो उनके लिए बहुत खूबसूरत व रोमांचकारी अनुभव था। जहाँ भी गायत्री देवी चुनाव प्रचार के लिए जाती वहां राज्य के दूरदराज के हिस्सों से आकार विशाल जनसमूह एकत्रित हो जाता। कई बार व्यस्तता के चलते पूर्व नियोजित स्थान पर बहुत देर से पहुंचने पर भी जनसमूह बहुत शान्ति और सब्र से उनका इंतजार कर रहा होता था।[10]

चुनाव में कुल मिलाकर इक्कीस उम्मीदवार थे। जनसंघ के उम्मीदवार ने स्वतंत्र पार्टी के समर्थन में अपने नाम वापिस ले लिए थे। अब गायत्री देवी की सीधी टक्कर कांग्रेस की शारदा भार्गव से थी। स्वतंत्र पार्टी का चुनाव चिह्न तारा था, पार्टी की प्रशंसा में गाए हुए गीत के बोल कुछ इस प्रकार थे-

नील गगन में चम-चम चमके स्वतंत्रता का तारा,

स्वतंत्र भारत, स्वतंत्र जनता, स्वतंत्र दल का नारा।।

मतदान सूची में अनेको चुनाव चिह्न थे। महारानी गायत्री देवी और उनकी साथी महिलाओं ने ग्रामीण महिलाओं को मतदान का तरीका समझाया। फिर कई घंटे उनको तारे पर मोहर लगाने की हिदायत दी गई, क्योंकि उस समय ये सब महिलाओं के लिए काफी नया अनुभव था और गायत्री देवी के लिए यह बहुत दुष्कर कार्य था।[11] आखिरकार मतदान का दिन भी आ गया और मतगणना शुरू हुई, गायत्री देवी कलेक्ट्रेट पहुँची, जहाँ पर उनके पहुंचते ही भीड़ उमड़ पड़ी और लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। जयपुर में स्वतंत्र पार्टी ने 19 सीटों पर विजय हासिल की थी। गायत्री देवी का चुनाव परिणाम घोषित किया गया, वे अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस की शारदा भार्गव से भारी वोटों से विजयी हुई, सभी विरोधी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। एक बार फिर जयपुर राजपरिवार का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में आ गया।

राजस्थान पत्रिका में 1 मार्च, 1962 को गायत्री देवी के सफल निर्वाचक का समाचार छपा- महारानी गायत्री देवी एक लाख से भी ज्यादा मतों से जीतीं, शारदा भार्गव की जमानत जब्त, कांग्रेसी उम्मीदवारों का समर्थन भी नहीं मिला।

महारानी गायत्री देवी को   -             1,62,606 मत

शारदा भार्गव को        -             33, 216 मत

कुल मतदान12         -             2,50,272

आपातकाल के दौरान

विदेशों में पढ़ाई से पहले गायत्री देवी की स्कूली शिक्षा गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन से हुई, इंदिरा गांधी भी उनके साथ ही पढ़ाई करती थीं। ऐसे में दोनों एक-दूसरे को बचपन से जानती थीं और वहीं से दोनों के बीच टकराव शुरू हुआ। एक बेबाक पत्रकार खुशवंत सिंह ने लिखा था कि -स्कूली  समय का टकराव बाद में राजनीतिक दुश्मनी में बदल गया। संसद में गायत्री देवी की मौजूदगी इंदिरा गांधी को रास नहीं आती थी, इंदिरा ने उन्हें शीशे की गुड़ियाकह दिया।[13]

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा के विरोधी नेताओं को मीसा एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा जा रहा था, गायत्री देवी मुंबई में इलाजरत थीं तो बच गई, लेकिन जैसे ही दिल्ली पहुँची उनके यहाँ इनकम टैक्स का छापा पड़ गया, उन्हें कन्जर्वेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज एंड प्रिवेंशन ऑफ स्मगलिंग एक्टिविटीज एक्ट के तहत जेल भेज दिया गया। वे 6 महीने जेल में रहीं, उन्हें जेल में रहते हुए माउथ अल्सर हो गया था, लेकिन इलाज के लिए अनुमति देने में 3 हफ्ते लगा दिए गए। 6 महीने जेल में रहने के बाद वह पेरोल पर बाहर आई, गायत्री देवी और इंदिरा गांधी के बीच रंजिश आजीवन बनी रही, बाद में गायत्री देवी ने राजनीति छोड़ दी थी।[14]

गायत्री देवी ने स्वतंत्र पार्टी में 12 साल सेवा की, इस दौरान वह इंदिरा गांधी के की सरकार की प्रमुख आलोचक थीं। राजनीति से विदा लेने के बाद उन्होंने एक शांत जीवन व्यतीत किया, अपने पोते-पोतियों के साथ समय बिताया और शौक और फुर्सत के पल बिताए। वे पैरालिटिक इलियस और फेफड़ों के संक्रमण से पीड़ित थीं, 29 जुलाई, 2009 को जयपुर में 90 वर्ष की उम्र में उनका देहान्त हो गया।

2. कमला बेनीवाल

पारिवारिक जीवन

श्रीमती कमला बेनीवाल का जन्म 12 जनवरी, 1927 को झुंझुनु जिले के खेतड़ी तहसील के गौरिर गाँव में स्वतंत्रता सेनानी नेतराम सिंह चौधरी के यहाँ हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा झुंझुनु जिले में हुई। हिन्दी और संस्कृत के प्रति अनन्य प्रेम के संस्कार इन्हें कमलाकर कमलजैसे महान गुरुओं के अधीन जयपुर के साहित्य सदावर्तमें मिलें। बाद में इन्होंने अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा इतिहास में स्नातक की शिक्षा राजस्थान विश्वविद्यालय से प्राप्त की, यहीं से इतिहास में एम. ए. की उपाधि प्राप्त की। एम.ए.की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने अध्यापिका के रूप में कार्य प्रारंभ किया। श्रीमती कमला एक तैराक घुड़सवार, कला प्रेमी और प्रकृति प्रेमी हैं। इन्होंने बचपन में ही राजनीति के गुर सीख लिए थे। 11 वर्ष की आयु में इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था, इसके लिए उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ताम्रपत्रसम्मान से सम्मानित कर चुकी हैं।[15]

राजनीतिक जीवन

श्रीमती कमला ने 1954 में राज्य सेवा से त्यागपत्र देकर तत्कालीन आमेर-ए क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायिका चुनी गई, ये प्रथम विधानसभा की दूसरी निर्वाचित महिला सदस्य थीं। नवम्बर, 1954 में मोहनलाल सुखाड़िया के मुख्यमंत्री बनने पर ये 13 नवम्बर को उपशिक्षा मंत्री नियुक्त की गई और 10 अप्रैल, 1957 तक पद पर रहीं। 1961 के चुनाव में बैराठ (विराटनगर) क्षेत्र से पुनः निर्वाचित हुई तथा सुखाड़िया मंत्रिमण्डल में 12 मार्च, 1962 को पुनः उपमंत्री नियुक्त हुई। श्रीमती कमला बेनीवाल 1968 में राजस्थान राज्य सहकारी संघ की अध्यक्षा मनोनीत की गई। मार्च, 1972 में बरकतुल्लाह खाँ तथा अक्टूबर, 1973 में बनी हरिदेव जोशी की सरकार में इन्हें पुनः राज्यमंत्री बनाया गया। 1977 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और 1980 में बैराठ (विराट नगर) क्षेत्र से कांग्रेस (ई) टिकट पर विधायक चुनी गई। जून, 1980 में बने जगन्नाथ पहाड़िया मंत्रिमण्डल में 18 जून को ये कैबिनेट स्तर पर राजस्व मंत्री नियुक्त की गई।[16]

श्रीमती कमला बेनीवाल एक दशक तक, 1980 से 1990 तक राजस्थान सरकार में केबिनेट मंत्री रहीं। इस दौरान उनके पास कृषि, पशुपालन, सिंचाई, श्रम और रोजगार, शिक्षा, कला और संस्कृति, पर्यटन और एकीकृत ग्रामीण विकास जैसे विभागों की एक विशाल विविधता थी, 1993 में वह मंत्री नहीं रहीं लेकिन फिर भी बैराठ (विराट नगर), जयपुर से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुईं और ग्यारहवीं विधानसभा के लिए 1998 में वे इसी निर्वाचन क्षेत्र से पुनः निर्वाचित र्हुइं और केबिनेट मंत्री बनीं। गहलोत मंत्रिमण्डल के पुनर्गठन में श्रीमती कमला राज्य की राजस्व, संस्कृत शिक्षा, सिंचाई व उपनिवेश मंत्री बनाई गईं। 2003 में राजस्थान की उप-मुख्यमंत्री रहीं। श्रीमती बेनीवाल गुजरात के लोकायुक्त के पद पर नियुक्ति को लेकर सितम्बर, 2011 में विशेष चर्चा में रही। ये गुजरात व त्रिपुरा की राज्यपाल भी रह चुकी हैं।[17]

श्रीमती कमला बेनीवाल राजस्थान की राज्य सरकार में लंबे समय तक मंत्री रहीं, उन्होंने विभिन्न मंत्रिमंडलों को संभाला। एक मंत्री के रूप में उन्होंने लगभग 50 वर्षों तक राजस्थान सरकार की सेवा की है।

3. सुमित्रा सिंह

पारिवारिक जीवन

सुमित्रा सिंह का जन्म औपनिवेशिक भारत में 3 मई, 1930 को झुंझुनू के किसारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ। इनके पिता एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी और प्रजामंडल के सदस्य थे। जब राजस्थान में साक्षरता दर 3 प्रतिषत थी, सुमित्रा के पिता ने 6 वर्ष की आयु में उनको पढ़ने के लिए वनस्थली विद्यापीठ भेज दिया, उस समय उनके गांव में लड़कियां तो दूर लड़कों को भी नहीं पढ़ाया जाता था। अगले 14 वर्ष उनकी पढ़ाई वहीं हुई, वनस्थली विद्यापीठ में प्रवेश के 3 महीने बाद ही उन्होंने अपने पिता को हिंदी में चिट्ठी लिखी। उन्होंने विद्यालय में तैराकी सीखी, वे विद्यालय में 2 घोड़ों पर एक साथ सवारी करती थी। मॉक पार्लियामेंट में विपक्ष की नेता बन भाषण देती थी। वहीं उन्हें नेहरू ने देखा और कहा कि- ‘‘यह लड़की अभी तो घुड़सवारी कर रही है और अब इसने अपने तर्कों से सरकार को एकदम चुप भी कर दिया।’’

फेमिनिज्म इन इंडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि समाज से दूर हमेशा होटल में रहने के कारण उन्होंने खुद तो ज्यादा समाज की कुरीतियों का सामना नहीं किया लेकिन उस वक्त किसी बच्ची का इतनी दूर पढ़ने जाना अपने आप में ही क्रांति थी। सामाजिक दबाव के बारे में पूछने पर वह बड़ी बेबाकी और हिम्मत से कहती हैं कि, ‘‘हम में हिम्मत है और हम खुद कुछ करना चाहते हैं तो कौन रोक सकता है।’’ जब सुमित्रा अपने शैक्षणिक जीवन में व्यस्त थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया, वे सुमित्रा को स्नातक की उपाधि लेता नहीं देख पाए। सुमित्रा का विवाह 2 जून 1952 में पनुसाहरी गांव के नाहरसिंह के साथ हुआ, जो संयोग से आजाद ख्याल के व्यक्ति थे, उनके ससुर भी स्वतंत्रता सेनानी थे। सुमित्रा के शब्दों में- ‘‘हमारा रिश्ता खूब समानता से भरा और प्रेम से भरा था। मेरे जीवन की खुशी और सेहत का श्रेय है इसी पारिवारिक शांति को जाता है।’’[18]

राजनीतिक जीवन

सुमित्रा सिंह राजस्थान विधानसभा की प्रथम महिला अध्यक्ष है, वे भारतीय जनता पार्टी की नेत्री है। सुमित्रा सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1957 में की, वे सन् 1957 में पिलानी से अखिल भारतीय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बनी। उसके बाद वे सन् 1962 से लगातार चार बार झुंझुनु से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुँची। सन् 1985 में इंडियन नेशनल लोकदल, सन् 1990 में जनता दल प्रत्याशी के रूप में फिर पिलानी से तथा वर्ष 1998 में निर्दलीय एवं वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर झुंझुनू से विधायक बनकर अब तक 9 बार विधायक बनने का गौरव हासिल कर चुकी हैं। वे 2004 में 12वीं विधानसभा की अध्यक्ष बनी।

2013 में सुमित्रा सिंह को भाजपा द्वारा टिकट नहीं दिए जाने के कारण निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी और इन्हें बागी करार करते हुए पार्टी से निष्कासित कर दिया। सन् 2018 के चुनाव में सुमित्रा सिंह ने ऐन वक्त पर भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया, इससे भाजपा को बहुत बड़ा झटका लगा।[19] सुमित्रा सिंह ने पत्रिका के साथ अपने अनुभव साझा किए और राजनीति के बदलते दौर के बारे में बताया, उन्होंने बताया कि- ‘‘कांग्रेस में रहते हुए उन्हें एक बार ‘‘राजस्थान की इन्दिरा गांधी’’ नाम दिया गया तो एक बार पार्टी की उपाध्यक्ष रहते एक बलात्कारी के लिए मेरा टिकट काट दिया गया।’’ सुमित्रा सिंह ने 1957 से अब तक के राजनीतिक सफर की याद ताजा करते हुए कहा, इन दोनों घटनाओं में एक उनके जीवन का सबसे सुखद क्षण है तो दूसरा राजनीति का कड़वा घूंट। उन्होंने कहा कि पुराने समय में राजनेता अपने विरोधियों का भी काम करने में एक सैकण्ड नहीं लगाते थे, क्योंकि विरोध मन का नहीं, बल्कि विचारों का होता था।[20]

सुमित्रा सिंह 5 सितम्बर, 1967 से 9 जुलाई, 1971 तक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, राजस्थान में राज्य मंत्री रहीं। 22 जून, 1968 से 9 जुलाई, 1971 तक उन्होंने राजस्थान के परिवार कल्याण विभाग का राज्यमंत्री के रूप में स्वतंत्र कार्यभार संभाला। सुमित्रा सिंह 1985 से 1987, 1987 व 1990 से 1992 की अवधि में राजस्थान विधानसभा की पब्लिक अंडरटेकिंग कमेटीकी सदस्य रहीं। 1987-88 में वे राजस्थान विधानसभा की नियम समिति की सदस्य रहीं, 4 मार्च, 1990 से 26 अक्टूबर, 1990 तक शक्ति, भूजल उच्च शिक्षा मंत्री रहीं। सुमित्रा सिंह 1999 से 2003 तक राजस्थान विधानसभा की महिला एवं बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष रहीं। वे 2004 से 2009 तक राजस्थान विधानसभा की पहली महिला अध्यक्ष रहीं।

सुमित्रा सिंह को 2004 में ‘‘इन्दिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड’, 2004 में ही भारत ज्योति अवार्डतथा 2006 में ग्लोरी ऑफ इंडिया अवार्डप्राप्त हुआ। श्रीमती सुमित्रा सिंह हमेशा से ही समाज सेवा के कार्यों में अग्रणी रही और जनसेवा में ही अपना पूरा जीवन लगाया।[21]

4. प्रतिभा पाटिल

पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भारत देश का गौरव है। प्रतिभा जी एक सफल राजनेता, एक अच्छी समाज सेविका के रूप में जानी जाती हैं। अपने पिता से प्रेरित होकर प्रतिभा जी ने देश की राजनीति में कदम रखा था। जिस तरह इंदिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री है, उसी तरह प्रतिभा जी को भी प्रथम राष्ट्रपति होने का गौरव हासिल है।

पारिवारिक जीवन

श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म 19 दिसम्बर, 1934 को महाराष्ट्र के जलगाँव जिले के नन्दगाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम नारायण राव पाटिल था, जो एक राजनेता थे। प्रतिभा जी की प्रारम्भिक शिक्षा जलगाँव के आर.आर. विद्यालय से हुई थी, इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने जलगाँव के मूलजी जेठा कॉलेज से की। कानून की पढ़ाई के लिए वे सरकारी लॉ कॉलेज मुंबई चली गई, इन्होंने राजनीति विज्ञान एवं अर्थशास्त्र में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। स्कूल के दिनों से ही इनका रूझान खेल की तरफ रहा, कॉलेज में आकर इन्होंने बहुत से खेलों में भाग लिया, ये टेबिल टेनिस की बहुत बेहतरीन खिलाड़ी थी। इन्होंने 1962 में एम. जे. कॉलेज में ‘‘कॉलेज क्वीन’’ का खिताब भी जीता। श्रीमती प्रतिभा पाटिल का विवाह श्री देवीसिंह रामसिंह शेखावत के साथ 7 जुलाई, 1965 को हुआ, इनके एक पुत्र व एक पुत्री     है।[22]

राजनीतिक जीवन

प्रतिभा जी का हमेशा से सामाजिक गतिविधियों के लिए कार्य करने का मन था, वे भारतीय महिलाओं की दषा को सुधारने के लिए हमेशा तत्पर रही। प्रतिभा जी का राजनीतिक सफर 27 साल की उम्र में शुरू हुआ। समाज सेवक और पेशे से वकील प्रतिभा पाटिल पहली बार 1962 में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुनी गई और वे 1985 से लगातार विधायक निर्वाचित होती रहीं। इस दौरान के महाराष्ट्र सरकार में 1967 में पहली बार जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, पर्यटन, आवास, संसदीय कार्य विभागों की उपमंत्री बनीं। 1985 तक उन्हें अनेक बार विभिन्न विभागों के केबिनेट मंत्री के रूप में कार्य करने का मौका मिला। श्रीमती पाटिल 1985-90 के बीच राज्यसभा की सदस्य एवं उपाध्यक्ष रहीं, अपने सार्वजनिक एवं राजनीतिक जीवन में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। राज्यसभा की विशेषाधिकार समिति, कार्य सलाहकार समिति की सदस्य रहने के साथ वे 1991 में लोकसभा के लिए चुनी गई और गृह समिति की सभापति बनाई गई।[23]

श्रीमती पाटिल ने राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल के रूप में 8 नवम्बर, 2004 को शपथ ग्रहण की। राजस्थान के राज्यपाल पद से त्यागपत्र देकर श्रीमती प्रतिमा देवीसिंह पाटिल ने कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ा तथा इस पद के विरोधी प्रत्याशी उप- राष्ट्रपति रहे श्री भैरोसिंह शेखावत को हराकर भारी बहुमत से राष्ट्रपति पद के लिए चुनी गई। श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल 25 जुलाई, 2007 से 25 जुलाई 2012 तक भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति के पद पर आसीन रहीं। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए इन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ की।

राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 25 नवम्बर, 2009 को अत्याधुनिक सुरसोनिक लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई में उड़ान भरकर इतिहास रच दिया, ऐसा करने वाली वे दुनिया की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष हैं। सुखोई में करीब 30 मिनट तक उड़ान भरने वाली सबसे उम्रदराज महिला का रिकॉर्ड भी अपने नाम करने वाली पाटिल ने कहा कि उन्हें महिलाओं की क्षमता और योग्यता पर पूरा भरोसा है, वे काम में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं।[24]

श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने भारत की महिलाओं और बच्चों के कल्याण और समाज के उपेक्षित वर्गों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्य करते हुए मुम्बई एवं दिल्ली में कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास, ग्रामीण युवकों के लिए जलगाँव में इंजीनियरिंग कॉलेज भी खोला। ये श्रम साधना ट्रस्ट की प्रबंधक ट्रस्टी भी हैं, ये ट्रस्ट महिलाओं की उन्नति के लिए कई कल्याणकारी गतिविधियाँ संचालित करता है। श्रीमती पाटिल ने जलगॉव में सहकारी बैंक, शुगर मिल, नेत्रहीनों के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान तथा गरीब, अनुसूचित जाति एवं घुमन्तु जाति के बच्चों के लिए स्कूल की स्थापना भी की। उन्होंने अमरावती, महाराष्ट्र में गरीब और जरूरतमंद महिलाओं के लिए संगीत, कम्प्यूटर और सिलाई कक्षाएं आयोजित करने में भी विशेष योगदान दिया।

श्रीमती पाटिल ने अनेक यात्राएं की है, इन्होंने नैरोबी, फ्यूएटो रीको, ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, लंदन, बीजिंग आदि देशों एवं शहरों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में भाग लिया। श्रीमती पाटिल ने 1962 में चीनी आक्रमण के समय जलगॉव में महिला गृह रक्षा दल का गठन किया। वे राष्ट्रीय सहकारी शहरी बैंक और ऋण संस्थाओं की उपाध्यक्ष रहीं तथा बीस सूत्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति, महाराष्ट्र की अध्यक्ष भी रहीं।[25]

राजनीति के अलावा प्रतिभा जी कई सामाजिक कार्यों में भी संलग्न रही, राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने महिला विकास की ओर विशेष ध्यान दिया। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने महिला व बाल विकास के लिए कई नियमों का उल्लेखन करवाया।

5. वसुंधरा राजे

वसुंधरा राजे भावुक एवं संवेदनशील हृदय वाली महिला हैं। राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है। भावुकता एवं संवेदनशीलता का ही परिणाम है कि इन्होंने प्रशासन में रहते हुए हुए महिला सशक्तीकरण, निःशक्तजन का कल्याण, वृद्धजनों की सेवा, ग्रामीण एवं गरीब के सुख-दुःख में सहभागिता, मूक पशुओं एवं भारतीय श्रद्धा का बिंदु, गौ-संरक्षण, मंदिरों एवं देवालयों की भव्यता आदि पर विशेष ध्यान दिया।

राजस्थान में ऐसी सरकार, जो स्थायी, संवेदनशील, जवाबदेह, ऊर्जावान, आधुनिक विचारों से ओत-प्रोत तथा प्रगतिशील होने के साथ-साथ राजस्थान की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं पारंपरिक विरासतका पूर्ण सम्मान करने वाली तथा गौरवशाली व खुशहाल राजस्थान का संकल्प जाग्रत करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री एवं अपनी ओजस्विता, तेजस्विता से भाजपा को विधानसभा चुनाव में विशाल बहुमत दिलाने वाली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे आज राजस्थान की सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता है।

पारिवारिक जीवन

वसुंधरा राजे का जन्म 8 मार्च, 1953 ई. को मुंबई में ग्वालियर राजघराने के शासक जीवाजीराव सिंधिया के खानदान में हुआ था। वसुंधरा राजे जीवाजीराव सिंधिया एवं राजमाता विजयाराजे सिंधिया की तीसरी संतान हैं। बड़े भाई श्री माधवराव सिंधिया कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं। एक बड़ी बहन उषाराजे, जिनका विवाह नेपाल के प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। तीसरी संतान वसुंधरा राजे तथा चौथी संतान राजे की छोटी बहन श्रीमती यशोधरा राजे मध्यप्रदेश में ही रहती हैं तथा भाजपा की सांसद रह चुकी है।[26]

वसुंधरा राजे के पिताजी जीवाजीराव सिंधिया ग्वालियर  स्टेट के 9वें महाराजा (शासक) थे। ग्वालियर राज्य भारत के मध्य में एक बड़ी भव्य स्टेट व धनाढ्य स्टेट मानी जाती थी। यह परिवार छत्रपति शिवाजी के परिवार से जुड़ा हुआ माना जाता है। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई एवं कुशल संगठक तात्या टोपे को आर्थिक एवं सैनिकों का भरपूर सहयोग ग्वालियर राजघराने ने दिया था। इस राजघराने में देश-प्रेम की भावना बड़ी तीव्र थी। तात्या टोपे का अधिकांश समय ग्वालियर राज्य के क्षेत्र ही बीता था। ऐसे राजघराने में वसुंधरा राजे का जन्म गौरव की बात है।[27]

वसुंधरा राजे की प्राथमिक शिक्षा ग्वालियर में ही हुई। घर में पढ़ाने-लिखाने के लिए एक अमेरिकी गवर्नेस नॉर्या शास्त्री को नियुक्त कर रखा था। अन्य शिक्षक घर पर ही आकर विभिन्न विषयों का अध्ययन कराते थे। बचपन में महल ही उनका घर-संसार था। बी.बी.सी० हिंदी के भारत संपादक संजीव श्रीवास्तव ने वसुंधरा राजे से लिये एक साक्षात्कार में उनके व्यक्तिगत जीवन के विभिन्न पहलुओं की चर्चा की। इस साक्षात्कार में स्वयं राजे अपने बचपन के विषय में बताते हुए कहती हैं, ‘‘लगता है कि बचपन की जिदंगी फिल्म की तरह थी, असल जिंदगी नहीं, जिदंगी उससे बहुत अलग है। बचपन में कभी यह नहीं सोचा था कि राजनीति में जाऊँगी, कुछ कर गुजरने की इच्छा के साथ विद्रोह भी छिपा हुआ था।’’[28]

वसुंधरा राजे ने मुंबई विश्वविद्यालय की सोफिया गर्ल्स महाविद्यालयसे इकोनॉमिक्स और साइंस ऑनर्स (राजनीति विज्ञान) से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। राजे अपने कॉलेज दिनों में बड़ी चुस्त एवं स्मार्ट लड़की रही है। कॉलेज की प्रत्येक गतिविधि में भाग लेना तथा प्रतियोगिताओं में प्रथम आना उन्होंने अपना स्वभाव बना लिया था, इससे लगता है कि उनका स्वभाव जीवन के प्रारंभ से ही कठोर परिश्रम करने का था। नेतृत्व का गुण उनमें बचपन से ही था, ऐसा लगता है यह गुण उन्हें अपनी माता से विरासत में मिला है। राजे ने अपने जीवन को कभी नहीं छुपाया, उनके गुण और अवगुण लोगों के सम्मुख थे, विरोधी अनेक प्रकार की चर्चाएँ भी करते थे, परंतु राजे ने कभी इन पर परदा डालने का प्रयास नहीं     किया।[29]

वैवाहिक जीवन

वसुंधरा राजे जब मुंबई सोफिया कॉलेज में स्नातक का अध्ययन कर रही थीं, उसी बीच इनका विवाह 17 नवंबर, 1972 को धौलपुर राजस्थानके महाराजा हेमंतसिंह से हो गया। विवाह के पश्चात् उन्होंने स्नातक का अध्ययन पूरा किया। वसुंधरा राजे का विवाह से पूर्व राजस्थान से कोई संबंध नहीं था, विवाह के पश्चात् ही राजस्थान से संबंध स्थापित हुआ। धौलपुर के राजस्थान के सुदूरपूर्व में होने के कारण उनका संबंध राजस्थान से अधिक पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के साथ था, परंतु धीरे-धीरे प्रशासनिक कार्यों के कारण प्रदेश राजधानी जयपुर से भी संबध बनने लगा था।[30]

वसुंधरा राजे की एकमात्र संतान श्री दुष्यंतसिंह का जन्म 1973 में हुआ। वसुंधरा राजे का वैवाहिक जीवन लंबा नहीं चल पाया। कुछ ही वर्षों बाद दोनों अलग-अलग हो गए। वसुंधरा राजे एवं हेमंतसिंह के अलग होने पर भी पारिवारिक संबंध नहीं टूटे, वे निरंतर दिनोदिन प्रगाढ़ बनते जा रहे थे। 1985 में प्रथम विधानसभा चुनाव राजे ने धौलपुर विधानसभा से ही लड़ा और विजयी हुई। दरहसल, 1978 में वसुंधरा राजे की माँ विजया राजे ने संपत्ति में हिस्सेदारी को लेकर अदालत में मामला दर्ज करवाया एवं इस दौरान न्यायालय के आदेश के बाद वसुंधरा राजे धौलपुर में रहने लगी। लंबे समय तक मामले के चलने के बाद 2007 में अदालत में समझौता हो गया, इस मामले का समझौता करवाने में हेमंतसिंह के रिश्तेदार भरतपुर से विश्वेन्द्र सिंह ने अहम् भूमिका निभाई थी। इन सबके बावजूद राजे ने राजस्थान की राजनीति एवं विकास में सम्पूर्ण सहयोग किया तथा समृद्ध एवं विकसित राजस्थान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।[31]

राजनीतिक जीवन

एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक होने के बावजूद वसुन्धरा जी का जीवन बहुत संघर्षमय बीता, लेकिन जीवन के हर संघर्ष का उन्होंने दृढ़ता से सामना किया। केवल आठ वर्ष की उम्र में इन्होंने अपने पिता को खो दिया था, लेकिन माँ श्रीमती विजयाराजे द्वारा दिए गए संस्कारों ने इन्हें सदैव संबल प्रदान किया। जनसेवा और राजनीति के माहौल में पली बढ़ी वसुन्धरा जी में परामर्थ सेवा के गुण स्वतः ही विकसित हुए। सन् 1960 से 1970 के दशक में इन्होंने कांग्रेस पार्टी के आम जनता पर अत्याचारों और अपनी माँ द्वारा इनका विरोध देखा। यह वह समय था जब पूरा राष्ट्र सत्ता में बैठे लोगों की मनमानी का अखाड़ा बन गया था।[32]

1975 से 1977 तक देश में आपातकाल लागू था। राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी जेल में थीं। 1977 में आपातकाल के पश्चात् देश में लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टीको पराजित कर केन्द्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टीकी सरकार बनी। 1978 में प्रांतों की विधानसभाओं के चुनाव हुए और राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व में जनता पार्टीकी सरकार बनी। यह अवसर था वसुंधरा राजे का राजस्थान की राजनीति के साथ संबंध स्थापित करने का। राजमाता ने भैरोसिंह शेखावत को इस दृष्टि से राजे का परिचय करवा दिया था। राजस्थान में सरकार बनने के बाद विभिन्न बोर्डों के गठन के समय 1978-79 में वसुंधरा राजे को राजस्थान समाज कल्याण बोर्ड की माननीय सदस्य नियुक्त किया, इससे राजे को राजस्थान की राजनीति को निकट से समझने का अवसर मिला।[33]

वसुंधरा राजे का राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से पदार्पण 1984 में हुआ, जब वे नवगठित भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य बनी। 1984 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भिंड सीट से राजे ने भाजपा की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ा। उस चुनाव में ये पराजित हुई, परंतु निराश नहीं हुई। कहते हैं-‘‘असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी है।’’ अब उन्होंने पुनः राजस्थान का रूख किया। अगले ही वर्ष 1985 में राजस्थान विधानसभा के चुनावों में भैरोसिंह शेखावत ने धौलपुर विधानसभा से राजे को भाजपा प्रत्याशी बनाया। 1985 में ही राजे को राजस्थान भाजपा के युवा मोर्चे का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया। इसी वर्ष वे धौलपुर से 8वीं राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रुप में भी निर्वाचित हुई। इस काल में राजे ने राजस्थान की राजनीति को पहचानने का प्रयास किया। एक प्रतिभाषाली महिला होने के कारण राजे ने शीघ्र ही राजस्थान व केन्द्र की राजनीति में अपना स्थान बना लिया। 1987 में पुनः भाजपा केन्द्रीय कार्यसमिति में सदस्य चुनी गईं।[34]

वसुंधरा राजे इसके बाद कुल पाँच बार (1989, 1991, 1996, 1998, 1999) झालावाड़ से सांसद रह चुकी है। वसुंधरा राजे का रिकॉर्ड है कि (पहले मध्यप्रदेश विधानसभा के भिंड निर्वाचन को छोड़ दिया जाए) राजस्थान में 1985 से आज तक होने वाले किसी भी चुनाव में, चाहे वह लोकसभा का हो या विधानसभा का, पराजित नहीं हुई। 1987 में वे राजस्थान भाजपा की उपाध्यक्ष बनीं। लोकसभा सदस्य रहते हुए अनेक पदों पर कार्य किया।[35] वर्ष 1998 की 12वीं लोकसभा में भी वसुंधरा राजे झालावाड़ से लोकसभा सदस्य चुनी गईं। श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार बनी, वाजपेयी जी ने देश के प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ग्रहण की। श्री वाजपेयी जी ने राजे की प्रतिभा को पहचाना, इस चुनाव में राजे की जीत पिछली जीत से कुछ अलग थी, मार्च 1998 में वसुंधरा राजे केवल एक सांसद के रुप में ही निर्वाचित नहीं हुई, बल्कि उन्हें राज्य मंत्री के रूप में विदेश मंत्रालय का काम भी सौंपा गया। विदेश राज्य मंत्री के रूप में राजे जी ने विभिन्न देशों की यात्रा की और भारत के साथ उन देशों के संबंधों को और मजबूती प्रदान की।[36]

मुख्यमंत्री के रूप में (2003-08)

नवंबर 2002 को वसुंधरा राजे को राजस्थान भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। मई- जून 2003 में राजे ने राजस्थान की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में विस्तार से प्रवास करने की दृष्टि से परिवर्तन यात्राका आयोजन किया। संपूर्ण राजस्थान आंदोलित हो उठा। प्रदेश में पूरी पार्टी एक जुट थी। राजे के नेतृत्व में पार्टी के सामूहिक प्रयत्नों एवं राजे के चमत्कारिक नेतृत्व में 2003 (दिसंबर) विधानसभा चुनावों में प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिया। अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस, जिसने 1998 में 153 सीटें जीतीं, वह 2003 में सिमटकर 56 सीटों पर रह गई। वसुधंरा राजे के रूप में राजस्थान को पहली महिला मुख्यमंत्री मिली। वसुंधरा राजे ने राजस्थान की राजनैतिक परिस्थितियों का बड़ी गहराई से विश्लेषण किया।[37]

पत्रकार भवानीसिंह लिखते हैं, ‘‘राजस्थान की राजनीति में आधी सदी तक छाए रहे भैरोसिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति बनने के साथ राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा राजे के उदय की कहानी शुरू होती है।’’ राजनीतिक विश्लेषक राजीव गुप्ता कहते हैं, ‘‘सीनियर नेताओं को यह भरोसा नहीं था कि वे इतना बड़ा बहुमत हासिल कर पाएँगी। परिवर्तन यात्राका रथ जिधर गया, महारानी को देखने और सुनने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा। उन्होंने आदिवासियों जैसी वेशभूषा पहनकर आदिवासी महिलाओं के साथ मंच पर थिरकने से भी परहेज नहीं किया। इसी वजह से 2003 में वसुंधरा राजे 200 में से 120 सीटें जीतने में कामयाब रहीं और सूबे में सबसे अधिक जनाधार वाली लोकप्रिय नेता बन गई।’’ युवा सूरज सैनी का कहना है, ‘‘पार्टी संगठन हो या सरकार, हर जगह वसुंधरा राजे ने युवाओं को बढ़ावा दिया। इसी वजह से ये युवा हमेशा उनके भी फैन रहे हैं।’’[38]

वर्ष 2003 से 2008 तक वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने एकजुट रहकर प्रदेश को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। जीवन के सभी क्षेत्रों में विकास कर प्रदेश तेजी से अग्रसर होने लगा। उनके इस कार्यकाल के दौरान  अक्षय कलेवा’, ‘पन्नाधाय’, ‘भामाशाह योजना’, हाड़ी रानी बटालियन’, ‘महिला सशक्तिकरण’, ‘पालनहार योजना’, ‘अनुप्रति योजना’, ‘नई पर्यटन इकाई नीति का निर्माण’, ‘महिला पुलिस थानों की स्थापना’, ‘जलमहल परियोजना’, ‘मिड -डे - मील योजना’, ‘ग्रामीण युवा केन्द्रों की स्थापना’, ‘विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहनजैसे कार्य उल्लेखनीय है।[39]

राजस्थान में शिक्षा पहल योजना के चलते शिक्षा के क्षेत्र को और बढ़ावा देने के लिए सिस्को, आई बी एम, एनआईआईटी, माइक्रोसॉफ्ट तथा ऐसे ही कई निकायों, जैसे विश्व आर्थिक मंच और वैश्विक इ-स्कूलों ने भी अपना योगदान दिया। राजस्थानी हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र को सरकारी सहायता देकर पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) के संचालन के लिए एक मॉडल राज्य का दर्जा राजस्थान को प्राप्त हुआ। इस प्रकार राजे ने 2003-08 के अपने मुख्यमंत्री काल में प्रदेश को नई ऊंचाईयां दीं तथा राज्य को पिछड़े राज्य की श्रेणी से निकालकर विकसित राज्यों की श्रेणी में लाकर खड़ा किया।[40]

वर्ष 2003 से 2008 तक वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाले भाजपा शासन ने काफी यश कमाया था, उसके उपरांत भी 2008 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा और अशोक गहलोत के नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। सबके लिए यह आश्चर्य करने वाली घटना थी। 2008 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 96 तथा भाजपा को 78 सीटें ही मिल सकी। वसुंधरा जी को विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया, लेकिन कुछ समय पश्चात् ही भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के रूप में उन्हें कार्यभार सौंपा गया, जहाँ उन्होंने पार्टी के संगठनात्मक मामलों का कार्यभार संभाला।[41]

विधानसभा चुनाव 2013

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013 से पूर्व भाजपा में कुछ आन्तरिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इस परिस्थिति को समाप्त करने के लिए केन्द्र ने हस्तक्षेप किया, दोनों धड़ों के प्रमुख नेताओं को दिल्ली बुलाया। काफी मशक्कत के पश्चात् इस बात पर सहमति बनी कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वसुंधरा राजे को बनाकर उन्हीं के नेतृत्व में 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा जाए तथा पार्टी को बहुमत मिलने पर अगला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे होंगी। फरवरी 2013 में इस निर्णय के पश्चात् पार्टी की धड़ेबाजी समाप्त हो गई तथा एकजुट होकर सभी कार्यकर्ता चुनावों की तैयारी में जुट गए।[42]

अप्रैल 2013 से सुराज संकल्प यात्राप्रारंभ हुई। यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व वसुंधरा राजे ने बाँसवाड़ा जिले में स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर में जाकर माता का आशीर्वाद लिया। 5 जून, 2013 तक चार संभागों- उदयपुर, कोटा, भरतपुर व अजमेर की यात्रा सम्पन्न कर ली थी। इन चार संभागों में उनका रथ जिधर से भी निकला, विशाल जनसमुदाय ने उनका भव्य स्वागत किया, विशेष रूप से महिलाओं ने उनकी सभी सभाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 22 अप्रैल,2013 को सुराज संकल्प यात्रा के अवसर पर कोटा की भव्य जनसभा को संबोधित करते हुए वसुंधरा राजे ने कहा, ‘‘गत बार हमने बीमारू राज्य को अग्रणी बनाया था, मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि यहाँ भी विकास हो सकता है, आज हम सबको एक साथ मिलकर चलना होगा।’’ जुलाई, अगस्त, सितंबर में संभागों में सुराज संकल्प यात्रालेकर वसुंधरा राजे फिर निकलीं। सारे प्रदेश में वसुंधरा राजे का अभूतपूर्व स्वागत हुआ। वस्तुतः सुराज संकल्प यात्राके दौरान ही यह निश्चित हो गया कि राजस्थान में मात्र भाजपा और कुछ नहीं।[43]

सुराज संकल्प यात्राका समापन 10 सितम्बर, 2013 को जयपुर के अमरूदों के बाग में हुआ। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा, ‘‘राजस्थान में सबसे ज्यादा लोकप्रिय अगर कोई जननेता है तो वो वसुंधरा राजे हैं, जिनके नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा दो -तिहाई बहुमत से सरकार बनाएगी। वसुंधराराजे भूतपूर्व मुख्यमंत्री नहीं, भावी मुख्यमंत्री भी हैं। हम उनका अभिनंदन मुख्यमंत्री के नाते करने दोबारा राजस्थान आएँगे।’’ भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की यह बात बिल्कुल सत्य साबित हुई। वर्ष 2013 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई, वह मात्र 21 सीटों पर सिमट गई। भाजपा को 200 विधानसभा सीटों में से 163 सीटों पर विजय मिली। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों की भाजपा के लिए एक विशेष चमत्कारी बात यह रही कि वोटर स्वप्रेरणा से अपने-अपने घरों से निकलकर वोट देने पहुँचे। 13 दिसम्बर, 2013 को जयपुर जनपथ पर सार्वजनिक समारोह में भाजपा के प्रधानमंत्री प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी एवं प्रदेश के लाखों लोगों की उपस्थिति में श्रीमती वसुंधरा राजे का मुख्यमंत्री के नाते शपथ ग्रहण समारोह संपन्न हुआ, राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने उन्हें शपथ दिलवाई।[44]

मुख्यमंत्री बनने के बाद वसुंधरा राजे ने विभिन्न क्षेत्रों में अनेक विकास कार्य प्रारंभ किए। राजे के जीवन में विश्राम का कोई स्थान नहीं है। उनकी एक ही आकांक्षा है कि कैसे शीघ्रातिशीघ्र प्रदेश की प्रगति को बढ़ाया जाए। मुख्यमंत्री राजे ने कहा, ‘‘भाजपा सरकार ने 50 लाख परिवारों की महिलाओं को अपने पाँव पर खड़ा कर उन्हें स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से भामाशाह नारी सशक्तिकरण योजनाशुरू की थी, जिसे कांग्रेस ने रुकवा दिया, हम इसे पुनः चालू करेंगे। यदि यह योजना चालू रहती तो दूसरी योजनाओं की ज्यादा जरूरत नहीं रहती, परन्तु अब महिला सशक्तीकरण के कार्य को आगे बढ़ाना हमारी प्राथमिकता होगी।’’[45]

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 के चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं गए। चुनाव परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने पद से इस्तीफा राज्यपाल कल्याण सिंह को भेज दिया। वसुंधरा राजे ने इस्तीफा भेजने के बाद मीडियाकर्मियों से बातचीत में कहा कि जो होना था, वो हो गया, अब कांग्रेस को जनादेश के लिए बधाई देती हूँ। उन्होंने प्रदेश के मतदाताओं का भाजपा को वोट देने के लिए आभार जताया। वसुंधरा राजे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का भी राज्य में प्रचार अभियान चलाने के लिए आभार जताया। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता को एक परिवार मानकर राज्य सरकार ने काम किया है। हमें उम्मीद है कि अगली सरकार हमारे काम को आगे बढ़ाएगी, हम अच्छे विपक्ष की भूमिका निभाएंगें। मुझे गर्व है कि हमारी भाजपा सरकार ने पाँच वर्षों में विकास और गौरव के खूब काम किए, आशा है कि इन विकास के कार्यों को आने वाली सरकार जारी रखेगी।[46]

वसुंधरा राजे एक ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिसे संगठन ने जो क्षेत्र दिया, उसे अपना एक परिवार बनाकर ऐसे घुल-मिल जाती हैं, जैसे अपना आत्मीय मिलता है। यही कारण है कि राजनीति में आने के पश्चात् राजस्थान में एक भी चुनाव नहीं हारीं, चाहे वह क्षेत्र धौलपुर का हो अथवा झालावाड़ का, चाहे विधानसभा का चुनाव हो, चाहे लोकसभा का। एक संवेदनशील हृदय लेकर अपने क्षेत्र के नर-नारियों के सुख-दुःख में सहभागी बनना एक सच्चे नेतृत्व का गुण है वसुंधरा राजे का। वसुंधरा राजे अत्यंत परिश्रमी महिला हैं, वर्तमान में भी ये राजनीति में सक्रिय है। वसुंधरा राजे का संकल्प है, राजस्थान को विकसित व उन्नत प्रदेश बनाने का। हमें विश्वास है कि वे इसमें अवश्य सफल होंगी।

निष्कर्ष

राजस्थान की राजनीति को प्राचीन समय से वर्तमान तक यहाँ की महिलाओं ने बहुत प्रभावित किया है। यह सही है कि इसके लिए महिलाओं को पुरूषों से कहीं ज्यादा संघर्ष करना पड़ा था है परन्तु फिर भी महिलाओं को जब भी मौका मिला उन्होंने राजस्थान के विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है।

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33. नागर, विजय, ‘वसुंधरा राजे और विकसित राजस्थान’, प्रभात पेपरबैक्स, नई दिल्ली, 2016, पृष्ठ 29

34. https://Vasundhararaje.in

35. नागर, विजय,‘वसुंधरा राजे और विकसित राजस्थान’,प्रभात पेपरबैक्स, नई दिल्ली, 2016, पृष्ठ 31

36. https://Vasundhararaje.in

37. नागर, विजय, ‘वसुंधरा राजे और विकसित राजस्थान’,प्रभात पेपरबैक्स, नई दिल्ली, 2016, पृष्ठ 43

38. उपर्युक्त, पृष्ठ 46

39. https://Jivani.org

40. नागर, विजय, ‘वसुंधरा राजे और विकसित राजस्थान’, प्रभात पेपरबैक्स, नई  दिल्ली, 2016, पृष्ठ 65

41. https://Vasundhararaje.in

42. नागर, विजय, ‘वसुंधरा राजे और विकसित राजस्थान’, प्रभात पेपरबैक्स, नई दिल्ली, 2016, पृष्ठ 95

43. उपर्युक्त, पृष्ठ 99

44. उपर्युक्त, पृष्ठ 102

45. उपर्युक्त, पृष्ठ 115