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परशुराम शुक्ल की कहानियों में राष्ट्रीय चेतना |
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National Consciousness in the Stories of Parshuram Shukla | |||||||
Paper Id :
18807 Submission Date :
2024-03-05 Acceptance Date :
2024-03-15 Publication Date :
2024-03-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.11119881 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
परशुराम शुक्ल की
कहानियों में राष्ट्रीय चेतना को वीरांगनाओं के माध्यम से, योद्धाओं के माध्यम से अपनी कहानियों में राष्ट्रीय भावना को जागृत किया हैं
विजयपर्व, साहस की विजय, राजकुमारी का निर्णय, सैनिक का रहस्य, तिरंगे की शान, भारत माता की जय आदि कहानियों के माध्यम से शुक्ल ने भारतीयता को आगे ले जाने
का कार्य किया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the stories of Parshuram Shukla, national consciousness has been awakened through the brave women and warriors in his stories like Vijay Parva, Victory of Courage, Decision of the Princess, Secret of the Soldier, Pride of the Tricolour, Bharat Mata Ki Jai etc. Through this, Shukla has worked to take Indianness forward. | ||||||
मुख्य शब्द | राष्ट्रहित, अहिंसा, इच्छन्न, दीक्षा, ततो चूसै, रतननि, धन्य, बातन, हिन्दुन आदि। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | National interest, non-violence, Ichchanna, Diksha, Tato Chusai, Ratnani, Dhanya, Batan, Hindun etc. | ||||||
प्रस्तावना | राष्ट्रीय चेतना से स्वतः ही व्यापक अर्थ का बोध होता है। जिसमें राष्ट्र के स्वभिमान की रक्षा राष्ट्र का गौरव गान, परिवेश, वहां के नागरिकों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। राष्ट्रीय चेतना संकुचित अवधारणा नहीं है। वह समग्र सोच को समाहित किये हुए है। राष्ट्रीय चेतना में राष्ट्र की गौरव गाथा वहां की धारणा समाहित है। विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार की अवधारणाऐं समाहित है। अथर्ववेद में मत्रोच्चारण सभी की सेवा का भाव सम्मिलित किया गया है। ”भद्रं इच्छन्न ऋषयः स्वर्विदः। तपो दीक्षां उपसेदुः अगे।। ततो राष्ट्रं बलं अजश्च जातम्। तदस्मै देवाउपसं नमस्तु।। |
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अध्ययन का उद्देश्य | परशुराम शुक्ल की
कहानियों में राष्ट्रीय भावना को जागृत करना तथा राष्ट्रहित, देशप्रेम, अहिंसा, रक्षा आदि को प्रति बालकों को प्रेरित करना तथा राष्ट्र की भावना जागृत करना
प्रमुख लक्ष्य है। |
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साहित्यावलोकन | परशुराम शुक्ल की कहानियों में राष्ट्रीय चेतना- भारतीय राष्ट्रवाद अथर्ववेद, नगेन्द्र आदि के प्रभावित होकर शुक्ल ने बाल कहानियों
के माध्यम से देश के उभरे स्वरूप राष्ट्र हित की उनकी चेतना को प्रभावित करने का कार्य
हुआ है। |
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मुख्य पाठ |
देश, राष्ट्र, राज्य शब्दों की अवधारणा में कोई अधिक अन्तर नहीं है। जो व्यक्ति अपनी संस्कृति में जितना अधिक जुड़ा होता है। वह उतना ही अपने देशहित या राष्ट्रीयता की भावना से सरोकार होता है। भाषा साहित्य और त्यौहार, रीति-रिवाज, परम्पराएं, वेशभूषा, खान-पान यहीं संस्कृति के प्रमुख अंग माने जाते हैं। संस्कृति, वेशभूषा, बोल-चाल, धर्म, जाति, रंग, रहन-सहन आदि की विविधता होते हुए भारत एक राष्ट्र के रूप में समाहित है।[1] डॉ. खरे के अनुसार, ”राष्ट्रीयता से सीधा-सीधा तात्पर्य राष्ट्र प्रेम से है। राष्ट्रीयता से मात्र राष्ट्र की मिट्टी और सीमाओं का ही बोध नहंी होता हैं, उस देश की संस्कृति, सभ्यता और गौरव का ज्ञान भी होता है।[2] राष्ट्रीयता की चेतना में हिन्दी कवियों और लेखकों ने अपनी कला, प्रमुख रूप से चलाई। हिन्दी साहित्य में भी राष्ट्रीयता का दौर भारतेन्दु से है। आरम्भ हो गया। भारतीय वीरों में प्रताप, छत्रसाल, शिवाजी आदि ने देश की रक्षा के लिए तत्परता व वीरता का परिचय दिया। भारतेन्दु कवियों ने भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण क्षण उनकी राष्ट्रीय भावनाओं तक सीमित नहीं रहे। अंग्रेजों की विचारधारा और उनकी देशभक्तिपूर्ण कविताओं से प्रेरणा ली। राधाचरण गोस्वामी ‘हमारो उत्तम भारत देश’ प्रेमधन ‘धन्य भूमि भारत सब रतननि की उपावनि।’ अंग्रेजों की शोषण नीति का भारतेन्दु द्वारा प्रत्यक्ष उल्लेख भीतर-भीतर सब रस चूसै, हंसि-हंसि के तन-मन धनमूसै जाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि सज्जन। नहिं अंगरेज। भारतेन्दु-युग की राष्ट्रीयता चिंतनधारा के दो पक्ष है, देशप्रेम और राष्ट्रप्रेम, उन्होंने हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान का गुणगान किया।[3] द्विवेदी युग में बढ़ती हुई चेतना, संस्कृति के फलस्वरूप राष्ट्रीयता द्विवेदी युग की प्रधान भावधारा थी। उनकी कविताओं की मुख्य भाव राष्ट्रीयता था, कविवर ‘शंकर’ ने बलिदान गान में कहा - देशभक्त वीरो, मरने से नेक नहीं डरना होगा। प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा।[4] अंग्रेजों से पूर्व जितने भी आक्रमणकारी आये, वह लूट-पाट कर वापस चले गये, परन्तु इन्होंने सबसे अलग साम्राज्यवादी नीति अपनाई और भारतीयों का पूर्णतः शोषण किया। महात्मा गांधी ने आजादी का संघर्ष किया, अहिंसा और सत्य के आधार पर, इस आन्दोलन में भारतीय साहित्यकारों का भी विशेष योगदान रहा। माखनलाल चतुर्वेदी, रामनरेश त्रिपाठी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन, सुभद्रा कुमारी चौहान, इन्होंने केवल राष्ट्रप्र्रेम को कविताओं में दर्शाया ही नहीं बल्कि स्वयं भी देश की आजादी की लड़ाई लड़ी। इन्होंने अपनी कविताओं में देश की सच्चाई को दर्शाया। क्या? देख न सकती जंजीरों का गहना हथकड़ियां क्यों? यह ब्रिटिश राज्य का गहना। इस तरह की रचनाओं में कवि ने अपने साहित्य में राष्ट्रीयता को दर्शाया है। वर्तमान लेखकों में परशुराम शुक्ल ने भी अपनी ऐतिहासिक, नैतिक, क्रांतिकारी आदि बाल कहानियों के माध्यम से देश हित व राष्ट्रप्रेम से बच्चों को अवगत करने का कार्य किया हैं।[5] बाल साहित्य का उद्धेश्य बालक, बालिकाओं में रूचि लाना, उनमें उच्च भावनाओं का भरना, कविताओं के माध्यम से या कहानियों के माध्यम से बच्चों को राष्ट्रहित से परिचित करवाना, उन्हें उसकी जानकारी देना अति आवश्यक है। कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं ”बालक तो स्वयं एक काव्य हैं, स्वयं ही साहित्य है।” वीर शिवाजी को उनकी माता द्वारा सुनाई वीर रस की कहानियों ने ही वीर योद्धा बनाया। वे राष्ट्रभक्ति की कविताएं गीत पढ़कर, कितने युवा देश शहीद हुए, इन ही कहानियों से शिवाजी ने अपने भावी जीवन को जीने की कला, युक्ति, अनुभव किया। नेहा वैद देश को सर्वोपरि और वंदनीय मानती है वह बच्चों में जोश भरती है, उनके साहस की सराहना करती है। विजय पताका लेकर बढ़ते पांव न पीछे इनके पड़ते।[6] बाल साहित्यकारों ने बच्चों को राष्ट्रीयता, देशभक्ति, राष्ट्रहित की भावना जागृत करने का कार्य किया। राष्ट्रीय कवि सोहन लाल द्विवेदी झरने, पहाड़ियों के दर्शन कराते हुए देश भावना को जागृत करते हैं - झरने अनेक झरते, जिसकी पहाड़ियों में चिड़िया चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ियों में बालक देश की आधारशिला हैं, इनकी सुचित शिक्षा, सांवेगिक व बौद्धिक विकास पर ही देश का विकास संभव है। इन्हें राष्ट्रीय, जनतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा अति आवश्यक है। जिससे जागरूक नागरिक के रूप में इनका विकास हो सके। बाल साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का कार्य किया। देशबन्धु शाहजहांपुरी की बाल कविताओं में राष्ट्रीय चेतना स्पष्ट दिखाई देती हैं। पन्द्रह अगस्त आया हैं फिर से, लेकर खुशियों का उपहार। बलिदानों के गीतों से अब, गूंज उठे ये गगन अपार।।[7] परशुराम शुक्ल बाल साहित्य के एक प्रतिष्ठित तथा ख्यातिप्राप्त समृद्ध साहित्यकार है, जिनके बाल साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ एक अन्य समाजोपयोगी संस्कृति दिखाई देती हैं। वर्तमान में भारत के जीवांत साहित्यकारों में शुक्ल की राष्ट्रीय चेतना प्रमुख मानी जाती हैं। 1. एकता का महत्व, 2. जीवन में श्रम और संघर्ष, 3. राष्ट्रभाषा को महत्व, 4. बाल रूप के महत्व पर बल, 5. जीवन में ज्ञान का महत्व। इन विदुओं में शुक्ल ने बच्चों के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ स्वास्थ्य व्यायाम, सादगी महापुरूषों के प्रति श्रद्धा, बड़ों का आदर करना, मित्रता, ईमानदारी, प्रेम-निष्ठा, त्याग, परोपकार, राष्ट्रीयता की भावना विकसित करना। शुक्ल ने समाज को सुसज्जित बनाने का प्रयास किया है, उसी से पूर्णतः राष्ट्र का निर्माण होता हैं बालकों के मन में राष्ट्रीय चेतना का संचय और प्रसार हो सके। बच्चे ही देश का भविष्य है, वह नये और सुसज्जित राष्ट्र का निर्माण करते हैं।[8] बाल साहित्यकार वहीं हैं, जो बच्चों को समझ सके। बालकों के मन की बात, भाषा आदि पर अच्छे से कार्य कर सके। ”उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वेदो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो-जो वह ले गया था। उसके दो दाने सोने को हो गए थे। उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है। वह पछताता है काश, उस समय राजा को और अधिक जौ दिये होते, परन्तु नहीं दे सका क्योंकि देने की आदत जो न थी। इस कथन से स्पष्ट है कि महान राज्य का राजा जब स्वयं भिखारी से भीख मांगता है, तब वह थोड़ा दुविधा में पड़ता है। परन्तु बाद में उसे अहसास होता है कि राजा को दान देना स्वयं की साहस और गुरू शिष्य की शिक्षण नीति को दर्शाया है।[9] नोबल पुरस्कार से सम्मानित राष्ट्रगान के रचनाकार गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, ठीक से देखने पर बच्चो जैसा पुराना और कुछ नहीं है। देश, काल, शिक्षा, प्रथा के अनुसार वयस्क मनुष्यों में जो नए परिवर्तन हुए हैं। ये परिवर्तन सदियों तक होते रहेंगे। एक बालक भोला मीठा, सहज होता है। वैसे ही राष्ट्र प्रेम मनुष्य के हृदय में स्वयं प्रवाहित होता है।[10] भारत की आजादी की लड़ाई में बहुत सी महिलाओं ने माता शिया, कुछ ने जेल की यातनाएं भी सहन की और देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किये। भारत के शौर्य और पराक्रम में नारियों की भूमिका में महारानी लक्ष्मीबाई के धैर्य, साहस, और वीरता को दर्शाया। शुक्ल ने कहानी में ‘मनु’ जो लक्ष्मी के बचपन का नाम है, उसे निद्रक धैर्य, साहसी तथा वीरता के क्षेत्र अंग्रेजों के साथ युद्ध लड़ना उनके वीरांगना होने का परिचय देता है। जिसका प्रभाव बाल मन पर भी पड़ता है तथा बच्चों में राष्ट्रीय चेतना का विकास होता है। अवन्तीबाई ने भी लक्ष्मीबाई की तरह अंग्रेजों से लोहा लेने का कार्य किया। अवन्ती मनकोड़ी (मंडला) के राव गुलजार सिंह की बेटी और रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य की पत्नी थी। इस युद्ध में अंग्रेजों से रानी की हार हुई, उसने राष्ट्रहित के लिये अपने प्राण-न्यौछावर कर दिया।[11] डॉ. परशुराम ने अपनी कहानी ‘आपसी कलह का परिणाम’ के माध्यम से बालकों राष्ट्रहित के स्वरूप को दर्शाया है। अंग्रेजी शासन में हमेशा भारत में ”फूट डालो और शासन करो” उन्होंने सदैव राजाओं को आपस में लड़वाया तथा शासन किया। अंग्रेजों के षड्यंत्र का शिकार होने वाली महिलाओं में एक थी - वीरांगना जिंदा, जिंदा पंजाब के विख्यात महाराजा रणजीत सिंह की छोटी रानी थी। रणजीत सिंह जिंदा रहे तब तक अंग्रेजों को पंजाब पर अधिकार नहीं करने दिया। महारानी जिंदा ने गवर्नर लॉर्ड हार्डिंग ने सबक सिखाने का प्रयास किया। परन्तु महारानी जिंदा ने स्वयं के जीवित रहते हुए अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की। ये राष्ट्रीयता और देश, प्रेम देशहित का जीवंत स्वरूप हैं।[12] शुक्ल की कहानियों में राष्ट्रभक्ति की भावना में अंग्रेजी शासनकाल में जिन लोगों के विरूद्ध क्रांति का बीड़ा उठाया, उनमें सभी स्त्री पुरूष, युवा, वृद्ध सभी लोग सम्मिलित थे। इतिहासकार और लेखकों ने अपने साहित्य के माध्यम से प्रसिद्ध किया। बहुत सारे साहित्यकार या लेखक आजादी की लड़ाई में विलीन हो गये। लेखकों की दृष्टि में न आ पाने के कारण उनके नाम अतीत के अंधेरे में विलीन हो गये। ऐसी ही एक महिला क्रान्तिकारी का नाम है - भोगेश्वरी सन् 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों का भारत छोड़ों आन्दोलन इतना व्यापक हुआ। पूरे आसाम क्षेत्र में सभी लोग आंदोलन में सक्रिय हुए, भोगेश्वरी देवी ने इस अवसर को भुलाने की भरपूर कोशिश की। श्री कोलाई कोच, हेमाराम बोरा, तिलक, डेका और गुणाभिराम आदि शहीद हुए। ये सभी गांधीवादी आन्दोलनकारी थे। राष्ट्रीय चेतना इन आन्दोलनकारियों के आन्दोलनों में स्पष्ट दिखाई देती है।[13] ऐतिहासिक बाल कहानियों में परशुराम शुक्ल ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया है। पन्नाधाय को भारत के इतिहास में भी पन्नधाय के नाम से जाना जाता हैं। पन्ना मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह के बेटे उदयसिंह की धापकी। मेवाड़ के एक दुष्ट सेवक बनवीर ने इसे मेवाड़ का शासक बनने का अच्छा अवसर समझा और उदयसिंह की हत्या करने का पहुंचा। पन्ना के त्यागपूर्ण बलिदान के कारण वह सफल नहीं हो सका। पन्ना ने अपना बेटा चन्दन खोकर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा की थी। राष्ट्रीय भावना, देशहित का स्वरूप इन कहानियों में प्रमुख रूप से दिखाई देता है।[14] |
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निष्कर्ष |
परशुराम शुक्ल की एक अन्य कहानी में ‘राष्ट्रधर्म
की वेदी पर’ में अलाउद्दीन को राजा रामदेव को हराया, जब वह
वापस लौटा। तो राजा रामदेव के चेहरे पर बल पड़ गये उन्होंने सोचा हारा हुआ शत्रु
वापस नहीं आता। उन्होंने योद्धाओं को शंकालु दृष्टि से देखा। वीर राजपूतों! लगता
है हमारे किसी सैनिक ने हमारे साथ विश्वासघात किया है। परन्तु कोई बात नहीं युद्ध
तो राजपूतों का धर्म है। हम फिर लड़ेंगे और विजयी होंगे। ‘हम
विजयी होंगे’ देशहित में राष्ट्र का सदैव उद्घोष होगा।[15] |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. भारतीय राष्ट्रवाद, स्वरूप एवं विकास, पृ. 370, शिवकुमार शर्मा 2. अथर्ववेद टीका, श्रीराम आचार्य, पृ. 38 3. हिंदी साहित्य का इतिहास, पृ. 440 4. वहीं, पृ. 477 5. वहीं, पृ. 519 6. नेहा वेद, बोल रही निज जन की बोली, मासिक, पृ. 15 7. डॉ. देशबन्धु, मासिक पत्रिका, भीलवाड़ा, पृ. 14 8. परशुराम शुक्ल की बाल सतसई, नयन प्रकाशन, पृ. 72 9. बाल साहित्य का अनुशीलन, आनंद बक्षी, पृ. 13, 14 10. वहीं, पृ. 7, 9 11. क्रान्तिकारियों की बाल कहानियां, परशुराम शुक्ल, पृ. 11, 12 12. क्रांतिकारियों की बाल कहानियां, परशुराम शुक्ल, पृ. 15, 17 13. वहीं, पृ. 110 14. डॉ. परशुराम शुक्ल, ऐतिहासिक बाल कहानियां, पृ. 09 15. वहीं, पृ. 57 |