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मुख्यधारा की ओर अग्रसर थारू जनजाति: एक समाजशास्त्री विश्लेषण |
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The Tharu Tribe Moving Towards the Mainstream: A Sociological Analysis | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
18812 Submission Date :
2024-04-13 Acceptance Date :
2024-04-19 Publication Date :
2024-04-23
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.11112888 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
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सारांश |
आज
भारत विश्व में शक्तिशाली देशों की संख्या में आता है भारत की अर्थव्यवस्था विश्व
की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं जहाँ एक ओर हमारा देश वैश्विक स्तर पर अपना
नाम कर रहा है वहीं दूसरी तरफ जनजातीय समाज ऐसे इलाकों में निवास करती है जहाँ तक
बुनियादी सुविधाओं की पहुंच न के बराबर है। जिसकी अलग संस्कृति अलग रीति- रिवाज
अलग भाषा होती है यह एक निश्चित भू-भाग में निवास करती तथा इसके अपने वंशज, पूर्वज व देवी- देवता होते है। वे आर्थिक रूप से पिछड़ापन, गरीबी, ऋणग्रस्तता, शिक्षा का अभाव इनमें पाया जाता है। यह जनजातियां आज भी बाहरी दुनिया से अपना सम्पर्क स्थापित नहीं कर पा रहे है। लेकिन
कुछ जनजातियां ऐसे भी हैं जो सभ्य समाजों के संपर्क में आकर के मुख्यधारा की ओर
अग्रसर हो रहे हैं जिसमें से एक थारू जनजाति भी हैं जो मुख्यधारा की ओर तेजी से
अग्रसर हो रही है। संवैधानिक प्रावधानों के तहत अनुसूचित जनजातियों को संरक्षण एवं
सुरक्षा प्रदान की गई है। सरकार विकसित करने के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है
लेकिन पूर्णरुप पहुँच नही पा रही है परन्तु जनजातीय विकास से आशय है- जनजातीय समाज
में व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक प्रस्थिति में सुधार लाकर उसके जीवन में
गुणवत्तापूर्ण प्रगति करना। जनजातीय विकास की प्रक्रिया में सरकार ने महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई है किन्तु वर्तमान समाज में सभ्य समाज के सम्पर्क संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण एवं आधुनिकीकरण के कारण थारू जनजाति युवा नौकरीपेशा
व अन्य व्यवसाय होने के कारण शहरों में आकर बसे रहे हैं एवं शहरी वातावरण के
अनुकूल हो रहे हैं। थारू जनजति मुख्यधारा की ओर अग्रसर हो रहे हैं। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Today, India comes among the powerful countries in the world. India's economy is the fifth largest economy in the world. On one hand, our country is making a name for itself at the global level, while on the other hand, the tribal society lives in such areas where basic facilities are not available. It has a different culture, different customs, different language, it resides in a certain area and it has its own descendants, ancestors and gods and goddesses. They are found to be economically backward, poverty, indebtedness and lack of education. Even today these tribes are not able to establish contact with the outside world. But there are some tribes which are moving towards the mainstream after coming in contact with the civilized societies, one of which is the Tharu tribe which is moving rapidly towards the mainstream. Protection and security have been provided to Scheduled Tribes under constitutional provisions. Many schemes are being run by the government for development but they are not reaching their full potential but tribal development means making quality progress in the life of a person by improving his socio-economic status in the tribal society. The government has played an important role in the process of tribal development, but in the present society, due to contact with the civilized society, culturalization, westernization and modernization, the youth of the Tharu tribe, being employed and in other professions, are settling in the cities and are getting adapted to the urban environment . Tharu tribe is moving towards the mainstream. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | थारू, उत्पत्ति का सिद्धांत, संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण, आधुनिकीकरण, अध्ययन के क्षेत्र। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Tharu, Theory of Origin, Sanskritisation, Westernisation, Modernisation, Areas of Study. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना | थारू जनजाति भारत
और नेपाल का एक प्रसिद्ध आदिवासी समुदाय है, जिनमें से अधिकांश भारत-नेपाल सीमा पर हिमालयी तराई क्षेत्र में रहते हैं। भारत
में, थारू जनजाति द्वारा आबादी वाले जिले हैं: उत्तराखंड
राज्य में उधम सिंह नगर, पीलीभीत, खीरी, उत्तर प्रदेश राज्य में गोंडा, बस्ती, बहराइच, गोरखपुर औरबिहार राज्य के पश्चिम चम्पारण के उत्तर क्षेत्र में
नेपाल से सटे हुए क्षेत्र में थारू बसे हुए है। जिस क्षेत्र में थारू लोग रहते है उसे
थरूहट कहते हैं। थरुहट एक ऐसा स्थल है जो जंगलों पहाड़ों से आच्छादित एक ऐसी जनजाति
को अपने आंचल में सदियों से पालते - पोसते आ रहा है, थारू जो पूर्णता प्रकृति, प्रेमी, निश्छल, निष्कपट, अतिथि सत्कार एवं सच्चे स्वभाव के व्यक्तित्व होते हैं।इनकीआबादी
2011 की जनगणना के आधार पर लगभग चार लाख से ज्यादा मानी जाती है।"
पश्चिम चम्पारण की जिले मे बाल्मीकिनगर से मैनाटॉड़ तथा बगहा-2 (सिधाँव), रामनगर, गौनाहा तथा मैनाटांड़ अंचलों के तराई क्षेत्र में लगभग 800 वर्ग मील क्षेत्रफल में इनका निवास स्थान है।"1 इस आदिवासी समुदाय का मुख्य व्यवसाय कृषि, शिकार और मछली पकड़ना, कृषि और वानिकी है जो उनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।2 ऐतिहासिक रूप से, वे एकमात्र जनजाति थे जो भारत-नेपाल सीमा पर मलेरिया के जंगलों
में जीवित रह सकते थे। लेकिन जैसे ही मच्छरों को नियंत्रित करने के उपाय सफल हुए, कई अन्य लोग इस जनजाति के क्षेत्रों में चले गए। थारू लोगों
का जंगल और नदी दोनों से गहरा जुड़ाव है। इस जनजातिय समुदाय की अपनी सांस्कृतिक और
सामाजिक-आर्थिक प्रणालियों के संदर्भ में कई अनूठी विशेषताएं हैं। थारू जनजाति में
कई गोत्र हैं (जिन्हें स्थानीय भाषा में कुरी कहा जाता है), कुछ सबसे महत्वपूर्ण हैं: बडवायाक, बत्था, रावत, बिरटिया, महतो, दहैत, रजिया, बुंका, संसा, जुगिया, बक्सा, धंगरा और राणा इन सभी को निम्न और उच्च स्थिति में विभाजित किया
गया है।3 थारू हिंदू धर्म का पालन करते
हैं क्योंकि उनका दावा है कि उनमें राजपूत खून है और वे राजस्थान से चले गए हैं। यह
एक दिलचस्प दावा प्रतीत होता है, क्योंकि उनकी नस्ल
और संस्कृति में राजस्थानी राजपूतों की कोई ज्ञात विशेषता नहीं है।4 1941 में, डॉ॰ डी॰ एन॰ मजूमदार
ने रक्त समूह परीक्षणों के आधार पर थारू के कथित राजपूत मूल का विरोध किया। यह पाया
गया कि थारू मंगोलायड जाति के वंशज हैं।5 जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, थारू हिंदू धर्म का दावा करते हैं, लेकिन चूंकि वे एक विशुद्ध रूप से आदिवासी समुदाय हैं, वे मुख्य रूप से अन्य हिंदू देवी-देवताओं के साथ-साथ अपनी आदिवासी
देवी भुइयां या भूमसेन की पूजा करते हैं। भारत सरकार ने इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति
के रूप में वर्गीकृत किया है।6 मैं थारू जनजाति
में परिवार, सामाजिक संरचनाओं, रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के संबंध में महिलाओं की स्थिति की जांच करने का
प्रस्ताव करता हूं और अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर प्रदर्शित करता हूं कि थारू महिलाएं, जो अपनी रगों में राजपूत रक्त होने का दावा करती हैं और हैं
राजपूत रानियों के वंशज समझे जाने वाले, परिवार और समुदाय दोनों में एक सशक्त स्थान रखते हैं। यह भारत के शहरी महानगरों
(और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों) में महिलाओं की स्थिति के विपरीत है, जहां उनके साथ भेदभाव किया जाता है, उनका शोषण किया जाता है, उन्हें पीटा जाता है, बलात्कार किया जाता है और उन्हें परिवार-समाज शक्ति
मैट्रिक्स के हाशिये पर रहने के लिए मजबूर किया जाता है। शहरी क्षेत्रों में महिलाएं
अभी भी उन अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रही हैं, जिनका आनंद थारू जनजाति की महिलाओं को मिलता है।7
थारू जनजाति के लोग
हिंदू धर्म को मानते हैं। वे भूत प्रेत और जादू टोना में विश्वास रखते हैं। थारू जनजाति
में हिंदू धर्म के लोगों की तरह ही सभी पर्व
त्योहार को मनाते हैं, लेकिन दीपावली को यह शोक के रूप में मनाते हैं। लेकिन यह परंपरा बिहार मेंदेखने को नहीं मिला। बजहर
नाम त्यौहार जेठ अथवा बैसाख के दिनों में मनाते
हैं। इनके प्रमुख त्यौहारो में से एक वरणा
त्यौहार है, जिसे भादो के महीने में मनाते हैं। इसमें ढाई दिन
के लिए अपने घर में बंद रहते हैं, जिसमें पूर्ण लॉकडाउन
की स्थिति हो जाती है। यह प्रकृति की रक्षा के लिए इस पर्व को मनाते हैं। |
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अध्ययन का उद्देश्य | इस अध्ययन के प्रमुख उद्देश्य हैं 1. थारू जनजाति के सामाजिक संरचना काबदलते स्वरूपका अध्ययन। 2. थारू जनजाति पर शैक्षणिक स्थिति का प्रभाव का अध्ययन। |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोध पत्र
में शोध विषय को ध्यान में रखते हुए निम्न पुस्तकों, लेखों आदि का अवलोकन किया गया है- डॉ. श्रीवास्तव एस०
के० (दा थारुज अ स्टडीज इन कल्चरल डायनामिक्स)8 पुस्तक में थारू संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से वर्णित किया गया है।
इस पुस्तक में डॉक्टर श्रीवास्तव ने थारू समुदाय की परंपरागत रूप में चल रही विविधता
को प्रस्तुत किया है, जैसे त्योहार, संस्कार, उत्सव, धर्म, साहित्य, लोक नृत्य, लोक गीत, और जादू-टोना आदि। उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से दिखाया है कि ये पहलु सदियों
से पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं और किस प्रकार थारू समुदाय की विविधता उसकी सांस्कृतिक
पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस पुस्तक
के माध्यम से थारू जनजाति के समुदाय की जीवनशैली, संस्कृति, और सांस्कृतिक परंपराओं को समझने में मदद मिलती है।
विशेष रूप से हिमालय के पश्चिमी क्षेत्र में बसी विभिन्न जातियों और जनजातियों की लोक
कलाओं का अध्ययन इस पुस्तक के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। इस पुस्तक में प्रस्तुत
डाटा और विवरण इस प्रकार के अध्ययनों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो थारू समुदाय के सामाजिक और सांस्कृतिक अध्ययन में योगदान
कर सकते हैं। ब्रह्मदेव शर्मा
(1994)9 द्वारा लिखी “आदिवासी स्वशासन“ एक अध्ययन है जो आदिवासी क्षेत्रों में स्वशासन के
संदर्भ में विभिन्न पहलुओं को विस्तार से वर्णित करता है। लेखक ने संवैधानिक प्रावधानों
और स्वशासी व्यवस्था की रूपरेखा को उजागर किया है और बिगड़ती हुई व्यवस्था के संदर्भ
में आदिवासी क्षेत्रों में स्थिति को विश्लेषण किया है। अध्ययन से स्पष्ट होता है कि
आदिवासी और अन्य क्षेत्रों में स्वशासी व्यवस्था के बीच एक बुनियादी अंतर है, और भले ही बिगड़ी हुई परिस्थिति में भी आदिवासी इलाकों में स्वशासी
व्यवस्था कायम है। लेखक ने आदिवासियों को उनकी समस्याओं का सम्मान करते हुए सहारा और
राहत देने का प्रयास किया है। इस अध्ययन में दिखाया गया है कि दूसरे ग्रामीण समाजों
को अपनी व्यवस्था का संक्षिप्त सहयोग दिया गया है, जबकि वे अंग्रेजों के समय से ही टूट चुकी थीं। लेकिन इसे देखते हुए कि आजादी के
बाद यह टूट गई है, लेखक ने स्पष्ट किया है कि दोनों स्थितियों में अंतर
होता है, और उनके लिए दो अलग-अलग व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती
है। सुभाष चंद्र वर्मा (2011)10 की “द स्ट्रगलिंग थारू यूथ्सः ए स्टडी ऑफ थारू ट्राइब ऑफ इंडिया“ में थारू युवाओं की स्थिति पर चर्चा की गई है। उनका विशेष ध्यान
वर्तमान समाज के अन्य वर्गों की अपेक्षाओं और थारू युवाओं के शिक्षा, रोजगार, और तकनीकी क्षेत्र
में पिछड़ावा पर है। इस लेख की समीक्षा से पता चलता है कि थारू युवा आधुनिकता के चक्रावृद्धि के माध्यम
से अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को छोड़ रहे हैं। इसलिए, थारू युवाओं को अपने रूढ़िवादी आदिवासी मूलों से जुड़े रहने की
आवश्यकता है और सरकारी स्तर पर उनके लिए आर्थिक और राजनीतिक सहायता की आवश्यकता है।
इससे थारू जनजाति अपनी पहचान को स्थायी रूप से बनाए रखते हुए मुख्य समाज में शामिल
हो सकती है। |
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सामग्री और क्रियाविधि |
यह अध्ययन निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए प्रत्यक्ष/प्रतिभागी अवलोकन और साक्षात्कार विधियों का उपयोग करते हुए एक प्राथमिक तथ्य पर आधारित है। हालाँकि, उपलब्ध द्वितीयक संसाधनों का भी उपयोग किया गया है। प्राथमिक जानकारी बिहार के पश्चिम चंपारण जिला के गौनाहा प्रखंड के दोमाठ ग्राम का चयन किया गया है कुल अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या1802 है। जिसमें से120 सूचनादाताओं का चयन किया गया हैं। साधारण दैव निदर्शन के द्वारा जो कुल थारू जनजाति के जनसंख्या का6.65% प्रतिनिधित्व करता है।इन सूचनादाताओं का उम्र21 से65 तक से अधिक उम्र का भी चयन किया गया हैं।शोध पत्र मेंवैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग किया गया हैं। गुणात्मक एवं मात्रात्मक उपकरण पद्धति काभी प्रयोग किया गया हैं। प्रश्नावली अनुसूची उपकरण का प्रयोग किया गया तथा साक्षात्कार, वैयक्तिकअध्ययन, अवलोकन तकनीक का भी प्रयोग किया गया हैं। अंततः इसके साथ ही साधारण दैव निदर्शन एवं वर्णनात्मक अनुसंधान प्रारचना का प्रयोग भी किया गया हैं। इस अध्ययन में कुछ कथन द्वितीयक डेटा पर आधारित हैं लेकिन अधिकतम परिणाम प्राथमिक डेटा से प्राप्त किए गए हैं।
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परिणाम |
2011 की जनगणना
के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत भाग जनजाति समुदाय का था, जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या
का 8.2 प्रतिशत जनजातीय समुदाय का
था। भारत की थारू जनजातियों के उनके सादगी, सच्चाई, ईमानदारी, अतिथि सेवा, प्रकृति प्रेम एवं उसका हंसमुख स्वभाव के लिए भी जाना जाता है। मैकाईवर एवं पेज ने सामाजिक परिवर्तन भी स्पष्ट करते हुए बताया है कि समाजशास्त्री होने के्र नाते हमारा प्रत्यक्ष संबंध सामाजिक संबंधों से और उसमें आये हुए परिवर्तन को हम सामाजिक परिवर्तन कहेंगे।11 उपरोक्त परिभाषाओं के संबंध में कहा जा सकता है कि परिवर्तन
एक व्यापक प्रक्रिया है। समाज में परिवर्तन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक, नैतिक, भौतिक आदि सभी क्षेत्रों में
होने वाले किसी भी प्रकार के परिवर्तन से कहा जा सकता है। भारत में जनजातियों में परिवर्तन के प्रमुख उपकरणों में से संस्कृतिकरण
तथा पश्चिमीकरण दोनों उपकरणों की प्रमुख भूमिका रही है। संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा
कोई निम्न हिन्दू जाति या कोई जनजाति अथवा कोई अन्य समूह किसी उच्च और प्रायः द्विज
जाति के दिशा में अपनी रीति-रिवाज कर्म-काण्ड, विचारधारा
और जीवन पद्धति को बदलता है। भारतीय समाज और संस्कृति के विभिन्न पक्षों में पश्चिमी संस्कृति
के सम्पर्क में आने वाले परिवर्तन को पश्चिमीकरा के नाम से जाना जाता है। एम0 एन0 श्रीनिवास के अनुसार, ‘‘150 वर्षो के अंग्रेजी राज के फलस्वरूप भारतीय समाज और संस्कृति
में होने वाले परिवर्तन के लिए अन्यत्र मैंने ‘पश्चिमीकरण’ शब्द का प्रयोग किया है और यह शब्द आद्यौगिक संस्थाएँ, विचारधारा और मूल्य आदि विभिन्न स्तरों पर होने वाले परिवर्तनों
को आत्मसात करता है।’’12 पश्चिमीकरण से तात्पर्य है कि अंग्रेजी के शासन काल में होने
वाले परिवर्तन एवं प्रभावों की श्रृंखला से है, जिसमें पश्चिमी
संस्कृति की अच्छाईयों, आधुनिक एवं प्रगतिशील विचारों
से प्रभावित होने के साथ-साथ उस संस्कृति की बुराईयाँ, विकृतियों एवं प्रलोभनों के सम्पर्क में आना भी शामिल है। पश्चिमीकरण
के प्रभाव के परिणामस्वरूप भारतीय समाज एवं संस्कृति में प्रभाव देखने को मिलता है।
लेकिन आधारभूत संरचना में अधिक परिवर्तन देखने को नहीं मिलता है। जैसे- परिवार संरचना, जाति प्रथा, विवाह व्यवस्था, धार्मिक कर्मकाण्ड, नातेदारी
संरचना एवं शैक्षणिक संरचना में बदलाव आये है, लेकिन मूलभूत
संरचना बनी ही है। संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण का भी प्रभाव जनजातियों पर देखने को
मिलता है। भारत की थारू जनजातियों के उनके सादगी, सच्चाई, ईमानदारी, अतिथि सेवा, प्रकृति
प्रेम एवं उसका हंसमुख स्वभाव के लिए भी जाना जाता है। थारू जनजाति के वर्तमान सामाजिक-आर्थिक
स्थिति को जानने के लिए उस समाज के शिक्षा, घरेलू आय, व्यवसाय, परिवार का आकार, आवासीय स्थिति, एवं किस
उम्र में शादी करना पसंद करते हैं आदि का अध्ययन करना। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार के पश्चिम चंपारण की कुल जनसंख्या
39.35 लाख में से पुरुष की कूल जनसंख्या 2061110 और महिला की कुल जनसंख्या 1873932 थी। 2011 में पश्चिम चंपारण की औसत साक्षरता दर 55.70 प्रतिशत थी पुरुष साक्षरता दर 65.5 प्रतिशत महिला साक्षरता दर 44.6 प्रतिशत
थी। पश्चिम चंपारण का लिंगानुपात 909/1000 है। थारू जनजाति के समाज की आर्थिक- स्थिति को जानने की के लिए 120 लोगों का साक्षात्कार अनुसूची के द्वारा उनकी स्थिति को जानने
का प्रयास किया गया है। लिंग संसार की विभिन्न संस्कृतियों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता
है, कि लगभग सभी समाजों में लिंग के आधार पर स्त्री और पुरूष की
प्रस्थिति एवं उससे सम्बंधित दायित्वों में महत्वपूर्ण अंतर देखने को मिलता है। प्राणिशास्त्र
के अनुसार पुरूष श्रम करने में सक्षम होते है, जबकि स्त्रियां
इतना कठोर कार्य नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त संतान का जन्म देने सम्बंधी अनेक दूसरे
कारणों से भी स्त्री की प्रस्थिति पुरूषों के समान नहीं होती। मानव समाज में विभेदीकरण
के आधार के रूप में लिंग का महत्वपूर्ण स्थान रहा है, और भिन्न-भिन्न कालों में स्त्री-पुरूष को भेद समाज में सदैव
विद्यमान रहा है। वर्तमान समय में भी प्रस्थिति और भूमिका के निर्धारण में लिंग प्रमुख
है।' इसके अलावा यह सामजिक मान्यताओं
एवं आर्थिक स्वरूप से संबंधित समस्याओं को प्रमाणित करने वाला महत्वपूर्ण तत्व हैं। सारणी संख्या-01 प्रतिवादी का लिंग
स्रोत- फिल्ड सर्वे प्रस्तुत सारणी संख्या 01से यह ज्ञात होता है अध्ययन के अंर्तगत सर्वाधिक संख्या पुरूष
उत्तरदाताओं की है, जिनका प्रतिशत 55.8 है, और महिला उत्तरदाताओं की प्रतिशत
44.2 है। इससे पता चलता है कि सर्वेक्षण में महिला उत्तरदाताओं की
तुलना में पुरुष उत्तरदाताओं की संख्या थोड़ी अधिक थी। संचयी प्रतिशत दर्शाता है कि
सभी उत्तरदाता या तो पुरुष या महिला श्रेणी में आते हैं, उपलब्ध कराए गए डेटा में कोई अनिर्दिष्ट या अन्य लिंग पहचान
नहीं है। शिक्षाः- शिक्षा समाज का एक महत्वपूर्ण
तत्व है, जो समाज के विकास में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है। यह न केवल व्यक्ति के विकास का माध्यम होती है, बल्कि समाज के सामाजिक,
आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास में भी
महत्वपूर्ण योगदान देती है। शिक्षा समाज को उसके सही रूप को समझने और उसमें सुधार करने
का माध्यम होती है। शिक्षा से हमें समाज में न्याय,
समानता, और भाईचारे की महत्वपूर्ण मूल्यों
की पहचान होती है। शिक्षा से हमें सामाजिक जागरूकता,
उच्चतम मानकों की प्राप्ति, और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा
मिलती है। इसके माध्यम से हम अपने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का साहस प्राप्त
करते हैं। शिक्षा वह उपकरण है जो हमें नई सोच और अनुभव प्रदान करता है, जिससे हम समाज में बदलाव का नेतृत्व कर सकें। यह समाज में समर्थ, संवेदनशील, और सहयोगी नागरिकों का निर्माण
करने में सहायक होती है। अतः, शिक्षा समाज के दर्पण के रूप
में कार्य करती है, जो हमें समाज के सही और सुधारित
रूप को पहचानने और उसमें योगदान करने के लिए प्रेरित करती है। इसलिए, शिक्षा को समाज का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है, जो समृद्धि और समाजिक समानता की दिशा में मार्गदर्शन करता है। सारणी संख्या 02 उत्तरदाताओं की शिक्षाकी
स्थिति
स्रोत-फिल्ड
सर्वे उपरोक्त सारणी संख्या 02 से स्पष्ट होता है कि 45 प्रतिशत
अशिक्षित है एवं 55प्रतिशत
शिक्षित है, प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाले
की संख्या 5.8% प्रतिशत है। द्वितीयक शिक्षा
प्राप्त करने वालों की संख्या 7.5% है। उच्चतर
माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या 11.7प्रतिशत है। इंटरमीडिएट शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या 11.7प्रतिशत है। स्नातक शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या 15.8प्रतिशत है। स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या 2.5प्रतिशत है। सारणी संख्या 03 आपके परिवार में किस उम्र
में लड़के-लड़कियों की शादी हो जाती है?
उपरोक्त सारणी संख्या 03 से स्पष्ट होता है कि उत्तरदाता मानते हैं कि 14 से 16साल की उम्र में लड़की और लड़का 2.5 प्रतिशत लोग शादी करना पसंद करते हैं। 17 से 19 साल की उम्र में लड़की और लड़का 18.3 प्रतिशत लोग शादी करना पसंद करते हैं। 20 से 22 साल की उम्र में लड़की और लड़का 35.5प्रतिशत लोग शादी करना पसंद करते हैं। 23 वर्ष या उससे अधिक उम्र में लड़की और लड़का 43.3 प्रतिशत लोग शादी करना पसंद करते हैं। यह तालिका आपके परिवार में विवाह की उम्र के वितरण का एक सिंहावलोकन देती है, जिसमें दिखाया गया है कि अधिकांश विवाह 20 से 22 वर्ष की आयु के बीच होते हैं, इसके बाद 23 वर्ष या उससे अधिक उम्र में होते हैं। आवासीय दशा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एक सुविधाजनक आवास व्यवस्था उन सभी आवश्यक सुविधाओं और साधनों
को प्रदान करती है जो व्यक्ति और परिवार के शारीरिक,
मानसिक, और सामाजिक स्वास्थ्य और खुशहाली
के लिए महत्वपूर्ण हैं।13 इस आवास व्यवस्था के महत्वपूर्ण घरेलू सुविधाओं में शामिल हैं: स्वच्छ पानी
की उपलब्धता, अच्छी स्वच्छता और सुरक्षा की
व्यवस्था, सही वेंटिलेशन और प्राकृतिक
रोशनी, सही सामग्री और संरचना के साथ
बनाया गया आवास। इसके साथ ही, सामाजिक सुरक्षा और सहायता के
साधनों का उपयोग करने की सुविधा भी होनी चाहिए। एक सुविधाजनक आवास व्यवस्था में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं,
और खाद्य सुरक्षा की सुविधा भी होनी चाहिए। इसके अलावा, व्यक्ति और परिवार के लिए आत्म-स्वार्थ और सामाजिक सहयोग के
साधन प्रदान करने का प्रयास किया जाना चाहिए। इस प्रकार, एक सुविधाजनक आवास व्यवस्था न केवल व्यक्ति और परिवार की स्वास्थ्य
और खुशहाली को बढ़ाने में मदद करती है,
बल्कि एक समृद्ध समाज की नींव भी रखती है। सारणी संख्या-04 उत्तरदाता की आवासीय दशा
स्रोत- फिल्ड
सर्वे उपरोक्त सारणी संख्या-04से स्पष्ट
होता है कि 8.3प्रतिशत उत्तरदाता के पास झोपड़ी है। 12.5 प्रतिशत उत्तरदाता के पास कच्चा मकान है। 55.8प्रतिशत
उत्तरदाता के पास पक्का मकान है। 23.3प्रतिशत के पास
मिश्रित मकान है। सारणी संख्या-05 क्या आपके घर में बाइक का
उपयोग होता है?
स्रोत- फिल्ड
सर्वे
उपरोक्त सारणी संख्या-05 से
स्पष्ट होता है कि 42 प्रतिशत उत्तरदाता
मोटरसाइकिल का उपयोग करते है एवं 57 प्रतिशत
उत्तरदाता के पास मोटरसाइकिल का उपयोग नहीं करते है। |
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निष्कर्ष |
अध्ययन से प्राप्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि थारू जनजाति
में एकांकी परिवार की संख्या में वृद्धि हो रही है,
परन्तु संयुक्त परिवार की संख्या सर्वाधिक है। इनमें आज भी घर का मुख्य फैसला घर
के मुखिया ही लेता है, अब मातृसत्तात्मक जैसे लक्षण
नहीं देखने को मिलता, क्योंकि ज्यादा
से ज्यादा घर का मुखिया पुरूष ही थे। थारू जनजाति के लोगों में वैवाहिक दृष्टिकोण में
भी परिवर्तन देखने को मिला। विधवा विवाह का भी प्रचलन है, बाल विवाह भी बहुत कम देखने को मिला। अब थारू जनजाति के लोग
21 वर्ष से ऊपर की उम्र में शादी करना पसंद कर रहे है। इस समाज
में अब दहेज प्रथा का भी प्रचलन देखने को मिलता है। अध्ययन से स्पष्ट है कि थारू जनजाति की शैक्षणिक की स्थिति में सुधार हुआ है जिसके कारण जीवन स्तर में सुधार हुए हैं सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्र में कार्य में सहभागिता कर रहे हैंआर्थिक स्थिति में भी सुधार हो रही है। लोग अपनी मूलभूत आवश्यकता को पुरा कर पा रहे है। वे अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि कार्य, पशुपालन, व्यापार, मजदूरी एवं सरकारी और अर्द्ध सरकारी कार्यों में लगे हुए है। थारू जनजाति अपने आस-पास के उच्च जातियों के अनुरूप् ही, वे खान-पान, पोषक, रहन-सहन के ढ़ंगों में परिवर्तित कर रहे है। धार्मिक क्षेत्र में उच्च सवर्ण जातियों क देवी-देवताओं, व्रत व संस्कारों को अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। वर्तमान स्थिति यह है कि ये जनजाति जन स्वयं अपने जाति पंचायतों में अपने जाति के अन्दर व्याप्त बुराईयों तथा-मद्यमान, बहुपत्नी विवाह, बालविवाह आदि का विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं ये सरकारी उपक्रमों का बढ़-चढ़ कर लाभ ले रहे हैं। ये मनोरंजन के नये साधनों का इस्तेमाल तथा संचार एवं यातायात के साधनों का उपयोग कर रहे हैं। जनजातीय घरों में भी आधुनिकता एवं विलासिता की वस्तुएँ आसानी से देखी जा सकती है। जिससे हम आसानी से कह सकते है कि जनजातियों का रूपान्तरण मुख्यधारा की ओर हो रहे हैं। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. प्रसाद, शारदा(2022), वनांचल ज्योति स्मारिका स्वर्ण
जयंती, वर्ष, पृष्ठ संख्या 01. 2. प्रधान, हरिदेव(1937), ’सोशल इकॉनोमी इन द तराई थारूस,’ जर्नल ऑफ द युनाइटेड प्रोविंसेज हिस्टोरिकल सोसाइटी, वॉल्यूम-10, 59-76। 3. एसी टर्नर, भारत के संयुक्त प्रांत की जनगणना रिपोर्ट, खंड। ग्टप्प्प्, 1931, पृ.599। 4. एन. कुमार, ’उत्तर प्रदेश में नैनीताल जिले के राणा थारसए के बीच एक आनुवंशिक
सर्वेक्षण,’ इंडियन एंथ्रोपोलॉजिकल सोसाइटी
के जर्नल में, वॉल्यूम। 3, संख्या 1.2 (1968)ः39.55। 5. डी.एन. मजूमदार, ’द थारस एंड देयर ब्लड ग्रुप,’ इन जर्नल
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