ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- XII March  - 2024
Anthology The Research

"उच्च शिक्षा में मानवीय मूल्यों का संकट" एक अवलोकन

Paper Id :  18568   Submission Date :  2024-03-12   Acceptance Date :  2024-03-23   Publication Date :  2024-03-25
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DOI:10.5281/zenodo.12544406
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अशोक कुमार शुक्ला
असिस्टेन्ट प्रोफेसर
बी०एड०
श्रीकृष्ण जनका देवी महाविद्यालय
रूरा, कानपुर देहात, ,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

सारांश में हम यह कह सकते है कि मानवीय मूल्य, नैतिकता और चरित्र इन तीनों का सम्बन्ध मनुष्य के व्यवहार से होता है। समाज में मानव द्वारा ऐसा व्यवहार जो प्रत्येक मानव के लिए हितकारी ही मानवीय मूल्य कहलाता है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In summary, we can say that human values, morality and character, all three are related to human behavior. Such behavior by humans in society which is beneficial for every human being is called human values.
मुख्य शब्द उच्च शिक्षा, संकट, अवलोकन, नैतिकता, चरित्र, समाज।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Higher Education, Crisis, Observation, Morality, Character, Society.
प्रस्तावना

'उच्च शिक्षा में मानवीय मूल्यों का संकट" पर विचार करने के पहले हमें उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति एवं मानवीय मूल्यों को समझना अति आवश्यक है। वर्तमान भारत में दिखाई देने वाली उच्च शिक्षा की व्यवस्था की देन अंग्रेजों की है और इसका हमारे देश की प्राचीन परम्परा से कोई सम्बन्ध नहीं है। फिर भी हमारे देश की उच्च शिक्षा की पद्धति विश्व की सबसे बड़ी पद्धतियों में से एक है। तथापि इसके क्षेत्र में विस्तार और विकास एक समान नहीं रहे हैं। विश्व विद्यालयों द्वारा प्रदान किये गये पाठ्यक्रम अक्सर परम्परागत हैं और उनमें से बहुत कम नौकरी तथा वातावरण से सम्बन्धित है।

भारत में प्रशासन की दृष्टि से दो प्रकार के विश्व विद्यालय है।

1. केन्द्रीय विश्व विद्यालय

2. राज्य विश्व विद्यालय

मानव जाति में जिन आदर्शों को महत्व दिया जाता है और जिनसे मानव जाति के व्यवहार निर्देशित एवं नियंत्रित होते हैं, इन्हें ही मानवीय मूल्यों की संज्ञा दी जाती है। धर्म शास्त्र में नैतिक नियमों को मानवीय मूल्य माना जाता है। प्रत्येक धर्म के कुछ नैतिक नियम होते है और उस धर्म के मानने वालों को उनका पालन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में करना होता है। दर्शनशास्त्र में मनुष्य के जीवन के प्रति दृष्टि कोण को मानवीय मूल्यों की संज्ञा दी जाती है।

मानवशास्त्री मानवीय मूल्यों को सांस्कृतिक लक्षणों के रूप में स्वीकार करते हैं। उनकी दृष्टि से संस्कृति और मूल्य अभिन्न होते है, कोई संस्कृति अपने मूल्यों से ही पहचानी जाती है। उदाहरण के लिए हिन्दू संस्कृति को लीजिए। यह चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष तथा पांच महाव्रतो सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रहृमचर्य की संस्कृति है। अतः ये ही हिन्दू समाज में मानवीय मूल्य है।

अध्ययन का उद्देश्य

1. उच्च शिक्षा में मानवीय मूल्यों में गिरावट का अध्ययन करना|

2. मानव स्वरूप का अध्ययन करना|

साहित्यावलोकन

1. शिक्षा में मानवीय मूल्यों की आवश्यकता| - राजेंद्र सिंह ठाकुर

2. भारतीय समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास|  - डॉ  भूपेंद्रगौर एवं अभिषेक यादव

3. शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों में अध्यनरत विद्यार्थियों के मूल्यों का सामाजिक आर्थिक स्तर के परिपेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन| - डॉ राजेश बाबू

मुख्य पाठ

उच्च शिक्षा और मानवीय मूल्य -

1. मानवीय मूल्य प्रधान पर्यावरण का अभाव उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने से पहले बच्चे अपने परिवार और समुदाय के बीच रहते हैं, एवं माध्यमिक स्तर पर उनके मानवीय मूल्य विकसित होते है। परिवार / समुदाय के सांस्कृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण से अनेक अंध विश्वासों, आदर्शों, सिद्धान्तो और व्यवहार मापदण्डो को ग्रहण करते है।

उच्च शिक्षा संस्थानों का कार्य पूर्व में ग्रहण किये गये विश्वासों, आदर्शों, सिद्धान्तों और व्यवहार प्रतिमानों में काट छांटकर उन्हें सही दिशा प्रदान करना होता है। किन्तु वर्तमान में उच्च शिक्षा संस्थान इस प्रकार का वातावरण प्रदान करने में अक्षम से होते जा रहे हैं। इसमें सरकार और प्रबन्धतंत्र मुख्य रूप से दोषी है। क्योंकि सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए व्यवस्था को उचित ढंग से संचालित नहीं कर रहा है तथा प्रबन्ध तंत्र अपने आर्थिक लाभ के लिए सारी नैतिकता भूल गया है। जिसके परिणाम स्वरूप उच्च शिक्षा संस्थान शिक्षा के केन्द्र होकर आय के स्रोत बन गये है। इस प्रकार के वातावरण में मानवीय मूल्यों को परिवर्धित, शोधित करना तो दूर उन्हें बनाये रखने पर भी संकट के बादल मंडरा रहे है।

2. मानवीय मूल्य प्रधान पाठ्यक्रम का अभाव - यूँ तो सभी विषयों के शिक्षण के साथ छात्रों में उचित मूल्यों का विकास किया जा सकता है, परन्तु इनमें भाषा और इतिहास दो विषय ऐसे है जिनके माध्यम से बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास आसानी से किया जा सकता है। किन्तु वर्तमान शिक्षा प्रणाली का पाठ्यक्रम इस प्रकार का है, कि वह हमारी सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ नहीं है। विश्व विद्यालयी शिक्षा प्राप्त कर छात्र बेरोजगार एवं कुण्ठित हो रहे है। हुमायूँ कबीर के अनुसार "बहुत बार यह कहा गया है कि विश्व विद्यालय में जो शिक्षा दी जाती है, वह व्यक्ति को व्यवहारिक जीवन के लिए तैयार नहीं करती है।"

वर्तमान उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम व्यवस्था इस प्रकार की है कि कोई भी छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की प्राप्ति आसानी से कर सके एवं अधिक से अधिक धन का अर्जन कर सके उनके लिए मानवीय मूल्यों का कोई अर्थ नहीं प्रतीत होता है।

3. मानवीय मूल्य प्रमाण प्रधान सहगामी क्रियाओं का अभाव छात्रों के जीवन में जितना महत्व पाठ्यचारी क्रियाओं का है उतना ही महत्व सहपाठ्यचारी क्रियाओं का भी है। मानवीयों मूल्यों की शिक्षा की दृष्टि से सहपाठ्यचारी क्रियाओं में प्रातः कालीन सभा और साहित्यक एवं सांस्कृतिक क्रियाओं का विशेष महत्व होता है। हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों से प्रातः कालीन सभा का इस प्रकार लोप हो गया है जैसे कि एक राजनेता से ईमानदारी। ईश प्रार्थना छात्रों को स‌द्मार्ग पर ले जाती है। प्रातः कालीन सभा में विभिन्न प्रेरक प्रसगों से हम छात्रों में सद्व्यवहार का प्रादुर्भाव करते है किन्तु इसके दिनचर्या का अंग न होने के कारण मानवीय मूल्यों पर संकट आना स्वाभाविक है।

आज शिक्षा संस्थानों में किसी महापुरुष के जन्मोत्सव के दिन को अवकाश का दिन मान लिया जाता है और शिक्षक तथा शिक्षार्थी उस महापुरुष के बारे में किसी भी प्रकार की चर्चा परिचर्चा से दूर रहते है। इसी प्रकार राष्ट्रीय उत्सवों पर भी संस्थाओं में मात्र खाना पूर्ति के लिए झण्डा रोहण जयघोष एवं कुछ सामान्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा अपने कर्तव्य की इति कर लेते है। किन्तु राष्ट्र हित के लिए चिंतन नहीं करते है। इसी प्रकार खेल-कूद, एन०सी०सी० एन०एस०एस० आदि सहपाठ्यगामी भी क्रियाएं उच्च शिक्षा संस्थान में नाममात्र के लिए रह गये है।

निष्कर्ष

आज हम 21वीं सदी में प्रवेश कर गये हैं। अतः हमारे देश का वर्तमान पाश्चात्य संस्कृति के आगोश में विलीन होने को बेताब है। समय रहते यदि हमारी उच्च शिक्ष में घटते मानवीय मूल्यों की ओर ध्यान नहीं दिया गया है तो आने वाली स्थिति अत्यन्त भयावह होगी। आज हमारी संस्कृति के संरक्षण की मुख्य भूमिका उच्च शिक्षा के ऊपर है। अतः हमारे शुभ चिंतकों को अपने गौरवशाली अतीत को ध्यान में रखकर इस अर्थ प्रधान युग में मानवीय मूल्यों का संरक्षण करना चाहिए।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. सिंह डॉ गीता, वर्तमान परिदृश्य में उच्च शिक्षा में मानवीय मूल्यों की आवश्यकता | vol-07| issue-03| march-2020

2. उपाध्याय, डी. एस.(2007). मीमांसा  दर्शनम सत्यधर्म प्रकाशन, नई दिल्ली

3. पाठक आर .पी. और पांडे अमिता भारद्वाज(2013) वेदांत शिक्षा दर्शन, कनिष्क प्रकाशक, आईएसबीएन: 9788184575446

4.   राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986

5.  भारतीय शिक्षा आयोग तथा विश्वविद्यालय आयोग  रिपोर्ट

6. स्वामी दयानंद के विचार तथा साहित्यिक दस्तावेज|

7.https://ijariie.com/AdminUploadPdf/Role_of_Education_in_conversation_and_enchantment_of_Human_values___

A_study_ijariie13948.pdf