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ग्रामीण विकास में महिलाओं की
राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण (सीधी जिले के विशेष सन्दर्भ
में) |
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Analysis of Political Status of Women in Rural Development (With Special Reference to Sidhi District) | |||||||
Paper Id :
18859 Submission Date :
2024-03-11 Acceptance Date :
2024-03-23 Publication Date :
2024-03-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.11300220 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
भारतीय संविधान की
उद्देशिका, मूल अधिकार, मूल कर्तव्य तथा नीति निर्देशक सिद्धांतो में स्त्री-पुरुष समानता के
सिद्धांत का उल्लेख किया गया है। भारतीय संविधान न केवल स्त्री-पुरुष समानता को
सुनिश्चित करता है वरन राज्यों को महिलाओं के पक्ष में उचित नीति निर्माण करने का
भी निर्देश देता है । राजनीतिक प्रक्रिया में स्त्री-पुरुष समानता का आशय यह है कि
राजनीति और राजनीतिक कार्य व्यवहार से जुड़े प्रत्येक क्षेत्र में स्त्रियों को
पुरुषों के समान भागीदारी प्राप्त होनी चाहिए। महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के न
केवल मताधिकार वरन निर्वाचित होने का भी अधिकार होना चाहिए, प्रतिनिधि संस्थाओ और शासन प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र में निर्णय
लेने वाली सभी संरचनाओं में भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर की भागीदारी प्राप्त
होनी चाहिए। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The principle of gender equality has been mentioned in the Preamble, Fundamental Rights, Fundamental Duties and Directive Principles of the Indian Constitution. The Constitution not only ensures equality of women but also directs the States to make positive discrimination in favor of women. Within the framework of democratic politics, our laws, development policies, plans and programs have been oriented towards the upliftment of women in various fields. Issues ranging from women's welfare to development are being raised since the Fifth Five Year Plan (1974-78). In recent years, women's empowerment has been considered a central issue of the status of women. The National Commission for Women was established by an Act of Parliament in the year 1990, under which women's rights and legal rights are protected. In the 73rd and 74th Amendment of the Constitution (1993), a provision has been made to provide reservation to women in Panchayat and Municipal body elections, which paves the way for their participation at local levels. | ||||||
मुख्य शब्द | ग्रामीण विकास, पंचायतीराज, महिला नेतृत्व, अधिनियम, ग्रामीण महिलायें आदि। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Rural Development, Panchayati Raj, Women Leadership, Act, Rural Women etc. | ||||||
प्रस्तावना | सृष्टि की उत्पत्ति एवं सभ्यता के विकास में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। पुराणों के अनुसार चाहे धर्म की रक्षा हो या उसकी पुनर्स्थापना इन सभी कार्यो को आदि शक्ति मॉ जगदम्बा ने ही पूर्ण किया है। सीता, सावित्री के धर्म पालन को आज भी आदर्श के रूप में समाज में माना जाता है। रानी लक्ष्मीबाई, मदरटेरेसा के वीरता बलिदान तथा सेवा की मिशालें आज भी हमारे जीवन को एक दिशा प्रदान करती है।[1] वर्तमान परिप्रेक्ष में अपेक्षा की जाती है कि भारत वर्ष 2030 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश (IMF) के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिका की 1.6 प्रतिशत की तुलना में 6.8 प्रतिशत की दर से विकास करेगी।[2] लेकिन भारत के इस आशाजनक आर्थिक विकास के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज में महिलाओं की भागीदारी अभी भी अनुरूप गति नहीं पा सकी है। हाल के समय में भारतीय चुनावों में एक आश्चर्यजनक व्यतिरेक दिखाई पड़ा है। देश में महिला मतदाताओं द्वारा मतदान में वृद्धि हुई है जहाँ वर्ष 2022 में संपन्न हुए चुनावों में आठ में से सात राज्यों में महिला मतदान में उछाल देखा गया। यह स्थिति आशाजनक प्रतीत होती है, लेकिन स्थानीय चुनावों, राज्य चुनावों और लोकसभा चुनावों में महिला मतदाताओं का यह बढ़ता अनुपात स्वयं महिलाओं द्वारा वृहत रूप से चुनाव लड़ने के रूप में परिलक्षित नहीं हुआ है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. सीधी जिले की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक एवं अधोसंरचनात्मक स्थिति का अध्ययन करना। 2. राजनीतिक गतिविधियों में सम्मिलित महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्थितियों का अध्ययन करना। 3. राजनैतिक सशक्तिकरण के उपादान के रूप में पंचायतीराज व्यवस्था एवं ग्रामीण विकास में उनकी सहभागिता कि स्वरूप, सहभागिता के स्तर की वास्तविक स्थिति का विश्लेषणात्मक विवेचना करना। 4. शोध क्षेत्र की महिलाओं के राजनैतिक जीवन पर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के प्रभावों का अध्ययन करना। 5. राजनैतिक प्रक्रिया के माध्यम से ग्रामीण विकास को प्रभावित करने वाली समस्याओं का अनुमान लगाना एवं नीतिगत सुझाव प्रस्तुत करना। 6. राजनीतिक दलों में महिला प्रतिनिधियों के कार्यक्षेत्र में ग्रामीण विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की स्थिति का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | इस परिदृश्य में, राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की राह में मौजूद बाधाओं को दूर करना समय की मांग है। लैंगिक समता प्राप्त करने के लिये और यह सुनिश्चित करने के लिये कि महिलाओं को राजनीति में भाग लेने का समान अवसर मिले, नीति निर्माताओं, नागरिक समाज संगठनों और आम जनता को मिलकर कार्य करना होगा। भारत को गाँवों का देश माना जाता है। अतः भारत के विकास हेतु आवश्यक है कि गाँवों का भी विकास हो। ग्रामीण विकास की परिधि में ग्रामों में शिक्षा, संस्कृति, कला-कौशल, चिकित्सा, सामुदायिक विकास, कृषि, सामाजिक सुधार, पशु-पालन, उद्योग-धंधे, रोजगार का विस्तार, पेयजल, विद्युत की सुविधा संचार व्यवस्था का विस्तार आदि चीजे आती हैं। महिला जनप्रतिनिधि का अर्थ है समस्त वर्गों एवं स्तरों से प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी गई या नामांकित महिला जो ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा आदि में पंच, सरपंच, पार्षद या जिला पंचायत प्रतिनिधि, विधायक, सांसद आदि कार्य करने हेतु अधिकृत है।[3] महिला जनप्रतिनिधि द्वारा ही ग्रामीण विकास की बात करने के पीछे यह तर्क है कि भारत में महिलाओं की संख्या भी काफी है, अतः इतनी बड़ी जनशक्ति के लिये उन्हें जनप्रतिनिधि बनाना आवश्यक है। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से उनकी झिझक और घबराहट दूर होगी तथा उनमें आत्मनिर्भरता का विकास होगा, साथ ही आत्मबल में वृद्धि होगी। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण सरल होगा एवं टकराव तथा अहम तुष्टि की भावना विकसित नहीं होगी। इससे विकास कार्यों में बाधा नहीं आएगी एवं ग्रामीण विकास तेजी से हो सकेगा। यह सत्य है कि अभी भी महिलाएँ सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी हुई है। अतः उनकी उन्नति हेतु उन्हें आगे लाकर उन पर जिम्मेदारी डालना आवश्यक है। इस पहलू से विकास के तर्क पर प्रकाश डाले तो हम पाते हैं कि महिलाएँ स्वयं कई दृष्टियों से पिछड़ी एवं लज्जाशील होती हैं, अतः विकास संबंधी जागरूकता को लेकर लोग उन्हें संशय की दृष्टि से देखते हैं। ग्रामीण विकास के लिये विकास कार्यों की योजना बनाना, कार्यस्थल का दौरा करना, भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों से निपटना तथा विकास कार्यों की तकनीकी जानकारी रखना आदि महिलाओं हेतु उचित एवं योग्य कार्य नहीं माने जाते। राजनीति एवं विकास संबंधी कार्यों की जिम्मेदारी लेने से उनकी स्वयं की जिम्मेदारियाँ जैसे- बच्चे का पालन एवं पारिवारिक दायित्व संभालने आदि में बाधा आएगी।[4] |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत अध्ययन मध्यप्रदेश के सीधी जिले पर आधारित है। उक्त जिले का चयन सविचार निदर्शन विधि के आधार पर चयन किया गया है। ‘‘ग्रामीण विकास में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति का विश्लेषणात्मक अध्ययन’’(सीधी जिले के विशेष सन्दर्भ में) का अध्ययन प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों पर आधारित है। द्वितीयक समंकः- द्वितीयक समंकों का संकलन, पुस्तकों, पत्र-पत्रिका, वार्षिक रिपोर्ट, जनगणना, रिपोर्ट, जिला सांख्यिकी विभाग, तहसील कार्यालय, विकासखण्ड, कार्यालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय रिपोर्ट, निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट, इंटरनेट से प्राप्त सामग्री एवं संबंधित विषय में विगत वर्षों से प्रकाशित लेखों इत्यादि से समंकों का संकलन किया गया है। अध्ययन क्षेत्र परिचय:- सीधी जिला 4851 वर्ग किमी क्षेत्रफल के अन्तर्गत 7 तहसीलें हैं:- गोपदबनास, सिहावल, रामपुर नैकिन, मझौली, कुसमी, चुरहट, बहरी। जिले में 4 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं - चुरहट, सीधी, सिहावल और धौहानी। ये सारे विधानसभा क्षेत्र, लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र सीधी के अंतर्गत आते हैं। जिले में 1092 ग्राम एवं 411 ग्राम पंचायत, चुरहट एवं मझौली नगर परिषद है रामपुर नैकिन नगर पंचायत है। प्राथमिक समंकः- प्राथमिक समंकों का संकलन सीधी जिले में 1092 ग्राम एवं 411 ग्राम पंचायत, 5 विकासखण्ड के अन्तर्गत विधानसभा पद, 1 ससंद सदस्य, 2 नगर परिषदों एवं नगर पालिका क्षेत्रों में कार्यरत विभिन्न राजनीतिक दलों की महिला कार्यकर्ताओं एवं जनप्रतिनिधियों में दैव निदर्शन विधि द्वारा कुल 300 महिलाओं नेत्रियों का चयन किया जायेगा। दैव निदर्शन विधि से चयनित महिला जनप्रतिनिधि उत्तरदाताओं से राजनीति में भूमिका एवं ग्रामीण विकास के अध्ययन के लिए साक्षात्कार अनुसूची के आधार पर ग्रामीण विकास में महिलाओं की भूमिका सम्बन्धित समंक संकलित किये जायेगें। |
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अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी |
शोध विधि की उपरोक्त विधियों से समंकों का विश्लेषण
कर इनमें निम्न सांख्यिकी तकनीकी के प्रयोग द्वारा औसत (Average), सहसंबंध गुणांक (Correlation Coefficient), काई वर्ग परीक्षण (Chi-Square X2), की सहायता से समंकों की जांच कर निष्कर्ष प्रस्तुत किये जायेगें। |
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विश्लेषण | देश में महिलाओं की बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद अगर उनकी भागीदारी देश के विकास में न हुई तो इस जनसंख्या को उचित अवसर नहीं प्राप्त होगा। इस विशाल जनशक्ति की भागीदारी के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये ग्रामीण विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण मानी गई है। महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्रों में मौलिक विकास के नए-नए आयाम खुल रहे हैं। चूंकि महिला जनप्रतिनिधि होने के नाते वे महिलाओं की कठिनाइयों को भली-भाँति समझेगी, अतः विकास करना आसान होगा। उदाहरणस्वरूप पेयजल स्रोतों का विकास, पनघट के मार्गों का विकास, प्रसूति सुविधाएँ, महिला शिक्षा, बाल विकास, मनोरंजन आदि कार्यों में विशेष रुचि लेते हुए इन क्षेत्रों का संपूर्ण विकास होगा। इन विकास कार्यों की आज ग्रामीण क्षेत्रों में नितांत आवश्यकता है। महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक वातावरण की भी उन्नति होती है। इसके अतिरिक्त महिलाओं के मनोबल में वृद्धि, महिला शिक्षा, महिला स्वास्थ्य, महिला प्रतिष्ठा आदि में भी वृद्धि होगी। महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से महिलाओं में व्याप्त पर्दा प्रथा, झिझक एवं घबराहट दूर होती है तथा सही निर्णय करने की क्षमता का विकास होता है। पुरुष प्रतिनिधि अक्सर निजी शत्रुता, ईष्या एवं प्रतिष्ठा को प्रश्न बनाकर एक-दूसरे को नीचा दिखाते रहते हैं, इससे उनकी सकारात्मकता शून्य ही जाती है। किंतु महिलाओं के जनप्रतिनिधि होने पर वैसी राजनीतिक उठापटक नहीं होती। महिलाएँ प्रायः भ्रष्टाचार से दूर रहती है, फलतः विकास कार्यों का पूरा पैसा विकास कार्यों में लगने से विकास में वृद्धि होती है। हालाँकि महिला जनप्रतिनिधियों की यह कह कर भी आलोचना की जाती है कि महिला जनप्रतिनिधि के कारण पंच एवं सरपंच महिलाएँ अपने घर के पुरुष सदस्यों पर निर्भर हो जाती है और गाँव सामाजिक रूप से विकसित नहीं हो पाते। लेकिन वह भी सत्य है कि ग्रामीण विकास में महिला जनप्रतिनिधियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सारी आलोचनाओं के बावजूद महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। महिलाओं के प्रतिनिधित्व से विकास कार्यों में बढ़ोतरी हो रही है। वस्तुतः महिला जनप्रतिनिधि सभी अधिकार और सभी विकास कार्यक्रम तभी लागू कर सकती है जब वह इन तत्त्वों से भली-भाँति परिचित होती है। किसी भी त्रुटि, कमी या आलोचना की परवाह किये बिना महिला जनप्रतिनिधित्व द्वारा विकास की प्रक्रिया जारी रखनी चाहिये तभी सही अर्थों में ग्रामीण विकास सुनिश्चित हो पाएगा। भारत के इतिहास में आधुनिक काल राजनीति में महिलाओं की भागीदारी से अधिक महत्वपूर्ण है। रानी लक्ष्मीबाई, मैडम बीकाजी कामा, कस्तूरबा, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी आदि ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वाधीनता की राजनीति में नंदिनी सत्पथी, मोहसिना किदवई, गिरिजा व्यास, सुषमा स्वराज, मायावती, वसुंधरा राजे, शीला दीक्षित, ममता बनर्जी, रेणुका चौधरी, सोनिया गांधी आदि ने सक्रियता दिखाई। इंदिरा गांधी ने 16 वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया। स्वतंत्रता के तुरंत बाद गठित देश के संविधान में, महिलाओं को न केवल पुरुषों के रूप में वोट देने के लिए समान अधिकार दिए गए हैं, बल्कि पंचायत से संसद तक जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनाव भी लड़ना है। राजनीति और नौकरशाही के क्षेत्र में महिलाओं की वर्तमान स्थिति - राजनीति में:- 1. अंतर-संसदीय संघ (Inter & Parliamentary Union & IPU) द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, भारत में 17वीं लोकसभा में कुल सदस्यता में महिलाएँ मात्र 14.44 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करती हैं। 2. भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की नवीनतम उपलब्ध रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएँ संसद के सभी सदस्यों के मात्र 10.5 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करती हैं (अक्टूबर 2021 तक की स्थिति के अनुसार)। 3. राज्य विधानसभाओं के मामले में महिला विधायकों (MLAs) का प्रतिनिधित्व औसतन 9 प्रतिशत है। 4. इस संबंध में भारत की रैंकिंग में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है। यह वर्तमान में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है। नौकरशाही में:- 5. केंद्र और राज्य स्तर पर विभिन्न लोक सेवा नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी इतनी कम है कि महिला उम्मीदवारों के लिये निःशुल्क आवेदन की सुविधा प्रदान की गई है। 6. इसके बावजूद, भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के आँकड़ों और वर्ष 2011 की केंद्र सरकार की रोजगार जनगणना के अनुसार, इसके कुल कर्मियों में 11 प्रतिशत से भी कम महिलाएँ थीं, जिनकी संख्या वर्ष 2020 में 13 प्रतिशत तक दर्ज की गई। 7. इसके अलावा, वर्ष 2022 में IAS में सचिव स्तर पर केवल 14 प्रतिशत महिलाएँ कार्यरत थीं। 8. सभी भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की साथ गणना करें तो भी केवल तीन महिलाएँ मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत हैं। 9. भारत में कभी कोई महिला कैबिनेट सचिव नहीं बनी। गृह, वित्त, रक्षा और कार्मिक मंत्रालय में भी कभी कोई महिला सचिव नहीं रही हैं। अन्य क्षेत्र:- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) के स्वामियों में केवल 20.37 प्रतिशत महिलाएँ हैं, मात्र 10 प्रतिशत स्टार्ट-अप महिलाओं द्वारा स्थापित किये गए हैं और श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 23.3 प्रतिशत है। शोध-पत्र के आधारभूत तथ्य:- भारत एक गहन पितृसत्तात्मक समाज है और महिलाओं को प्रायः पुरुषों से हीन माना जाता है। यह मानसिकता समाज में गहराई तक समाई हुई है और महिलाओं की राजनीति में नेतृत्व एवं भागीदारी की क्षमता के संबंध में लोगों की सोच को प्रभावित करती है। भारत में महिलाओं से प्रायः पारंपरिक लिंग भूमिकाओं के अनुरूप व्यवहार की उम्मीद की जाती है और उन्हें राजनीति में करियर बनाने से हतोत्साहित किया जाता है। सामाजिक मानदंड और रूढ़िवादिता यह निर्धारित करती है कि महिलाओं को पत्नियों एवं माताओं के रूप में अपनी भूमिकाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये, जबकि राजनीति को प्रायः पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है। भारत में महिलाओं की ऐतिहासिक रूप से शिक्षा तक सीमित पहुँच रही है, जिसने राजनीति में भागीदारी की उनकी क्षमता को बाधित किया है। यद्यपि हाल के वर्षों में परिदृश्य में कुछ सुधार आया है, फिर भी बहुत-सी महिलाओं में अभी भी राजनीतिक पद पर कार्य कर सकने हेतु आवश्यक शिक्षा एवं कौशल की कमी है। शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report& ASER) 2020 के अनुसार, 6-10 वर्ष आयु के बीच के 5.5 प्रतिशत बच्चे और 11-14 वर्ष आयु के बीच के 15.9 प्रतिशत बच्चे स्कूल में नामांकित नहीं थे। महिलाओं को राजनीतिक दलों में प्रायः कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है, जिससे उनके लिये अपने दलों में विभिन्न पदों से गुजरते हुए आगे बढ़ना और चुनाव के लिये दल का नामांकन प्राप्त करना कठिन हो जाता है। प्रतिनिधित्व की इस कमी को राजनीतिक दलों के भीतर मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रह और इस धारणा का परिणाम माना जा सकता कि महिलाएँ पुरुषों की तरह चुनाव जीतने योग्य नहीं होतीं। राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं को प्रायः हिंसा और उत्पीड़न (भौतिक एवं ऑनलाइन दोनों रूप में) का शिकार होना पड़ता है, जो फिर महिलाओं को राजनीति में प्रवेश या विभिन्न मुद्दों पर मुखर होने से हतोत्साहित कर सकता है। राजनीति में सुरक्षित एवं समावेशी अवसर की कमी महिलाओं की भागीदारी के मार्ग में एक प्रमुख बाधा है। राजनीति में महिलाओं को प्रायः कम वेतन, संसाधनों तक कम पहुँच और सीमित नेटवर्किंग जैसे असमान अवसरों की स्थिति का सामना करना पड़ता है। यह असमानता महिलाओं के लिये पुरुष उम्मीदवारों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना और राजनीति में सफल होना चुनौतीपूर्ण बना सकती है। महिला सशक्तिकरण के लिये संरचनात्मक बाधाएँ आम तौर पर वे प्राथमिक समस्याएँ हैं जो उनके लिये सेवाओं का अंग बनना कठिन बनाती हैं। दूरस्थ संवर्गों में पदस्थापना, पितृसत्तात्मक व्यवस्था और नौकरी विशेष की आवश्यकताओं एवं मांगों के साथ पारिवारिक प्रतिबद्धताओं के संतुलन जैसी सेवा शर्तें ऐसे कुछ सामाजिक कारक हैं जो महिलाओं को सिविल सेवाओं से बाहर रखने में योगदान करते हैं। |
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परिणाम |
1. सीधी जिले की राजनीतिक गतिविधियों पर भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक एवं अधोसंरचनात्मक स्थिति के प्रभाव की जानकारी प्राप्त हो सकेगी। 2. महिलाओं की राजनीतिक गतिविधियों पर सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्थितियों के प्रभाव की जानकारी प्राप्त हो सकेगी। 3. ग्रामीण विकास योजनाओं को प्रभावित करने वाली समस्याओं का अनुमान लगाना एवं नीतिगत सुझाव नीति निर्माण में सहायक हो सकते है। 4. महिलाओं की राजनीति में भागीदारी में वृद्धि करने में सहायक कारकों (शिक्षा, सामाजिक सुधार, शासकीय नीतियों) के प्रभाव एवं सम्बन्धों की जांच से प्राप्त निष्कर्ष नीतिगत निर्णय लेने में सहायक सिद्ध होंगे। |
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निष्कर्ष |
महिलाओं को राजनैतिक रुप से सशक्त बनाने से ग्रामीण समाजों को होने वाले इन स्पष्ट लाभों के बावजूद, उन्हें जीवन के कई क्षेत्रों में लगातार भेदभाव का सामना करना पड़ता है। शिक्षा और स्वच्छता तक पहुच लैंगिक रुप से असंतुलित बनी हुई है। सामुदायिक भागीदारी अक्सर घर के पुरुष प्रमुखों की मंजूरी के अधीन रहती है और लैंगिक भूमिकाओं पर प्रतिगामी विचार महिलाओं को उनकी राजनीतिक क्षमता का एहसास करने से रोकते हैं। इसे महसूस करते हुये, विभिन्न सरकारें महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान लेकर आई है। हालांकि ये सही दिशा में उठाए गये कदम हैं, भारत को इस क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय बढ़ाने और वास्तविक समान अवसर के आगमन में तेजी लाने की जरुरत है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. खान, एस. इल्तिजा, (1969)‘‘गवर्नमेन्ट इन रूरल इण्डिया’’, एशिया पब्लिकेशन्स हाऊस, बम्बई। 2. गाँधी, एम. के., (1962): ‘‘ग्राम स्वराज्य’’, नवजीवन पब्लिशिंग हाऊस, अहमदाबाद। 3. असलम, एम., (2007): पंचायती राज इन इण्डिया, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली। 4. सलेतोरे, बी. ए., (1963): एनसीएन्ट इण्डियन पोलिटिकल थोट एण्ड इन्स्टीट्यूशन्स, एशिया पब्लिकेशन्स हाऊस, बम्बई। 5. सुरोलिया, शंकर, (1975): भारत में ग्रामीण शासन, कॉलेज बुक डिपो, जयपुर। 6. जोशी, डॉ. आर. पी. एवं मंगलानी, रूपा, (1975): ‘‘पंचायती राज के नवीन आयाम’’, यूनिवर्सिटी बुक हाऊस, जयपुर। 7. शर्मा, डॉ. हरिश चन्द्र, (1975): ‘‘भारत में स्थानीय शासन का इतिहास’’, कॉलेज बुक डिपो, जयपुर। 8. पूरणमल, डॉ. नवीन पंचायती राज एवं महिला नेतृत्व, पोइन्टर पब्लिशर्स, जयपुर। 9. बाबेल, डॉ. बसन्ती लाल, पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास योजनाएं, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर। 10. पंवार, मीनाक्षी, पंचायती राज ओर ग्रामीण विकास, क्लासिकल पब्लिशिंग कम्पनी आगरा। 11. शर्मा, डॉ. के. के., (2001): भारत में राज प्रशासन, कॉलेज बुक डिपो, जयपुर। 12. वर्मा, परिपूर्णानन्द, (1989): पंचायती राज एक अध्ययन, लोकतंत्र समीक्षा। 13. https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-3-2 14. https://www.drishtiias.com/hindi/printpdf/women-representative-in-rural-development 16. https://www.drishtiias.com/hindi/pdf/1712129689.pdf, 17. https://www.linkedin.com/pulse/role-women-rural-development-india-aditya-kashyap |