ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- IX , ISSUE- III June  - 2024
Anthology The Research

मानव अधिकारों का राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय परिदृष्य

National and International Perspective of Human Rights
Paper Id :  18974   Submission Date :  2024-06-14   Acceptance Date :  2024-06-21   Publication Date :  2024-06-25
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DOI:10.5281/zenodo.12685758
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श्रवण कुमार सैनी
सहायक आचार्य
उच्च शिक्षा विभाग
श्री राधेश्याम आर. मोरारका राजकीय महाविद्यालय,
नवलगढ़,राजस्थान, भारत
सारांश

मानव अधिकार मनुष्य के वे मौलिक अधिकार है जो मनुष्य को जीवन जीने के लिए आवश्यक होते है, और ये अधिकार मानव को प्रकृति के द्वारा प्रदत्त होते है और ये मानव को मानव समुदाय का सदस्य होने के नाते प्राप्त होते है चाहे मनुष्य किसी भी देश का निवासी हो, किसी भी धर्म को मानता हो, किसी भी नस्ल का हो, जाति का हो स्त्री हो या पुरूष हो। मानव अधिकार मांग करते है कि मनुष्य को मानवोचित परिस्थितियों से वंचित ना किया जाये। ये अधिकार मानव के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक होते है। जिस प्रकार मनुष्य के जीवित रहने के लिए भोजन, पानी और हवा की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनुष्य के गरिमापूर्ण जीवन के लिए मानव अधिकारों की प्रमुख भूमिका होती है। मानव अधिकार व्यक्ति के गुणों, ज्ञान, प्रतिभा और विवेक का विकास करने में सहायक होते है जिससे मनुष्य अपनी भौतिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। मानव अधिकारों को मौलिक, मूल या प्राकृतिक अधिकार भी कहा जाता है क्योंकि ये वे अधिकार है जिन्हें किसी विधायिका, सरकार या अन्य किसी बाध्यकारी सत्ता के द्वारा छीना नहीं जा सकता। इस प्रकार मानवाधिकारों को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि ये वो अधिकार है जो मनुष्य की प्रकृति में निहित है, जिनके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Human rights are the fundamental rights of man which are necessary for man to live his life, and these rights are given to man by nature and man gets them as a member of the human community, irrespective of the country he belongs to, any religion he believes in, any race, caste, whether he is a woman or a man. Human rights demand that man should not be deprived of humane conditions. These rights are necessary for the all-round development of man. Just as food, water and air are required for man's survival, similarly human rights play an important role in the dignified life of man. Human rights help in developing the qualities, knowledge, talent and wisdom of a person so that man can fulfill his physical, spiritual, political, social and economic needs. Human rights are also called fundamental, basic or natural rights because these are the rights which cannot be taken away by any legislature, government or any other coercive authority. Thus human rights can be defined as the rights which are inherent in human nature, without which a human being cannot survive.
मुख्य शब्द मानव अधिकार, राष्ट्र, अन्तरराष्ट्रीय, अभिव्यक्ति।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Human Rights, Nation, International, Expression.
प्रस्तावना

मानव अधिकारों की धारणा मानव गरिमा की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है इस अवधारणा के अनुसार मानव अधिकार विधिक है क्योंकि इनमें अन्तर्राष्ट्रीय संधियों में वर्णित अधिकारों को शामिल किया गया है। यह अवधारणा नैतिक भी है क्योंकि मानव अधिकार मानव गरिमा का संरक्षण करते है। मानव अधिकारों के स्रोतों में मुख्यतः परम्पराएं अन्तर्राष्ट्रीय संधियां, प्राकृतिक कानून, न्यायिक निर्णय, शासकीय अभिलेख आदि प्रमुख है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद अब अधिकांश विद्वानों का मानना है कि मानवाधिकार व्यक्ति को राज्य के विरूद्ध अधिकार प्रदान करता है। संविधान विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कश्यप ने लिखा है कि ’’संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है लेकिन मानव अधिकार नागरिकों को अपने जन्म से प्राप्त करता है।’’

अध्ययन का उद्देश्य

वर्तमान समय में मानव अधिकारों की समस्या एक वैश्विक समस्या बन गईइसलिए आज मानव के मूल और प्राकृतिक अधिकार में हनन  को रोकने से संबंधित सभी प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर जन जागृति और प्रयास आवश्यक है इसलिए मानवाधिकारों से संबंधित विभिन्न प्रश्नों, समस्याओं और मानवाधिकारों के उपाय को खोजना अध्ययनकर्ता का उद्देश्य है

साहित्यावलोकन

संविधान विशेषज्ञ डॉक्टर सुभाष कश्यप ने हमारा संविधान के अंतर्गत भारतीय संविधान में मानवाधिकारों से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया

मुख्य पाठ

20वीं सदी में मानव अधिकारों की धारणा काफी लोकप्रिय हुई और इसे वैश्विक मान्यता मिली, विधिक मान्यता भी मिली लेकिन एक नैतिक विचार के रूप में मानव अधिकारों का विचार प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। भारत के प्राचीन ग्रन्थों, ऋग्वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र आदि में मानव अधिकारों की धारणा स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। ऋग्वेद की ऋचा ’’सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया’’ में मानवअधिकारों का सार निहित है। बात पश्चिमी जगत की करें तो पश्चिमी में युनानी सभ्यता और रोमन सभ्यता में भी मानव के इन प्राकृतिक अधिकारों को मान्यता प्रदान की गई थी। ब्रिटेन का मैग्नाकार्टा एक्ट 1215, पीटीशन ऑफ राइट्स 1628, हैवियस कारपस एक्ट 1679, बिल ऑफ राइटस 1689 आदि मानवीय स्वतंत्रता से संबंधित विधिक प्रावधान है, और व्यक्ति के अधिकारों के लिए राज्य की सत्ता को सीमित करते है।1789 की विश्व प्रसिद्ध फ्रांस की क्रांति में मानवीय अधिकारों की घोषणा की गई और सम्पूर्ण विश्व को स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व का संदेश दिया गया, फ्रांस के इस मानव अधिकारों की घोषणा के द्वारा राज्य की निरंकुशता और मनमानेपन पर मानव अधिकारों को प्राथमिकता दी गई।

मानव अधिकारों की धारणा का व्यवस्थित और विधिक स्वरूप में विकास द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ। विश्व युद्ध के दौरान मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ और अनेक देशों में मनुष्यों का अमानवीय दमन और सामूहिक जनसंहार हुआ। इसलिए दूसरे विश्व युद्ध के दौरान आयोजित होने वाले विभिन्न शांति सम्मेलनों में मानव अधिकारों के संरक्षण पर विचार विमर्श हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने जनवरी 1941 अमेरिकी कांग्रेस में अपने उद्भोदन में सर्वप्रथम मानव अधिकारपद का सर्वप्रथम प्रयोग किया। उसके बाद 1941 के अटलांटिक चार्टर में भी मानव अधिकारों का उल्लेख किया गया और उसके पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में मानव अधिकारों का लिखित उल्लेख किया गया, जिसे 25 जून 1945 में विश्व के 50 देशों ने स्वीकार किया। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 55 में मूलवंश, लिंग, भाषा, धर्म के आधार पर विभेद किये बिना सभी के लिए मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के प्रति विश्वव्यापी आदर तथा उनके पालन को सम्मिलित किया गया। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावना और चार्टर की धारा 55 और 56 में मानवाधिकारों के पालन, प्रोत्साहन का आग्रह सदस्य राष्ट्रों से किया गया और मानवाधिकारों की सुरक्षा को सदस्य राष्ट्रों का नैतिक और विधिक कर्त्तव्य घोषित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने आर्थिक तथा उनके पालन को प्रोत्साहित करने के लिए अधिकार प्रदान किये।

24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट संघ के गठन के पश्चात् 1946 में मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा को अंगीकृत किया और 1950 में महासभा ने प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवसघोषित किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसम्बर 1995 को मानव अधिकारों के संरक्षण और अभिवृद्धि के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के पद का सृजन किया। इस उच्चायुक्त का मुख्य कार्यालय जेनेवा में रखा गया। वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) का गठन किया इस 47 सदस्यीय परिषद ने पूर्ववर्ती मानवाधिकार आयोग का स्थान लिया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय अब इस मानव अधिकार परिषद के सचिवालय के रूप में कार्य करता है इसका मुख्यालय स्वीट्जरलैण्ड के जेनेवा में है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र के भीतर एक अन्तर-सहकारी निकाय है जो विश्व में मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण को मजबूती प्रदान करने का कार्य करती है। इसके 47 सदस्यों का चुनाव महासभा 3 वर्ष के लिए करती है। भारत भी इसका वर्तमान में सदस्य है। भारत 6 बार इसका सदस्य बन चुका है।

मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना शांति की स्थापना और मानव के लिए कल्याणकारी परिस्थितियों के निर्माण के लिए है। सम्पूर्ण विश्व में अनेक कारणों से मानवाधिकारों को निरन्तर खतरा उत्पन्न हो रहा था। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी स्थापना के साथ ही मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के कार्य प्रारम्भ कर दिया। इस दिशा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा पत्र है जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 जनवरी 1948 को अंगीकृत किया। इस घोषणा पत्र में मानवाधिकार सम्बंधी मूलभूत सिद्धान्तों का समावेष किया गया है। इनमें सभी नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों का समावेष कर संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्रों को इन्हें लागू करने के लिए मार्गदर्शन दिया गया। मानवाधिकारों की इस सार्वभौमिक घोषणा की कुल 30 धाराओं में मानवाधिकारों का उल्लेख किया गया है।

भारत में मानवाधिकार

भारतीय संस्कृति में मानव ही नहीं बल्कि जीव मात्र का भी उत्पीड़न भी पाप का पर्याय माना गया है। भारत के प्राचीन साहित्यों में भले ही मानवाधिकार शब्द का प्रयोग नहीं किया गया हो लेकिन उनमें मानवाधिकारों का भाव निहित है। भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से ही मानव मात्र के कल्याण की कामना की गई है और मानव के प्रत्येक प्रकार के उत्पीड़न को वर्जित कर अहिंसा को एक आदर्श के रूप में स्थापित किया गया। ऋग्वेद में शांतिपाठ एवं राज्य की उत्पति के कारणों में मानवाधिकारों की रक्षा निहित है। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर को सहमति प्रदान करने वाले प्रारम्भिक देशों में एक है, जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की तब भारत ने इन मानवाधिकारों की सम्मति प्रदान की और मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए मानवाधिकारों के हनन को रोकने के गम्भीर प्रयास किये। 26 जनवरी 1950 के लागू भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया। भारत के संविधान की प्रस्तावना मौलिक अधिकार राज्य के नीति निर्देषक तत्वों में मानवाधिकारों को पर्याप्त स्थान दिया गया। 1993 में संसद ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम पारित किया, इस अधिनियम में ही राष्ट्रीय और प्रान्तीय स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए मानवाधिकार आयोग के गठन का प्रावधान किया गया। जिसके अनुसार 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया तथा मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के द्वारा भारत के अनेक राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोगों का गठन किया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते है। मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायाधीश होना आवश्यक होता है। एक सदस्य उच्चतम न्यायालय में कार्यरत या सेवानिवृत न्यायाधीश तथा एक सदस्य उच्च न्यायालय में कार्यरत या सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए, दो अन्य सदस्य जिन्हें मानवाधिकारों के क्षेत्र में अनुभव या विशेषता हो उन्हें बनाया जा सकता है। इनकी नियुक्तियां 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो तक की जाती है। मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति एक परामर्षदात्री समिति की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति करते है, इस परामर्श दात्री समिति में प्रधानमंत्री लोकसभा का अध्यक्ष, राज्यसभा का सभापति, केन्द्रीय गृहमंत्री और नेता प्रतिप़ा सदस्य होते है।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की तरह ही भारतीय मानवाधिकार आयोग भी एक सलाहकारी संस्था है इनके आदेशों और सुझावों को मानना सरकारों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है इनको दण्डात्मक कार्यवाही करने की शक्तियाँ प्राप्त नहीं होने के कारण ये संस्थाएं अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही है। अन्तर्राष्ट्रीय परिदृष्य हो या राष्ट्रीय सब जगह मानवाधिकारों के संरक्षण में आशातीत सफलता नहीं मिली। वैश्विक स्तर पर महाशक्तियों के झगड़े, वैश्विक आतंकवाद, वैश्विक महामारियों, धार्मिक संघर्ष, गरीबी के कारण मानवाधिकार निरन्तर हनन हो रहे है। राष्ट्रीय सन्दर्भ में सामाजिक और आर्थिक विषमता, जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता, शोषण, गरीबी, पर्यावरण प्रदूषण, बेरोजगारी, पुलिस उत्पीड़न आदि मानवाधिकारों के हनन कि लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है। यद्यपि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य हुए है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए सभी देशों केा प्रोत्साहन दिया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न शक्तियों के द्वारा पिछड़े और गरीब देशों में आमजन के जीवन को सुगम बनाने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे है। गरीबी उन्मूलन, आंतकवाद की रोकथाम, पुलिस दमन, महामारियों की रोकथाम, शरणार्थियों की सुरक्षा आदि को रोकने के लिए निरन्तर प्रयासरत है। विभिन्न सम्मेलनों को आयोजन वैश्विक मंच पर किया जा रहा है। मानवाधिकारों को विधिक मान्यता प्रदान किए जाने का शुभारम्भ किया जा रहा, मानवाधिकारों को प्रादेशिक संविधानों में स्थान दिया जा रहा, मानवाधिकारों के समक्ष आने वाली समस्याओं के निदान अलग-अलग निकायों द्वारा किया जा रहा है, मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरोध में सामूहिक रूप से आवाज उठाई जा रही है, मानवाधिकारों के विषय क्षेत्र को और अधिक व्यापक बनाया जा रहा है, मानवाधिकार के संशोधन और संवर्धन हेतु विश्व समुदाय एक है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. डॉ. सुभाष कश्यप - हमारा संविधान
  2. रिसर्च रिइफ्रोंसमेट - ISSN 2348.3857 (मई 2020)
  3. रिसर्च रिइफोर्समेंट (मई 2015)
  4. संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर
  5. डी.डी. बसु - हयूमन राइटस इन कान्सीटयूशनल लॉ
  6. भारत का संविधान
  7. इन्टरनेशनल ओर्गेनाईजेशन (वॉल्यूम 24)
  8. भारतीय राजनीति विज्ञान शोध पत्रिका (जुलाई 2015)
  9. www.ohchr.org
  10. www.nhrc.nic.in