ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- IX , ISSUE- III April  - 2024
Innovation The Research Concept

राम की शक्तिपूजा : देव राम का मानव राम बनने की एक कथा

Ram ki Shakti Puja : A story of Dev Ram Becoming Human Ram
Paper Id :  18817   Submission Date :  2024-04-08   Acceptance Date :  2024-04-17   Publication Date :  2024-04-22
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DOI:10.5281/zenodo.12580496
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सुमिता चट्टोराज
एसोसिएट प्रोफेसर, विभागध्यक्षा
हिन्दी विभाग
महाराजा मनिंद्र चन्द्र कॉलेज
कोलकाता,पश्चिम बंगाल, भारत
सारांश

"राम की शक्तिपूजा" कविता में दो पंक्तियाँ पूरी कविता के सूत्र हैं। पहली पंक्ति है-अन्याय जिधर है उधर शक्तिऔर दूसरी पंक्ति है- 'धिक जीवन को जो पाता ही आया विरोध। संघर्ष राम कर रहे हैं रावण के खिलाफ। प्रश्न है कि वह विजयी होंगे या नहीं। संघर्ष रावण रूपी अधर्म, असत्य, अन्याय से भी है और संघर्ष राम के हृदय में भी है। उनके अंतस में है शुभता और अशुभता की लड़ाई किन्तु उन्हें इस बात का आश्चर्य भी है और दुख भी कि महाशक्ति कालिका रावण का पक्ष ले रही है जो अन्याय और अधर्म का पुजारी है और राम की शक्ति- साधन तो धर्म-सत्य-न्याय की शक्ति-साधना है। चूंकि राम की शक्ति साधना पर कवि की अपने व्यक्तित्व की छाप है इसलिए राम का अपने पराजय पर धिक्कार वस्तुतः निराला का अपने जीवन पर धिक्कार है क्योंकि वह जीवनभर अन्याय के खिलाफ लड़ता रहा पर पराजित ही होता रहा। इस तरह राम-रावण का समर इतिहास में हमेशा के लिए अंकित हो गया। इसमें निराला ने राम की निराशा, पराजय, संघर्ष और विजय कामना को नाटकीय रूप दिया है। राम अपने भीतर क्रियाशील तमोगुण को परास्त करने के लिए भी साधना करते हैं इसमें बार-बार निराला ने विरोधाभास को अपने संरचनात्मक कौशल का हिस्सा बनाया है। इसमें सीता की मुक्ति राष्ट्र की मुक्ति के संदर्भ में उभरकर आई है। राम की शक्तिपूजा निराला की शक्तिपूजा है क्योंकि राम के रूप में कवि ने खुद संग्राम किया है, चुनौतियों का सामना किया है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the poem "Ram Ki Shakti Pooja", two lines are the key to the entire poem. The first line is - 'Wherever there is injustice, there is power' and the second line is - 'Damn the life which has always found opposition'. Ram is fighting against Ravana. The question is whether he will be victorious or not. The fight is against Ravana in the form of adharma, untruth, injustice and the fight is also in Ram's heart. There is a battle between good and bad in his heart but he is surprised and saddened that the great power Kalika is supporting the one who worships injustice and unrighteousness and Ram's power is the power of Dharma-Satya-Justice. Since Ram's power is imprinted by the poet's own personality, Ram's shame on his defeat is actually Nirala's shame on his life because he kept fighting against injustice throughout his life but kept getting defeated. In this way, the battle between Ram and Ravana has been inscribed in history forever. In this, Nirala has given a dramatic form to Ram's despair, defeat, struggle and desire for victory. Ram also practices to defeat the Tamoguna (darkness) active within him. In this, Nirala has repeatedly made the paradox a part of his structural skill. In this, Sita's liberation has emerged in the context of the liberation of the nation. Ram's Shakti Pooja is Nirala's Shakti Pooja because in the form of Ram, the poet himself has fought and faced challenges.
मुख्य शब्द शक्तिपूजा, अंतर्सलिला, प्रवाहमान, लघुताबोध, आत्मबलिदान, सर्जना, आत्म-प्रक्षेप, आत्मसाक्षात्कार, इतिहाससिद्ध, चक्रव्युह, युगान्तकारी, पापपुंजहारी, उद्‌भावना, सृजन - प्रक्रिया, उर्जस्वित, मूलाधार, पुरोषोत्तम, खिन्नता, आच्छादित, युद्धवीर, विपन्नता, विक्षिप्त, अंतर्निहित।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Shakti Worship, Inner Stream, Flowing, Feeling Of Smallness, Self Sacrifice, Creation, Self Projection, Self Realization, Historically Proven, Chakravyuha, Revolutionary, Destroyer Of Sins, Inspiration, Creation Process, Energetic, Foundation, Best Man, Sadness, Covered, Warrior, Poverty, Disturbed, Inherent.
प्रस्तावना
'राम की शक्तिपूजा' में निराला ने राम-रावण के युद्ध के माध्यम से शक्ति-शक्ति के द्वंद्व को रेखांकित करते हुए शक्ति की खोज की है, शक्ति को पहचानने की कोशिश की है। निराला ने इसमें राम को शक्तिशाली रूप में नहीं दिखाया है वरन उन्हें शक्ति अर्जित करते हुए दिखाया है। शक्ति राम-रावण दोनों के पास है। अब कौन शक्ति अर्जित कर सकता है यही बड़ी बात है, किसके पास शक्ति जाएगी यह बड़ी बात है। देव राम इसी शक्ति की तलाश करते हुए मानव बनते हैं और शक्ति को अर्जित भी करते हैं किन्तु जब तक वे राम बन अपनी शक्ति पर अहं करते हैं और उनमें तमोगुण हावी होते हैं और वे यह सोचते हैं कि वे हार क्यों गए? वे तो राम हैं तब तक वे शक्ति को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। राम अपने भीतर और बाहर की लड़ाई लड़‌कर ही सही अर्थ में राम बनते हैं। जब वे आत्मान्वेषण कर खुद को पहचानते हैं, खुद के तमों गुणों को खुद पराजित करते हैं, तब वे मानव राम बनते हैं और तमाम कुण्ठाओं, रूढ़ियों, संकीर्णताओं, सीमितताओं से मुक्त हो जाते हैं और तब राम बनने की उनकी यात्रा संपूर्ण होती है और वे मानव कल्याण और विश्व-मंगल-कार्य में अपने को नियोजित करते हैं, देश के ऐतिहासिक विकास का बोध प्राप्त करते हैं, आराधन का उत्तर आराधन से देते हैं तथा बंधी-बंधाई परंपरा से ऊपर जाते हैं। 'रवि हुआ अस्त' से राम की शक्तिपूजा की शुरुआत होती है जो एक गंभीर पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करता है और कविता का अंत राम में शक्ति की समाहिति के साथ होता है। यह राम का शक्ति को प्राप्त करने की यात्रा है। यह शक्ति की ओर जाने की यात्रा है। राम मानव बन संघर्ष, संशय, आत्मविश्वास और आत्मबलिदान के पड़ावों को पार करके ही शक्ति की ओर अग्रसर होने में सफल होते हैं और शक्ति की नई परिभाषा रचते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य

इस शोध आलेख में अवलोकन पद्धति का सहारा लिया गया है। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है निराला के राम के नये विन्यास और विकास से पाठको का परिचय करवाना। यह भी बताना लक्ष्य है कि निराला ने राम-रावण के युद्ध को (जो कि पौराणिक कथा पर आधारित है) प्रतीकात्मक रूप में सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म, न्याय-अन्याय का युद्ध बना दिया है। साथ ही यह कहना कि इस कविता में राम देव राम बनकर रावण को हरा नहीं पाते वरन मानव राम बनकर संघर्ष के द्वारा, शक्ति की मौलिक साधना के द्वारा हरा पाते हैं। यह भी  कहना उद्देश्य है कि निराला ने इसमें सीता की मुक्ति के प्रसंग के माध्यम से राष्ट्रीय स्वाधीनता के संदर्भ को उठाते हुए तत्कालीन भारतवर्ष के नेतृत्व के कौशल की बात कही है। इस कविता के जरिए कवि द्वारा खोजी गई देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा के गौरव को प्रस्तुत करना भी लेखक का उद्देश्य रहा है। साथ ही कवि की काव्यगत नाटकीयता, काव्य सौन्दर्य, काव्य-शिल्प, भाषा, परंपराबोध इत्यादि से पाठकों का परिचय करवाना भी अन्यतम उद्देश्य है।

साहित्यावलोकन

'निराला आत्महंता आस्थामें दूधनाथ सिंह ने निराला की काव्य-रचना के विकास को समझाते हुए उनकी रचना-प्रक्रिया, उनकी काव्यगत विशेषताओं और यथार्थताओं से परिचय करवाया है। उन्होंने निराला की भाषिक संरचना की प्रस्तुति के द्वारा कवि के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। रचना-दृष्टि, विषय-वस्तु, भाव-संवेदना इत्यादि को उभारकर लेखक ने निराला के रचनात्मक प्रतिभा को स्पष्ट किया है। डॉ० इन्द्रराज सिंह ने 'निराला काव्य के विविध आयाम' में निराला के काव्य की विकास यात्रा को सौन्दर्य, यथार्थ और दर्शन के धरातल पर विविध आयामों में खोजने की कोशिश की है। साथ ही उन्होंने आधुनिकताबोध और परंपराबोध की पहचान की है। 'निराला एक पुनर्मूल्यांकनमें निर्मला जैन ने 'शक्ति-काव्य का प्रतिमान: राम की शक्तिपूजा' शीर्षक अपने आलेख में निराला की शक्ति विषयक अवधारणा को स्पष्ट किया है और यह बताया है कि निराला ने अपनी इस कविता में द्वंद्व और संयम के संतुलन को प्रस्तुत किया है।छायावादमें नामवर सिंह ने निराला की काव्य-कला का विस्तार से मूल्यांकन किया है। 'निराला-काव्य की छवियांमें नंदकिशोर नवल ने निराला की वैचारिक यात्रा पर प्रकाश डालते हुए उनकी नई रचनाशीलता, राम की शक्तिपूजा संबंधी निराला की प्रतिक्रिया इत्यादि विषयों का आकलन किया है। 'प्रसाद निराला अज्ञेयमें रामस्वरूप चतुर्वेदी ने आधुनिक काल में हिन्दी कविता के विकास क्रम को देश और साहित्य के कोण से देखते हुए निराला को बंगाल से विरासत में मिलने वाले शक्ति-मंत्र की चर्चा की है और उनकी साहित्यिक रचनात्मक ऊर्जा से परिचय करवाया है। 'निराला की कविताएँ और काव्यभाषामें रेखा खरे नेकविता और काव्यभाषाके धरातल पर निराला के काव्य- वैशिष्ट्य पर प्रकाश डाला है। साथ ही इसमें लेखक ने निराला की कविताओं जैसे राम की शक्तिपूजा, जूही की कली, बादल राग, तोड़ती पत्थर इत्यादि का विस्तार से विवेचन किया है।

'नई कविता : निराला अज्ञेय और मुक्तिबोधमें डॉ० विश्वनाथ त्रिपाठी नेराम की शक्तिपूजा की संवेदनाशीर्षक अपनी लेख में इस कविता के शिल्प पर चर्चा करते हुए इसमें निहित वैचारिकता पर प्रकाश डाला है और निराला की शक्ति संबंधी सौन्दर्य-चेतना की पहचान करवायी है। डॉ० रामरतन भटनागर ने 'निराला नव मूल्यांकनमें निराला के काव्य- विकास को दिखाते हुए उनके काव्य की नई दिशाओं से परिचय करवाया है। 'छायावाद और उसके कविमें डॉ० इन्द्रराज सिंह ने छायावादी काव्य परंपरा में निराला का स्थान निर्धारित किया है। 'निराला' में रामविलास शर्मा ने निराला की साहित्यिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए उनके दर्शन, कला, उदात्त चिन्तन, राम की शक्तिपूजा संबंधी उनके विचारों का मूल्यांकन किया है। 'राम की शक्तिपूजा : विश्लेषणमें निराला के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित करते हुए इस काव्य के कथानक पर दृष्टिपात किया गया है और बांग्ला भाषा में रचित 'कृत्तिवास रामायण' और तुलसी रचित 'रामचरितमानस' को इस काव्य के प्रेरणा-स्रोत बताये गये हैं। साथ ही इस काव्य के कलापक्ष की भी समीक्षा की गई है। 'राम की शक्तिपूजा की विशेषता ' शीर्षक लेख में इस कविता का सम्यक विश्लेषण और विवेचन करते हुए इसकी संरचना को सरल बताया गया है। साथ ही इस काव्य में निहित आधुनिकता, युगीन चेतना, आत्मसंघर्ष, मनौवैज्ञानिकता इत्यादि पर आलोकपात किया गया है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा प्रतिपादित 'लोकमंगल की साधनासे इस काव्य की तुलना की गई है। इसमें लेखक द्वारा यह भी बताया गया है कि निराला ने इस कविता में राम-रावण के युद्ध के वर्णन द्वारा यथार्थ से जूझते हुए मानव के अन्तर्द्वन्द्व को एक सांस्कृतिक - सामाजिक प्रक्रिया के तहत दिखाया है जो पौराणिक कथा के माध्यम से अपने युग को उजागर करती है।

मुख्य पाठ

शक्तिपूजा एक ऐसा शब्द है जिसके जड़‌ में पौराणिक कथा अंतर्सलिला की तरह निस्संदेह सतत् प्रवाहमान है परन्तु निराला ने भागवत पुराण की इस कथा को सिर्फ राम के संघर्ष, संशय, लघुताबोध, दृढ़ता, आत्मविश्वास, आत्मबलिदान तक सीमित न रख उन्होंने अपने रचनात्मक संघर्ष, संशय, आत्मविश्वास से जोड़‌कर एक नये इतिवृत्त की सृष्टि की है और यह प्रतिष्ठित कर दिया है कि समय के साथ हर बदलते नये युग में पुरुषोत्तम नवीन को नये रूप में जन्म लेना ही है। तभी तो 'यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत / अभ्युनानमम् अधर्मस्य संभवामि युगे युगेगीता की यह उक्ति नयी अर्थवत्ता लिएशक्तिपूजामें पुनर्प्रतिध्वनित होने लगती है। 

दूधनाथ सिंह ने कितना सही कहा है कि निराला की शक्तिपूजा का महत्त्व इस मायने में है कि उन्होंने इसमें भी अपने निजी रचनात्मक जीवन का आत्म-प्रक्षेप करके उस पूरे इतिवृत्त के माध्यम से सर्वथा एक नये, मौलिक और अनुभूत प्रसंग की सर्जना की है। आख्यान को तोड़‌कर भी उसके पुराने, पारम्परिक संदर्भगत, इतिहाससिद्ध अर्थ की रक्षा करते हुए उसमें नये अर्थ की प्रतिष्ठा ही इस कविता की मौलिक शक्तिमत्ता का प्रमाण है निराला में पारंपरिक कथात्मकता भी है और पारंपरिकता से पृथक उसका आत्मसाक्षात्कार के स्तर पर एक नया अर्थ विकास भी। शक्तिपूजा में कवि की रचनात्मकता का आत्म साक्षात्कार और उस आत्म-साक्षात्कार से उत्पन्न संशय, द्वंद्व कवि के आत्मसंघर्ष को राम के धर्म-अधर्म संघर्ष से आगे ले जाता है और कवि का यही नवीन जीवन- दर्शन कवि को शेली, इलियट, मुक्तिबोध, तुलसी सबसे पृथक कर देता है। दूधनाथ सिंह के शब्दों मेंराम की शक्तिपूजा में रामकथा कम है, निराला के रचनात्मक संघर्ष, संशय और आत्म-बलिदान की कहानी अधिक। हालाँकि यह अर्थ-प्रतिष्ठा, यह व्यक्तिगतता, अपने रचनात्मक संघर्ष का राम के व्यक्तित्व में यह समावेश, इतना सूक्ष्म है कि अर्थ सन्धान करना पड़ता हैं।”[1]

'राम' संबंधी कविता हमारे भावना - जगत को आलोड़ित करने के साथ - साथ कई प्रश्न भी हमारे सामने रख देती है। प्रश्न तो यह कि कौन है यह राम ? क्या यह राम पुराण की कथा के अनुसार भागवत् की विष्णु के अवतार हैं या मध्ययुगीन भक्तिकाव्य के राम हैं? अथवा रामचरितमानस के राम है? रामचंद्रिका के राम हैं या कोई आधुनिक राम जिसके हाथों में धनुष तो नहीं है पर आत्मविश्वास और तमाम अशुभता के चक्रव्युह को तोड़ने की अदम्य शक्ति है। आज की तारीख शक्तिपूजा की व्याख्या करते हुए ऐसा लगता है मानो यह शक्तिपूजा है निराला के भीतर की शुभता की पूजा है, बाहर की अशुभता को परास्त करने की पूजा है।

डॉ० इंद्रराज सिंह के शब्दों मेंराम की शक्तिपूजा वस्तुत: राम के जीवन मूल्यों के लिए संघर्षों का काव्य है-- राम के इस मानवीय संघर्ष में निराला के संघर्ष की आत्माभिव्यक्ति     है।”[2]

वस्तुतः निराला ने अपनी रचनात्मकता के राम को जीत हासिल करवाने के लिए बाहर के संकीर्ण और संकुचित मनोवृत्ति रूपी रावणों को पराजित करना चाहा। निराला कहते हैं-

'रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सका त्रस्त 

तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त'

इसतरह युगान्तकारी निराला ने अपने आक्रोश को व्यक्त कर अन्याय और षड्यंत्र के प्रति प्रलयकारी विद्रोह की घोषणा की है और अपने भीतर के राम के प्रति होने वाली असमानता, उसकी परतंत्रता, परवशता तथा उसकी पीड़ा को निराला ने  मानव मात्र की पीड़ा, परतंत्रता और असमानता बताया है। इस कारण राम की शक्तिपूजा केवल राम की शक्तिपूजा का ही काव्य नहीं अपितु उच्च मानव मूल्यों के समर्थन में दुष्ट मानव मूल्यवादियों के विरुद्ध संघर्ष के क्षणों में यह काव्य प्रत्येक शिष्ट और सज्जनों के मन की अन्तर्छवि का दर्पण है। निर्मला जैन के अनुसारटूटते हुए मूल्यों के वातावरण में नैतिक शक्ति अर्जित करने की आवश्यकता भी कम नहीं है। इसलिए अपने संदर्भ  की ऐतिहासिक सीमाओं के बावजूद राम की शक्तिपूजा का नैतिक विजन सार्वभौम सार्थकता संपन्न है।”[3]

तुलसी के राम अन्तर्यामी, घट-घटवासी, शरणदाता, पापपुंजहारी हैं, वे पहले से सबकुछ जानते हैं इसलिए उनके मन में शंका नहीं है बल्कि वे तटस्थ हैं जबकि निराला के राम संशयग्रस्त हैं, विचलित हैं क्योंकि राम का संशय वस्तुतः निराला का ही संशय है। तभी तो वह कह उठता है -

रह रह कर उठता जगजीवन में रावण जगभय।

शक्तिपूजा में प्रश्न केवल सीता की मुक्ति का नहीं है वरन् देश की आजादी, धर्म, सत्य, नीतिबोध मर्यादाबोध की रक्षा का प्रश्न है और ये सारे प्रश्न जब कवि के मन में जगते हैं तब उन्हें भी चिन्ता होती है राम की तरह कि क्या रावण रूपी अंग्रेज को पराजित कर सीता रूपी जातीय स्वाधीनता की रक्षा हो पाएगी । इसप्रकार निजी रचनात्मक जीवन - संघर्ष  का अनुभव कवि के मन में आशा का संचार करता है और तब कवि के सारे सन्देह, संशय खत्म हो जाते हैं और वे राम की तरह तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शक्तिपूजा करते हैं, गर्व के अंधकार को हटाकर प्रकाश की यात्रा करते हैं। नामवर सिंह के अनुसारछायावादी अंतर्दृष्टि" ने यदि एक ओर विराट उपमाओं की योजना की तो दूसरी ओर लघु-लघु अमूर्त उपमाओं का भी विधान किया।

'राम की शक्तिपूजा' में राम-रावण युद्ध का प्रसंग तो पारंपरिक हैराम की निराशा भी विविध राम - कथाओं में विद्यमान है किन्तु उन कथाओं में राम, लक्ष्मण के रणक्षेत्र में मूर्छित होने के कारण निराश होते हैं किन्तु राम की शक्तिपूजा में निराला के राम की निराशा का कारण सर्वथा नूतन है, यहाँ राम इसलिए निराश हैं क्योंकि नंदकिशोर नवल के अनुसारराम की शक्तिपूजा निश्चय ही  रामकथा का  पुनराख्यान मात्र नहीं है। इसके राम पौराणिक राम होते हुए भी एक आधुनिक मनुष्य हैं, वह भी मध्य वर्ग के।”[5]

'अन्याय जिधर है, उधर शक्ति'

वस्तुतः युद्ध में जय होगी कि नहीं और सीता अर्थात् देशमातृका का उद्धार होगा कि नहीं यह चिन्ता निराला के रोम-रोम में समाया हुआ है। राम की शक्तिपूजा का राम मूलाधार भागवत पुराण होते हुए भी इसमें शक्ति की पूजा कर निराला ने अपने भीतर शक्ति को समेटना चाहा और शक्ति के प्रति समर्पित होकर अन्ततः शक्ति से अपने को परिपूर्ण बनाने की इच्छा प्रकट की। एक ओर शक्ति के प्रति पूर्ण समर्पण और दूसरी ओर शक्ति में समा जाना इस शक्तिपूजा का वैशिष्ट्य है जो इसे अन्य रामकथा से अलग करता है । शक्ति की यह नवीन उद्‌भावना कवि को नयी रचनात्मक शक्ति देती है और कवि का एक और मन जिसमें उनके राम लगातार उनके दूसरे नकारात्मक मन रूपी रावण से युद्ध करते हैं पर न थकते हैं और न ही हारते हैं। इस तरह कवि के मन की दो परतें- पराजित मन और अपराजित मन के बीच लगातार समर चलता ही रहता है पर उनका अपराजित मन नयी शक्ति को साथ लिए नयी सृजन-प्रक्रिया की राह में निराशा, भय, संशय को तोड़ दृढ़ निश्चय, और कठोर साधना, त्याग और अदम्य साहस के साथ निरंतर बढ़ता जाता है । ताकि वह सफलता को सक्षमता से प्राप्त कर सके। निराला के राम असाधारण पुरुष से साधारण मानव बनते हैं, ब्रह्म से आधुनिक मानव बनते हैं जिसमें हारने की चिन्ता भी है, दृढ़ता भी, जीतने की उम्मीद भी है, निराशा भी। यही राम का नूतन विकास है जो राम को पौराणिक कथा की काल्पनिकता से बाहर लाकर यथार्थ के धरातल पर प्रतिष्ठित कर देता है। रामस्वरूप चतुर्वेदी के शब्दों मेंदुर्गा पूजा के देश बंगाल में शक्ति आराधना पर वैसी ऊर्जा सूचित रचना नहीं लिखी गई जैसी राम की शक्ति पूजा है।”[6]

रेखा खरे के अनुसार "राम और रावण के पौराणिक आख्यान को कवि के सर्जनशील शिल्प ने अस्तित्व की टकराहट और इससे व्यक्तित्व के उत्तीर्ण होने की दिशा में जैसे मोड़ दिया है।  वह चेतना के इतिहास को विस्तार देता है।"[7]

वस्तुत: इस कविता में राम के माध्यम से निराला की राष्ट्रीय गुलामी से मुक्ति की चिन्ता बार-बार झलकती है। राष्ट्र - मुक्ति और राष्ट्र की मर्यादा की रक्षा के लिए युद्ध में नियोजित निराला अपने नैतिक पक्ष को विजयी देखना चाहते हैं। ठीक जिस तरह राम का एक और मन अशुभ शक्ति का पराजय देखने को व्याकुल है- 

'वह एक और मन रहा राम का जो न थका

जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय।'

अपना सर्वस्व समर्पित कर देने के लिए तैयार निराला राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए शक्ति की आराधना का पक्ष लेते हैं और यह सुझाव उन्हें जनसाधारण नहीं वरन वरिष्ठ मंत्री और सैनिक अधिकारी जामवन्त देते हैं और कहते हैं-

'शक्ति की करो मौलिक कल्पना'

निराला सिर्फ मर्यादित विजय चाहते हैं, सर्वग्रासी विनाश नहीं। राम को भी अपनी विजय पर पूरी आस्था है क्योंकि वे आशावादी हैं। निराला को भी अपने जीत पर पूरी आस्था है क्योंकि वे नवीन पुरुषोत्तम हैं और नवजागरण लाने वाले राम के पक्षधर हैं। निराला राम को नव गति, नव लय, नव ताल और नव छंद में पधारते हुए देखना चाहते हैं। तभी तो वे शक्ति की, मौलिक परिकल्पना करते हैं। विश्वनाथ त्रिपाठी के शब्दों मेंशक्ति का बोध और शक्ति की खोज, यह इस कविता की बहुत महत्वपूर्ण, लगभग केन्द्रीय समस्या है……”[8]

तुलसी के राम के विलाप की तरह निराला के राम का विलाप लीला मात्र नहीं है। निराला के भीतर के राम को उनका संशय मनुष्य की भूमि पर उतारने वाला महत्त्वपूर्ण तत्त्व है और यह संशय ही निराला के मन में अंतर्निहित राम को, निराला के व्यक्तित्व को एक नयी भूमि पर प्रतिष्ठित करता है। यहीं तुलसी और निराला के राम अलग हो जाते हैं। इस धरातल पर आकर निराला तुलसी की रामकथा को तोड़ इस कविता की कथा को नूतन बनाते हैं।

निराला के राम के संशय, उनकी खिन्नता और अन्ततः उनके द्वारा शक्ति की मौलिक कल्पना और साधना तथा अंतिम विजय में अपने ही रचनात्मक जीवन और व्यक्तिगतता के संशय, अपनी रचनाओं के निरन्तर विरोध से उत्पन्न आन्तरिक खिन्नता, अपने संघर्ष और अपनी कल्पना ऊर्जा द्वारा अन्ततः रचनात्मकता की विजय का घोष ही इस कविता में व्यक्त किया गया है।

'धिक जीवन जो पाता ही आया विरोधबोलने वाले राम कृत्तिवास के रामायण के राम की तरह चिन्तित होते हैं, रोते भी हैं किन्तु थकते नहीं हैं और हारे हुए क्षणों में भी जानकी के साथ बिताये अतीत के कुछ सुखद क्षणों को याद कर अपने पराजित मन को फिर से जीत दिलाने की ऊर्जा पा लेते हैं तभी तो निराला कहते हैं- 

'ज्योति: प्रपात स्वर्गीय - ज्ञात छवि प्रथम स्वीय 

जानकी नयन कमनीय प्रथम कंपन तुरीय।'

शक्तिपूजा में वर्णित राम का अपराजेय व्यक्तित्व निराला के स्वयं के व्यक्तित्व से बार बार  साम्य रखता दिखाई देता है। रामविलास शर्मा के अनुसार राम की शक्तिपूजा के प्रतीक इतने सबल और भावपूर्ण हैं और वे निराला के जीवन सत्य को ऐसे नाटकीय रूप में प्रस्तुत करते हैं…. यहाँ उन्होंने अपने जीवन की अनुभूति, निराशा, पराजय, संघर्ष और विजय कामना को नाटकीय रूप दिया है।  रामरतन भटनागर के अनुसारनिराला का काव्य सौंदर्य नवजागरण की देन है।”[9]

राम भी और निराला भी दोनों ने इस भयंकर यथार्थ पर प्रकाश डाला है कि संसार में असत् की शक्ति प्रबल है और वह सत् को आच्छादित करने के लिए सभी प्रकार के साधनों से काम लेती है। अत: राम और निराला दोनों ही यह अनुभव करते हैं कि यदि असत् शक्तिशाली है तो सत् को उससे ज्यादा शक्तिशाली होना होगा। तभी तो निराला अंतर्निहित रामशक्ति की आराधना कर अपने भीतर शक्ति के लीन होने का वरदान प्राप्त करते हैं क्योंकि निरा‌ला के राम न तो असाधारण पुरुष है और न ही ब्रह्म वरन् वे साधारण युद्धवीर हैं जो सत्य के पक्ष में खड़े होकर असत्य से लड़ते हैं। तभी तो निराला कहते हैं 

धिक जीवन जो पाता ही आया विरोध 

धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध

निराला के नूतन राम देशमातृका को पराधीनता की श्रृंखला से मुक्त करना चाहते हैं तभी तो वे रावण रूपी विदेशी शासन और उनकी दमन नीति का खात्मा चाहते हैं तथा समाज में व्याप्त आर्थिक और राजनीतिक असंतोष तथा विपन्नता को समाप्त करना चाहते हैं। साथ ही उनके राम देश के तरुणों और नवयुवकों को निराशा के गहन अंधकार से आशा की किरणों तले  लाकर देश की स्वतंत्रता के लिए आशामय संदेश सुनाते हैं कि देश के तरुण यदि एकाग्रचित्त और दृढ़ होकर शक्ति की अराधना न करें, त्याग और तपस्या के बल पर शक्ति-संचय न करें तो रावण रूपी विदेशी ताकतों के हाथों से सीता रूपी देशमातृ‌का का उद्धार संभव नहीं।

इन्द्रनाथ मदान के अनुसारइनका काव्य कभी बुद्धितत्व द्वारा अनुशासित है, कभी रागतत्त्व द्वारा प्रेरित है, और कभी कल्पनातत्त्व द्वारा अनुप्राणित है।”[10]

इसमें निराला के आधुनिक राम, सामाजिक, राजनीतिक एवं पारिवारिक परिस्थितियों में विरोध के कारण विक्षिप्त हो जाते हैं और बार- बार परिस्थितियों से जूझते हैं।

इस दृष्टि से निराला के राम स्वयं निराला के प्रतीक हैं जो सामाजिक एवं राजनीतिक असंतोष रुपी रावण से युद्ध करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। निराला के राम यह अनुभव करते हैं कि यदि असत शक्तिशाली है तो सत् को उससे ज्यादा शक्तिशाली होना होगा । इस काव्य में राम का जो संशय है, वही निराला का भी संशय है।

रह रहकर उठता जगजीवन में रावण जगभय 

निराला के राम, रावण से भयभीत नहीं होते वरन उससे लड़ते हैं। तभी तो रामविलास शर्मा कहते हैं किनिराला, विद्रोह और परिवर्तन का कवि है, वह जीवक सघर्ष में कूदने के लिए आहवान करने वाला कवि है।”[11]

परन्तु यहाँ प्रश्न सिर्फ सीता के उद्धार का नहीं है वरन् स्वतंत्रता, नीतिबोध, मर्यादामय आचरण और सत् की रक्षा का प्रश्न है। निराला के राम के मन में जब ये प्रश्न उदित  हुए तब उनमें रावण या विदेशी शक्ति या यूं कहें विरोधी शक्ति के विरुद्ध संघर्ष का उत्साह जाग्रत होता है। कवि का यह स्पष्ट संदेश है कि सिर्फ़ संशयग्रस्त रहकर कुछ हो नहीं सकता, शक्ति साधना से ही दुष्टदलन संभव है। इस प्रकार निराला के राम जीवन- संघर्ष की वास्तविकता पर प्रकाश डालकर आशा का भी संचार करते हैं। इसप्रकार राम की शक्तिपूजा सिर्फ राम  का ही नहीं रामकथा का भी नूतन विन्यास है।

निष्कर्ष

राम की शक्तिपूजा एक पराजित मन और दूसरे अपराजित मन के अस्तित्व की अनुभूति की कविता है जहाँ राम के जय-पराजय का प्रश्न प्रत्येक मानव के जय- पराजय से जुड़‌ जाता है। अमानिशा में गगन द्वारा अंधकार को उगलने के साथ मशाल के जलने में भी राम के मन के दो स्तरों का ज्ञान होता है। राम के संशयग्रस्त अवस्था में जानकी की स्मृति का जागना राम को विश्व विजय की भावना से भर देता है और राम अपने लघुता बोध से मुक्त होकर नैतिक दृढ़ता की ओर अग्रसर होते हैं। ऐसे में जाम्बवान द्वारा दिया गया शक्तिपूजा का सुझाव राम के पराजित मन की मुद्रा को बदल देता है। निराला ने यह स्पष्ट किया है कि जो सभी का मंगलकामी है, जीत अन्ततः उसे ही हासिल होती है भले ही कितनी ही प्रतिकूलताएँ उसके सामने क्यों न हो और अशुद्ध शक्ति आखिकार दुर्बलतम्‌ प्र‌माणित होती है, और कवि के राम इसी तथ्य पर शक्ति अनुसंधान करके आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं, संशयवाद और लघुतावाद पर विजय प्राप्त करते हैं।

वस्तुतः इस कविता में राम और निराला दोनों के पराजित और अपराजित मन के अस्तित्व की लड़ाई है। इस कविता में कवि ने अपने निरीक्षण शक्ति के बल पर मन के विभिन्न स्तरों पर होने वाली प्रतिक्रियाओं का संश्लिष्ट चित्रण किया है। चरम निराशा के क्षणों में राम में माता द्वारा स्वयं को 'राजीव नयनकहे जाने की स्मृति जगती है और तब वे आशांवित होने लगते है -

राम में जगी स्मृति, हुए सजग पा भाव-प्रभाव 

इस कविता में निराला सिर्फ बाहर ही नहीं लड़ते वरन् बाह्य स्तर पर वह बाहर की अनैतिकता, असत्य, अमर्यादा के खिलाफ लड़‌ते है तो आन्तरिक स्तर पर वे उसमें अंतर्निहित राम अंदर की कलुषता, असत्य, अपवित्रता आदि तत्त्वों से लड़ते है। इंद्रराज सिंह के अनुसारइसप्रकार की कविता उनके लिए संघर्ष का पर्याय है। कवि के लिए संघर्ष जीवन का सत्य     है।”[12]

इस तरह अपने रचनात्मक जीवन के संघर्षों का साक्षात्कार और अपनी प्रतिभा का पुनर्दर्शन इस कविता के अंदर प्रतिष्ठित मौलिक एवं नवीन शक्ति है जिसे निराला पा लेते हैं। तभी तो 'आत्म सम्भवा अभिव्याक्ति’  की खोज और उपलब्धि ही शक्तिपूजा का एकमात्र लक्ष्य है। इसलिए इस कविता में राम और निराला दोनों की शक्तिपूजा सार्थक होती दिखाई देती है और सार्थकता के इसी सोपान पर खड़े होकर देव राम, मानव राम बनते हैं एवं दिव्य गुणों और दिव्य क्षमताओं से परिपूर्ण नजर आते हैं। देव राम का संघर्ष कवि निराला का संघर्ष बन जाता है। तभी तो निराला की अद्‌भुत निरीक्षण शक्ति राम के मन के विभिन्न स्तरों पर होने वाली प्रतिक्रियाओं का संश्लिष्ट चित्रण खींच पाती है। चरम निराशा के क्षणों में अपने माता द्वारा 'राजीवनयन' कहे जाने की स्मृति राम को संभावनाओं से भर देती है और वे युद्ध में जीतने का संकल्प लेते हैं। शक्ति-साधना राम के अंतिम चरण पर पहुंचकर राम देवी शक्ति का वरदान प्राप्त नहीं करते वरन् लंबे समय तक आत्मानुसंधान और आत्म- निरीक्षण के पश्चात् अपनी ही अन्तरात्मा में निहित अपनी असीम क्षमता को पहचानकर उसे जाग्रत करते हैं और तभी राम से राम बनने की उनकी परिक्रमा संपूर्ण होती है। 'राम की शक्तिपूजा : विश्लेषणलेख में कहा गया है किइस प्रकार हम देखते हैं कि 'राम की शक्तिपूजामें निराला ने अपनी मौलिक क्षमता का समावेश किया है। इसमें कवि ने पौराणिक प्रसंग के द्वारा धर्म और अधर्म के शाश्वत संघर्ष का चित्रण आधुनिक परिवेश की परिस्थितियों से संबद्ध होकर किया है।”[13] 'राम की शक्तिपूजाकी विशेषता में शीर्षक लेख में बताया गया है किनिराला यदि कविता के कथानक की प्रकृति को आधुनिक परिवेश और अपने नवीन दृष्टिकोण के अनुसार नहीं बदलते तो यह केवल अनुकरण मात्र रह जाती। लेकिन उन्होंने अपनी मौलिकता का प्रमाण देने के लिए ही इस रामकथा के अंश में कई मौलिक प्रयोग किये जिससे यह रचना कालजयी सिद्ध      हुई।”[14]

अतः स्पष्ट है कि निराला ने अपनी मौलिकता की छाप रखते हुए राम कथा लेखन की परंपरा को नया आयाम दिया है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. सिंह दूधनाथ, निराला आत्महंता आस्था, लोकभारती, प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रकाशन वर्ष-2014, संस्करण-आठवा, पृष्ठ 103

2.  सिंह डॉ० इन्द्रराज, निराला काव्य के विविध आयाम, तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रकाशन वर्ष - 1997, संस्करण - प्रथम, पृ० 246

3. अरविंदाक्षन डॉ० ए, निराला एक पुनर्मूल्यांकन, आधार प्रकाशन, हरियाणा, प्रकाशन वर्ष-2006, संस्करण - प्रथम, पृ० 110

4. सिंह नामवर, छायावाद, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रकाशन वर्ष-2013, संस्करण - नौवां, पृ० 99

5. नवल नंदकिशोर, निराला काव्य की छवियां, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रकाशन वर्ष - 2012, संस्करण - प्रथम, पृष्ठ 91

6. चतुर्वेदी रामस्वरूप, प्रसाद निराला अज्ञेय, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रकाशन वर्ष - 2005, संस्करण - पंचम, पृ०14

7. खरे रेखा, निराला की कविताएँ और काव्यभाषा, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रकाशन वर्ष 1998, संस्करण- तृतीय, पृ० 116

8. नई कविता : निराला, अज्ञेय और मुक्तिबोधवाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रकाशन वर्ष-2007, संस्करण - द्वितीय, पृ० 46

9. भटनागर डॉ० रामरतन, निराला : नव मूल्यांकन, स्मृति प्रकाशन, प्रयाग, प्रकाशन वर्ष - 1973, संस्करण - प्रथम, पृष्ठ 13

10. मदान इन्द्रनाथ (संपादक), निराला, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रकाशन वर्ष - 2008, संस्करण चतुर्थ, पृ०13

11. शर्मा रामविलासनिराला , राधाकृष्ण प्रकाशन, प्रकाशन वर्ष - 2007, संस्करण - पांचवा, पृ० 147

12. सिंह डॉ० इन्द्रराज, छायावाद और उसके कवि, तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रकाशन वर्ष - 2012, संस्करण- द्वितीय, पृ० 120

13.  राम की शक्तिपूजा : विश्लेषण, sahityagan6.blogspot.com, 23rd May 2020

14.  राम की शक्तिपूजा की विशेषता, eshruti.wordpress.com, 31 जनवरी 2021