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बौद्ध कालीन दर्शन: एक अध्ययन
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Buddhist Philosophy: A Study | |||||||
Paper Id :
19016 Submission Date :
2024-06-08 Acceptance Date :
2024-06-20 Publication Date :
2024-06-23
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सारांश |
भारत की पावन धरा पर समय-समय पर अनेक धर्म, पंथ,सम्प्रदाय विकसित हुए हैं, जिन्होंने अपनी सौम्यता की महक से मानव के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। भारत
में दर्शन की एक लम्बी परम्परा है। यहाँ धर्म और दर्शन का गहरा संबंध हमेशा से रहा
है। भारतीय दर्शन परंपरा में अधिकांश सम्प्रदाय किसी न किसी धर्म या सम्प्रदाय से जुड़े रहे हैं। भारत में मानव जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए दर्शन
का सृजन हुआ हैं। मानव हेतु प्राचीन काल से वर्तमान तक की यात्रा में समस्याओं के स्वरूप तथा
व्यापकता में परिवर्तन हुआ है, प्राचीन
काल में जहाँ केवल भोजन का प्रबंधन और आत्म-रक्षा ही
प्रमुख समस्या थे, आज
विविध समस्याएँ सामाजिक, आर्थिक आदि विद्यमान है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | From time to time, many religions, sects, and communities have developed on the sacred land of India, which have paved the way for human welfare with the fragrance of their gentleness. India has a long tradition of philosophy. Here, religion and philosophy have always had a deep connection. In the Indian philosophy tradition, most of the sects have been associated with some religion or sect. Philosophy has been created in India to solve the problems of human life. In the journey from ancient times to the present, the nature and extent of problems have changed for mankind. In ancient times, only food management and self-defense were the major problems, today various problems such as social, economic, etc. exist. | ||||||
मुख्य शब्द | बौद्ध दर्शन, दर्शन सम्प्रदाय, भारतीय चिन्तन, आस्तिक या नास्तिक दर्शन, हिन्दू या अहिन्दू दर्शन। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Buddhist Philosophy, Philosophical Sects, Indian Thought, Theistic Or Atheistic Philosophy, Hindu Or Non-Hindu Philosophy. | ||||||
प्रस्तावना | मनुष्य ने जब अपने आप को दुःखों के चक्रव्यूह में घिरा पाया तब उसने पीड़ा और
क्लेश से मुक्ति पाने हेतु दर्शन को अपनाया है। भारतीय दर्शन की दृष्टि में अनेक
प्रश्न जैसे- मैं कौन है? यह संसार क्या है ? हम सब को उत्पन्न करने वाली वह
दिव्य शक्ति कौन है और कहाँ है? इन जिज्ञासाओं और प्रश्नों का उत्तर खोजने का कार्य ही अलग-अलग दार्शनिको तथा दर्शन सम्प्रदायों ने किया है। वह चाहे आस्तिक दर्शन हो या नास्तिक
दर्शन, हिन्दू दर्शन हो या अहिन्दू दर्शन । भारतीय चिन्तन के अतंर्गत अनेक दर्शन अपना महत्व रखते है। चिन्तन की इस सुदीर्घ यात्रा में बौद्ध दर्शन
का अपना विशेष महत्व है। छठी शताब्दी ई. पू. के आस-पास बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ । इस काल में, समाज में, कर्मकांड और वैरिक रूढियों का प्रचलन अत्यधिक था इसके माध्यम से शोषण आदि कुप्रथाओं का भी प्रचार हुआ ।इन कुप्रथाओं के विरोध हेतु इस काल में अनेक धार्मिक विचार उठ खड़े हुए। इस धार्मिक क्रांति में बौद्ध दर्शन का विचार सर्वाधिक प्रबल बनकर उभरा है। बौद्ध दर्शन की विचारधारा से अवगत होने के पूर्व दर्शन क्या
है? इसे जानना जरूरी है । ‘दर्शन’ शब्द ‘दृश’ धातु से बना है जिसका अर्थ है
जिसके द्वारा देखा जाय। “दृश्यते अनेन इति दर्शनम” अर्थात जिसके द्वारा देखा जाए
वह दर्शन है। यहाँ दर्शन से अभिप्राय सामान्य देखना नही होगा, वरन नेत्र जैसी किसी इन्द्रिय से परे होकर देखने से होता है। अतः दर्शन शास्त्र का सीधा सा अर्थ इस प्रकार होगा, जो जीवन और जगत के गूढ़ रहस्यों का वर्णन करे वह दर्शन शास्त्र
है। जीवन और जगत की समस्त समस्याओं और रहस्यों की व्याख्या दर्शनशास्त्र करता है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोध का उद्देश्य बौद्धकालीन दर्शन का चिंतन व अध्ययन
करना है। |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोधपत्र के लिए
विभिन्न पुस्तकों जैसे डॉ० राहुल राज की 'बौद्ध पर्यावरण एवं सामाजिक जीवन', आचार्य बलदेव उपाध्याय की 'चौखम्बा प्रकाशक, बौद्ध-दर्शन मीमांसा' परमानन्द सिंह कृत 'बौद्ध साहित्य में भारतीय समाज', तथा भगत सिंह उपाध्याय रचित 'बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन' आदि का अध्ययन किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
बुद्ध एक समाज सुधारक थे, उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त असमानता, भेदभाव शक्तियों का पुरजोर विरोध कर समतामूलक समाज की स्थापना पर बल दिया। महात्मा बुद्ध ने मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हुए बौद्ध दर्शन अर्थात बौद्ध धम्म की राह दिखलाई जो शील, करूणा, मैत्री के मार्ग पर चलकर वैश्विक मानवतावाद को मजबूत किया जा सके साथ ही गौतम बुद्ध ने स्वयं अपने आप को साधारण मानव ही रखा एवं समझा यह उनकी उच्च कोटि की महानता है। उनका मानना है कि अप्प दीपों भव अर्थात् अपना दीपक स्वयं बनों। वैदिक कर्मकाण्डों तथा अमानवीय व्यवहारों के विरुद्ध बौद्ध शिक्षा दर्शन का उद्भव हुआ जो न किसी वर्णव्यवस्था की तरह जटिल था और न ही किसी कठोर जीवन पद्धति व तपस्या पर आधारित था, इन सबके बीच महात्मा बुद्ध ने जिस मार्ग को अपनाया बौद्ध दर्शन के अनुसार इसे मध्यम मार्ग कहा जाता है। बौद्ध शिक्षा व्यवस्था ने मानवीय जीवन को प्रभावित किया है। किसी भी शिक्षा का आधार दर्शन होता है तथा दर्शन का व्यावहारिक पक्ष शिक्षा होता है, बौद्ध कालीन शिक्षा का आधार बौद्ध दर्शन है जो मानवतावाद के पथ पर चलकर सर्वजन हिताय की भावना का समर्थन करता है, महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य बतलाये-
अष्टांग मार्ग
बौद्ध दर्शन के सिद्धांत- क्षणिकवाद – तथागत बुद्ध के अनुसार प्रत्येक वस्तु किसी कारण से उत्पन्न होती है. कारण के समाप्त हो जाने पर वस्तु नया आकार ग्रहण कर लेती है. अर्थात् पौधे उगने पर बीज को नष्ट होना यही क्षणिकवाद, न वरवाद व तथागत के अनुसार बदलाव सृष्टि का नियम है, इससे परे कुछ भी नहीं है। अनात्मवाद - तथागत बुद्ध अनात्मवादी थे. उन्होंने आत्मा के विषय को स्वीकार नहीं किया है. वे अनात्म में विश्वास करते थे उन्होंने आत्मा जैसी किसी भी कल्पना का खारिज
किया है। तथागत के अनुसार जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता हैं जो केवल कल्पना है
वह सिद्ध नहीं किया जा सकता है। अनीश्वरवाद - तथागत बुद्ध के अनुसार संसार प्राकृतिक नियम से संचालित होता है, बुद्ध ने ईश्वर की सत्ता का निषेध किया है, तथागत के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि उत्पति और विनाश के
नियम से शासित है, सृष्टि परिवर्तनशील वा अनित्य है उनके मतानुसार सृष्टि की सम्पूर्ण कियाएं
मात्र कार्य-कारण की श्रृंखला है। प्रकृतिवाद - तथागत बुद्ध प्रकृतिवादी थे, बौद्ध दर्शन प्रकृतिवाद का समर्थन करता है। मानववाद : तथागत बुद्ध के ने मानवतावाद का प्रबल समर्थन किया है, सम्पूर्ण मानवता का उत्थान एवं कल्याण करना ही
नैतिकता एवं धर्म है। मानव शील गुणों को अपनाकर धर्म, लिंग, जाति, वर्ण
सम्प्रदाय आदि जैसी संकीर्णता से ऊपर उठकर मानव कल्याण ही जीवन का परम उद्देश्य होना चाहिए बुद्ध के मानवतावाद
में जीव जगत् एवं वनस्पति भी शामिल है। विज्ञानवाद : बौद्ध दर्शन विज्ञान के मार्ग पर चलने का पक्षधर है, बौद्ध दर्शन वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक है। यथार्थ वाद : बौद्ध दर्शन
यथार्थवाद में विश्वास करता है, तथागत बुद्ध के अनुसार यथार्थ ही सत्य है वही जीवन का पर्याय है। तार्किकता : बौद्ध दर्शन
तार्किकता का पक्षधर है, तथागत बुद्ध के मानव को तार्किकवादी
होना चाहिए उसे किसी भी तथ्य, कथन, विचार
को बिना विचारे स्वीकार नहीं करे उसे अपनी बौद्धिक तार्किकता, चिंतन एवं मनन के उपरांत अगर उपरोक्त तथ्य
विचार लोक हितैषी अर्थात् निज स्वार्थ से परे सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की तरफ हो
तो उसे अवश्य स्वीकार करे। |
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निष्कर्ष |
बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध दर्शन अपने विराट रूप में
भारत और विश्व में फैला हुआ है।
बुद्ध ने अपने ज्ञान से समस्त संसार के दुःखी जनता को दुःख से छुटकारा पाने का
रास्ता बताया। जनकल्याण ही उनका परम उद्देश्य था। बौद्ध दर्शन मानवीय सभ्यता से राह भटकते लोगों के लिए पथप्रदर्शक के रुप में साबित हुआ है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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