ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- IX , ISSUE- III June  - 2024
Anthology The Research

सूरदास वात्सल्य वर्णन के अद्भुत चित्रकार

Surdas A Wonderful Painter of Description of Love
Paper Id :  19020   Submission Date :  2024-06-13   Acceptance Date :  2024-06-21   Publication Date :  2024-06-25
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DOI:10.5281/zenodo.12650465
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रंजीत कुमार
सहायक प्राध्यापक
हिंदी विभाग
मधुपुर महाविद्यालय,
मधुपुर,झारखंड, भारत
सारांश

सूरदास हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन महाकवि थे, जिन्हें "वात्सल्य रस सम्राट" की उपाधि से भी जाना जाता है। उनकी रचनाओं में बालकृष्ण की लीलाओं का अद्भुत चित्रण मिलता है, जो वात्सल्य रस से परिपूर्ण है। वात्सल्य रस मनुष्य के हृदय में पनपने वाले मातृ-पितृ प्रेम, स्नेह, वात्सल्य और लाड़-प्यार को दर्शाता है। सूरदास जी ने इस रस को अपनी रचनाओं में इतनी कुशलता से उकेरा है कि पाठक कृष्ण के प्रति वात्सल्य भाव से भर उठते हैं। सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में वात्सल्य रस का अद्भुत चित्रण कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। उनके वात्सल्य वर्णन आज भी उतने ही प्रासंगिक और हृदयस्पर्शी हैं जितने कि सैकड़ों वर्षों पहले थे। सूरदास जी ने केवल श्रीकृष्ण के बाल रूप का ही वात्सल्य वर्णन नहीं किया, बल्कि गोपियों और अन्य पात्रों के वात्सल्य भावों को भी अपनी रचनाओं में उकेरा है। सूरदास जी की रचनाओं में न केवल वात्सल्य रस का, बल्कि भक्ति रस का भी अद्भुत चित्रण मिलता है। सूरदास जी हिंदी साहित्य के वात्सल्य रस सम्राट हैं और उनकी रचनाएं सदैव प्रासंगिक और हृदयस्पर्शी रहेंगी।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Surdas was a great poet of the Bhakti period of Hindi literature, who is also known by the title of "Vatsalya Rasa Samrat". His works contain a wonderful depiction of the leelas of Balkrishna, which is full of Vatsalya Rasa. Vatsalya Rasa reflects the maternal-paternal love, affection, love and pampering that flourishes in the heart of a human being. Surdas ji has carved this Rasa in his works so skillfully that the reader is filled with the feeling of love towards Krishna. Surdas ji has enriched Hindi literature by giving a wonderful depiction of Vatsalya Rasa in his works. His descriptions of love are as relevant and heart-touching today as they were hundreds of years ago. Surdas ji has not only described the love of the child form of Shri Krishna, but has also carved the love feelings of the gopis and other characters in his works. Surdas ji's works contain a wonderful depiction of not only Vatsalya Rasa, but also Bhakti Rasa. Surdas ji is the emperor of love in Hindi literature and his works will always remain relevant and heart-touching.
मुख्य शब्द सूरदास, वात्सल्य, साहित्य, भक्तिकालीन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Surdas, Love, Literature, Devotional Period.
प्रस्तावना

सूरदास ने कृष्ण की बाल लीलाओं का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। उनकी रचनाओं में कृष्ण के जन्म, उनके बचपन की शरारतें, माता यशोदा के प्रति उनका मोह, गोपियों के साथ उनकी रासलीला, और कंस वध जैसी घटनाओं का वर्णन मिलता है। सूरदास ने माता-पिता के प्रेम को भी बड़ी भावना के साथ चित्रित किया है। यशोदा के प्रति कृष्ण का प्रेम, नंद बाबा का वात्सल्य, और वसुदेव-देवकी का स्नेह उनकी रचनाओं में उभरकर आता है। सूरदास ने भाई-बहन के स्नेह का भी मार्मिक चित्रण किया है। बलराम और कृष्ण का स्नेह, राधा और कृष्ण का प्रेम, और गोपियों का कृष्ण के प्रति समर्पण उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है।

सूरदास ने अपने वात्सल्य वर्णन में अनेक विम्बों और उपमाओं का प्रयोग किया है, जो उनके भावों को और भी प्रभावशाली बनाते हैं। सूरदास की रचनाएं संगीतमय हैं, जिसके कारण वे सहज ही गाई जा सकती हैं और लोगों के मन को छू लेती हैं।

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य वात्सल्य रस सम्राट सूरदास की बालकृष्ण की लीलाओं का प्रासंगिक और हृदयस्पर्शी रचनाओं का अध्ययन करना है

साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोधपत्र के लिए विभिन्न पुस्तकों जैसे पवन के.वर्मा की बीइंग इंडियन: इनसाइड द रियल इंडियाडॉ. कुसुम डोबरियाल की 'भारतीय संस्कृतिसाहित्य एवं परम्पराएँतथा मंजरी उईल 'भारतीय संस्कृति पर विदेशी प्रभावआदि का अध्ययन किया गया है

मुख्य पाठ

सूरदास के वात्सल्य वर्णन का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनके बाद अनेक कवियों ने वात्सल्य रस पर रचनाएं कीं, जिनमें तुलसीदास, मीरा, रहीम, और भूषण प्रमुख हैं।

माता यशोदा, भगवान श्रीकृष्ण की पालक माता, वात्सल्य और ममता की अलौकिक मूर्ति हैं। उनका प्रेम केवल एक माँ का प्रेम नहीं था, बल्कि भक्ति, त्याग और समर्पण का अनूठा संगम था। यशोदा जी ने श्रीकृष्ण के पालन-पोषण में अपना तन, मन और धन सब कुछ समर्पित कर दिया।

यशोदा जी का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम असीम और अपार था। उन्हें अपने पुत्र से कहीं अधिक प्रिय था। वे श्रीकृष्ण की हर लीला में उनका साथ देती थीं, चाहे वह मक्खन चोरी हो या राक्षसों का वध। यशोदा जी श्रीकृष्ण को डांट भी प्यार से ही देती थीं।

यशोदा जी ने श्रीकृष्ण के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। उन्होंने राजसी जीवन छोड़कर वृंदावन में गरीबों की तरह जीवन व्यतीत किया। जब कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए राक्षसों को भेजा, तब यशोदा जी ने उनसे अपने पुत्र की रक्षा के लिए प्रार्थना की।

माता यशोदा की वात्सल्य सदैव स्मरणीय रहेगी। उनका प्रेम मातृत्व का आदर्श स्वरूप है। यशोदा जी हमें सिखाती हैं कि मातृत्व केवल जन्म देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह त्याग, समर्पण, प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।

हिंदू धर्म में, भगवान कृष्ण के बाल रूप को बालकृष्ण के नाम से जाना जाता है। उनका बचपन शरारतों और लीलाओं से भरा था, जो आज भी लोकप्रिय कथाओं और भजनों का विषय हैं। इन शरारतों में बालकृष्ण की चतुराई, बुद्धि, और दिव्यता का अनोखा मिश्रण दिखाई देता है। बालकृष्ण की शरारतों की कहानियाँ उनके बचपन के गोकुल और वृन्दावन से जुड़ी हुई हैं। माखन चोरी उनकी सबसे प्रसिद्ध शरारतों में से एक है। वह अपने साथियों के साथ छिप-छिपकर माखन चुराते और यशोदा मैया को छकाते। माखन चुराने के पीछे उनकी मासूम इच्छा और माता यशोदा का अपार प्रेम था।

बालकृष्ण की शरारतें सिर्फ खाने तक सीमित नहीं थीं। वह गायों के दूध के बर्तन पलट देते, गोपियों के कपड़े चुराकर पेड़ों पर लटका देते, और कभी-कभी कलिय दमन जैसे महान कार्यों को भी अंजाम देते। उनकी हर शरारत में एक सीख या संदेश छिपा होता था। बालकृष्ण की शरारतों का एक खास पहलू उनका मित्रता और प्रेम का भाव है। वह अपने सभी साथियों, चाहे वह ग्वालबाल हों या गोपियां, के साथ समान रूप से हंसी-खेलते थे। उनकी शरारतें कभी किसी को दुख नहीं देती थीं, बल्कि खुशी और हंसी का वातावरण बनाती थीं।

बालकृष्ण की शरारतों को सिर्फ मनोरंजन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वे उनके दिव्य स्वरूप और अलौकिक शक्तियों का भी परिचय देती हैं। माखन चोरी के दौरान, वह अपने मुंह में पूरे ब्रह्मांड को समेट लेते थे और यशोदा मैया को उनके सारे रूप दिखाते थे। निष्कर्ष रूप में, बालकृष्ण की शरारतें हिंदू धर्म और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। वे न केवल मनोरंजक कथाएं हैं, बल्कि उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को भी दर्शाती हैं। उनकी चतुराई, बुद्धि, दिव्यता, मित्रता, और प्रेम का भाव इन शरारतों के माध्यम से प्रकट होता है, जिससे बालकृष्ण का बाल रूप हमेशा अविस्मरणीय बना रहता है।

सूरदास वात्सल्य वर्णन के अद्भुत चित्रकार

हिंदू धर्मग्रंथों में कृष्ण का चरित्र अनेक रूपों में वर्णित है। वह एक शक्तिशाली अवतार, धर्म के रक्षक और गीता के ज्ञानदाता के रूप में विख्यात हैं। परंतु उनके व्यक्तित्व का एक अत्यंत मार्मिक और मनमोहक पहलू है उनका "वात्सल्य"। कृष्ण का वात्सल्य माता यशोदा के प्रति उनकी बाल लीलाओं और शैशवावस्था से जुड़ा है, जो भारतीय साहित्य और कला में अत्यंत सुंदरता से चित्रित किया गया है।

बाल कृष्ण के रूप में कृष्ण का वात्सल्य अत्यंत सहज और मासूम है। माखन चोरी, बाल सखाओं के साथ शरारत, यशोदा की डाँट से बचने के लिए छिपना - ये सभी कृष्ण की बाल लीलाओं का हिस्सा हैं। ये लीलाएँ माता यशोदा के वात्सल्य को उजागर करती हैं। यशोदा का कृष्ण को डाँटना, उनका माखन छीनना, उन्हें दंड देने का नाटक करना - ये सब मातृत्व का एक अनोखा रूप है, जो अनुशासन के साथ लाड़-प्यार का मिश्रण है।

सूरदास जैसे भक्त कवियों ने कृष्ण के वात्सल्य को अत्यंत मार्मिकता से वर्णित किया है। "यशोदा मैया से रोचे कृष्ण कन्हैया" में कृष्ण का माखन चोरी के बाद पकड़े जाने पर माता के सामने सफाई देना, "नंद के लाल" में उनका हठ करना और यशोदा का उन्हें मक्खन लगाकर खिलाना, ये सभी दृश्य कृष्ण के वात्सल्य को जीवंत बनाते हैं। कृष्ण का वात्सल्य मात्र माता यशोदा तक ही सीमित नहीं है। वह अपने बड़े भाई बलराम के साथ भी एक अद्भुत बंधन साझा करते हैं। उनकी शरारतें और नोक-झोंक भाईचारे के अनोखे रूप को दर्शाती हैं।

कृष्ण का वात्सल्य हमें यह संदेश देता है कि जीवन में मनुष्यत्व का सार प्रेम और स्नेह में निहित है। भले ही कृष्ण एक अवतार थे, परंतु उनकी बाल लीलाएँ और माता-प्रेम उन्हें हमारे लिए और भी अधिक सुलभ और मानवीय बनाते हैं। कृष्ण का वात्सल्य हमें याद दिलाता है कि जीवन की कठोरताओं के बीच भी मासूमियत और प्रेम का एक स्थान होना चाहिए।

उनकी रचनाओं में वात्सल्य रस की कुछ विशेषताएं:

बालकृष्ण की मनमोहक छवि: सूरदास जी ने बालकृष्ण की शिशु लीलाओं का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। उनकी मधुर मुस्कान, चंचलता, शरारतें और निर्दोषता पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

माता-पिता का प्रेम: सूरदास जी ने माता यशोदा और नंद बाबा के वात्सल्य को भी बखूबी दर्शाया है। उनकी कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम, चिंता और स्नेह पाठकों को भावविभोर कर देते हैं।

सरल भाषा और भावपूर्ण अभिव्यक्ति: सूरदास जी की भाषा सरल और सहज है, जो उनके भावों को सीधे हृदय तक पहुंचाती है। उनकी रचनाओं में वात्सल्य रस इतनी तीव्रता से उभरता है कि पाठक स्वयं को कृष्ण के प्रति वात्सल्य भाव से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।

विभिन्न रसों का समावेश: वात्सल्य रस के अतिरिक्त, सूरदास जी की रचनाओं में हास्य, श्रृंगार, करुणा, भक्ति आदि रसों का भी समावेश मिलता है, जो उनकी रचनाओं को और भी प्रभावशाली बनाते हैं।




उदाहरण:

"कान्हा मुख चूमत यशोदा, मोहन मुख मधु झरत।"

"जसोदा रानी झुलावत लाल, मधुर मधुर मुरली बजावत।"

"मांय को मारो लाल बड़ो चंचल, लहँगी लपेटि डोरी खींचै।"

उनके वात्सल्य वर्णन की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

मधुरता और सरलता: सूरदास जी की भाषा सरल, मधुर और भावपूर्ण है। उनके शब्द सहज ही हृदय को स्पर्श कर जाते हैं।

बाल-मनोविज्ञान का चित्रण: सूरदास जी ने बाल-मनोविज्ञान का अद्भुत चित्रण किया है। वे बालक के हर भाव, हर क्रिया, हर क्रीड़ा को बारीकी से समझते थे और उसे अपनी रचनाओं में उकेरते थे।

विभिन्न रसों का समावेश: वात्सल्य रस के साथ-साथ सूरदास जी ने अन्य रसों का भी समावेश अपनी रचनाओं में किया है। हास्य, करुणा, श्रृंगार आदि रसों का मिश्रण उनके वात्सल्य वर्णन को और भी प्रभावशाली बनाता है।

पात्रों का चरित्र चित्रण: सूरदास जी ने श्रीकृष्ण, यशोदा, नंद, गोपियों आदि पात्रों का चरित्र चित्रण अत्यंत प्रभावशाली ढंग से किया है।

भक्ति भावना: सूरदास जी की रचनाओं में भक्ति भावना भी प्रबलता से व्यक्त होती है।

उदाहरण:

i. "कान्हा मुख चूमत यशोदा, ललित ललायित ललित ललायित।" इस पंक्ति में यशोदा जी का श्रीकृष्ण के प्रति वात्सल्य प्रेम स्पष्ट रूप से उभर कर आता है।

ii.  "झुंझुरिया बाजत कन्हैया, नाचे धोबी की गली।" इस पंक्ति में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मनमोहक चित्रण किया गया है।

iii.  "रोवत कन्हैया माँ को बुलावे, नंद घर के द्वार।" इस पंक्ति में श्रीकृष्ण के मातृ स्नेह की लालसा को बड़ी ही मार्मिकता से व्यक्त किया गया है।

सूरदास के वात्सल्य वर्णन को हिंदी साहित्य में अद्वितीय माना जाता है। उनकी रचनाओं में वात्सल्य भावना का इतना मार्मिक और सच्चा चित्रण मिलता है कि वे आज भी पाठकों के ह्रदय को छू लेती हैं।

यशोदा जी श्रीकृष्ण के प्रति केवल ममता ही नहीं, बल्कि अटूट भक्ति और आस्था भी रखती थीं। वे श्रीकृष्ण को भगवान मानती थीं और उनकी हर लीला में भगवान का दर्शन करती थीं।

मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ।

मोसौं कहत मोल कौ लीनो तोहि जसुमति कब जायौ।।

कहा करौं इहि रिस के मारैं खेलन हौं नहिं जात।

पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरौ तात।।

गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।

चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हँसत सबै मुसकात।।

तू मोही कौं मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझै।

मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।

तब माता यशोदा को गाय की सौगन्ध खाकर यह कहना पड़ता है कि -

सुनहु कान्ह, बलभद्र चबाई जनमत ही कौ धूत।

सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत।।

इन पंक्तियों में बालोचित क्रोध तथा मातृ-हृदय का मनोज्ञ चित्रण किया गया है। इतनी स्वाभाविकता अन्यत्र दुर्लभ है।

कृष्ण की दधि-माखन-चोरी का प्रसंग अत्यन्त मनोरम है। एक बार ऐसा होता है कि माखन-चोरी की शिकायत यशोदा के पास दर्ज हो जाती है। वे कृष्ण को पकड़कर दण्ड देना चाहती है। हाथ में साँटी है। इस पर श्रीकृष्ण माता से कहते हैं-

मैया! मैं नहिं माखन खायौ।

ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायौ।।

देखि तुहीं सींके पर भाजन ऊँचे धरि लटकायौ।

तुहीं निरखि नान्हें कर अपने मैं कैसे करि पायौ।।

मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायौ।

डारि साँटि मुसकाइ जसोदा सुत कौ कंठ लगायौ।।

ऐसी कौन माता है जो शिशु की इस अबोध चतुरता पर न्यौछावर न हो जाये। यशोदा साँटी डाल देती हैं, कृष्ण को गले लगा लेती हैं।

माता यशोदा की वात्सल्य की विशेषताएं

i. अनन्य प्रेम: यशोदा जी का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम अनन्य और अद्वितीय था।

ii.  त्याग और समर्पण: यशोदा जी ने श्रीकृष्ण के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।

iii. भक्ति और आस्था: यशोदा जी श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति और आस्था रखती थीं।

iv. संरक्षण और पालन-पोषण: यशोदा जी ने श्रीकृष्ण का पालन-पोषण बड़े प्यार और स्नेह से किया।

v.  क्षमा और दया: यशोदा जी क्षमाशील और दयालु थीं।

निष्कर्ष

सूरदास जी की रचनाएं वात्सल्य रस का अद्भुत उदाहरण हैं। उन्होंने बालकृष्ण की लीलाओं का इतना सुंदर चित्रण किया है कि पाठक स्वयं को उनसे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। उनकी रचनाओं में मातृ-पिता का प्रेम, स्नेह और वात्सल्य भाव इतनी तीव्रता से उभरता है कि वे हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गयी हैं। सूरदास हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन महाकवियों में अग्रणी हैं। उन्हें "वात्सल्य रस सम्राट" की उपाधि से भी जाना जाता है। उनकी रचनाओं में श्रीकृष्ण के बाल रूप का वात्सल्य भावना से परिपूर्ण चित्रण मिलता है। वात्सल्य रस का अर्थ है माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति प्रेम। सूरदास जी ने इस रस को अपनी रचनाओं में इतनी कुशलता से उकेरा है कि पाठक स्वयं को उसमें डूबा हुआ महसूस करते हैं।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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  6. भारतीय संस्कृतिसाहित्य एवं परम्पराएँ / डॉ. कुसुम डोबरियाल (ISBN: 9789394920378) – राजमंगल प्रकाशन - 2022