P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- IX , ISSUE- IV July  - 2024
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation

बांसवाड़ा जिले में जनसंख्या वितरण एवं वृद्धि का भौगोलिक अध्ययन

Geographical Study of Population Distribution and Growth in Banswara District
Paper Id :  19129   Submission Date :  2024-07-01   Acceptance Date :  2024-07-22   Publication Date :  2024-07-25
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DOI:10.5281/zenodo.13626627
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धर्मेन्द्र पाटीदार
सहायक आचार्य
भूगोल विभाग
राजकीय महाविद्यालय, सागवाड़ा
डूँगरपुर,राजस्थान, भारत
सारांश
जनसंख्या किसी क्षेत्र के विकास का केन्द्र बिन्दु मानी जाती है, जिसकी धुरी में अन्य सभी क्षेत्रीय विकास की गतिविधियाँ सम्पन्न होती है। किसी क्षेत्र की उन्नति वहाँ रहने वाली जनसंख्या के वितरण, उसके घनत्व, मानव का स्वभाव, उनकी कार्यक्षमता आदि पर निर्भर करती है। विश्व में दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देश एक ओर अधिक जनसंख्या घनत्व को दर्शाते है, वही ध्रुवीय, पर्वतीय एवं मरूस्थलीय क्षेत्र विरल जनसंख्या को। अतः जनसंख्या का अध्ययन किसी भी शोध कार्य को विविध आयामों में परखने के लिए आवश्यक माना जाता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Population is considered to be the centre of development of any region, around which all other regional development activities are carried out. The progress of any region depends on the distribution of the population living there, its density, the nature of humans, their efficiency etc. In the world, the countries of South-East Asia show high population density on one hand, while the polar, mountainous and desert regions show sparse population. Hence, the study of population is considered essential to evaluate any research work in various dimensions.
मुख्य शब्द जनसंख्या वृद्धि, वितरण, लिंगानुपात, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Population Growth, Distribution, Sex Ratio, Scheduled Castes and Scheduled Tribes.
प्रस्तावना
भौगोलिक अध्ययनों में मानव संसाधन विकास को सामाजिक भूगोल का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। जनसंख्या से सम्बन्धित आंकड़ों के ज्ञान से राज्य की जनशक्ति का अनुमान लगाया जाता है। किसी भी क्षेत्र के विकास के साधनों में जनसंख्या का अत्यधिक महत्व होता है। जनसंख्या का  अध्ययन मुख्यतः मानव भूगोल में किया जाता है। प्रारंभ में जनसंख्या सम्बन्धी अध्ययन किसी क्षेत्र की जनगणना तक ही सीमित था किन्तु वर्तमान में जनसंख्या का अध्ययन सांख्यिकीय एवं गणितीय विश्लेषणों द्वारा किया जाता है। जनसंख्या का विस्तृत एवं वैज्ञानिक अध्ययन इस शताब्दी से ही प्रारम्भ हुआ है। इसी समय से विश्व में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से होने लगी है, जिससे सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विविधताएं विकसित हुई है। किसी भी देश की जनसंख्या में वृद्धि का प्रभाव वहां की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। बांसवाड़ा जिला भारत की प्राचीन रियासतों में से एक रहा है। साथ ही यह आदिवासी बाहुल्य जिला होने से यहां की जनसंख्या का विस्तृत एवं विविध दृष्टिकोणों से अध्ययन प्रस्तुत शोधपत्र में किया गया है।
दक्षिणी राजस्थान के वागड़ प्रदेश का बाँसवाड़ा जिला भौगोलिक दृष्टि से 23°11‘ से 23°56‘ उत्तरी अक्षांश एवं 73°58‘ से 74°47‘ पूर्वी देशान्तर के मध्य अवस्थित है। बाँसवाड़ा जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 4508 वर्ग किलोमीटर है। वागड़ प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है अतः यहाॅ की आजीविका कृषि एवं अन्य व्यवसायों के साथ वन एवं वनोत्पाद तथा खनन पर भी निर्भर हैै। प्रदेश में कृषि केवल घाटियों, मैदानी क्षेत्रों एवं पहाड़ी ढ़ालों पर ही की जाती है। इसलिए खेतों का औसत आकार बहुत ही छोटा दिखाई देता है। कृषि यहाॅ जीवन निर्वाह तक ही सीमित है।
अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोधपत्र में निम्नांकित उद्देश्यों को सम्मिलित किया गया है -

  1. बाँसवाड़ा जिले में जनसंख्या वितरण प्रतिरूप की तहसीलवार व्याख्या करना।
  2. बाँसवाड़ा जिले में जनसंख्या वृद्धि, घनत्व आदि में सहसम्बन्ध ज्ञात करना।
  3. बाँसवाड़ा जिले की ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या के विकास एवं संरचना का भौगोलिक अध्ययन प्रस्तुत करना।
साहित्यावलोकन
जनसंख्या संरचना सम्बन्धी अध्ययन अनेक विद्वानों ने अलग-अलग दृष्टिकोणों से किये है। माना जाता है कि दुनिया में जनसंख्या पर सर्वप्रथम कार्य अरस्तु एवं प्लेटों नामक विद्वानों ने जनसंख्या पर कार्य प्रारम्भ किये। महत्वपूर्ण बात यह है कि माल्थस महोदय ने अपनी जनसंख्या सम्बन्धी विचारधारा से लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। इसी प्रकार विभिन्न भूगोलवेत्ताओं, समाजशास्त्रियों, नियोजनकर्ताओं ने भी विभिन्न दृष्टिकोणों से जनसंख्या संरचना का अध्ययन किया है।
जनांकिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1662 में प्रसिद्ध लेख 'Nature And Political Obsenction Made Upon The Life for Mortality' के प्रकाशन से प्रारम्भ हुआ। जनसंख्या एवं संसाधनों के अन्तर्सम्बन्धों का वैज्ञानिक विवेचन सबसे पहले राॅबर्ट माल्थस ने अपने निबन्ध 'Principle for Population' में किया। उन्होने इसमें बताया कि जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी में बढती है जबकी खाद्य सामग्री की वृद्धि समान्तर श्रेणी में बढ़ती है।
मानव तथा प्रकृति के सम्बन्धों को डेविस (1948) ने अपनी पुस्तक 'Man And Earth' में स्पष्ट किया है। सन् 1953 में ट्रिवार्था ने अपने शोध पत्र में विश्व की जनसंख्या के प्रादेशिक अन्तर का अघ्ययन किया तथा बताया कि जनसंख्या भौगोलिक अध्ययन का आधार स्तम्भ है, जिसके चारों ओर सभी तथ्य पाये जाते है। ट्रिवार्था के साथ जेलेस्की ने अफ्रीका एवं बेल्जियम की जनसंख्या के आकार, परिवर्तन, प्रादेशिक अन्तर तथा वहाँ की जनसंख्या की भावी प्रवृत्तियों का विवेचन किया।
रेमर (1952) ने बढती जनसंख्या एवं संसाधन का अध्ययन किया। पी. जाॅर्ज तथा जेम्स (1954) ने भी जनसंख्या पर कार्य किया। गार्नियर ने जनसंख्या के विकास, परिवर्तन तथा सांख्यिकीय आंकडो की प्राप्ति में कठिनाई तथा तथ्यों की अनिश्चितता आदि का वर्णन अपनी पुस्तक 'Geography for Population' में किया।
मेहता बी.सी. (1978) ने 'Regional Population Growth' में राजस्थान की जनसंख्या का अध्ययन किया। चैहान टी.एस. (1981) ने ग्रामीण जनसंख्या तथा शुष्क वातावरण के सम्बन्धों को जैसलमेर के विशेष संदर्भ मे स्पष्ट किया।
डाॅ रामदेव त्रिपाठी (2023) ने अपनी पुस्तक ‘‘जनसंख्या भूगोल‘‘ में जनसंख्या वृद्धि, वितरण, लिंगानुपात आदि को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण भौगोलिक कारकों पर प्रकाश डाला है।
न्यादर्ष
बाँसवाड़ा जिले की समंक पुस्तिका ‘जिला सांख्यिकी रूपरेखा बाँसवाड़ा‘ के विभिन्न संस्करणों से जनसंख्या सम्बन्धित आवश्यक आंकड़े एकत्रित किए गए। इन द्वितीयक अंकडों में स्त्री-पुरूष जनसंख्या, ग्रामीण-नगरीय जनसंख्या एवं इनकी वृद्धि, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या का विश्लेषण  दर्शाया गया है।
विश्लेषण

जिला जनगणना प्रतिवेदन 2011, बाँसवाड़ा से प्राप्त जनसंख्या वृद्धि दर को सारणी 1 एवं ग्राफ 1 में प्रदर्शित किया गया है। वर्ष 1931 से 2011 तक जनसंख्या वृद्धि के समंकों पर दृष्टि डालंे तो  बाँसवाड़ा जिले में वृद्धि अधिक आंकी गई है। बाँसवाड़ा जिले में 1961 से 1971 के दशक की वृद्धि 37.74 प्रतिशत थी जो सर्वाधिक थी जबकि 1931 से 1941 की वृद्धि 15.05 प्रतिशत थी जो सबसे कम आंकी गई।



सारणी 2 में प्रदर्शित जनसंख्या वितरण की स्थिति देखें तो बाँसवाड़ा जिले में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की संख्या से कुछ ही कम है। यहाँ नगरों की अपेक्षा गावों में जनसंख्या का निवास अधिक है। जिले की पाॅचों तहसीलों में 2011 की जनसंख्या की स्थिति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जिले में स्त्रियों की पर्याप्त संख्या है एवं ग्रामीण जनसंख्या भी काफी अधिक है। तहसीलवार उपर्युक्त स्थिति को भी सारणी से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।


सारणी 3 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अनुसार जनसंख्या का वितरण प्रदर्शित किया गया है। बाँसवाड़ा जिले में जनजाति जनसंख्या का बाहुल्य देखने को मिलता है। जिले की पाॅचों तहसीलों में भी वितरण ऐसा ही देखने को मिलता है। वर्ष 2001 की तहसीलवार जनसंख्या में भी अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत काफी अधिक है। कुल मिलाकर यहां जनजाति जनसंख्या अधिक निवास करती है। तहसीलवार उपरोक्त स्थिति को सारणी से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।


लिंगानुपात से आशय प्रति हजार पुरूषो पर स्त्रियों की संख्या से होता है। यद्यपि वागड़ प्रदेश सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है फिर भी यहाँ के सामाजिक रीति रिवाज एवं परम्पराएँ आज भी मौजूद है। आधुनिक चिकित्सकीय सुविधाओं का अभाव होते हुए भी यहाँ स्त्रियों की पर्याप्त संख्या विद्यमान है। यदि राज्य स्तर पर तुलना करे तो वागड़ प्रदेश के दोनों ही जिले लिंगानुपात की दृष्टि से सर्वोच्च स्थान रखते है। बाँसवाड़ा जिले के ग्रामीण-नगरीय एवं कुल लिंगानुपात का तुलनात्मक विश्लेषण सारणी 3 से स्पष्ट दिखाई पड़ता है।

इस प्रदेश का सम्पूर्ण धरातल उबड़-खाबड़ एवं अरावली की अवशेष श्रेणियों से बना होने के कारण प्रदेश का जनांकिकीय विकास भी कम हुआ है। वागड़ प्रदेश का जनघनत्व अर्थात् प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जनसंख्या के निवास को देखें तो बहुत अधिक सघन बसे क्षेत्र कम ही दिखाई देते है। केवल बाँसवाड़ा नगर तथा जिले के तहसील मुख्यालय को छोड़ दे तो शेष स्थानों पर जनघनत्व कम ही है। अतः तुलनात्मक अध्ययन हेतु बाँसवाड़ा जिले का ग्रामीण-नगरीय घनत्व भी तहसीलवार सारणी में दर्शाया गया है।

बाँसवाड़ा जिले का घनत्व 1991 में 229 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था जो बढ़कर 2001 में 298 व्यक्ति एवं 2011 में 397 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर हो गया। तुलनात्मक रूप से देखें तो क्षेत्रफल अधिक होते हुए भी जनसंख्या अधिक होने से बाँसवाड़ा जिले का घनत्व अधिक है। वर्ष 2001 एवं 2011 में ग्रामीण एवं नगरीय जनघनत्व दोनों ही अधिक है।

सारणी 4 में लिंगानुपात पर दृष्टि डाले तो पाएंगें कि वर्ष 1991 एवं 2001 में बाँसवाड़ा जिले का लिंगानुपात राज्य के अन्य जिलों की तुलना में है। ग्रामीण- नगरीय लिंगानुपात की स्थिति देखें तो शहरी क्षेत्रों की तुलना में जिले में ग्रामीण लिंगानुपात अधिक दिखाई पड़ता है। जिले में तहसीलवार लिंगानुपात में भी इसी प्रकार की प्रवृति दिखाई पड़ती है।


निष्कर्ष
अन्त में कहा जा सकता है कि बाँसवाड़ा जिला विकास की दृष्टि से राज्य के अन्य जिलों की अपेक्षा पिछडा हुआ जिला है। जिले के भौगोलिक स्वरूप तथा जनसंख्या वितरण को आधार मानकर जिले के भावी स्वरूप के बारे में सरकार को अभी से विचार करना चाहिए ताकि भविष्य में जिले का सन्तुलित विकास किया जा सके। बाँसवाड़ा जिले के विकास के लिये सरकार को विभिन्न योजनाएं बनानी चाहिये तथा इन योजनाओं को सम्पूर्ण जिले में सुचारू रूप से लागु किया जाना चाहिये। यहां के निवासियों को भी इसमें अपना सम्पूर्ण योगदान देना चाहिये। साक्षरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, बेरोजगारी, चिकित्सा, जनसंख्या वृद्धि आदि की स्थिति में सुधार लाना आवश्यक है ताकि बाँसवाड़ा जिले का सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास हो सके।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. Chandana, R.C. (1979), “India’s Population Policy” Hongkong, vol.7, No.4
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  3. Ghosal, G.S. (1967),”Regional Aspects Of Rural Literacy India”, Transactions Of Indian Council Of Geographer, Vol.4
  4. Gibbs (1963), ”The Evaluation Population Concentration”, Economic Geography, Vol.39, Page 119.
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  7. Mehta, B.C. (1978), “ Regional Population Growth”, Research book , Jaipur. 
  8. त्रिपाठी, आर. (2023), ‘‘जनसंख्या भूगोल‘‘ , वसुन्धरा प्रकाशन गोरखपुर।