ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- IX , ISSUE- V August  - 2024
Anthology The Research

भारत-इजरायल सम्बन्ध (ऐतिहासिक एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य)

India-Israel Relations (Historical and Current Perspective)
Paper Id :  19223   Submission Date :  2024-08-05   Acceptance Date :  2024-08-21   Publication Date :  2024-08-25
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DOI:10.5281/zenodo.13759867
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विजय लक्ष्मी
सह आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
गौरी देवी राजकीय महिला महाविद्यालय
अलवर,राजस्थान, भारत
सारांश
पश्चिम एशिया का विश्व राजनीति और इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। तीन महाद्वीपों (एशिया, अफ्रीका और यूरोप) एवं तीन सागरों (अरब सागर भूमध्य सागर और लाल सागर) से जुड़ा हुआ यह क्षेत्र भू-सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल से ही भारत का इस क्षेत्र से व्यापक संपर्क रहा है। इजरायल पश्चिम एशिया में अवस्थित महत्वपूर्ण देश है। भारत के इजरायल के साथ सम्बन्ध उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। भारत ने वर्ष 1950 में इजरायल को आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी। फिलिस्तीन के लिए भारत के दृढ़ समर्थन के बावजूद इजरायल से सम्बन्ध बिना दुनिया को दिखाए बढ़ते गये। 1992 तक भारत तथा इजरायल के मध्य किसी प्रकार के सम्बन्ध नहीं रहे। इसके मुख्यतः दो कारण थे- पहला, भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो की पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था इसलिए दूसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इजरायल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण भारत फिलिस्तीन की स्वतन्त्रता का समर्थक रहा। दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध 29 जनवरी, 1992 को स्थापित हुए। प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में 1992 में भारत ने इजरायल से सम्बन्ध जोड़े। भारत ने तेल अवीव में अपना दूतावास खोला। वर्तमान में भारत इजरायल के साथ सम्बन्ध बनाए रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद West Asia has had a significant impact on world politics and history. This region, connected to three continents (Asia, Africa and Europe) and three seas (Arabian Sea, Mediterranean Sea and Red Sea), is very important from the geostrategic point of view. India has had extensive contact with this region since ancient times. Israel is an important country located in West Asia. India's relations with Israel have been full of ups and downs. India officially recognised Israel in the year 1950. Despite India's strong support for Palestine, relations with Israel grew without showing it to the world. Till 1992, there were no relations between India and Israel. There were mainly two reasons for this - first, India was a non-aligned nation which was a supporter of the former Soviet Union, so it did not recognise Israel like other non-aligned nations. The second main reason was that India was a supporter of Palestine's independence. Full diplomatic relations between the two countries were established on January 29, 1992. India established relations with Israel in 1992 under the leadership of Prime Minister PV Narasimha Rao. India opened its embassy in Tel Aviv. Currently, India is moving towards achieving its national interests by maintaining relations with Israel. In the present research, a historical and analytical study of India-Israel relations has been done. The presented research is based on secondary facts collected from various reference books, articles, magazines, newspapers and internet etc.
मुख्य शब्द राजनयिक सम्बन्ध, राष्ट्रीय हित, रक्षा सम्बन्ध, भारत-इजरायल द्विपक्षीय सम्बन्ध, सहयोग क्षेत्र।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Diplomatic Relations, National Interest, Defense Relations, India-Israel Bilateral Relations, Areas Of Cooperation.
प्रस्तावना
भारत इजरायल के मध्य संपर्क हजारों साल पुराने रहे हैं। आज जहाँ इजरायल है, वह क्षेत्र यूरोप की जीवन रेखा कही जाती है। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताएँ (मिस्र की सभ्यता और मेसोपोटामिया की सभ्यता) भारत की सिंधु घाटी सभ्यता की समकालीन थी। प्राचीन समय से ही भारत का इस क्षेत्र से व्यापक संपर्क रहा है।
औपनिवेशिक काल में भारत के राष्ट्रवादी और यहूदीवादी संगठन एवं विचारक एक दूसरे के विरोधी थे और एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न विचार रखते थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस साम्राज्यवाद और पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों का विरोध करती थी वही यहूदी कांग्रेस अपनी अस्तित्व के लिए पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों पर आश्रित थी।
स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी ने धर्म के आधार पर दो राष्ट्रों के विचार को अस्वीकार कर दिया था। यद्यपि उनके मन में यहूदियों के प्रति सहानुभूति थी, लेकिन दोनों का विचार था कि धार्मिक विशिष्टता पर आधारित कोई भी राज्य नैतिक और राजनीतिक आधार पर स्थापित नहीं किया जा सकता। धर्म के आधार पर भारतीय विभाजन के अनुरूप ही उन्होंने फिलिस्तीन के विभाजन का विरोध किया। फिलिस्तीन के सम्बन्ध में भारत की स्थिति अरब राष्ट्रों, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और संयुक्त राष्ट्र में आम सहमति से भी निर्देशित थी।
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोध के अंतर्गत भारत इजरायल सम्बन्धों का ऐतिहासिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है।
साहित्यावलोकन
प्रस्तुत शोध विभिन्न संदर्भ पुस्तकों, लेखों, पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्र एवं इंटरनेट आदि से एकत्र किए गए द्वितीयक तथ्यों पर आधारित है।
मुख्य पाठ
भारत 1948 से 1962 तक इजरायल के उग्र यहूदीवाद एवं फिलिस्तीनी नागरिकों के मानवाधिकारों के कारण इजरायल से पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करने से बचता रहा। भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक सम्बन्धों को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे। उनका मानना था कि इससे अरब राष्ट्रों के साथ सम्बन्ध खराब होंगे। भारत के राष्ट्रीय हित अरब राष्ट्रों के साथ जुड़े हुए थे इसलिए इस काल में भारत ने अरब राष्ट्रों की नीति का अनुसरण किया। 1962 में भारत चीन युद्ध के समय अरब राष्ट्र भारत की मदद के लिए आगे नहीं आए जबकि इस युद्ध में अमेरिका के साथ इजरायल ने भारत को सैन्य तकनीक में सहयोग किया।
इजरायल नीति के सम्बन्ध में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल (1964 से 1966) में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया 1965 के भारत-पाक युद्ध में अरब राष्ट्रों के पाकिस्तान का पक्ष लेने और इजरायल द्वारा भारत के व्यापक सैन्य सहयोग के बाद भी भारतीय नेतृत्व इजरायल विरोधी एवं अरब समर्थक बना रहा।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1966 से 1977 एवं 1980 से 1984 तक) ने इजरायल के सम्बन्ध में भारत की परंपरागत नीति का समर्थन किया। सोवियत संघ की तरफ झुकाव, अरब देशों के साथ आर्थिक सम्बन्ध एवं कच्चे तेल पर आश्रितता, अरब राष्ट्रों की तेल कूटनीति, अमेरिकी-पाकिस्तान गठबंधन आदि अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कारणों से भारत ने अरब समर्थन एवं इजरायल के विरोध की नीति अपनाई। 1971 के भारत-पाक युद्ध में तीसरे पक्ष द्वारा इजरायल से हथियारों की खरीद-फरोख्त एवं 1984 में भारतीय गुप्तचर संस्थाओं को इजरायल के साथ सहयोग करने की अनुमति प्रदान करने के बाद भी इस काल में भारत-इजरायल भारत इजरायल सम्बन्ध अच्छे नहीं हो पाए।
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कार्यकाल में भी इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सके। 1978 में अमेरिका के मध्यस्थता में मिस्र और इजरायल के मध्य कैम्प डेविड समझौता हुआ। इसके परिणाम स्वरुप अरब इजरायल सम्बन्धों में सुधार आया लेकिन इसके बावजूद भारत इजरायल सम्बन्धों में महत्वपूर्ण सुधार देखने को नहीं मिलता।
प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का कार्यकाल (1979 से 1980 तक) अत्यंत संक्षिप्त था। इस कार्यकाल में भारत इजरायल सम्बंध पूर्ववत बने रहे।
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने फिलिस्तीन के प्रति भारत के दृष्टिकोण को जारी रखा और दिसंबर 1987 में गाजा और वेस्ट बैंक में इजरायल की ‘लोहे की मुट्ठी’ नीतियों के कारण फिलिस्तीनी इंतिफादा (विद्रोह) के प्रसार के समय भारत ने अपना दृढ़ समर्थन बनाए रखा। 16 नवम्बर 1988 को भारत ने फिलिस्तीन को पूर्ण मान्यता प्रदान की। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री के विपरीत राजीव गांधी इजरायल राजनीतिक अधिकारियों से खुले रूप से मिलते थे। 1988 में संयुक्त राष्ट्र संघ के 40वें वार्षिक अधिवेशन में उन्होंने अपने समकक्ष इजरायली प्रधानमंत्री सीमोन परेस से मुलाकात की। इसी मुलाकात के आधार पर भारत ने इजरायली वाणिज्य दूतावास के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करते हुए इसमें केरल को भी शामिल किया। लेकिन इस कार्यकाल में भी पुराने राजनयिक नौकरशाह और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम ने भारत-इजरायल सम्बन्धों के सुधार में बाधा उपस्थिति की।
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (1989 से 1990 तक) तथा प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर सिंह (1990 से 1991 तक) के कार्यकाल में भी भारत इजरायल सम्बन्धों में बदलाव नहीं हुआ और भारत नेहरू की इजरायल नीति पर ही चलता रहा।
परिवर्तित राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में भारत-इजरायल सम्बन्धों का बदलता स्वरूप (वर्ष 1992 से 2014 तक)
1990 के बाद शीत युद्ध के अंत, सोवियत संघ के विघटन एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व के कारण सम्पूर्ण विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देते हैं। बदलती हुई परिस्थितियों में अधिकतर देश अमेरिका के साथ अपने सम्बन्ध सही कर रहे थे। इसी समय अमेरिका की विदेशनीति में पाकिस्तान का महत्व कम होने लगा और भारत अमेरिका के सम्बन्ध सुधरने लगे। भारत अमेरिकी सम्बन्धों के सुधार में इजरायली यहूदी समूह (लॉबी) की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इजरायल अमेरिका का महत्वपूर्ण सहयोगी था इसलिए अमेरिका भारत पर भी इजरायल से अच्छे सम्बन्धों हेतु दबाव बनाता रहा, जिसे भारत उपेक्षित नहीं कर सकता था।
शीत युद्ध के अंत ने पश्चिम एशिया के क्षेत्र में शांति की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1990 में इराक ने कुवैत में आक्रमण कर दिया। जिसका अरब राष्ट्रों सहित अमेरिका ने विरोध किया। खाड़ी युद्ध में अमेरिकी गठबंधन की विजय हुई।  इसके अलावा अरब राष्ट्र अपने जन विद्रोहों से निपटने के लिए अमेरिका से हथियार खरीद रहे थे। उन्होंने शीघ्र ही अमेरिकी वर्चस्व को स्वीकार कर लिया। अमेरिका के प्रभाव से अरब राष्ट्रों और इजरायल के मध्य शांति प्रक्रिया की शुरुआत हुई। 13 सितम्बर, 1993 में इजरायल और फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के बीच ओस्लो समझौता हुआ। इस समझौते का उद्देश्य इजरायल के कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में शांति और स्वशासन के लिए एक रूपरेखा स्थापित करना था। इसी समय मिस्र, जॉर्डन और सीरिया के साथ इजरायल के सम्बन्धों की नई शुरुआत हुई। अब भारत को अरब राष्ट्रों के कारण इजरायल विरोधी नीति अपनाने की आवश्यकता नहीं थी।
1992 में चीन ने इजरायल से पूर्ण राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित किए। इजरायल ने चीन के विरुद्ध भारत की मदद की थी फिर भी चीन ने इजरायल से पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किए। यह भारत की विश्वसनीयता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न था।  इससे भारतीय नेतृत्व पर इजरायल के साथ पूर्ण राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित करने का दबाव पड़ा।
भारत के अन्तर्गत नई दिल्ली की फिलिस्तीन नीति और अरब दुनिया को इसके पूर्ण समर्थन के आलोचक भी थे। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरब राष्ट्रों की तटस्थ स्थिति और 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान अरब राष्ट्रों का पाकिस्तान को समर्थन भारत में पसंद नहीं किया गया। दूसरी ओर, इजरायल ने 1962 और 1965 के युद्धों में भारत को हथियारों एवं गोला-बारूद से मदद की। भारत की सुरक्षा आवश्यकताएँ, इजरायल द्वारा भारत की कश्मीर नीति का समर्थन, इजरायली वाणिज्य दूतावास एवं भारतीय यहूदियों की भूमिका, भारत के अंदर इजरायल समर्थकों का दबाव और भारत की गुट निरपेक्ष आदर्शवादी विचारधारा के स्थान पर यथार्थवादी विदेश नीति को अपनाए जाने के कारण भारत इजरायल सम्बन्धों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाने लगा।  
प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव (1991 से 1996 तक) के कार्यकाल में बदलती वैश्विक एवं घरेलू परिस्थितियों के परिणाम स्वरुप भारत-इजरायल सम्बन्धों की नई शुरुआत हुई। 29 जनवरी 1992 को भारत द्वारा इजरायल को पूर्ण राजनयिक मान्यता प्रदान की गई।
पूर्ण राजनयिक सम्बन्धों के बाद भी भारतीय इजरायल सम्बन्धों की प्रकृति में आमूलचूल परिवर्तन देखने को नहीं मिला। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में परिवर्तन तो आया लेकिन मध्य पूर्व की समस्याएं पूर्ववत बनी हुई थी और भारत के लिए उन्हें पूर्णतया उपेक्षित करना संभव नहीं था। इसलिए समन्वय बनाते हुए भारत इजरायल के साथ सम्बन्धों का विकास होने लगा। मार्च, 1993 में भारत के तात्कालिक विदेश सचिव जे. एन. दिक्षित इजरायल गए जहाँ उनका गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। वहाँ इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री इत्जाक रॉविन ने दोनों राष्ट्रों के मध्य मजबूत राजनीतिक सम्बन्धों की स्थापना पर बल दिया। मई, 1993 को इजरायल के विदेश मंत्री शिमोन पेरेज ने भारत की यात्रा की जिसमें भारत इजरायल के मध्य आर्थिक सहयोग और पर्यटन सम्बन्धित समझौते किए गए। 1994 में इजरायल के उप विदेश मंत्री चेसिन बीलिन की भारत यात्रा एवं भारत के विदेश राज्य मंत्री श्री भाटिया की इजरायल यात्रा के समय भारत और इजरायल के मध्य एक मजबूत सामाजिक आर्थिक सम्बन्धों के साथ ही रक्षा और कृषि में सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी (16 मई 1996 से 1 जून 1997 तक), एच. डी. देवेगौड़ा (1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक) और आई. के. गुजराल (21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक) सरकारें अल्पकालिक थीय जिनमें भारत और इजरायल के मध्य मजबूत सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकें।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकालों (19 मार्च 1998 से 13 अक्टूबर 1999 और 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई 2004 तक) में भारतीय विदेश नीति के स्वरूप में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलता है। भारत इजरायल सम्बन्धों की नई शुरुआत होती है।
3 मई 1999 को कारगिल के द्रास सेक्टर में पाकिस्तान के सैनिकों की ओर से घुसपैठ की गई। इसके जवाब में ऑपरेशन विजय को शुरु किया गया। उस समय भारतीय सेना के पास ऐसे एडवांस मिलिट्री और टेक्निकल उपकरण नहीं थे, जो पाकिस्तानी सैनिकों के बंकर को लोकेट कर नष्ट कर सके। भारत ने सभी देशों से सहायता मांगी। लेकिन तब परमाणु परीक्षण के कारण प्रतिबंध लगे थे, जिससे कोई मदद को आगे नहीं आया। तब सिर्फ इजरायल ने भारत की सहायता की।  
इजरायल ने भारत को मोर्टार और हथियार के साथ ही भारतीय वायु सेना को लेजर गाइडेड मिसाइलें दी। निकोलस ब्लैरेल की किताब ‘द इवोल्यूशन ऑफ इंडियाज इजरायल पॉलिसी’ के अनुसार इजरायल पर अमेरिका और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव था कि वह रक्षा उपकरणों की डिलीवरी में देरी करें। लेकिन इजरायल ने जरूरी हथियारों को समय पर पहुँचाया। साथ ही इजरायल ने अपनी मिलिट्री सैटेलाइट के जरिए पाकिस्तानी सेना की स्ट्रैटेजिक लोकेशन की तस्वीरें भी दी। कारगिल युद्ध के समय इजरायल भारत के सबसे विश्वसनीय साथी के रूप में उभर कर सामने आया।
भाजपा सरकार में अनेक उच्च स्तरीय मंत्रियों, अधिकारियों और प्रभावशाली व्यक्तियों ने इजरायल की यात्रा की जिनमें गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी महत्वपूर्ण थे। वर्ष 2000 में विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने इजरायल की द्विपक्षीय यात्रा की जिसके दौरान व्यापार, विज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक संयुक्त आयोग बनाने का प्रस्ताव किया गया और आतंकवाद से लड़ने के लिए एक अलग से संयुक्त आयोग बनाया गया। जसवंत सिंह के अनुसार इजरायल एकमात्र ऐसा देश था जो खुलकर भारत को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से लड़ने में सहायक उच्च तकनीक देने का साहस रखता है।
 वर्ष 2003 में इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन ने भारत की पहली आधिकारिक यात्रा की। लेकिन तेल अवीव में हुए चरमपंथी हमले के चलते शेरोन को दौरे के बीच से ही लौटना पड़ा था। इस यात्रा में द्विपक्षीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करते हुए दिल्ली मैत्री एवं सहयोग वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये गये।
2004 में मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने और फिर से 2004 और 2014 के बीच कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय भारत ने इजरायल के प्रति संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। उस दशक में कुछ मंत्रियों और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों सहित भारतीय विदेश मंत्री ने भी इजरायल की यात्राएँ की।  गाजा में इजरायली सैन्य अभियानों और फिर लेबनान युद्ध के कारण तत्कालीन रक्षा मंत्री मुखर्जी को 2006 की अपनी योजनाबद्ध यात्रा को रद्द करना पडा।  जनवरी 2012 में, भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा की यहूदी राज्य की यात्रा के मद्देनजर भारत और इजरायल ने अपनी आतंकवाद विरोधी समन्वय रणनीति को आगे बढ़ाया। इजरायल में रहते हुए, भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने शीर्ष इजरायली सरकार और रक्षा नेताओं से मुलाकात की और उनके आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काम करने पर सहमति व्यक्त की। दोनों देशों ने प्रत्यर्पण संधि और सजायाफ्ता कैदियों के स्थानांतरण पर एक समझौते पर भी हस्ताक्षर         किए।  
3 अप्रैल से 8 अप्रैल 2012 तक सूचना संचार तकनीकी एवं मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने इजरायल की यात्रा की। यात्रा के दौरान उन्होंने इजरायल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेस को भारत आने के लिए आमंत्रित किया और अपने समकक्ष संचार मंत्री मोशे काहलोन, वित्त मंत्री और शिक्षा मंत्री से मुलाकात की। इस यात्रा में दोनों पक्षों द्वारा टेलीकॉम और सूचना तकनीकी में सहयोग के लिए संयुक्त कार्य दल बनाने पर सहमति बनी। साथ ही नवीनीकरण एवं सतत ऊर्जा, बायोमेडिकल साइंसेज, साइबर सुरक्षा, मानविकी और समाज विज्ञान में संयुक्त अनुसंधान किए जाने के लिए संयुक्त निधि बनाई गई।
वर्ष 2012-13 में तात्कालिक पर्यटन मंत्री सुबोध कांत, असम और उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री, हरियाणा, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र के कृषि मंत्रियों, उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित महत्वपूर्ण राजनायिकों, भारतीय सेना अधिकारियों, प्रतिनिधिमंडलों द्वारा इजरायल की यात्रा की गई।
भारत-इजरायल सम्बन्धों में महत्वपूर्ण बदलाव (वर्ष 2014 से वर्तमान तक)
2014 से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत-इजरायल सहयोग में अभिवृद्धि हुई। 5-7 नवम्बर 2014 को भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इजरायल की यात्रा की जहाँ उनका शानदार स्वागत किया गया। इस यात्रा के दौरान इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारतीय और इजरायल सम्बन्धों की निरंतरता पर बल दिया। इस यात्रा का उद्देश्य होमलैंड क्षेत्र की सुरक्षा, सहयोग और आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई जैसे मुद्दों पर चर्चा करना था। 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अधिवेशन (न्यूयॉर्क शहर) में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इजरायली समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात की। इस बैठक में दोनों प्रधानमंत्रियों ने आर्थिक, तकनीकी और कृषि क्षेत्र में आपसी सहयोग पर बल दिया। साथ ही इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इजरायल यात्रा के लिए आमंत्रित किया।
फरवरी 2015 में इजरायली रक्षा मंत्री मोशे यालोन ने भारत की पहली आधिकारिक यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य इजरायल और भारत में रक्षा उद्योगों के बीच बातचीत और सहयोग बढ़ाना था।
जुलाई 2015 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में गाजा जांच आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी देने वाले मतदान में भाग नहीं लिया। यह पहली बार था कि भारत ने यूएनएचआरसी में फिलिस्तीनी हितों पर ध्यान नहीं दिया। इससे भारत-इजरायल सम्बन्धों में संभावित महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत मिलता है। 13-15 अक्टूबर 2015 को भारतीय राष्ट्रपति माननीय प्रणब मुखर्जी ने एक उच्च स्तरीय शिष्टमंडल के साथ इजरायल की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों द्वारा संस्कृति, शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक आपसी सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए गए। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इजरायली सांसद नेसट को संबोधित करते हुए दोनों देशों के बीच अत्यधिक सकारात्मक दिशा को संकेतित करते हुए इजरायल के नवान्मेष और प्रौद्योगिकी तथा भारतीय इंजीनियरिंग और भारतीय विनिर्माण क्षमता को जोड़ने की बात कही।
जनवरी 2016 में इजरायल की 3 दिवसीय यात्रा के दौरान, भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि सकारात्मक इजरायल-भारत सम्बन्धों का पूर्ण विकास भारत सरकार के लिए महत्वपूर्ण है।
नवंबर 2016 में इजरायल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन ने भारत की पहली आधिकारिक यात्रा की। इजरायली राष्ट्रपति रिवलिन और भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरक्षा सहयोग और आतंकवाद से निपटने के सम्बन्ध में चर्चा और बैठकें कीं। साथ ही भारत-इजरायल सम्बन्धों के भविष्य पर भी चर्चा की। भारतीय अधिकारियों ने 16 नवंबर, 2016 को रिवलिन की यात्रा के दौरान इजरायली एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के साथ संयुक्त 1.4 बिलियन डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। दोनों रक्षा अनुबंधों में भारत ने इजरायल से 1 बिलियन डॉलर कीमत के दो फाल्कन / IL-76 एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम के साथ ही 400 मिलियन डॉलर कीमत के 10 अतिरिक्त हेरॉन टीपी यूएवी ड्रोन खरीदें।
4 जुलाई, 2017 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधान मंत्री बने। भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान भारतीय और इजरायली संस्थाओं के बीच औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास तथा तकनीकी नवाचार, जल संरक्षण, जल उपयोगिता सुधार, कृषि, परमाणु घड़ियों, जीईओ-लीओ ऑप्टिकल लिंक और छोटे उपग्रहों के लिए विद्युत प्रणोदन के सम्बन्ध में सात सहयोगात्मक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। भारत और इजरायल ने अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को रणनीतिक साझेदारी में उन्नत करते हुए एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए। दोनों देशों ने बढ़ते कट्टरपंथ और आतंकवाद से निपटने तथा साइबर सुरक्षा में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।  
भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान उन्होंने किसी फिलिस्तीनी अधिकारी से मुलाकात नहीं की, यद्यपि दो महीने पहले उन्होंने भारत में महमूद अब्बास से मुलाकात की थी। कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम भारत की पूर्व में अपनाई गई नीति से विपरीत है। इससे पहले भारतीय राजनेता एक साथ दोनों पश्चिम एशियाई देशों का दौरा करते रहे हैं।
भारत द्वारा इजरायल और फिलिस्तीन को लेकर अपनाई गई इस नीति को कूटनीतिक विशेषज्ञ ‘डी-हाईफनेशन’ नाम देते हैं। डी-हाईफनेशन की नीति, अमेरिका द्वारा भारत व पाकिस्तान (भारत और पाकिस्तान के आपसी कटु सम्बन्धों को उपेक्षित करते हुए दोनों देशों के साथ सम्बन्धों को अलग-अलग महत्व देना) के संदर्भ में अपनाई गई नीति से प्रभावित है।
जनवरी 2018 में भारतीय-इजरायल सम्बन्धों के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर इजरायल के प्रधानमन्त्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 130 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल के साथ भारत की आधिकारिक यात्रा की। दोनों पक्षों ने अभिनवता, व्यवसाय और व्यापार, अंतरिक्ष, गृह सुरक्षा और साइबर, उच्च शिक्षा और अनुसंधान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर्यटन और संस्कृति के क्षेत्रों में सहयोग को गहन बनाने पर भी सहमति व्यक्त की।  
इस यात्रा के दौरान एक आधिकारिक समारोह में प्रथम विश्व युद्ध के समय हाइफा युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में हैदराबाद, जोधपुर और मैसूर लांसर का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘तीन मूर्ति चौक’ का नाम बदलकर ‘तीन भारती हाइफा चौक’ रखा गया। इस यात्रा में दोनों देशों ने सायबर सुरक्षा, तेल और गैस उत्पादन, वायु परिवहन, होम्योपैथिक चिकित्सा, फिल्म निर्माण, अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में नौ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए।  
फरवरी 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिलिस्तीन की यात्रा की लेकिन इजरायल नहीं    गए। साथ ही 2018 में भारत ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के अमेरिका के फैसले के विरोध में संयुक्त राष्ट्र में तुर्की और यमन द्वारा लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
वर्ष 2021 में भारत ने गाजा, पश्चिमी तट और फिलिस्तीन में मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा एक स्थायी आयोग गठित करने के प्रस्ताव पर होने वाले मतदान में भाग नहीं लिया।
अक्टूबर 2021 में इजरायल की यात्रा के दौरान, विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने कहा कि भारत इजरायल को सबसे भरोसेमंद और अभिनव भागीदार माना। अर्थव्यवस्था मंत्रालय के महानिदेशक और भारत में पूर्व राजदूत रॉन मल्का ने कहा कि भारत के साथ इजरायल के सम्बन्ध “अंतर्राष्ट्रीय मामलों में किसी भी देश के साथ हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है”। इस यात्रा के दौरान, इजरायल ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के अनुसमर्थन के साधन पर हस्ताक्षर किए।
2 नवंबर, 2021 को भारतीय प्रधानमंत्री और इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने ग्लासगो (यू.के.) में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी 26) के दौरान मुलाकात की। इजरायल के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री बेंजामिन गैंट्ज 1-3 जून, 2022 को भारत आए। कृषि और किसान कल्याण मंत्री 9-11 मई, 2022 को इजरायल गए।
अप्रैल 2022 में इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज और भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने संयुक्त रूप से विकसित वायु और मिसाइल रक्षा प्रणाली का परीक्षण किया। दो इंटरसेप्टर एक पोर्टेबल भूमि-आधारित प्रणाली से और दो अन्य नौसेना-आधारित प्रणाली से लॉन्च किए गए थे। यह प्रणाली भारतीय नौसेना के जहाजों से संचालित होती है जिसमें सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यों को भेदा जा सकता है।
14 जुलाई, 2022 को प्रधानमंत्री ने (आभासी रूप से) भाग लिया। जुलाई 2022 में अमरीकी राष्ट्रपति जो बिडेन की इजरायल यात्रा के समय इजरायल, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच शीर्ष नेतृत्व का शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री यायर लापिड, संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान और अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ आर. बिडेन के साथ प्2न्2 के शीर्ष नेतृत्व के प्रथम शिखर सम्मेलन में मध्य पूर्व और भारत-प्रशांत के बीच आर्थिक सम्बन्धों को गहरा करने एवं खाद्य असुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए नई साझेदारी बनाने के लिए सहमति व्यक्त की गयी। शिखर सम्मेलन से इजरायल के साथ व्यापार समझौते को गति मिली और भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के बीच आर्थिक सम्बन्ध को मजबूत हुए।
अक्टूबर 2022 में, भारत की सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इजरायल की राफेल एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड ने भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल के लिए संयुक्त रूप से एक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली विकसित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।  
31 मार्च-4 अप्रैल, 2023 को इजरायली नेसेट अध्यक्ष अमीर ओहाना सहित संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने भारत की यात्रा की। यात्रा के दौरान उन्होंने भारतीय लोकसभा अध्यक्ष के साथ संसदीय सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर भी हस्ताक्षर किए। नेसेट अध्यक्ष के रूप में यह स्पीकर ओहाना की पहली विदेश यात्रा थी। यह किसी इजरायली संसद अध्यक्ष की भारत की पहली यात्रा भी थी। 16 अप्रैल-20 अप्रैल, 2023 को इजरायल के अर्थव्यवस्था और उद्योग मंत्री नीर बरकत ने पंद्रह सदस्यीय व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत का दौरा किया।
9 मई, 2023 को इजरायल के तत्कालीन विदेश मंत्री एली कोहेन ने इजरायल सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों एवं एक उच्च स्तरीय व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत का आधिकारिक दौरा किया। विदेश मंत्री कोहेन ने प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की। साथ ही जल शक्ति मंत्री के साथ भारत-इजरायल व्यापार मंच की सह-अध्यक्षता भी की।
1 दिसंबर 2023 को दुबई में सीओपी 28 के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल के राष्ट्रपति इसहाक हर्जोग से मुलाकात की, जिसके दौरान दोनों नेताओं ने क्षेत्र में संघर्ष पर विचारों का आदान-प्रदान किया और वैश्विक और द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की।  
07 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हुए आतंकवादी हमलों और इजरायल-हमास के बीच चल रहे युद्ध में नागरिकों के मारे जाने की भारत सरकार ने कड़ी निंदा की। साथ ही भारत सरकार ने संयम बरतने तथा तनाव को कम करने का आवाह्न किया और बातचीत एवं राजनय के माध्यम से युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान पर जोर दिया। भारतीय प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री ने इजरायल के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री तथा फिलिस्तीन के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री सहित कई नेताओं से बातचीत की है। विदेश मंत्री ने 20 जनवरी 2024 को कंपाला में फिलिस्तीन के विदेश मंत्री से मुलाकात की और दो राष्ट्र समाधान के लिए भारत के समर्थन को दोहराया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र, जी.20, ब्रिक्स और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी अपनी स्थिति दोहराई है।  
सहयोग के क्षेत्र
रक्षा सम्बन्ध

भारत, इजरायल से हथियारों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है, जो इसके वार्षिक हथियारों के निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देता है। दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शुरू हुआ। 1965 में इजरायल ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत को ड-58 160-उउ मोर्टार गोला बारूद की आपूर्ति की। इजरायल उन देशों में से एक है, जिन्होंने 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद प्रतिबंधों और अंतर्राष्ट्रीय अलगाव की स्थिति में भी भारत का साथ दिया अपने हथियारों का व्यापार जारी रखा।
भारत को इजरायली हथियारों की बिक्री के अलावा अंतरिक्ष, आतंकवाद और साइबर सुरक्षा तथा खुफिया साझाकरण जैसे अन्य डोमेन को शामिल करने के लिये रक्षा सहयोग का दायरा बढ़ाया गया है। भारत वर्ष 2017 में 715 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बिक्री के साथ इजरायल का सबसे बड़ा हथियार आयातक था।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल रूस और अमेरिका के बाद भारत को रक्षा वस्तुओं का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ा है। भारतीय सशस्त्र बलों ने विगत वर्षों में इजरायली हथियार प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल किया है, जिसमें फाल्कन (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम्स), हेरॉन, सर्चर, हारोप ड्रोन से लेकर बराक मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली और स्पाइडर क्विक-रिएक्शन विमान भेदी मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
भारत द्वारा इजरायल से आयातित रक्षा प्रौद्योगिकियाँ:
मानव रहित विमान (यूएवी)

सर्चर - यह निगरानी, लक्ष्य प्राप्ति, तोपखाना समायोजन और क्षति मूल्यांकन के लिये एक बहु-मिशन सामरिक मानव रहित विमान (यूएवी) है।
हेमीज 900 - दिसंबर 2018 में अदानी डिफेंस एंड एलबिट सिस्टम्स ने हैदराबाद में पहले भारत-इजरायल संयुक्त उद्यम का उद्घाटन किया।
हेरोन (Heron)- यह एक मध्यम-ऊँचाई लंबी-यूएवी प्रणाली है जिसे मुख्य रूप से रणनीतिक कार्यों के लिये डिजाइन किया गया है। भारत सरकार ने 11 सितंबर 2015 को 400 मिलियन डॉलर की कीमत पर इजरायल से 10 हेरोन टीपी ड्रोन वाहनों को खरीदा। ये ड्रोन भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने में मदद करते हैं।
वायु रक्षा प्रणाली:
बराक - सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल को कम दूरी की वायु रक्षा इंटरसेप्टर के रूप में तैनात किया जा सकता है। भारत में बराक संस्करण को बराक-8 (नौसेना जहाजों के लिये) के रूप में जाना जाता है। इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज ने 10 नवंबर 2014 को संयुक्त रूप से विकसित भारतीय-इजरायल बराक 8 वायु और नौसेना रक्षा मिसाइल प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इसके बाद बराक 8 मिसाइल का 30 दिसंबर 2015, 30 जून 2016 एवं 20 सितंबर 2016 को सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। बराक 8 को भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के सहयोग से विकसित किया गया। बराक-8 भारत और इजरायल के बीच सहयोग में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
मिसाइल:
स्पाइक - ये 4 किमी. तक की रेंज वाली चौथी पीढ़ी की एंटी-टैंक मिसाइल हैं, जिन्हें फायर-एंड-फॉरगेट मोड में संचालित किया जा सकता है। अक्टूबर 2014 में भारत और इजरायल ने इजरायली राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड द्वारा विकसित 8,356 स्पाइक एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों और 321 मिसाइल लॉन्चरों को खरीदने के लिए एक समझौता किया।
क्रिस्टल मेज- यह हवा-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइल AGM -142A Popeye का एक भारतीय संस्करण है, जिसे संयुक्त रूप से इजरायल स्थित राफेल और अमेरिका स्थित लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित किया गया है।
सेंसर:
सर्च ट्रैक एंड गाइडेंस रडार - भारत ने आईएनएस कोलकाता, आईएनएस शिवालिक और कमोर्टा-क्लास फ्रिगेट्स को बराक-8 मिसाइलों को तैनात करने हेतु अनुकूल बनाने के लिये सर्च ट्रैक एंड गाइडेंस रडार का आयात किया।
फाल्कन - इस एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम को भारतीय वायुसेना की ‘आईज इन द स्काई’ के रूप में भी जाना जाता है।  
भारतीय सेना ने अगस्त 2017 में पाकिस्तान के साथ अपनी सीमा पर इजरायल द्वारा विकसित व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (सीआईबीएमएस) तैनात की। बाड़ की निगरानी सेंसर और सुरक्षा कैमरों द्वारा की जाती है और उल्लंघन होने पर निगरानी सुविधाओं में लोगों को सचेत किया जा सकता है। भारतीय अधिकारियों ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ अपनी सभी 6,300 किमी लंबी सीमाओं को इजरायली स्मार्ट-बाड़ से सील करने की योजना की घोषणा की।
भारतीय नौसेना ने फरवरी 2017 में एक नया, इजरायल द्वारा विकसित इंटीग्रेटेड अंडर वॉटर हार्बर डिफेंस एंड सर्विलांस सिस्टमलॉन्च किया। यह सिस्टम मुंबई नेवल हार्बर में भारतीय नौसेना द्वारा संचालित पानी के ऊपर और नीचे के वाहनों की सुरक्षा बढ़ाएगा।
इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज ने अप्रैल 2017 में भारत की सेना और नौसेना के साथ 2 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य की उन्नत वायु रक्षा प्रणाली की आपूर्ति करने का सौदा किया।
10 मई, 2017 को, भारतीय नौसेना के तीन युद्धपोत गर्मियों के दौरान भारतीय प्रधान मंत्री मोदी की निर्धारित यात्रा से पहले, हाइफा के बंदरगाह पर पहुंचे। जहाज, आईएनएस मुंबई, आईएनएस त्रिसुला और आईएनएस आदित्य ने बंदरगाह में प्रवेश करते समय इजरायली नौसेना के साथ एक नौसेना अभ्यास में भाग लिया। 2000 से 2017 तक आठवीं बार भारतीय जहाज इजरायली बंदरगाह पर पहुंचे।
भारतीय सेना ने 11 मई, 2017 को इजरायल निर्मित सतह से हवा में मार करने वाली पायथन और डर्बी मिसाइल प्रणाली (स्पाइडर) का पहला सफल परीक्षण किया। स्पाइडर प्रणाली का प्रक्षेपण बिना किसी रुकावट के हुआ, और सभी तीन मिसाइलें अपने लक्ष्य पर निशाना साधते हुए लॉन्च किए गए। पायथन और डर्बी मिसाइलों में स्पाइडर सिस्टम शामिल है, जिसमें बढ़ी हुई सटीकता के लिए ऑनबोर्ड रडार की भी सुविधा है। कम ऊंचाई वाले मिसाइल हमलों के लिए बनाई गई इस प्रणाली की मारक क्षमता 15 किमी है।
भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा सेवा ने 2017 में इजरायल से 30 कुत्तों की भर्ती की, जिन्हें हमला करने, बम और नशीली दवाओं को सूंघने और अपराधियों पर नजर रखने के लिए प्रशिक्षित किया गया।
चीन के साथ बढ़ते तनाव के कारण भारत ने जुलाई 2020 में इजरायल से अतिरिक्त हथियार खरीदने की योजना की घोषणा की। भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके इजरायली समकक्ष बेनी गैंट्ज ने द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत करने पर चर्चा की और सिंह ने भारत के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में इजरायली रक्षा कंपनियों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने में रुचि व्यक्त की।
भारत के वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने अगस्त 2021 में इजरायल का दौरा किया था। द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर 15वें संयुक्त कार्य समूह (JWG 2021) की बैठक में देशों ने सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने हेतु एक व्यापक दस-वर्षीय रोडमैप तैयार करने के लिये टास्क फोर्स बनाने पर सहमति व्यक्त की।  संयुक्त कार्य समूह दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों का शीर्ष निकाय है जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के सभी पहलुओं की व्यापक समीक्षा और मार्गदर्शन करना है।
भारत के तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने नवंबर 2021 में इजरायल का दौरा किया था। 3 मार्च, 2023 को भारत के रक्षा मंत्री ने इजरायल के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट से बात की।
इजरायल से आयातित उपकरण युद्ध के समय सशस्त्र बलों की संचालन क्षमता को आसान बनाता है। इजरायल एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता (नो क्वेश्चन आस्किंग सप्लायर) रहा है अर्थात यह अपने उपयोग की सीमा लक्षित किये बिना अपनी सबसे उन्नत तकनीक को भी स्थानांतरित करता है।
आर्थिक और वाणिज्यिक सम्बन्ध
1992 में राजनयिक सम्बन्ध स्थापित होने के बाद से भारत-इजरायल द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सम्बन्धों में तेजी से प्रगति हुई है। 1992 में लगभग 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर (जिसमें मुख्य रूप से हीरे शामिल थे) से व्यापारिक व्यापार में विविधता आई और यह वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग 10.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (रक्षा को छोड़कर) तक पहुँच गया, जिसमें भारतीय निर्यात लगभग 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
भारत एशिया में इजरायल का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और वैश्विक स्तर पर सातवां सबसे बड़ा साझेदार है। हालाँकि, द्विपक्षीय व्यापारिक व्यापार में मुख्य रूप से हीरे, पेट्रोलियम उत्पाद और रसायन शामिल हैं, लेकिन विगत वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी और उच्च तकनीक वाले उत्पादों, संचार प्रणालियों, चिकित्सा उपकरणों आदि जैसे क्षेत्रों के व्यापार में वृद्धि देखी गई है।
भारत से इजरायल को प्रमुख निर्यात में मोती और कीमती पत्थर, ऑटोमोटिव डीजल, रासायनिक और खनिज उत्पाद, मशीनरी और विद्युत उपकरण, प्लास्टिक, वस्त्र, परिधान, आधार धातु और परिवहन उपकरण, और कृषि उत्पाद शामिल हैं। इजरायल से भारत को प्रमुख निर्यात में मोती और कीमती पत्थर, रासायनिक और खनिज़़, उर्वरक उत्पाद, मशीनरी और विद्युत उपकरण, पेट्रोलियम तेल, रक्षा, मशीनरी और परिवहन उपकरण शामिल हैं।
अप्रैल 2000 से मई 2023 तक भारत से इजरायल में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग 383 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। भारतीय कंपनियाँ विलय और अधिग्रहण तथा शाखा कार्यालय खोलकर इजरायल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। भारतीय कंपनियाँ इजरायली नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में भी अपनी पहचान बना रही हैं। अप्रैल 2000 से सितंबर 2023 की अवधि में इजरायल से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लगभग 286.15 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
कृषि विकास सहयोग
10 मई, 2006 को हस्ताक्षरित कृषि में सहयोग के लिए एक व्यापक कार्य योजना के तहत, द्विपक्षीय परियोजनाओं को माशव(इजरायल के विदेश मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग केंद्र) और इजरायल के कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास सहयोग केंद्र के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। 2008 में दोनों देशों ने डेयरी, कृषि प्रौद्योगिकी और सूक्ष्म सिंचाई पर ध्यान केंद्रित करते हुए 50 मिलियन डॉलर का साझा कृषि कोष शुरू किया। इसने भारत-इजरायल कृषि परियोजना का गठन किया। दोनों पक्षों के बीच कृषि सहयोग को 3-वर्षीय कार्य योजनाओं के माध्यम से औपचारिक रूप दिया जाता है, जिसमें 3-वर्षीय कार्य योजनाएँ विकसित की जाती हैं। 5वीं 3-वर्षीय कार्य योजना (2021-2023) पर 24 मई, 2021 को हस्ताक्षर किए गए। 13 भारतीय राज्यों में 31 कृषि उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए हैं। इजरायली तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग करके कुशल कृषि तकनीकों में किसानों के लिए मुफ्त प्रशिक्षण सत्र प्रदान करते हैं। यहाँ ऊर्ध्वाधर खेती, ड्रिप सिंचाई और मृदा सौरीकरण आदि से सम्बन्धित इजरायली तकनीकी सिखाई जाती हैं।
जल संसाधन प्रबंधन और विकास सहयोग
2011 में भारत और इजरायल ने शहरी जल प्रणालियों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो देशों की संबंधित जल प्रौद्योगिकियों में एक दशक से अधिक के संयुक्त अनुसंधान, विकास और साझा निवेश के बाद आया।
इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच चल रहे सहयोग को नवंबर 2016 में जल संसाधन प्रबंधन और विकास सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया था। जुलाई 2017 में प्रधान मंत्री की इजरायल यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने (1) भारत में जल संरक्षण के लिए राष्ट्रीय अभियान और (2) यूपी जल निगम के सुधारों पर समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए। अक्टूबर 2018 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री की इजरायल यात्रा के दौरान, पंजाब सरकार और मेकोरोट (इजरायल राष्ट्रीय जल कंपनी) ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसमें मेकोरोट पंजाब के लिए जल संरक्षण और प्रबंधन योजना तैयार करेगा। नवंबर 2019 में, जल शक्ति मंत्री की इजरायल की पहली यात्रा के साथ भारत-इजरायल जल सहयोग को बढ़ावा मिला।
मई 2023 में, दोनों देशों ने क्रमशः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय जल क्षेत्र के लिए टिकाऊ प्रबंधन समाधानों पर भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप इजरायल की जल प्रौद्योगिकियों का कार्यान्वयन है।
नवाचार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
1993 में हस्ताक्षरित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते के तहत स्थापित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संयुक्त समिति विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारत-इजरायल सहयोग की देखरेख करती है। मई 2005 में एक द्विपक्षीय समझौते के तहत, भारत-इजरायल औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास पहल की स्थापना संयुक्त औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए की गई थी, जिसका उद्देश्य वैश्विक बाजार में व्यावसायीकरण के लिए उत्पादों या प्रक्रियाओं का विकास करना था।
जुलाई 2017 में भारत के प्रधानमंत्री की इजरायल यात्रा के दौरान, भारत-इजरायल औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार निधि की स्थापना के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी नवाचार प्राधिकरण, इजरायल के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह समझौता ज्ञापन, पांच वर्षों (2018-2022) में प्रत्येक पक्ष से 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान के साथ, भारतीय और इजरायली उद्यमों को कृषि, जल, ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा और आईसीटी जैसे प्राथमिकता वाले प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में संयुक्त औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं शुरू करने में सक्षम बनाता है। समझौता ज्ञापन को 2023 से पांच वर्षों के लिए नवीनीकृत किया गया है। 2018 और 2023 के बीच प्रस्तावों के लिए दस दौर की कॉल आयोजित की गई। पच्चीस अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है, जिसमें तपेदिक का शीघ्र पता लगाने के लिए अपोलो-जेबरा मेडिकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित परियोजना भी शामिल है।
सितंबर 2020 में, इजरायल के स्टार्टअप नेशन सेंट्रल और भारत के इंटरनेशनल सेंटर फॉर एंटरप्रेन्योरशिप एंड टेक्नोलॉजी ने नवाचार और तकनीकी सहयोग में तेजी लाने के लिए एक द्विपक्षीय कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए। 25 जुलाई, 2022 को विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर दसवीं संयुक्त आयोग बैठक आयोजित की गई। मई 2023 में, भारत और इजरायल ने इजरायल के रक्षा अनुसंधान और विकास निदेशालय और भारत की वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के दायरे में प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए औद्योगिक अनुसंधान और विकास सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
स्वास्थ्य और चिकित्सा सहयोग क्षेत्र
21 दिसंबर, 2020 को भारत और इजरायल ने स्वास्थ्य और चिकित्सा में सहयोग पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते में दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास सहित द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने की परिकल्पना की गई है। भारत और इजरायल ने कोविड-19 महामारी से निपटने में सहयोग किया और कोविड-19 टीकाकरण प्रमाणपत्रों को पारस्परिक रूप से मान्यता देने पर सहमति व्यक्त की।
संस्कृति
भारत और इजरायल ने अगस्त 2020 में अपने सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम (2020-23 के लिए) को नवीनीकृत किया, ताकि युवा आदान-प्रदान सहित कला और संस्कृति के सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाया जा सके। योग और आयुर्वेद इजरायल में लोकप्रिय हैं, और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हमेशा बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति के साथ मनाया जाता है। तेल अवीव में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र ने जनवरी 2020 में काम करना शुरू किया और सांस्कृतिक सम्बन्धों को बढ़ावा देने के लिए नियमित रूप से कार्यक्रम आयोजित करता है।
निष्कर्ष
विगत वर्षों में भारत के इजरायल के साथ-साथ पश्चिम एशिया के साझेदारों- सऊदी अरब, मिस्र, कतर और ईरान के साथ भी सुरक्षा, रक्षा और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में सम्बन्ध गहरे हुए हैं। जटिल पश्चिम एशियाई क्षेत्र में सभी पक्षों के साथ जुड़ने का भारतीय रणनीतिक दृष्टिकोण समय की आवश्यकता है। भारत का 50 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा आयात पश्चिम एशिया से होता है।
भारत की प्रमुख वैश्विक शक्ति बनने की महत्त्वाकांक्षा को वास्तविक रूप देने हेतु यह आवश्यक है कि भारत-इजरायल रक्षा सहयोग को संयुक्त उद्यमों और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास के संदर्भ में बढ़ाया जाए । भारत और इजरायल के बीच रणनीतिक सहयोग की अपार संभावनाएँ है। हथियारों का व्यापार इस द्विपक्षीय जुड़ाव का आधार है क्योंकि दोनों देश व्यापक अभिसरण चाहते हैं।
एक बढ़ती हुई साझेदारी के पक्ष में वैचारिक और नेतृत्व विकास के साथ भारत को अपनी स्वदेशी रक्षा उद्योग का आधुनिकीकरण करने के लिये इजरायल की तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग करने की आवश्यकता है।
भारत और इजरायल के मजबूत द्विपक्षीय सम्बन्ध दोनों देशों के राष्ट्रीय हितों से प्रेरित हैं। भारत के सैन्य आधुनिकीकरण एवं इजरायल का अपने हथियार उद्योग के व्यावसायीकरण दोनों ही देशों के बहुप्रतीक्षित लक्ष्य है। दोनों देश पश्चिम एशिया की तेजी से बदलती भू-राजनीति के मुकाबले अपने दीर्घकालिक हितों के आधार पर अपने सम्बन्धों को स्थापित कर रहे हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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  8. https://www.jewishvirtuallibrary.org/history-and-overview-of-india-israel-relations  
  9. https://timesofindia.indiatimes.com/india/india-israel-elevate-their-ties-to-strategic-partnership/articleshow/59461930.cms
  10. https://www.mea.gov.in/bilateral-documents-hi.htm?dtl/29357/IndiaIsrael_Joint_Statement_during_visit_of_Prime_Minister_of_Israel_to_India_January_15_2018
  11. https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=175631
  12. https://www.jewishvirtuallibrary.org/history-and-overview-of-india-israel-relations
  13. https://www.indembassyisrael.gov.in/pages?id=mbk5e&subid=lejRe
  14. https://www.mea.gov.in/lok-sabha.htm?dtl/37546/QUESTION+NO48+INDIAN+STAND+ON+PALESTINE
  15. https://www.jewishvirtuallibrary.org/history-and-overview-of-india-israel-relations
  16. https://www.drishtiias.com/hindi/daily-news-analysis/defence-joint-working-group-india-israel
  17. https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-analysis/india-israel-relations-3
  18. https://indianexpress-com.translate.goog/article/explained/arc-of-indias-ties-with-israel8974060