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कथाकार अमरकांत की कहानियों में सामाजिक चेतना | |||||||
Social Consciousness In The Stories Of Storyteller Amarkant | |||||||
Paper Id :
19225 Submission Date :
2024-08-09 Acceptance Date :
2024-08-21 Publication Date :
2024-08-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13760081 For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
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सारांश |
कथाकार अमरकांत हिन्दी कथा साहित्य के एक मूर्धन्य साहित्यकार है। साहित्य के क्षेत्र में गद्य की सभी विधाओं में इन्होंने अपना एक विशिष्ट चेतनाशील दृष्टिकोण रखकर कथा साहित्य का सजृन किया हैं स्वतत्रंता के बाद के कथाकारों में इनका एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा हैं प्रेमचंद के पश्चात् हिन्दी कथा साहित्य में उनकी परम्परा को विकसित करने वाले अमरकांत प्रेमचंद के सर्वाधिक निकट है। इनका सम्पूर्ण कथा साहित्य मानव जीवन के यथार्थ भावभूमि के अनुभवों के ठोस धरातल पर आधारित है। मध्यवर्गीय ग्राम्य समाज की मिट्टी से स्वयं जुड़े हुए होने के कारण मध्यवर्गीय जीवन दृष्टि इनकी रचनाओं में एक प्रमाणिक दस्तोवज के रूप में उभर कर सामने आई है। ग्राम्य जीवन से शहरेां की और भागती हुई चेतना इनकी कहानियाँ हो या उपन्यास या फिर लघुबाल एवं प्रोढ़ साहित्य सभी में देखी जा सकती हैं। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Storyteller Amarkant is a leading writer of Hindi fiction. In the field of literature, he has created fiction by keeping his unique conscious viewpoint in all the genres of prose. He has an important place among the storytellers after independence. After Premchand, Amarkant, who developed his tradition in Hindi fiction, is closest to Premchand. His entire fiction is based on the solid ground of experiences of the real emotional ground of human life. Being himself connected to the soil of middle class rural society, the middle class life perspective has emerged as an authentic document in his works. The consciousness running from rural life to cities can be seen in all his stories or novels or children's and adult literature. | ||||||
मुख्य शब्द | कथाकार अमरकांत, हिन्दी कथा साहित्य, आजादी, विषमता। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Story Writer Amarkant, Hindi Story Literature, Freedom, Inequality. | ||||||
प्रस्तावना | अमरकांत की कहानियेां में स्वतंत्रतापरवर्ती (सन् 1947-2013) भारतीय समाज को अपने आप में समेटा है। आजादी के बाद विभाजन की त्रासदी ने हमें गहरा आघात पहुंचा उसी के साथ-साथ जो सपने भारतीयों ने संजोये थे वह टूट कर छिन्न-भिन्न हुए। सन् 1947 के बाद भारत में लोकतंत्र की स्थापना के साथ ही हिंसा, युद्ध, अकाल, साम्प्रदायिक दंगें, बेरोजगारी, कालाबाजारी, अन्याय एवं अत्याचार, स्त्रीशोषण, समाज की रूढ़ एवं जर्जर परम्पराएँ संयुक्त परिवारों को विघटन, गाँवों का शहरों की तरफ बढ़ता पलायन, पीढ़िगत अन्तराल, आधुनिक एवं परम्परागत जीवन मूल्यों में टकराहट जीवन संघर्ष, वर्ग संघर्ष एवं नैतिक-सामाजिक मूल्यों का पतन, राजनैतिक अवसरवादिता जैसी विषमताओं ने समाज को भीतर ही भीतर खोखला कर दिया। इन्हीं समस्याओं एवं विषमताओं में गहरे पैठकर कथाकार अमरकांत ने अपनी कहानियों का लेखन किया ओर मानव कल्याण के स्वर को वाणी प्रदान की। इनकी कहानियाँ हमें आधुनिक सन्दर्भों में भारतीय समाज के यथार्थ की सच्चाई के साथ प्रस्तुत करती हुई परपंरागत रूढ़िगत जड़ता को तोड़कर एक-एक नया आलोक प्रदर्शित करती हैं। |
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अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोध का उद्देश्य कथाकार अमरकांत की कहानियों में सामाजिक चेतना का अध्ययन करना है । |
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साहित्यावलोकन | कथाकार अमरकांत बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। कहानी, उपन्यास, बाल एवं बद्ध लघु साहित्य, प्रौढ़साहित्य एवं संस्मरण आदि क्षेत्रों में सर्जृनात्मक साहित्य के साथ-साथ यह एक उच्च कोटि के पत्रकार भी रहे है। समय की गतिशील धारा को अपने कथा साहित्य में समेट कर गद्य साहित्य को इन्होंने एक नई दिशा प्रदान की है। आजादीपरवर्ती बदलते सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के परिणाम स्वरूप मानवतावादी दृष्टिकोण का जन्म हुआ। अमरकांत ने इसी सामाजिक सच्चाईयों का यथार्थ के ठोस धरातल पर चित्रण करने वाली कुल (138) एक सौ अड़तीस कहानियों का लेखन किया जो ‘अमरकान्त की प्रतिनिधी कहानियाँ (भाग 1 एवं भाग 2) के नाम से प्रकाशित हुई। इस सम्बन्ध में डॉ. नलिन रंजन सिंह लिखते है कि - ‘‘अमरकांत एक प्रगतिशील कथाकार है जो समाज के अन्तर्विरोधों को पकड़कर अपने रचना-सूत्र का विकास करते हैं। समाज से सम्बन्धित किसी भी घटनाक्रम का ज्यों का त्यों चित्रण ही सामाजिक यथार्थ है। सामाजिक यथार्थ से ही साहित्य में अभिरूचि उत्पन्न होती है, क्योंकि साहित्य का प्रयोजन किसी भी सच्चाई का वास्तविक तौर पर चित्रण करना होता है।‘‘1 अमरकांत की कहानियोें का केन्द्र बिन्दु मूलरूप से मध्यवर्गीय (ग्राम्य-कस्बाई) भारतीय समाज रहा है। अतः इनकी कहानियाँ समाज में पति-पत्नी सम्बन्ध, संयुक्त परिवारों का विघटन, नारी के प्रति समाज की कामुकतावादी दृष्टि, स्त्री सुरक्षा एवं न्याय, पुरूषवर्चस्वादी समाज में नारी की स्थिति, सम्बन्धों में टूटन एवं बिखराव का यथार्थ चित्रण करती हैं। आर्थिक अभाव पारिवारिक सम्बन्धों में किस प्रकार टकराव एवं संघर्ष उत्पन्न करता है इसे इनकी ‘मूस‘ः एवं निर्थसित‘ जैसी कहानियाँ बया करती है। ‘मूस‘ की पत्नी परबतिया पति के काम पर न जाने पर ‘उसे दो बिते का मर्द‘ कहकर प्रताड़ित करती है - ‘‘देखती हूँ बड़ी मोटाइनी छा गयी है।‘‘ अकाल की मार में त्रस्त परबतिया अपने पति का विवाह मुनरी से करा देती है जो आर्थिक विवशता समाज में व्यक्ति को इतना विवश कर देती है कि एक स्त्री पत्नी होते हुए भी सम्बन्धों की यौन सम्वेदना पर विचार न कर उसे व्यवसाय बना देती है।‘‘2 इसी प्रकार निर्बसित‘ कहानी में भी प्रकृति का प्रकोप अकाल के रूप में परिवार के विघटन का कारण बनता है। (गंगू) वह कहता है - ‘‘उसी समय मुझे बुखार आने लगा था। दो महीने तक मैं इसी तरह चारपाई पर पड़ा रहा। मैं खाना पूरा न मिलने पर महरारू और बच्चों को गालियाँ देता।3 संवेदना के स्तर पर पिता-पुत्र के सम्बन्धों में टूटन की पीड़ा को उजागर करती है अमरकांत की ‘कुहासा‘ कहानी। ‘कुहासा‘ का दूबर गाँव के एक खेतीहर‘ किसान का पुत्र है जिसकी अकाल में फसल नष्ट हो जाने से रोजी-रोटी की तलाश में शहर में शरण लेता है कहता है कि -‘‘आषाढ़ भी बिन बरसे बीत गया था। बारिश न होने से खेती चौपट हो गई। गाँ में मर-मजूरी काम न था। चारों और त्राहि-त्राहि मची थी। गरीब लोग दाने-दाने को तरस कर घास-पात खा रहे थे। उस छोकरे के बाप झीगुंर ने तंग आकर उसे मार-पीट कर घर से निकाल दिया।‘‘4 स्वतत्रंतापरवर्ती भारतीय समाज में नारी की शिक्षा एवं स्वतंत्रा, अधिकार एवं उत्पीड़न, सुरक्षा एवं न्याय को अमरकांत की ‘लाखों‘ कहानी बखूबी उजागर करती है। ‘लोखों‘ कहानी की नाटिका एक परित्यक्त, लाचार एवं दुखहारी नारी है, जो अपनी व्यथा प्रकट करती हुई कहती है कि -‘‘ना ए मालिक, गाँ-घर का पता जानकर क्या करोगे ? मैं अब वहाँ नहीं जाऊगी। घर में सौत बैठा ली है ? लड़के को भी मुझसे झीन लीया है, दोनों मिलकर मेरी कुटम्मस करते है।‘‘5 इसी प्रकार ‘स्वमाी‘ शीर्षक कहानी में पति मनोहरलाल का अपनी पत्नी नीलिमा पर सन्देह परिवार के पतन का कारण बनता है। नौकर हरिया से वह पत्नी को अवैध सम्बन्ध के सन्देह में विघटन का जन्म होता है। नीलिमा स्वयं कहती है कि -‘‘वह घर आकर खोद-खोदकर पूछते रहते है कि वह दिन भर क्या करती रही ? कभी-कभी वह अचानक कचहरी से लौट कर दोपहर को घर आते, सिर्फ यह देखने की निलिमा किसी के साथ हम बोल तो नहीं रही है। देखते ही देखते घर एक चमन से कबिस्तान बन गया था।‘‘6 अमरकांत की कहानियाँ समाज में नारी जीवन की सच्चाई को बया करती हुई स्त्री शिक्षा एवं स्वतंत्रता को स्वर प्रदान करती है। ‘सवालों के बीच की लड़की‘‘ की केन्द्रीय पात्र जानकी नवविचारों की समर्थक है परन्तु घर की गरीबी एवं समाज की स्त्री विराधी रूढ़ एवं जर्जर परम्पराएँ इसमें बाधक है। इसी तरह ‘पलाश के फूल‘ में अमरकांत ग्रामीण भारतीय समाज में सामन्ती, जमींदारी एवं पूँजीवादी व्यवस्था के शोषण को पूरी सच्चाई के साथ चित्रित करते है जो स्त्री असुरक्षा एवं असित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। भुलई किसान की बेटी अंजोरिया का सामन्त रायबहादुर साहब देह शोषण करते है। पिता के विरोध करने पर अपनी दबंग प्रवृत्ति एवं अर्थ के बल पर उन्हें चुप करा दिया जाता है - ‘‘उसका बाप भुलई मेरा ही असामी था, सीधा साधा किसान, जिसे पेट भरने के लिए खेती के अलावा इधर-उधर मजदूरी भी करनी पड़ती। मैने उसकी लड़की जिसका नाम अंजोरिया था, अकेले में पाकर एक दो बार छेड़ा भी, पर वह नयी घोड़ी की तरह बिदकर भाग जाती।‘‘7 नारी मानसिकता के सन्दर्भ में समस्याओं तथा उससे जुड़े प्रश्नों पर अमरकांत ने खुले रूप में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया है। आजादी परवर्ती भारतीय जनता ने जीवन की मूलभूत आवश्यकाताओं के सम्बन्ध में जो सपना देखा वह टूट जाने से मोहभंग की स्थिति बनी। समाज में बेगार एवं बेरोजगारी की परिस्थितियों ने वर्ग-संघर्ष एवं विषमताओं को उत्पन्न किया। अमरकांत की ‘कुहासा‘, ‘नौकर‘, ‘मूस‘, जिन्दगी एवं जोकं‘, ‘दोपहर का भेाजन‘ ‘इटरव्यूं‘, ‘दो चरित्र‘ आदि जैसी कहानीयाँ इन्हीं सामाजिक समस्याओं को उजागर करती है। समाज में उच्च, मध्य एवं निम्न वर्ग जो वर्तमान आर्थिक सामाजिक स्तंभ हैं वही समाज मेें पतन की स्थितियों को जन्म देते है। ‘नोकर‘ कहानी का निम्नवर्गीय जन्तू वकील के नौकरी करता है अभिजात्य वर्ग के शोषण का शिकार बनता है तो ‘जिन्दगी और जोंक‘ का रजुआ समाज की करूणा एवं दया का पात्र न बनकर मार खाता है। शिवनाथ बाबू के द्वारा साड़ी चुनाने का आरोप; निरन्तर सूखे भेाजन पर गालीयाँ खाते हुए काम करने को मजबूर है। गाल पर थप्पड़ खाने के बाद वह गरजकर कहते है कि - ‘‘सुअर धोखा देता है। अब आज मैं दिन भर काम कराऊंगा, देखे कौन साला रोकता है।‘‘- इसी तरह ‘इंटरव्यू‘ ने वर्तमान युवा वर्ग का नौकरी की तलाश में दर-दर ठोखरे खाना एवं उम्मीदार चयन में भष्ट्राचार का व्याप्त होना देखा जा सकता हे। लेखक के यथार्थ अनुभवों की अभिव्यक्ति इस कहानी में है- ‘‘मोटे तौर पर वहां तीन श्रेणियों के नवयुवक थे। पहली आम श्रेणी में ऐसे लोग थे, जिनकी योग्यता अधिक से अधिक इंटरमीडिएट तक थी। दूसरे श्रेणी में खोटे सिक्कों की तरह बेचलतू बकील, होम्योपैथी डाकटर, वैद हकीम थे एवं तीसरी श्रेणी में कुछ ऐसे खानदानी विद्यार्थी थे, जिनकी आर्थिक स्थिति तेजी से बिगड़ रही थी और उकने घरवालों ने उन्हें जबरदस्ती भेजा था।‘‘8 ‘दोपहर का भोजन‘ ग्राम्य भारतीय समाज के परिवार के बेरोजगारी एवं विपन्नता के मार झेलते परिवार की कथा-व्यथा है। एक तरफ रोजगार की तलाश में बड़ै बेटे का नौकरी ढूढ़ना, मुंशी जी का कलर्की विभाग से निकाला जाना तो दूसरी तरफ समाज की द्ररिद्रता को हम सिद्धेश्वरी के इस कथन से अनुभव कर सकते है।‘‘ उसने कुछ देर तक एक टक देखा, फिर रोटी को दो टुकड़ों में बाँट दिया। एक टुकड़े को अलग रख देना और दूसरे को झठी थाली में रख दिया। एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गयी। उसने पहला ग्रास मुँह में रखा कि तब न जाने कहाँ से आँखों से टप-टप आँसू चूने लगे।9 सिद्धेश्वरी का पूरा का पूरा परिवार बेकारी और भूख की मार से त्रस्त है। ‘दो चरित्र‘ कहानी से भी बेकारी की समस्या का सफल चित्रण हुआ है जो अभिजात्य वर्ग के जनार्दन के दोहरे चरित्र को उजागर करती है इसी तरह ‘कुहासा‘, ‘मूस, मकान‘, छिपकली, ‘जन्म कुण्डली में भी समाज की समस्याओं का ताना-बाना बुना हुआ है। |
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निष्कर्ष |
अमरकांत ने आजादी परवर्ती समाज में उत्पनन यौ चेतना एवं सम्वेदना, विवाहेत्तर सम्बन्ध, प्रेम में उत्पन्न हताश एवं निराशा, यौन शोषण एवं असफल प्रेम सम्बन्धों को भी एक भंयकर समस्या के रूप में प्रस्तुत कर समाधान को वाणी प्रदान की है। इनकी ‘असमर्थ हिलता हाथ‘, ‘लाखों‘, एवं ‘मूस‘ कुछ ऐसी ही कहानियाँ हैं। ‘मूस‘ की मुनरी आर्थिक विपन्नता के परिणामस्वरूप परबतिया की सोतन बनकर मूस के घर आती है, तो ‘असमर्थ हिलता हाथ‘ में कहानी की मुख्य पात्र मीना अपने ही भाई के दोस्त से प्रेम करने की गलती कर बैठती है तो पूरे परिवार में एक भूचाल सा आ जाता है। मीना का भाई चिल्लाते हुए कहता है कि - ‘‘मैने आईंदा तुमको कीाी उसके साथ देख लिया तो मार डालूंगा। मैं नहीं जानता था कि वह आस्तीन का साँ है।‘‘10 ‘हौसला‘ कहानी की कमला समझदार एवं शिक्षित युवती होने से जब अपना जीवन साथी खुद चुनती है परन्तु रूढ़ एवं जर्जर सामाजिक बन्धनों में जकड़ी उसकी मां इस प्रेम सम्बन्ध को स्वीकार नहीं करती है कहती है कि -‘‘जब तक मैं जिन्दा हूँ, यह शादी नहीं हो सकती। तुझे समाज में रहना है या नहीं।‘‘11 इस प्रकार अमरकांत की लगभग सभी कहानियाँ समाज में व्याप्त पारिवारिक टूटन, बिखराव, भूख, समाज में स्त्री शोषण, असफल प्रेम को दर्शाती कहानियाँ है जो सामाजिक जीवन वृत्ति का खण्डन कर मानवतावादी जीवन दृष्टि का पोषण करती हुई नजर आती हैं। इस प्रकार हम कह सकते है कि अमरकांत एक ऐसे कहानीकार है जेा अपने देखे, भोगे एवं परखे हुए सामाजिक यथार्थ को अपनी कहानियों में पुकारते हैं। इनकी कहानियाँ समाज के प्रति प्रमाणिक दस्तोवज कहीं जा सकती है जो समाज के विविध पक्षों को बखूबी चित्रित करती हैं। इनकी कहानियों का न केवल भावात्मक धरातल अपनी शिल्पगत धरातल भी बेजोड़ है। अपने समय की सामाजिक सच्चाईयों को बया करती इनकी कहानियों में सरलता, सहजता, सादगीपूर्णता के साथ-साथ जिजीविषा का ताना-बाना बुना गया है, जो तात्कालिन समाज का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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