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लघु एवं कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन में सरकारी योजनाओं का योगदान
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Contribution Of Government Schemes In The Promotion Of Small And Cottage Industries | |||||||
Paper Id :
19235 Submission Date :
2024-08-11 Acceptance Date :
2024-08-19 Publication Date :
2024-08-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13777774 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
लघु एवं कुटीर उद्योग, वर्तमान में ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकास के प्रमुख आधार स्तम्भों में से एक है। इस प्रकार के उद्योग समय के साथ-साथ व्यापक रूप से देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं तथा देश के आर्थिक विकास एवं जन- कल्याण में अपनी विशेष भूमिका का भी निर्वहन कर रहे हैं। समय के साथ-साथ तथा तकनीकी विकास के कारण वृहत उद्योगों का वर्चस्व बढने लगा तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों का क्षेत्र घटता गया परिणाम स्वरूप बेरोजगारी व अर्ध-बेरोजगारी का स्तर बढ़ता गया। देखा जाये तो यहां बेराजगारी में वृद्वि का मुख्य कारण तो जनसंख्या में अनियन्त्रित वृद्वि है किन्तु कुछ हद तक लघु एवं कुटीर उद्योगों का पतन भी उपरोक्त समस्या का कारण रहा है। देश में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरुप व्यापक उद्योगों का विस्तार तो तेजी से हुआ परंतु छोटे और मंझौले उद्योगों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया जबकि लघु एवं कुटीर उद्योगों के निर्माण के लिए किसी आधारभूत संरचना व ढांचे की आवश्यकता नहीं है तथा इन उद्योगों को सरलता से देश के ग्रामीण सुदूर क्षेत्रों तक भी स्थापित किया जा सकता है। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि आधुनिक विशालकाय उद्योगों की निरंतर गति के बाद भी लघु-कुटीर उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। जब हम कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन की बात करते हैं तो हमारा ध्यान स्वतः ही सरकार की विभिन्न नीतियों एवं योजनाओं की तरफ आकर्षित होता है। इन सरकारी नीतियों एवं योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य लघु-कुटीर उद्योगों में विस्तार करना एवं उसमें संलग्न रोजगार को प्रशिक्षित करके एक संतुलित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। सरकार स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही लघु एवं कुटीर उद्योगों में हो रहे पतन को लेकर चिंतित रही है। स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों की दमनकारी नीति ने उद्योगों को जो क्षति पहुंचाई उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। स्वतंत्रता पश्चात् देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के साथ-साथ संतुलित विकास हेतु कुटीर उद्योगों पर भी विशेष ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे देश की परंपरागत पीढ़ी को रोजगार के अवसर प्राप्त होते रहें तथा अपनी आजीविका के लिए आत्मनिर्भरता बनी रहे। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Small and cottage industries are currently one of the main pillars of rural economy development. These types of industries are contributing to the country's economy in a big way with time and are also playing their special role in the country's economic development and public welfare. With time and due to technological development, the dominance of large industries started increasing and the area of small and cottage industries kept decreasing, as a result, the level of unemployment and semi-unemployment kept increasing. If seen, the main reason for the increase in unemployment here is the uncontrolled growth in population, but to some extent the decline of small and cottage industries has also been the reason for the above problem. As a result of the industrial revolution in the country, large industries expanded rapidly, but attention was not given to small and medium industries, whereas no basic structure and framework is required for the creation of small and cottage industries and these industries can be easily established even in the remote rural areas of the country. Therefore, it would not be inappropriate to say that despite the continuous progress of modern giant industries, small-cottage industries hold an important place in the country's economy. When we talk about the promotion of cottage industries, our attention is automatically drawn towards the various policies and schemes of the government. The main objective of these government policies and schemes is to expand small-cottage industries and create a balanced economy by training the employment engaged in it. The government has been concerned about the decline in small and cottage industries since the time of independence. The damage caused to the industries by the oppressive policy of the British before independence cannot be imagined. After independence, along with strengthening the economic structure of the country, special attention was also focused on cottage industries for balanced development, so that the traditional generation of the country continues to get employment opportunities and remains self-reliant for their livelihood. |
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मुख्य शब्द | लघु-कुटीर उद्योग एवं सरकारी योजनाएं। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Small-Cottage Industries And Government Schemes. | ||||||
प्रस्तावना | ग्रामीणों के आर्थिक विकास एवं लघु-कुटीर उद्योगों में उद्यमिता को बढ़ावा देने व अतिरिक्त आय सृजन हेतु उद्यमिता उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य के लिए सशक्त रणनीति अपनानी पड़ती है। अतः सरकारी योजनाओं को परिवारों की आय के लिए पर्याप्त आजीविका और आर्थिक जीविका उत्पन्न करने एव लघु कुटीर उद्योगों के आर्थिक विकास हेतु एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मान्यता दी गई है। लघु तथा कुटीर उद्योगों से संबंधित सरकारी योजनाएं ग्रामीण लोगों के लिए नौकरियां व रोजगार पैदा करती हैं और समाज के प्रबंधन, संगठन और व्यावसायिक समस्याओं के विभिन्न समाधान प्रदान करती हैं। हालांकि सरकारी योजनाएं इन क्षेत्रों में अत्यधिक प्रभावित नहीं दिखाई पड़ती परंतु यह कहना अनुचित नहीं होगा कि लघु-कुटीर उद्योगों के संचालन के माध्यम से सरकारी योजनाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे से छोटे उद्योगों अथवा परिवारों तक अपनी पहुंच को बनाए रखा है तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार के नवीन सृजन करके शहरी पलायन को रोका है। इन सब के अतिरिक्त देश के संतुलित आर्थिक विकास में वृद्धि से लेकर सरकारी योजनाओं ने गरीबी में कमी, महिला सशक्तिकरण, सामुदायिक आर्थिक कल्याण एंव उद्यमिता का विकास आदि में योगदान दिया है। इस प्रकार सरकारी और अन्य विकासात्मक संगठनों, विभिन्न योजनाओं, प्रोत्साहनों और प्रचार-प्रसार उपायों के माध्यम से लघु-कुटीर उद्योगों ने सक्रिय रूप से आगे बढ़ने का काम किया हैै, तो वहीं दूसरी तरफ लघु-कुटीर उद्योग हेतु वित्तीय सेवाओं और औद्योगिक संस्थाओं को उनके पैसों का प्रबंध करने एवं उद्यमियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में सरकारी योजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। अध्ययन का औचित्य सरकार ने कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं। क्षेत्रों की परिस्थितियों एवं आवश्यकता अनुसार ही योजनाएं शुरू की जाती है। अनेक योजनाएं ऐसी होती हैं जो हर ग्रामीण सदस्य तक पहुंच कर इन योजनाओं को सफल बनाती हैं तथा कुछ योजनाएं ऐसी भी हैं जो अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाती है। क्योंकि प्रत्येक योजना एक निश्चित अवधि तथा विशेष उद्देश्य के लिए शुरू की जाती है तथा इसके बाद आवश्यकता अनुसार नई योजनाएं भी बनाई जाती हैं। अधिकांशतः देखा गया है कि सरकारी योजनाओं के मूल्यांकन में प्रारम्भ की गई योजनाओं की प्रभावशीलता में सुधार करने की अधिक शक्ति होती है। इस लेख का औचित्य उद्यमशीलता गतिविधियों के लिए कुटीर उद्योगों को सशक्त बनाने के लिए भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू की गई योजनाओं का मूल्यांकन करना है तथा ग्रामीण परिवारों के स्वरोजगार एवं उद्यमिता में हुई वृद्धि एवं लघु कुटीर उद्योगों के विकास में हुई वृद्धि का आकलन करके उपयुक्त सुझाव देना है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोध अध्ययन का उद्देश्य यही है कि किस प्रकार लघु-कुटीर उद्योगों के विकास में सरकारी योजनाएं अपना योगदान दे रही हैं। ग्रामीण रोजगार से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के संतुलित विकास में लघु-कुटीर उद्योगों ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वह किसी से छुपी हुई नहीं है। इसमें कोई सन्देह नहीं की लघु-कुटीर उद्योग अपने लक्ष्य के प्रति तटस्थ नजर आते हैं तथा भविष्य में भी अपने लक्ष्य की तरफ प्रगतिशील हैं।
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साहित्यावलोकन |
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विश्लेषण | सरकारी योजनाओं का महत्व
उपर्युक्त विभिन्न बोर्ड एवं संस्थाओं द्वारा संचालित प्रमुख योजनाएं निम्न प्रकार हैं-
लघु एवं कुटीर उद्योगों से संबंधित योजनाओं का योगदान
संक्षिप्त विश्लेषण |
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निष्कर्ष |
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्वपूर्ण स्थान है तो वही इन उद्योगों के सुचारू रूप से संचालन एवं उनके प्रबंधन हेतु सरकारी योजनाओं के योगदान की अवहेलना नहीं की जा सकती है। वे अपना प्रभुत्व बनाए हुए हैं। सरकार द्वारा विभिन्न संस्थाओं और बोर्ड की स्थापना से लेकर संबंधित योजनाओं का सफल संचालन सरकार की नीति व कार्य प्रणाली पर निर्भर करता है। समय-समय पर कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन एवं प्रचार-प्रसार व प्रबंधन हेतु सरकारी योजनाएं कारगर साबित हुई है। भावी पीढ़ी के रोजगार से संबंधित समस्याओं एवं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर सरकारी योजनाएं भावी विकास हेतु प्रयासरत हैं। इन सबके अतिरिक्त सरकार द्वार कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जैसे-विशेष संस्थाओं की स्थापना, वित्त प्रबंधन सुविधा, विपणन सुविधा, लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), लघु उद्योग बोर्ड, लघु उद्योग कार्ड योजना आदि। अतः यह कहना अनुचित न होगा की कुटीर उद्योगों के विकास में सरकारी योजनाएं अपनी क्षमता के अनुरूप महत्वपूर्ण ढंग से अपना योगदान दे रही है। अगर कहीं कोई योजना असफल है तो वहांँ सुधार की गुंजाइश है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | पुस्तकें:
पत्रिकाएँ एवं रिपोटर्सः
समाचार-पत्र:
इण्टरनेट वैब-साईट्स
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