P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- IX , ISSUE- V August  - 2024
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation

लघु एवं कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन में सरकारी योजनाओं का योगदान

Contribution Of Government Schemes In The Promotion Of Small And Cottage Industries
Paper Id :  19235   Submission Date :  2024-08-11   Acceptance Date :  2024-08-19   Publication Date :  2024-08-25
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DOI:10.5281/zenodo.13777774
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मौ0 आमिर
शोधार्थी
अर्थशास्त्र विभाग
मुलतानीमल मोदी कॉलेज
मोदीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत
मयंक मोहन
विभागाध्यक्ष
अर्थशास्त्र विभाग
मुलतानीमल मोदी कॉलेज
मोदीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश
लघु एवं कुटीर उद्योग, वर्तमान में ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकास के  प्रमुख आधार स्तम्भों में से  एक  है। इस प्रकार के उद्योग समय के साथ-साथ व्यापक रूप से देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं तथा देश के आर्थिक विकास एवं जन- कल्याण में अपनी विशेष भूमिका का भी निर्वहन कर रहे  हैं।
समय के साथ-साथ तथा तकनीकी विकास के कारण वृहत उद्योगों का वर्चस्व बढने लगा तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों का क्षेत्र घटता गया परिणाम स्वरूप बेरोजगारी व अर्ध-बेरोजगारी का स्तर बढ़ता गया। देखा जाये तो यहां बेराजगारी में वृद्वि का मुख्य कारण तो जनसंख्या में अनियन्त्रित वृद्वि है किन्तु कुछ हद तक लघु एवं कुटीर उद्योगों का पतन भी उपरोक्त समस्या का कारण रहा है। देश में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरुप व्यापक उद्योगों का विस्तार तो तेजी से हुआ परंतु छोटे और मंझौले उद्योगों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया जबकि लघु एवं कुटीर उद्योगों के निर्माण के लिए किसी आधारभूत संरचना व ढांचे की आवश्यकता नहीं है तथा इन उद्योगों को सरलता से देश के ग्रामीण सुदूर क्षेत्रों तक भी स्थापित किया जा सकता है। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि आधुनिक विशालकाय उद्योगों की निरंतर गति के बाद भी लघु-कुटीर उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
जब हम कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन की बात करते हैं तो हमारा ध्यान स्वतः ही सरकार की विभिन्न नीतियों एवं योजनाओं की तरफ आकर्षित होता है। इन सरकारी नीतियों एवं योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य लघु-कुटीर उद्योगों में विस्तार करना एवं उसमें संलग्न रोजगार को प्रशिक्षित करके एक संतुलित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। सरकार स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही लघु एवं कुटीर उद्योगों में हो रहे पतन को लेकर चिंतित रही है। स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजों की दमनकारी नीति ने उद्योगों को जो क्षति पहुंचाई उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। स्वतंत्रता पश्चात् देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के साथ-साथ संतुलित विकास हेतु कुटीर उद्योगों पर भी विशेष ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे देश की परंपरागत पीढ़ी को रोजगार के अवसर प्राप्त होते रहें तथा अपनी आजीविका के लिए आत्मनिर्भरता बनी रहे।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Small and cottage industries are currently one of the main pillars of rural economy development. These types of industries are contributing to the country's economy in a big way with time and are also playing their special role in the country's economic development and public welfare.
With time and due to technological development, the dominance of large industries started increasing and the area of small and cottage industries kept decreasing, as a result, the level of unemployment and semi-unemployment kept increasing. If seen, the main reason for the increase in unemployment here is the uncontrolled growth in population, but to some extent the decline of small and cottage industries has also been the reason for the above problem. As a result of the industrial revolution in the country, large industries expanded rapidly, but attention was not given to small and medium industries, whereas no basic structure and framework is required for the creation of small and cottage industries and these industries can be easily established even in the remote rural areas of the country. Therefore, it would not be inappropriate to say that despite the continuous progress of modern giant industries, small-cottage industries hold an important place in the country's economy.
When we talk about the promotion of cottage industries, our attention is automatically drawn towards the various policies and schemes of the government. The main objective of these government policies and schemes is to expand small-cottage industries and create a balanced economy by training the employment engaged in it. The government has been concerned about the decline in small and cottage industries since the time of independence. The damage caused to the industries by the oppressive policy of the British before independence cannot be imagined. After independence, along with strengthening the economic structure of the country, special attention was also focused on cottage industries for balanced development, so that the traditional generation of the country continues to get employment opportunities and remains self-reliant for their livelihood.
मुख्य शब्द लघु-कुटीर उद्योग एवं सरकारी योजनाएं।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Small-Cottage Industries And Government Schemes.
प्रस्तावना
ग्रामीणों के आर्थिक विकास एवं लघु-कुटीर उद्योगों में उद्यमिता को बढ़ावा देने व अतिरिक्त आय सृजन हेतु उद्यमिता उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य के लिए सशक्त रणनीति अपनानी पड़ती है। अतः सरकारी योजनाओं को परिवारों की आय के लिए पर्याप्त आजीविका और आर्थिक जीविका उत्पन्न करने एव लघु कुटीर उद्योगों के आर्थिक विकास हेतु एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में मान्यता दी गई है। लघु तथा कुटीर उद्योगों से संबंधित सरकारी योजनाएं ग्रामीण लोगों के लिए नौकरियां व रोजगार पैदा करती हैं और समाज के प्रबंधन, संगठन और व्यावसायिक समस्याओं के विभिन्न समाधान प्रदान करती हैं। हालांकि सरकारी योजनाएं इन क्षेत्रों में अत्यधिक प्रभावित नहीं दिखाई पड़ती परंतु यह कहना अनुचित नहीं होगा कि लघु-कुटीर उद्योगों के संचालन के माध्यम से सरकारी योजनाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे से छोटे उद्योगों अथवा परिवारों तक अपनी पहुंच को बनाए रखा है तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार के नवीन सृजन करके शहरी पलायन को रोका है। इन सब के अतिरिक्त देश के संतुलित आर्थिक विकास में वृद्धि से लेकर सरकारी योजनाओं ने गरीबी में कमी, महिला सशक्तिकरण, सामुदायिक आर्थिक कल्याण एंव उद्यमिता का विकास आदि में योगदान दिया है।
इस प्रकार सरकारी और अन्य विकासात्मक संगठनों, विभिन्न योजनाओं, प्रोत्साहनों और प्रचार-प्रसार उपायों के माध्यम से लघु-कुटीर उद्योगों ने सक्रिय रूप से आगे बढ़ने का काम किया हैै, तो वहीं दूसरी तरफ लघु-कुटीर उद्योग हेतु वित्तीय सेवाओं और औद्योगिक संस्थाओं को उनके पैसों का प्रबंध करने एवं उद्यमियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में सरकारी योजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं।
अध्ययन का औचित्य
सरकार ने कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं। क्षेत्रों की परिस्थितियों एवं आवश्यकता अनुसार ही योजनाएं शुरू की जाती है। अनेक योजनाएं ऐसी होती हैं जो हर ग्रामीण सदस्य तक पहुंच कर इन योजनाओं को सफल बनाती हैं तथा कुछ योजनाएं ऐसी भी हैं जो अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाती है। क्योंकि प्रत्येक योजना एक निश्चित अवधि तथा विशेष उद्देश्य के लिए शुरू की जाती है तथा इसके बाद आवश्यकता अनुसार नई योजनाएं भी बनाई जाती हैं।
अधिकांशतः देखा गया है कि सरकारी योजनाओं के मूल्यांकन में प्रारम्भ की गई योजनाओं की प्रभावशीलता में सुधार करने की अधिक शक्ति होती है। इस लेख का औचित्य उद्यमशीलता गतिविधियों के लिए कुटीर उद्योगों को सशक्त बनाने के लिए भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू की गई योजनाओं का मूल्यांकन करना है तथा ग्रामीण परिवारों के स्वरोजगार एवं उद्यमिता में हुई वृद्धि एवं लघु कुटीर उद्योगों के विकास में हुई वृद्धि का आकलन करके उपयुक्त सुझाव देना है।
अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोध अध्ययन का उद्देश्य यही है कि किस प्रकार लघु-कुटीर उद्योगों के विकास में सरकारी योजनाएं अपना योगदान दे रही हैं। ग्रामीण रोजगार से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के संतुलित विकास में लघु-कुटीर उद्योगों ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वह किसी से छुपी हुई नहीं है। इसमें कोई सन्देह नहीं की लघु-कुटीर उद्योग अपने लक्ष्य के प्रति तटस्थ नजर आते हैं तथा भविष्य में भी अपने लक्ष्य की तरफ प्रगतिशील हैं।
प्रस्तावित शोध अध्ययन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. उन योजनाओं का विश्लेषण करना है जो सरकार द्वारा संपूर्ण देश में संचालित हैं।
  2. ग्रामीण एवं अर्ध शहरी क्षेत्रों में लघु-कुटीर उद्योगों से संबंधित योजनाओं का विश्लेषण करना ।
  3. लघु-कुटीर उद्योगों के लिए सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता का अध्ययन करना ।
  4.  उद्यमशीलता गतिविधि के लिए लघु-कुटीर उद्योगों को सशक्त बनाने के लिए निर्मित योजनाओं का मूल्यांकन करना।
साहित्यावलोकन
  1. 7 जून 2019, हिंदुस्तान के पेज नंबर 7 के अनुसार ’’जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान 33 प्रतिशत, निर्माण क्षेत्र में 33 प्रतिशत और निर्यात में 45 प्रतिशत है। वहीं लगभग 5 करोड़ से अधिक उद्यमों से यह 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देता है। एमएसएमई मिनिस्ट्री के अंतर्गत कार्यरत केवीआइसी और कॉयर बोर्ड के साथ यह सेक्टर कृषि के बाद सबसे बड़ा नौकरी देने वाला सेक्टर है, जबकि एमएसएमई ने लगभग 10 प्रतिशत की निरंतर वृद्धि की है जो बड़े कॉरपोरेट क्षेत्र से ज्यादा है।’’.
  2. 7 सितंबर 2023 हिंदुस्तान के पेज नंबर 7 पर बताया गया है कि प्रदेश में एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अपनी औद्योगिक नीतियों में मूलभूत परिवर्तन किया है। सरकार द्वारा क्लस्टर कॉन्सेप्ट लागू कर उद्योगों के लिए सस्ती जमीन, सस्ती बिजली और उत्कृष्ट अधोसंरचना उपलब्ध कराई जा रही है। क्लस्टर फॉर्मेशन पॉलिसी के तहत सरकार द्वारा अब तक 60 औद्योगिक क्लस्टर मंजूर किए जा चुके हैं। उसके अलावा 33 और क्लस्टर अगले दो माह के भीतर धरातल पर आ जाएंगे। बेहतर औद्योगिक अधोसंरचना सुविधा के लिए उद्योगों के क्लस्टर विकसित किया जा रहे हैं। ’एक जिला एक उत्पाद’ से रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैंे। सरकार बेहतर से बेहतर औद्योगिक वातावरण बनाने के लिए कटिबध है। एमएसएमई को कॉमर्शियल बनाने के लिए कारगर कदम उठाए गए हैं। एग्रो प्रोसेसिंग को मध्य प्रदेश में विशेष बढ़ावा दिया जा रहा है।
  3. कुरुक्षेत्र अगस्त 2019, ऋषभ कृष्णा सक्सेना की एक रिपोर्ट के अनुसार, ’’तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि गांँव में से शहरों की ओर पलायन रोकने का अच्छा तरीका ग्रामीण लघु उद्योग लगाना है। कुटीर उद्योग भी ये काम कर सकते हैं। कपास हो, सब्जियां हो, फल हो या दूसरे कृषि उत्पादन हो, यदि उन्हें बाजार आसानी से नहीं पहुंचाया जा सकता तो उनके ऐसे उत्पाद तो तैयार हो सकते हैं, जिन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके और कीमत भी अधिक मिल सके ।
  4. नितिन प्रधान, कुरुक्षेत्र पत्रिका जुलाई 2022, देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर आज भी लघु उद्योग क्षेत्र पर काफी हद तक निर्भर करती हैं। लघु एवं कुटीर उद्योगों में कम पूंजी की मदद से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं। यही नहीं इसके जरिए अधिक मात्रा में रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जा सकते हैं। ग्रामीण भारत में लघु व सूक्ष्म उद्योगों के योगदान को देखते हुए सरकार भी इन पर विशेष ध्यान दे रही हैं। खादी और ग्राम उद्योग आयोग ने इस दिशा में काफी तेजी से काम किया हैंं। खादी और ग्राम उद्योग आयोग न केवल देश के विशाल ग्रामीण क्षेत्र द्वारा तैयार वस्तुओं की बुनियादी जरूरत को पूरा करता है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 152 लाख लोगों को स्थाई रोजगार भी प्रदान करता हैं।
विश्लेषण

सरकारी योजनाओं का महत्व
विश्व के विकसित देशों में जहांँ बड़े-बड़े उद्योगों का प्रभुत्व है वहीं भारत जैसे विकासशील देशों में लघु एवं कुटीर उद्योगों का जाल बिछा हुआ है। नियोजित विकास के दौरान बड़े पैमाने पर लघु और कुटीर उद्योगों का प्रभावशाली विकास किया गया जिनकी उपयोगिता छोटे एवं विकासशील देशों में और भी अधिक है, विशेषकर भारत में जहाँं श्रम की अतिरिक्त प्रधानता एवं पूंजी का अभाव है।
पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से लघु एवं कुटीर उद्योगों को उनके महत्व के अनुरूप उचित स्थान प्रदान किया गया। कर्वे समिति के द्वारा उद्योगों के विकास एवं उनकी प्रगति पर विशेष बल दिया गया तथा इन उद्योगों के विकास हेतु 43 करोड़ रुपए व्यय किए गए। खा़दी वस्तु उद्योग एवं कृषि उपकरण जैसे उद्योगों को लघु उद्योगों में सम्मिलित किया गया। देश को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सरकार ने लघु एवं कुटीर उद्योगों का संचालन किया गया। न सिर्फ कच्चे माल से लेकर विपणन तक अपितु यातायात सुविधा एवं वित्त से लेकर शिक्षण प्रशिक्षण के माध्यम से लघु-कुटीर उद्योगों का उत्थान किया गया।
पिछले कुछ दशको में लघु एवं कुटीर उद्योगों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ा। जैसे-परंपरागत तकनीक, कच्चा माल, पूंजी की अपर्याप्तता, मानव दक्षताओं एवं कलात्मक रुचियों में परिवर्तन तथा निर्मित वस्तुओं के मांग में कमी आदि। वर्तमान में इन उद्योगों के महत्व को देखते हुए सरकारी योजनाओं ने लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करने तथा रोजगार उत्पन्न करने हेतु भारत सरकार ने विभिन्न वैज्ञानिक संगठन और संबंधित बोर्ड एवं संस्थाओं की स्थापना की है। यह रोजगार कार्यक्रम सरकारी एजेंसियों और बैंकों की मदद से चलाए जाते हैं।
उपर्युक्त के अतिरिक्त लघु एवं कुटीर उद्योगों से संबंधित प्रमुख बोर्ड एवं संस्था निम्न प्रकार है -

  1. खा़दी और ग्राम उद्योग आयोग (केवीआईसी)
  2. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड
  3. महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान
  4. कॉयर बोर्ड

उपर्युक्त विभिन्न बोर्ड एवं संस्थाओं द्वारा संचालित प्रमुख योजनाएं निम्न प्रकार हैं-

  1. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम 
  2. प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना
  3. एमएसएमई के लिए ब्याज अनुदान योजना
  4. स्टैंड अप इंडिया योजना
  5. स्टार्टअप इंडिया जवाहर ग्राम समृद्धि योजना
  6. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
  7. सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण योजना

लघु एवं कुटीर उद्योगों से संबंधित योजनाओं का योगदान
लघु एवं कुटीर उद्योगों के उत्थान में सरकारी योजनाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। स्किल इंडिया कार्यक्रम के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पूरे भारत में लगभग 50 करोड़ भारतीयों को विभिन्न योजनांतर्गत 2022 तक प्रशिक्षित करने तथा उनकी कार्य क्षमता में वृद्धि करने के उद्देश्य से ’’कुशल भारत- कौशल भारत’’ योजना की शुरूआत की है। नवंबर 2021 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने उद्यमिता और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम ’संभव’ शुरू किया। सरकारी योजनाओं ने समय-समय पर इन उद्योगों को विकास के लिए विभिन्न प्रयोजन किये। इन प्रयोजन के माध्यम से न सिर्फ देश के उद्योगों का विकास हुआ अपितु स्थानीय स्तर पर रोजगार में भी वृद्धि हुई।
सरकारी योजनाओं के योगदान का निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर भी विश्लेषित किया जा सकता है।

  1. सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2024 तक उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत एमएसएमई की संख्या (जिसमें उधम सहायता प्लेटफार्म भी शामिल है) 40042875 तक पहुंच गई है, जिसमें निरंतर वृद्धि देखी गई है। इनमें से 39318355 को सूक्ष्म उद्योगों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो कुल पंजीकृत उद्योगों का लगभग 97.7 प्रतिशत है। छोटे उद्योगों की संख्या 608935 है, जो लगभग 1.5 प्रतिशत है। जबकि मध्यम आकार के उद्योगों की संख्या 55488 है, जो कुल पंजीकृत संख्याओं का लगभग 0.8 प्रतिशत है । 
  2. रोजगार सृजन का सर्वेक्षण और एमएसएमई क्षेत्र का नजरिया नामक एक  रिपोर्ट के अनुसार पर्यटन क्षेत्र एवं हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में रोजगार सृजन सबसे आगे रहा तथा वस्त्र और धातु उत्पादन से जुड़े क्षेत्र क्रमशः दो और तीन स्थान पर रहे। एमएसएमई मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट 2017-18 के अनुसार लगभग 70 लोगों को रोजगार मिला। एक सर्वे के अनुसार 2015-2019 तक के 4 वर्षों के दौरान एमएसएमई क्षेत्र रोजगार पैदा करने में सबसे आगे रहा है।
  3. 8 जुलाई 2022 तक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत स्वीकृत ऋणों की संख्या 10.03 मिलियन थी और वितरित राशि 73199.89 करोड़ रूपये थी।
  4. 30 मार्च 2022 को भारत सरकार ने एमएसएमई प्रदर्शन को बढ़ाने और गति देने योजना के लिए 6062.45 करोड़ रूपये आवंटित किए। 
  5. 2008-09 में अपनी स्थापना के बाद से 30 नवंबर 2023 तक प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम ने लगभग 929000 सूक्ष्म उद्योगों को सहायता प्रदान की है, जिसकी राशि 34517 करोड़ रुपए है। इस पहल ने अनुमानित 7.836 मिलियन स्थाई रोजगार अवसरों के सृजन में मदद की है।

संक्षिप्त विश्लेषण
किसी भी प्रगतिशील राष्ट्र में लघु कुटीर उद्योगों के उत्थान एवं उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नीतियों एवं योजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसमें कोई संदेह नहीं की सरकारी योजनाएं आर्थिक कल्याण में मजबूत योगदान दे सकती हैं। सरकार की नीतियों एवं योजनाओं को आमतौर पर निर्णयों का मार्गदर्शन करने और उन्हें तर्कसंगत परिणाम प्राप्त करने के लिए जानबूझकर की गई कार्य योजना के रूप में वर्णित किया जाता है। लघु तथा कुटीर उद्योगों में आवश्यकता अनुसार राष्ट्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर इन उद्योगों की आवश्यकता पूरा करने के लिए निरंतर परिवर्तन एवं नीतियाँ लागू की गई हैं ताकि लघु-कुटीर उद्योगों को सशक्त बनाकर जनकल्याण को बढ़ाया जा सके तथा अधिकतम लाभ उठाया जा सके।
सुझाव
भारत में बढ़ रही बेरोजगारी एवं अर्ध बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के उद्देश्य से तथा ग्रामीण लोगों की आर्थिक आजीविका और क्षेत्रीय विषमताओं को कम करने के लिए व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह काम सरकारी योजनाओं द्वारा कुटीर उद्योगों को सक्षम बनाकर किया जा सकता है। वर्तमान समय औद्योगीकरण का युग है। देश में त्रीवगति के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग करके नवाचार के द्वारा उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान युग में सरकार को इस पर ध्यान देने की अत्याधिक आवश्यकता है।
वहीं दूसरी तरफ सबसे बड़ी समस्या सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार की है। सरकारी योजनाओं का संचालन तथा उसका उद्देश्य तो सही दिशा में प्रतीत होता है, परंतु यदि स्थानीय स्तर पर हम निरीक्षण करते हैं तो पाते हैं कि सरकारी योजनाओं के बारे में स्थानीय लोगों को जानकारी ही नहीं है। सरकारी योजनाओं से लाभ लेने वाले लाभार्थियों का अनुपात उसे स्थान की जनसंख्या के अनुपात में बहुत न्यूनतम है। अधिकांश लघु एवं कुटीर उद्योग असंगठित क्षेत्र में ही कार्य करते हुए अपनी आजीविका का सृजन कर रहे हैं। अतः संबंधित बोर्ड एवं संस्थाओं के द्वारा प्रचार- प्रसार पर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि लाभार्थियों की संख्या में वृद्धि हो तथा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के प्रत्येक सदस्यों तक इन योजनाओं का लाभ उठाया जा सके।
इन उद्योगों की उत्पादन तकनीक में सुधार करने की आवश्यकता है जिससे यह उद्योग विस्तृत उद्योगों से प्रतियोगिता का सामना कर सके, साथ ही विपणन व्यवस्था पर भी और अधिक ध्यान देने की जरूरत है। उत्पादन तथा उत्पादन क्षमता बढ़ाने और नई किस्म को सुधारने की दृष्टि से अनुसंधान कार्यक्रम को बढ़ाया जा सकता है।

निष्कर्ष
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्वपूर्ण स्थान है तो वही इन उद्योगों के सुचारू रूप से संचालन एवं उनके प्रबंधन हेतु सरकारी योजनाओं के योगदान की अवहेलना नहीं की जा सकती है। वे अपना प्रभुत्व बनाए हुए हैं। सरकार द्वारा विभिन्न संस्थाओं और बोर्ड की स्थापना से लेकर संबंधित योजनाओं का सफल संचालन सरकार की नीति व कार्य प्रणाली पर निर्भर करता है। समय-समय पर कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन एवं प्रचार-प्रसार व प्रबंधन हेतु सरकारी योजनाएं कारगर साबित हुई है। भावी पीढ़ी के रोजगार से संबंधित समस्याओं एवं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर सरकारी योजनाएं भावी विकास हेतु प्रयासरत हैं।
इन सबके अतिरिक्त सरकार द्वार कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जैसे-विशेष संस्थाओं की स्थापना, वित्त प्रबंधन सुविधा, विपणन सुविधा, लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), लघु उद्योग बोर्ड, लघु उद्योग कार्ड योजना आदि। अतः यह कहना अनुचित न होगा की कुटीर उद्योगों के विकास में सरकारी योजनाएं अपनी क्षमता के अनुरूप महत्वपूर्ण ढंग से अपना योगदान दे रही है। अगर कहीं कोई योजना असफल है तो वहांँ सुधार की गुंजाइश है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

पुस्तकें:

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था वी0के0 पुरी एवं एस0के0 मिश्र। 
  2. भारतीय अर्थव्यवस्था दत्त एवं सुन्दरम्।

पत्रिकाएँ एवं रिपोटर्सः

  1. योजना (मासिक), नई दिल्ली।
  2. कर्वे समिति 
  3. कुरूक्षेत्र (मासिक), नई दिल्ली।
  4. प्रतियोगिता दर्पण (वार्षिक), नई दिल्ली।

समाचार-पत्र:

  1. अमर उजाला (दैनिक); मेरठ।
  2. दैनिक जागरण (दैनिक);मेरठ।
  3. टाईम्स ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली।

इण्टरनेट वैब-साईट्स

  1. www.hindustantimes.com
  2. India Brand Equity Foundation (IBEF)