ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- IX , ISSUE- VI September  - 2024
Anthology The Research

प्रकृति चित्रण

Nature Depiction
Paper Id :  19265   Submission Date :  2024-09-14   Acceptance Date :  2024-09-20   Publication Date :  2024-09-22
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DOI:10.5281/zenodo.13833035
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सत्यदेव सैनी
अतिथि प्रवक्ता
चित्रकला विभाग
गवर्मेंट गर्ल्स कॉलेज
हिंडन सिटी, राजस्थान, भारत
सारांश

मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है एवं मानव जीवन में रस, आनन्दानुभूति, भावाभिव्यक्ति, सत्य की प्राप्ति, नैत्रिय सुख आदि आदर्शों की प्राप्ति हेतु कला का सृजन करता है। मानव आदिकाल से रेखाओं, आकारों एवं रंगो का दास रहा है। चित्रांकन अथवा शिल्पागंन उसकी मूल प्रवृत्ति रही है। आज यही आदिकालीन कलाविशेष इतिहास के बोलते पन्ने हैं। (सभ्यता एवं संस्कृति के आधार है। कला जीवन का सार है अतः भारतीय शास्त्रों में कला विहीन मानव को पूंछ विहीन पशु की संज्ञा दी है। बाल्यावस्था से ही बालक रेत, मिट्टी, खड़िया, कोयला या पेंसिल से आड़ी टेढी रेखाओं से स्वच्छन्द आकार रचना करता है एवं प्रसन्न होता है, वही कालांतर में महान कलाकार भी बनता है। मान्यता है कि मानव मात्र जन्म से कलाकार है कुछ मन से तो कुछ पेशे से कला की अपनाते हैं एवं समाज में स्थापित होते है। कलाकार विश्व के महान गुफा मंदिरों, गिरजाघरों, मूर्तियों, प्रासादों का निर्माता है जिनकी महान सृजन क्षमताओं पर आज विश्व नतमस्तक है। कला एवं कलाकार यह समागम मानव कहानी का अभिन्न अंग है। आज की कला कल का इतिहास है। अतः कलाकार नित नवीन पूर्व से एक कदम आगे सृजन के माध्यम से मार्ग दर्शाने वाला अथवा 'स्वातं:सुखाय' हो सकता है किन्तु कलाकृति सृजन के पश्चात् समाज की धरोहर है। अतः स्पष्ट शब्दों में कलाकार समाज की बहुमूल्य धरोहर है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Man is the best creation of God and he creates art to achieve ideals like rasa, joy, expression of emotions, attainment of truth, eye pleasure etc. in human life. Man has been a slave of lines, shapes and colours since ancient times. Painting or sculpture has been his basic instinct. Today, these ancient arts are the speaking pages of history. (Art is the basis of civilization and culture. Art is the essence of life, hence in Indian scriptures, a human being without art is called a tailless animal. From childhood itself, a child creates free shapes with sand, clay, chalk, coal or pencil by drawing crooked lines and is happy, and in course of time he also becomes a great artist. It is believed that every human being is an artist by birth, some adopt art by heart and some by profession and get established in the society. The artist is the creator of the world's great cave temples, churches, statues, palaces, whose great creative abilities are admired by the world today. This union of art and artist is an integral part of the human story. Today's art is tomorrow's history. Hence, an artist may be a path-shower or 'self-satisfaction' by creating something new every day, but after creation, the artwork is the heritage of the society. Hence, in clear words, an artist is a valuable heritage of the society.
मुख्य शब्द प्रकृति चित्रण, ईश्वर, कला, सभ्यता, संस्कृति, समाज, सृजन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Nature Depiction, God, Art, Civilization, Culture, Society, Creation.
प्रस्तावना

कला को समाजधर्मसंस्कृति तथा प्रकृति के अनुरूप होना चाहिए।

सत्यदेव

बीसवीं सदी में विचारों के प्रचार-प्रसार हेतु अनेक माध्यम प्रचलित हुए हैं पुस्तकोंपत्रपत्रिकाओं का प्रकाशनशोध प्रबन्धों व्याख्यानमालाओंकला फिल्मोंदूरदर्शन आदि ने समाज में देश विदेश के विद्वानों के विचारों को प्रसारित किया है तथा नित नवीन बहस का रूप सामने आ रहा है। कला क्या हैकलाकार का क्या दायित्व है ? क्या चित्रण करना चाहियेअच्छी बुरी कला क्या हैसमाज का क्या दायित्व हैआदि अनेकों प्रश्न उठते रहते हैं एवं समाधान की खोज रहती है।

अध्ययन का उद्देश्य

प्रकृति चित्रण का प्रमुख उद्देश्य विभिन्न प्राकृतिक वस्तुओं की आकृति को समझनाबनानासंयोजन के साथ चित्र का निर्माण करना। चित्रों में समन्वय स्थापित कर जल रंगों का सही प्रयोग करना तथा चित्रों में सन्तुलन स्थापित कर चित्र का निर्माण करना है जिससे प्राकृतिक सौन्दर्य को प्रदर्शित किया जा सके।

साहित्यावलोकन

भारतीय एवं पाश्चात्य विचारकों के विचार निम्नानुसार है -

लांग फेलो के अनुसार "प्रकृति ईश्वर का प्रकट रूप है कला मनुष्य का।"

रवीन्द्र नाथ टैगौर के विचार "कलाकार प्रकृति प्रेमी है। अतः कलाकार उसका दास भी है, और प्रेमी भी है।"

सेनेका के अनुसार “सम्पूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुकरण है।”

मुख्य पाठ

कला और समाज

मनुष्य एक चिन्तनशील सामाजिक प्राणी है। इसलिए समाजविहीन कला असम्भव है और कला का कार्य क्षेत्र भी समाज है। कला का सृजन करने वाला कलाकार समाज में रहकर पहली परम्पराओं का अध्ययन कर उनसे प्राप्त अनुभवों से प्रेरणा पाकर ही कलाकृतियों को आकार प्रदान करता है और अन्त में कला प्रदर्शनियों, प्रकाशन तथा संग्रहालयों आदि के माध्यम से समाज तक पहुंचती है। अतः कला और समाज एक दूसरे के पूरक है। कला समाज का दर्पण है और उसी दर्पण में मनुष्य का व्यक्तित्व भी झलकता है।

कला और धर्म

कला और धर्म का उद्देश्य भी समाज को कल्याण का मार्ग दर्शाना है, दोनों ही मानव जीवन के अनिवार्य अंग है। धर्म जहां व्यक्ति को अन्धेरे से प्रकाश में लाने का कार्य करता है वही कलाकृति भी मनुष्य में उच्च आदर्शो की प्राप्ति में सहयोग प्रदान करती है और यहीं कारण था कि विश्व के महान धर्मों ने कला को प्रचार प्रसार का आधार बनाया।

कला और प्रकृति

ईश्वर का सीधा निर्माण और मनुष्य के माध्यम से लिया गया निर्माण, औद्योगिक उत्पादन, आभूषण, वस्त्र आदि प्रकृति के अवयव है अर्थात् ब्राह्मण के समस्त चर एवं अचर प्राणी वनस्पति एवं अन्य वस्तुएं प्रकृति है और कलाकार जो कि इसी चर-अचर संसार का प्राणी है। जन्म से ही प्रकृति सदस्यों तथा भौतिक जगत को दृष्टा है। इसलिए इसके सृजन का आधार भी प्रकृति के अलावा और कुछ हो ही नहीं सकता।

कला के बारे में लेखक के विचार

गहन साधना ही सर्वोपरि होती है कला जगत में, मनुष्य एक चिन्तनशाली सामाजिक प्राणी है। बचपन से ही मानव (बाल्यावस्था से मानव की सोचने की प्रवृत्ति बड़े होने के साथ-साथ बढ़ती चली गई और वह अपनी ज्ञान पिपासा शान्त करने के लिए सघन परिश्रम करके प्राकृतिक रहस्यों के बारे में जानने का प्रयास करने लगा है। कला का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ-साथ ही हुआ और इसका पालन प्रकृति के कण-कण से हुआ। कला अमूर्त भावों को मूर्तरूप देने का साधन है और कलाकार साधक है, पारलौकिक दृष्टा है, एवं नव निर्माण का स्वप्नदृष्टा है (ब्रहमा कला का सृजनकर्ता है)। जो अपनी तूलिका अथवा छेनी हथोड़ा, से निर्जीव उपादानों से सजीव संरचना की क्षमता रखता है। आज कलाकर कला के क्षेत्र में चाहे वह कोई सा भी क्षेत्र हो। अनुकृती की अनुकृती कर रहा है लेकिन सृजन के पीछे उसकी गहन साधना हमेशा साथ साथ चलती है।

कला के सृजन का उद्देश्य

विश्व की प्रथम कलाकृति सूर्य द्वारा पृथ्वी पर किसी भी आकृती की छाया के रूप में सृजित की गई और ब्रह्मा को इसका सृजनकर्ता माना गया। उसके बाद सैकड़ो वयों के अथक या गहन प्रयासो से आज मानव बीसवीं सदी के अन्तिम पड़ाव के चित्र विचित्र दुनिया को सृजित करने में व्यस्त नजर आता है।

प्राचीन काल में कला कभी आदि मानवों के हाथों गुफाओं कन्दराओंदीवारोंमिट्टी के टीलों या पत्थरों के विभिन्न औजारों के आकार रचनाओं में सीमित रहते हुए पल्ववित हुई।

देवी-देवताओं तथा प्राकृतिक रहस्यों का मनुष्य द्वारा काल्पनिक यथार्थ पर प्रतीकों के सहारे प्रस्तुत किया गया और आज कला मानव जीवन का मूल मंत्र है तथा कला मानव के जीवन के आदर्श की झांकी हैकला मानव का दर्पण है और अपने सामाजिक परिवेश का यथार्थ पंक्ति का चित्रण है तथा सौन्दर्य़ का मूलरूप और मनुष्य के भावों की संवाहिका हैं और सृजनकर्ता की अनुकृति की भी अनुकृति हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः यह समझा जा सकता है कि प्रकृति ने कभी भी मानव का साथ नहीं छोड़ाप्रकृति के सौन्दर्य ने कलाकारों और साहित्यकारों के मन को सदैव मोहित किया इसलिए प्रकृति का चित्रण संभव हुआ।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. सुमित्रा नंदन पंत, बूढ़ा-चांद
  2. सुमित्रा नंदन पंत, पतझड़
  3. सुमित्रा नंदन पंत, मेघनाद वध
  4. जयशंकर प्रसाद, लहर
  5. महादेवी वर्मा, आलंबन 
  6. महादेवी वर्मा, उद्दीपन
  7. शमशेर बहादुर सिंह (राणा), आकाश में ऊषा की लाली