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सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र में फसल प्रतिरूप के
निर्धारण में गैर-भौतिक कारकों का प्रभाव: एक भौगोलिक अध्ययन |
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Influence Of Non-Physical Factors In Determining Cropping Pattern In Sidhmukh Canal Project Area: A Geographical Study | |||||||
Paper Id :
19295 Submission Date :
2024-09-19 Acceptance Date :
2024-09-24 Publication Date :
2024-09-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.13889376 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
किसी भी प्रदेश की कृषिगत दशाओं के
निर्धारण में भौतिक कारकों के साथ-साथ गैर भौतिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते
हैं। कृषि पर गैर भौतिक कारकों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। गैर भौतिक कारकों में
शिक्षा, तकनीकी व परंपरागत विचारधारा आदि को
सम्मिलित किया जाता है, जो कृषि प्रतिरूप को प्रभावित और
परिवर्तित करते हैं। प्रस्तुत शोध कार्य में सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र के फसल
प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले कृषि के गैर भौतिक कारकों का विश्लेषण शोध की
मात्रात्मक पद्धति को अपनाते हुए द्वितीयक आंकड़ों को आधार बनाकर किया गया है।
आंकड़ों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए सभी गैर भौतिक कारकों का तुलनात्मक
विश्लेषण अलग-अलग वर्ष के आधार पर किया गया है। फसल प्रतिरूप कृषि में प्रयुक्त
होने वाली मशीनरी, कृषि जोत का आकार, उन्नत
बीज, किसानों की कृषि के प्रति जागरूकता, रासायनिक खाद, कीटनाशक रसायन आदि से काफी प्रभावित
होता है। सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र में समय के साथ उपरोक्त वर्णित गैर भौतिक
कारकों में कितना परिवर्तन हुआ है, इसका विश्लेषण इस शोध
कार्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Along with physical factors, non-physical factors also play an important role in determining the agricultural conditions of any region. The influence of non-physical factors on agriculture is increasing. Non-physical factors include education, technology and traditional ideology etc., which affect and change the agricultural pattern. In the presented research work, the analysis of non-physical factors of agriculture affecting the crop pattern of the Sidhmukh Canal Project area has been done on the basis of secondary data by adopting the quantitative method of research. Keeping in mind the availability of data, comparative analysis of all non-physical factors has been done on the basis of different years. The crop pattern is greatly affected by the machinery used in agriculture, size of agricultural holdings, improved seeds, farmers' awareness towards agriculture, chemical fertilizers, pesticides etc. An analysis of how much change has occurred in the above-mentioned non-physical factors over time in the Sidhmukh Canal Project area has been presented through this research work. | ||||||
मुख्य शब्द | कृषि प्रबंधन, गैर भौतिक कारक, फसल उत्पादन क्षमता, कृषि मशीनरी, कृषि जोत आकार। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agricultural Management, Non Physical Factors, Crop Production Capacity, Agricultural Machinery, Agricultural Holding Size. | ||||||
प्रस्तावना | फसल प्रतिरूप किसी विशेष क्षेत्र में कृषि गतिविधियों की संरचना और वितरण को
दर्शाता है। यह भूमि उपयोग की योजना और कृषि प्रबंधन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक
है, जो फसलों की
उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता को प्रभावित करता है। हालांकि भौतिक कारक जैसे कि
जलवायु, मिट्टी की संरचना, और भौगोलिक
स्थिति इस प्रतिरूप को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं लेकिन गैर-भौतिक
कारकों का भी फसल प्रतिरूप पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। मुख्य रूप से फसल
प्रतिरूप प्राकृतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक आदि
कारकों का सम्मिलित परिणाम है। कृषि के निर्धारण में इन कारकों की महत्त्वपूर्ण
भूमिका होती है और इन निर्धारक कारकों का एकीकृत परिणाम कृषि को विशिष्टता प्रदान
करता है और उनकी एकरूपता और विविधता के परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के कृषि
क्षेत्रों का जन्म होता है। कृषि के भौतिक और गैर-भौतिक कारकों के कारण ही एक कृषि
क्षेत्र से दूसरे कृषि क्षेत्र की फसलों में भिन्नता पाई जाती है जैसे कहीं पर
गेहूं अधिक होता है, कहीं पर चावल, कहीं
पर गन्ना और कहीं पर रबर। कहीं पर गहन कृषि की जाती है तो कुछ क्षेत्र कृषि से
रहित पाए जाते हैं। खेती में ये अंतर विभिन्न निर्धारक कारकों का परिणाम हैं। खेती
में यह भिन्नता और समानता इन निर्धारक कारकों से निर्धारित होती है। खेती को
प्रभावित करने वाले इन कारकों को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा गया है-भौतिक
कारक एवं गैर-भौतिक कारक। भौतिक कारकों में वर्षा, तापमान,
आर्द्रता आदि व गैर-भौतिक कारकों में शिक्षा, तकनीकी,
लोगों का जीवन स्तर, कृषि पद्धति आदि को
सम्मिलित किया जाता है। वर्तमान समय में इस विषय की प्रासंगिकता को देखते हुए इस
शोध पत्र द्वारा सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र में कृषि प्रतिरूप को निर्धारित
करने में गैर-भौतिक कारकों के प्रभाव का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया
है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | शोध अध्ययन क्षेत्र सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र है जिसमें राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की नोहर और भादरा तहसील तथा चूरू जिले की तारानगर और राजगढ़ तहसील आती है। सिद्धमुख सिंचाई परियोजना का कमांड क्षेत्र 28°51’57’’ उत्तर से 29°10’45’’ उत्तर अक्षांश और 74°40’ पूर्व से 75°30’ पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यह पूर्व में रेजरी गांव से पश्चिम में चौनपुरा गांव तक और उत्तर में नोहर से दक्षिण में सिद्धमुख तक फैला हुआ है। कमांड क्षेत्र का बड़ा हिस्सा हनुमानगढ़ जिले में है, जबकि दक्षिणी पट्टी का एक हिस्सा चूरू जिले में है, सिद्धमुख वितरिका का अंतिम छोर सोरानी गांव (तहसील नोहर) के पास है और रासलाना वितरिका का अंतिम छोर अरारकी गांव (तहसील नोहर) के पास है। प्रस्तावित सिद्धमुख फीडर भिरानी गांव (जिला हनुमानगढ़) के पास राजस्थान में प्रवेश करती है। सिद्धमुख सिंचाई परियोजना का कुल सर्वेक्षित क्षेत्र 1,09,952 हैक्टेयर है। सिद्धमुख सिंचाई परियोजना में हनुमानगढ़ जिले की नोहर और भादरा तहसीलों और चूरू जिले के तारानगर और राजगढ़ में 86209 हैक्टेयर उपजाऊ रेगिस्तानी क्षेत्र की सी.सी.ए. को सिंचाई प्रदान करने के लिए नहर परियोजना का निर्माण करने की परिकल्पना की गई है। सिद्धमुख सिंचाई परियोजना का प्रस्ताव भारत सरकार द्वारा 15.01.1982 को राजस्थान को आवंटित 0.47 एम.ए.एफ. की कुल मात्रा में से 0.33 एम.ए.एफ. का उपयोग करके हनुमानगढ़ जिले में नोहर और भादरा तहसीलों और चूरू जिले के राजगढ़ और तारानगर तहसीलों की लगभग 86209 हैक्टेयर (212936 एकड़) संभावित उपजाऊ असिंचित रेगिस्तानी भूमि को बारहमासी सिंचाई प्रदान करने के लिए किया गया है। परियोजना
क्षेत्र में हनुमानगढ़ जिले की तहसील भादरा के 53 गांव तथा
नोहर तहसील के 20 गांव और चूरू जिले की तहसील राजगढ़ के 14
गांव तथा तारानगर तहसील के 02 गांव शामिल किए
गए हैं।
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साहित्यावलोकन | कृषि पर गैर-भौतिक कारकों के
प्रभावों से संबंधित उपलब्ध साहित्य का अध्ययन किया गया जिससे ज्ञात होता है, की बहुत से विद्वानों द्वारा इन कारकों के
प्रभावों को उजागर करने का प्रयास किया गया है। डॉ. देवेंद्र कौर एवं विकास कुमार
डूंगरवाल (2022) द्वारा
प्रतापगढ़ जिले में कृषि में किए जा रहे नवाचारों का अध्ययन किया जिसमें उन्होंने
मुख्यतः अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशी रसायनों,
खरपतवारनाशी रसायनों का विश्लेषण करने के साथ-साथ यह बताने का
प्रयास किया कि ये सभी तत्त्व कृषि भूमि और मानव जीवन को कैसे प्रभावित कर रहे
हैं। कमल नावरिया(2018) ने श्रीगंगानगर जिले में कृषि की नवीन
तकनीकी का पारिस्थिकी पर प्रभाव का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जिसमें
तकनीकी कारकों में यांत्रिक शक्ति, लोहे के हल, ट्रेक्टर, बिजली द्वारा संचालित पम्प सेट, उन्नत किस्म के बीज, रासायनिक उर्वरक आदि को शामिल
किया गया। हरीश कुमार (2022) ने भारत में भूमि उपयोग और फसल
प्रतिरूप का अन्वेषणात्मक शोध कार्य प्रस्तुत किया और बताया की फसल प्रतिरूप को
प्रभावित करने वाले कारकों में भूमि जोत का आकार, साक्षरता,
वित्तीय आवश्यकता स्थायित्व, रोग, कीट प्रवर्धन, नियंत्रण व पारिस्थितिकी उपयुक्तता आदि
प्रमुख रहे हैं। सिद्धमुख नहर परियोजना एक महत्त्वाकांक्षी सिचाई परियोजना है। इस
परियोजना क्षेत्र में भी सिचाई में वृद्धि के साथ-साथ अन्य गैर-भौतिक कारक भी फसल
प्रतिरूप निर्धारण में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इस शोध कार्य द्वारा सिद्धमुख
परियोजना क्षेत्र में फसल प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य गैर-भौतिक
कारकों का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध पत्र में शोध की मात्रात्मक एवं
गुणात्मक पद्धति के मिश्रित रूप को अपनाया गया है। सम्पूर्ण शोध कार्य द्वितीयक
आंकड़ों पर आधारित है। द्वितीयकआंकड़ेविभिन्न विभागों जैसे सिंचाई विभाग, केन्द्रीय शुष्क
क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (सी.ए.जेड.आर.आई.), जोधपुर; राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर; जिला सांख्यिकी विभाग, हनुमानगढ़ एवं चूरू; भारतीय मौसम विज्ञान विभाग एवं
इंटरनेटआदि से एकत्र किए गए हैं। सारणी, ग्राफ एवं आरेखों द्वारा आंकड़ों का
प्रस्तुतीकरण दिया गया है।
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विश्लेषण | सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र का फसल प्रतिरूप: किसी क्षेत्र में किसी निश्चित समयावधि में विभिन्न फसलों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र के अनुपात को फसल प्रतिरूप कहा जाता है। तापमान, वर्षा, मिट्टी आदि कारकों के साथ ही किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली कृषि पद्धतियों, उन्नत किस्म के बीजों, सिंचाई व्यवस्था तथा फसल उत्पादन का मूल्य आदि से भी फसल प्रतिरूप प्रभावित होता हैं। सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र का फसल प्रतिरूप भी परिवर्तित रहा है। खाद्यान्न फसल प्रतिरूप खाद्यान्न फसलों के अंतर्गत गेंहू, चना, चावल, बाजरा, दालें आदि को सम्मिलित किया जाता है। शोध क्षेत्र में चावल काफी कम क्षेत्र पर उगाया जाता है, क्योंकि चावल उत्पादित करने के लिए ज्यादा मात्रा में पानी की जरूरत होती है। परियोजना क्षेत्र की तीनों तहसीलों की कुछ प्रमुख खाद्यान्न फसलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल को नीचे सारणी व चार्ट के माध्यम से दर्शाया गया है- खाद्यान्न फसल क्षेत्र से सबंधित भादरा, नोहर, राजगढ़ तहसील के वर्ष 1999-2000, 2015-16 व 2021-22 के खाद्यान्न फसल प्रतिरूप के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है, कि बाजराकी फसल का क्षेत्र लगातार कम हुआ है। गेंहू के क्षेत्रफल में वर्ष 1999-2000 से 2015-16 तक वृद्धि हुई है, परंतु 2015-16 की तुलना में वर्ष 2021-22 में गेंहू का क्षेत्रफल घटा है जिसका कारण सिंचाई पानी की समय पर उपलब्धता न होना, अन्य फसलों की तरफ किसानों का ज्यादा रुझान होना आदि हो सकते हैं। चना एवं अन्य खरीफ दालों के क्षेत्रफल में 1999-2000 से 2021-22 तक वृद्धि दर्ज की गई है। तीनों तहसीलों के खाद्यान्न फसलों से सबंधित आंकड़ों के विश्लेषण उपरांत यह तथ्य सामने आता है कि खाद्यान्न फसलों के क्षेत्रफल में परिवर्तन के परिणामस्वरूप फसल प्रतिरूप में निश्चित रूप से परिवर्तन हुआ है। व्यापारिक फसल प्रतिरूप: तालिका में प्रस्तुत व्यापारिक फसलों के आंकड़ों से पता चलता है, कि वर्ष 1999-2000 व 2021-22 की तुलना में वर्ष 2015-16 में व्यापारिक फसलों का क्षेत्रफल ज्यादा रहा है। अच्छी वर्षा तथा उन्नत किस्म के बीजों की उपलब्धता के कारण सरसों, तारामीरा, ग्वार, अरंडी व राई की फसलों को बारानी कृषि क्षेत्र में भी आसानी से उत्पादित किया जा सकता है। फसल प्रतिरूप को प्रभावित करने वाले गैर-भौतिक कारक गैर-भौतिक कारकों में सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक तत्त्व शामिल होते हैं जो सीधे या परोक्ष रूप से फसल प्रतिरूप को प्रभावित करते हैं। ये कारक कृषि पद्धतियों, फसल विविधता, भूमि उपयोग की प्राथमिकताएँ, और आर्थिक लाभ-हानि के फैसलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साक्षरता साक्षरता, यानी पढ़ाई-लिखाई की क्षमता, किसी भी समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल व्यक्तिगत विकास को प्रोत्साहित करती है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक संरचनाओं पर भी गहरा प्रभाव डालती है। विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में, बढ़ती साक्षरता का फसल प्रतिरूप (क्रॉप पैटर्न) पर कई तरीकों से प्रभाव पड़ता है। शिक्षित किसान नई और प्रभावी कृषि तकनीकों, बीजों, उर्वरकों, और पद्धतियों के बारे में अधिक जागरूक होते हैं। इससे फसल उत्पादन में सुधार होता है और किसानों के बीच फसल विविधता बढ़ती है। बेहतर फसल प्रबंधन और सहेजने की विधियों को अपनाने में, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में वृद्धि होती है। शिक्षित किसान सरकार द्वारा जारी फसलों के समर्थन मूल्य के प्रति भी सचेत होते हैं तथा सरकार की कृषि से संबंधित विभिन्न योजनाओं की जानकारी एवं उनसे लाभान्वित होने तथा कृषि से संबंधित विभिन्न मोबाइल्स एप्लीकेशन जैसे -राज किसान सुविधा एप, राज किसान जैविक मोबाइल एप, राज किसान साथी पोर्टल आदि को उपयोग में लाने के लिए किसानों का साक्षर होना बहुत जरूरी है। तालिका में दिए गए आंकड़ों से ज्ञात होता है की सिद्धमुख परियोजना क्षेत्र की भादरा और नोहर तहसील में साक्षरता की दर प्रति जनगणना के दौरान बढ़ी है, जबकि राजगढ़ तहसील में वर्ष 2001 की जनगणना की बजाय वर्ष 2011 की जनगणना में साक्षरता का प्रतिशत घटा है जो एक सकारात्मक तथ्य नहीं माना जा सकता। कृषि उपकरण एवं मशीनरी आज के आधुनिक समय में बिना तकनीकी के प्रभावित हुए शायद ही कोई
क्षेत्र बचा हो।कृषि भी तकनीकी से प्रभावित हुई है। कृषि उपकरण और मशीनरी फसल
प्रतिरूप को कई तरीकों से प्रभावित करती है। आधुनिक कृषि उपकरण और मशीनरी जैसे
ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, और ड्रिल्स फसल की बुवाई, सिंचाई, और कटाई को अधिक प्रभावी बनाते हैं। मशीनरी का उपयोग करने से खेती के काम
जल्दी और प्रभावी तरीके से किए जाने लगे हैं इससे समय की बचत होती है और किसान
अधिक फसलों को एक ही मौसम में उगा सकते हैं।
मशीनरी के उपयोग से श्रम लागत
कम होती है और उत्पादन प्रक्रिया को कुशल बनाया जाता है। इससे कृषि उत्पादों को
पैदा करने की लागत कम होती है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ होता है। कुछ मशीनरी जैसे
स्प्रेयर, कीटनाशक और फर्टिलाइजर डिस्ट्रीब्यूटर, फसल रोग और कीटों के नियंत्रण में मदद करती हैं। इससे फसल की सुरक्षा
सुनिश्चित होती है और नुकसान कम होता है। कंबाइन हार्वेस्टर और प्लाउ मिट्टी को
बेहतर तरीके से तैयार करने में मदद करती है। इससे मिट्टी की पोषक तत्त्वों की
गुणवत्ता बनी रहती है और फसल की वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। नीचे तालिका में
सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र में कुछ कृषि यंत्रों को दिया गया है- तालिका में दिए गए कृषि यंत्रों के अलावा लेवलर,ट्रेक्टर,डीजल इंजन, इलेक्ट्रिक पंप, सोलर चालित मषीनें, कम्बाईन, रिपर, रूटाबेटर एवं कम्प्यूटर लेवलर, डॉली थ्रेसर आदि का उपयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है।कृषि यंत्रों में लकड़ी के हल का प्रयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है जिसका कारण किसानों का आधुनिक कृषि यंत्रों की ओर झुकाव अधिक है। व्यवसाय सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र में वर्ष 2001 से 2011 तक जनसंख्या वितरण के इन आंकड़ों का विश्लेषण करने के उपरांत यह ज्ञात होता हैं कि तीनों तहसीलों में किसानों की संख्या में कमी आई है, जबकि कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई है। पारिवारिक व्यवसाय में लगे लोगों की संख्या तीनों तहसीलों में अलग-अलग प्रवृति प्रदर्शित कर रही है। राजगढ़ और भादरा में पारिवारिक व्यवसायों में कमी आई है, जबकि नोहर में वृद्धि हुई है। अन्य श्रमिकों की संख्या भादरा और नोहर में बढ़ी है, लेकिन राजगढ़ के अन्य श्रमिकों के आँकड़े काफी कमी को दर्शा रहें है। यह तथ्य तीनों तहसीलों के अलग-अलग आर्थिक परिदृश्य को प्रदर्शित कर रहा है। कृषि जोत आकार कृषि जोत आकार फसल प्रतिरूप को काफी हद तक प्रभावित करता है। लघु कृषि जोत धारक किसान बड़ी कृषि मशीनरी का प्रयोग अपने खेतों में नहीं कर सकते। किसानों को अपनी खाद्य संबंधी फसलों को उत्पादित करना आवश्यक होता है। बड़ी जोत वाले कृषक खाद्य फसलों के साथ व्यापारिक फसलें भी पैदा कर सकता है, परंतु छोटे किसानों को अपने जीवन की खाद्य जरूरतों को पूरा करने क लिए सिर्फ खाद्य फसलों को ही उत्पादित करना पड़ता है, जिस कारण छोटे किसान व्यावसायिक फसलों का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं। छोटे किसान अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए खेती के साथ अन्य मजदूरी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। समय के साथ-साथ कृषि जोत के आकार में कमी आती जा रही है। सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र की तीनों तहसीलों में से भादरा व नोहर तहसील के कृषि जोत आकार से संबंधित आँकड़े उपलब्ध हैं, जिन्हे तालिका के माध्यम से दर्शाया गया है- |
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निष्कर्ष |
शोध विषय से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण
किया गया जिससे यह तथ्य सामने आता है की सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र में कृषि
से सबंधित गैर-भौतिक कारक परिवर्तित रहे हैं जिनकी वजह से फसल फसल प्रतिरूप भी
प्रभावित हुआ है। बढ़ती साक्षरता दर ने किसानों को कृषि में प्रयुक्त होने वाले
कृषि उपकरणों के चयन, उचित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग तथा सरकार
द्वारा बनाए गए कृषि एप्प आदि के प्रति जागरूक करने का काम किया है जिस कारण फसल
प्रतिरूप तथा फसल उत्पादन में परिवर्तन हुआ है। तीनों तहसीलों के व्यवसायिक आंकड़ों
से यह भी स्पष्ट होता है कि, किसानों की संख्या घटी है,
जिसका कारण जनसँख्या बढ़ने से कृषि जोत का आकार छोटा होने के
परिणामस्वरूप किसानों का कृषि श्रमिक बनना है। अन्य श्रमिकों तथा कृषि श्रमिकों की
संख्या भी बढ़ती जा रही है जिससे किसानों को कृषि के लिए मानवीय श्रम भी आसानी से
उपलब्ध हो जाता है तथा किसान उन फसलों को भी उगाने में समर्थ होते हैं जिनको सिर्फ
मानव श्रम द्वारा ही उत्पादित किया जा सकता है। उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर यह
कहा जा सकता है कि, सिद्धमुख नहर परियोजना क्षेत्र में फसल
प्रतिरूप निश्चित रूप से गैर-भौतिक कारकों द्वारा प्रभावित हुआ है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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