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बांग्लादेश
की स्वतंत्रता में भारत की भूमिका : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
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Role of India in the Independence of Bangladesh : An Analytical Study |
Paper Id :
19296 Submission Date :
2024-09-14 Acceptance Date :
2024-09-22 Publication Date :
2024-09-25
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DOI:10.5281/zenodo.13989672
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हंसा चौधरी
सहायक आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर, राजस्थान भारत
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सारांश
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वर्ष 1971 में भारत की सहायता से
बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। शेख मुजीबुर्रहमान
ने बांग्लादेश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में अपना नेतृत्व दिया। वर्ष 1975
में मुजीबुर्रहमान की गोली मारकर हत्या कर दी गई एवं
स्वतंत्रता-प्राप्ति के चार वर्ष की अवधि में ही बांग्लादेश में राजनैतिक अस्थिरता
पैदा हो गई। वर्ष 1975 से वर्ष 1990 की लंबी अवधि तक बांग्लादेश में सैन्य शासन रहा। वर्ष 1991 से पुनः लोकतांत्रिक पद्धति को अपनाते हुए राजनीतिक शासन प्रणाली को
आरंभ किया गया।
भारत-विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान का एक नवीन राष्ट्र
के रूप में उदय हुआ। पाकिस्तान के निर्माण का आधार मुस्लिम बहुल क्षेत्र थे। इस
कारण पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) एवं पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण
हुआ। एक ही राष्ट्र का दो अलग-अलग हिस्सों में बँटे होने के कारण इसे ’लँगड़ा पाकिस्तान’ की संज्ञा दी जाती थी।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद |
In 1971, with the help of India, Bangladesh came into existence as an independent nation. Sheikh Mujibur Rahman led as the first Prime Minister of Bangladesh. In 1975, Mujibur Rahman was shot dead and within four years of independence, political instability arose in Bangladesh. Military rule prevailed in Bangladesh for a long period from 1975 to 1990. From 1991, the political governance system was started again by adopting the democratic method.
As a result of the partition of India, Pakistan emerged as a new nation. The basis of the creation of Pakistan was the Muslim majority areas. Due to this, East Pakistan (present Bangladesh) and West Pakistan were created. Due to the division of the same nation into two different parts, it was called 'Lame Pakistan'. |
मुख्य शब्द
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भारत-विभाजन, बांग्लादेश, स्वतंत्रता, ब्रिटिश-शासन। |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद |
Partition of India, Bangladesh, Independence, British Rule. |
प्रस्तावना
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एक दीर्घकालीन संघर्ष के उपरांत 15 अगस्त,
1947 को भारत को ब्रिटिश-शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। भारत
विभाजन के कारण 14 अगस्त, 1947 को
पाकिस्तान एक पृथक संप्रभु राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। द्विराष्ट्र
सिद्धांत की समर्थक मुस्लिम लीग ने वर्ष 1946 में आये
केबिनेट मिशन योजना को स्वीकार नहीं किया। जिसका प्रमुख कारण था - इस योजना में
भारत-विभाजन को स्वीकार नहीं किया जाना। हिन्दू-मुस्लिम दंगों के कारण अन्ततः
तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड माउण्टबेटन ने 3 जून, 1947
को अपनी एक योजना प्रस्तुत की, जिसे
माउण्टबेटन योजना के नाम से जाना जाता है। माउण्टबेटन योजना के अन्तर्गत
भारत-विभाजन की मांग को स्वीकृति प्रदान की गई। जिसका परिणाम रहा- भारत एवं
पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्रों का निर्माण।
अंग्रेजों ने पाकिस्तान के निर्माण के संदर्भ में यह
विचार दिया था कि तत्कालीन ब्रिटिश भारत का मुस्लिम बहुल पूर्वी भाग एवं पश्चिमी
भाग एक नवीन राष्ट्र के रूप में जाने जायेगें जिन्हें क्रमशः पूर्वी पाकिस्तान एवं
पश्चिमी पाकिस्तान भी कहा जाता था। मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद ने पाकिस्तान बनने से
पहले ही कह दिया था कि यह देश एकजुट होकर नहीं रह पाएगा, यहाँ राजनीतिक शासन की जगह सेना का
शासन चलेगा, यह देश भारी कर्ज के बोझ तले दबा रहेगा,
पड़ोसी देशों के साथ युद्ध के हालातों का सामना करेगा।[1] मौलाना आज़ाद की यह भविष्यवाणी वर्ष 1971 में
पूर्णतया सत्य सिद्ध हुई।
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अध्ययन का उद्देश्य
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प्रस्तुत शोध-पत्र में पूर्वी पाकिस्तान के
बांग्लादेश में परिवर्तन के विभिन्न कारणों का अन्वेषण किया गया है। समान धर्म के
आधार पर निर्मित पाकिस्तान के टूटने की परिस्थितियों पर भी इस शोध-पत्र में गहन
चिंतन किया गया है। साथ ही इस शोध-पत्र में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में भारत की
राजनीतिक एवं सामरिक रणनीतियों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। |
साहित्यावलोकन
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राघवन, श्रीनाथ, ’’1971: ए ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ द क्रिएशन ऑफ बांग्लादेश’’, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2013. - प्रस्तुत
पुस्तक में लेखक ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के अन्तर्राष्ट्रीय आयामों
को स्पष्ट किया है। लेखक ने संघर्ष के भूराजनीतिक परिप्रेक्ष्य, मुख्य शक्तियों की भूमिका एवं वैश्विक परिणामों को विवेचित किया है।
टलबॉट, लान; सिंह, गुरहरपाल, ’’पार्टिशन
ऑफ इंडिया’’, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2009 -
लेखक द्वय ने भारत और पाकिस्तान के निर्माण की स्थितियों को
विस्तार पूर्वक विवेचित किया है। वर्ष 1947 में भारत के
विभाजन के लिये उत्तरदायी कारकों को स्पष्ट किया गया है। साथ ही विभाजन के
परिणामों को वर्णित किया गया है। |
मुख्य पाठ
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बांग्लादेश के निर्माण की पृष्ठभूमि
वर्ष 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई थी, जो तत्कालीन ब्रिटिश भारत में अल्पसंख्यको के हितों के संरक्षण के
उद्देश्य से प्रेरित था। भारत शासन अधिनियम, 1909, भारत
शासन अधिनियम, 1919, भारत शासन अधिनियम 1935 आदि में साम्प्रदायिक आधार पर भारतीयों को विभाजित करने के अनेक
प्रावधान किये गये थे। ब्रिटिश भारत के मुस्लिम नेताओं द्वारा मुस्लिम राज्य की
मांग 1940 के दौरान लाहौर प्रस्ताव के माध्यम से दृढता से
व्यक्त गई थी, जिसे पाकिस्तान माँग या पाकिस्तान संकल्प
के रूप में जाना जाता है।[2] ब्रिटिश भारत के राजनीतिक
समूह ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के तीन दिवसीय (22-24 मार्च,
1940) वार्षिक सत्र के दौरान, लाहौर
संकल्प को ब्रिटिश भारत के मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य बनाने की राजनीतिक माँग
के रूप में तैयार किया गया था। यह वर्तमान पाकिस्तान एवं ब्रिटिश भारत के बंगाल
राज्य के मुस्लिम अधिकारियों का संयुक्त प्रयास था।[3]
यद्यपि वर्ष 1946
में भारत आये केबिनेट मिशन ने भारत को सत्ता हस्तांतरण के संदर्भ
में अनेक सिफारिशें प्रस्तुत की, परन्तु इस मिशन ने
मुस्लिम लीग की पाकिस्तान के रूप में अलग राष्ट्र की मांग को स्वीकार नहीं किया
था। परन्तु इस अस्वीकृति के फलस्वरूप मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग को पूरा
करने के लिए प्रत्यक्ष कार्रवाई प्रारंभ कर दी। 16 अगस्त,
1946 को मुस्लिम लीग ने सीधी कार्रवाई दिवस के रूप में मनाने का
निर्णय किया। परिणामस्वरूप साम्प्रदायिक दंगे हुए। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कहा
कि 16 अगस्त भारत के इतिहास में काला दिन है।[4] मुस्लिम लीग द्वारा संविधान सभा के बहिष्कार एवं निरंतर बढ़ते जा रहे
हिन्दु-मुस्लिम दंगों के कारण अन्ततः 3 जून, 1947 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने हाउस ऑफ कॉमन्स् में विभाजन की घोषणा
की, जिसे माउंटबेटन योजना कहा जाता है। रेडक्लिफ रेखा
ब्रिटिश वकील सर सिरिल रेडक्लिफ द्वारा 1947 में ब्रिटिश
भारत के विभाजन के दौरान निर्धारित की गई सीमा रेखा को संदर्भित करती है। इस रेखा
ने पंजाब एवं बंगाल प्रांतों को दो अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया है,
भारत और पाकिस्तान।[5]
पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही इसके पूर्वी हिस्से
में अलगाव की स्थितियाँ उत्पन्न हो गई थी, जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित है - सामाजिक, आर्थिक,
राजनैतिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक।
बांग्लादेश के इतिहास का अध्ययन करने वाले डच प्रोफेसर
विलियम वॉन शिंडल ने अपनी किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ बांग्लादेश’ में लिखा है कि “जहाँ एक तरफ बांग्लादेशी मुसलमानों को उम्मीद थी कि वो बहुसंख्यक आबादी
होने के कारण पाकिस्तान में अहम् भूमिका निभाएंगें, लेकिन
उत्तर भारत के मुस्लिम नेताओं ने देश की बागडोर अपने हाथों में ले ली।’’[6]
पाकिस्तान के दोनों क्षेत्रों के मध्य एक महत्वपूर्ण
विवाद भाषा संबंधी था। पूर्वी पाकिस्तान में,
जहाँ पाकिस्तान की 56 प्रतिशत आबादी
निवास करती थी, बांग्ला भाषा को बोलने वाले लोग थे,
जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू का प्रयोग करते थे एवं बांग्ला
भाषा के जानकार नहीं थे। फरवरी, 1946 में जब असेंबली के
एक बंगाली सदस्य ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि असेंबली में उर्दू के साथ-साथ
बांग्ला का भी प्रयोग हो, इस पर तब के पीएम लियाकत अली
खान ने कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ो मुसलमानों की माँग पर बना है और
मुसलमानों की भाषा उर्दू है। इसलिए ये अहम् है कि पाकिस्तान की एक कॉमन भाषा हों,
जो केवल उर्दू ही हो सकती है।[7]
मार्च, 1948 में मोहम्मद अली जिन्ना ने ढाका का दौरा किया, तब उन्होने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘‘मैं यह साफ़
कर देना चाहता हूँ कि पाकिस्तान की राजकीय भाषा केवल उर्दू होगी। यदि आपको कोई
गुमराह करता है, तो वो पाकिस्तान का दुश्मन है। जहाँ तक
राजकीय भाषा का सवाल है, वो केवल उर्दू है।[8] तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पृथकतावाद को बढ़ावा देने में अवामी
मुस्लिम लीग (एएमएल) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एएमएल की स्थापना मौलाना भशानी,
शम्सुल हक और शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा 23 जून, 1949 को पूर्वी पाकिस्तान के ढाका में की
गई थी। 26 जनवरी, 1952 को
पाकिस्तान की संविधान सभा की एक समिति ने सिफारिश की कि उर्दू पाकिस्तान की
एकमात्र आधिकारिक भाषा होगी। 30 जनवरी, 1952 को बंगाली छात्रों और अन्य लोगों ने पाकिस्तान में बंगाली को राष्ट्रीय
भाषा के रूप में मान्यता देने के पक्ष में भाषा आंदोलन की स्थापना की। तत्कालीन
प्रधानमंत्री ख्वाजा अजीमुद्दीन, जो बंगाली मूल के थे,
ने 21 फरवरी, 1952 को उर्दू को राष्ट्रीय भाषा के रूप में घोषित किया।[9] ढाका विश्वविद्यालय एवं अन्य शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों ने 21
फरवरी, 1952 को ढाका में एक विरोध मार्च
आयोजित किया, जिसमें बंगाली को पाकिस्तान की अधिकारिक
भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग की गई। इसी कारण हर वर्ष बांग्लादेश में 21
फरवरी को भाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1956 में बंगाली को पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी।
भाषायी टकराव के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण कारणों
में पूर्वी पाकिस्तान का विकास की दृष्टि से पिछड़ापन भी है। पश्चिमी पाकिस्तान
द्वारा महत्वपूर्ण विकास योजनाओं को पश्चिमी क्षेत्र में ही लागू किया जाता था, जिससे पूर्वी पाकिस्तान के निवासियों
में अत्यंत असंतोष था। विलियम वॉन शिंडल ने अपनी किताब में लिखा है कि वर्ष 1947
से 1970 तक पाकिस्तान के आधे से ज्यादा
हिस्सा रक्षा पर खर्च हुआ था। उन्होंने आगे लिखा कि पाकिस्तान अपनी विदेशी मुद्रा
का दो-तिहाई पटसन की बिक्री से कमा रहा था, लेकिन यह लगभग
समूचा पश्चिमी पाकिस्तान में ही खर्च हो रहा था।[10]
राजनैतिक क्षेत्र की पहुंच भी पूर्वी पाकिस्तान के
लोगों तक नहीं थी। इस प्रकार सभी प्रकार के अन्यायों को सहकर पूर्वी पाकिस्तान के
पास अपना अलग अस्तित्व तलाशने के लिए संघर्ष करने के अतिरिक्त कोई मार्ग शेष नहीं
रह गया था।
अवामी मुस्लिम लीग की भूमिका
23 जून, 1949 को स्थापित अवामी मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल हामिद खान
भासानी, महासचिव शम्सुल हक एवं संयुक्त सचिव शेख
मुजीबुर्रहमान को बनाया गया। इस दल ने अपनी स्थापना का प्रमुख उद्देश्य पूर्वी
पाकिस्तान के साथ हो रहे असमान एवं अन्यायपूर्ण व्यवहार का पुरजोर विरोध करना था।
साथ ही यह दल साम्प्रदायिकता का भी विरोध करती थी एवं धर्म-निरपेक्षता का समर्थन
करती थी। अतः अपनी स्थापना के छः वर्ष पश्चात् इस दल ने अपने नाम में संशोधन करते
हुए ‘मुस्लिम’ शब्द का त्याग
करके अपना औपचारिक नाम ‘अवामी लीग’ कर लिया।
वर्ष 1955 में पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान कर दिया गया।
पाकिस्तान की संविधान सभा द्वारा बनाया गया संविधान वर्ष 1956 में अपनाया गया, जिसमें देश के पूर्वी एवं
पश्चिमी दोनों हिस्सों का समान रूप से प्रतिनिधित्व दिया गया।[11] अवामी लीग ने अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर गठबंधन का निर्माण किया,
जिसके अन्तर्गत नवीन संविधान के अन्तर्गत वर्ष 1956 में इस संयुक्त मोर्चा के प्रमुख हुसैन शहीद सुहरावर्दी पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त हुए। परन्तु वर्ष 1958 में
पाकिस्तान में सेना द्वारा तख्ता पलट दिया गया। वर्ष 1963 में सुहरावर्दी की मृत्यु के पश्चात शेख मुजीबुर्रहमान अवामी लीग के
प्रमुख नेता के रूप में स्थापित हुए। उन्होंने निरंतर पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्तता
के लिए संघर्ष किया। वर्ष 1966 में उन्होंने लाहौर में
अपना छः सूत्री एजेंडा प्रस्तुत किया। इन छः मांगो
में मुख्य रूप से पूर्वी पाकिस्तान को अधिक स्वायत्तता दिये जाने पर ध्यान
केन्द्रित किया गया था।
शेख मुजीबुर्रहमान की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य
से उन पर अगरतला षडयंत्र का आरोप लगाया गया,
जिसमें यह दावा किया गया कि शेख मुजीबुर्रहमान भारत के साथ मिलकर
पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करने का प्रयास कर रहे हैं। परन्तु
इस भ्रामक एवं झूठे दुष्प्रचार का मुजीबुर्रहमान की छवि पर कोई नकारात्मक प्रभाव
नहीं पड़ा, अपितु पूर्वी पाकिस्तान में वह एक लोकप्रिय
नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनकी लोकप्रियकता के कारण ही उन्हें ’’बंग बंधु’’ की उपाधि मिली।[12]
वर्ष 1990 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के चुनावों का आयोजन किया गया था,
जिसकी कुल 313 सीटें थी। पूर्वी
पाकिस्तान के हिस्से में कुल 162 सीटें थी, जिनमें से 160 सीटों पर अवामी लीग ने जीत दर्ज
की एवं स्पष्ट बहुमत हासिल किया। लेकिन सरकार बनाने का मौका नहीं मिल सका।[13]
वर्ष 1970 के इन चुनावों ने ही पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में उभरने
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान की भूमिका के संदर्भ
में डॉक्टर तारिक रहमान बताते है कि ‘‘चुनाव परिणाम के
बाद तीनों मुख्य किरदारों जुल्फिकार अली भुट्टो, शेख
मुजीबुर्रहमान और राष्ट्रपति याह्या खान की कई बैठकें हुई और अंत में राष्ट्रपति याह्या
ख़ान ने ढाका में 3 मार्च को नवनिर्वाचित विधानसभा बुलाने
की तारीख दी।[14]
तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान ने नेशनल
असेंबली के आयोजन में अनिश्चित काल तक देरी करके शेख मुजीबुर्रहमान को सत्ता
संभालने से रोका। राजनैतिक वैधता के इस इनकार और पूर्वी पाकिस्तान के जनादेश के
साथ विश्वासघात के कारण शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान में
व्यापक सविनय अवज्ञा हुई।[15] शेख मुजीबुर्रहमान ने अवामी लीग के सभी निर्वाचित सदस्यों से आग्रह
किया कि बांग्लादेश की मान्यता से कम किसी भी चीज को ना स्वीकारें। उन्होंने जनता
का बांग्लादेश के निर्माण में सहयोग के लिए आह्वान किया, जिसका
परिणाम रहा - विरोध-प्रदर्शनों का प्रारंभ। पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने पूर्वी
पाकिस्तान में विरोध-प्रदर्शनों को दबाने के लिए 24 मार्च,
1971 को कुख्यात ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’
शुरू किया। 26 मार्च, 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने टेलीग्राम एवं उसके बाद रेडियो प्रसारण के
माध्यम से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की।[16]
बांग्लादेश की स्वतंत्रता में
भारत की भूमिका
श्रीनाथ राघवन ने अपनी पुस्तक “ए ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ द क्रिएशन ऑफ
बांग्लादेश“ में लिखा है कि इंदिरा गांधी और उनके मुख्य
सचिव पी. एन. हक्सर इस बात पर सहमत थे कि पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दे पर उनको
सावधानी से आगे बढ़ना होगा।[17] 27 मार्च, 1971 को भारत की प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने अपनी सरकार का
स्वतंत्रता के लिए बांग्लादेशी संघर्ष को पूरा समर्थन दिया। बांग्लादेश-भारत सीमा
को भारत में सुरक्षित शरण लेने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए खोलने की
स्वीकृति दे दी गई।[18] भारत ने मुक्तिवाहिनी सेना की
सहायता की। ज्ञातव्य है कि मुक्तिवाहिनी सेना का निर्माण पूर्वी पाकिस्तान के
सैनिकों, अर्द्धसैनिकों एवं नागरिको ने मिलकर किया।
3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने आगरा आदि भारतीय हवाई अड्डों पर आक्रमण किया। इस
पाकिस्तानी आक्रमण का भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जबाब दिया। इसके बाद भारतीय नौसेना
की पूर्वी कमान ने मोर्चा सँभाला और तीन दिसंबर की रात से लेकर चार दिसंबर की सुबह
के बीच पाकिस्तानी नौसेना के आधे से अधिक ठिकानों को तबाह कर दिया।[19]
16 दिसंबर, 1971 को करीब 90,000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी
लेफ्टिनेंट जनरल ने भारत के आगे आत्म-समर्पण कर दिया, जिसके
बाद युद्ध खत्म हो गया। यह चौदह दिन का युद्ध इतिहास में सबसे कम अवधि के युद्धों
में सम्मिलित है। इसी युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान का अस्तित्व एक अलग देश के
रूप में बना, जिसका नाम आज बांग्लादेश है।[20] भारत ने 6 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी थी, जिसे दोनों देशों के द्वारा ‘मैत्री दिवस’
के रूप में मनाया जाता है। 1971 की जंग
के बाद बाकी अड़चनों को सुलझाने के लिए तीनों देशों ने नौ अप्रैल, 1974 को समझौते पर हस्ताक्षर किये। पाकिस्तान 28 अगस्त,
1973 के भारत- पाकिस्तान समझौते में निर्दिष्ट ग़ैर-बंगालियों की
सभी चार श्रेणियों को स्वीकार करने के लिए सहमत हुआ।[21]
22 फरवरी, 1974 को पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी थी। तत्कालीन पाकिस्तानी
राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो ने यह यह मान्यता ओआईसी समिट में ही देने की
घोषणा की थी। जुल्फीकार अली भुट्टो ने मान्यता की घोषणा करते हुए कहा था“ अल्लाह के लिए और इस देश के नागरिकों की ओर से हम बांग्लादेश को
मान्यता देने की घोषणा करते है। कल एक प्रतिनिधिमंडल आएगा और हम सात करोड़
मुसलमानों की तरफ से उन्हें गले लगाएगें।[22] |
निष्कर्ष
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वर्ष 1947 से वर्ष 1971 तक की कालावधि में जिसमें पूर्वी पाकिस्तान एवं पश्चिमी पाकिस्तान एक
राष्ट्र के रूप में एक होने के बावजूद दोनों हिस्से विभिन्न आंतरिक मतभेदों के
कारण अलग-अलग ही रहे। दोनों हिस्सों के मध्य सामाजिक, आर्थिक,
सांस्कृतिक, राजनैतिक भिन्नता एवं
अन्याय ने इस पृष्ठभूमि का निर्माण किया, जिससे आगे चलकर
मौलाना अबुल कलाम आबाज द्वारा की गई भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई एवं पूर्वी
पाकिस्तान एवं पश्चिमी पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्रों रूप में स्थापित हुए। भारत
ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में निर्णायक भूमिका का निवर्हन किया एवं इस कार्य
हेतु पाकिस्तान से युद्ध भी किया। |
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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- बीबीसी न्यूज हिन्दी, 1971 की भारत पाक जंग और गाजी अटैक - विशाखापत्तनम्
में उस वक्त क्या चल रहा था? 4 दिसम्बर 2022, https://www.bbc.com/hindi/india-63847068#:~:text=16%20%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%B0%201971%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AC,%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%86%E0%A4%9C%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%B9%E0%A5%88,
एक्सेसेड ऑन 16 जनवरी, 2024
- वही
- बीबीसी न्यूज हिन्दी, बांग्लादेश को मान्यता देने पर कैसे मजबूर हुआ था
पाकिस्तान ?, 8 दिसंबर, 2021, https://www.bbc.com/hindi/international-59574548,
एक्सेसेड ऑन 11 जनवरी, 2024
- वही
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